Sunday, 23 August 2015

स्कूबी डूबी डू की वापसी

स्कूबी डूबी डू फिर वापस आ रहे हैं। आपको यह पूछने की ज़रुरत नहीं कि कहाँ हो तुम स्कूबी डूबी डू  ? वार्नर  ब्रदर्स ने कमर कस ली है। २१ सितम्बर २०१८ को आपके निकट के थिएटर में स्कूबी डूबी डू  रिलीज़ होने जा रही है।  इस साल २१ जुलाई को रिलीज़ फिल्म 'स्कूबी डू ! एंड किस : रॉक एंड रोल मिस्ट्री' के निर्देशक टोनी सर्वोन २०१८ में रिलीज़ होने  जा रही स्कूबी डूबी डू का निर्देशन करेंगे।  मैट लिएबेरमन ने फिल्म की कथा-पटकथा लिखी है। स्कूबी डू सीरीज की पिछली दो फ़िल्में- २००२ में रिलीज़ स्कूबी डू  और  रिलीज़ स्कूबी डू २: मॉन्स्टर्स अन लीश्ड, जहाँ लाइव एक्शन फिल्म थी, स्कूबी डूबी डू एनीमेशन फिल्म है।  वास्तविकता तो यह है कि २००४ की स्कूबी डू फिल्म के बाद स्कूबी डूबी डू के तमाम करैक्टर स्कूबी, शैगी और इनका गैंग टीवी और डायरेक्ट टू वीडियो फिल्म में एनीमेशन रूप  में ही नज़र आया।  वार्नर ब्रदर्स की इस लाइव एक्शन फिल्म के प्रोडूसर चार्ल्स रोवन और रिचर्ड सकल ही हैं।

चीनी फिल्म में क्लार्क केंट

चीन की पहली अंग्रेजी भाषा की विज्ञानं फंतासी फिल्म 'लॉस्ट इन ड पैसिफिक' वर्ल्डवाइड रिलीज़ की जाएगी।  इस त्रिआयामी एक्शन एडवेंचर फिल्म के हीरो २००६ में रिलीज़ सुपरपावर रखने वाले क्लार्क केंट की कहानी वाली फिल्म सुपरमैन रिटर्न्स में सुपरमैन का किरदार करने वाले अभिनेता ब्रैंडन रॉथ हैं ।  फिल्म में उनकी नायिका चीनी अभिनेत्री झांग युकी हैं। झांग को स्टीफेन चाउ की २००७ में हांगकांग फिल्म 'सीजे ७' से अंतर्राष्ट्रीय दर्शकों के बीच अपनी पहचान बनाई।  उनके खाते में शाओलिन गर्ल, आल अबाउट वुमन, कर्स ऑफ़ द ड़ेसेर्टेड और वाइट डियर प्लेन जैसी फ़िल्में दर्ज़ हैं।  लॉस्ट इन द पसिफ़िक की कहानी २०२० की भविष्य की दुनिया की है।  इलीट इंटरनेशनल पैसेंजर्स का एक ग्रुप लक्ज़री फ्लाइट पर निकलता है। परन्तु उनकी हंसी ख़ुशी वाली यात्रा विनाश में बदल जाती है।  इस फिल्म की तमाम शूटिंग मलेशिया के पाइनवुड स्टूडियोज में इस साल बसंत में शुरू हुई थी।  फिल्म के विज़ुअल इफेक्ट्स यूएफओ इंटर्नेशनल्स ने तैयार किये हैं।  फिल्म की साउंड एडिटिंग ऑस्कर के लिए नामांकित कमी असगर और सीन मैककर्मैक की देखरेख में हुई है।  लेस मिज़रबल के लिए ऑस्कर पुरस्कार विजेता साउंड इंजीनियर ने फिल्म की साउंड मिक्सिंग की है।  

बॉलीवुड की फिल्मों में ऑन स्क्रीन भाइयों का जलवा

निर्माता करण जौहर की करण मल्होत्रा निर्देशित फिल्म 'ब्रदर्स' हॉलीवुड की २०११ में रिलीज़ निर्देशक डेविड ओ'कोनोर निर्देशित दो बॉक्सर भाइयों के रिंग पर आखिरी मुकाबले की कहानी 'वारियर' पर आधारित है। 'वारियर' में दो भाइयों टॉमी और ब्रेंडन का किरदार टॉम हार्डी और जोएल एडगर्टन ने किया था।  इन दोनों के पिता की भूमिका निक नोल्टे ने की थी। एक टूटे चुके परिवार की इस मार्मिक कहानी के हिंदी संस्करण में उपरोक्त मुख्य किरदार अक्षय कुमार, सिद्धार्थ मल्होत्रा और जैकी श्रॉफ कर रहे हैं।
हिंदी फिल्मों के भाई किरदार बेशक बिछुड़ते-मिलते हैं, उनमे आपसी खुन्नस भी होती है।  लेकिन, आखिरकार खून जोर मारता है।  आम तौर पर हिंदी फिल्मों के भाइयों की यही कहानी होती है।  रूपहले परदे के यह भाई दर्शकों के इमोशन को छूते हैं, ड्रामा करते हैं। भरपूर एक्शन होता है।  इस बीच रोमांस भी। आइये नज़र डालते हैं बॉलीवुड के ऐसे ही कुछ ब्रदर्स पर !
अपने- करण मल्होत्रा की फिल्म ब्रदर्स' का जिक्र करते समय अनिल शर्मा की इस फिल्म की याद आ  जाती है।  रियल लाइफ के दो भाईयो सनी देओल और बॉबी देओल की रील लाइफ की यह दास्ताँ भी बॉक्स रिंग पर थी।  पिता को बॉक्सिंग रिंग में अपमानित किया जाता है।  छोटा भाई इसका बदला लेना चाहता है, लेकिन बड़े भाई को बॉक्सिंग में रूचि नहीं।  आगे जो कुछ होता है, वह देखना काफी दिलचस्प था।  फिल्म में धर्मेन्द्र अपने दोनों बेटों के पिता बने थे।  
मैं हूँ न - हालाँकि, फराह खान की फिल्म 'मैं हूँ न' भारत पाकिस्तान संबंधों पर फिल्म थी, लेकिन दो भाइयों की कहानी को काफी खूबसूरती से पिरोया गया था।  शाहरुख़ खान और ज़ायेद खान की भाई जोड़ी ने दर्शकों को आकर्षित  किया था।  आर्मी अफसर भाई अपने कॉलेज में पढ़ रहे सौतेले भाई और माँ को घर लाने में सफल होता है।  
कभी ख़ुशी कभी गम-  निर्देशक करण जौहर की फिल्म 'कभी ख़ुशी कभी गम' अमीर रायचंद परिवार के लडके राुहल द्वारा एक गरीब लड़की से शादी से नाराज़ हो कर पिता घर से निकाल देते हैं।  छोटा भाई सायना होने पर अपने भाई और  भाभी को वापस लाने का बीड़ा उठाता है।  इस फिल्म में अमिताभ बच्चन, शाहरख खान, ह्रितिक रोशन, काजोल और करीना कपूर जैसे सितारे थे।
सूरज बड़जात्या की भाई-भाई फ़िल्में- सूरज बड़जात्या की फिल्मों में परिवार का महत्त्व होता है।  ख़ास तौर पर उनकी फिल्मों के भाई राम और लक्षमण की जोड़ी होते हैं।  हम आपके हैं कौन में जहाँ सलमान खान के साथ  मोहनीश बहल भाई की जोड़ी बना रहे थे, वहीँ हम साथ साथ हैं में सलमान खान, सैफ अली खान और मोहनीश बहल तीन भाई थे।  इन दोनों ही फिल्मों के भाई अपने भाई और परिवार के लिए त्याग करने वाले आदर्श थे।
पौराणिक चरित्रों के नाम वाली भाई भाई फ़िल्में- भाइयों का ज़िक्र हो तो पौराणिक भाईयो  की जोड़ियां याद आएंगी ही।  बॉलीवुड ने भी इन्ही पौराणिक  नामों का जिक्र करते हुए, भाई फ़िल्में बनाई हैं। निर्माता-निर्देशक  सुभाष घई की फिल्म राम-लखन दो भाइयों  अनिल कपूर और जैकी श्रॉफ की कहानी थी।  इस एक्शन कॉमेडी फिल्म की भाई भाई जोड़ी राम लक्षमण की जोड़ी से प्रेरित थी।
 वहीँ, राकेश रोशन की फिल्म करण-अर्जुन की कहानी दो भाइयों करण और अर्जुन के पुनर्जन्म और बदले की कहानी थी।  हालाँकि, महाभारत के युग के कर्ण और अर्जुन एक माँ और भीं पिताओं के बेटे थे, राकेश रोशन की फिल्म में यह सगे भाई थे।  इन दोनों भूमिकाओं को शाहरुख़ खान और सलमान खान ने किया था।   
अमिताभ बच्चन, सबके भाई- अमिताभ बच्चन ने कई भाई फ़िल्में की।  उनकी शशि कपूर के साथ भाई जोड़ी ख़ास जमी।  इस जोड़ी को रुपहले परदे पर जमाया था, यशराज फिल्म्स की फिल्म दीवार ने।  इस फिल्म मे अमिताभ बच्चन तस्कर बने थे, जबकि शशि कपूर पुलिस इंस्पेक्टर।  कर्तव्य और भाई के रिश्ते के बीच यह
बड़ा टकराव था।  दीवार सफल रही।  शशि-अमिताभ जोड़ी हिट हो गई।  मुकुल आनंद निर्देशित फिल्म हम भी तीन भाइयों की दास्तान थी।  फिल्म में अमिताभ बच्चन गोविंदा और रजनीकांत के बड़े भाई थे।  इस फिल्म में तीनों भाइयों के गहरे रिश्ते दिखाए गए थे।  राज एन सिप्पी की कॉमेडी फिल्म सात भाइयों की कॉमेडी थी, जिनके नाम सप्ताह के दिनों सोम मंगल बुद्ध गुरु शुक्र शनि और रवि थे।  रवि अमिताभ बच्चन बने थे।  यह फिल्म हॉलीवुड फिल्म सेवन ब्राइड्स फॉर सेवन ब्रदर्स पर आधारित थी। 
जुंड़वा भाई- निर्माता बी नागिरेड्डी की चक्रपाणि निर्देशित फिल्म राम और श्याम ने बॉलीवुड में दोहरी भूमिकाओं को पुख्ता किया।  इस फिल्म में बॉलीवुड के ट्रेजेडी अभिनेता दिलीप कुमार ने दो बिछड़े हुए भाई राम और श्याम की दोहरी भूमिकाएं की थी।  अपनी दुखांत फिल्मों के लिए ट्रेजेडी किंग विश्लेषण से नवाज़े गए दिलीप कुमार का कॉमेडी में हाथ आजमाने का यह दांव कारगर साबित हुआ था।  इस फिल्म के बाद तमाम नामी गिरामी एक्टर्स में दोहरी भूमिकाए करने की होड़ लग गई ।
गंगा- जमुना- निर्देशक नितिन बोस की गाँव के ज़मींदार के अत्याचार के कारण डाकू बन गए भाई को पुलिस इंस्पेक्टर भाई द्वारा गोली मार दिए जाने की कहानी वाली इस फिल्म में दो भाइयों गंगा और जमुना की भूमिका रियल लाइफ के सगे भाइयों दिलीप कुमार और नासिर खान ने की थी।  
मशहूर भाई जोड़ियां और फ़िल्में 
सलमान खान- शाहरुख़ खान - करण-अर्जुन 
सलमान खान- संजय दत्त- चल मेरे भाई 
शाहरुख़ खान- ह्रितिक रोशन - कभी ख़ुशी कभी गम 
अनिल कपूर- जैकी श्रॉफ- राम लखन 
संजय दत्त- गोविंदा- हसीना मान जाएगी 
सलमान खान- अरबाज़ खान- दबंग 
सनी देओल-बॉबी देओल- दिल्लगी, अपने 
धर्मेन्द्र- जीतेन्द्र- धरम-वीर


जब बैन हो जाता है पाकिस्तान में बॉलीवुड !

पाकिस्तान में छिपा मुंबई हमलों का मास्टर माइंड हफ़ीज़ सईद 'फैंटम' से डरा हुआ है। उसे लगता है कि कबीर खान की सैफ अली खान और कैटरीना कैफ अभिनीत फिल्म 'फैंटम' उसे मुंबई हमलों का दोषी मानती है। हफ़ीज़ सईद का डर जायज़ है।  फैंटम के ट्रेलर की शुरुआत ही मुंबई अटैक की तस्वीरों और हफ़ीज़ सईद की उस रिकॉर्डिंग से होती है, जिसमे वह पूछ रहा है कि क्या तुम साबित कर सके कि मुंबई अटैक में हाफिज सईद का हाथ है ? अब छह साल हो चुके हैं, क्या तुम्हे कुछ मिला ?' इसी ट्रेलर के आखिर में फिल्म का नायक कहता है, "अमेरिकियों ने पाकिस्तान में घुस कर ओसामा को मार डाला ? हम ऐसा क्यों नहीं कर सकते ?"  रील लाइफ में सईद का वकील पाकिस्तान की अदालत में इसे पेश करते हुए कहता है कि यह मेरे क्लाइंट को सीधे धमकी है।
पाकिस्तानी एक्टर हमज़ा अली अब्बासी भी 'फैंटम' की आड़ में बॉलीवुड की आलोचना करते हैं।  वह बॉलीवुड को दोमुंहा बताते हैं।  हमजा कबीर खान की फिल्म को 'निराशाजनक गंदगी' बताते हैं। वह चाहते हैं कि पाकिस्तानी भी भारत और रॉ के द्वारा बलोचिस्तान में फैलाये गए शिया सुन्नी आतंकवाद पर फिल्म बनाये।
पाकिस्तान आतंकवाद को लेकर उतना चिंतित नहीं, जितना बॉलीवुड द्वारा बनाई जा रही अपनी इमेज को लेकर है।  फैंटम को  निराशाजनक कूड़ा बताने वाला पाकिस्तान बजरंगी भाईजान, पीके और हैदर को हाथों हाथ लेता हैं, क्योंकि बजरंगी भाईजान पाकिस्तानियों की प्रति नरम है, यहाँ तक कि आर्मी को भी दोस्ताना दिखाया गया है।  पीके हिन्दू धर्म गुरुओं को गरियाते हुए पाकिस्तानियों को 'बेईमान नहीं होते' साबित करती है और हैदर कश्मीर में उग्रवाद के लिए भारतीय सेना को जिम्मेदार बताती है।  लेकिन, वह बजरंगी भाईजान वाले निर्देशक कबीर खान की फिल्म फैंटम को अस्वीकार करने की तयारी कर रहा  है क्योंकि यह फिल्म उनके यहाँ पल रहे आतंकवादी हाफिज सईद को इंगित करती है।
जब 'बेबी' से डरा पाकिस्तान !
पाकिस्तान को रास नहीं आता कि बॉलीवुड फ़िल्में उसे आतंकवादियों की पनाहगाह बताये। यही कारण है कि पाकिस्तान अक्षय कुमार की आतंकवाद पर नीरज पाण्डेय की फिल्म 'बेबी' को बैन कर देता है, क्योंकि यह फिल्म भी पाकिस्तानी एक्टर रशीद नाज़ के चहरे में मौलाना हफ़ीज़ सईद का चेहरा छिपा दिखाती थी । 'बेबी' साफ़ साफ़ पाकिस्तान को हफ़ीज़ सईद की पनाहगाह बताती थी। पाकिस्तान को भारत की उन फिल्मों से डर लगता है, जिनमे बम विस्फोट, दाढ़ी वाले आतंकवादी और आतंकवाद का कोण हो।  अगर कही फिल्म में ढका-छुपा कर भी पाकिस्तान का हाथ बताया गया है तो समझिए कि फिल्म पाकिस्तान में बैन हो गई।  अगर ऐसा न होता तो रितेश देशमुख की करण अंशुमान निर्देशित कॉमेडी फिल्म 'बंगीस्तन' को पाकिस्तान में रोक का सामना न करना पड़ता।  फिल्म के दो फुकरे धोखे से पाकिस्तान पहुँच जाते हैं।  इस फिल्म में वह बम विस्फोट, ओसामा बिन लादेन और आतंकवाद की बात करते हैं। पाकिस्तान को इससे डर लगता है। पाकिस्तान को यह मंज़ूर नहीं कि उसका नाम इस सब से जोड़ा जाये ।  इसलिए वह 'बंगिस्तान' को बैन कर देता है।
हिंदी फिल्मों पर बैन! कोई नई बात नहीं !! 
पाकिस्तान में हिंदी फिल्मों के बैन का लंबा इतिहास रहा है। १९६२ में पाकिस्तान में सभी भारतीय फिल्मों की एंट्री पर रोक लगा दी थी।  १९७९ में, पाकिस्तान के डिक्टेटर राष्ट्रपति जिया उल हक़ ने पाकिस्तान के इस्लामीकरण का बीड़ा उठाया।  इसके तहत हिंदुस्तानी  फिल्मों को बैन करना पहला कदम था।  हक़ के समय में पाकिस्तान का सेंसर गैर इस्लामिक हर शब्द से कतराता था।  कोई भी ऐसी फिल्म पाकिस्तान  में रिलीज़ नहीं हो सकती थी।  इसके बावजूद कि पाकिस्तानी प्रेजिडेंट बॉलीवुड एक्टर शत्रुघ्न सिन्हा का बेहद अच्छे दोस्त थे।  यही कारण है कि बॉलीवुड की कल्ट फिल्म शोले पाकिस्तानी दर्शक चालीस साल बाद ७० एमएम के परदे पर देख पाये।  २००६ से पाकिस्तान में भारतीय फिल्मों के प्रदर्शन को पूरी तरह से रोक दिया गया।  इस समय भी भारतीय फिल्मों का प्रदर्शन इस हाथ ले, उस हाथ दे की शैली में हो रहा है।  यानि, जितनी तुम्हारी  फ़िल्में, उतनी ही हमारी फ़िल्में प्रदर्शित हों।  बशर्ते यह सब पाकिस्तान (मुसलमान) विरोधी न हो।
बजरंगी भाईजान के मुंह से कश्मीर छीना 
हिंदी फिल्मों पर बैन लगाने के मामले में पाकिस्तान काफी पूर्वाग्रही लग सकता है।  पाकिस्तान में बजरंगी भाईजान बेशक रिलीज़ हुई हो, इसके बावजूद कि फिल्म का जहाँ पाकिस्तानी दर्शक बेसब्री से इंतज़ार कर रहे थे, वहीँ फिल्म इंडस्ट्री के लोग  अपनी फिल्मों को स्क्रीन न मिलने या कम हो जाने के भय से विरोध कर रहे थे। परन्तु, सलमान खान को ईद पर देखने के पाकिस्तानियों के उत्साह को देख कर पाकिस्तानी सेंसर बोर्ड ने फिल्म को कुछ कट के साथ रिलीज़ कर दिया।  परन्तु, काटे गए तमाम दृश्य और डायलाग में सलमान खान का बोला गया यह डायलाग भी था कि कश्मीर का एक हिस्सा हमारे (भारत के) पास भी है ।
पाकिस्तान को केवल इस लिए रंज नहीं कि  हिंदी फिल्मों में दाढ़ी वाले आतंकी, बम विस्फोट और आतंकवाद के तार पाकिस्तान से जुड़े दिखाए जाते हैं।  उसे आईएसआई से भी गुरेज़ है।  जी नहीं, पाकिस्तान
आईएसआई के कारनामों से रंज  नहीं करता, उसे रंज होता है हिंदी फिल्मों का आईएसआई को ग्लोबल टेररिज्म के लिए ज़िम्मेदार दिखाना।  इसिलिये ऎसी सभी हिंदी फ़िल्में पाकिस्तान में बैन हो जाती हैं, जिनमे आईएसआई के तार आतंकवाद से जुड़े हों।  अब चाहे वह फिल्म सलमान खान और कबीर खान की एक था टाइगर रही हो या सैफ अली खान की एजेंट विनोद।  बेबी तो खैर अक्षय कुमार की फिल्म थी।  कुर्बान में मुसलमानों को आतंकवादी दिखाया गया था, जबकि एक था टाइगर की कैटरीना कैफ आईएसआई एजेंट बताई गई थी। तेरे बिन लादेन में तो पाकिस्तानी अधिकारीयों को बुरी छवि में दिखाया गया था।  ऐसे में फैंटम कैसे रिलीज़ हो सकती है, जब इसमे हफ़ीज़ सईद द्वारा मुंबई में २६ नवंबर को कराया गया अटैक है और हफ़ीज़ सईद के भाषण की ऑडियो चलाई गई है।
कुछ दूसरे कारण भी हैं  बैन होने के लिए !
पाकिस्तान को डर्टी पिक्चर भी  गन्दी लगी थी।  फिल्म में विद्या बालन ने अपने उभारों का प्रदर्शन किया ही  था, 'गन्दी' भाषा भी बोली थी।  बकौल पाकिस्तानी सेंसर बोर्ड पाकिस्तानी दर्शकों के लिहाज़ से यह बोल्ड फिल्म है।   बाद में इस फिल्म को काफी कट के बाद 'ए' सर्टिफिकेट के साथ रिलीज़ कर दिया गया।  पाकिस्तान के टेररिस्ट और बोल्ड सब्जेक्ट के अलावा भी  पाकिस्तानी कैची चलने के कारण हैं। पाकिस्तानी सेंसर बोर्ड अपने मुस्लिम दर्शकों के सेंटीमेंट का भी काफी ध्यान रखता है। अक्षय कुमार  की फिल्म 'खिलाडी ७८६' को शुरुआत में इसीलिए बैन किया गया था कि इससे ७८६ का पवित्र अंक जुड़ा था।  मुसलमानों की धार्मिक भावनाएं आहत हो सकती थी। बाद में यह फिल्म बिना ७८६ के रिलीज़ हुई।  इस प्रकार से, १९९२ में अक्षय कुमार की फिल्म 'खिलाडी' के बाद, पाकिस्तान में अक्षय कुमार की दूसरी खिलाड़ी फिल्म रिलीज़ हुई थी। आनंद एल राज की सोनम कपूर और धनुष अभिनीत फिल्म 'रांझणा' को पाकिस्तानी सेंसर बोर्ड ने इस बिना पर प्रदर्शन के अयोग्य माना की फिल्म में मुस्लिम ज़ोया हिंदी कुंदन के प्यार में मुब्तिला होती है।  यह वही सेंसर बोर्ड है, जो मुस्लमान से प्रेम करने वाली हिन्दू लड़की वाली फिल्म 'पीके' को आराम से रिलीज़ होने देता है।  दिलचस्प तथ्य यह है कि पाकिस्तान का आवाम कोई आवाज़ भी नहीं उठाता है।
इसलिए भी बैन 
पाकिस्तान में शाहरुख खान की फिल्म 'चेन्नई एक्सप्रेस' को ईद के दौरान रिलीज़ होने से रोकने के लिए सर्टिफिकेट नहीं दिया गया था।  कारण यह था कि  ८ अगस्त ईद के दिन पाकिस्तान की चार फ़िल्में जोश, इश्क़ खुदा, वॉर और मेरा नाम अफरीदी रिलीज़ होनी थी।  इसलिए पाकिस्तानी फिल्म इंडस्ट्री के हितों की रक्षा के लिए चेन्नई एक्सप्रेस को सर्टिफाई नहीं किया गया।  बाद में यह फिल्म पाकिस्तान में रिलीज़ हुई।  भाग मिल्खा भाग की पाकिस्तान में रिलीज़ की राह में फिल्म में फरहान अख्तर के किरदार मिल्खा सिंह द्वारा बोला गया वह डायलाग आया, जिसमे वह कहता है कि मैं पाकिस्तान नहीं जाऊँगा।   मुझसे नहीं होगा।" इस डायलाग से पाकिस्तान को लगता था कि मिल्खा सिंह १९४७ में हुए अपने परिवार के कत्लेआम के  लिए मुसलमानों को ज़िम्मेदार बता रहा है। इसी प्रकार से डेविड, लाहौर, आदि फिल्मों को भी पाकिस्तान में बैन का सामना करना पड़ा। 
पाकिस्तान में हिट 'सरफ़रोश' !
यह जान कर आश्चर्य होगा कि जहाँ पाकिस्तान विरोधी हिंदी फ़िल्में पाकिस्तान में रिलीज़ नहीं हो पाती, वहीँ आमिर  खान और सोनाली बेंद्रे की मुख्य भूमिका वाली फिल्म 'सरफ़रोश' ज़बरदस्त हिट होती है।  इसे कराची और लाहौर के थिएटर्स में चोरी छुपे दिखाया जाता है।  यह फिल्म पाकिस्तान में सबसे लोकप्रिय फिल्म बन जाती है। फिल्म के पायरेटेड प्रिंट की ज़बरदस्त मांग होती है।  जबकि, यह फिल्म बॉलीवुड की पहली फिल्म थी, जिसमे पाकिस्तान को आतंकवादी देश बताया जाता है।  तब, सरफरोश पाकिस्तान में इतनी बड़ी हिट फिल्म कैसे बनी? जानकार इसके चार कारण गिनाते हैं।  सरफ़रोश की सफलता का सबसे बड़ा कारण थी, अभिनेत्री सोनाली बेंद्रे।  साड़ी में लिपटी भीगी सोनाली पाकी दर्शकों को कामुक लगी। फिल्म मोहाजिरों का ज़िक्र करती थी।  तीसरा फिल्म का म्यूजिक बहुत बढ़िया था।  चौथी बात फिल्म में विस्फोट के दृश्य कराची विस्फोट की याद ताज़ा कराते थे।

राजेंद्र कांडपाल 

Saturday, 22 August 2015

३१ अक्टूबर का जलवा

लंडन इंडियन फिल्म फेस्टिवल में फिल्म "३१ अक्टूबर" का वर्ल्ड प्रीमियर होने के बाद , हैरी सचदेवा और मैजिकल ड्रीम्स प्रोडकशन्स प्राइवेट लिमिटेड की यह फिल्म अब आगामी सिख इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में २९ अगस्त को टोरांटो में दिखाई जाएगी। ​३१ अक्टूबर को नेशनल अवार्ड विनर डायरेक्टर शिवाजी लोटन पाटिल ​ने निर्देशित किया है। इस फिल्म की कहानी इतिहास के उन कुछ काले पन्नो की है, जब १९८४ में भारत की तत्कालीन प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी की हत्या की गयी थी। इस फिल्म दिखाया गया है की हत्या के बाद देश में क्या माहौल रहा होगा और किसी एक धर्म और जाती पर इसके कैसे परिणाम हुए। इस फिल्म में कोई गीत नहीं है, सिर्फ बैकग्राउंड स्कोर है जो कि फिल्म इंडस्ट्री के दिग्गज आशा भोसले , उस्ताद ग़ुलाम मुस्तफा अली खान, सोनू निगम और जावेद अली द्वारा क्रिएट किया गया है। इस बारे में ​फिल्म के निर्देशक पाटिल कहते है " यह मेरे लिए सम्मान की बात है। इस फिल्म को दुनिया भर के दर्शको ने पसंद किया है।  लंडन इंडियन फिल्म फेस्टिवल में बढ़िया रिस्पांस मिला है।  ​हम सिख और वैंकूवर अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोह में फिल्म को अच्छे रिस्पांस की उम्मीद हैं। "​ ​निर्माता हैरी सचदेवा आगे बताते हैं,​  "हमें यह  विशाल प्लेटफार्मों मिला है।  सिख और वैंकूवर अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोहों में 31 अक्टूबर को प्रदर्शित करने के लिए बहुत गर्व महसूस हो रहा है।"

अब पत्रकार बनेगी ज़ोया अख्तर की नूरी

ज़ोया अख्तर की इसी साल रिलीज़ फिल्म 'दिल धड़कने दो' में नूरी का नाज़ुक किरदार करने वाली अभिनेत्री रिद्धिमा सूद अब एक पत्रकार की रफ़ टफ भूमिका में नज़र आएंगी।  दिल धड़कने दो रिद्धिमा की डेब्यू फिल्म थी।  इस लिहाज़ से दिल धड़कने दो का बॉक्स ऑफिस पर निराशाजनक प्रदर्शन करना किसी भी न्यूकमर के लिए दुःख की बात होगी।  लेकिन, रिद्धिमा अपनी पहली फिल्म की असफलता से निराश नहीं।  उन्होंने फिर से कमर कस ली है। मधुरिता आनंद की फिल्म 'कजरिया' भ्रूण हत्या के कथानक पर फिल्म है।  फिल्म में वह भ्रूण हत्या के एक मामले को सुलझाते हुए नज़र आएंगी।  आम तौर पर नवोदित अभिनेत्रियां हल्का फुल्का कॉमेडी फिल्मों के किरदार करना चाहती है।  लेकिन, किसी गंभीर किस्म की फिल्म में ग्लैमरविहीन रोल करना रिद्धिमा सूद जैसी किसी अभिनेत्री के बूते की ही बात है।  उम्मीद की जा सकती है कि रिद्धिमा 'कजरिया' में अपनी छिपी अभिनय प्रतिभा को दर्शकों के सामने ला पाएंगी।
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Thursday, 20 August 2015

क्या अभिषेक बच्चन के लिए होगा 'आल इज़ वेल' !

अभिषेक बच्चन के लिए 'आल इज़ वेल' क्यों ज़रूरी है।  बॉलीवुड फिल्म इंडस्ट्री में १५ साल बिताने के बाद भी, अभिषेक बच्चन लड़खड़ाते देखे जा सकते हैं।  कहने को वह अपनी पिछली हिट फिल्मों 'हैप्पी न्यू ईयर', 'धूम ३' और 'बोल बच्चन' जैसी हिट फिल्मों के नाम गिना सकते हैं।  लेकिन, इन सभी फिल्मों में, 'हैप्पी न्यू ईयर' और 'बोल बच्चन' में दोहरी भूमिका करने के बावजूद' इनके नायकों शाहरुख़ खान, आमिर खान और अजय देवगन का महत्त्व था।  अगर. अभिषेक बच्चन अपनी किसी हिट सोलो फिल्म की बात करेंगे तो 'बंटी और बबली' और 'गुरु' का ही उल्लेख कर सकते हैं।  यह दोनों फ़िल्में क्रमशः २००५ और २००७ में रिलीज़ हुई थी।  इसका मतलब यह हुआ कि वह ८ साल से सोलो हिट के लिए तरस रहे हैं।  इस लिहाज़ से 'आल इज़ वेल' खास है।  इस फिल्म के निर्देशक उमेश शुक्ल हैं, जो सुपर हिट फिल्म ओह माय गॉड' के निर्देशक के बतौर पहचाने जाते हैं।  'आल इज़ वेल' कॉमेडी फिल्म है।  इस कॉमेडी में अभिषेक बच्चन का साथ असिन, ऋषि कपूर और सुप्रिया पाठक कपूर दे रही हैं।  ऋषि और सुप्रिया करैक्टर एक्टर हैं।  असिन को कोई फर्क नहीं पड़ेगा, यदि फिल्म हिट हो या फ्लॉप।  क्योंकि, वह शादी करने जा रही हैं।  इस लिहाज़ से 'आल इज़ वेल' का बॉक्स ऑफिस पर बढ़िया प्रदर्शन केवल अभिषेक बच्चन के लिए ही महत्वपूर्ण है।  क्या अभिषेक बच्चन के लिए 'आल इज़ वेल' साबित होगी!

अब शाहरुख़ खान लड़ाएंगे आलिया भट्ट के साथ रोमांस !

इसे कास्टिंग कू कहा जायेगा।  गौरी शिंदे ने अपनी अगली फिल्म में अलिया भट्ट से रोमांस रोमांस करने के लिए बॉलीवुड की रोमांस फिल्मों के बादशाह शाहरुख़ खान को लिया है।  करण जौहर की को-प्रोडूस यह फिल्म बड़ी उम्र के आदमी के कम उम्र हसीना से रोमांस की कहानी है।  कल इस फिल्म के बारे में करण जौहर ने ट्वीट किया था।  बेमेल जोड़े की यह रोमांस फिल्म गौरी शिंदे के पति आर बाल्की की फिल्म 'चीनी कम' की याद दिलाती है, जिसमे अमिताभ बच्चन अपने से कम उम्र लड़की तब्बू से रोमांस करते हैं और शादी करना चाहते हैं।  इससे पहले अमिताभ बच्चन राम गोपाल वर्मा की फिल्म 'निःशब्द' में अपने से कम उम्र की लड़की जिया खान के रोमांस में पड़ चुके थे।  बेमेल रोमांस की दृष्टि से १९७७ में रिलीज़ रमेश तलवार की फिल्म 'दूसरा आदमी' की याद आ जाती है, जिसमे राखी गुलजार कम उम्र ऋषि कपूर से प्रेम करने लगती हैं।  नायिकाओं का कुछ ऐसा ही रोमांस फरहान अख्तर की फिल्म 'दिल चाहता है' में डिम्पल कपाड़िया और अक्षय खन्ना की बीच दिखाया गया था।  गौरी शिंदे की फिल्म इन्ही फिल्मों का पुरुष संस्करण लगती है।

Wednesday, 19 August 2015

अंकिता श्रीवास्तव कैसे बनी चांदनी !

अंकिता श्रीवास्तव लखनऊ से हैं।  माँ चाहती थी कि बेटी फिल्म अभिनेत्री बने।  सो आ गई मुंबई।  कुछ एड फ़िल्में की।  संघर्ष जारी रखा।  फिर मिल गई वेलकम बैक।  २००७ में रिलीज़ अनीस बज़्मी द्वारा ही निर्देशित, मगर अक्षय कुमार और कैटरीना कैफ की रोमांटिक जोड़ी वाली फिल्म 'वेलकम' की इस रीमेक फिल्म में अक्षय कुमार और कैटरीना कैफ की रोमांटिक जोड़ी नहीं है।  अनिल कपूर और नाना पाटेकर की भाई जोड़ी है। इन दोनों भाइयों पर डोरे डालने वाली मल्लिका शेरावत भी नहीं हैं।  मल्लिका शेरावत ने इशिका का रोल किया था।  अब इशिका का चरित्र निकाल दिया गया है।  इशिका की जगह चांदनी ने ले ली है।  इसी चांदनी किरदार को अंकिता श्रीवास्तव निबाह रही हैं।  लेकिन, अंकिता के चांदनी बनने की कहानी दिलचस्प हैं।  अंकिता श्रीवास्तव श्रीदेवी की फैन हैं।  वह श्रीदेवी बनना चाहती थी। उन्हें श्रीदेवी की फिल्म चांदनी और उसका किरदार चांदनी बेहद पसंद था।  वह वक़्त बेवक़्त चांदनी के किरदार में घुसी रहती थी।  'वेलकम बैक' के ऑडिशन में अंकिता श्रीवास्तव ने निर्देशक अनीस बज़्मी और निर्माता फ़िरोज़ नाडियाडवाला के सामने भी इसी चांदनी को पेश कर दिया।  दोनों को अंकिता का यह परफॉरमेंस पसंद आया।  उन्हें यह परफॉरमेंस कितना पसंद आया होगा, इसका अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि दोनों ने अंकिता के फिल्म के किरदार नज़फगढ़ की राजकुमारी को ही चांदनी नाम दे दिया। अनीज बज्मी कहते है " हमने अंकिता की चांदनी के रूप में एक्टिंग देखी।  बहुत अच्छी लगी।  फ़िरोज़ भाई को वह असल चांदनी लगी तो हम दोनों ने उनके किरदार को भी चांदनी नाम दे दिया।"

सोनू वालिया बनी फिल्म निर्माता

पूर्व मिस इंडिया सोनू वालिया का बॉलीवुड में करियर लम्बा नहीं चल सका।  हालाँकि, सोनू वालिया ने शर्त, खून भरी मांग, आकर्षण, तूफ़ान, क्लर्क, नम्बरी आदमी, खेल, आदि बड़ी फ़िल्में की।  उन्हें फिल्म खून भरी मांग के लिए बेस्ट सपोर्टिंग एक्ट्रेस का फिल्मफेयर पुरस्कार भी मिला।  लेकिन, वह अपनी पहली फिल्म 'आकर्षण' के हीरो अकबर खान के आकर्षण में कुछ इतना बांध गई कि अपना करियर ही गँवा बैठी।  उन्होंने टीवी सीरियल बेताल पचीसी भी किया।  वर्तमान में वह एक अमेरिकी फिल्म प्रोडूसर प्रताप सिंह की पत्नी हैं।  बॉलीवुड छोड़ने के दो दशक बाद, सोनू वालिया एक बार फिर चर्चा में हैं।  वह अब फिल्म प्रोडूसर बन गई हैं।  उन्होंने विनीत शर्मा के साथ एक म्यूजिकल फिल्म जोगिया का निर्माण किया है। इस फिल्म को सान फ्रांसिस्को में फेस्टिवल ऑफ़ ग्लोब में रोहित बक्शी को श्रेष्ठ अभिनेता के अलावा श्रेष्ठ संगीतमय फिल्म का पुरस्कार भी मिला है।  इस फिल्म में सीरियल कहीं तो होगा के रोहित बक्शी नायक हैं।  उनकी नायिका कीर्ति कुल्हारी और सुज़न्ने मुख़र्जी हैं।  अपनी फिल्म के बारे में सोनू वालिया बताती हैं, "संगीत हमारी फिल्मों का आधार है। 'जोगिया' एक गहरी प्रेम कहानी है।  लड़का छोटे शहर का है।  वह संगीत जगत में कुछ बड़ा करना चाहता है।"  इस म्यूजिकल फिल्म का संगीत विनीत शर्मा ने ही तैयार किया है। जोगिया की प्रोडूसर सोनू वालिया को उनके प्रशंसक आज भी याद करते हैं।  क्या उनका एक्टिंग में लौटने का कोई इरादा नहीं है ? कहती हैं सोनू वालिया, "बिलकुल ! मैं एक्टिंग करना चाहूंगी।  बशर्ते रोल मुझे एक्साइट करे।"      

Sunday, 16 August 2015

बॉक्स ऑफिस को रास आ गए स्ट्रीट फाइटर 'ब्रदर्स'

'ब्रदर्स' दर्शकों के दिलों पर छा गई है। पहले दिन फिल्म ने ४००० स्क्रीन में प्रदर्शित होकर बॉक्स ऑफिस पर १४.५५ करोड़ का  बिज़नेस किया था।  बजरंगी भाईजान के बाद ब्रदर्स की शुरुआत दूसरी सबसे बड़ी थी। हालांकि, फिल्म को मिक्स रिव्यु मिले।  कुछ ने सराहा, कुछ ने कड़ी आलोचना की।  लेकिन, दर्शकों को मार्शल आर्ट्स मिक्स स्ट्रीट फाइटिंग की दो भाइयों की कहानी रास आ गई।  फिल्म को शायद माउथ पब्लिसिटी ज़बरदस्त मिली थी।  फिल्म ने दूसरे दिन, यानि शनिवार को ५० परसेंट की ग्रोथ दिखाई।  इतनी शानदार ग्रोथ बहुत कम फिल्मों को मिल पाती है।  वह भी तब, जब काफी समीक्षक फिल्म को खून खराबे से भरी, परिवार के लिए फिल्म नहीं बता रहे थे।  फिल्म ने शनिवार को २२.१५ करोड़ का बिज़नेस किया।  दिलचस्प तथ्य यह है कि फिल्म को कई सर्किट में शतप्रतिशत उछाल मिला।  आम तौर पर, अक्षय कुमार की फिल्म को कुछ सेंटरों में थोड़ा भांपा जाता है।  यहाँ एक्शन ख़ास रास नहीं आता।  बहरहाल, अब यह उम्मीद की जा रही है कि 'ब्रदर्स' का वीकेंड बजरंगी भाईजान के बाद सबसे बड़ा होगा।  रविवार को 'ब्रदर्स' का कलेक्शन शनिवार से ज़्यादा नहीं हुआ, तो भी यह फिल्म ५७ करोड़ से ऊपर कमा लेगी।  ऐसी दशा में सोमवार के बॉक्स ऑफिस कलेक्शन के मज़बूत बने रहने की उम्मीद  की जा सकती है। तब कोई शक नहीं अगर ब्रदर्स का कोल्लेक्टिन ८० करोड़ तक पहुँच जाए।  अब होगा क्या ? यह पहला हफ्ता ख़त्म होने पर बिलकुल साफ़ हो जायेगा।  लेकिन, इतना तय है कि 'ब्रदर्स' अक्षय कुमार और सिद्धार्थ मल्होत्रा के लिए सबसे बड़ा वीकेंड करने वाली फिल्म बन जाएगी।  

दूसरे विश्व युद्ध पर तीन चीनी कार्टून फ़िल्में

चीन के टेलीविज़न पर दूसरा महायुद्ध छाने जा रहा है।  चीन के मीडिया वाचडॉग ने यह घोषणा की है कि सोमवार से दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान चीन पर जापानियों के आक्रमण के विरुद्ध चीन के लोगों के विरोध को दिखाने वाली तीन कार्टून फ़िल्में प्रसारित की जाएंगी।  इन कार्टून फीचर का निर्माण प्रेस, पब्लिकेशन, रेडियो, फ़िल्म एवं टेलीविज़न प्रशासन द्वारा किया गया है।  चीन इस साल द्वितीय विश्व युद्ध ७० वी जयन्ती जोर शोर से मनाने जा रहा है।  इन कार्टून फिल्मों के निर्माताओं के अनुसार अप्रैल में चीन में आठ से दस साल के १००५  छात्रों के बीच एक सर्वे किया गया  था।  इसमे मालूम पड़ा कि ५५ प्रतिशत छात्र द्वितीय विश्व युद्ध में चीन के लोगों के योग दान के बारे में कुछ नहीं जानते।  ८८ छात्र तो ऐसे थे, जिन्हे अपने देश के किसी स्वतंत्रता सेनानियों का नाम तक नहीं मालूम था।  इन तीनों कार्टून फीचर फिल्मों में छात्रों को इन तथ्यों से अवगत कराया जायेगा।  ऎसी एक द्वितीय विश्व युद्ध की कहानी 'टनल वारफेयर' में दिखाया गया है कि चीनी लोगों द्वारा दूसरे विश्व युद्ध के दौरान जापानी आक्रमण के बाद सुरंगों में घुस कर बचने और दुश्मनों का नाश करने में इन सुरंगो का किस प्रकार उपयोग किया गया था।  सरकार का उद्देश्य इन कार्टून फिल्मों से युवाओं को चीन के इतिहास को समझाना है ताकि उनका चारित्रिक विकास हो और वह ऐतिहासिक तथ्यों की तोड़ मरोड़ से प्रभावित  न हों।



Saturday, 15 August 2015

देश भक्ति की सदाबहार फ़िल्में

बॉलीवुड को देश भक्ति की फ़िल्में रास आती हैं।  बॉलीवुड ने गांधी से लेकर भगत सिंह तक स्वतंत्रता सेनानी किरदारों पर फ़िल्में बनाई हैं।  १९६२ के भारत चीन युद्ध पर भी फ़िल्में बनी तो कारगिल युद्ध को भी परदे पर उतारा गया।  देश में व्याप्त भ्रष्टाचार भी कहानी बना।  देशवासियों को सन्देश देने वाली देशभक्ति फ़िल्में भी कम नहीं।  यह फ़िल्में आज भी सदा बहार हैं।  इन्हे कालजयी फ़िल्में कहा जा सकता है।  आइये जानते हैं, ऎसी कुछ फिल्मों के बारे में -
शहीद-
निर्देशक एस राम शर्मा की फिल्म शहीद (१९६५) स्वतंत्रता सेनानियों भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु के जीवन, ख़ास तौर पर  भगत सिंह के जीवन पर फिल्म थी।  इस फिल्म में मनोज कुमार, प्रेम चोपड़ा और अनंत मराठे ने क्रमशः भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु की भूमिका की थी।  इस फिल्म को १३ वे राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों में श्रेष्ठ फिल्म का पुरस्कार प्राप्त हुआ था।  इससे पहले देश स्वतंत्रता के एक साल बाद, १९४८ में रमेश सैगल की फिल्म 'शहीद' रिलीज़ हुई थी, जो स्वतंत्र सेनानियों पर केंद्रित थी।  इस फिल्म में दिलीप कुमार ने शहीद की भूमिका की थी।  २००२ में रिलीज़ राजकुमार संतोषी की फिल्म 'लीजेंड ऑफ़ भगत सिंह' भी इसी विषय पर बानी फिल्म थी।  इस फिल्म में अजय देवगन, सुशांत सिंह और डी संतोष ने क्रमशः भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु का किरदार किया था।  फिल्म ने श्रेष्ट फिल्म का राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार पाया।
बॉर्डर-
डायरेक्टर जे पी दत्ता की १९७१ में  पाकिस्तान के साथ लोंगेवाल में लड़े गए युद्ध की पृष्ठभूमि पर फिल्म 'बॉर्डर' को इसके जोशीले कथानक और ईमानदार प्रस्तुति के कारण बेहद सफलता मिली थी।  फिल्म में सनी देओल, अक्षय खन्ना, सुनील शेट्टी और जैकी श्रॉफ की मुख्य भूमिका थी।  ख़ास तौर पर अक्षय खन्ना के अभिनय  को सराहा गया था। यह भारत की श्रेष्ठ युद्ध फिल्म मानी जाती है।  इस फिल्म को राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों में नर्गिस दत्त अवार्ड के अलावा श्रेष्ठ गीत और श्रेष्ठ गायक की श्रेणी में पुरस्कृत किया गया था।  जे पी दत्ता ने १९९९ के कारगिल युद्ध पर 'एलओसी कारगिल' फिल्म का निर्माण किया था।  इस फिल्म को सीमित सफलता ही मिली। लेकिन, सबसे ज़्यादा प्रभावशाली युद्ध फिल्म थी चेतन आनंद की १९६५ के भारत और चीन युद्ध पर फिल्म 'हकीकत' । इस फिल्म के देशभक्ति से भरे गीत आज भी स्वतंत्रता दिवस पर बजाये जाते हैं।  इस फिल्म को नेशनल फिल्म पुरस्कार भी मिला था।
गांधी-
मोहनदास  करमचंद  गांधी की महात्मा बनाने की यात्रा को उकेरने वाली इस फिल्म की पूरी दुनिया में सराहना हुई।  ब्रिटिश निर्माता निर्देशक सर रिचर्ड एटनबरो द्वारा  नेशनल फिल्म डेवलपमेंट कारपोरेशन के सहयोग से बनाई गई इस फिल्म को श्रेष्ठ फिल्म और श्रेष्ठ निर्देशक सहित आठ ऑस्कर पुरस्कार मिले थे।  महात्मा गांधी की भूमिका के लिए बेन किंग्सले को इकलौता ऑस्कर अवार्ड मिला।
चटगांव-
१९३० के ब्रितानी साम्राज्य वाले चटगांव में हुए विद्रोह पर निर्देशक बेदब्रत पाइन की इस फिल्म को अच्छी रिलीज़ नहीं मिल पाने के कारण ज़्यादा दर्शकों  द्वारा नहीं देखा जा सका।  मनोज बाजपेई और जयदीप अहलावत की मुख्य भूमिका वाली यह फिल्म आशुतोष गोवारिकर की चटगांव विद्रोह पर अभिषेक बच्चन और दीपिका पादुकोण की फिल्म 'खेले हम जी जान से' टकराव के कारण विवादों का शिकार हो गई।  बेदब्रत ने अमिताभ बच्चन पर अपनी फिल्म को नुक्सान पहुंचाने का आरोप भी लगाया था।
मंगल पाण्डेय: द राइजिंग-
केतन मेहता की यह फिल्म भारत के पहले स्वतंत्रता संग्राम के नायक मंगल पाण्डेय पर आधारित थी।  आमिर खान ने मंगल पाण्डेय की भूमिका की थी।  लेकिन, केतन मेहता आमिर खान, रानी मुख़र्जी और अमीषा पटेल जैसी बड़ी स्टारकास्ट के बावजूद प्रभावशाली फिल्म नहीं बना सके।  यह फिल्म फ्लॉप साबित हुई।
सरदार- लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल पर केतन मेहता ने 'सरदार' फिल्म का निर्माण किया था। इस फिल्म में परेश रावल ने पटेल की भूमिका की थी।
मनोज कुमार-
अभिनेता, फिल्म निर्माता और निर्देशक मनोज कुमार को उनकी देशभक्ति की फिल्मों के कारण भारत कुमार भी कहा जाता है। उन्हें यह संज्ञा उनके द्वारा निर्देशित फिल्म उपकार के चरित्र भारत से मिली।  यह फिल्म १९६५ का युद्ध के अलावा किसानों की बात करती थी, गाँव को महिमा मंडित करती थी।  उस समय के सुधारों वाले नारे जय जवान जय किसान को  प्रचारित करती थी। इसके बाद मनोज कुमार ने पाश्चात्य सभ्यता पर भारतीय सभ्यता को श्रेष्ठ बताने वाली फिल्म 'पूरब और पश्चिम', ध्वनि और वातावरण प्रदूषण और पानी की समस्या पर फिल्म 'शोर', महंगाई और जमाखोरी जैसी ज्वलंत समस्या पर 'रोटी कपड़ा और मकान' और १९वी शताब्दी के स्वतंत्रता सेनानियों पर फिल्म 'क्रांति' बनाई।  इन सभी देशभक्ति पूर्ण फिल्मों को दर्शकों ने खूब पसंद किया।

कुछ अन्य देशभक्ति फ़िल्में- उपरोक्त फिल्मों के अलावा कुछ अन्य फ़िल्में भी हैं, जो अपने कथ्य के कारण देशभक्ति फ़िल्में मानी जाती हैं।  इनमे आमिर खान  की फिल्म 'रंग दे बसंती', अनिल कपूर और मनीषा कोइराला की १९४२: अ लव स्टोरी, आमिर खान की ही फिल्म लगान, सनी देओल की फिल्म 'ग़दर एक प्रेम कथा', 'इंडियन' और 'माँ तुझे सलाम',  शाहरुख़ खान की फिल्म स्वदेश, चक दे इंडिया और फिर भी दिल है हिंदुस्तानी,  ह्रितिक रोशन की फिल्म लक्ष्य आदि भी देशभक्ति फिल्मों में शुमार की जा सकती हैं।

राजेंद्र कांडपाल



Friday, 14 August 2015

इन 'ब्रदर्स' के बीच प्यार और नफरत का रिश्ता है !

निर्माता करण जौहर की करण मल्होत्रा निर्देशित फिल्म 'ब्रदर्स' २०११ में रिलीज़ हॉलीवुड की फिल्म 'वारियर' का हिंदी रीमेक है।  फिल्म को हिंदी में एकता पाठक मल्होत्रा ने ढाला है।  सिद्धार्थ और गरिमा ने संवाद लिखे हैं। पूरी फिल्म 'वारियर' के साँचे में ढली है।  'ब्रदर्स'  अच्छी  फिल्म  देखने वालों के लिए हैं।  क्रांतिकारी और बिलकुल अलग समीक्षा लिखने के शौक़ीन समीक्षक इस फिल्म को नकारेंगे।  लेकिन, इस फिल्म मे जहाँ एक्शन है, वहीँ ज़बरदस्त इमोशन है।  रिंग पर जहाँ निर्मम हिंसा हैं (स्ट्रीट फइटरों के रिंग में ककड़िया तो चटकेंगी नहीं), वहीँ उसी समय भावनाए और संवेदनाएं भी हैं। करण जौहर, करण मल्होत्रा और उनकी टीम ने एक बेहद संतुलित फिल्म तैयार की है। बर्बाद परिवार खील खील होकर बिखरते हैं, लेकिन मिलते भी है ऐसे ही किन्ही नाज़ुक क्षणों में। अक्षय कुमार ने कमाल का अभिनय किया है। उनसे इतने उम्दा अभिनय की उम्मीद नहीं की जाती थी। सिद्धार्थ मल्होत्रा थोडा कमज़ोर लगे।  जैक्विलिन फ़र्नान्डिस ने अपनी अभिनय प्रतिभा दिखाई है।  जैकी श्रॉफ अपनी भूमिका में फबे हैं। शेफाली शाह की भूमिका छोटी मगर मज़बूत है। करीना कपूर ने आइटम मेरा नाम मैरी है में कामुकता का प्रदर्शन किया है।  वह करण मल्होत्रा की फिल्म 'अग्निपथ' में अपनी होने वाली भाभी के डांस 'चिकनी चमेली' से होड़ लेती लगी। करण जौहर ने रिंग के दृश्य परफेक्ट बनवाए हैं। ऐसा लगता है जैसे दर्शक रियल रिंग देख रहे हैं। हेमंत चतुर्वेदी की फोटोग्राफी जानदार है।  स्टेडियम को बखूबी उभरा गया है। अजय- अतुल का संगीत ठीक ठाक है। फिल्म के मूड को उभरता है। अकिव अली की एडिटिंग धारदार है। फिल्म १५६ मिनट लम्बी है।  इस फिल्म से हॉलीवुड के एक और स्टूडियो लायंस गेट का बॉलीवुड से को- प्रोडक्शन शुरू हो रहा है।
फिल्म को सुपर हिट होने से कोई नहीं रोक सकता।

शोले के चालीस साल !

चालीस साल पहले, १५ अगस्त १९७५ को अमिताभ बच्चन, धर्मेन्द्र, हेमा मालिनी, जया बच्चन, अमजद खान और संजीव कुमार की एक्शन फिल्म ‘शोले’ रिलीज़ हुई थी।  रमेश सिप्पी निर्देशित शोले को रिलीज़ के पहले दिन ही समीक्षकों द्वारा नकार दिया गया था।  फिल्म की बॉक्स ऑफिस पर शुरुआत भी ख़ास नहीं रही थी।  लेकिन, फिल्म के हैरत अंगेज़ एक्शन, ड्रामा और कॉमेडी ने  दर्शकों को आकर्षित  करना शुरू कर दिया।  फिल्म ने रफ़्तार पकड़नी शुरू कर दी।  फिल्म आल टाइम ब्लॉकबस्टर साबित हुई।  इस  फिल्म ने ६० थिएटर्स में लगातार पचास हफ्ते चलने का कीर्तिमान बनाया।  यह पहली ऎसी फिल्म बनी, जिसने १०० सिनेमाघरों में रजत जयन्ती मनाई।  ऐसी कल्ट फिल्म के चालीस साल होने पर यूनिवर्सल म्यूजिक ने इस फिल्म का स्पेशल एनिवर्सरी कलेक्शन निकाला है।  इस कलेक्शन में शोले के दिलचस्प हंसाने वाले कॉमिक संवाद और संगीत शामिल हैं।  शोले के साउंडट्रैक को उस समय बहुत सूना गया था। इस फिल्म के राहुल देव बर्मन द्वारा तैयार धुनों पर किशोर कुमार, मन्ना डे, लता मंगेशकर और आरडी बर्मन के गाये ये दोस्ती हम नहीं तोड़ेंगे, जब तक है जान, कोई हसीना जब रूठ जाती है और मेहबूबा मेहबूबा गीत बेहद लोकप्रिय हुए थे।   “शोले: द ४० एनिवर्सरी कलेक्शन” में फिल्म के डायलॉग्स और गीतों का दो घंटे का कलेक्शन ख़ास है।  इस कलेक्शन को वर्ल्डवाइड डिजिटल रिलीज़ किया गया है।  

इंडियन आइडल जूनियर के सेट पर स्वतंत्रता दिवस (फोटोज)

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वेलकम बैक की शूटिंग के दौरान जॉन के सर पर लगी चोट.

अभिनेता जॉन अब्राहम अपनी आगामी फिल्म वेलकम बैक को लेकर काफी उत्साहित हैं , जहा एक तरफ जॉन ने कहा था की लोगो को हसाना सबसे  कठिन काम है तो वही दूसरी तरफ उनके लिए   वेलकम बैक की शूटिंग का सफर इतना भी आसान नहीं था.
जॉन फिल्म में एक एक्शन सीक्वेंस शूट  कर रहे थे की उनके सर पर चोट लग गयी, दरअसल बात यह  है की  स्क्रिप्ट के अनुसार आर्टिस्ट को जॉन के कंधे पर वार करना था लेकिन  कंधे पर मरने की बजाय उनके सर पर ज़ोर से प्रहार कर दिया,हलाकि कोई बड़ी चोट नहीं लगी थी पर जॉन के  सर में काफी दर्द होने के कारण  डॉक्टर को सेट  पर  बुलाना पड़ा . 
सूत्रों का कहना है की "शूट खत्म करने के बाद जॉन अपने पर्सनल डॉक्टर के पास जाँच करवाने  पहुंचे की उनके सर पर कोई अंधूरिनि घाव तो नहीं लगा है,  फिल्म के डायरेक्टर अनीस बज़्मी ने भी इस खबर की पुष्टि की 

चापेकर ब्रदर्स के बाल गंगाधर तिलक गोविन्द नामदेव

शीघ्र प्रदर्शित होने जा रही फिल्म चापेकर ब्रदर्स में हिंदी फिल्मों के मशहूर विलेन गोविन्द नामदेव महान स्वतंत्रता सेनानी बाल गंगाधर तिलक की भूमिका कर रहे हैं।  इस भूमिका को पहले अभिनेता ओम पूरी करने वाले थे।  लेकिन, ओम पूरी अपनी पूर्व फिल्मों में इतना व्यस्त थे कि बाल गंगाधर तिलक के लिए समय नहीं निकाल सके।  इस पर ओम पूरी की जगह गोविन्द नामदेव को लेने का निर्णय लिया गया।  अनायास मिली  इस महत्वपूर्ण भूमिका से गोविन्द नामदेव बेहद उत्साहित हैं।  हालाँकि, यह गोविन्द नामदेव का स्पेशल अपीयरेंस होगा, लेकिन गोविन्द नामदेव कहते हैं, “फिल्म की टीम ने चापेकर भाइयों पर पूरी तयारी और रिसर्च कर रखी है।  मैं टीम के समर्पण से बेहद प्रभावित हुआ हूँ।  मैं महान सेनानी बाल गंगाधर तिलक की भूमिका के प्रति आश्वस्त हूँ।” इस फिल्म चापेकर बंधुओ की भूमिका अभिजीत भगत, संझिट धुन और मनोज भट्ट ने की है।  इस साल के आखिर में रिलीज़ होने जा रही चपका ब्रदर्स का निर्देशन देवेंदर पाण्डेय ने किया है।  

जैकी श्रॉफ की मराठी फिल्म

इस शुक्रवार जैकी श्रॉफ करण मल्होत्रा की हिंदी फिल्म ‘ब्रदर्स’ से धूम मचा रहे हैं।  अगले सप्ताह जैकी दादा की एक मराठी फिल्म ‘३.५६ किल्लारी’ रिलीज़ होगी।  इस फिल्म में जैकी श्रॉफ मराठी फिल्मों की बोल्ड एंड ब्यूटीफुल अभिनेत्री सई ताम्हणकर के साथ पहली बार स्क्रीन शेयर करेंगे।  निर्माता गिरीश साठे की इस फिल्म का निर्देशन दीपक भागवत और विजय मिश्रा ने किया है।  यह फिल्म लातूर के किल्लारी गाँव में आये भूकम्प की पृष्ठभूमि पर है।  इस भूकम्प में कई लोगों की जाने गई थी।  यह कहानी ऎसी लड़की की है, जो भूकम्प में मारी गई थी।  उसका नज़दीक के ही एक गाँव में पुनर्जन्म होता है।  चौदह साल की यह लड़की साइ और जैकी के साथ अपनी पूर्व जन्म की पहचान पता लगाने निकल पड़ती है।  इस भूमिका को गौरी इंगवले ने किया है।  यह फिल्म २१  अगस्त को रिलीज़ होनी है।

चालीस कमेडिअन्स के साथ नवीन प्रभाकर का नेशनल एंथम

मशहूर स्टैंड अप कॉमेडियन नवीन प्रभाकर हमेशा कुछ अलग सा करते रहते हैं।  उन्होंने स्टैंड अप कॉमेडी शो में पहचान कौन के जुमले से अपनी पहचान बनाई।  नविन ने बॉम्बे टू गोवा, भावनाओं को समझो, नो प्रॉब्लम, तेरे नाल लव हो गया, आदि हिंदी फिल्मों में भिन्न भूमिकाएं की।  अब वह एक बार फिर एक नए कांसेप्ट के साथ दर्शकों के सामने हैं।  नवीन प्रभाकर ने भारतीय स्वतंत्रता की ६८ वी वर्षगांठ पर राष्ट्र गान को अनोखे अंदाज़ में  पेश किया है।  इस एंथम में राजू श्रीवास्तव, जोहनी लीवर, सुनील पाल, सुदेश लाहिरी, सुगंधा मिश्रा, भारती सिंह सहित चालीस कमेडिअन्स  ने हिस्सा लिया है।  यह एंथम स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या से चैनल्स और सिनेमाघरों में दिखाया जाने लगा है।