Wednesday, 1 February 2017

युद्ध की पृष्ठभूमि में रोमांच भी रोमांस भी

पिछले महीने रिलीज़ दो फ़िल्में ख़ास थी।  इन फिल्मों में रोमांच भी था और रोमांस भी।  लेकिन, इनमे ख़ास यह था कि यह दोनों फ़िल्में युद्ध फ़िल्में थी।  १७ फरवरी को रिलीज़ निर्देशक संकल्प रेड्डी की फिल्म द गाज़ी अटैक १९७१ के भारत पाकिस्तान युद्ध की पृष्ठभूमि पर थी ।  इस युद्ध के दौरान भारतीय नौ सैनिकों ने पाकिस्तान की पनडुब्बी पीएनएस गाज़ी को डुबो दिया था।  इस युद्ध में भारतीय सेना की पनडुब्बी एस २१ की पूरी टीम १८ दिनों तक समुद्र के अंदर रही थी।  इस एक्शन थ्रिलर फिल्म में भारतीय नौसेना की इसी जांबाज़ी को दिखाया गया था।  दूसरी फिल्म विशाल भारद्वाज की रंगून के द्वितीय युद्ध की पृष्ठभूमि पर रोमांस था।  यह एक प्रेम त्रिकोण फिल्म थी।  जितना युद्ध कर रोमांच था, उतना ही कंगना रनौत, शाहिद कपूर और सैफ अली खान के बीच का गर्मागर्म रोमांस भी था।
चीन के साथ युद्ध की हकीकत
द गाज़ी अटैक को देखते समय दर्शकों को हिंदुस्तान की पहली खालिस युद्ध फिल्म हकीकत की याद आ जाएगी।  जहाँ द गाज़ी अटैक हिंदुस्तानी सेना के पराक्रम की धड़कने तेज़ कर देने वाली कहानी है, वहीँ चेतन आनंद की फिल्म हकीकत हिंदुस्तानी सैनिकों दिलेरी, पराक्रम और देश पर मर मिटने की जज़्बे का बयान करती थी।  दरअसल, हकीकत चीन के साथ भारत के १९६२ में हुए युद्ध की कहानी थी। इस युद्ध में भारत को पराजय का सामना करना पड़ा था। इस युद्ध ने भारतीय सेना की कमज़ोरियां, सैन्य व्यूह रचना में कमियों और रसद आदि पहुंचाने में हुई कठिनाइयों को साफ़ कर दिया था।  हकीकत में इस बेहद भावुक और जोशीले तरीके से दिखलाया था।  मदन मोहन का संगीत देश भक्ति पैदा करने वाला था।  अपनी कथ्यात्मक ईमानदारी, श्रेष्ठ अभिनय और स्वाभाविक चित्रण के कारण इस फिल्म को ज़बरदस्त सफलता मिली थी।  हकीकत को बेस्ट फीचर फिल्म का राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार भी मिला।  इस फिल्म ने बॉलीवुड में देश भक्ति की फ़िल्में बनाने का रास्ता खोल दिया।
युद्ध की पृष्ठभूमि पर कल्पनाओं के घोड़े 

बावजूद इसके कि हकीकत को दर्शकों का साथ मिला था, बॉलीवुड ने विशुद्ध युद्ध फ़िल्में बनाने की बहुत ज़्यादा कोशिशें नहीं की।  जहाँ तक युद्ध की पृष्ठभूमि पर रोमांस भरने की बात है, बॉलीवुड ने इसे १९६४ से पहले भी किया और बाद में भी।  देवानंद की दोहरी भूमिका वाली फिल्म हम दोनों में युद्ध में गए हमशक्ल सैनिकों में से एक के लापता हो जाने और दूसरे के वापस होने पर लापता सैनिक की पत्नी द्वारा उसे अपना पति समझने तथा इसके फलस्वरूप उसके प्रेमिका के साथ गलतफहमी उपजने का चित्रण हुआ था। हकीकत बनाने वाले चेतन आनंद के भाई विजय आनंद ने इस फिल्म का अमरजीत के साथ निर्देशन किया था।  फिल्म एक
मुसाफिर एक हसीना (१९६२) में कश्मीर में उपजे रोमांस की पृष्ठभूमि में कबाइलियों के साथ भारतीय सेना का युद्ध था।  इस फिल्म का निर्देशन राज खोसला ने किया था। निर्माता-निर्देशक रामानंद सागर ने १९७२ में अतीत की ओर लंबी  छलांग भरी।  उन्होंने द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान बर्मा पर जापान के आक्रमण का सामना करने वाले इंडियन रॉयल आर्मी की भूमिका को  राजेंद्र कुमार, माला सिन्हा और धर्मेन्द्र के प्रेम त्रिकोण में गूंथ दिया था।  यह संगीतमय फिल्म ज़बरदस्त हिट हुई थी।  १९७५ में रिलीज़ फिल्म आक्रमण और २००४ में रिलीज़ अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों की कहानी भी कुछ ऎसी ही थी।  देव आनंद निर्देशित फिल्म प्रेम पुजारी (१९७०) एक पूर्व सैनिक के डरपोक भगोड़े सैनिक पुत्र (देवानंद) की कहानी थी।
युद्ध फिल्मों की असफलता 

जिस किसी फिल्म में थोड़ा युद्ध और ज़्यादा रोमांस रहा, संगीत का घालमेल थी, वह फिल्म हिट हुई।  लेकिन, विशुद्ध युद्ध फ़िल्म के नाम पर बनी तमाम हिंदी फ़िल्में असफल हुई।  चेतन आनंद ने हकीकत के बाद १९७१ के भारत पाकिस्तान युद्ध में हुए आपरेशन कैक्टस लिली पर फिल्म हिंदुस्तान की कसम का निर्माण किया था।  लेकिन, यह फिल्म असफल हुई।  गोविद निहलानी की फिल्म विजेता का नायक इंडियन एयरफोर्स का फाइटर  पायलट था।  इस फिल्म में भारतीय वायु सेना के कई लड़ाकू जहाजों, हेलीकाप्टर और हथियारों का रियल चित्रण  हुआ था।  लेकिन यह फिल्म फ्लॉप हुई।  मणि  शंकर की फिल्म टैंगो चार्ली एंटी-वॉर फिल्म होने के बावजूद दर्शकों को आकर्षित नहीं कर सकी।  इसी प्रकार से कारगिल युद्ध पर फरहान अख्तर की फिल्म लक्ष्य भी दर्शकों के दिलों को भेद नहीं पाई।
क्या युद्ध के बहाने एंटी पाकिस्तान इमोशन 

चीन से इकलौते युद्ध के बाद भारत ने पाकिस्तान से तीन तीन युद्ध किये।  शुरूआती हिंदी फिल्मों को छोड़ दे तो ज़्यादातर हिंदी फिल्मों में युद्ध में दुश्मन पाकिस्तान ही था।  अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों, आक्रमण, हिंदुस्तान की कसम, मेजर साहब, विजेता, दीवार : लेटस ब्रिंग आवर हीरोज होम, लक्ष्य, मिशन कश्मीर, बॉर्डर, एलओसी कारगिल, परम वीर चक्र, आदि फिल्मों में पाकिस्तान से भारत के युद्ध का चित्रण ही हुआ था।  इन तमाम फिल्मों में पाकिस्तान को खुले आम ललकारा और गरियाया गया था।  ख़ास तौर पर सनी देओल की फिल्म बॉर्डर तो जोशीले एंटी पाकिस्तान संवादों के कारण सुपर हिट हो गई।
कारगिल युद्ध को सफलता नहीं 

कारगिल युद्ध के बाद भारतीय जनता पार्टी को हुए लोक सभा चुनावों में बढ़िया सफलता मिली थी।  अटल बिहारी वाजपई के नेतृत्व में सरकार भी बनी। लेकिन, रूपहले परदे पर दर्शकों को  कारगिल युद्ध रास नहीं आया।   लेकिन, हिंदी फिल्म  दर्शकों को कारगिल युद्ध रास नहीं आया।  बॉलीवुड  के दर्जनों बड़े अभिनेताओं की मुख्य भूमिका   वाली फिल्म एलओसी कारगिल बॉक्स  ऑफिस पर  कुछ ख़ास नहीं कर सकी।  फरहान अख्तर की कारगिल युद्ध पर फिल्म लक्ष्य युद्ध की हकीकत के काफी करीब होने के बावजूद दर्शकों को छू नहीं सकी तो इसलिए कि इसमे पाकिस्तान के प्रति नरम रवैया अख्तियार किया गया था।  बॉक्स ऑफिस पर असफल फिल्म टैंगो चार्ली  में भी कारगिल युद्ध का ज़िक्र था।
सैन्य पृष्ठभूमि पर कुछ अच्छी फ़िल्में '
कुछ हिंदी फिल्मकारों ने खालिस युद्ध पर तो नहीं लेकिन सैन्य पृष्ठभूमि वाली भिन्न पहलुओं पर फ़िल्में बनाने की कोशिश की।  इन फिल्मों को बॉक्स ऑफिस पर बहुत  सफलता न भी मिली हो, लेकिन प्रशंसा खूब मिली।  लेखक-निर्देशक अशोक कॉल की फिल्म परम वीर चक्र नेशनल डिफेंस अकादमी के तीन कैडेटों की थी जो एक ही लड़की से प्यार करते थे।  लेकिन, देश की बात आने पर वह प्रेम का बलिदान कर देने वाले थे।   अमृत सागर की फिल्म १९७१ पाकिस्तान द्वारा युद्ध बंदी बना लिए गए छह सैनिकों की कहानी थी।   समर खान की फिल्म शौर्य में एक मुस्लिम  सैनिक के कोर्ट मार्शल का चित्रण था, जो अपने सीनियर को शूट कर देता है।  नाना पाटेकर की फिल्म प्रहार: द फाइनल अटैक भारतीय सैनिक के लिए परिवार से पहले देश होता है का सन्देश देती थी।
अतीत के युद्ध में प्रेम 
हिंदी फिल्मकार अब पुराने युद्धों की पृष्ठभूमि पर प्रेम की बुनियाद रख रहे हैं।  द गाज़ी अटैक से भिन्न शैली में बनाई जा रही दो फ़िल्में ख़ास हैं।  विशाल भरद्वाज की फिल्म रंगून की द्वितीय विश्व युद्ध की पृष्ठभूमि पर सैफ अली खान, कंगना रनौत और शाहिद कपूर का गर्मागर्म चुम्बनों का रोमांस देखने के बाद  दर्शकों को दो अन्य फ़िल्में भी युद्ध की पृष्ठभूमि पर ही देखने को मिलेंगी।   कबीर खान की फिल्म ट्यूबलाइट में भारत चीन युद्ध हैं।  इस युद्ध के बीच खिलेगा  इंडियन आर्मी अफसर का एक चीनी लड़की के साथ प्रेम का फूल।  बेबी (२०१५) के शिवम् नायर निर्देशित प्रीकुएल फिल्म नाम शबाना एक लड़की शबाना के अंडर कवर एजेंट बनने का चित्रण हुआ है।


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