Sunday, 14 August 2022

इस साल भी देश से दूर बॉलीवुड !


स्वतंत्रता दिवस सप्ताहांत २०२२ में बॉलीवुड की दो फ़िल्में लाल सिंह चड्डा और रक्षा बंधन ११ अगस्त २०२२ को प्रदर्शित हुई है. लाल सिंह चड्डा
, हॉलीवुड की ऑस्कर पुरस्कार विजेता फिल्म फारेस्ट गंप की अधिकारिक रीमेक फिल्म है. इस फिल्म के मुख्य चरित्र लाल सिंह चड्डा का सफ़र दशकों लम्बा है. वह सेना में भी भर्ती होता है. पर लेखक अतुल कुलकर्णी ने इसे हॉलीवुड के चश्मे से लिखा है, क्योंकि, अमेरिकी सेना में ही मंदबुद्धि भर्ती हो सकते है. आमिर खान की अन्य दूसरी फिल्मों के तरह लाल सिंह चड्डा विवादित घटनाक्रम जोड़े हो सकती है. पर देश की बात नहीं कर सकती. वही अक्षय कुमार की फिल्म रक्षा बंधन भाई और उसकी चार बहनों के बीच के प्यार के प्यार की पारिवारिक कथा है. ऐसे कथानक में देश प्रेम का क्या काम ! मतलब साफ़ कि स्वतंत्रता दिवस साप्ताहांत में कोई भी देश प्रेम की फिल्म सिनेमाघरों में नहीं.




देश की बात नहीं - वास्तविकता तो यह है कि बॉलीवुड ने इस साल कोई भी ऎसी फिल्म नहीं बनाई, जो देश की बात करती हो, देश की समस्या से सरोकार रखती हो. द कश्मीर फाइल्स ने अवश्य कश्मीर के घटनाक्रम को परदे पर ला कर पूरे देश को झकझोर दिया था. देश प्रेम हिलोरे लेने लगा था. यह फिल्म अब तक कि सबसे अधिक कारोबार करने वाली फिल्म भी भी है. परन्तु, बॉलीवुड की अन्य दूसरी फ़िल्में अतीत को तो परदे पर उकेरती हैं, पर देश के सन्दर्भ में नहीं. गंगुबाई काठियावाड़ी, सम्राट पृथ्वीराज, शमशेरा, आदि अंग्रेजो के समय के भारत पर फिल्म थी. सम्राट पृथ्वीराज को अंतिम हिन्दू सम्राट पृथ्वीराज चौहान के जीवन पर फिल्म थी. पर यह फ़िल्में दर्शकों के दिलों को छू तक नहीं सकी थी. उर्दू मिश्रित संवादों अरु गीतों ने फिल्म की आत्मा नष्ट कर दी थी.




ईमानदार मेजर - इस लिहाज से, २६/११ के मुंबई हमले पर फिल्म मेजर और स्पेस रिसर्च विज्ञानी नाम्बी नारायणन के जीवन पर फिल्म राकेट्री द नाम्बी इफ़ेक्ट अधिक ईमानदार फ़िल्में थी. यह फ़िल्में अपने कथ्य और तथ्यों की ईमानदारी के कारण दर्शकों को प्रभावित कर पाने में सफल हुई. परन्तु, सैन्य जीवन को एक्शन के नजरिये से देखना आदित्य रॉय कपूर को फिल्म राष्ट्र कवच ओम में भारी पडा. यह फिल्म अपनी बेईमानी के कारण दर्शकों को प्रभावित नहीं कर सकी. कंगना रानौत की वैचारिक बेईमानी उनकी एजेंट फिल्म धाकड़ पर भारी पड़ी. फिल्म अच्छे एक्शन के बाद भी दर्शकों को सिनेमाघरों तक नहीं ला सकी. खबर लेखन और अभिनय में कच्ची तपसी पन्नू महिला क्रिकेटर मिताली राज पर फिल्म शाबास मिथु की लुटिया डुबो गई.




जोश कहाँ ! - इस साल प्रदर्शित होने वाली फिल्मों में भी कोई फिल्म जोश भरने वाली नहीं लगती. हालाँकि, इन फिल्मों की श्रंखला में कंगना रानौत की फाइटर पायलट पर तेजस, अक्षय कुमार की कभी विवादित रहे राम सेतु पर थ्रिलर फिल्म राम सेतु, देश प्रेम की आड़ में एक्शन फिल्म योद्धा तथा १९७१ के भारत पाकिस्तान युद्ध पर फिल्म पिप्पा के नाम उल्लेखनीय है. इन तमाम फिल्मों में किसी के भी सामान्य से अधिक प्रभाव छोड़ पाने की उम्मीद नहीं की जा सकती है.




दक्षिण से इतिहास - इस लिहाज से दक्षिण की फ़िल्में कहीं बहुत आगे हैं. निर्देशक एस एस राजामौली की फिल्म आर आर आर ने अंग्रेजो के खिलाफ जनजाति विद्रोह की घटना को जीवंत कर दिया था. यहाँ याद आ जाती है यशराज फिल्म की महँगी फिल्म शमशेरा, जो साधारण फिल्म बन कर रह जाती है. दक्षिण की फिल्मों ने भारत के प्राचीन इतिहास को परदे पर ला कर अखिल भारतीय दर्शकों को अपनी ओर खींचने का प्रयास कलिया है. बिम्बसार प्राचीन भारत के राजा बिम्बसार को आधुनिक सन्दर्भ में पेश करती थी. मणिरत्नम निर्देशित पोंनियिन सेल्वेन (पीएस१) भी चोल साम्राज्य के वैभव को भव्य तरीके से पेश कर रही है. एक तेलुगु फिल्म अखंड भी शिव नाम की महिमा को आधुनिक सन्दर्भ में बखूबी पेश करती थी.  

No comments: