रेगीनाल्ड रोज ने एक ड्रामा लिखा था ट्वेल्व एंग्री मेन। इस ड्रामे को १९५४ में टेलीप्ले के रूप में स्टूडियो वन द्वारा टेलीकास्ट किया गया था। अगले ही साल इसे फीचर फिल्म के रूप में लिखा गया और १९५७ में इस पर एक फिल्म '१२ एंग्री मेन' बनाई गई। इस फिल्म का डायरेक्शन सिडनी लूमेट ने किया था। हेनरी फोंडा मुख्य भूमिका में थे। '१२ एंग्री मेन' ऑस्कर पुरस्कारों की बेस्ट डायरेक्टर, बेस्ट पिक्चर और बेस्ट राइटिंग ऑफ़ अडाप्टेड स्क्रीनप्ले की केटेगरी में नॉमिनेट की गई। फिल्म को बॉक्स ऑफिस पर भी अच्छी सफलता मिली। ३.४० लाख डॉलर में बनी इस फिल्म ने दस लाख डॉलर का बिज़नेस किया। इस फिल्म की खासियत थी इसकी कहानी और एक कमरे में फिल्मांकन। ९६ मिनट लम्बी इस फिल्म के केवल तीन मिनट के सीन ही कमरे के बाहर से थे। इनमे से एक सीन कोर्ट रूम के बाहर का, एक जज का रिटायरिंग रूम और तीसरा ट्रायल रूम से सटे वाशरूम का था। फिल्म में १२ सदस्यों की जूरी को एक मत से यह फैसला करना है कि अपराधी दोषी है या निर्दोष है। इस फिल्म में किसी करैक्टर का भी नाम नहीं लिया गया था। जर्मन टेलीविज़न चैनल जेडडीएफ ने इसका रूपांतरण प्रसारित किया। एमजीएम ने १९९७ से इसी टाइटल के साथ फिल्म का टेलीविज़न रीमेक किया। '१३ एंग्री मेन' को कई भाषाओँ में अनुवादित कर, कई माध्यमों से प्रसारित किया गया। इस फिल्म को रशियन और लेबनानी फिल्मकारों द्वारा भी फिल्म और डॉक्यूमेंट्री के रूप में दिखाया गया। १२ एंग्री मेन का भारतीय सिनेमा के लिहाज़ से महत्व इस लिए है कि इस फिल्म पर बासु चटर्जी ने एक कोर्ट रूम ड्रामा फिल्म 'एक रुका हुआ फैसला' का निर्माण किया। फिल्म की पटकथा रंजित कपूर के साथ खुद बासु चटर्जी ने लिखी थी। 'एक रुका हुआ फैसला' में जूरी मेंबर के रूप में दीपक क़ाज़िर, अमिताभ श्रीवास्तव, पंकज कपूर, एस एम ज़हीर, सुभाष उद्गाता, हेमंत मिश्रा, एम के रैना, के के रैना, अन्नू कपूर, सुबिराज, शैलेन्द्र गोयल और अज़ीज़ कुरैशी जैसे रंगमंच के सशक्त अभिनेता थे। हिंदी रीमेक ११७ मिनट का था। लेकिन, दर्शक एक कमरे में बैठे इन जूरी सदस्यों की भावनाओ, वाद-विवाद, उत्तेजना को सांस रोक कर देख रहे थे। एक रुका हुआ फैसला को इतना प्रभावशाली इसके सक्षम एक्टरों ने बनाया ही था, बासु चटर्जी की लेखनी और कल्पनाशील निर्देशन ने भी फिल्म को उकताऊ होने से बचाया था। पंकज कपूर इस फिल्म की जान थे। फिल्म को इतना प्रभावशाली बनाने में इसके एडिटर कमल ए सहगल की धारदार कैंची की सराहना करनी चाहिए। उन्होंने इस फिल्म की गति को शिथिल होने ही नहीं दिया था। यहाँ एक बात। '१२ एंग्री मेन' अमेरिका के जुडिशल सिस्टम में जूरी सिस्टम पर थी। लेकिन, भारत में ऐसा कोई जूरी सिस्टम नहीं था। इसके बावजूद एक रुका हुआ फैसला दर्शको को जूरी का फैसला सुनाने देखने के लिए मज़बूर करती थी।
भारतीय भाषाओँ हिंदी, तेलुगु, तमिल, कन्नड़, मलयालम, पंजाबी, आदि की फिल्मो के बारे में जानकारी आवश्यक क्यों है ? हॉलीवुड की फिल्मों का भी बड़ा प्रभाव है. उस पर डिजिटल माध्यम ने मनोरंजन की दुनिया में क्रांति ला दी है. इसलिए इन सब के बारे में जानना आवश्यक है. फिल्म ही फिल्म इन सब की जानकारी देने का ऐसा ही एक प्रयास है.
Thursday, 1 October 2015
'एक रुका हुआ फैसला' सुनाने बैठे '१२ एंग्री मेन'
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क्लासिक फिल्मों के रीमेक
मैं हिंदी भाषा में लिखता हूँ. मुझे लिखना बहुत पसंद है. विशेष रूप से हिंदी तथा भारतीय भाषाओँ की तथा हॉलीवुड की फिल्मों पर. टेलीविज़न पर, यदि कुछ विशेष हो. कविता कहानी कहना भी पसंद है.
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