फिल्म निर्माता और
अभिनेत्री अनुष्का शर्मा की फिल्म फिल्लौरी पंजाब के फिल्लौर गाँव की पृष्ठभूमि पर
है। एक एनआरआई लड़का कनन शादी करने के लिए अपने गाँव फिल्लौर आता है। जन्मपत्री से
पता चलता है की वह मांगलिक है। इसलिए जिस लड़की से वह शादी करेगा, उसकी जान को खतरा
है। इसका हल यह निकाला जाता है कि कनन शादी करने से पहले गाँव के एक पेड़ से फेरे
ले। कनन को फेरे लेने पड़ते हैं। लेकिन,उसे नहीं मालूम कि पेड़ में शशि का भूत
रहता है। होता यह है कि फेरे के बाद पेड़ कटवा दिया जाता है। शशि का भूत जहाँ जहां
कनन जाता है, वह प्रेत भी जाता है। इस से बड़ी हास्यास्पद
रोमांटिक स्थिति पैदा हो जाती हैं। फिल्लौरी में शशि के प्रेत की भूमिका अनुष्का
शर्मा कर रही हैं। उनके प्रेमी की भूमिका में दिलजीत दोसांझ हैं।
खून करने वाले दुश्मन
भूत
पुराने जमाने से
हिंदी फिल्मों में भूतों ने ख़ास भूमिका अदा की है। तमाम फ़िल्में इन भूतों या
आत्माओं के इर्दगिर्द घूमी हैं। इसलिए यह
भूत या कहिये आत्माएं भी बॉलीवुड फिल्मों में दो प्रकार की नज़र आती हैं। डरावने और खून से सने चेहरों वाले बेइंतहा खून
खराबा करने वाले भूत, जो किसी वजह से आसपास गुजरने वाले या उनके रहने
की जगह पर पहुँचने वाले लोगों का क़त्ल कर देते हैं। इन भूतों का अंत क्रॉस या हिन्दू देवी देवताओं
के चिन्हों के ज़रिये किया गया। विक्रम भट्ट ने अपनी फिल्म १९२० की आत्मा को हीरो
से हनुमान चालीसा पढ़वा कर मरवाया था। इन
फिल्मों ने दर्शकों का खूब मनोरंजन किया
है। ऐसी फ़िल्में बना कर इन के निर्माताओं
ने बॉक्स ऑफिस पर खूब चांदी बटोरी। आम तौर पर मामूली बजट पर बनी इन फिल्मों में
हिंदी फिल्मों के असफल चेहरे या बिलकुल नए चेहरे नज़र आये। ऐसी फिल्मों को दर्जन या
आधा दर्जन अभिनेता अभिनेत्रियों की ज़रुरत होती थी।
दोस्त भूत क्यों ?
खून खराबा करने से अलग भूतों की श्रेणी में आने वाले भूतों की नस्ल भिन्न होती है। यह भूत किसी का खून नहीं करते, इनकी मौजूदगी से दर्शकों में भय पैदा होता है। यह भूत भिन्न कारणों से परदे पर आते हैं। कौन से हैं यह भूत !
जब मदद माँगने आये भूत
घोस्ट दोस्त की
आत्माओं या भूतों को अपना बदला लेने के लिए शरीर की मदद की दरकार होती हैं। ऎसी आत्माये अपने शरीर की हत्या करने वाले लोग या लोगों से बदला लेना चाहती
हैं। इसलिए वह नायक या नायिका से संपर्क करता
है। सीपी दीक्षित की १९८२ में रिलीज़
फिल्म गज़ब में धर्मेन्द्र की दोहरी भूमिका थी। एक धर्मेन्द्र बदसूरत चेहरे वाला था। विलेन द्वारा उसकी हत्या कर दी जाती है। अब गांव में दूसरा धर्मेन्द्र आता है। तब पहले धर्मेन्द्र की आत्मा उसी मदद कर अपनी हत्या का बदला लेती है। अनुराग बासु की फिल्म साया (२००३) में तारा
शर्मा की आत्मा अपने बच्चे के लिए जॉन अब्राहम को सन्देश भेजती है। हॉलीवुड की फिल्म घोस्ट से प्रेरित हो कर
बॉलीवुड ने दो हिंदी फ़िल्में प्यार का साया और माँ बनाई। प्यार का साया में राहुल रॉय और शीबा नायक
नायिका थे, जबकि माँ की स्टार कास्ट में जीतेंद्र और जयाप्रदा जैसे बड़े सितारे
शामिल थे। माँ हिट साबित हुई।
मददगार भूत
अमिताभ बच्चन जब भी
भूत बने, फ्रेंडली घोस्ट यानि मददगार भूत ही बने। फिल्म भूतनाथ भूतनाथ रिटर्न और
अरमान फिल्म में अमिताभ बच्चन मददगार भूत की भूमिका में थे। अरमान में डॉक्टर बने
अमिताभ बच्चन की मौत हो जाती है। मौत के बाद वह अपने बेटे अनिल कपूर को ऑपरेशन में
मदद करते हैं। भूतनाथ में अमिताभ एक बच्चे के मददगार थे तो भूतनाथ रिटर्न में राजनीतिक दलों की चालों का पर्दाफाश करने वाले भूत थे। भूत बने सलमान खान फिल्म हेल्लो ब्रॉदर में अरबाज़ खान के शरीर में
आकर मदद किया करते थे। चमत्कार में
नसीरुद्दीन शाह अपना बदला लेने के साथ साथ क्रिकेट मैच जीतने में शाहरुख़ खान की मदद भी
करते थे। भूत अंकल के जैकी श्रॉफ, वाह ! लाइफ हो तो
ऎसी के शाहिद कपूर और टार्ज़न द वंडर कार के अजय देवगन के भूत भी मददगार भूत
थे।
ये भूत नहीं आत्माएं
हैं
रामगोपाल वर्मा और
विक्रम भट्ट की भयावनी फिल्मों में,
चाहे टाइटल 'भूत' क्यों न रहा हो, आत्माएं भटका करती
थी। रामगोपाल वर्मा की फिल्मों फूँक,
फूँक २, डरना मना है, डरना ज़रूरी है, वास्तुशास्त्र, भूत रिटर्न, आदि फिल्मों में
आत्माएं भटकती और डराती थी। विक्रम भट्ट
की तमाम फिल्मों में पुराने और वीरान विदेशी हवेली में आत्माएं ह्त्या तक कर दिया
करती थी। विक्रम भट्ट निर्देशित फिल्म राज़
की सफलता के बाद भटकती आत्माओं की राज़ सीरीज की फिल्मों का सिलसिला शुरू हो
गया। उनकी अन्य फिल्मों १९२० और १९२० ईविल
रिटर्न, शापित और हॉन्टेड में भटकती आत्माएं दिखाई गई थी। इन फिल्मकारों की भूत फिल्मों में बिपाशा बासु, अजय देवगन और अरबाज़ खान ने भी अभिनय किया।
कहाँ है भूत! न ही
कोई आत्मा !!
हिंदी फिल्म दर्शकों
का भूत या आत्मा से पहला परिचय कमाल अमरोही ने १९४९ में रिलीज़ फिल्म महल से कराया
था। इस फिल्म में अशोक कुमार और मधुबाला
मुख्य भूमिका में थे। फिल्म में शुरू से
मधुबाला को एक भटकती और आएगा आने वाला आएगा गीत गाने वाली आत्मा बताया गया
था। लेकिन क्लाइमेक्स में यह फिल्म बताती
थी कि वह कोई आत्मा नहीं, वास्तविक महिला थी। बिरेन नाग की फिल्म बीस साल बाद (१९६२), राज खोसला की फिल्म
वह कौन थी ? (१९६४), महमूद की फिल्म भूत बंगला (१९६५) और
प्रियदर्शन की फिल्म भूल भुलैया (२००७) में भी आत्मा का एहसास कराया गया था। लेकिन इन फिल्मों में वास्तव में कोई आत्मा
नहीं थी।
डरावनी फिल्मों के
रामसे
फिल्लौरी एक रोमांस फिल्म है। इसलिए, अनुष्का शर्मा का भूत किसी को नुकसान नहीं पहुंचाता। वह एक फ्रेंडली घोस्ट है। जो सिर्फ अपनी रोमांस कथा दुनिया को बताना चाहता है। ज़ाहिर है कि निर्देशक अंशाई लाल ने अपनी कहानी का भूत एक अच्छा भूत है। हिंदी फिल्मों में काफी ऐसे भूत कहानी के केंद्र में रहे हैं। जहाँ रामसे और भाखरी की फिल्मों में दोयम दर्जे के कलाकारों ने अभिनय किया, वहीँ इन दोस्त घोस्ट वाली फिल्मों को करने मे बॉलीवुड के सुपर स्टार भी नहीं हिचके।
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