Tuesday 21 May 2013

हे ईश्वर! क्या इस फ्राइडे बॉक्स ऑफिस पर कत्ले आम होने जा रहा है?


इस शुक्रवार तीन हिन्दी फिल्मों की रिलीज की सूचना है। हम हैं रही कार के अभिनेता देव गोयल की debut फिल्म है। फिल्म में उनकी नायिका अदा शर्मा है। अदा शर्मा को दर्शक पाँच साल पहले विक्रम भट्ट की फिल्म 1920 में देख चुके हैं। उनकी दूसरी फिल्म फिर 2011 में रिलीज हुई थी। हम हैं राही कार के में जुही चावला, अनुपम खेर, चंकी पांडे, रति अग्निहोत्री और विवेक वासवानी अन्य भूमिकाओं में हैं। इस फिल्म का निर्देशन ज्योतिन गोयल कर रहे हैं। ज्योतिन इनाम दस हज़ार, जहरीले और safari जैसी बड़ी फिल्में डाइरैक्ट कर चुके हैं। वह देव के पिता हैं। खुद ज्योतिन मशहूर निर्माता निर्देशक देवेंद्र गोयल के बेटे हैं। देवेंद्र गोयल ने आस, अलबेली, नरसी भगत,  चिराग कहाँ रोशनी कहाँ, रज़िया सुल्ताना, प्यार का सागर, दूर की आवाज़, दस लाख, एक फूल दो माली, धड़कन, एक महल हो सपनों का, आदमी सड़क का, आदि जैसी 16 बड़ी हिट फिल्में बनाई हैं। हम राही कार के से ज्योतिन को अपने बेटे को सफल बनाना ही है, खुद को भी सफल निर्देशक साबित करना हैं, क्योंकि, उनकी पिछली रिलीज फिल्में बॉक्स ऑफिस पर खास नहीं कर सकी थीं। इस रोड मूवी में दो दोस्तों की Mumbai से पुणे की कार यात्रा की है, जो उनकी कुछ घंटे की यात्रा को रात भर की भयावनी यात्रा बना देती है।
इत्तिफाक़ की बात ही है कि इस हफ्ते की दूसरी रिलीज होने जा रही फिल्म इश्क्क़ इन पेरिस भी एक रात की कहानी है, जो दो अजनबियों बीच रोमांटिक घटनाओं को जन्म देती है। यह निर्देशक प्रेम सोनी की मैं और मिसेज खन्ना के बाद दूसरी फिल्म है। इस फिल्म में प्रीति जिंटा पूरे पाँच साल बाद मुख्य भूमिका में नज़र आएंगी। इस फिल्म में वह इश्क्क़ की भूमिका कर रही हैं। उनके हीरो गौरव चानना हैं, जिन्होने अपना नाम बदल कर (!) रेहान मालिक रखा है। इस फिल्म में सलमान खान और शेखर कपूर खास भूमिका में हैं।
इस हफ्ते की तीसरी हिन्दी फिल्म ज़िंदगी फिफ्टी फिफ्टी है। राजीव एस रूईया निर्देशित इस फिल्म में वीणा मालिक मुख्य भूमिका में हैं। इस फिल्म के लिए वीणा मालिक ने अंग प्रदर्शन की हर सीमा को लांघ जाने की भरसक कोशिश की है। फिल्म में रिया सेन, राजन वर्मा, आर्य बब्बर, राजपाल यादव, मुरली शर्मा, अतुल परचूरे महत्वपूर्ण भूमिकाओं में हैं। एक सेक्स वर्कर की इस फिल्म में सभी फ़ीमेल कैरक्टर ने जम  कर अंग प्रदर्शन किया है और मेल को-स्टार्स के साथ कामुक सीन किए हैं। कुछ वितरकों का दावा है कि यह फिल्म पहले ही सुपर हिट हो चुकी है।

साफ तौर पर दो दोस्तों और प्रेमियों के बीच तथा एक वेश्या की गरम रातों की तीन फिल्में इस हफ्ते रिलीज हो रही हैं।इसमे प्रीति जिंटा की फिल्म इश्क्क़ इन पेरिस के बाज़ी मारने की पूरी संभावना है। लेकिन, इससे ज़्यादा संभावना बॉक्स ऑफिस पर भीषण कत्लेआम की है। विन डीजल, पॉल वॉकर, द्वयने Johnson, Jason स्टाथाम, मिशेल रोड्रिगुएज, जोरड़ाना Brewster, ल्यूक एवान्स, एलसा पटकी, गिना कारनों और त्यरेसे Gibson बेहद खतरनाक हैं। यह किसी का भी कत्ल करने से नहीं हिचकने वाले। बेशक वह यह कत्लेआम और हिंसा पर्दे पर करते हैं, लेकिन उनकी पर्दे की यह हिंसा हम हैं रही कार के, इश्क्क़ इन पेरिस और ज़िंदगी 50 50 पर भारी पड़ सकती है। Hollywood के इन कलाकारों की फिल्म फास्ट अँड फुरीऔस 6 इंडियन बॉक्स ऑफिस को झिंझोड़ने का काम कर सकती है। ऐसी दशा में बॉक्स ऑफिस पर चाँदी तो बरसेगी, मगर इन हिन्दी फिल्मों का कत्लेआम भी होगा, इसमें कोई शक नहीं।
पूरी दुनिया में सबसे ज़्यादा सफल इस फास्ट अँड फुरीऔस सीरीज की छठी फिल्म की कहानी 2011 में रिलीज इस सीरीज की पाँचवी फिल्म में सात डकैतों द्वारा डाली गयी डकैती के बाद से शुरू होएगी। डोमिनिक टोरेट्टों यानि विन डीजल से America की डिप्लोमटिक सेक्युर्टी सर्विस का एजेंट ल्यूक इस गिरोह का क्रिमिनल रेकॉर्ड साफ कर देनी की शर्त पर भाड़े के हत्यारों का खात्मा करने के लिए कहता  है। फास्ट अँड फुरीऔस सीरीज की पांचों फिल्मे बेहद सफल रही हैं। इन फिल्मों ने वर्ल्ड वाइड 1591 मिलियन  डॉलर से अधिक की कमाई की थी। इन फिल्मों के निर्माण में 409 मिलियन डॉलर खर्च हुए थे। इस लिहाज से तीनों हिन्दी फिल्में फास्ट अँड फुरीऔस 6 के सामने कहीं नहीं टिकती। दर्शक अभिनेता विन डीजल, ल्यूक एवान्स, द्वयने जोहनसन को अच्छी तरह से पहचानते हैं। सड़क पर खतरनाक तरीके से भागती बड़ी गाड़ियां हिन्दी दर्शकों को रोमांचित   करती हैं। ज़ाहिर है कि रोमांच के सौदागर हिन्दी दर्शक  38 साल की प्रीती जिंटा के रोमैन्स को देखना क्यों चाहेंगे? वीणा मालिक अब इतनी एक्सपोज  हो चुकी हैं कि उनका एक्सपोजर हिन्दी दर्शकों को सिनेमाघरों तक नहीं ला सकता। ऐसे में नए चेहरों की क्या बिसात। ज़ाहिर है कि बॉक्स ऑफिस पर हॉलीवुड की इकलौती फिल्म तीन तीन Bollywood फिल्मों का कत्लेआम करने जा रही है। ईश्वर इन फिल्मों की आत्माओं को शांति दे।



जिसे मजबूत कंधे नहीं मिलते वह 'औरंगजेब' हो जाता है

अतुल सभरवाल की फिल्म औरंगजेब का औरंगजेब ने अपने पिता भाई से दगा नहीं की, लेकिन दर्शक उससे दगा कर गए । इतनी उलझी हुई कहानी दर्शकों ने सिरे से खारिज कर दी। अभिनेता अर्जुन कपूर में दोहरी भूमिका के  अनुकूल अभिनय प्रतिभा नहीं। वह अपने दो किरदार अलग नहीं रख सके। अभिनय के मामले में पृथ्वीराज सुकुमार सब पर भरी पड़े। लेकिन, उनकी साख दक्षिण में ज़्यादा है। ऋषि कपूर ने प्रभावित किया, लेकिन उनका किरदार किसी फिल्म को हिट नहीं बना सकता। सलमा आगा की बेटी साशा आगा में इतनी सेक्स अपील नहीं कि वह बिकनी पहने और दर्शक पानी में आग की तरह जलने लगे। नतीजे के तौर पर यशराज बैनर की यह फिल्म ज़बरदस्त प्रचार के बावजूद दर्शकों को सिनेमाघर तक नहीं ला सकी। इस फिल्म की ओपेनिंग 3.90 करोड़ की हुई। शनिवार भी कुछ खास नहीं रहा। फिल्म को मिले 3.91 करोड़ दिलाने वाले दर्शक ही। सनडे का होलिडे भी केवल 4.50 करोड़ के दर्शक ही दिला पाया। यानि 12 करोड़ से थोड़ा ज़्यादा का खराब बिज़नस। इससे ज़्यादा बिज़नस तो Hollywood की एनिमेशन फिल्म एपीक ने किया। साबित हो गया कि कमजोर कंधों को दूसरे कंधों की ज़रूरत होती है। अन्यथा, वह बॉक्स ऑफिस पर 'औरंगजेब' हो जाता है।


Friday 17 May 2013

दर्शक इसे औरंगजेब नहीं समझें !

औरंगजेब ! छठा  मुगल शासक, जो अपने पिता और भाइयों को क़ैद कर और मार कर दिल्ली की गद्दी पर काबिज हो गया था। यशराज फिल्म्स के बैनर तले बनी, अतुल सभरवाल निर्देशित फिल्म औरंगजेब का शीर्षक, फिल्म के मुख्य कैरक्टर के औरंगजेब की तरह होने के कारण औरंगजेब रखा गया है। फिल्म में हमशक्ल भाई हैं, पिता है, माँ है, बड़ा बिज़नस है। पर औरगजेब जैसा कोई किरदार नहीं। यहाँ तक कि मुख्य किरदार अजय और  विशाल में से भी कोई औरंगजेब नहीं।
औरंगजेब की कहानी यशोवर्द्धन की है, जिसका गुड़गांव में रेयल्टी का साम्राज्य है। वह सभी गलत धंधे करता है। उसका एक पुत्र है, जो बिगड़ा शहजादा है। इस कैरक्टर को देख कर लगता है कि वह औरंजेब होगा। पर यह औरंगजेब नहीं। पिता के मरने से पहले एसीपी आर्य को मालूम पड़ता है कि उसके पिता की एक अन्य पत्नी और पुत्र है, जो नैनीताल में रहते हैं। पिता मरने से पहले दोनों का जिम्मा आर्य को सौंप जाता है। आर्य पैसे देने नैनीताल जाता है तो अपने सौतेले भाई को देख कर उसका हाथ यक ब यक अपनी रिवॉल्वर पर चला जाता है। क्योंकि, विशाल की शक्ल हू ब हू यशोवर्द्धन के बेटे अजय से मिलती है। वह यह बात अपने चाचा और डीसीपी रवीकान्त को बताता है। रवीकान्त, यशोवर्द्धन का साम्राज्य खत्म करने के लिए अजय की जगह विशाल को प्लांट कर देता है। रवीकान्त और उसका पूरा परिवार भ्रष्ट है। उनके लिए पैसा ही सबकुछ है।
अतुल सबबरवाल की इस कहानी में लगातार उतार चढ़ाव, ट्विस्ट अँड टर्न हैं। लेकिन, इन सब का फिल्म के शीर्षक से कोई लेना देना नहीं। इतने ट्विस्ट अँड टर्न के बावजूद फिल्म प्रभाव नहीं छोड़ती तो इसका दोष अतुल की स्क्रिप्ट को जाता है। पहली बात तो यह है कि उनकी कहानी ही बेसिर पैर की है। अजय की जगह विशाल को बड़ी आसानी से प्लांट कर दिया जाता है। उतना बड़ा साम्राज्य चलाने वाले यशोवर्द्धन को इसका तनिक पता नहीं चलता। उसकी, चतुर चालाक रखेल अमृता सिंह भी इसे नहीं भाँप पाती।  यह कहानी की सबसे बड़ी कमजोरी है। इसके बाद अतुल की स्क्रिप्ट भी काफी ढीली ढाली है। कभी लगता है कि अतुल की पकड़ बन रही है, अचानक ही वह उसे ढीला कर देते हैं। कहानी इधर से उधर बेलगाम भागती रहती है। किसी को नहीं मालूम कि क्या हो रहा है। अगर फिल्म की कहानी यशोवर्द्धन के साम्राज्य को खत्म करने के लिए विशाल को अजय की जगह प्लांट करने तक सीमित रखा जाता तो बात बन भी सकती थी। पर इसमे बिल्डर, माफिया और राजनीतिक नेक्सस भी है। डीसीपी रवीकान्त की रेयल्टी का बादशाह बनने की महत्वाकांक्षा भी है। फिल्म के इतने ज़्यादा औरंगजेब फिल्म की कहानी कहानी को बेदम कर देते हैं। असली औरंगजेब राम बन जाता है।
फिल्म में ऋषि कपूर ने अग्निपथ के बाद एक बार फिर खल भूमिका की है। वह प्रभावी हैं। जैकी श्रोफ़्फ़ ठीक ठाक हैं। उनकी बिज़नस पार्टनर अमृता सिंह भी प्रभावित करती हैं। आर्य की पत्नी के रोल में स्वरा भास्कर ध्यान आकर्षित करती हैं। साशा आग़ा अपने मोटे और बेडौल जिस्म का प्रदर्शन कर स्वीमिंग पूल और रूपहले पर्दे पर आग तो नहीं लगा पातीं। लेकिन अपनी माँ सलमा आग़ा का नाम डुबोने में ज़रूर कामयाब होती हैं। उनका हिन्दी फिल्मों में कोई भविष्य हैं, नहीं लगता। दीप्ति नवल ने फिल्म में अपनी भूमिका क्यों स्वीकार की, वही बता सकती हैं। क्योंकि, इसमे उनके करने के लिए कुछ भी नहीं था। तन्वी आज़मी तो अपेक्षाकृत लंबी भूमिका के बावजूद प्रभावित नहीं कर पातीं। अन्य कलाकार खास उल्लेखनीय नहीं।
फिल्म में अर्जुन कपूर की दोहरी भूमिका है। ऐसी भूमिकाओं को निर्देशकीय कल्पनाशीलता के अलावा अभिनेता या अभिनेत्री की अभिनय क्षमता की भी दरकार  होती हैं। अतुल सभरवाल, अजय और विशाल के किरदारों को भिन्नता दे पाने में नाकामयाब रहे हैं। दर्शक कन्फ्युज हो जाता है कि कौन अजय है और कौन विशाल है । रही अर्जुन कपूर की बात तो वह कहीं कहीं ही प्रभावित करते हैं। उनके नाज़ुक कंधे दोहरी भूमिकाओं का बोझ सहन नहीं कर पाते। उनको इन दोनों चरित्रों को मैनरिज़म की भिन्नता देनी चाहिए थी। हाव भाव और आवाज़ से इसे डिफ़्रेंट रखना चाहिए था। पर वह ऐसा नहीं कर पाते।
फिल्म का मुख्य आकर्षण बन कर उभरते हैं दक्षिण के सितारे पृथ्वीराज सुकुमार। आर्य की भूमिका में वह सब पर भारी हैं। उनका रोल काफी कठिन और जटिल था। वह भ्रष्ट परिवार के हट कर सदस्य हैं। सुकुमार ने अपने संयत अभिनय से अपनी भूमिका को प्रभावशाली और सब पर भारी बनाया है। पृथ्वीराज को हिन्दी दर्शकों ने, रानी मुखर्जी की मुख्य भूमिका वाली फिल्म अईया में देखा था। वह इस फिल्म से आगे बढ़े लगते हैं। हिन्दी संवाद भी उन्होने अच्छी तरह से बोले हैं। वह हिन्दी फिल्मों में अपना कोई मुकाम बना सकते हैं, बशर्ते कि अपनी भूमिका के साथ कोई समझौता न करें।
फिल्म की सबसे बड़ी कमी अनावश्यक ट्विस्ट अँड टर्न तो हैं ही, फिल्म में मसालों की भी काफी कमी है। इतनी घुमावदार कहानी को मनोरंजन की दरकार होती है। फिल्म की स्क्रिप्ट में इस ओर ध्यान नहीं दिया गया। साशा आग़ा में इतना दम नहीं नज़र आया कि दर्शक उनके दम पर सिनेमाघर में डटा रहे। नीरज वोरलिया को फिल्म को चुस्त और रफ्तारदार बनाने के लिए अपनी कैंची का दमदार प्रदर्शन करना चाहिए था। पर वह ऐसा नहीं कर पाये। फिल्म की लंबाई उबाती है। इस फिल्म को 90 मिनट तक सीमित किया जा सकता था।
फिल्म के एक्शन में शाम कौशल का कौशल नज़र नहीं आया। एन कार्तिक गणेश का कैमरा फिल्म के चरित्रों का परिचय कराता चलता है। रेमो डीसूजा का नृत्य निर्देशन पहली बार अप्रभावी रहा। विपिन मिश्रा का पार्श्व संगीत फिल्म का टेम्पो बनने में मदद करता है।
अंत में बात, अतुल सभरवाल की। औरंगजेब उनकी पहली फिल्म है। उन्हे बड़ा बैनर, बड़े सितारे और बड़ा कनवास मिला है। यह उनके लिए अपनी प्रतिभा प्रदर्शन का बढ़िया मौका था। फिल्म की कहानी, पटकथा, संवाद, आदि अतुल के ही हैं। वह इनके जरिये फिल्म को तेज़ रफ्तार और ग्रिपिंग बना सकते थे। पर वह नाकामयाब रहते हैं। उन्होने ढेरो ट्विस्ट अँड टर्न को ही दर्शकों पर पकड़ के लिए पर्याप्त समझ लिया था। बतौर निर्देशक वह अपने लेखक की मदद नहीं कर पाते। उन्हे इस कहानी को अपनी दृष्टि देनी चाहिए थीं .हालांकि, पहले सीन में, जब आर्य विशाल को देखता है तो वह चौंक कर अपना हाथ रिवॉल्वर की ओर ले जाता हैं। ऐसा लगता है कि हमशकलों के रहस्य वाली कोई अलग तरह की कहानी देखने को मिलेगी। लेकिन कहानी के आगे बढ़ने के साथ ही, सब बहुत साधारण हो जाता है। अतुल कुछेक दृश्यों में ही प्रभावित कर पाते हैं। मसलन, ऋषि कपूर का अपने दामाद को कत्ल करने का दृश्य।
कुल मिलकर कहा जा सकता है कि अगर आप फिल्म को देखना चाहते हैं तो इसे न तो औरंगजेब के लिए देखने जाएँ, न ही बिछुड़े हुए भाइयों की कहानी की तरह। इसे एक साधारण अपराध कथा की तरह देखा जा सकता है, जो कम से कम बोर तो नहीं करती!






Wednesday 15 May 2013

'इश्कजादे' अर्जुन कपूर को चाहिए हिट 'औरंगजेब'

इस शुक्रवार निर्देशक अतुल सब्बर्वाल की फिल्म औरंगजेब रिलीज हो रही है। इस फिल्म में अर्जुन कपूर, साशा आग़ा, जैकी श्रोफ, ऋषि कपूर, सिकंदर खेर और स्वरा भास्कर की मुख्य भूमिका है। दक्षिण के सितारे पृथ्वीराज सुकुमार महत्वपूर्ण भूमिका में है। दीप्ति नवल और तन्वी आज़मी भी दर्शकों को लंबे समय बाद किसी मुख्य धारा की फिल्म में नज़र आएंगी।
फिल्म के नायक अर्जुन कपूर ने पिछले साल ही यश राज बैनर की ही फिल्म इशकजादे से हिन्दी फिल्मों में प्रवेश किया था। निर्देशक हबीब फैसल की 12 करोड़ लागत में बनी इशकजादे ने 64 करोड़ कमाए थे। अर्जुन कपूर के अभिनय की भी प्रशंसा हुई थी। औरंगजेब में दोहरी भूमिका के जरिये दर्शकों पर उनके प्रभाव की एक बार फिर परीक्षा होनी है। फिल्म के प्रोमोस में अर्जुन प्रभावशाली लग रहे हैं। उनके साथ पाकिस्तानी गायिका   और Bollywood में निकाह के द्वारा प्रवेश करने वाली असफल अभिनेत्री सलमा आग़ा की बेटी साशा आग़ा फिल्म की नायिका हैं। उन्होने फिल्म का एक गीत भी गाया है और सेक्स अपील का भी भरपूर प्रदर्शन किया है। फिल्म के अभी जारी प्रोमो में वह अर्जुन कपूर के साथ अर्द्ध नग्न हो गरमागरम चुंबन आलिंगन कर रही हैं। अब देखने वाली बात यह होगी कि उनकी यह सेक्स अपील हिन्दी दर्शकों को कितना लुभा पाती है।

जहां तक कहानी की बात है, यह दिलचस्प है। अर्जुन कपूर एक अपराधी है। वह अपने अपराध करने के बाद कोई सुराग नहीं छोड़ता। इसलिए पुलिस के लोग उसके हमशक्ल को उसकी जगह प्लांट कराते हैं, ताकि अपराध को खत्म कर सकें। इस कहानी को सुनते समय साठ के दशक में रिलीज शम्मी कपूर की दोहरी भूमिका वाली फिल्म चाइना टाउन, Amitabh बच्चन और शाहरुख खान की डॉन फिल्में और शत्रुघ्न सिन्हा की फिल्म कालीचरण की याद आ सकती है। यह फिल्मे Hollywood की फिल्म द प्रिजनर ऑफ जेंडा का रीमेक फिल्में कही जाती थीं। इस लिहाज से औरंगजेब कर अर्जुन कपूर भी प्रिजनर ऑफ जेंडा साबित होता है। यहाँ
खास बात यह है यह तमाम हिन्दी रीमेक फिल्में बॉक्स ऑफिस पर सफल साबित हुई थीं। इसलिए यह कहा जा सकता है कि अर्जुन कपूर दूसरी हिट फिल्म देने जा रहे हैं।


माधुरी दीक्षित का 'घाघरा'

अयान मुखर्जी निर्देशित फिल्म यह जवानी है दीवानी में आइटम टाइप के गीतों की भरमार जैसी लगती है। इस फिल्म में रणबीर कपूर की नायिका दीपिका पादुकोने हैं। इस जोड़ी को दर्शकों ने पहली बार 2008 में फिल्म  बचना ऐ हसीनों में देखा था। इस फिल्म में इकलौते हीरो रणबीर की तीन नायिकाएँ दीपिका पादुकोने के अलावा मिनिषा लांबा और बिपाशा बसु भी थीं। फिल्म बॉक्स ऑफिस पर हिट साबित हुई थी। इस लिहाज से पाँच साल बाद दोनों एक साथ आ रहे हैं तथा यह जवानी हैं दीवानी रणबीर-दीपिका जोड़ी की दूसरी फिल्म है। रणबीर कपूर डाइरेक्टर अयान मुखर्जी के साथ दूसरी बार फिल्म कर रहे हैं। रोमैन्स फिल्म यह जवानी है दीवानी की कहानी एक ऐसे लड़के की है, जो बेफिक्र है, लाइफ को एंजॉय करना चाहता है। यंग आडियन्स को टार्गेट करने वाली इस फिल्म के तमाम गीत झूमाने वाले हैं। बदतमीज़ दिल, बलम पिचकारी और दिलवाली गर्लफ्रेंड के घाघरा गीत तो खालिस आइटम सॉन्ग है। इस गीत को माधुरी दीक्षित के साथ रणबीर कपूर पर पिक्चराइज़ किया गया है। रणबीर बचपन से माधुरी के प्रशंसक रहे हैं। इसलिए उन्हे माधुरी के साथ इस
आइटम को करने में मज़ा आया। रणबीर की दीवानगी का अंदाज़ा निर्देशक अयान मुखर्जी को भी था, इसलिए उन्होने रणबीर को माधुरी के गाल में चुंबन लेने की विशेष अनुमति भी दी। माधुरी दीक्षित आज 46 साल की हो गयी हैं। रणबीर कपूर उनसे 16 साल छोटे हैं। उम्र के इतने लंबे फासले के बावजूद रणबीर की घाघरा गीत में माधुरी के प्रति दीवानगी साफ नज़र आती थी। इसीलिए उन्होने मज़ाक में कहा भी, ''जब माधुरी दीक्षित की शादी हुई तो मेरा दिल टूट गया था.'' कभी करोड़ों युवा दिलों की धकधक माधुरी दीक्षित आज भी उतनी ही सेक्सी और आकर्षक हैं। इसलिए रणबीर अगर माधुरी दीक्षित के घाघरा पर मर मिटे हों तो कैसा संदेह!  

Tuesday 14 May 2013

नहीं रहा ग्लैमर को गुलज़ार करने वाला 'माली'

मशहूर फिल्म फोटो ग्राफर जगदीश माली नहीं रहे। Mumbai के एक हॉस्पिटल में उनका निधन हो गया।
जगदीश माली को स्टार फॉटोग्राफर कहा जाता था। उनके कैमरा का लोहा गौतम राजध्यक्ष, अशोक सालियान, राकेश श्रेष्ठ और जायेश शेठ जैसे फॉटोग्राफर भी मानते थे। क्योंकि, जगदीश का कैमरा पूरी फिल्म की भाषा बोल देता था। वह बहुत मूडी थे। जब तक मूड में नहीं आते, उनका  कैमरा क्लिक नहीं करता। उन्होने, जिन फिल्म हस्तियों के फोटो क्लिक करे वह मशहूर तो थे ही कैरियर के टॉप पर भी पहुँच गए। रेखा, Amitabh बच्चन, शाहरुख खान और एमरान हाशमी को माली ने अपनी दृष्टि से देखा, कैमरा से क्लिक किया और फोटो छपते ही यह मशहूर हो गए। गुलाम फिल्म का श्वेत श्याम पोस्टर जगदीश माली की प्रतिभा का परिचय देने वाला है। इस पोस्टर में आमिर खान घूंसा ताने हुए है और उनके हाथ की उँगलियाँ अंगूठी से भरी नज़र आती है। यह पोस्टर गुलाम में बॉक्सिंग करने वाले और हाथों की अंगूठियों से पहचान बनाने वाले आमिर खान की भूमिका और फिल्म की कहानी कह देता था। कैमरा के ऐसी भाषा जगदीश का कैमरा ही बोल सकता था।
जगदीश माली, अपने मोडेल को केवल मोडेल की तरह नहीं देखता था। वह उसे सामान्य अभिनेता या अभिनेत्री की तरह देखता था। वह ऐसा कोई भी पोज क्लिक कर सकते थे, जो उन्हे प्रेरित करता हो। जगदीश माली को सबसे ज़्यादा शोहरत रेखा के उस फोटो से मिली जिसमे सेमी नूड रेखा बांद्रा की सड़कों पर बदहवास भागती दिखाया गया था। यह फोटो रेखा पर एक गोस्सिप के साथ प्रकाशित हुआ था। इस फोटो ने और प्रकाशित लेख ने फिल्म उद्योग में हलचल पैदा कर दी थी। रेखा की b की तमाम जीवंत फोटो जगदीश माली के कैमरा से ही निकली थी।
जगदीश माली इस साल के शुरू में अभिनेत्री और मोडेल मींक बरार के द्वारा सड़क पर बीमार देखे जाने और अखबार में खबर आने से सुर्खियों में आए। इस खबर में जगदीश माली को बीमार और बेटी अंतरा माली द्वारा उपेक्षित करने का आरोप लगा था। मींक ने कथित रूप से सलमान खान को सूचित किया। उन्होने अपनी गाड़ी के जरिये जगदीश माली को उनके स्टूडियो अपार्टमेंट में पहुंचाया। हालांकि, बाद में जगदीश ने खुद के बीमार होने या लावारिस फिरने का खंडन किया था।
जगदीश माली की बेटी अंतरा माली ने नाच, मैं माधुरी दीक्षित बनाना चाहती हूँ आदि फिल्मों में अपना असफल कैरियर अंजाम दिया।
Bollywood ग्लैमर को गुलज़ार करने वाले जगदीश माली को श्रद्धांजलि।

Monday 13 May 2013

दर्शक गो गोवा..गिप्पी गॉन!


इसके लिए किसी ज्योतिष की ज़रूरत नहीं थी। इसीलिए, रिलीज से पहले ही यह मान लिया गया था कि बॉक्स ऑफिस पर गो गोवा गॉन से गिप्पी पिछड़ जाएगी। वही हुआ भी। गो गोवा गॉन ने पहले दिन 3.75 करोड़ का बिज़नस किया। शनिवार को फिल्म ने मार्जिनल राइज़ किया और 4.30 करोड़ कमाए। सनडे का अच्छा फायदा गो गोवा गॉन को हुआ। इस फिल्म ने 5.25 करोड़ बटोरे और फ़र्स्ट वीकेंड कलेक्शन 13.30 करोड़ का हो गया। गो गोवा गॉन Bollywood की पहली ज़ोम-कॉम यानि ज़ोमबी - कॉमेडी फिल्म है। एक काल्पनिक  चलता फिरता मुर्दा, जो तेज़ नहीं चल सकता ।  कमोबेश घिसट घिसट कर ही चल सकता है। ज़िंदा इंसान उसकी पकड़ से भाग सकता है, अगर डर उसके पैर न लड़खड़ा दे, वह भयभीत बुत सा खड़ा न रह जाए। ज़ाहिर है कि फिल्म के तमाम ज़िंदा चरित्र ज़ोमबी की पकड़ में अपने भय कारण आते थे और जान गँवाते थे। बॉक्स ऑफिस पर बिल्कुल ऐसा ही हुआ। गो गोवा गॉन की कहानी-पटकथा बिल्कुल घिसटती हुई थी। कई बार लड़खड़ाई भी । पर ज़ोमबी के भय ने, इस लड़खड़ाती फिल्म की पकड़ दर्शकों पर बनाए रखी। नतीजे के तौर पर फिल्म एक बेहतर प्रदर्शन कर पाने में सफल हुई। हालांकि, फिल्म में वह सैफ अली खान भी थे, जिनकी फिल्म रेस2 ने इसी साल सौ करोड़ क्लब में कदम रखा है। सैफ के लिहाज से फिल्म का प्रदर्शन कमजोर लगता हो, पर फिल्म की लागत के लिहाज से यह कम नहीं लगता। फिल्म के निर्देशक द्वय यह दावा कराते हैं कि गो गोवा गॉन का बजेट सैफ की फिल्म के बजेट से काफी कम है। फिल्म को जहां सैफ के होने का फायदा हुआ, वहीं तीन दोस्तों की कहानी और कुनाल खेमू की कॉमेडी का फायदा भी हुआ। गंदी गलियों और अश्लील हाव भाव ने जहां फॅमिली को फिल्म से दूर रखा, वहीं चवन्नी छाप दर्शकों और युवा जोड़ों के लिए खाद पानी का काम किया। वैसे अगर गो गोवा गॉन में सैफ और कुनाल न भी होते, तो भी फिल्म का प्रदर्शन ठीक ही रहता। हिन्दी फिल्म दर्शक हॉरर और गलियों का दीवाना है।

गो गोवा गॉन और गिप्पी दोनों ही फिल्मों की नज़र मल्टीप्लेक्स दर्शकों पर थी। गिप्पी को तो खालिस मल्टीप्लेक्स दर्शकों को ध्यान में रख कर बनाया गया था। निर्माता करण जौहर की गिप्पी से बार बार स्टूडेंट्स ऑफ द इयर की बू आ रही थी। वही एक दूसरे की टांग खींचते, गाली गलौज करते, सेक्सी इशारे करते और सेक्स के नाबदान में गिरे कॉलेज के युवा। गिप्पी मोटी है, उसका मज़ाक उड़ता है। एक दिन वह तय करती है कि वह भी कॉलेज की खूबसूरत मानी जाने वाली लड़की जैसा बन कर दिखाएगी। कहानी में कोई नयापन नहीं था,  सोनम नायर का विजन भी फिल्म में नज़र नहीं आया। वह उन मेट्रो लड़की लड़कों को, जो ज़ीरो साइज़ पर मरते हैं, तथा देह की अतिरिक्त कलोरी बहाने के लिए जिम में पसीना बहते हैं,  यह समझा पाने में नाकामयाब रही कि मोटी लड़कियां भी सेक्स सिम्बल हो सकती हैं। फिल्म का शीर्षक भी आकर्षक नहीं था।  नतीजतन, गिप्पी गो गोवा गॉन से मार खा गयी। इस फिल्म का, बॉक्स ऑफिस पर कलेक्शन 75 लाख, 1 करोड़ और 1.25 करोड़ के तीन दिनों के कलेक्शन के साथ 3 करोड़ रहा। ज़ाहिर है कि गिप्पी गो गोवा गॉन से काफी पीछे, ज़ोमबी की तुलना में लगभग घिसटती हुई चली। दर्शक मोटी गिप्पी की सेक्स अपील महसूस करने के बजाय, पूजा गुप्ता की संतुलित देह के पीछे घिसटते ज़ोमबी के पीछे लग गए।