Saturday 13 May 2017

केली मैक्डोनाल्ड के साथ इरफ़ान खान की पजल

बिग बीच की फिल्म पजल में बॉलीवुड अभिनेता इरफ़ान खान स्कॉटिश एक्ट्रेस केली मैक्डोनाल्ड के साथ फिल्म पजल में अभिनय करेंगे। मार्क टर्टलटॅब निर्देशित इस फिल्म में डेविड डेन्मन भी अभिनय कर रहे हैं।  चालीस के आसपास की उपनगर में रहने वाली एक महिला में पजल हल करने में महारत हासिल है।  घर में उसका कोई कहा नहीं मानता।  ऐसे में वह अपनी इस खूबी का फायदा कैसे उठाती है, यही इस फिल्म की कहानी है।  पजल २०१० में रिलीज़ और बर्लिन इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में गोल्डन बेयर के लिए नामांकित निर्देशक नतालया स्मिर्नऑफ की अर्जेंटीनियन फिल्म रॉम्पेकाबेजस की रीमेक फिल्म है। फिल्म में रफ़ान खान की भूमिका बताई नहीं गई है। वैसे इरफ़ान खान हॉलीवुड की इन्फर्नो, जुरैसिक वर्ल्ड और लाइफ ऑफ़ पइ जैसी फिल्मों से काफी मशहूर हो चुके हैं। फिल्म में उनकी नायिका केली मैक्डोनाल्ड ने हाल ही में फॉक्स सर्चलाईट की फिल्म गुडबाय क्रिस्टोफर रॉबिन और सोनी की होल्म्स वाट्सन पूरी की है। वह ऐसी प्रतिभाशाली अभिनेत्री हैं, जिनकी चार फ़िल्में एलिज़ाबेथ, गोस्फोर्ड पार्क, फाइंडिंग नेवरलैंड और नो कंट्री फॉर ओल्ड मैन ऑस्कर पुरस्कारों में श्रेष्ठ फिल्म की श्रेणी में नामित हो चुकी हैं।  नो कंट्री फॉर ओल्ड मैन ने ऑस्कर भी जीता।  इस फिल्म की शूटिंग इस महीने के आखिर में न्यूयॉर्क में शुरू हो जाएगी।  

म्यामार का सुपर स्टार बॉलीवुड में

लू मिन का परिचय म्यांमार सेंसर बोर्ड के मेंबर के बतौर करना ही काफी नहीं।  वह हरफनमौला हैं।  वह म्यांमार अकादमी अवार्ड विजेता अंतर्राष्ट्रीय स्टार हैं। वह अपने फिल्म करियर में एक हजार फ़िल्में कर चुके हैं।  यह अपने आप में एक कीर्तिमान है। वह फिल्म निर्देशक भी हैं। म्यांमार की फिल्म और टेलीविज़न इंडस्ट्री में अपनी उपस्थिति दर्ज करने के बाद  बहुमुखी प्रतिभा वाले अभिनेता, निर्माता और निर्माता लू मिन अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर म्यांमार फिल्म उद्योग का विस्तार करना चाहते है।  इस लिए लू मिन अब बर्मा से बॉलीवुड की तरफ चल दिए हैं। लू मिन, म्यांमार में जॉन अब्राहिम और नाना पाटेकर की सुपर डूपर हिट फिल्म टैक्सी नंबर ९२११ का रीमेक बनाने जा रहे है। टैक्सी नंबर  ९२११ एक हिट कॉमेडी,  ड्रामा फिल्म है । मिन कहते हैं, "मैं सौभाग्यशाली हूँ कि मुझे इस फिल्म को म्यांमार के लिए बनाने का मौका मिल रहा है। मै चाहता हूँ कि बॉलीवुड और म्यांमार फिल्म इंडस्ट्री के बीच मजबूत सम्बन्ध और ज्यादा मज़बूत हों।" म्यामार में सिनेमाघरों की भारी कमी है। पचास लाख जनसँख्या वाले देश म्यामार में कुल ४२ सिनेमा हॉल हैं। यहाँ लोग ५ टीवी चैनल्स के द्वारा अपना मनोरंजन करते है। इससे म्यामार में पायरेसी का धंधा फलाफूला है। लू मिन के मुंबई पहुँचाने पर जोरदार स्वागत किया गया।  वह कहते है- "मैंने दोनों ही देशो में सांस्कृतिक समानताएं देखी है। यहाँ का संगीत और  संस्कृति  मुझे आकर्षित करते  है । मैं हमेशा से भारत आना चाहता था। आज मुझे यह मौका मिला है। मै अपने आप को बहुत खुशकिस्मत समझता हूँकि मुझे इतने प्यारे लोगों के बीच आने का सौभाग्य मिला।" 

अब सिद्धांत कपूर बने दाऊद इब्राहिम

अभी सिद्धांत कपूर के बॉम्बे बम ब्लास्ट के दोषी भगोड़े डॉन दाऊद इब्राहिम के स्वांग वाले चित्र मीडिया पर पसरे पड़े थे।  इन चित्रों के साथ यह भी बताया गया था कि सिद्धांत ने  रोल के गेटअप में अपने  पिता और हिंदी फिल्मों के खलनायक शक्ति कपूर के सनग्लासेस और सूट का उपयोग किया था।  बताते चलें कि सिद्धांत कपूर का यह दाऊद अवतार अपूर्व लखिया की गैंगस्टर ड्रामा फिल्म हसीना  के लिए हुआ था।  इस फिल्म में उनकी बड़ी बहन श्रद्धा कपूर गैंगस्टर दाऊद इब्राहिम की बहन हसीना पार्कर का किरदार कर रही हैं।  सिद्धांत उनके रील लाइफ भाई दाऊद इब्राहिम का  किरदार  कर रहे हैं।
 बात यह नहीं है कि सिद्धांत अपने रोल के लिए क्या और कैसा गेटअप इस्तेमाल किया और कैसे किया ?  इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि सिद्धांत ने अपने विलेन के किरदार के लिए अपने पूर्व विलेन पिता की वस्तुएं  इस्तेमाल की।  सिर्फ गेटअप से किरदार पर कोई फर्क नहीं  पड़ता है।  सवाल यह है कि सिद्धांत कपूर रियल लाइफ करैक्टर, जिससे ज़्यादातर हिंदुस्तानी नफ़रत करते हैं, कितना वास्तविक या रियल  कर पाते हैं ? सिद्धांत कपूर के सामने कई रील लाइफ दाऊद इब्राहिम हैं, जिन्हे बॉलीवुड के कई  छोटे बड़े अभिनेताओं ने किया।  क्या अपनी पहली ही फिल्म से वह अपने वरिष्ठ अभिनेताओं के दाऊद को चुनौती दे पाएंगे ? आइये जानने की कोशिश करते हैं  ब्लैक फ्राइडे से लेकर हसीना तक के दाऊद और इस करैक्टर को करने वाले अभिनेताओं के बारे में।  यह अभिनेता अपने करैक्टर को कितना प्रभावशाली बना पाए ?
ब्लैक फ्राइडे का दाऊद विजय मौर्या
बॉलीवुड के अपराध फिल्मों के निर्माताओं में से एक अनुराग कश्यप की इस मामले में तारीफ की जाती है कि उन्होंने पहली बार अपनी फिल्म ब्लैक फ्राइडे (२००४) में दाऊद इब्राहिम का उसके नाम से चित्रण किया।  इससे  पहले कोई भी फिल्म निर्माता इतना साहस नहीं बटोर पाता था कि दाऊद इब्राहिम को बुरे किरदार में चित्रित कर सके।  १९९३ के बॉम्बे सीरियल बम ब्लास्ट पर अपनी इस फिल्म में दाऊद इब्राहिम को चिन्हित और इंगित किया था।  हालाँकि, यह फिल्म लम्बे समय तक सेंसर के लफड़े में फंसी रही।  लेकिन, इसके पीछे दाऊद इब्राहिम का ज़िक्र कारण नहीं था।  फिल्म में दाऊद का किरदार अभिनेता और लेखक विजय मौर्या ने किया था।  विजय ने अपने करियर की बड़ी शुरुआत रामगोपाल वर्मा की फिल्म सत्या में कल्लू मामा के गैंग के सदस्य के बतौर की थी।  वह अब तक २४ फ़िल्में कर चुके हैं।  डॉन के किरदार में विजय मौर्या के अभिनय की तारीफ हुई।  वह रियल डॉन के काफी करीब लग रहे थे।
रामगोपाल वर्मा की कंपनी और डी 
रामगोपाल वर्मा की फिल्म कंपनी (२००२) की कहानी विशुद्ध रूप से दाऊद इब्राहिम से प्रेरित थी।  लेकिन, वर्मा ने अपने किरदारों के नाम बदल दिए थे।  अजय देवगन ने फिल्म में दाऊद के रील लाइफ मलिक का किरदार किया था।  इस फिल्म से छोटा राजन के रोल (चंदू) में विवेक ओबेरॉय का बॉलीवुड डेब्यू हुआ था। अजय देवगन ने दाऊद के रील लाइफ किरदार का वास्तविक चित्रण किया था।  आठ साल बाद अजय देवगन दाऊद के गुरु हाजी मस्तान का किरदार सुल्तान मिर्ज़ा को फिल्म वन्स अपॉन अ टाइम इन मुंबई में कर रहे थे। निर्माता रामगोपाल वर्मा की क्राइम फिल्म 'डी' का निर्देशन विश्राम सावंत ने किया था।  इस फिल्म में डी का मतलब देशु था।  यह फिल्म का नायक था।  लेकिन, जिस घटनाक्रम से इसका जिक्र हुआ था, वह काफी कुछ दाऊद इब्राहिम से प्रेरित था। रणदीप हुडा की बतौर नायक पहली फिल्म थी।  इस किरदार के लिए रणदीप की प्रशंसा हुई।  
दाऊद बनने का 'रिस्क' लिया  विनोद खन्ना ने
कोई पांच साल के अंतराल के बाद एक्टर विनोद खन्ना फिल्मों में वापसी कर रहे थे।  इस वापसी के लिए उनका डॉन का करैक्टर करना काफी रिस्की था।  लेकिन विनोद खन्ना ने यह रिस्क उठाया।  विश्राम सावंत की फिल्म रिस्क (२००७) में वह दाऊद  इब्राहिम का रील लाइफ किरदार खालिद बिन जमाल कर रहे थे।   हालाँकि, रिस्क के खालिद के दाऊद इब्राहिम से प्रेरित होने से सभी इंकार कर रहे थे।  लेकिन, इस फिल्म की घटनाएं दाऊद द्वारा की गई वारदातों के काफी निकट थी।  विनोद खन्ना इस फ्लॉप फिल्म में अपने गैंगस्टर किरदार में काफी फबे थे।  
शूटआउट एट लोखंडवाला मे दाऊद का जिक्र
अपूर्व  लखियाऔर निर्देशित फिल्म शूटआउट एट लोखंडवाला (२००७) १९९१ के मशहूर लोखण्डवाला शूटआउट पर थी।  इस शूटआउट में खतरनाक गैंगस्टर माया डोलास पुलिस द्वारा घेर कर मार गिराया गया था।  फिल्म में माया डोलास का किरदार विवेक ओबेरॉय ने किया था।  इस फिल्म में ब्लैक फ्राइडे के बाद खुल कर दाऊद इब्राहिम का जिक्र किया गया था।  दरअसल माया डोलास कभी दाऊद इब्राहिम का गुर्गा था।  लेकिन, फिर उसने दाऊद के साथ विद्रोह कर दिया था।  इस पर दाऊद ने ही उसे मरवाने की सुपारी मुंबई पुलिस को दी थी।
मिलन लुथरिया के दो दाऊद
मिलन लुथरिया ने एक ही टाइटल वाली दो फिल्मों में दो अलग अलग दाऊद इब्राहिम पेश किये थे।  २०१० में रिलीज़ फिल्म वन्स अपॉन अ टाइम इन मुंबई में सत्तर के दशक में बॉम्बे में वर्चस्व के लिए स्मगलरों के टकराव की कहानी का चित्रण किया था।  उनकी इस फिल्म में सुल्तान मिर्ज़ा और शोएब खान के चरित्र रियल स्मगलर हाजी मस्तान और दाऊद इब्राहिम के थे।  कभी दाऊद इब्राहिम सुल्तान मिर्ज़ा का दांया हाथ हुआ करता था।  लेकिन, उसकी खून खराबा करने की आदतों ने उसे सुल्तान से दूर कर दिया।  फिल्म में सुल्तान मिर्ज़ा का किरदार अजय देवगन ने और दाऊद इब्राहिम का किरदार इमरान हाश्मी ने किया था।  दोनों ही अभिनेता अपने किरदारों में काफी फबे थे।  मिलन ने जब दाऊद इब्राहिम की बॉम्बे को दिखाने के लिए सीक्वल फिल्म वन्स अपॉन अ टाइम इन मुंबई दोबारा में कथानक को दाऊद इब्राहिम पर केंद्रित किया तो दाऊद इब्राहिम इमरान हाश्मी नहीं अक्षय कुमार बने थे।  इमरान हाश्मी की जगह आये इमरान खान।  उन्होंने शोएब के साथी असलम का किरदार किया था।  मगर फिल्म का सीक्वल ढीली कथा-पटकथा के कारण दर्शकों को आकर्षित नहीं कर सका।
शूटआउट एट वडाला में दाऊद
संजय गुप्ता ने अपनी फिल्म शूटआउट एट वडाला (२०१३) में मुंबई के हिन्दू गैंगस्टर मान्या सुर्वे के किरदार को महिमामंडित किया था।  कहानी के अनुसार मान्या सुर्वे की ताक़त से घबड़ा कर दाऊद इब्राहिम ने पुलिस की मदद से वडाला के कॉलेज में उसका एनकाउंटर करवा दिया था।  इस फिल्म में जॉन अब्राहम मान्या सुर्वे बने थे तथा दाऊद इब्राहिम और उसके बड़े भाई साबिर का किरदार सोनू सूद और मनोज बाजपेई ने किया था।  यह दोनों ही ज़बरदस्त अभिनेता हैं।  इन दोनों ने अपने किरदार बखूबी अंजाम दिए थे।  अब यह बात दीगर  है कि फिल्म को सेंसर बोर्ड के पचड़े से बचाने के लिए संजय गुप्ता ने इन दोनों किरदारों के नाम दिलावर और ज़ुबैर कर दिए।
जब चॉकलेटी ऋषि कपूर बने दाऊद
निखिल आडवाणी की फिल्म डी-डे  (२०१३)  भारत के रॉ एजेंट द्वारा दाऊद इब्राहिम का अपहरण कर भारत लाने के काल्पनिक मिशन पर फिल्म थी।  फिल्म में दाऊद के रील करैक्टर गोल्डमैन का किरदार बॉलीवुड के चॉकलेटी हीरो ऋषि कपूर ने किया था।  ऋषि कपूर ने दाऊद के हावभाव और चालढाल को बेहतरीन तरीके से अपनाया था।  फिल्म में उनके अभिनय की प्रशंसा हुई।
 दाऊद की फ्लॉप 'डी' कॉमेडी
दाऊद इब्राहिम के करैक्टर को अब तक की एक्शन थ्रिलर फिल्मों से अलग कथानक में पेश करने की कोशिश की निर्देशक विशाल मिश्रा ने।  उन्होंने कॉफ़ी विथ डी में एक पत्रकार द्वारा दाऊद इब्राहिम के लाइव इंटरव्यू को कॉमेडी के सहारे दर्शाने की कोशिश की थी।  फिल्म में सुनील ग्रोवर ने रील लाइफ अर्नब गोस्वामी का किरदार किया था, जो दाऊद  से लाइव इंटरव्यू करना चाहता है।  फिल्म में डी यानि दाऊद का किरदार अभिनेता ज़ाकिर हुसैन ने किया था।  लेकिन, ढीली ढाली कथानक वाली यह फिल्म फ्लॉप हो गई थी।
उपरोक्त रील लाइफ डी करैक्टरों पर बात करने से यह साफ हो जाता है कि दाऊद का किरदार करने के अपने खतरे हैं।  इस करैक्टर से लाउड होने की आज़ादी नहीं ली जा सकती।  इसका मज़ाक उड़ाना तो खतरनाक होगा। अजय देवगन और ऋषि कपूर जैसे अभिनेताओं ने इसे काफी संतुलित हो कर किया। नतीजे के तौर पर इनकी फिल्मों को सफलता मिली।  देखने वाली बात होगी कि सिद्धांत कपूर रील लाइफ दाऊद बन कर अपनी रील लाइफ में भी बहन हसीना को कितनी मदद कर पाते हैं।  क्योंकि, सिद्धांत का सशक्त अभिनय श्रद्धा के हसीना के किरदार को उभारने में मदद करेगा।  

Wednesday 10 May 2017

अमिताभ बच्चन को तीसरी बार 'सरकार' बना पाएंगे रामगोपाल वर्मा !

यह सवाल सामायिक है।  रामगोपाल वर्मा के करियर की ५२ वी फिल्म तथा अमिताभ बच्चन के साथ आठवीं फिल्म १२ मई को रिलीज़ हो रही है।  सरकार राज (२००८) के ९ साल बाद रामगोपाल वर्मा एक बार फिर सरकार ३ में अमिताभ बच्चन को सरकार बना कर ला रहे हैं।  नौ  साल बहुत लम्बा अरसा होता है।  ऐसे में रामगोपाल  वर्मा का १२ साल पहले सरकार (२००५) में क्रिएट किये गए सरकार के  करैक्टर को फिर  परदे पर लाना कितना कामयाब होगा ? क्या वर्मा इस फिल्म के ज़रिये बिग बी को बॉक्स ऑफिस की सरकार बना पाएंगे ?  वह खुद को कितना कल्पनाशील डायरेक्टर साबित कर पाएंगे ?
यह सब कुछ निर्भर करेगा वर्मा- बच्चन जोड़ी की आपसी केमिस्ट्री पर।  जब रामगोपाल वर्मा अन्य अभिनेताओं के अलावा अमिताभ बच्चन के साथ फ़िल्में बनाते हैं तब वह किस हद तक डायरेक्टर होते हैं और कितना एडमायर या प्रशंसक होते  हैं ? खुद रामगोपाल वर्मा ने स्वीकार किया है कि अमिताभ बच्चन की फिल्मों ने उन्हें फिल्ममेकर बनने के लिए प्रेरित किया था।  रामगोपाल वर्मा ने हिंदी फिल्म निर्माण के क्षेत्र में ७ दिसंबर १९९० को रिलीज़ अपराध फिल्म शिवा से कदम रखा।  यह फिल्म उनकी तेलुगु हिट फिल्म शिवा का हिंदी रीमेक थी।   इस फिल्म में वह नागार्जुन का परिचय हिंदी दर्शकों से करा रहे थे।  फिल्म हिट हुई।  इस फिल्म के बाद नागार्जुन तो हिंदी फिल्मों के नायक बहुत सफल नहीं हुए।  लेकिन रामगोपाल वर्मा गैंगस्टर फिल्मों के पकड़ रखने वाले निर्देशक बन गए।
रामगोपाल वर्मा ने १५ साल बाद, जब अमिताभ बच्चन के साथ पहली सरकार बनाई तब तक वह हिंदी दर्शकों के बीच हॉरर फिल्म रात और गैंगस्टर फिल्म द्रोही (एक बार फिर हीरो नागार्जुन) से खुद को हरफनमौला डायरेक्टर साबित कर चुके थे।  रामगोपाल वर्मा पहले ऐसे डायरेक्टर थे, जिसने उर्मिला मातोंडकर और आमिर खान के साथ फिल्म रंगीला से फिल्मों के कॉस्ट्यूम के क्षेत्र में फैशन डिज़ाइनर की भूमिका को रेखांकित किया था ।  सुपर हिट रंगीला के बाद दौड़ बुरी तरह पिटी।  लेकिन,  उनकी निर्देशित गैंगस्टर फिल्म सत्या (१९९८) और थ्रिलर फिल्म कौन (१९९९) मील का पत्थर साबित हुई।  मस्त (१९९९) और जंगल (२०००) से वर्मा की निर्देशकीय पकड़ कमज़ोर होती लगी।  मगर, फिल्म कंपनी (२००२) और भूत (२००३) से वह एक बार फिर फ़ीनिक्स की तरह उभरे।  नाच (२००४) जैसी क्लासिक फिल्म के बाद रामगोपाल वर्मा ने सरकार बनाई थी।  इसलिए यह तो नहीं कहा जा सकता था कि रामगोपाल वर्मा को अमिताभ बच्चन के स्टारडम की सख्त ज़रुरत थी।  रामगोपाल वर्मा की ज़रुरत अमिताभ बच्चन को  इसलिए ज़रूर थी कि उन्हें अपनी उम्र के अनुरूप सशक्त भूमिकाओं की सख्त ज़रुरत थी।  सरकार के प्रधान पुरुष के बतौर अमिताभ बच्चन को एक  सशक्त भूमिका मिल गई।  महाराष्ट्र के हिन्दू संगठन  शिवसेना के सुप्रीमो बाल ठाकरे से इस करैक्टर की तुलना ने फिल्म को ज़बरदस्त प्रचार दिया।  फिल्म  हिट हो गई।
रामगोपाल वर्मा और अमिताभ बच्चन के लिए सरकार हिट होने का मतलब सफल सरकार फ्रैंचाइज़ी बनना ज़रूर था।  यह सफलता सरकार सीरीज की फिल्मों के निर्माण लिहाज़ से ख़ास थी ।  लेकिन, इन दोनों डायरेक्टर- निर्देशक के लिहाज़ से ख़ास था  सरकार करैक्टर।  यह चरित्र अमिताभ बच्चन के १९७० और १९८० के दशक के एंग्रीयंगमैन के समान था।  वह बीच सड़क पर वर्दी उतार कर गुंडों से नहीं भिड़ता था, लेकिन अपने घर के आलीशान कमरे में बैठा अपने  गुर्गों की मदद से मज़लूमों की मदद ज़रूर करता था।  बहुत कम और धीमी आवाज़ में बोलने वाला यह करैक्टर किसी लिहाज़ से एंग्रीयंगमैन से कम  नहीं था।
अमिताभ बच्चन के एंग्रीयंगमैन को ख़त्म हुए एक दशक से ज़्यादा हो रहा है।  सरकार को भी पहली बार परदे पर आये १२ साल हो चुके हैं।  ऐसे में सरकार राज के आठ साल बाद सरकार ३ बनाने की क्या वजह है ? क्या अपने कमरे में बैठ कर सरकार इतना थ्रिल पैदा कर सकेगा कि दर्शक सिनेमाघरों तक पहुंचे ? सरकार ३ के प्री रिलीज़ प्रमोशन के दौरान रामगोपाल वर्मा से यह सवाल पूछा गया था।  यह कहना ज़्यादा सही होगा कि सरकार ३ से दर्शकों का परिचय कराने की पहल रामगोपाल वर्मा ने फेसबुक पर पोस्ट के ज़रिये की थी।  इसमें उन्होंने खुद से खुद पूछा था कि सरकार ३ बनाने की क्या ज़रुरत पड़  गई थी  ? अपने सवाल के जवाब में रामगोपाल वर्मा ने लिखा था, "मैंने सरकार राज बनाते समय एक गलती की थी।  मैंने सरकार के करैक्टर को डाउनप्ले किया था।  मैंने शंकर (अभिषेक बच्चन का चरित्र) को ज़्यादा महत्व दिया।  मैं यह भूल गया कि सरकार इसलिए सरकार था कि वह सरकार था।  मुझे इस गलती के लिए शंकर को सरकार में ढालना चाहिए था,  लेकिन मैंने इस करैक्टर को ही मार डाला।"  सरकार ३ में तमाम दूसरे करैक्टर हैं।  माइकल वाळल्या (जैकी श्रॉफ), गोकुल साटम (रोनित रॉय), गोरख रामपुर (भारत दाभोलकर) और रुक्कू बाई देवी (रोहिणी हट्टंगड़ी) जैसे बहुत से करैक्टर हैं।  यह सभी बुरे चरित्र है, जो सुभाष नागरे उर्फ़ सरकार के दुश्मन हैं।  इस गिरोह से ज़्यादा खतरनाक है अन्नू करकरे (यामी गौतम) जो सुभाष नागरे से अपने पिता की ह्त्या का बदला लेने के लिए किसी भी हद तक जा सकती है।  कोढ़ पे खाज का काम करता है सरकार का पोता शिवजी नागरे उर्फ़ चीकू (अमित साध) जो उद्यंड युवा है और घमंडी भी। सरकार को इन सभी से निबटना है।  केवल इसलिए नहीं कि उसे परिवार बचाना है।  उसे इन सब की महत्वाकांक्षाओं से दो दो हाथ करने हैं।  रामगोपाल वर्मा कहते हैं, "इस प्रक्रिया में सरकार कुछ ज़्यादा कठोर तरीके से पेश आएगा।  फिल्म में सरकार जितना देखने में आकर्षक लगेगा, उतना ही बर्बर उसके कारनामे होंगे।"
सरकार राज और सरकार ३ के बीच के अंतराल में रामगोपाल वर्मा और अमिताभ बच्चन रण और डिपार्टमेंट जैसी फिल्मों में नज़र आये थे।  निःशब्द, रामगोपाल वर्मा की आग और सरकार राज में अमिताभ बच्चन के चरित्रों के विकास से बुरी तरह से निराश दर्शकों को रण में अमिताभ बच्चन का एक चैनल के मालिक विजय हर्षवर्द्धन मलिक और डिपार्टमेंट में एक गैंगस्टर गायकवाड़ का किरदार काफी उबाऊ और कमज़ोर लगा।  इन सभी फिल्मों में अमिताभ बच्चन का अभिनेता रामगोपाल वर्मा के निर्देशक पर भारी था।  दरअसल, जब रामगोपाल वर्मा का निर्देशक अमिताभ बच्चन के अभिनेता को नियंत्रित कर लेता है तो सरकार जैसी मील का पत्थर फिल्म बन जाती है।  लेकिन, जैसे ही वह अमिताभ बच्चन के अभिनेता का प्रशंसक बनता है, पूरी फिल्म हाथ से निकल जाती है।
सरकार राज में सरकार के करैक्टर के साथ गलती कर चुके रामगोपाल वर्मा सरकार ३ में इस गलती को सुधार रहे हैं।  वह सरकार को अपने चारों और फैली बुरी ताकतों से लौह हाथों से निबटने देंगे ।  लेकिन, क्या ऐसे समय में भी रामगोपाल वर्मा डायरेक्टर बने रहे होंगे ? क्या उन्होंने अमिताभ बच्चन के अभिनेता को नियंत्रित किया होगा ? अगर रामगोपाल वर्मा ने अमिताभ बच्चन को ऎसी निगेटिव भूमिका में लाउड नहीं होने दिया तो समझिये कि रामगोपाल वर्मा ने सरकार राज में की अपनी गलती सुधार ली है।  अन्यथा,  अपने निर्देशक के 'डिपार्टमेंट' में बुरी तरह घिर चुके रामगोपाल वर्मा सरकार के 'रण' में खेत रहेंगे।

द्वितीय विश्वयुद्ध पर क्रिस्टोफर नोलान की फिल्म

आधुनिक दुनिया में द डार्क नाइट ट्राइलॉजी के  डायरेक्टर के बतौर मशहूर क्रिस्टोफर नोलान अपनी जड़ों की तरफ लौटते लगते हैं।  फॉलोइंग (१९९८) जैसी अपराध फिल्म से  निर्देशन के क्षेत्र में कदम रखने वाले क्रिस्टोफर नोलान ने मेमेंटो (इस फिल्म का रीमेक हिंदी फिल्म गजिनी थी) जैसी साइकोलॉजिकल थ्रिलर और द प्रेस्टीज जैसी रहस्य ड्रामा फिल्म भी बनाई है।  ऐसे में जबकि वह इंटरस्टेलर और इन्सेप्शन जैसी फिल्मों से काल्पनिक नायकों नायकों की दुनिया में खोते नज़र आ रहे थे, द्वितीय विश्वयुद्ध पर उनकी फिल्म डंकिर्क उन्हें यथार्थ के धरातल पर विचरते दिखाने वाली फिल्म बन जाती है।  यह फिल्म दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान (१९४० में) डंकिर्क के समुद्री किनारे पर फंसे मित्र राष्ट्रों के चार लाख सैनिकों को बाहर निकालने की वास्तविक कहानी है।  इस फिल्म में टॉम हार्डी, मार्क रयलांस, केनेथ ब्रना, सिलियन मर्फी, फिओन वाइटहेड, अनेउरिन बर्नार्ड, जेम्स डार्सी,  जैक लौडेन, बैरी कोहन, टॉम ग्लीन-करने और हैरी स्टाइल्स द्वितीय विश्वयुद्ध के वास्तविक और काल्पनिक किरदारों में हैं।   डंकिर्क २१ जुलाई को पूरी दुनिया में रिलीज़ हो रही है।

अगले साल रिलीज़ होंगी एक्स-मेन से जुडी तीन फ़िल्में

ट्वेंटिएथ सेंचुरी फॉक्स ने आधिकारिक रूप से पुष्टि कर दी है कि उनके द्वारा तीन एक्स-मेन करैक्टर वाली फ़िल्में रिलीज़ की जाएँगी।  पहली फिल्म द न्यू म्यूटेंट्स १३ अप्रैल को रिलीज़ होगी।  यह फिल्म प्रशिक्षण ले रहे किशोर म्यूटेंट्स सुपरहीरोज़ के एक समूह की कहानी है। इस फिल्म के म्यूटेंट्स मार्वल सीरीज की तीन अलग अलग कॉमिक बुक से लिए गए हैं।  यह म्यूटेंट्स एक दूसरे के विरोधी भी हैं और खुद पर मुसीबत आने पर एक दूसरे की मदद भी करते हैं ।  इस कॉमिक बुक सीरीज में भरपूर एक्शन और एडवेंचर था। इससे नई फिल्म में दर्शकों को काफी रोमांचकारी एक्शन देखने को मिलेंगे। इस फिल्म से केबल और डेडपूल का परिचय भी होगा। फिल्म का निर्देशन जॉश बून करेंगे।  दूसरी फिल्म डेडपूल २ अगले साल  ही ०१ जून को रिलीज़ होगी।  इस फिल्म वेड विल्सन में कपट प्रयोग के बाद हीलिंग पावर में बढ़ोतरी हो जाती है।  वह अपने सूक्ष्म  शरीर डेडपल में प्रवेश कर जाता है।  डेडपूल इस फिल्म में केबल और डॉमिनो की  रहस्यमय म्युटेंट जोड़ी का सामना करेगा। इस फिल्म में दूसरी बार डेविड लीच डेडपूल अभिनेता रयान रेनॉल्ड्स को निर्देशित करेंगे।  तीसरी एक्स-मेन करैक्टर फिल्म डार्क फ़ीनिक्स  २ नवंबर को रिलीज़ होगी।  जीन ग्रे एक ओमेगा म्युटेंट हैं।  उसमे ब्रह्मांडीय शक्तियां लगातार बढती जा रही हैं।  निर्देशक सिमोन किनबर्ग अपनी  इस  फिल्म में दिखाएंगे कि प्रोफेसर एक्स और एक्स- मेन किस प्रकार ओमेगा म्यूटैंट की बुरी शक्तियों से निबटते हैं।  अगले साल टेलीविज़न पर एफएक्स की सीरीज लीजन और फॉक्स पर द गिफ्टेड शुरू हो रही हैं।  इन्हे मिला लिया जाए २० एक्स-मेन का ही हो जाता है।  

Sunday 7 May 2017

धर्मेन्द्र ने ५१ रुपये में साइन की थी पहली फिल्म

क्या आप जानते हैं कि धर्मेन्द्र ने अपनी पहली फिल्म दिल भी तेरा हम भी तेरे (१९६०) मात्र ५१ रुपये में साइन की थी। इस फिल्म के निर्देशक अर्जुन हिंगोरानी थे। यह अर्जुन हिंगोरानी की बतौर निर्देशक दूसरी फिल्म थी। फिल्म में धर्मेन्द्र की नायिका कुमकुम थी। बाद में, फिल्म आँखें (१९६८) में कुमकुम और धर्मेन्द्र ने बहन और भाई का किरदार किया था। फिल्म दिल भी तेरा हम भी तेरे में बलराज साहनी मुख्य भूमिका में थे। श्वेत-श्याम रंगों में यह फिल्म बुरी तरह से असफल हुई थी। लेकिन अर्जुन हिंगोरानी और धर्मेन्द्र की जोड़ी जम गई। बाद में, इस जोड़ी ने कब क्यों और कहाँ?, कहानी किस्मत की, खेल खिलाडी का, कातिलों के कातिल और कौन करे क़ुरबानी जैसी हिट फ़िल्में की। बतौर निर्माता अर्जुन हिंगोरानी की फिल्म करिश्मा कुदरत का से अर्जुन के बेटे सुनील हिंगोरानी का बतौर निर्देशक डेब्यू हुआ। इस फिल्म में धर्मेन्द्र की नायिका अनीता राज थी। सुनील और अनीता ने बाद में शादी भी कर ली। अर्जुन हिंगोरानी को धर्मेन्द्र के साथ 'थ्री के' सीरीज की फ़िल्में बनाने के कारण काफी शोहरत मिली। लेकिन, जब इस जोड़ी ने 'थ्री के' का साथ छोड़ कर सल्तनत (निर्देशक मुकुल आनंद) बनाई तो फिल्म बुरी तरह से असफल हुई। सल्तनत से मिस इंडिया जूही चावला का डेब्यू हुआ था। फिल्म में पिता धर्मेन्द्र की बेटे सनी के साथ जोड़ी बनी थी।
दिल भी तेरा हम भी तेरे (१९६०)