Friday, 26 September 2014

3 AM तक जागना मना है !

विशाल महाडकर भट्ट कैंप से हैं।  वह मोहित सूरी के असिस्टेंट रहे।  ब्लड मनी उनकी बतौर निर्देशक पहली फिल्म थी. कुणाल खेमू और अमृता पूरी अभिनीत यह फिल्म चली नहीं. क्राइम थ्रिलर फिल्म ब्लड मनी २०१२ में रिलीज़ हुई थी।  दो साल बाद, विशाल की दूसरी फिल्म 3 AM इस शुक्रवार रिलीज़ हुई है. यह हॉरर जेनर की फिल्म है।  भट्ट कैंप की हॉरर फिल्मों का अपना फॉर्मेट होता है. विशाल की फिल्म 3 AM  भी उसी फॉर्मेट में बनी बेहद कमज़ोर फिल्म है।  फिल्म में कहानी है ही नहीं. अब कहानी नहीं है तो स्क्रिप्ट कैसे अच्छी हो सकती है। विशाल महाडकर 3 AM  के लेखक, निर्देशक और निर्माता हैं।  इसके बावजूद वह एक अच्छी कहानी और  स्क्रिप्ट पर फिल्म नहीं बना सके।  फिल्म की पृष्ठभूमि मुंबई की है, पर फिल्म की शूटिंग राजस्थान के  भानगढ़ किले में हुई है। यह किला विश्व का सबसे भयावना किला माना जाता है. कहानी इतनी है कि तीन लोग पैरानॉर्मल एक्टिविटीज पर सीरियल बनाने के लिए एक ऐसी मिल में जाते हैं, जो जल गयी थी और इसमे कई मिल मज़दूर जल मरे थे।  इनमे उस मिल का मालिक भी है, जो बड़ा अत्याचारी है।  कहानी सुन कर ही लगता है कि  वास्तविकता के बजाय कल्पना पर ज़्यादा ज़ोर दिया गया है। वरना, मुंबई की किसी मिल में साथ के दशक की फिल्मों के जमींदार जैसा, मिल मालिक हो। बहरहाल, यह टीम शूटिंग करने के लिए एक पूरी रात मिल में शूट करती है। पर इस दौरान तीनों मालिक की रूह द्वारा मार दिए जाते हैं। फिल्म में डराने की कोशिश की गयी है, पर फिल्म प्रभावहीन साबित होती है।  फिल्म के तमाम एक्टर रणविजय सिंह, अनिंदिता नायर, कविन दवे और सलिल आचार्य अभिनय के लिहाज़ से बेहद कमज़ोर है. अनिंदिता को तो ठीक से हिंदी बोलना तक नहीं आता।  अनिंदिता को अभी अमित साहनी की लिस्ट में भी देखा गया था।  हिंदी फिल्मों में उनका भविष्य नज़र नहीं आता। फिल्म का संगीत बेकार है।  तमाम गीत ठूंसे गए हैं।  फिल्म की गति का सत्यानाश कर देते हैं।  विजय मिश्रा का कैमरा दर्शकों को डरावने माहौल में ले जाने में कामयाब होता है. फिल्म का संपादन थोड़ा ज़्यादा तेज़ तर्रार होना चाहिए था ।


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