विशाल भरद्वाज क्या क्या हैं, ज़रा गिनिये। वह फिल्म निर्देशक है। निर्माता भी हैं। पहले वह संगीतकार और गीतकार हुआ करते थे। गाने भी लगे। फिल्म लिखना तो लाजिमी था. इतने सब गुणों के साथ हर साल एक फिल्म देना ज़रूरी हो जाता है। बतौर निर्माता वह जितनी फिल्मे बनाते हों, उन्हें समझना ऐरे गैरे नत्थू खैरे के बूते की बात नहीं। ७ खून माफ़, मटरू की बिजली का मंडोला और डेढ़ इश्क़िया ज़्यादातर के सर के ऊपर से निकल गयी। यह फ़िल्में प्रियंका चोपड़ा, अनुष्का शर्मा, इमरान खान, माधुरी दीक्षित, आदि जैसी बड़ी स्टार कास्ट के बावजूद थोड़े दर्शक तक नहीं बटोर सकी। इसी श्रंखला की एक कड़ी हैदर भी लगती है। विशाल भरद्वाज इस फिल्म के निर्माता, निर्देशक और कंपोजर हैं ही, संवाद और पटकथा भी लिखी है। हैदर शेक्सपियर के नाटक हैमलेट पर आधारित है। हैदर के सभी मुख्य चरित्रों की रचना हैमलेट के किरदारों पर ही की गयी है. सिर्फ पृष्ठभूमि पर कश्मीर और आतंकवाद, सेना और नेताओ की मिलीभगत है। हैदर के हैदर यानि हैमलेट के प्रिंस हैमलेट शाहिद कपूर हैं। उनकी माँ गज़ाला यानि गरट्रूड तब्बू बनी है। किंग हैमलेट यानि हैदर के पिता डॉक्टर हिलाल मीर नरेंद्र झा बने हैं। हैमलेट की प्रेमिका ओफेलिआ यानि अर्शिया श्रद्धा कपूर हैं। हैमलेट के घोस्ट आइडेंटिटी मैसेंजर के रूप को इरफ़ान खान ने रूहदार के नाम से किया है। के के मेनन क्लॉडियस उर्फ़ खुर्रम हैं। हैदर के पोलोनियस सेना के अधिकार ललित परिमू हैं। कुछ अन्य चरित्र भी फिल्म के छोटे बड़े अंग हैं. विशाल भरद्वाज की फिल्म के किरदार चाहे हैमलेट से प्रेरित हों, लेकिन, हैदर को विशाल भरद्वाज द्वारा कश्मीर की पृष्ठभूमि पर फिल्म के बतौर देखना होगा। विशाल ने कश्मीर की पृष्ठभूमि रखी है, तो ख़ास मक़सद होगा ही. कभी लगता है कि वह आतंकवादी, आम कश्मीरी, कुटिल नेता और सेना के स्वार्थी अधिकारीयों के गठजोड़ को दिखाना चाहते होने कि किस प्रकार कश्मीर का आवाम आतंकी-नेता-सेना गठजोड़ का शिकार हो रहा है। कभी यह हैमलेट की तर्ज पर एक शाही यहाँ राजनीतिक परिवार के बीच का संघर्ष लगता है। नतीजे के तौर पर हैदर चूं चूं का मुरब्बा बन जाती है। विशाल भारद्वाज इतने ज़्यादा कलात्मक हो जाते हैं कि दर्शक अपनी सीटों पर पहलू बदलने लगता है। उन्होंने हर चरित्र को इतना जटिल बना दिया है कि दर्शक उलझ जाता है और उसके पास उकताने के अलावा कुछ शेष नहीं रहता। फिल्म में ढेरों प्रसंगो को एक में मिला दिया है। क्या आतंकवादी स्वार्थी नेता खुर्रम को मारना चाहते हैं? क्या वह हैदर को आतंकवादी बनाना चाहते हैं? एक करैक्टर के द्वारा विशाल ने दिखाया है कि सेना के बार बार रोकने और तलाशी के कारण लोग मानसिक बीमार हो गए हैं? जबकि, हैदर के किरदार में ऐसे कोई लक्षण नज़र नहीं आते। श्रद्धा कपूर का किरदार कश्मीरी होते हुए भी सामान्य है। नतीजे के तौर पर ऐसे सभी किरदार मिलकर हैदर को कमज़ोर कर देते हैं। विशाल फिल्म को हैमलेट की कहानी पर ओमकारा की तरह बनाते तो फिल्म प्रभावशाली बनती। पर कश्मीर का लोभ उन्हें ले डूबा। हैदर के किरदार में शाहिद कपूर, ग़ज़ल के किरदार में तब्बू और खुर्रम के किरदार में केके मेनन प्रभावित करते हों। शाहिद के पिता की भूमिका में नरेंद्र झा छोटे रोल में भी दर्शकों को आकर्षित करते हैं। अर्शिया के किरदार में श्रद्धा कपूर कमज़ोर रही. इरफ़ान खान अपना काम कर ले जाते हैं।
विशाल भरद्वाज हर क्षेत्र में कमज़ोर साबित होते हैं. यहाँ तक कि संगीत भी प्रभावित नहीं करता। एक दो दृश्यों को छोड़ कर फिल्म बेहद साधारण बन पड़ी है।
विशाल भरद्वाज हर क्षेत्र में कमज़ोर साबित होते हैं. यहाँ तक कि संगीत भी प्रभावित नहीं करता। एक दो दृश्यों को छोड़ कर फिल्म बेहद साधारण बन पड़ी है।
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