Sunday, 14 April 2019

बॉलीवुड में ‘कलंक’ नहीं है तवायफ का चरित्र !


अभिषेक वर्मन की १७ अप्रैल को रिलीज़ फिल्म कलंक में सितारों की भरमार है। संजय दत्तमाधुरी दीक्षितवरुण धवनअलिया भट्टसोनाक्षी सिन्हा और सिद्धार्थ रॉय कपूर जैसे सितारे फिल्म में जगमगा रहे हैं। एक से एक रहस्य से भरे किरदार हैं कलंक में। इन्ही के बीच है बहार बेगम का किरदार। यह एक तवायफ है। इसी के अतीत से बनी है कलंक कथा। फिल्म में बहार बेगम यानि माधुरी दीक्षित और संजय दत्त का रोमांस है। जिसके टूटने (?) का परिणाम है कलंक ! बहार बेगम अपने प्यार के लिए बलिदान करती है या बदला लेती है इसका खुलासा १७ अप्रैल को होगा। लेकिनइतना तय है कि बॉलीवुड के लिए तवायफ किरदार हमेशा से काफी अहम् रहे हैं। इनके कई शेड रहे हैं। बॉलीवुड की फिल्मों में तवायफों के कई नाम रहे हैं। लेकिनआम तौर पर बलिदानी होती हैं हिंदी फिल्मों की तवायफें।  

तवायफ यानि कोर्टेसन/राज नर्तकी/गणिका
यहाँ साफ़ करना ज़रूरी है कि कॉर्टेसन उर्दू में तवायफ होती हैजो नाचने गाने का काम यानि मुजरा करती है।  इससेसभी सेक्स नहीं कर सकते।  वह अपने प्रेमी से  ही सेक्स करने को  राजी होती है। यह एक मर्द के प्रति वफादार भी होती है और खासी समझदार और जानकार भी। हिंदी फिल्मों में कॉर्टेसन यानि तवायफ दो रूपों में नज़र आती हैं।एक काल्पनिक नर्तकियां जो नाचने गाने का काम करती हैंसमाज की ठुकराई हुई हैं।  हीरो उनसे प्यार करता है।  इनका कोई भी नाम हो सकता है।  लेकिनअमूमन इन नर्तकियों के नाम के आगे जान या बाई लगा होता है।  मसलन साहबजानहीरा बाई या मुन्नी बाई या अब बहार बेगम   बॉलीवुड ने तवायफों के इसी रूप में ज्यादा दिखाया है।

बलिदान करने वाली तवायफ 
कमाल अमरोही की फिल्म 'पाकीज़ाभव्य फिल्मों में शुमार है।  यह एक नाचने गाने वाली तवायफ और एक नवाबजादे के प्रेम की कहानी है।  कमाल अमरोही ने इसे भव्य सेट्सचमकदाररंगीन और भारी भरकम पोशाकों वाले चरित्रोंदमकती शमाओं की रोशनी और मधुर संगीत से सजाया था।इस फिल्म में मीना  कुमारी ने साहबजान और नर्गिस की दोहरी भूमिकाएं की थी।  फिल्म में नवाबजान और गौहरजान जैसे कोठों के किरदार भी थे।  इस फिल्म की नाटकीयता और अभिनय ने तमाम चरित्रों का वास्तविक जैसा एहसास कराया था। तवायफ को महान साबित करने वाली साधनातवायफआदि बहुत सी फ़िल्में सफल भी रही हैं। इन सबसे अलग है शरत चन्द्र चटर्जी के उपन्यास 'देवदासकी तवायफ चंद्रमुखी का चरित्र।  वह बिना किसी स्वार्थ के देवदास का सहारा बनती है। मुज़फ्फर अली की फिल्म जानिसार’ भी एक तवायफ और अवध के नवाब की प्रेम कहानी थी ।

बादशाहों और नवाबों की प्रेम लीला 
मुगलकाल की कई सुन्दर और शक्तिशाली तवायफों या राज नर्तकियों का जिक्र मिलता है।  अकबर के दौर में अनारकली की कहानी तो काफी मशहूर है। औरंगज़ेब भी मोती बाई के हुस्न और हुनर का दीवाना था।  शाहजहाँ के दौर में नूर बेगम और गौहर जान का ज़िक्र आता है। १९४१ में होमी वडिआ प्रोडक्शंस के अंतर्गत एक इंग्लिश फिल्म 'कोर्ट डांसरया 'राज नर्तकीरिलीज़ हुई थी।  इस फिल्म में पृथ्वी राजकपूर ने प्रिंस चन्द्रकीर्ति और साधना बोस ने राज नर्तकी का किरदार किया था। यह फिल्म इन दोनों की प्रेम कहानी थी। ऐसे कुछ दूसरी कॉर्टेसन यानि तवायफ यानि नगर वधु के किरदारों को हिंदी फिल्मकारों ने अपनी फिल्मों का केंद्रीय चरित्र बनाया है।  दिलचस्प तथ्य यह है कि इन किरदारों को करने में तत्कालीन बड़ी अभिनेत्रियों ने हिचक भी नहीं दिखाई। रेखा ने बहुत सी फिल्मों में राज नर्तकी/तवायफ की भूमिका की । रेखा की दस श्रेष्ठ भूमिकाओं में उत्सव की वसंतसेनाकामसूत्र की रसदेवी और उमराव जान की अमीरन बाई के गणिकातवायफ या राज नर्तकी के किरदार शामिल हैं। 

एक थी अनारकली
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर काल्पनिक अनारकली और सलीम की रोमांस कथा पर सबसे अधिक फ़िल्में बनी ।  मूक फिल्मों के दौर में१९२८ में आर एस चौधुरी ने दिनशा बिल्मोरिआ और रूबी मायर उर्फ़ सुलोचना को सलीम अनारकली बना कर फिल्म 'अनारकलीबनाई।  चौधुरी ने ही १९३५ में इसी स्टारकास्ट के साथ दूसरी अनारकली का निर्माण किया।  १९५३ में फिल्मिस्तान ने प्रदीप कुमार और बीना राय के साथ नन्दलाल जसवंतलाल के निर्देशन में एक और 'अनारकलीका निर्माण किया।१९५५ में वेदांतम राघवैया के  निर्देशन में तमिल और तेलुगु में सलीम अनारकली की रोमांस कथा को सेलुलॉइड पर उतारा गया।  अंजलि देवी अनारकलीअक्केनि नागेश्वर राव सलीम और एस वी रंगा राव अकबर की भूमिका में थे। १९५८ में एक पाकिस्तानी फिल्म 'अनारकलीभी रिलीज़ हुई।१९६१ में रिलीज़ हुई के आसिफ की शाहकार फिल्म 'मुग़ल ए आज़म। इस फिल्म में पृथ्वीराज कपूरदिलीप कुमार और मधुबाला ने क्रमशः अकबरसलीम और अनारकली के किरदार किए थे।


वैशाली की आम्रपाली
अम्बपाली या आम्रपाली ६००-५०० ईसा पूर्व के वैशाली नगर की कॉर्टेसन (राज नर्तकी या नगरवधू) थी। वैशाली के लिच्छवि राजा मनुदेव ने जब  आम्रपाली को देखा तो वह उस पर आसक्त हो गया।उसे अपने पास रखने की इच्छा से वह आम्रपाली की शादी के दिन उसके वर को मरवा देता है और आम्रपाली को वैशाली की नगर वधु घोषित कर देता है।  इस  कहानी में पेंच तब आता हैजब मगध शासक बिन्दुसार के पास वैशाली की नगर वधु की खूबसूरती के किस्से पहुंचते हैं।  वह आम्रपाली को पाने के लिए वैशाली पर आक्रमण कर देता है। आम्रपाली पर आचार्य चतुरसेन ने एक उपन्यास वैशाली की नगर वधु लिखा था। आम्रपाली पर अब तक दो हिंदी फ़िल्में बनाई जा चुकी है।नन्दलाल जसवंतलाल के निर्देशन में १९४५ में रिलीज़ आम्रपाली में  आम्रपाली का मुख्य किरदार सबिता देवी ने किया था। दूसरी आम्रपाली १९६६ में रिलीज़ हुई।  इस फिल्म को लेख टन्डन ने निर्देशित किया था।  फिल्म में आम्रपाली की भूमिका वैजयंतीमाला ने की थी। सुनील दत्त मगध सम्राट अजातशत्रु बने थे।

भटके हुए कुमारगिरि की चित्रलेखा
भगवती चरण वर्मा के इसी टाइटल वाले उपन्यास की  नायिका है चित्रलेखाजो बाल विधवा है और मौर्या सम्राट की राज नर्तकी ।  चित्रलेखा को मौर्या साम्राज्य का सेनापति बीजगुप्त प्यार करता है।एक संन्यासी कुमारगिरि भी उस पर आसक्त हो जाता है ।  इस कथानक पर किदार शर्मा ने दो फ़िल्में बनाई।  पहली चित्रलेखा १९४१ में बनायी गईजिसमे महताब ने चित्रलेखानंदरेकर ने बीजगुप्त और ए एस ज्ञानी ने कुमारगिरि का किरदार किया था।  दूसरी बार १९६४ में बनाई गई फिल्म 'चित्रलेखाके निर्देशक किदार शर्मा ही थे।  चित्रलेखाबीजगुप्त और कुमारगिरि की भूमिकाएं क्रमशः मीनाकुमारीप्रदीप कुमार और अशोक कुमार ने की थी।  १९४१ की चित्रलेखा अभिनेत्री महताब के नग्न स्नान दृश्य के कारण चर्चित हुई।

अवध की शान उमराव जान
मिर्ज़ा मोहम्मद हादी रुसवा के उपन्यास 'उमराव जान अदा का मुख्य किरदार है अमीरन बाईजो अच्छी गज़लकारा थी।  अमीरन एक तवायफ थी । वह नवाब सुलतान से प्रेम करने लगती है। इस उपन्यास पर पहले मुज़फ्फर अली ने १९८१ में फिल्म 'उमराव जानका निर्माण किया। खय्याम के संगीत से सजी रेखा और फारूख शेख की मुख्य भूमिका वाली इस फिल्म सुपर हिट हुई।  फिर जे पी दत्ता ने २००६ में फिल्म को ऐश्वर्या राय बच्चन और अभिषेक बच्चन के साथ रीमेक किया।  फिल्म बुरी तरह से असफल हुई।  

शूद्रक की वसंतसेना
शूद्रक के संस्कृत नाटक 'मृच्छ्कटिकमपर निर्माता शशि कपूर ने एक फिल्म 'उत्सवबनाई थी। यह नाटक ईसा पूर्व पांचवी शताब्दी के प्राचीन उज्जयनी के प्रद्योत वंश के शासक पालक के शासन के शासन काल पर था ।  वसंतसेना राज दरबार की नर्तकी है।  राजा के साले की नज़र उस पर है। वह उसका अपहरण करवाने के लिए सैनिक भेजता है।  वसंतसेना भागती हुई चारुदत्त के घर में छिप जाती है।  इस फिल्म में वसंत सेना का किरदार रेखा ने किया था। शेखर सुमन ने चारुदत्त की भूमिका की थी। 

और दीपिका पादुकोण की मस्तानी 

लगभग तीन साल पहले १८ दिसम्बर २०१५ को हिंदी फिल्मों की तवायफों के इतिहास में बाजीराव मस्तानी का नाम भी जुड़ गया  । दीपिका पादुकोण के रूप मेंसंजय लीला भंसाली ने बाजीराव और मस्तानी की प्रेम कहानी को इस शिद्दत से उतारा कि दर्शकों ने इस फिल्म को सुपरहिट बना दिया । अबकरण जौहर और अभिषेक वर्मा कलंक में माधुरी दीक्षित के  ज़रिये बहार बेगम को लाएय है । क्या यह काल्पनिक चरित्र हिंदी फिल्मों में तवायफ फिल्मों का सिलसिला शुरू कर सकेगा ?



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