Friday, 24 October 2014

इतना भी "हैप्पी (नहीं है) न्यू ईयर"

फराह खान से अच्छी फिल्म की उम्मीद करना बेकार है।  वह मनोरंजक फिल्म बनाने का दावा करती हैं। पर आज दीवाली के दूसरे दिन रिलीज़ उनकी शाहरुख़ खान, दीपिका पादुकोण,  अभिषेक बच्चन, सोनू सूद, बोमन ईरानी और विवान शाह की फिल्म हैप्पी न्यू  ईयर आखिर के चालीस मिनटों में ही मनोरंजन करती लगती है, जब घटनाएँ तेज़ी से घटती है, इमोशन के रंग और देश भक्ति का तिरंगा बुलंद होता है।  अन्यथा यह पूरी फिल्म इंटरवल से पहले तीस  मार खान के आस पास रहती है. बेहद सुस्त रफ़्तार से एक एक चरित्र का  परिचय देती है।  फिल्म शुरू होने के करीब एक घंटे बाद दीपिका पादुकोण 'मोहिनी मोहिनी' की पुकार के बीच अपने शरीर के तमाम विटामिन प्रदर्शित करती आती हैं।  वह फिल्म में बार डांसर बनी हैं, लेकिन, किसी बड़े नाईट क्लब जैसे माहौल में कैबरेनुमा डांस करती प्रकट होती है।
कहानी बस इतनी है कि  छह लूज़र्स यानि असफल वर्ल्ड डांस कम्पटीशन की आड़ में ३०० करोड़ के हीरे लूटने के  लिए दुबई के अटलांटिस द  पाम जाते हैं।  इन लोगों में चार्ली अपने पिता का बदला लेने के लिए यह डकैती डालना चाहता है।  इसमे चार्ली की मदद उसके पिता के मित्र और साथ काम करने वाले करते हैं।  बेहद बकवास सी फिल्म की कहानी को बचकाने तरीके से आगे बढ़ाती हैं फराह खान।  फिल्म में देखे जाने योग्य अगर कुछ है तो भव्यता।  फराह ने सेट्स पर जम  कर पैसा बहाया है।  यही सेट्स ही दर्शकों को आकर्षित करते हैं।  दुबई को होटल अटलांटिस द  पाम के खूबसूरत दृश्य इस होटल और फिल्म की खूबसूरती है।  पूरी फिल्म की शूटिंग और फिल्म का प्रीमियर भी इसी होटल में हुआ है।
कहानी की लिहाज़ से कूड़ा इस डकैती फिल्म में पुलिस फराह खान के निर्देशन की तरह नदारद रहती हैं।  हालाँकि, धूम ३ से अलग इस फिल्म में हीरो की चोरी करते दिखाया गया है। दर्शकों की इसमे दिलचस्पी रहती है।  फराह खान ने कई हिंदी फिल्मों, अपनी पहले की फिल्मों के दृश्यों और संवादों का सहारा लेकर मनोरंजन करने की  कोशिश की है। वह विशाल डडलानी  और अनुराग कश्यप के समलैंगिक जजों के चरित्रों के जरिये घटिया हास्य पैदा करने की असफल कोशिश करती हैं। इसके बावजूद फिल्म घिसटते हुए चलती है।  रफ़्तार दूसरे अर्ध में ही आती है, जब छह लूज़र्स डकैती डालने जाते हैं।  ख़ास तौर पर आखिर के चालीस मिनट में दर्शक खुद को अब तक की फिल्म से अलग माहौल में पाता है। इसी हिस्से में फिल्म मनोरंजक भी लगती है।
अभिनय के लिहाज़ से हर एक्टर लाउड अभिनय करता है ।  शाहरुख़ खान के हिस्से में जो इमोशनल सीन आये थे, वैसे सीन वह काफी कर चुके हैं।  यह पहली फिल्म है, जहाँ हॉलिडे क्राउड के बीच भी दीपिका पादुकोण बहुत कम तालियां और  सीटियां पाती हैं। वह अपना सब कुछ दिखा देने के बावजूद अपने लिए कुछ ख़ास नहीं जुटा पातीं। फिल्म की नवीनता यही है कि  पहली बार हीरो नहीं हीरोइन कहानी को मोड़ देती है। सोनू सूद ने खुद को बेकार कर दिया है।  चार्ली उन्हें उभरने नहीं देता।  अभिषेक बच्चन से अभिनय कराने की करामात  फराह कैसे दिखा सकती थीं।  सो नहीं  दिखा पायीं।  दोहरी भूमिका के बावजूद अभिषेक उभर नहीं पाते।  बोमन ईरानी लाउड थे, लाउड  हैं और लाउड रहेंगे।  विवान शाह को अपने पप्पा नसीरुद्दीन शाह और ममा रत्ना पाठक शाह से अभिनय के ककहरे सीखने चाहिए।
विशाल-शेखर का संगीत तेज़ धुनों वाला है. फिल्म में अच्छा लगता है।  हो सकता है कि दीपिका पादुकोण पर फिल्माया मनुआ लागे गीत कुछ दिनों तक लोगों की जुबान पर रहे।  मानुष नंदन की फोटोग्राफी बढ़िया है।  मयूर पूरी के संवाद ठीक ठाक हैं।  मादर…छोड़ न यार जैसे संवाद कई बार दोहराये गए हैं।  फिल्म की पटकथा एल्थिया कौशल के साथ फराह खान ने लिखी है।  ऐसा लगता है अटलांटिस पहुँच कर ही पटकथा लिखी गयी है. फिल्म के काफी दृश्य ओसन  ११ और सीरीज की याद ताज़ा कर देते हैं।
अगर आप तीन घंटा लम्बी इस फिल्म के शुरू के १३६ मिनट मिनट आखिर के ४० मिनटों की खातिर झेलना चाहते हैं, तो यह फिल्म आपकी है।  लेकिन, यह तय है कि  खान की यह फिल्म चेन्नई एक्सप्रेस के आसपास तक नहीं। हैप्पी  न्यू  ईयर को मैं हूँ न और ओम शांति ओम के बाद सबसे कमज़ोर और तीस मार खान के बात एक और बोर फिल्म कहना ठीक होगा। इसलिए दिवाली के बावजूद उतनी  सफल होने नहीं जा रही।  सोमवार से फिल्म में ज़बरदस्त ड्राप आएगा।

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