Monday, 12 October 2015

प्रोतिमा की कहानी : जुहू बीच से हिमालय तक

प्रोतिमा की प्रोतिमा बेदी और फिर प्रोतिमा गौरी बनने की कहानी करनाल हरियाणा के एक व्यापारी लक्ष्मीचंद गुप्ता के परिवार में दिल्ली में पैदा होने से शुरू होती है।  लक्ष्मीचंद ने एक बंगाली लड़की रेबा से शादी की थी, इसलिए उन्हें लोगों के विरोध के कारण करनाल छोड़ कर दिल्ली आना पड़ा।  दिल्ली में प्रोतिमा का जन्म हुआ। प्रारंभिक शिक्षा किंमिंस हाई स्कूल, पंचगनी में हुई।  उन्होंने ग्रेजुएशन बॉम्बे के सेंट ज़ेवियरस कॉलेज से किया।  यह तो प्रोतिमा गुप्ता की, हर सामान्य लड़की की दास्तान हैं।  प्रोतिमा के बेदी बनाने की दास्ताँ शुरू होती है मॉडल बनने के साथ। १९६० तक वह बड़ी मॉडल बन चुकी थी।  उन दिनों कबीर बेदी का सितारा भी बुलंद था।  प्रोतिमा कबीर बेदी के साथ रहने के लिए घर छोड़ कर निकल आई।  १९६९ में उन्होंने कबीर बेदी से शादी कर ली।  प्रोतिमा बेदी के सुर्खियां बटोरने की कहानी बनती है १९७४ में। यह वह समय था, अब दुनिया के तमाम देशो के साथ भारत में भी नारी स्वतंत्र के नारे बुलंद किये जा रहे थे।  अंगिया-जाँघिया जलाये जाने की होड़ मची थी।  ऐसे माहौल में, १९७४ में अंग्रेजी फिल्म पत्रिका 'सिनेब्लिट्ज़' का प्रकाशन शुरू होने वाला था।  इस मैगज़ीन को रूसी करंजिया का ब्लिट्ज मल्टीमीडिया प्राइवेट लिमिटेड कर रहा था।  इस मैगज़ीन के प्रचार में प्रोतिमा बेदी ने अपनी अंगिया-जाँघिया जलाई तो नहीं, बल्कि उतार फेंकी।  वह दौड़ पड़ी जुहू बीच की रेतीली दुनिया में।  महा मॉडर्न बॉम्बे के लिए भी यह अभूतपूर्व दृश्य था।  प्रोतिमा बेदी रातों रात पूरी दुनिया में मशहूर हुई। अपनी वैयक्तिकता साबित करने का यह सुनहरा मौका जो था।  इस घटना के बाद प्रोतिमा बेदी के भाग्य ने करवट लेनी शुरू कर दी।  अगस्त १९७५ में वह भूलाभाई मेमोरियल इंस्टिट्यूट में दो युवा लड़कियों के ओडिसी डांस प्रोग्राम को देख रही थी।  इसे देखते हुए जैसी उनकी ज़िंदगी बदलने लगी।  कठिन ओडिसी डांस स्टेप्स ने उन्हें आकर्षित किया।  उन्होंने इस डांस शैली का प्रशिक्षण लेना शुरू कर दिया।  उन्होंने ओडिसी  नृत्य गुरु केलुचरण महापात्र से नृत्य शिक्षा लेनी शुरू कर दी। वह १२ से १४ घंटे तक लगातार रियाज़ करती रहती।  उस गुरुकुल में उनका स्वरुप ही बदला हुआ था।  वहां की लड़कियां उन्हें गौरी अम्मा या गौरी माँ नाम से पुकारने लगी। वह जल्द ही ओडिसी डांस फॉर्म में पारंगत हो गई।  फिर प्रोतिमा ने मद्रास के गुरु कलानिधि नारायण से अभिनय की शिक्षा ली।  भारतीय नृत्य शैली में हाव भाव यानि अभिनय का महत्त्व होता है।  बॉम्बे वापस आ कर, प्रोतिमा बेदी ने पृथ्वी थिएटर में अपना डांस स्कूल खोला, जो बाद में ओडिसी डांस सेंटर में तब्दील हो गया।  १९७८ में कबीर बेदी के साथ अलगाव के बाद प्रोतिमा ने खुद को ओडिसी नृत्य में डुबो दिया।  उन्होंने बेंगलोर के बाहरी हिस्से में नृत्यग्राम की स्थापना की।  यह नृत्यग्राम नृत्य शिक्षा लेने वालों के लिया बड़ा केंद्र है।  १९९२ में प्रोतिमा बेदी ने पामेला रूक्स की इंग्लिश फिल्म ' मिस बेट्टीज चिल्ड्रन' में अभिनय भी किए।  १९९७ में प्रोतिमा की ज़िंदगी ने फिर करवट ली।  कबीर से प्रोतिमा के दो बच्चे थे- पूजा बेदी, जिसने विषकन्या, जो जीता वही सिकंदर, आदि कुछ फिल्मों में अभिनय किया और सिद्धार्थ बेदी।  सिद्धार्थ शिज़ोफ्रेनिआ का मरीज़ था। वह नार्थ कैरोलिना में पढ़ाई कर रहा था।  वहीँ, अगस्त १९९७ में उसने आत्म हत्या कर ली।  बेटे की दर्दनाक मौत ने प्रोतिमा को हिला कर रख दिया।  वह सब छोड़ कर संन्यासी बन गई और अपना नाम प्रोतिमा गौरी रख लिया।  वह हिमालय चली गई।  उन्होंने लेह से अपनी हिमालय यात्रा शुरू की।  मकसद पहाड़ों के लिए कुछ करना था। जिस दौरान वह कैलाश मानसरोवर की तीर्थ यात्रा पर थी, मालपा में भूस्खलन के दौरान प्रोतिमा गौरी भी काफी लोगों के साथ मलवे में दब गई।  हालाँकि, कई दिनों बाद अन्य शवों के साथ प्रोतिमा बेदी के शरीर के अवशेष और वस्तुएं बरामद हुई।  इसके साथ ही प्रोतिमा गुप्ता से प्रोतिमा बेदी और फिर प्रोतिमा गौरी के जीवन का सफर ख़त्म हो गया।


















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