Friday, 23 October 2015

'शानदार' नहीं है विकास बहल की फिल्म

जब कोई खुद की सफलता पर अति मुग्ध हो जाता है. जिस पर फैंटम फिल्म के अनुराग कश्यप और करण जौहर का प्रभाव हो, वह विकास बहल हो जाता है और 'शानदार' बनाता है . फिल्म में अनुराग कश्यप का प्रभाव है तो संजय कपूर का किरदार हमेशा बन्दूक हाथ में लिए रहता है . दादी फायरिंग करने की कल्पना करती रहती है . वह जवान शाहिद कपूर को देख कर मुग्ध हो जाती है. करण जौहर के प्रभाव से गे और लेस्बियन किरदार हैं. खुद करण जौहर बकवास किस्म का काफी विथ करण खेल रहे हैं . इस फिल्म में विशाल भरद्वाज की फिल्म 'मटरू की बिजली का मंडोला' वाली बकवास भी है.एक से एक बेसिर पैर के सीन हैं .खुद को महान एक्टर समझ चुके शाहिद कपूर हैं. उन्हें अभिनय करते देख कर पता चलता रहता है कि वह अपने ज़बरदस्त (!) अभिनय की चाशनी टपका रहे हैं . जिसे एक रत्ती भी अभिनय नहीं आता, वह आलिया भट्ट हैं. कोई नदारद है तो वह है विकास बहल. विश्वास नहीं होता कि 'क्वीन' जैसी ज़बरदस्त फिल्म बनाने वाला विकास बहल ऎसी बकवास और उकताऊ फिल्म बना सकता है . फिल्म का केवल एक उजागर पक्ष है, वह है शाहिद कपूर की सौतेली बहन और पंकज कपूर और सुप्रिया पाठक की बेटी सना कपूर. इस लड़की में सम्भावनाये हैं. पंकज कपूर कहीं कहीं जमे हैं . विकास बहल ने अलिया जगजिंदर के साथ सो गई जैसे प्रसंग रच कर हास्य पैदा करने की असफल कोशिश की है. अलिया भट्ट रात में सो नहीं पाती, वह रजाई ओढ़ बत्ती जला कर केला खाती है. इसका क्या मक़सद विकास ने बताया नहीं. संगीत अच्छा है, लेकिन गीत ठूंसे हुए हैं. 
फिल्म देखनी है ! देख आओ. देख लेना कि अंटी में फालतू पैसे हैं !

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