Thursday, 27 June 2019

Article 15 से पहले बनी थी जाति पर फ़िल्में


अनुभव सिन्हा की इस शुक्रवार प्रदर्शित हो रही फिल्म आर्टिकल १५ के बारे में, फिल्म के निर्माता-निर्देशक अनुभव सिन्हा से लेकर फिल्म के नायक आयुष्मान खुराना तक दावा कर रहे हैं कि यह फिल्म दलित समस्या पर संविधान के अनुच्छेद १५ की रोशनी में हैं। पर, इसे क्राइम थ्रिलर फिल्म भी कहा जा रहा है।  इससे, फिल्म का मकसद सामजिक सुधार से ज़्यादा सनसनी फैलाना है।  इस लिहाज़ से, पुराने जमाने के फिल्मकार और एक्टर साहसी साबित होते हैं, जिन्होंने छुआछूत और हरिजन उद्धार पर एक नहीं कई कई फ़िल्में बनाई और जनमानस को प्रभावित कर पाने में भी सफल रहे।

बॉम्बे टॉकीज की अछूत कन्या और जीवन प्रभात
बॉम्बे टॉकीज की तीन हस्तियों निर्देशक निर्माता हिमांशु राय, उनकी निर्माता और अभिनेत्री पत्नी देविका रानी तथा निर्देशक फ्रेंज़ ऑस्टिन की तिकड़ी ने, १९३५ और १९३६ में, दो ज़बरदस्त प्रभावशाली फिल्मों जीवन प्रभात और अछूत कन्या का निर्माण किया।  इन फिल्मों से हरिजन समस्या को सामजिक समरसता के प्रकाश में हरिजन और सवर्ण विवाह और पुनर्विवाह जैसे संदेशों के जरिये उठाया।  इन फिल्मों में हरिजन चरित्र करने वाले तमाम एक्टर सवर्ण ब्राह्मण थे। इसी कड़ी में, हरिजन लड़की और सवर्ण लडके के प्रेम और विवाह के कथानक पर, बिमल रॉय की सुनील दत्त और नूतन अभिनीत फिल्म सुजाता भी थी।  इनमे से किसी ने भी भाषणबाजी या समाज को  ललकारने की कोशिश नहीं की, बल्कि सकारात्मक सन्देश दिया।

बेनेगल  की अंकुर और रे की सद्गति
बॉम्बे टॉकीज की फिल्मों में जहाँ सामाजिक सद्भाव का माहौल रहा करता था, वही नए दौर के सिनेमा में जाति प्रथा के खिलाफ दलित आवाज़ की वकालत की गई थी। श्याम बेनेगल की फिल्म अंकुर में, एक दलित महिला का शोषण करने वाले जमींदार के  घर में एक छोटे बच्चे के पत्थर फेंकने से हुई थी।  वही सत्यजीत रे की सद्गति मुंशी प्रेमचंद की कहानी पर फिल्म थी। अंकुर के इस  छोटे विरोध  कोशेखर कपूर एक मल्लाह जाति की फूलन देवी के कत्लेआम तक ले आये थे, जिसकी परिणीति शूद्र : द राइजिंग में जाति प्रथा की अपने तौर पर व्याख्या में हुई थी।

ख़ास है कबीर सिंह
शाहिद कपूर की फिल्म कबीर सिंह बॉक्स ऑफिस पर सुपर हिट फिल्म साबित हुई है । यहाँ तक कि इस फिल्म को हिंदी इतर भारत में भी पसंद किया जा रहा है । कबीर सिंह, मूल रूप से तेलुगु फिल्म अर्जुन रेड्डी की रीमेक है । कबीर सिंह और अर्जुन रेड्डी में बड़ा फर्क यह है कि जहाँ अर्जुन रेड्डी में नायक-नायिका के विवाह में जाति आड़े आती थी, वही कबीर सिंह में यह एंगल हटा लिया गया है । क्यों ?

जाति के खिलाफ खाप
जाति के खिलाफ कुछ दूसरी फिल्मों में खाप, चौरंगा, आरक्षण और हालिया रिलीज़ फिल्म धड़क भी थी।  धड़क के अलावा बाकी की फ़िल्में सतही तौर पर बनाई गई प्रचारात्मक फ़िल्में थी, जो विषय से भटकने वाली फ़िल्में थी। इन फिल्मों की ख़ास बात यह थी कि इन ज़्यादातर फिल्मों को सवर्ण (ब्राह्मण) ने बनाया था। कथित रूप से जाति प्रथा के खिलाफ कुछ फिल्मों में एकलव्य द रॉयल गार्ड, ओमकारा, मशान, कोर्ट, आदि भी थी। 

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