रेगीनाल्ड रोज ने एक ड्रामा लिखा था ट्वेल्व एंग्री मेन। इस ड्रामे को १९५४ में टेलीप्ले के रूप में स्टूडियो वन द्वारा टेलीकास्ट किया गया था। अगले ही साल इसे फीचर फिल्म के रूप में लिखा गया और १९५७ में इस पर एक फिल्म '१२ एंग्री मेन' बनाई गई। इस फिल्म का डायरेक्शन सिडनी लूमेट ने किया था। हेनरी फोंडा मुख्य भूमिका में थे। '१२ एंग्री मेन' ऑस्कर पुरस्कारों की बेस्ट डायरेक्टर, बेस्ट पिक्चर और बेस्ट राइटिंग ऑफ़ अडाप्टेड स्क्रीनप्ले की केटेगरी में नॉमिनेट की गई। फिल्म को बॉक्स ऑफिस पर भी अच्छी सफलता मिली। ३.४० लाख डॉलर में बनी इस फिल्म ने दस लाख डॉलर का बिज़नेस किया। इस फिल्म की खासियत थी इसकी कहानी और एक कमरे में फिल्मांकन। ९६ मिनट लम्बी इस फिल्म के केवल तीन मिनट के सीन ही कमरे के बाहर से थे। इनमे से एक सीन कोर्ट रूम के बाहर का, एक जज का रिटायरिंग रूम और तीसरा ट्रायल रूम से सटे वाशरूम का था। फिल्म में १२ सदस्यों की जूरी को एक मत से यह फैसला करना है कि अपराधी दोषी है या निर्दोष है। इस फिल्म में किसी करैक्टर का भी नाम नहीं लिया गया था। जर्मन टेलीविज़न चैनल जेडडीएफ ने इसका रूपांतरण प्रसारित किया। एमजीएम ने १९९७ से इसी टाइटल के साथ फिल्म का टेलीविज़न रीमेक किया। '१३ एंग्री मेन' को कई भाषाओँ में अनुवादित कर, कई माध्यमों से प्रसारित किया गया। इस फिल्म को रशियन और लेबनानी फिल्मकारों द्वारा भी फिल्म और डॉक्यूमेंट्री के रूप में दिखाया गया। १२ एंग्री मेन का भारतीय सिनेमा के लिहाज़ से महत्व इस लिए है कि इस फिल्म पर बासु चटर्जी ने एक कोर्ट रूम ड्रामा फिल्म 'एक रुका हुआ फैसला' का निर्माण किया। फिल्म की पटकथा रंजित कपूर के साथ खुद बासु चटर्जी ने लिखी थी। 'एक रुका हुआ फैसला' में जूरी मेंबर के रूप में दीपक क़ाज़िर, अमिताभ श्रीवास्तव, पंकज कपूर, एस एम ज़हीर, सुभाष उद्गाता, हेमंत मिश्रा, एम के रैना, के के रैना, अन्नू कपूर, सुबिराज, शैलेन्द्र गोयल और अज़ीज़ कुरैशी जैसे रंगमंच के सशक्त अभिनेता थे। हिंदी रीमेक ११७ मिनट का था। लेकिन, दर्शक एक कमरे में बैठे इन जूरी सदस्यों की भावनाओ, वाद-विवाद, उत्तेजना को सांस रोक कर देख रहे थे। एक रुका हुआ फैसला को इतना प्रभावशाली इसके सक्षम एक्टरों ने बनाया ही था, बासु चटर्जी की लेखनी और कल्पनाशील निर्देशन ने भी फिल्म को उकताऊ होने से बचाया था। पंकज कपूर इस फिल्म की जान थे। फिल्म को इतना प्रभावशाली बनाने में इसके एडिटर कमल ए सहगल की धारदार कैंची की सराहना करनी चाहिए। उन्होंने इस फिल्म की गति को शिथिल होने ही नहीं दिया था। यहाँ एक बात। '१२ एंग्री मेन' अमेरिका के जुडिशल सिस्टम में जूरी सिस्टम पर थी। लेकिन, भारत में ऐसा कोई जूरी सिस्टम नहीं था। इसके बावजूद एक रुका हुआ फैसला दर्शको को जूरी का फैसला सुनाने देखने के लिए मज़बूर करती थी।
भारतीय भाषाओँ हिंदी, तेलुगु, तमिल, कन्नड़, मलयालम, पंजाबी, आदि की फिल्मो के बारे में जानकारी आवश्यक क्यों है ? हॉलीवुड की फिल्मों का भी बड़ा प्रभाव है. उस पर डिजिटल माध्यम ने मनोरंजन की दुनिया में क्रांति ला दी है. इसलिए इन सब के बारे में जानना आवश्यक है. फिल्म ही फिल्म इन सब की जानकारी देने का ऐसा ही एक प्रयास है.
Thursday 1 October 2015
क्या बॉलीवुड का कोई 'खान' है विन डीजल जितना ताक़तवर !
क्या विन डीजल 'फ़ास्ट एंड फ्यूरियस' सीरीज की फिल्मों के बिग डैडी हैं ! विन डीजल से पूछिए तो वह इस सीरीज की कास्ट एंड क्रू को अपने परिवार जैसा बताते हैं। लेकिन, एक दिन जब वह खुद कह दें कि वह इस फ्रैंचाइज़ी के बिग डैडी हैं तो मानना ही पड़ेगा। आम तौर पर विन डीजल 'फ़ास्ट एंड फ्यूरियस' सीरीज की फिल्मों की शूटिंग में दखल देते नहीं पाये जाते। २००१ में शुरू इस सीरीज की पहली फिल्म 'द फ़ास्ट एंड द फ्यूरियस' करने के बाद विन डीजल इसके सीक्वल '२ फास्ट २ फ्यूरियस' से बाहर निकल गए। 'द फ़ास्ट एंड द फ्यूरियस: टोक्यो ड्रिफ्ट' में उनका कैमिया था। इसके बाद चौथी फ़ास्ट एंड फ्यूरियस फिल्म से वह इस सीरीज की फिल्मों के स्थाई सदस्य बन गए। फ़ास्ट एंड फ्यूरियस सीरीज की चौथी फिल्म के लिए विन डीजल को बुलाना यूनिवर्सल स्टूडियो की मज़बूरी भी थी और विन डीजल की भी। विन डीजल और डायरेक्टर डेविड ट्वह्य यूनिवर्सल से 'द क्रॉनिकल्स ऑफ़ रिडिक' के अधिकार खरीदना चाहते थी। इसीलिए, विन डीजल आखिरी मौके पर टोक्यो ड्रिफ्ट में शामिल हुए और कैमिया किया। चौथी फ़ास्ट एंड फ्यूरियस फिल्म से विन डीजल इस सीरीज के स्थाई सदस्य बन गए। इसी के साथ ही विन डीजल पर सीरीज की फिल्मों के निर्माण के दौरान हस्तक्षेप करने का आरोप लगाया जाने लगा। एक मैगज़ीन ने तो यहाँ तक आरोप लगाया कि फुयूरियस ७ की शूट के दौरान विन डीजल डायरेक्टर जेम्स वान के लिए सर दर्द बने रहे। वह फिल्म के छोटे छोटे डिटेल देखते। किसी सीन पर देर रात को डायरेक्टर जेम्स वान से डिस्कशन करने लगते। पॉल वॉकर की कार क्रैश में मौत हो जाने के बाद फ्यूरियस ७ की शूटिंग कुछ समय तक रुकी रही। इसी दौरान जेम्स वान ने तय कर लिया कि वह सीरीज की आठवी फिल्म डायरेक्ट नहीं करेंगे। हालाँकि, वान को मोटा पारिश्रमिक देने का लालच दिया गया, लेकिन वान ने फ्यूरियस ७ की शूटिंग के दौरान उनके स्वास्थ्य को हुए नुक्सान का हवाला देते हुए फ़ास्ट ८ डायरेक्ट करने से मना कर दिया। विन डीजल ने मैगज़ीन के आरोपों पर कोई सीधा जवाब नहीं दिया। फ्यूरियस ७ की अप्रत्याशित और अभूतपूर्व सफलता के बाद विन डीजल यूनिवर्सल स्टूडियोज के लिए अपरिहार्य हैं। फ्यूरियस ७ ने वर्ल्डवाइड १.५ बिलियन डॉलर कमा लिए हैं। फ्यूरियस ७ की बड़ी सफलता विन डीजल के ज़रुरत से ज़्यादा इन्वॉल्वमेंट को सही ठहरा रही थी। यही कारण था कि फ़ास्ट ८ के लिए सबसे पहले विन डीजल के नाम का ही ऐलान हुआ। विन डीजल ने ही सोशल साइट्स पर आठवी फिल्म के टाइटल का ऐलान किया। विन डीजल पर लगे आरोपों पर प्रवक्ता द्वारा इतनी सफाई ज़रूर दी गई कि विन डीजल 'फ़ास्ट ८' के डायरेक्टर की खोज में जुटे हुए हैं। संभव है कि डायरेक्टर की कुर्सी पर विन डीजल बैठ कर खुद के अलावा जैसन स्टेथम, ड्वेन जॉनसन, कोडी वॉकर (पॉल वॉकर का भाई, जिसने पॉल के मरने के बाद शेष फिल्म पूरी करवाई), आदि को निर्देशित करते नज़र आये। फ़ास्ट ८ की रिलीज़ अप्रैल २०१७ के लिए तय कर दी गई है। ऐसे में यूनिवर्सल स्टूडियोज के लिए विन डीजल की बात मानना मज़बूरी भी होगी। क्या बॉलीवुड में कोई खान है विन डीजल जितना 'बिग डैडी' !
म्यूजिक वीडियो में गुलशन कुमार की बेटी
म्यूजिक लेबल टी-सीरीज के संस्थापक गुलशन कुमार की दो बेटियों में बड़ी तुलसी कुमार प्लेबैक सिंगर हैं। उनकी छोटी बेटी खुशाली कुमार फैशन डिजाइनिंग के क्षेत्र में गई। अपना अलग लेबल बनाया। अब वह एक बिलकुल नए अवतार में नज़र आने जा रही हैं। वह १९९१ में रिलीज़ आमिर खान की फिल्म 'दिल है कि मानता नहीं' के गुलशन कुमार को प्रिय गीत 'मैनु इश्क़ दा लाग्या रोग' के म्यूजिक वीडियो में बिलकुल ग्लैमरस अंदाज़ में नज़र आएंगी। म्यूजिक वीडियो में काम करने का आईडिया खुशाली के भाई और टी-सीरीज के मालिक भूषण कुमार का था। भूषण कुमार आजकल गुलशन कुमार को प्रिय कई गीतों को नए अंदाज़ और धुन में समेत कर म्यूजिक वीडियो के साथ पेश कर रहे हैं। पिछले दिनों, गुलशन कुमार की याद में उनका एक अन्य पसंदीदा गीत 'धीरे धीरे से मेरी ज़िंदगी में आना' यो यो हनी सिंह द्वारा रीक्रिएट कर ह्रितिक रोशन और सोनम कपूर पर फिल्माया गया था। 'मैनु इश्क़ दा लाग्या रोग' इसी की कड़ी में हैं। इस गीत का वीडियो खुशाली ने ही डिज़ाइन किया है। खुशाली पर फिल्माए जाने वाले इस गीत को बड़ी बहन तुलसी कुमार ने गाया है। इस वीडियो की शूटिंग लगभग पूरी हो चुकी है।
Wednesday 30 September 2015
यादें : वर्ल्ड'स फर्स्ट वन-एक्टर मूवी
१९६४ में रिलीज़ फिल्म 'यादें' का नाम गिनेस बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकार्ड्स में सबसे कम एक्टरों वाली फिल्म के रूप में दर्ज़ है। इस फिल्म का निर्माण सुनील दत्त की फिल्म निर्माण कंपनी अजंता आर्ट्स के अंतर्गत किया गया था। इस फिल्म का एक मात्र करैक्टर अनिल सुनील दत्त का ही था। इस ११३ मिनट लम्बी फिल्म का निर्देशन सुनील दत्त ने ही किया था। 'यादें' सुनील दत्त की बतौर निर्देशक पहली फिल्म थी। इस फिल्म के बाद सुनील दत्त ने बतौर निर्माता निर्देशक मुझे जीने दो, ये रास्ते हैं प्यार के, रेशमा और शेरा, मन का मीत, रॉकी, नहले पे दहला, दर्द का रिश्ता और ये आग कब बुझेगी बनाई। मुझे जीने दो डाकू समस्या पर फिल्म थी। ये रास्ते हैं
प्यार के मशहूर नानावटी कांड पर फिल्म थी। सुनील दत्त ने अपने भाई सोम दत्त को हीरो बनाने के लिए मन का मीत और बेटे संजय दत्त को हीरो बनाने के लिए 'रॉकी' का निर्माण किया। मुझे जीने दो, रेशमा और शेरा और ये रास्ते है प्यार के जैसी फिल्मों ने उन्हें जो नुक्सान दिया था, उसकी भरपाई के लिए ही उन्होंने मन का मीत जैसी फिल्म का निर्माण किया। इस फिल्म में नायिका लीना चंद्रावरकर ने अंग प्रदर्शन के तमाम कीर्तिमान तोड़ दिए थे। इसीलिए फिल्म समीक्षकों ने इस फिल्म को 'मैन का मीट' बताया। अब यह बात दीगर है कि सुनील दत्त ने बाद में समीक्षकों की इन आलोचनाओ का जवाब कैंसर पर फिल्म दर्द का रिश्ता और दहेज़ हत्या पर ये आग कब बुझेगी बना कर दिया । लेकिन, सुनील दत्त आज भी अद्वितीय हैं अपनी एकल एक्टर फिल्म 'यादें' के कारण। यादें पूरी तरह से प्रयोगात्मक फिल्म थी। सुनील दत्त ने कमर्शियल फिल्मों के दौर में ऐसा जोखिम उठाने का साहस किया। यादें वर्णनात्मक फिल्म थी। फिल्म को संवादों और संगीत के ज़रिये आगे बढ़ाया गया था। फिल्म का एकल किरदार अनिल देर रात घर आता है। वह घर में सन्नाटा पाता है। वह अपने बड़े से घर के हर कमरे, रसोई, डाइनिंग हॉल, आदि में देखता है। उसकी पत्नी और बच्चा घर में नहीं है। उसे लगता है कि उन्होंने (पत्नी और बच्चे ने) उसे छोड़ दिया। क्योंकि, रात की पार्टी के बाद, सुबह ही किसी बात पर अनिल का अपनी पत्नी से बड़ा झगड़ा हुआ था। शायद बीवी छोड़ गई थी अनिल को। यह सोच कर अनिल कुर्सी पर पसर जाता है। अब घेर लेती हों उसे यादें। कैसे, कब क्या हुआ था ! वह एक एक
कर सोचता जाता है। कभी वह खुद से बडबडाता है, घटनाओं को याद करते हुए उसके चहरे पर ख़ुशी, दुःख, क्रोध, निराशा के भाव आते जाते हैं। उसे याद आता है पत्नी से आज का झगड़ा। वह महसूस करता है कि इसमे उसी की गलती थी। वह खुद को नुक्सान पहुंचाने के लिए तैयार हो जाता है। तभी बाहर से बीवी की आवाज़ आती है, जो उसे ऐसा करने से रोकती है । अनिल बाहर की रोशनी से खिड़की के परदे पर गिर रही पत्नी और बच्चे की परछाई को देखता है । वह खुश हो जाता है। पत्नी और बच्चा वापस आ गए। इसी के साथ फिल्म ख़त्म हो जाती है। फिल्म में निर्देशक सुनील दत्त ने अपनी बात कहने के लिए संवादों, ध्वनि और प्रकाश का बढ़िया उपयोग किया था। अख्तर उल ईमान के संवाद, वसंत देसाई का संगीत (खास तौर पर लता मंगेशकर का गाया 'देखा है सपना कोई' गीत) तथा एस रामचन्द्र का छायांकन और एस्सा एम सुरतवाला की साउंड मिक्सिंग फिल्म की जान थी। सुनील दत्त ने बेहतरीन अभिनय किया था। पूरी फिल्म में सुनील दत्त के अलावा फिल्म के अंत में दो परछाइयाँ ही पत्नी और बेटे की मौजूदगी का एहसास कराती थी। यह परछाइयाँ सुनील दत्त की रियल लाइफ में पत्नी नर्गिस और बेटे संजय दत्त की थी। संजय दत्त उस समय केवल पांच साल के थे।
कुछ लोगों का कहना था कि यादें परिवार के होते हुए भी सुनील दत्त के एकाकी जीवन का परिणाम थी। सुनील दत्त की नर्गिस से शादी १९५८ में फिल्म 'मदर इंडिया' की रिलीज़ के ठीक बाद ही हो गई थी। लेकिन, सुनील दत्त के मुकाबले नर्गिस बड़ी एक्ट्रेस थी। हालाँकि, नर्गिस ने शादी के बाद फिल्मों में काम करना छोड़ दिया। लेकिन, वह सोशल वर्क करती थी। उनका राजनीतिक जीवन भी था। भारत के प्रथम प्रधान मंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू से उनकी नज़दीकियां थी। शायद इसी वजह से सुनील दत्त ने एकाकीपन महसूस किया हो। बताते हैं कि सुनील दत्त एक बार अपने एकाकीपन से ऊब कर अपनी पत्नी, बेटे संजय और बेटियों नम्रता और
प्रिया को साथ लेकर कही घूमने गए थे। वापस लौटते समय उनके दिमाग में यादें की कहानी उभर आई। श्वेत-श्याम फिल्म 'यादें' को विदेशों में 'मेमोरीज' टाइटल से रिलीज़ किया गया था। यादें के लिए एस रामचन्द्र को बेस्ट सिनेमैटोग्राफर और एस्सा एम सुरतवाला को बेस्ट साउंड रिकार्डिस्ट का फिल्मफेयर पुरस्कार मिला। लेकिन, तत्कालीन दर्शकों को सुनील दत्त का यह वर्ल्ड में पहला और इकलौता प्रयास पसंद नहीं आया। फिल्म बॉक्स ऑफिस पर बुरी तरह से असफल हुई। सुनील दत्त की श्रेष्ठ कल्पनाशीलता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उन्होंने एक पार्टी सीक्वेंस बैलून्स के सहारे क्रिएट कर दिया था। बच्चे के खिलौने और पत्नी की पेंटिंग के सहारे वह कहानी कह रहे थे। सुनील दत्त जानते थे कि वह क्या करने जा रहे हैं। इसीलिए फिल्म के क्रेडिट में गर्व के साथ लिखा गया था- वर्ल्ड'स फर्स्ट वन-एक्टर मूवी। हालाँकि, आलोचकों का कहना है कि फिल्म को वन-एक्टर मूवी नहीं कहा जा सकता, क्योंकि फिल्म के लिए नर्गिस और संजय दत्त की परछाई और आवाज़ का इस्तेमाल किया गया था।
प्यार के मशहूर नानावटी कांड पर फिल्म थी। सुनील दत्त ने अपने भाई सोम दत्त को हीरो बनाने के लिए मन का मीत और बेटे संजय दत्त को हीरो बनाने के लिए 'रॉकी' का निर्माण किया। मुझे जीने दो, रेशमा और शेरा और ये रास्ते है प्यार के जैसी फिल्मों ने उन्हें जो नुक्सान दिया था, उसकी भरपाई के लिए ही उन्होंने मन का मीत जैसी फिल्म का निर्माण किया। इस फिल्म में नायिका लीना चंद्रावरकर ने अंग प्रदर्शन के तमाम कीर्तिमान तोड़ दिए थे। इसीलिए फिल्म समीक्षकों ने इस फिल्म को 'मैन का मीट' बताया। अब यह बात दीगर है कि सुनील दत्त ने बाद में समीक्षकों की इन आलोचनाओ का जवाब कैंसर पर फिल्म दर्द का रिश्ता और दहेज़ हत्या पर ये आग कब बुझेगी बना कर दिया । लेकिन, सुनील दत्त आज भी अद्वितीय हैं अपनी एकल एक्टर फिल्म 'यादें' के कारण। यादें पूरी तरह से प्रयोगात्मक फिल्म थी। सुनील दत्त ने कमर्शियल फिल्मों के दौर में ऐसा जोखिम उठाने का साहस किया। यादें वर्णनात्मक फिल्म थी। फिल्म को संवादों और संगीत के ज़रिये आगे बढ़ाया गया था। फिल्म का एकल किरदार अनिल देर रात घर आता है। वह घर में सन्नाटा पाता है। वह अपने बड़े से घर के हर कमरे, रसोई, डाइनिंग हॉल, आदि में देखता है। उसकी पत्नी और बच्चा घर में नहीं है। उसे लगता है कि उन्होंने (पत्नी और बच्चे ने) उसे छोड़ दिया। क्योंकि, रात की पार्टी के बाद, सुबह ही किसी बात पर अनिल का अपनी पत्नी से बड़ा झगड़ा हुआ था। शायद बीवी छोड़ गई थी अनिल को। यह सोच कर अनिल कुर्सी पर पसर जाता है। अब घेर लेती हों उसे यादें। कैसे, कब क्या हुआ था ! वह एक एक
कर सोचता जाता है। कभी वह खुद से बडबडाता है, घटनाओं को याद करते हुए उसके चहरे पर ख़ुशी, दुःख, क्रोध, निराशा के भाव आते जाते हैं। उसे याद आता है पत्नी से आज का झगड़ा। वह महसूस करता है कि इसमे उसी की गलती थी। वह खुद को नुक्सान पहुंचाने के लिए तैयार हो जाता है। तभी बाहर से बीवी की आवाज़ आती है, जो उसे ऐसा करने से रोकती है । अनिल बाहर की रोशनी से खिड़की के परदे पर गिर रही पत्नी और बच्चे की परछाई को देखता है । वह खुश हो जाता है। पत्नी और बच्चा वापस आ गए। इसी के साथ फिल्म ख़त्म हो जाती है। फिल्म में निर्देशक सुनील दत्त ने अपनी बात कहने के लिए संवादों, ध्वनि और प्रकाश का बढ़िया उपयोग किया था। अख्तर उल ईमान के संवाद, वसंत देसाई का संगीत (खास तौर पर लता मंगेशकर का गाया 'देखा है सपना कोई' गीत) तथा एस रामचन्द्र का छायांकन और एस्सा एम सुरतवाला की साउंड मिक्सिंग फिल्म की जान थी। सुनील दत्त ने बेहतरीन अभिनय किया था। पूरी फिल्म में सुनील दत्त के अलावा फिल्म के अंत में दो परछाइयाँ ही पत्नी और बेटे की मौजूदगी का एहसास कराती थी। यह परछाइयाँ सुनील दत्त की रियल लाइफ में पत्नी नर्गिस और बेटे संजय दत्त की थी। संजय दत्त उस समय केवल पांच साल के थे।
कुछ लोगों का कहना था कि यादें परिवार के होते हुए भी सुनील दत्त के एकाकी जीवन का परिणाम थी। सुनील दत्त की नर्गिस से शादी १९५८ में फिल्म 'मदर इंडिया' की रिलीज़ के ठीक बाद ही हो गई थी। लेकिन, सुनील दत्त के मुकाबले नर्गिस बड़ी एक्ट्रेस थी। हालाँकि, नर्गिस ने शादी के बाद फिल्मों में काम करना छोड़ दिया। लेकिन, वह सोशल वर्क करती थी। उनका राजनीतिक जीवन भी था। भारत के प्रथम प्रधान मंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू से उनकी नज़दीकियां थी। शायद इसी वजह से सुनील दत्त ने एकाकीपन महसूस किया हो। बताते हैं कि सुनील दत्त एक बार अपने एकाकीपन से ऊब कर अपनी पत्नी, बेटे संजय और बेटियों नम्रता और
प्रिया को साथ लेकर कही घूमने गए थे। वापस लौटते समय उनके दिमाग में यादें की कहानी उभर आई। श्वेत-श्याम फिल्म 'यादें' को विदेशों में 'मेमोरीज' टाइटल से रिलीज़ किया गया था। यादें के लिए एस रामचन्द्र को बेस्ट सिनेमैटोग्राफर और एस्सा एम सुरतवाला को बेस्ट साउंड रिकार्डिस्ट का फिल्मफेयर पुरस्कार मिला। लेकिन, तत्कालीन दर्शकों को सुनील दत्त का यह वर्ल्ड में पहला और इकलौता प्रयास पसंद नहीं आया। फिल्म बॉक्स ऑफिस पर बुरी तरह से असफल हुई। सुनील दत्त की श्रेष्ठ कल्पनाशीलता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उन्होंने एक पार्टी सीक्वेंस बैलून्स के सहारे क्रिएट कर दिया था। बच्चे के खिलौने और पत्नी की पेंटिंग के सहारे वह कहानी कह रहे थे। सुनील दत्त जानते थे कि वह क्या करने जा रहे हैं। इसीलिए फिल्म के क्रेडिट में गर्व के साथ लिखा गया था- वर्ल्ड'स फर्स्ट वन-एक्टर मूवी। हालाँकि, आलोचकों का कहना है कि फिल्म को वन-एक्टर मूवी नहीं कहा जा सकता, क्योंकि फिल्म के लिए नर्गिस और संजय दत्त की परछाई और आवाज़ का इस्तेमाल किया गया था।
जब न्यू ज़ीलैण्ड ने पावर रेंजर्स पर रोक लगाई
१९९४ में न्यूजीलैंड ब्राडकास्टिंग स्टैंडर्ड्स अथॉरिटी ने माइटी मॉर्फिन पावर रेंजर्स पर रोक लगाने का निर्णय लिया। यह निर्णय उस शिकायत पर लिया गया, जिसमे कहा गया था कि पावर रेंजर्स उनके बच्चों को सीखा रहे हैं कि किसी भी समस्या का समाधान हिंसा ही है। अभिभावकों को लगता था कि इस शो को देखते हुए बच्चों के स्वभाव आक्रामकता बढ़ रही है। जिस समय यह निर्णय लिया गया उस समय तक पावर रेंजर्स का एक पूरा सीजन हो चुका था तथा दूसरा सीजन का मध्य चल रहा था। टीवी स्टेशनों को इस शो को बीच में ही रोक देना पड़ा। इसके बाद लम्बे समय तक पावर रेंजर डीवीडी और वीडियो के द्वारा देखे गए। यहाँ एक मज़ेदार तथ्य यह है कि पावर रेंजर्स के दो सीजन, 'पावर रेंजर्स: मिस्टिक फ़ोर्स' और 'पावर रेंजर्स : जंगल फरी' की शूटिंग न्यूजीलैंड में ही हुई थी। न्यूजीलैंड के टीवी पर पावर रेंजर पूरे १७ साल तक गायब रहे। इसके बाद, २०११ में 'पावर रेंजर्स समुराई' के प्रसारण के साथ ही पावर रेंजर्स को टीवी पर फिर जगह मिल गई।
क्या चौथी बार सफल होंगे अक्षय कुमार !
साल २००२ का आखिरी तिमाही आ गई है। २ अक्टूबर को अक्षय कुमार की एक्शन कॉमेडी फिल्म 'सिंह इज़ ब्लिंग' रिलीज़ हो रही है। फिल्म में अक्षय कुमार के को-स्टार एमी जैक्सन, के के मेनन, प्रदीप रावत, अनिल मांगे, अरफी लाम्बा, रति अग्निहोत्री कुणाल कपूर और मुरली शर्मा हैं। फिल्म में, क्रिकेटर युवराज सिंह के पिता योगराज सिंह अक्षय कुमार के करैक्टर रफ़्तार सिंह के पिता का रोल कर रहे हैं। इस फिल्म में सनी लियॉन का कैमिया भी बताया जा रहा है। ख़ास बात यह है कि २००३ में अक्षय कुमार के साथ फिल्म 'अंदाज़' में अपने फिल्म करियर की शुरुआत करने वाली अभिनेत्री लारा दत्ता पिछली फिल्म डेविड के दो साल बाद हिंदी फिल्मों में वापसी कर रही है। अक्षय कुमार और लारा दत्ता ने लगभग एक दर्जन फ़िल्में साथ की हैं। फिल्म में शशि कपूर के बेटे कुणाल कपूर फिल्म की नायिका एमी जैक्सन के पिता के किरदार में हैं। फिल्म की तमाम शूटिंग भारत के अलावा साउथ अफ्रीका और रोमानिया में हुई है। फिल्म का क्लाइमेक्स रोमानिया में फिल्माया गया है। सिंह इज़ ब्लिंग के निर्देशक प्रभुदेवा है, जिनके साथ अक्षय कुमारं ने राउडी राठौर जैसी ब्लॉकबस्टर फिल्म दी है। क्या यह जोड़ी एक बार फिर एक ब्लॉकबस्टर फिल्म देने जा रही है ? अगर ऐसा होता है तो अक्षय कुमार की इस साल की यह चौथी सफलता होगी। अक्षय कुमार एक ऐसा अभिनेता हैं, जो खानों की तरह साल में एक या दो फिल्मों की कसम नहीं खाते। उनकी साल में तीन या चार फ़िल्में रिलीज़ होती रहती हैं। इस साल भी अक्षय कुमार की तीन फ़िल्में बेबी, गब्बर इज़ बैक और ब्रदर्स रिलीज़ हो चुकी हैं। गब्बर इज़ बैक को मामूली सफलता मिली। बेबी और ब्रदर्स ने ८०+ करोड़ की कमाई की। ज़ाहिर है कि अक्षय कुमार बॉक्स ऑफिस पर विश्वसनीय हैं। उनकी फ़िल्में अपने निर्माता को नुक्सान नहीं देती। इसीलिए वह निर्माताओं के प्रिय भी हैं। एक्शन उनकी ताकत है। कॉमेडी लाजवाब है। उनकी एक्शन कॉमेडी फ़िल्में सुपर हिट होती हैं। लेकिन, अक्षय कुमार हमेशा ही लीक से हट कर फ़िल्में देने में विश्वास करते हैं। स्पेशल २६, हॉलिडे, बेबी, गब्बर इज़ बैक और ब्रदर्स इसका प्रमाण हैं। सिंह इज़ ब्लिंग एक्शन कॉमेडी फिल्म है। यह उनकी २००७ की सुपर हिट फिल्म 'सिंह इज़ किंग' की सीक्वल फिल्म नहीं। लेकिन, इस फिल्म में अक्षय कुमार फिर सिख किरदार में हैं। अक्षय कुमार की सिख किरदार में फिल्म सिंह इज़ किंग सुपर हिट हुई थी। क्या सिंह इज़ ब्लिंग भी बड़ी हिट फिल्म साबित होगी। तब तो अक्षय कुमार तीन सौ करोड़ के अभिनेता तो यो ही बन जाते हैं।
जेम्स बांड की स्पूफ थी 'ऑस्टिन पावर्स' सीरीज की फ़िल्में
अमेरिकी
एक्शन-कॉमेडी फिल्म सीरीज 'ऑस्टिन पावर्स' की फ़िल्में हॉलीवुड के जासूसों जेम्स बांड, डेरेक फ्लिंट, जैसन किंग और मैट
हेल्म फिल्मों की पैरोडी हुआ करती थी। इस
सीरीज में तीन फ़िल्में 'ऑस्टिन पावर्स: इंटरनेशनल मैन ऑफ़ मिस्ट्री', 'ऑस्टिन पावर्स: द
स्पाई हु शैग्ड मी' और 'ऑस्टिन पावर्स इन गोल्ड मेंबर' बनाई गई। क्रमशः
१९९७, १९९९ और २००२ में रिलीज़ यह फ़िल्में चिढ़ाने वाली और अपमानजनक कथानक
वाली फ़िल्में थी। इनमे सेक्स की ओवरडोज़
हुआ करती थी। इन फिल्मों का जासूस जेम्स बांड की तरह आकर्षक और खूबसूरत नहीं था। 'ऑस्टिन पावर्स' सीरीज की फिल्मों की
कहानी विलेन डॉक्टर ईविल के सरकार या अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं को ब्लैकमेल कर मोटी
रकम की उगाही करने के इरादों के इर्दगिर्द घूमती थी, जिन्हे पावर्स नाकाम कर देती थी। इन
फिल्मों के निर्माता, लेखक और एक्टर माइक मायर्स थे। तीनों फिल्मों में
मुख्य किरदार कभी नहीं बदले। आंद्रेआना
विथ ने वेरियस डांसर्स, सेठ ग्रीन ने स्कॉट ईविल, मिंडी स्टर्लिंग ने फ्राउ फर्बिसिना, रॉबर्ट वैगनर ने
नंबर २ और माइकल यॉर्क ने बेसिल एक्सपोसिशन भूमिका की थी। फिल्म के निर्माता और लेखक माइक मायर्स ने हीरो
ऑस्टिन पावर्स और मुख्य विलेन डॉक्टर ईविल, दोनों की ही भूमिका की थी। माइक मायर्स के दोनों ही भूमिकाएं करने की
कहानी दिलचस्प है। यह तो पहले ही तय था कि
फिल्म के हीरो यानि जासूस ऑस्टिन पावर्स माइक मायर्स ही होंगे। डॉक्टर ईविल का किरदार के लिए जिम कैर्री को
साइन किया गया था। उस दौरान जिम कैर्री 'लिएर् लिएर्' कर रहे थे। इस फिल्म की रीशेड्यूलिंग हो गयी। जिम को 'ऑस्टिन पावर्स' की पहली फिल्म 'इंटरनेशनल मैन ऑफ़
मिस्ट्री' छोड़नी पड़ी। जिम के जाने के
बाद निर्माता माइक मायर्स ने फिल्म की रीकास्ट
करने के बजाय खुद विग लगा कर नायक और खलनायक को अंजाम दिया। पहली फिल्म 'ऑस्टिन पावर्स: इंटरनेशनल मैन ऑफ़ मिस्ट्री' के निर्माण में १६.५
मिलियन डॉलर खर्च हुए थे। यह फिल्म २ मई
१९९७ को रिलीज़ हुई। फिल्म ने वर्ल्डवाइड
बॉक्स ऑफिस पर ६७.६८ मिलियन डॉलर का कलेक्शन किया। दूसरी फिल्म 'ऑस्टिन पावर्स: द स्पाई हु शैग्ड मी' ११ जून १९९९ को
रिलीज़ हुई। ३३ मिलियन डॉलर के बजट में बनी
फिल्म ने वर्ल्डवाइड बॉक्स ऑफिस पर ३१२ मिलियन डॉलर का बिज़नेस किया। आखिरी फिल्म 'ऑस्टिन पावर्स इन गोल्ड मेंबर' का बजट बढ़ कर लगभग
दोगुना यानि ६६ मिलियन डॉलर हो गया था। २६
जुलाई २००२ को रिलीज़ इस फिल्म ने वर्ल्डवाइड २९६.६५ मिलियन डॉलर का कलेक्शन
किया।
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