श्रीशक आनंद और शांतनु रॉय छिब्बर की लिखी और निर्देशित फिल्म 'गुड्डू की गन' से दो बातों की जानकारी होती है। पहली यह कि बिहारी वैलेंटाइन्स डे नहीं मनाते। जो मनाते हैं वह कैसे मनाते हैं यह गुड्डू की गन देख कर ही समझ जा सकता है। दूसरी यह कि अगर आप औरतों के हमबिस्तर होते समय यह नहीं समझते कि आप किसी भोली लड़की का दिल तोड रहे हैं तो आपका लिंग (फिल्म में इस शब्द का उपयोग किया गया है) सोने का हो जायेगा। यह अपनी पहले वाली स्थिति में तभी जायेगा, जब आपको सच्चा प्यार मिलेगा। इस थ्योरी को अगर द्विअर्थी संवादों और अश्लील घटनाओं के साथ फिल्माया जाये तो यह 'गुड्डू की गन' बन जाएगी। 'गुड्डू की गन' बिहार के गोवर्धन उर्फ़ गुड्डू की कहानी है, जो कलकत्ता के जिस घर में वाशिंग पाउडर बेचने जाता है, वहाँ की औरत को बिस्तर तक आसानी से ले जाता है। इस फिल्म से दो बाते साफ़ होती है। पहली यह कि बिहारी लोग औरतबाज़ हैं, उनका सेक्स का स्टैमिना काफी ज़्यादा है। दूसरा यह कि कलकत्ता या कहिये पूरे बंगाल की औरते, खासकर विवाहित औरते चरित्रहीन हैं और किसी भी फेरी वाले के साथ हमबिस्तर हो जाती हैं। इस घटिया थ्योरी को लेकर श्रेषक और शांतनु ने पूरी तरह से फूहड़ फिल्म 'गुड्डू की गन' बुनी है। फिल्म को देखा कर साफ हो जाता है कि कभी पहलाज निहलानी के जिस सेंसर बोर्ड पर कम्युनल होने का चार्ज लग रहा था, अब वह पूरी तरह से सेक्युलर बैटरी से चार्ज हो गया है। यह फिल्म मानसिक रूप से बीमार और औरतों में चमड़ी देखने वाले दर्शकों को ख़ास पसंद आने जा रही है। फिल्म के नायक गुड्डू की भूमिका कुणाल खेमू ने की है। विश्वास नहीं होता है कि इसी एक्टर ने बालपन में ज़ख्म जैसी फिल्म में मार्मिक अभिनय किया था। उनका कलयुग का डेब्यू भी ज़ोरदार था। लेकिन, कहते हैं न कि समय क्या क्या नहीं दिखा देता है। फिल्मों की लगातार असफलता ने कुणाल खेमू को गुड्डू की गन दिखाने को मज़बूर कर दिया। फिल्म से बांगला फिल्म एक्ट्रेस पायल सरकार का हिंदी फिल्म डेब्यू हुआ है। पता नहीं क्यों इस खूबसूरत एक्ट्रेस ने अपनी खूबसूरती और टैलेंट को इस घटिया फिल्म में जाया किया।
भारतीय भाषाओँ हिंदी, तेलुगु, तमिल, कन्नड़, मलयालम, पंजाबी, आदि की फिल्मो के बारे में जानकारी आवश्यक क्यों है ? हॉलीवुड की फिल्मों का भी बड़ा प्रभाव है. उस पर डिजिटल माध्यम ने मनोरंजन की दुनिया में क्रांति ला दी है. इसलिए इन सब के बारे में जानना आवश्यक है. फिल्म ही फिल्म इन सब की जानकारी देने का ऐसा ही एक प्रयास है.
Friday, 30 October 2015
'गुड्डू की गन' सीले कारतूस वाली
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फिल्म समीक्षा
मैं हिंदी भाषा में लिखता हूँ. मुझे लिखना बहुत पसंद है. विशेष रूप से हिंदी तथा भारतीय भाषाओँ की तथा हॉलीवुड की फिल्मों पर. टेलीविज़न पर, यदि कुछ विशेष हो. कविता कहानी कहना भी पसंद है.
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