Wednesday 20 July 2016

बुधिया सिंह - बॉर्न टू रन के लिए ​मनोज बाजपेयी ने सीखी उड़िया भाषा

​मनोज बाजपेयी, वायकॉम 18 मोशन पिक्चर्स की आगामी फिल्म बुधिया सिंह-बॉर्न टू रन में दिखाई देंगे  'यह फिल्म एक प्रेरणादायक बायोपिक है  - यह ऐसे बच्चे की कहानी जो की दुनिया के सबसे कम उम्र के मैराथन धावक की प्रेरणादायक सच्ची कहानी पर आधारित है।​ राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता अभिनेता 
​ने ​
सिर्फ मार्शल आर्ट फार्म
​ ही नहीं बल्कि ​
उनकी भूमिका के लिए जूडो 
​भी सिखा 
, क्योंकि 
​यह ​
फिल्म भुवनेश्वर में आधारित है 
​इसीलिए मनोज ​
उड़िया भाषा सीखना 
​भी जरुरी ​
था।
​फिल्म मे उड़िया भाषा में साफ बोलना था  साथ ही मनोज को उड़िया भाषा का लहजा भी सीखना था , दिलचस्प बात है की फिल्म  निर्देशक सौमिंद्र पाधी ओरिसा से है तो उन्होंने ही मनोज को भाषा सिखने में मदद की।  ​मनोज एक वर्सटाइल और मेथड एक्टर है उन्होंने काफी समय भाषा सिखने के लिए सेट बिताया क्यू उन्हें पता था की कठिन भाषाओं में से ओड़िआ एक कठिन भाषा है। ​सूत्रों माने तो " मनोज बुधिया सिंह के कोच बिरंचि दास किरदार निभाने लिए उत्सुक थे , ​उन्हें  किरादर के बारे मैं हर बात की जानकारी थी. सौमिंद्र ने उड़िया भाषा तथा लहजे की हर बारीक़ जानकारी मनोज को दी , उनकी इस मदद से फिल्म के कई सिन में मनोज ओड़िसा के ही है ऐसा प्रतीत होता है। 

दैत्य की भूमिका में लिएम नीसन

पैट्रिक नेस के २०११ में प्रकाशित फंतासी नावेल अ मॉन्स्टर कॉल्स पर आधारित डायरेक्टर जे ए बायोना की फिल्म अ मॉन्स्टर कॉल्स में एक्शन स्टार लिएम नीसन बिलकुल अलग अवतार में नज़र आयेंगे। कोनोर ओ’मले की माँ  टर्मिनल डिजीज से पीड़ित है। उधर हैरी उसे डराता रहता है। कोनोर इससे काफी परेशान रहता है।  ऐसे में उसे एक एक दैत्य मिलता है। यह दैत्य असल में पत्तियों और टहनियों का गुच्छा है, जिसने मानव आकर ले लिए है। वह उसे कहानियाँ सुनाता है। फिल्म में कोनोर की भूमिका से लेविस मैकडौगल का डेब्यू हो रहा है। ऑस्कर के लिए तीन बार नामित एक्ट्रेस सिगूरनी वीवर ने कोनोर की दादी और फ़ेलिसिटी जोंस ने कोनोर की माँ का किरदार किया है। इस फिल्म में लिएम नीसन दैत्य के अनोखे किरदार में हैं। फिल्म में टोबी केबेल, जेम्स मेलविले, लिली-रोज और गेराल्डिन चैपलिन की भी ख़ास भूमिका है। अ मॉन्स्टर कॉल्स २१ अक्टूबर को रिलीज़ हो रही है। 

Tuesday 19 July 2016

हैप्पी भाग जाएगी में सन्नी देओल के यारा ओ यारा गाने पर थिरकेंगे जिम्मी शेरगिल

फिल्म हैप्पी भाग जाएगी  में अभिनेता जिमी शेरगिल म्युनिसिपल कॉर्पोरेटर बग्गा पाजी  किरदार में नज़र आएंगे,  जिमी , सनी देओल के फमस सांग यारा ओ यारा पर  परफॉर्म करते  हुए  नज़र आएंगे , सूत्रों को मुताबिक यह डांस परफॉरमेंस इस फिल्म का हाइलाइट और सबसे सबसे इंटरेस्टिंग पॉइंट होगा. 
बग्गा इस फिल्म में अमृतसर के सबसे भयावह म्युनिसिपल वार्ड के म्युनिसिपल कॉर्पोरेटर हैं, जो अक्सर  सर उठाये, आँखों पर  स्पोर्टिंग एविएटर शेड्स लगाए  , ढीली सोने की चैन पहने, हलके लाल रंग की  एनफील्ड  बुलेट पर शहर  के सकरी गलियों में घूमते हुए नज़र आएंगे,संक्षेप में यह कह सकते हैं की बग्गा से शो हैं न की बग्गा शो से. मुद्दसर अज़ीज़ द्वारा निर्देशित इस फिल्म में डायना पेंटी , अभय देओल , अली फैसल , और जिमी शेरगिल अहम भूमिका में नज़र आएंगे और आनंद एल राय और कृषिका लुल्ला  इस फिल्म को प्रोडूस कर रहे हैं यह फिल्म १९ अगस्त को सिनेमा घरों में प्रदर्शित की जाएगी.

नहीं रहे मनोज कुमार को भारत कुमार बनाने वाले केवल कश्यप

मनोज कुमार को आज का भारत कुमार बनाने वाले फिल्म निर्माता निर्देशक केवल पी कश्यप नहीं रहे।  साठ के दशक की श्वेत श्याम फिल्मों के युग में मनोज कुमार फिल्म हरियाली और रास्ता से हिट हो चुके थे।  लेकिन, कहीं न कहीं, उनका चॉकलेटी हीरो, राजेंद्र कुमार के जुबली कुमार से मात खा रहा था।  ऐसे समय में केवल पी कश्यप उनके पास शहीद फिल्म का प्रस्ताब लेकर आये।  शहीद, भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव के क्रांतिकारी कारनामों  पर फिल्म थी।  इस फिल्म में बॉलीवुड के चॉकलेटी हीरो मनोज कुमार को भगत सिंह का किरदार सौंपा गया था।  कश्यप की फिल्म में भगत सिंह का किरदार मनोज कुमार को दिया जाना कुछ जम नहीं रहा था।  लेकिन, जब फिल्म रिलीज़ हुई तब न केवल भविष्य के भारत कुमार ने जन्म लिया, बल्कि इस फिल्म ने प्राण और प्रेम चोपड़ा के करियर में भी ज़बरदस्त बदलाव किया।  फिल्म में प्राण ने सुहृदय डाकू केहर सिंह का किरदार किया था।  प्रेम चोपड़ा सुखदेव बने थे।  फिल्म में छोटे मोटे विलेन बनने वाले अभिनेता मनमोहन चन्द्रशेखर आज़ाद का किरदार करके अमर हो गए।  इस फिल्म में कामिनी कौशल ने भगत सिंह की माँ का किरदार किया था।   इस फिल्म के बाद कामिनी कौशल चरित्र भूमिकाएं करने लगी।  शहीद को १३ वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों में हिंदी में श्रेष्ठ फीचर फिल्म, राष्ट्रीय एकता की फिल्म का नर्गिस दत्त अवार्ड और बी के दत्त और दीन दयाल शर्मा को बेस्ट स्क्रीनप्ले का अवार्ड्स जीता।  केवल कश्यप ने अपना फिल्म करियर फिल्मों के पब्लिसिस्ट के बतौर शुरू किया था।  उन्होंने प्यार का सागर, प्रोफेसर, ये रास्ते हैं प्यार के, मुझे जीने दो, मेरे मेहबूब, वह कौन थी, ग़ज़ल और अब्दुल्ला जैसी फिल्मों की पब्लिसिटी  सम्हाली थी।  उन्होंने दो फिल्मों शहीद और परिवार का निर्माण किया।  परिवार, विश्वास और चोरी चोरी जैसी तीन फिल्मों का निर्देशन किया।  परिवार सुपर हिट फिल्म थी।  

रिकॉर्डिंग रूम से भाग गई थी मुबारक बेगम

पचास से सत्तर तक के तीन दशक ! फिजाओं में बेमुरव्वत बेवफा, मुझ को अपने गले लगा लो, कभी तन्हाइयों में हमारी याद आयेगी, हम हाल ए दिल सुनायेंगे, मेरे आंसुओं पे न मुस्कुराना, तू ने तेरी नज़र ने, देवता तुम हो मेरा सहारा, जब इश्क कहीं हो जाता है, ज़रा कह दो फिजाओं से, वादा हमसे किया, सांवरिया तेरी याद में, इतने करीब आ के भी, रात कितनी हसीं ज़िन्दगी मेहरबान, तेरी नज़र ने काफिर बना दिया,, वादा हमसे, साकिया एक जाम, कैसी बीन बजाई, मैं हो गई रे बदनाम, हसीनों के धोखें में न आना, यह जाने नज़र चिलमन से अगर, जलवा जो तेरा देखा, आदि गीत गूंजा करते थे। इन गीतों की गायिका थी बिलकुल अलग मगर दमदार आवाज़ की मल्लिका मुबारक बेगम। उनका स्नेहल भाटकर के संगीत निर्देशन में गाया फिल्म हमारी याद आएगी का शीर्षक गीत कभी तन्हाइयों में हमारी याद आएगी अपनी अलग किस्म की धुन और उसी के अनुरूप गूंजती मुबारक बेगम की आवाज़ के कारण आज भी यादगार है। 
चुरू राजस्थान में १९४० में जन्मी मुबारक बेगम ने अपने सिंगिंग करियर की शुरुआत आल इंडिया रेडियो पर गीत गाने से की। उनका पहला गीत संगीतकार शौकत देहलवी, बाद में जिन्हें नाशाद नाम से जाना गया, ने फिल्म आइये के लिए रिकॉर्ड करवाया था। इस फिल्म के दो गीत मोहे आने लगी अंगडाई और आजा आजा बालम बेहद सफल हुए थे। लेकिन, इस गीत से पहले मुबारक बेगम दो बार रिकॉर्डिंग रूम छोड़ कर भाग गई थी। संगीतकार रफीक गजनवी ने उनका गायन रेडियो पर सुना था। उन्होंने अपनी फिल्म के लिए गीत गाने के लिए मुबारक को स्टूडियो में बुलाया। मगर वहां की भीड़ देख कर मुबारक बेगम के मुंह से आवाज़ तक नहीं निकल सकी। वह स्टूडियो से भाग गई।उन्हें दूसरी बार श्याम सुंदर ने फिल्म भाई बहन के गीत को गाने का मौका दिया। लेकिन, पहले वाली कहानी फिर दोहराई गई। मुबारक बेगम का समय बदला नर्गिस की माँ जद्दन बाई से मिलने के बाद। जद्दन बाई ने उनका गाना सुना। उनकी हौसला अफ़ज़ाई की। उन्होंने उनकी आवाज़ की तारीफ कई संगीतकारों से की। नतीज़तन, मुबारक बेगम को आइये फिल्म में गाने का मौका मिला। इसके बाद तो मुबारक बेगम ने नौशाद, सचिन देव बर्मन, शंकर जयकिशन, खय्याम, दत्ताराम, आदि कई संगीतकारों के लिए गीत गए। उन्होंने हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के सभी बड़े सितारों की फिल्मों के चरित्रों को अपनी आवाज़ दी।  
दिलीप कुमार और वैजयंतीमाला की फिल्म मधुमती में मुबारक बेगम का गाया गीत ‘हम हाले दिन सुनायेंगे’ काफी पॉपुलर हुआ था। उनकी आवाज़ का जादू ही ऐसा था कि लता मंगेशकर के गाये फिल्म के तमाम गीतों के बीच भी मुबारक बेगम का गाया यह गीत दर्शकों के कानों में रस घोलने में कामयाब हुआ था। कैसी विडम्बना है कि मुबारक बेगम अपने दिल का हाल सुनाना चाहती थी, लेकिन, कोई सुनने को तैयार नहीं था। लता मंगेशकर और आशा भोंसले की आवाजों के वर्चस्व में मुबारक बेगम अप्रासंगिक हो गई। उनके गीत लता मंगेशकर या आशा भोंसले से रिकॉर्ड कराये जाने लगे। जब जब फूल खिले का परदेसियों से न अखियाँ मिलाना गीत मुबारक बेगम की आवाज़ में रिकॉर्ड हुआ था। लेकिन, जब एल्बम बाहर आया तो इसमे लता मंगेशकर की आवाज़ थी। इसके साथ ही मुबारक बेगम निराशा के गर्त में डूबती चली गई। १९८० में निर्मित फिल्म राम तो दीवाना है का सांवरिया तेरी याद मुबारक बेगम का गाया आखिरी गीत बन गया। 

मुबारक बेगम का आखिरी समय फांकों में गुजरा। पौष्टिक आहार की कमी ने उन्हें बीमार बना दिया था। उन्हें पेट की बीमारी हो गई। उनकी बेटी का पिछले साल निधन भी बीमारी के कारण हुआ। उन्हें अपने इलाज़ और खाने पीने के लिए एनजीओ और ट्रस्ट के सहारे रहना पड़ा। लता मंगेशकर ट्रस्ट उनकी नियमित मदद करता था। लेकिन, इसकी एक सीमा थी। सलमान खान ने भी एक बार उनके इलाज़ के लिए एकमुश्त धनराशि हॉस्पिटल को दी थी। कुछ महीना पहले महाराष्ट्र सरकार ने ८० हजार के चेक के साथ उनके इलाज़ का पूरा खर्च वहन करने का ऐलान किया था। एक पूर्व विधायक यशवंत बाजीराव उन्हें पांच हजार रुपये की नियमित मदद दिया करते थे। सोमवार की रात मुबारक बेगम सभी मदद को नकार कर अलविदा कह गई।  


रिकॉर्डिंग रूम से घबरा कर भाग कड़ी हुई थी मुबारक बेगम

पचास से सत्तर तक के तीन दशक ! फिजाओं में बेमुरव्वत बेवफा, मुझ को अपने गले लगा लो, कभी तन्हाइयों में हमारी याद आयेगी, हम हाल ए दिल सुनायेंगे, मेरे आंसुओं पे न मुस्कुराना, तू ने तेरी नज़र ने, देवता तुम हो मेरा सहारा, जब इश्क कहीं हो जाता है, ज़रा कह दो फिजाओं से, वादा हमसे किया, सांवरिया तेरी याद में, इतने करीब आ के भी, रात कितनी हसीं ज़िन्दगी मेहरबान, तेरी नज़र ने काफिर बना दिया,, वादा हमसे, साकिया एक जाम, कैसी बीन बजाई, मैं हो गई रे बदनाम, हसीनों के धोखें में न आना, यह जाने नज़र चिलमन से अगर, जलवा जो तेरा देखा, आदि गीत गूंजा करते थे। इन गीतों की गायिका थी बिलकुल अलग मगर दमदार आवाज़ की मल्लिका मुबारक बेगम। उनका स्नेहल भाटकर के संगीत निर्देशन में गाया फिल्म हमारी याद आएगी का शीर्षक गीत कभी तन्हाइयों में हमारी याद आएगी अपनी अलग किस्म की धुन और उसी के अनुरूप गूंजती मुबारक बेगम की आवाज़ के कारण आज भी यादगार है। 
चुरू राजस्थान में १९४० में जन्मी मुबारक बेगम ने अपने सिंगिंग करियर की शुरुआत आल इंडिया रेडियो पर गीत गाने से की। उनका पहला गीत संगीतकार शौकत देहलवी, बाद में जिन्हें नाशाद नाम से जाना गया, ने फिल्म आइये के लिए रिकॉर्ड करवाया था। इस फिल्म के दो गीत मोहे आने लगी अंगडाई और आजा आजा बालम बेहद सफल हुए थे। लेकिन, इस गीत से पहले मुबारक बेगम दो बार रिकॉर्डिंग रूम छोड़ कर भाग गई थी। संगीतकार रफीक गजनवी ने उनका गायन रेडियो पर सुना था। उन्होंने अपनी फिल्म के लिए गीत गाने के लिए मुबारक को स्टूडियो में बुलाया। मगर वहां की भीड़ देख कर मुबारक बेगम के मुंह से आवाज़ तक नहीं निकल सकी। वह स्टूडियो से भाग गई।उन्हें दूसरी बार श्याम सुंदर ने फिल्म भाई बहन के गीत को गाने का मौका दिया। लेकिन, पहले वाली कहानी फिर दोहराई गई। मुबारक बेगम का समय बदला नर्गिस की माँ जद्दन बाई से मिलने के बाद। जद्दन बाई ने उनका गाना सुना। उनकी हौसला अफ़ज़ाई की। उन्होंने उनकी आवाज़ की तारीफ कई संगीतकारों से की। नतीज़तन, मुबारक बेगम को आइये फिल्म में गाने का मौका मिला। इसके बाद तो मुबारक बेगम ने नौशाद, सचिन देव बर्मन, शंकर जयकिशन, खय्याम, दत्ताराम, आदि कई संगीतकारों के लिए गीत गए। उन्होंने हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के सभी बड़े सितारों की फिल्मों के चरित्रों को अपनी आवाज़ दी।  
दिलीप कुमार और वैजयंतीमाला की फिल्म मधुमती में मुबारक बेगम का गाया गीत ‘हम हाले दिन सुनायेंगे’ काफी पॉपुलर हुआ था। उनकी आवाज़ का जादू ही ऐसा था कि लता मंगेशकर के गाये फिल्म के तमाम गीतों के बीच भी मुबारक बेगम का गाया यह गीत दर्शकों के कानों में रस घोलने में कामयाब हुआ था। कैसी विडम्बना है कि मुबारक बेगम अपने दिल का हाल सुनाना चाहती थी, लेकिन, कोई सुनने को तैयार नहीं था। लता मंगेशकर और आशा भोंसले की आवाजों के वर्चस्व में मुबारक बेगम अप्रासंगिक हो गई। उनके गीत लता मंगेशकर या आशा भोंसले से रिकॉर्ड कराये जाने लगे। जब जब फूल खिले का परदेसियों से न अखियाँ मिलाना गीत मुबारक बेगम की आवाज़ में रिकॉर्ड हुआ था। लेकिन, जब एल्बम बाहर आया तो इसमे लता मंगेशकर की आवाज़ थी। इसके साथ ही मुबारक बेगम निराशा के गर्त में डूबती चली गई। १९८० में निर्मित फिल्म राम तो दीवाना है का सांवरिया तेरी याद मुबारक बेगम का गाया आखिरी गीत बन गया। 

मुबारक बेगम का आखिरी समय फांकों में गुजरा। पौष्टिक आहार की कमी ने उन्हें बीमार बना दिया था। उन्हें पेट की बीमारी हो गई। उनकी बेटी का पिछले साल निधन भी बीमारी के कारण हुआ। उन्हें अपने इलाज़ और खाने पीने के लिए एनजीओ और ट्रस्ट के सहारे रहना पड़ा। लता मंगेशकर ट्रस्ट उनकी नियमित मदद करता था। लेकिन, इसकी एक सीमा थी। सलमान खान ने भी एक बार उनके इलाज़ के लिए एकमुश्त धनराशि हॉस्पिटल को दी थी। कुछ महीना पहले महाराष्ट्र सरकार ने ८० हजार के चेक के साथ उनके इलाज़ का पूरा खर्च वहन करने का ऐलान किया था। एक पूर्व विधायक यशवंत बाजीराव उन्हें पांच हजार रुपये की नियमित मदद दिया करते थे। सोमवार की रात मुबारक बेगम सभी मदद को नकार कर अलविदा कह गई।  


Sunday 17 July 2016

जब कानन देवी को देख कर गवर्नर खड़े हो गए थे

कानन देवी ने फिल्मों में काम करना तब से शुरू कर दिया था, जब इस पेशे में अच्छे घर की औरतें नहीं आती थी।  हालाँकि, शुरूआती फिल्म निर्माताओं ने, जैसे दादा फालके आदि, अपने घर की औरतों को फिल्मों में काम करने के लिए प्रेरित किया।  लेकिन, उस समय वैश्याएँ और तवायफें ही हिंदी फिल्मों की नायिका बना करती थी।  बंगाल की कानन देवी उन कुछ भले घर की महिलाओं में थी, जिन्होंने फिल्मों में काम करना शुरू किया।  उनकी पहली फिल्म जॉयदेव एक मूक फिल्म थी और १९२६ में रिलीज़ हुई थी। उनकी पहली सवाक फिल्म जोर बारात १९३१ में रिलीज़ हुई।  इस फिल्म की रिलीज़ के साथ ही बंगाली फिल्म उद्योग में एक सितारे का जन्म हुआ। कानन देवी की चमक अगले तीन दशकों तक बरकरार रही। लेकिन, उन्हें अपनी स्वीकार्यता बनाने के लिए लम्बा संघर्ष करना पड़ा।  क्योंकि, वह एक फिल्म अभिनेत्री ही तो थी। परन्तु, धीरे धीरे फिल्म इंडस्ट्री ने उन्हें स्वीकार किया, उचित सम्मान दिया।  वह पहली ऐसी अभिनेत्री थी, जिन्हे उनके साथी वर्कर मैडम कह कर बुलाते थे।  परन्तु, इसके बावजूद समाज में उनकी उपेक्षा बनी हुई थी। लोग उनके अभिनय की सराहना करते थे, उनके गाये गीत थे, उनके द्वारा स्थापित फैशन ट्रेंड अपनाए जाते थे।  लेकिन, उन्हें सामजिक जलसों में आमंत्रित नहीं किया जाता था। कोई भी प्रतिष्ठित व्यक्ति उनसे शादी करने के सपने नहीं देखता था। यह कानन देवी का खुद पर भरोसा, कठिन परिश्रम कर सब कुछ पाने का इरादा और विपरीत परिस्थितियों को जीतने का जज़्बा था, जिसने कानन देवी को वह स्थान दिला दिया।  एक समय ऐसा आया, जब वह एक समारोह में आमंत्रित की गई तो उस समय के पश्चिम बंगाल के गवर्नर धर्म वीर उनके स्वागत में अपनी कुर्सी से उठ कर खड़े हो गए थे। कानन देवी की पहली हिंदी फिल्म हरी भक्ति १९३४ में रिलीज़ हुई थी।  वह अच्छी गायिका भी थी। उनकी तेज़ रफ़्तार से गए गीतों का कई संगीतकारों ने बढियां उपयोग किया। उनके कुछ उल्लेखनीय गीतों में ऐ चाँद छुप न जाना, ज़रा नैनों से नैना, दूर देश का रहने वाला, प्रभुजी प्रभुजी तुम, लछमी मूरत दरस दिखाये, सांवरिया मन भाये रे, हमारी नगरिया में, पनघट पे मधु, तुम बिन कल न आये, चली पवन हरसो, आदि थे। १९७७ में उन्हें दादासाहब फालके अवार्ड दिया गया। उनकी मृत्यु १७ जुलाई १९९२ को हुई थी।