बांगला फिल्म
खेला घर (१९५३) से मराठी फिल्म म्होरक्या (२०१७) तक, भारत में बनी बाल फिल्मों ने ६५ साल लम्बा
सफर तय कर लिया है। लेकिन, तकनीक के क्षेत्र में बच्चों के लिए
फिल्मों का सफर बहुत सुस्त रहा है।
हालाँकि,
१९८४ में
प्रदर्शित मलयालम फिल्म माय डिअर कुट्टिचेतन (हिंदी में छोटा चेतन) में त्रिआयामी
यानि ३डी तकनीक का उपयोग कर लिया गया था।
लेकिन,
इस फिल्म के
बाद से, बच्चों की फिल्मों में नई नई तकनीक डालने
का काम काफी सुस्त रहा है। शायद इसका कारण
शिवा का इन्साफ (३डी) की असफलता भी थी। यही कारण है कि देश के बच्चों को हॉलीवुड
की सुपरहीरो या साइंस फिक्शन फिल्मों से
ही मनोरंजन करना पड़ रहा है।
इस साल, २१ दिसंबर को शाहरुख़ खान अपनी फिल्म जीरो
में बाल दर्शकों के साथ साथ उनके अभिभावकों को भी
चौंकाएंगे। इस फिल्म में, साढ़े पांच फुट से ज़्यादा कद वाले शाहरुख़ खान ३ फिट के बौने बने, नाच-गा रहे होंगे। उनके कद को लगभग आधा करने का कमाल तकनीक का
नतीजा है। फोर्स्ड पर्सपेक्टिव तकनीक से
शाहरुख़ खान ३ फुट के नज़र आ रहे हैं। ऐसा
दूसरी बार हो रहा है कि शाहरुख़ खान खुद पर विशेष इफेक्ट्स का उपयोग कर रहे हैं।
शाहरुख़ खान
हमेशा से बच्चों का मनोरंजन करते रहे हैं।
उन्होंने,
पहली बार
अपनी भारतीय सुपरहीरो फिल्म रा.वन में वीएफ़एक्स का खूब उपयोग किया था। इस तकनीक से, उनका सुपरहीरो जी.वन और उनका बुरा किरदार रा.वन हैरतअंगेज़ कारनामे कर
रहे थे। रा.वन यानि रैंडम एक्सेस वर्शन १.० के बाद उम्मीद थी कि बॉलीवुड में
बच्चों के लिए फंतासी फ़िल्में बननी शुरू हो जायेंगी। लेकिन, रा.वन के फ्लॉप होने के बाद, खुद शाहरुख़ खान भी सुस्त पड़ गए। उनकी
रा.वन सीक्वल फिल्म बंद हो गई।
रा.वन २०११
में बनी थी। लेकिन,
इस फिल्म से
पहले भी उच्च तकनीक,
वीएफएक्स, आदि प्रभावों से सजी कुछ हिंदी फ़िल्में रिलीज़
हुई थी। २००४ में निर्माता निर्देशक धीरज कुमार की फिल्म आबारा का डाबरा को ३डी
प्लस तकनीक का इस्तेमाल कर बनाया गया था।
इस तकनीक से बनी फिल्मों को बिना चश्मे के ज़रिये भी देखा जा सकता है। हिंदी फिल्मों में वीएफएक्स का पहला उपयोग, शेखर कपूर ने फिल्म मिस्टर इंडिया (१९८७)
में किया था। इससे पहले,
मलयालम फिल्म
इंडस्ट्री में वीएफएक्स का उपयोग फिल्म माय डिअर कुट्टिचेतन (हिंदी में छोटा चेतन)
में किया गया। २०५० के विश्व को दिखाने वाली हैरी बवेजा की फिल्म लव स्टोरी २०५०
(२००८) और सुजॉय घोष की फिल्म अलादीन (२००९) में वीएफएक्स का उपयोग खूब किया गया
था। लव स्टोरी २०५० में वीएफएक्स के १२०० फ्रेम, अलादीन में १६०० फ्रेम और शंकर की फिल्म एंथिरन (हिंदी में रोबोट) में
२००० से ज़्यादा वीएफएक्स फ्रेम उपयोग किये गए थे।
रोबोट के अलावा,
बाकी फ़िल्में
फ्लॉप हुई थी।
क्या है वीएफएक्स (VFx), सीजीआई (CGI)
विज़ुअल इफेक्ट्स यानि दृश्य प्रभाव का लघु रूप है वीएफएक्स (VFx) । इस तकनीक के द्वारा किसी दृश्य को तैयार किया जाता है या बदला जाता है या उसे बड़ा कर दिया जाता है, जिसे लाइव एक्शन शूटिंग के दौरान नहीं किया जा सकता। रा.वन और रोबोट के ट्रेन और कारों के पीछे भागते और घुसते रा.वन और चिट्टी के दृश्य इसी तकनीक से बनाये गए थे। सीजीआई (CGI) यानि कंप्यूटर जनरेटेड इमेजरी। इसका इस्तेमाल एनीमेशन और लाइव एक्शन फिल्मों के लिए काफी किया जा रहा है। हॉलीवुड की फिल्म द लायन किंग का निर्माण फोटोरीयलिस्टिक कंप्यूटर एनिमेटेड तकनीक से किया गया है। इस प्रभाव से, फिल्म का शेर का बच्चा सिम्बा सजीव नज़र आएगा।
दरअसल, उच्च तकनीक का फिल्मों में इस्तेमाल करना
काफी महंगा होता है। पांच सेकंड के एक वीएफएक्स शॉट को बनाने में औसतन १०-१२ लोग
काम करते हैं। इन्हे ४ हजार से पांच हजार
रुपये प्रतिघंटा का पारिश्रमिक देना पड़ता है।
इससे अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि एक दो घंटे की फिल्म को बनाने में कितने
लोग, कितना परिश्रम, कितना समय और कितना पैसा खर्च होता है।
अमूमन, हॉलीवुड के निर्माता फिल्म का ६०-७०
प्रतिशत तक बजट वीएफएक्स/सीजीआई के लिए रखते हैं।
जबकि,
हिंदी फिल्म
निर्माता १० प्रतिशत से ज़्यादा बजट नहीं रखते।
यहाँ ज़्यादा पैसा स्टार बटोरने में खर्च हो जाता है।
यहीं कारण है
कि हॉलीवुड से उत्कृष्ट श्रेणी की, बच्चों के साथ साथ उनके माता-पिता को पसंद आने वाली फ़िल्में देखने को
मिलती रहती हैं। बैटमैन,
सुपरमैन, स्पाइडर-मैन, सुपरहीरो पावर रखने वाले हॉलीवुड के
करैक्टर भारत के बाल दर्शकों के प्रिय बन जाते हैं। यहाँ तक कि उनका छोटा चींटा सुपरहीरो अंट-मैन
भी बाल दर्शक बटोरता है। हॉलीवुड के चरित्रों का आकर्षण बच्चों को डेडपूल जैसे
हिंसक चरित्र की तरफ भी खींच ले जाता है, क्योंकि वह हंसोड़ है।
एनीमेशन के
लिहाज़ से, भारत में फिल्मों की कमी नहीं है। आजकल तो कंप्यूटर ग्राफ़िक्स से फ़िल्में बनाना
इतना समय खर्च करने वाला नहीं रहा। यही कारण है कि पिछले दशक से, पांडव द फाइव वारियर से शुरू एनीमेशन
फिल्मों का सिलसिला लगातार जारी है। सन ऑफ़ अलादीन, द लीजेंड ऑफ़ बुद्धा, बागमती द क्वीन ऑफ़ फार्च्यूंस, बाल हनुमान,
कृष्णा, बाल गणेश, रिटर्न ऑफ़ हनुमान, घटोत्कच,
रोडसाइड
रोमियो, चीनी चीनी बैंग बैंग, जंबो, लव कुश द वारियर ट्विन्स, टूनपुर का सुपरहीरो, सुपर के- द मूवी, छोटा भीम,
अर्जुन द
वारियर, दिल्ली सफारी, महाभारत, मोटू पतलू किंग ऑफ़ किंग्स, आदि के अलावा हालिया रिलीज़ हनुमान वर्सेज महिरावण जैसी एनीमेशन
फ़िल्में बच्चों को ध्यान में रख कर बनाई गई है।
खबर है कि अजय देवगन की फिल्म सिंघम के चरित्र से प्रेरित होकर छोटा सिंघम
भी बनाई जा चुकी है।
इसके बावजूद
कि हमने काफी एनीमेशन फ़िल्में बना ली है, भारत की फंतासी फिल्म बाहुबली और बाहुबली २ तथा कृष सीरीज की फ़िल्में
दुनिया में दर्शकों को आकर्षित कर पाने में सक्षम हुई हैं, हम हॉलीवुड से काफी पीछे हैं। २०१८ में रिलीज़, अमेरिकन फ़न्तासी फिल्म द जंगल बुक ने भारत में १८० करोड़ का कारोबार
किया था। इस फिल्म के तमाम जानवर किरदार, एनिमेटेड होते हुए भी सजीव से लगते
थे। लाइफ ऑफ़ पाई को ही लीजिये। इस फिल्म
का बड़ी नाव पर पाई पटेल के साथ बैठा शेर जीवित नहीं, एनीमेशन तकनीक ने बना
था। हालिया रिलीज़ फिल्म मोगली लीजेंड ऑफ़ द
जंगल के एनीमेशन से बने जानवर बिलकुल सजीव लगते थे। अगले साल रिलीज़ होने जा रही लायन किंग फिल्म के
एनीमेशन से बने किरदारों को बिलकुल सजीव तैयार किया गया है। इस प्रकार की सजीवता
भारतीय फिल्मों में दूर की कौड़ी है।
दुःख की बात
है कि जेम्स कैमरून जैसा विदेशी फिल्म निर्माता रामायण और महाभारत के चरित्रों से
प्रेरित हो कर अवतार जैसी फिल्म बना डालता है, जो दुनिया में अरबों रुपये का कारोबार कर डालती है। अवतार को रामायण के हनुमान और राम के चरित्रों
से प्रेरणा मिली थी। लेकिन,
भारतीय फिल्म
निर्माता किसी हनुमान या राम को अपना हीरो नहीं बनाना चाहता। इसके बावजूद कुछ फ़िल्में बच्चों को आकर्षित करेंगी।
इनमे, निर्माता
करण जौहर की फंतासी फिल्म ब्रह्मास्त्र एक उदाहरण है, जो एक भारतीय सुपरहीरो को जन्म दे सकती
है। इसके अलावा, राकेश रोशन भी कृष फ्रैंचाइज़ी की चौथी
फिल्म बनाने जा रहे हैं। अनुराग कश्यप के
राज कॉमिक्स के डोगा करैक्टर पर सुपरहीरो फिल्म बनाने की खबर थी। मिस्टर इंडिया का सीक्वल बनाये जाने की भी
अपुष्ट खबर है।
जब तक, भारतीय फिल्म निर्माताओं की ब्रह्मास्त्र, कृष ४ या डोगा जैसी फ़िल्में रिलीज़ हो, उससे पहले तक भारत के बाल दर्शक हॉलीवुड
की अवेंजर्स ४,
स्टार वार्स
एपिसोड ९, फ्रोजेन २, द लीगो मूवी २, अलादीन,
लायन किंग, टॉय स्टोरी २, डम्बो, स्पाइडर-मैन २ और हाउ टू ट्रेन योर ड्रैगन ३ जैसी उच्च तकनीक से बनी
मनोरंजक और शिक्षाप्रद फिल्मों से अपना मनोरंजन करें। शाहरुख़ खान की फिल्म जीरो का बौना बॉऊआ सिंह भी उनका मनोरंजन कर सकता है।
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