भारतीय भाषाओँ हिंदी, तेलुगु, तमिल, कन्नड़, मलयालम, पंजाबी, आदि की फिल्मो के बारे में जानकारी आवश्यक क्यों है ? हॉलीवुड की फिल्मों का भी बड़ा प्रभाव है. उस पर डिजिटल माध्यम ने मनोरंजन की दुनिया में क्रांति ला दी है. इसलिए इन सब के बारे में जानना आवश्यक है. फिल्म ही फिल्म इन सब की जानकारी देने का ऐसा ही एक प्रयास है.
Monday, 6 October 2014
'स्लैम लंदन' में इंडिया वाले शाहरुख़ खान
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फोटो फीचर
मैं हिंदी भाषा में लिखता हूँ. मुझे लिखना बहुत पसंद है. विशेष रूप से हिंदी तथा भारतीय भाषाओँ की तथा हॉलीवुड की फिल्मों पर. टेलीविज़न पर, यदि कुछ विशेष हो. कविता कहानी कहना भी पसंद है.
Sunday, 5 October 2014
पीआर ने करवाया शाहरुख़ खान की प्रेस कांफ्रेंस का बायकाट
इसमे कोई शक नहीं कि बॉलीवुड फिल्म स्टार्स के पीआर पर्सन एर्रोगंट एनिमल हैं. इसे एक बार फिर चेन्नई में साबित कर दिया गया. ४ अक्टूबर को शाहरुख़ खान चेन्नई में थे. उन्हें दीपिका पादुकोण, अभिषेक बच्चन और बोमन ईरानी के साथ एक होटल में आयोजित प्रेस कांफ्रेंस शाम ४.३० पर अटेंड करनी थी. चेन्नई के सभी जॉर्नलिस्ट समय पर पहुँच चुके थे. परन्तु रात ८.०० बजे तक पूरी स्टार कास्ट क्या, उनकी प्रेस कांफ्रेंस के आयोजकों का तक पता नहीं था. जब पत्रकारों ने हैप्पी न्यू ईयर के पीआर से इस बारे में पूछा तो उनका जवाब था आप लोग समय पर क्यों आ गए. खेद जताने के बजाय पीआर का यह लहजा घोर आपत्तिजनक था. इस पर पत्रकारों ने पीसी का बायकाट कर दिया. वह शाहरुख खान के इस वादे के बावजूद वापस नहीं आये कि खान सभी से इंडिविजुअल बाते करेंगे.
इसमे कोई शक नहीं कि पीआर कम्युनिटी अब काफी एर्रोगंट हो चली है. लखनऊ की एक प्रेस कांफ्रेंस में जब एक फिल्म के कलाकार लेट हो रहे थे तो पत्रकारों ने पीआर से उनके ना पहुँचाने के बारे में जानकारी करनी चाहिए तो पीआर का कहना था कि धैर्य रखिये, आपके लिए अच्छा खाने का प्रबंध किया गया है. इस पर लखनऊ के पत्रकार भड़क गए. उनका कहना था कि क्या आप हमें भूखे नंगे समझते हैं कि हम आपका खाना खाने आते हैं. इस पर सभी स्टार्स को लखनऊ के पत्रकारों से माफ़ी मांगनी पड़ी थी.
सितारों की यह बुरी आदत मुंबई के पत्रकारों के कारण लगी है. वहां शायद ही कोई प्रेस कांफ्रेंस होती हो जो तीन चार घंटा देर से न शुरू होती हो. फिल्म स्टार्स जान बूझ कर देर से आते हैं. इससे उनकी स्टार ईगो संतुष्ट होती है. जब उनसे देर से आने का कारण पूछा जाता है तो उनका घिसा पिटा जवाब होता है कि ट्रैफिक प्रॉब्लेम्. हालांकि, जिस रास्ते से पत्रकार आते हैं, उसी रस्ते का इस्तेमाल स्टार्स भी करते हैं.
मगर यहाँ सवाल पीआर का है. वह इतनी एर्रोगंट कैसे हो सकते हैं. किसी भी प्रेस कांफ्रेंस के दौरान उनका यह रवैया काफी दुखद होता है. एक बार एक फिल्म का प्रीव्यू होना था. प्रीव्यू का समय हो गया था. फिल्म एक छोटे स्टार की थी. लेकिन, फिल्म तभी शुरू हुई, जब तक वह सितारा प्रीव्यू थिएटर पर पहुँच नहीं गया. जब पीआर से पूछा गया तो उनका जवाब था, पत्रकार तो आते रहते हैं. उनके कहने से फिल्म कोई थोड़े ही शुरू की जाएगी. मुंबई के पत्रकारों को इसका इलाज़ ढूंढना होगा. वह कोल्ड ड्रिंक और सैंडविच के लिए घंटों सितारों का बेसब्र इंतज़ार करते रहते हैं। बहुत से पत्रकार तो ज़मीन पर बैठ कर भी इंटरव्यू कर लेते हैं.अन्यथा, सितारों की इस बुरी आदत का खामियाज़ा दूसरे शहर के पत्रकारों को भुगतना पड़ता है. वैसे इसमे नुकसान स्टार्स का ही ज़्यादा होता है .
इसमे कोई शक नहीं कि पीआर कम्युनिटी अब काफी एर्रोगंट हो चली है. लखनऊ की एक प्रेस कांफ्रेंस में जब एक फिल्म के कलाकार लेट हो रहे थे तो पत्रकारों ने पीआर से उनके ना पहुँचाने के बारे में जानकारी करनी चाहिए तो पीआर का कहना था कि धैर्य रखिये, आपके लिए अच्छा खाने का प्रबंध किया गया है. इस पर लखनऊ के पत्रकार भड़क गए. उनका कहना था कि क्या आप हमें भूखे नंगे समझते हैं कि हम आपका खाना खाने आते हैं. इस पर सभी स्टार्स को लखनऊ के पत्रकारों से माफ़ी मांगनी पड़ी थी.
सितारों की यह बुरी आदत मुंबई के पत्रकारों के कारण लगी है. वहां शायद ही कोई प्रेस कांफ्रेंस होती हो जो तीन चार घंटा देर से न शुरू होती हो. फिल्म स्टार्स जान बूझ कर देर से आते हैं. इससे उनकी स्टार ईगो संतुष्ट होती है. जब उनसे देर से आने का कारण पूछा जाता है तो उनका घिसा पिटा जवाब होता है कि ट्रैफिक प्रॉब्लेम्. हालांकि, जिस रास्ते से पत्रकार आते हैं, उसी रस्ते का इस्तेमाल स्टार्स भी करते हैं.
मगर यहाँ सवाल पीआर का है. वह इतनी एर्रोगंट कैसे हो सकते हैं. किसी भी प्रेस कांफ्रेंस के दौरान उनका यह रवैया काफी दुखद होता है. एक बार एक फिल्म का प्रीव्यू होना था. प्रीव्यू का समय हो गया था. फिल्म एक छोटे स्टार की थी. लेकिन, फिल्म तभी शुरू हुई, जब तक वह सितारा प्रीव्यू थिएटर पर पहुँच नहीं गया. जब पीआर से पूछा गया तो उनका जवाब था, पत्रकार तो आते रहते हैं. उनके कहने से फिल्म कोई थोड़े ही शुरू की जाएगी. मुंबई के पत्रकारों को इसका इलाज़ ढूंढना होगा. वह कोल्ड ड्रिंक और सैंडविच के लिए घंटों सितारों का बेसब्र इंतज़ार करते रहते हैं। बहुत से पत्रकार तो ज़मीन पर बैठ कर भी इंटरव्यू कर लेते हैं.अन्यथा, सितारों की इस बुरी आदत का खामियाज़ा दूसरे शहर के पत्रकारों को भुगतना पड़ता है. वैसे इसमे नुकसान स्टार्स का ही ज़्यादा होता है .
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ये ल्लों !!!
मैं हिंदी भाषा में लिखता हूँ. मुझे लिखना बहुत पसंद है. विशेष रूप से हिंदी तथा भारतीय भाषाओँ की तथा हॉलीवुड की फिल्मों पर. टेलीविज़न पर, यदि कुछ विशेष हो. कविता कहानी कहना भी पसंद है.
Friday, 3 October 2014
कुछ कहता है हैप्पी न्यू ईयर का नया पोस्टर
शाहरुख खान की दीपावली में रिलीज़ होने जा रही फिल्म हैप्पी न्यू ईयर का नया पोस्टर जारी हुआ है। इस पोस्टर में शाहरुख खान अपने आठ पैक एब्स दिखा रहे हैं। उनके पूरे चहरे पर खून लगा हुआ है. अभी तक रिलीज़ हैप्पी न्यू ईयर के पोस्टरों में गाढ़े रंग प्रमुखता से नज़र आता था। इस नए पोस्टर का रंग अपराध और खतरनाक माहौल को बताने वाला है। इस पोस्टर के जरिये फराह खान अपनी एक्शन से भरपूर फिल्म के कई शेड्स और परतों को उघाड़ना चाहती हैं। इस पोस्टर की एक सबसे बड़ी खासियत या यो कहिये कमी है हिंदी फिल्म के पोस्टर पर गलत हिंदी। फिल्म के पोस्टर में ऊपर की और लिखा है- किस्मत बड़ी कुत्ती चिज़ है, कभी भी पलट सकती है। हैप्पी न्यू ईयर २४ अक्टूबर को हिंदी के अलावा तमिल और तेलुगु भाषा में डब कर रिलीज़ की जाएगी. फिल्म में शाहरुख़ खान और दीपिका पादुकोण के अलावा अभिषेक बच्चन, सोनू सूद, बोमन ईरानी और विवान शाह छह हमेशा असफल लोग बने हैं, जो वर्ल्ड डांस कॉम्पिटिशन के बहाने हीरे लूटने जाते हैं। हैप्पी न्यू ईयर का क्लाइमेक्स अबु धाबी में शूट हुआ है।
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Poster
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शगुफ्ता रफ़ीक का नरक, जो स्वर्ग में भी जीना हराम कर देगा !
पिता बेटी जोड़ी महेश भट्ट और पूजा भट्ट एक फिल्म बनाने जा रहे हैं. फिशऑय नेटवर्क की इस फिल्म का टाइटल नरक टू हेल एंड बैक है. इस फिल्म की घोषणा २ अक्टूबर को गांधी जयंती के दिन की गयी, इस फिल्म में ऐजाज़ खान, गुलशन ग्रोवर, मुकुल देव, अली फज़ल, आदि की मुख्य भूमिका है. अभी कुछ और चेहरों का चुनाव होना बाकी है. इस फिल्म की शूटिंग नवंबर से शुरू हो जाएगी. फिल्म की लेखक निर्देशक शगुफ्ता रफ़ीक हैं. यह वही शगुफ्ता रफ़ीक हैं, पिछले दिनों जिनके भट्ट कैंप छोड़ने की खबरें सुर्ख हुई थीं. अपनी फिल्म के बारे में शगुफ्ता कहती हैं, "यह फिल्म आपको स्वर्ग में भी चोट पहुंचाएगी". वैसे नरक टू हेल एंड बैक दो भले लोगों की कहानी है, जो बुरे लोगों का जीना हराम कर देंगे.
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आज जी
मैं हिंदी भाषा में लिखता हूँ. मुझे लिखना बहुत पसंद है. विशेष रूप से हिंदी तथा भारतीय भाषाओँ की तथा हॉलीवुड की फिल्मों पर. टेलीविज़न पर, यदि कुछ विशेष हो. कविता कहानी कहना भी पसंद है.
मानसिक रूप से बीमार कश्मीर का हैदर !
विशाल भरद्वाज क्या क्या हैं, ज़रा गिनिये। वह फिल्म निर्देशक है। निर्माता भी हैं। पहले वह संगीतकार और गीतकार हुआ करते थे। गाने भी लगे। फिल्म लिखना तो लाजिमी था. इतने सब गुणों के साथ हर साल एक फिल्म देना ज़रूरी हो जाता है। बतौर निर्माता वह जितनी फिल्मे बनाते हों, उन्हें समझना ऐरे गैरे नत्थू खैरे के बूते की बात नहीं। ७ खून माफ़, मटरू की बिजली का मंडोला और डेढ़ इश्क़िया ज़्यादातर के सर के ऊपर से निकल गयी। यह फ़िल्में प्रियंका चोपड़ा, अनुष्का शर्मा, इमरान खान, माधुरी दीक्षित, आदि जैसी बड़ी स्टार कास्ट के बावजूद थोड़े दर्शक तक नहीं बटोर सकी। इसी श्रंखला की एक कड़ी हैदर भी लगती है। विशाल भरद्वाज इस फिल्म के निर्माता, निर्देशक और कंपोजर हैं ही, संवाद और पटकथा भी लिखी है। हैदर शेक्सपियर के नाटक हैमलेट पर आधारित है। हैदर के सभी मुख्य चरित्रों की रचना हैमलेट के किरदारों पर ही की गयी है. सिर्फ पृष्ठभूमि पर कश्मीर और आतंकवाद, सेना और नेताओ की मिलीभगत है। हैदर के हैदर यानि हैमलेट के प्रिंस हैमलेट शाहिद कपूर हैं। उनकी माँ गज़ाला यानि गरट्रूड तब्बू बनी है। किंग हैमलेट यानि हैदर के पिता डॉक्टर हिलाल मीर नरेंद्र झा बने हैं। हैमलेट की प्रेमिका ओफेलिआ यानि अर्शिया श्रद्धा कपूर हैं। हैमलेट के घोस्ट आइडेंटिटी मैसेंजर के रूप को इरफ़ान खान ने रूहदार के नाम से किया है। के के मेनन क्लॉडियस उर्फ़ खुर्रम हैं। हैदर के पोलोनियस सेना के अधिकार ललित परिमू हैं। कुछ अन्य चरित्र भी फिल्म के छोटे बड़े अंग हैं. विशाल भरद्वाज की फिल्म के किरदार चाहे हैमलेट से प्रेरित हों, लेकिन, हैदर को विशाल भरद्वाज द्वारा कश्मीर की पृष्ठभूमि पर फिल्म के बतौर देखना होगा। विशाल ने कश्मीर की पृष्ठभूमि रखी है, तो ख़ास मक़सद होगा ही. कभी लगता है कि वह आतंकवादी, आम कश्मीरी, कुटिल नेता और सेना के स्वार्थी अधिकारीयों के गठजोड़ को दिखाना चाहते होने कि किस प्रकार कश्मीर का आवाम आतंकी-नेता-सेना गठजोड़ का शिकार हो रहा है। कभी यह हैमलेट की तर्ज पर एक शाही यहाँ राजनीतिक परिवार के बीच का संघर्ष लगता है। नतीजे के तौर पर हैदर चूं चूं का मुरब्बा बन जाती है। विशाल भारद्वाज इतने ज़्यादा कलात्मक हो जाते हैं कि दर्शक अपनी सीटों पर पहलू बदलने लगता है। उन्होंने हर चरित्र को इतना जटिल बना दिया है कि दर्शक उलझ जाता है और उसके पास उकताने के अलावा कुछ शेष नहीं रहता। फिल्म में ढेरों प्रसंगो को एक में मिला दिया है। क्या आतंकवादी स्वार्थी नेता खुर्रम को मारना चाहते हैं? क्या वह हैदर को आतंकवादी बनाना चाहते हैं? एक करैक्टर के द्वारा विशाल ने दिखाया है कि सेना के बार बार रोकने और तलाशी के कारण लोग मानसिक बीमार हो गए हैं? जबकि, हैदर के किरदार में ऐसे कोई लक्षण नज़र नहीं आते। श्रद्धा कपूर का किरदार कश्मीरी होते हुए भी सामान्य है। नतीजे के तौर पर ऐसे सभी किरदार मिलकर हैदर को कमज़ोर कर देते हैं। विशाल फिल्म को हैमलेट की कहानी पर ओमकारा की तरह बनाते तो फिल्म प्रभावशाली बनती। पर कश्मीर का लोभ उन्हें ले डूबा। हैदर के किरदार में शाहिद कपूर, ग़ज़ल के किरदार में तब्बू और खुर्रम के किरदार में केके मेनन प्रभावित करते हों। शाहिद के पिता की भूमिका में नरेंद्र झा छोटे रोल में भी दर्शकों को आकर्षित करते हैं। अर्शिया के किरदार में श्रद्धा कपूर कमज़ोर रही. इरफ़ान खान अपना काम कर ले जाते हैं।
विशाल भरद्वाज हर क्षेत्र में कमज़ोर साबित होते हैं. यहाँ तक कि संगीत भी प्रभावित नहीं करता। एक दो दृश्यों को छोड़ कर फिल्म बेहद साधारण बन पड़ी है।
विशाल भरद्वाज हर क्षेत्र में कमज़ोर साबित होते हैं. यहाँ तक कि संगीत भी प्रभावित नहीं करता। एक दो दृश्यों को छोड़ कर फिल्म बेहद साधारण बन पड़ी है।
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फिल्म समीक्षा
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एक्शन की बैंग बैंग !
बॉलीवुड की माने तो नक़ल में अक़ल की ज़रुरत नहीं होती. लेकिन, अभिनय करने में तो अक़ल की ज़रुरत होती ही है। सिद्धार्थ आनंद की फिल्म बैंग बैंग इन दोनों कथ्यों को प्रमाणित करने वाली फिल्म है। बताते चलें कि बैंग बैंग हॉलीवुड की जेम्स मैनगोल्ड निर्देशित एक्शन कॉमेडी फिल्म नाइट एंड डे की ऑफिसियल रीमेक फिल्म है। नाइट एंड डे में मुख्य भूमिका टॉम क्रूज और कैमरॉन डियाज की थी. नाइट एंड डे को २०th सेंचुरी फॉक्स ने वितरित किया था. फॉक्स स्टार स्टुडिओ बैंग बैंग के निर्माता हैं। चूँकि, बैंग बैंग ऑफिसियल नक़ल है, इसलिए अकल की क्या ज़रुरत। बैंग बैंग के तमाम एक्शन सींस हू -ब -हू नाइट एंड डे की नक़ल हैं, तो बहुत बढ़िया और हैरतअंगेज बन पड़े हैं। हिंदी दर्शकों के लिए, जो हॉलीवुड फ़िल्में नहीं देखते या जिन्होंने नाइट एंड डे नहीं देखी, बैंग बैंग के एक्शन सांस रोक देने वाले हैं। इन दृश्यों को हॉलीवुड के एक्शन डायरेक्टर और स्टंट मेन से करवाया गया है। इसलिए, इनमे नयापन लगता भी है. सुनील पटेल और विकास शिवरामन के साथ हॉलीवुड के कैमरामैन बेन जेस्पर ने फिल्म की फोटोग्राफी की है. कैमरा स्टंट दृश्यों को बखूबी पकड़ता है, दर्शकों में रोमांच पैदा करता है। बेन जेस्पर पहली किसी फिल्म की फोटोग्राफी कर रहे हैं। फिल्म के प्रभाव के लिहाज़ से बैकग्राउंड म्यूजिक महत्वपूर्ण होता है. बैंग बैंग में जस्टिन जोसे और ऋषि ओबेरॉय इस काम को बढ़िया करते हैं। विशाल- शेखर का संगीत लाउड है. फिल्म के माहौल के अनुरूप है। ऋतिक रोशन और कटरीना कैफ को कमर मटकाने और शरीर तोड़ने का खूब मौका मिला है। अब बात करते हैं अभिनय की। अभिनय की नक़ल नहीं की जा सकती। इसके लिए अभिनय प्रतिभा भी होनी चाहिए। कटरीना कैफ इस डिपार्टमेंट में कमज़ोर ही नहीं, महा कमज़ोर हैं, क्योंकि, उनकी हिंदी अभी तक पिछड़ी हुई है। इस फिल्म में हास्य अभिनय की ज़रुरत थी। कटरीना कैफ हर हाल में कुछ सोचती सी लगती हैं. वह कहीं से भी कैमरों डियाज के आस पास तक नहीं लगती। इस फिल्म में तो वह खूबसूरत भी नहीं लगी हैं। पूरी फिल्म कटरीना के अलावा ऋतिक रोशन के इर्द गिर्द है। ऋतिक की तुलना भी टॉम क्रूज से करना बेकार होगा। वह एक्टर और डांसर बेहतर है, पर उनमे एक एजेंट वाली चालाकी, चपलता और स्फूर्ति नज़र नहीं आती। पता नहीं क्यों, उन्होंने अपने बाल हीरो कट और ब्लॉन्ड रखना ठीक समझा। वह ख़ास प्रभावित नहीं कर पाते। फिल्म के मुख्य विलेन डैनी डैंग्जोप्पा हैं। उनका किरदार कमज़ोर लिखा गया है। इसलिए वह उसे कर ले जाते हैं। जिमी शेरगिल केवल एक सीन में हैं, ठीक है। पवन मल्होत्रा, जावेद जाफरी, कंवलजीत सिंह, दीप्ति नवल, आदि जाने पहचाने चेहरों के साथ ढेरों देसी विदेशी चहरे अपना काम कर ले जाते हैं। एक्शन फिल्मों में कहानी की ख़ास ज़रुरत नहीं होती. परन्तु एजेंट फिल्मों के लिए कोई प्लाट होना ही चाहिए। इस फिल्म में सुभाष नायर ने एक आतंकवादी को पकड़ने के लिए कोहेनूर चोरी का प्लाट तैयार किया है। पर सब कुछ आसानी से गले नहीं उतरता। स्क्रिप्ट बेहद कमज़ोर हो गयी है। सब कुछ बिखरा बिखरा सा लगता है। किसी दृश्य का औचित्य नज़र नहीं आता। बैंग बैंग को अबु धाबी ने को-प्रोडूस किया है। इस फिल्म की तमाम शूटिंग प्राग में की गयी है। फिल्म के समुद्र के तमाम एक्शन सीन थाईलैंड और ग्रीस में फिल्माए गए हैं. खूब बन पड़े हैं। ऋतिक रोशन ने फ्लाईबोर्ड स्टंट के लिए खूब ट्रेनिंग ली और मेहनत की थी। फ्लाईबोर्ड स्टंट और ऍफ़-१ कार को पहली बार किसी हिंदी फिल्म में देखा जायेगा।
बैंग बैंग पांच हजार प्रिंट में रिलीज़ की गयी है. गांधी जयंती, ईद और दशहरा वीकेंड में रिलीज़ बैंग बैंग ज़बरदस्त बिज़नेस करेगी ही. लेकिन,अगर इस फिल्म में कहानी और स्क्रिप्ट पर ध्यान दिया गया होता तो एक बढ़ी बॉलीवुड एक्शन, कॉमेडी और एजेंट फिल्म बन जाती।
बैंग बैंग लखनऊ में सिंगल स्क्रीन शुभम थिएटर और प्रतिभा सिनेमा के अलावा पीवीआर सहारा मॉल और फ़ीनिक्स, एसआरएस मॉल, आई-नॉक्स, फन सिनेमाज और वेव सिनेमाज में लगी है।
बैंग बैंग पांच हजार प्रिंट में रिलीज़ की गयी है. गांधी जयंती, ईद और दशहरा वीकेंड में रिलीज़ बैंग बैंग ज़बरदस्त बिज़नेस करेगी ही. लेकिन,अगर इस फिल्म में कहानी और स्क्रिप्ट पर ध्यान दिया गया होता तो एक बढ़ी बॉलीवुड एक्शन, कॉमेडी और एजेंट फिल्म बन जाती।
बैंग बैंग लखनऊ में सिंगल स्क्रीन शुभम थिएटर और प्रतिभा सिनेमा के अलावा पीवीआर सहारा मॉल और फ़ीनिक्स, एसआरएस मॉल, आई-नॉक्स, फन सिनेमाज और वेव सिनेमाज में लगी है।
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Wednesday, 1 October 2014
टकराएंगी दो फ़िल्में बॉक्स ऑफिस पर होगी बैंग बैंग !!!!
कल दो फ़िल्में रिलीज़ हो रही हैं। कल शुक्रवार नहीं है. मगर, कल गांधी जयंती का अवकाश ज़रूर है. आज, जबकि बड़ी फिल्मों की भरमार है, शुक्रवार कम हो गए हैं. बड़े सितारे एक्सटेंडेड वीकेंड ख़ास पसंद करते हैं। इस बार गांधी जयंती गुरुवार को है. शुक्रवार को दसहरा है. सोमवार को ईद का त्यौहार। यानि, लगातार पांच दिन छुट्टियां ही छुट्टियां। इस लिहाज़ से इस बार का गांधी जयंती वीकेंड बेहद कमाऊ बन गया है। यही कारण है कि इस बार दो बड़ी फ़िल्में आमने सामने है. ह्रितिक रोशन, कटरीना कैफ और डैनी डैंग्जोप्पा की सिद्धार्थ मल्होत्रा निर्देशित फिल्म बैंग बैंग बॉलीवुड की सबसे महंगी फिल्म है। विशाल भरद्वाज की फिल्म हैदर, शेक्सपियर के नाटक हैमलेट पर आधारित फिल्म हैं। इस फिल्म में सशक्त कलाकारों की भरमार है. तब्बू और केके मेनन हैं। शाहिद कपूर जैसा हरफनमौला फिल्म का हैदर है। श्रद्धा शर्मा उनकी नायिका हैं। श्रद्धा ने भी अपनी अभिनय प्रतिभा साबित कर दी है। इन फिल्मों को इतना प्रचार मिल गया है कि दर्शकों में इन फिल्मों के प्रति पागलपन बन गया है। टकराव के बावजूद इन दोनों फिल्मों को दर्शक मिलेंगे। वैसे इसमे कोई शक नहीं कि एक्शन कॉमेडी फिल्म बैंग बैंग को शुरूआती रुझान के मद्देनज़र ज़्यादा दर्शक मिलेंगे ही। इसके बाद फिल्म रिलीज़ के बाद दर्शकों की प्रशंसा और आलोचना पर काफी कुछ निर्भर करेगा। लेकिन, इसमे कोई शक नहीं कि बॉलीवुड के लिए इस साल गांधी जयंती का वीकेंड काफी ख़ास हो गया है। अब क्या होता है कल काफी कुछ साफ़ हो जाएगा.
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इस शुक्रवार
मैं हिंदी भाषा में लिखता हूँ. मुझे लिखना बहुत पसंद है. विशेष रूप से हिंदी तथा भारतीय भाषाओँ की तथा हॉलीवुड की फिल्मों पर. टेलीविज़न पर, यदि कुछ विशेष हो. कविता कहानी कहना भी पसंद है.
Monday, 29 September 2014
हमसफर्स से पायल रोहतगी का टेलीविज़न सफर शुरू
हिंदी फिल्मों में तौबा तौबा, मज़ा मज़ा, आदि उत्तेजक टाइटल वाली फिल्मों में उत्तेजक भूमिका करने वाली पायल रोहतगी ने अब छोटे परदे का रुख किया है. वह सोनी एंटरटेनमेंट के शो हमसफर्स में पूरे लम्बाई के रोल में नज़र आएंगी। हमसफर्स में पायल एक महत्वकांक्षी, करियर से प्यार करने वाली अनाम की भूमिका कर रही हैं. वह अपने करियर की राह में अपने विवाहित जीवन को बाधा नहीं बनने देती. अपने रोल के बारे में पायल हैं,"मैं काफी समय से टीवी पर आने की सोच रही थी. हमसफर्स इस लिहाज़ से परफेक्ट है। हमसफर्स में मेरी भूमिका बड़ी रोचक है। मैंने ऎसी भूमिका पहले कभी नहीं की। सनम का करैक्टर स्ट्रांग है. इसमे ग्रे शेड्स भी हैं।" हमसफर्स में जहाँ गंभीर क्षण हैं, वही हलके फुल्के क्षण भी है।
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Television
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तरुण ताहिलियानी के शो की शोस्टॉपर सोनाक्षी सिन्हा
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संजय दत्त के घर बैठी माता की चौकी
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Friday, 26 September 2014
अब कहाँ चलते हैं 'देसी कट्टे' !
आनंद कुमार २००७ में बतौर लेखक-निर्देशक पहली बार फिल्म डेल्ही हाइट्स में नज़र आये थे। फिल्म को चर्चा और प्रशंसा दोनों मिली। फिर छह साल बाद वह जिला ग़ाज़ियाबाद में पश्चिम उत्तर प्रदेश की रियल लाइफ गैंग वॉर को लेकर आये. अब वह देसी कट्टे के ज़रिये दर्शकों के सामने हैं. यकीन मानिये, अपनी पहली फिल्म से तीसरी फिल्म तक आते आते वह तीन कदम नीचे उतरते चले गए। देसी कट्टे भटकती फिल्म है. दो बच्चे ज्ञानी और पाली देसी कट्टों को इधर उधर पहुंचाने का काम करते हैं. परिस्थितियां उन्हें कानपूर का शार्प शूटर बना देती हैं. सुनील शेट्टी इन दोनों की निशानेबाज़ी से प्रभावित होते हैं. वह उन दोनों को कट्टे से दुश्मनों को मारने के बजाय पिस्तौल से निशाना लगाने के लिए कहता है। ज्ञानी सुनील शेट्टी के साथ चला जाता है। जबकि, पाली नेता का शूटर बन जाता है. फिल्म बेहद उलझी हुई है। यह साफ़ नहीं होता है कि आनंद कुमार क्या दिखाना चाहते हैं ? वह उत्तर प्रदेश के शार्प शूटरों की कहानी दिखाना चाहते हैं या एक शूटर को ओलंपिक्स चैंपियन बनाना चाहते हैं। पूरी फिल्म बेदिल से चलती हुई बेसिर पैर की कहानी भेजती रहती है। आशुतोष राणा और अखिलेन्द्र मिश्रा जैसे अभिनेता तक निर्जीव लगते हैं। जय भानुशाली कुछ हद तक ही जमते हैं. साशा आगा और अखिल कपूर को एक्टिंग का 'क ख ग नहीं आता। टिया बाजपाई न सुन्दर लगती हैं, न सेक्सी। आर्यन सक्सेना ने फिल्म लिखी है, जो बेहद कमज़ोर है । कैलाश खेर का संगीत न तो फिल्म के माहौल के अनुरूप है, न मधुर है। बाकी, दूसरे पक्ष भी कमज़ोर हैं. फिल्म में ज्ञानी और पाली को कट्टों से लगातार फायर करते दिखाया गया है। ऐसे कट्टे कहाँ मिलते हैं आजकल। अब कट्टों से गैंग वॉर भी नहीं लड़ी जाती।
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फिल्म समीक्षा
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3 AM तक जागना मना है !
विशाल महाडकर भट्ट कैंप से हैं। वह मोहित सूरी के असिस्टेंट रहे। ब्लड मनी उनकी बतौर निर्देशक पहली फिल्म थी. कुणाल खेमू और अमृता पूरी अभिनीत यह फिल्म चली नहीं. क्राइम थ्रिलर फिल्म ब्लड मनी २०१२ में रिलीज़ हुई थी। दो साल बाद, विशाल की दूसरी फिल्म 3 AM इस शुक्रवार रिलीज़ हुई है. यह हॉरर जेनर की फिल्म है। भट्ट कैंप की हॉरर फिल्मों का अपना फॉर्मेट होता है. विशाल की फिल्म 3 AM भी उसी फॉर्मेट में बनी बेहद कमज़ोर फिल्म है। फिल्म में कहानी है ही नहीं. अब कहानी नहीं है तो स्क्रिप्ट कैसे अच्छी हो सकती है। विशाल महाडकर 3 AM के लेखक, निर्देशक और निर्माता हैं। इसके बावजूद वह एक अच्छी कहानी और स्क्रिप्ट पर फिल्म नहीं बना सके। फिल्म की पृष्ठभूमि मुंबई की है, पर फिल्म की शूटिंग राजस्थान के भानगढ़ किले में हुई है। यह किला विश्व का सबसे भयावना किला माना जाता है. कहानी इतनी है कि तीन लोग पैरानॉर्मल एक्टिविटीज पर सीरियल बनाने के लिए एक ऐसी मिल में जाते हैं, जो जल गयी थी और इसमे कई मिल मज़दूर जल मरे थे। इनमे उस मिल का मालिक भी है, जो बड़ा अत्याचारी है। कहानी सुन कर ही लगता है कि वास्तविकता के बजाय कल्पना पर ज़्यादा ज़ोर दिया गया है। वरना, मुंबई की किसी मिल में साथ के दशक की फिल्मों के जमींदार जैसा, मिल मालिक हो। बहरहाल, यह टीम शूटिंग करने के लिए एक पूरी रात मिल में शूट करती है। पर इस दौरान तीनों मालिक की रूह द्वारा मार दिए जाते हैं। फिल्म में डराने की कोशिश की गयी है, पर फिल्म प्रभावहीन साबित होती है। फिल्म के तमाम एक्टर रणविजय सिंह, अनिंदिता नायर, कविन दवे और सलिल आचार्य अभिनय के लिहाज़ से बेहद कमज़ोर है. अनिंदिता को तो ठीक से हिंदी बोलना तक नहीं आता। अनिंदिता को अभी अमित साहनी की लिस्ट में भी देखा गया था। हिंदी फिल्मों में उनका भविष्य नज़र नहीं आता। फिल्म का संगीत बेकार है। तमाम गीत ठूंसे गए हैं। फिल्म की गति का सत्यानाश कर देते हैं। विजय मिश्रा का कैमरा दर्शकों को डरावने माहौल में ले जाने में कामयाब होता है. फिल्म का संपादन थोड़ा ज़्यादा तेज़ तर्रार होना चाहिए था ।
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फिल्म समीक्षा
मैं हिंदी भाषा में लिखता हूँ. मुझे लिखना बहुत पसंद है. विशेष रूप से हिंदी तथा भारतीय भाषाओँ की तथा हॉलीवुड की फिल्मों पर. टेलीविज़न पर, यदि कुछ विशेष हो. कविता कहानी कहना भी पसंद है.
भिन्न भूमिकाओं की स्मृति कालरा
टीवी एक्ट्रेस स्मृति कालरा बहुमुखी प्रतिभा की धनी हैं. उन्हें किसी भी प्रकार के रोले करने में महारत हासिल हैं. सीरियल करोल बाघ में उन्होंने अपनी वास्तविक उम्र से काफी बड़ी लड़की का किरदार किया था. सुरवीन गुग्गल में वह किशोरी स्कूल छात्रा की भूमिका में थीं. अब वह एक बार फिर सोनी एंटरटेनमेंट के सीरियल इत्ती सी खुशी में दर्शकों को मोहने आ रही हैं. इस सीरियल में वह २६ साल की लड़की का किरदार कर रही हैं, जो १४ साल की लड़की की तरह मासूम हैं. इत्ती सी ख़ुशी में उनका किरदार एक दुर्घटना में कोमा में चली जाने के १२ साल बाद होश में आता है. यह दिलचस्प रोल है. स्मृति कहती हैं, "मैं खुद पर एक्सपेरिमेंट करना चाहती हूँ. मैं एक दूसरे से बिलकुल अलग रोल करना चाहती हूँ. जब मैंने नेहा के करैक्टर के बारे में सुना तो महसूस किया कि नेहा के रूप में मैं काफी कुछ कर सकती हूँ."
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हस्तियां
मैं हिंदी भाषा में लिखता हूँ. मुझे लिखना बहुत पसंद है. विशेष रूप से हिंदी तथा भारतीय भाषाओँ की तथा हॉलीवुड की फिल्मों पर. टेलीविज़न पर, यदि कुछ विशेष हो. कविता कहानी कहना भी पसंद है.
एक और पोर्न स्टार शांति डायनामाइट
इंडो- ब्रिटिश एक्टर शांति डायनामाइट पिछले दिनों मुंबई के इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर दिखायी दी. सनी लियॉन के बाद वह दूसरी पोर्न स्टार हैं जो किसी हिंदी फिल्म में अभिनय करने जा रही हैं. वह एक हिंदी आई लव दुबई में मुख्य भूमिका में हैं.
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फोटो फीचर
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Thursday, 25 September 2014
कुछ ऐसा नज़र आएगा बैंक चोर का सीबीआई अफसर !
सभी जानते है कि अभिनेता विवेक ओबेरॉय यशराज फिल्म्स की फिल्म बैंक चोर में सीबीआई अफसर की भूमिका कर रहे हैं। इस किरदार के लिए विवेक ओबेरॉय ने अपने लुक के साथ प्रयोग करने की कोशिश की है। रियल लाइफ सीबीआई अफसर नज़र आने के लिए विवेक ने अपने बाल छोटे कर लिए हैं। चहरे पर छोटी पतली मूछें हैं। लेकिन, अनुबंध की शर्तों के मुताबिक विवेक अपने इस लुक का सार्वजानिक प्रदर्शन नहीं कर सकते। क्योंकि,इस प्रकार से एक किरदार का सस्पेंस और उसके प्रति दर्शकों में उत्सुकता भी ख़त्म हो जाती है। इस लिए विवेक जब किसी इवेंट में जाते है तो उनके सर पर या तो हैट होती है या स्कार्फ़ बंधा हुआ होता है। इसलिए ज़ाहिर है कि देखने वालों में उनके सीबीआई लुक के प्रति उत्सुकता और उत्तेजना पैदा हो रही है।
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ये ल्लों !!!
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