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Monday 11 March 2019

नो फ़ादर्स इन कश्मीर को UA सर्टिफिकेट


लगभग एक महीने पहले, निर्देशक अश्विन कुमार को अपनी फिल्म नो फ़ादर्स इन कश्मीर को सर्टिफ़िकेट देने की प्रक्रिया में सही न्याय पाने के लिए भारत में फिल्मों के प्रमाणन के मामलों में आख़िरी फ़ैसला करनेवाली संस्था, एफसीएटी के सामने दूसरी बार अपनी फिल्म का प्रदर्शन करना पड़ा था। एक सेंसर सर्टिफ़िकेट पाने के लिए जुलाई २०१८ में फ़ाइल करने की जो सामान्य प्रक्रिया शुरू हुई थी, उसे पूरा करने और अपनी फ़िल्म को इंसाफ दिलाने के लिए फ़िल्म के निर्माताओं और कलाकारों को 8 महीने, 6 स्क्रीनिंग्स और 7 सुनवाईयों तक इंतज़ार करना पड़ा है। इस फिल्म के साथ कुछ ऐसा हुआ है जो शायद ही कभी होता है, जिसमें प्रमाणन के लिए देरी पर देरी होती रही और आख़िरकार इस फिल्म पर प्रतिबंध लगा दिया गया। अपनी फ़िल्म के विषय के आधार पर सीबीएफसी के द्वारा फ़िल्म को ए सर्टिफ़िकेट देने का फैसला फ़िल्म के निर्माताओं को ग़लत लगा और उस फ़ैसले को चुनौती देने के बाद, उन्होंने पहले नवंबर में एफसीएटी में अर्ज़ी दी जिसपर दिसंबर में और बाद में जनवरी में सुनवाई हुई थी। 


अब एफसीएटी ने दूसरी बार फ़िल्म को देखने के एक महीने के बाद इस फ़िल्म पर अपना आख़िरी फ़ैसला दे दिया है जिसमें फ़िल्म में कुछ काँट-छाँट करने और अस्वीकरण में कुछ बदलाव करने के लिए कहा गया है। हालाँकि सबसे अहम बात यह है कि एफसीएटी ने इस फ़िल्म को यू/ए सर्टिफ़िकेट देकर फ़िल्म के निर्माताओं द्वारा इस फ़िल्म को यू/ए कहे जाने के समर्थन की पुष्टि की है। हालाँकि यह फैसला अभी निर्माताओं के द्वारा अंतिम सर्टिफ़िकेट पाने के लिए सीबीएफ़सी को प्रस्तुत करने पर टिका है, जिसका उन्हें पूरा भरोसा है कि बोर्ड ख़ुशी से इस फ़िल्म को पास कर देगी। पेश आनेवाली इस दिक्कत की असली वजह थी फिल्म के लिए की गई देरी थी जो सीबीएफसी के नियमों के खिलाफ थी, जिसने फिल्म को देखने से इंकार कर दिया था और फ़िल्म को देखने के बाद अपने फैसले को रोके रखा और अक्टूबर में उसे ए सर्टिफिकेट दिया गया जबकि यह फ़िल्म अंग प्रदर्शन, घृणा, हिंसा, ख़ून-ख़राबे या इन जैसी ए स्तर की किसी भी बात को बढ़ावा नहीं दे रही थी। 



इस फ़िल्म में सोनी राजदान, अंशुमान झा और कुलभूषण खरबंदा हैं और १६ साल के दो क़िरदारों की प्रेम कहानी के बारे में है जो घाटी में लापता हो गए अपने-अपने पिता की तलाश करते हैं।


ऑस्कर अवार्ड विजेता फिल्म पीरियड. एंड ऑफ़ सेंटेन्स की टीम - क्लिक करें 

Thursday 13 December 2018

सेंसर बोर्ड का गड़बड़ झाला !


प्रसून जोशी के, सेंसर बोर्ड का चीफ बनने के बाद से सब कुछ प्रसून प्रसून चल रहा है।  बड़ी फिल्मों, बड़े बैनर की फिल्मों और बड़े सितारों की फिल्मों की चांदी है।  फिल्म भेज दीजिये, तीन दिन में पास। बाकी के लिए कैलेंडर हैं न !

इधर एक और गड़बड़झाला चल रहा है।  हॉलीवुड की फिल्म एक्वामैन को, भारतीय सेंसर बोर्ड ने यूए प्रमाण पत्र दे दिया। यानि इस फिल्म को बच्चे भी अपने बड़ों के साथ देख सकते हैं। जबकि इस फिल्म में हिंसा और खराब शब्दों की भरमार थी। सेंसर ने केवल बास्टर्ड्स यानि हरामी शब्द ही म्यूट करवाए।


जबकि इस फिल्म को ब्रितानी सेंसर बोर्ड ने १२ए सर्टिफिकेट दिया है।  यानि यह फिल्म १२ साल से कम के बच्चे नहीं देख सकते। हालाँकि, पहले ब्रितानी सेंसर बोर्ड ने फिल्म के लिए कड़ी १५ रेटिंग वाला प्रमाण पत्र तजवीज किया था। इस पर फिल्म के निर्माताओं को हिंसक दृश्यों और गालियों को कम करना पड़ा, ताकि दर्शकों की संख्या बढ़ सके। मगर भारतीय सेंसर बोर्ड ने इसे उदारता दिखाते हुए, दर्शक दे दिए। ऐसा कैसे संभव हुआ ?

जवाब है मद्रास का सेंसर बोर्ड।  मद्रास का सेंसर बोर्ड उदार माना जाता है। दक्षिण की कामुक दृश्यों वाली और हिंसा से भरपूर फ़िल्में बिना किसी ज़्यादा न नुकुर के पारित हो जाती हैं। एक्वामैन के निर्माता फिल्म को मुंबई ऑफिस के बजाय सेंसर के मद्रास ऑफिस में अपनी फिल्म ले गए और अखिल भारतीय रिलीज़ के लिए यूए प्रमाणपत्र पा लिया।  वहीँ मुंबई के सेंसर बोर्ड ने, पहलाज निहलानी की गोविंदा अभिनीत फिल्म रंगीला राजा पर २० कट मारने का आदेश दे दिया था।


आम तौर पर, बॉलीवुड की फ़िल्में और हॉलीवुड की सभी फ़िल्में मुंबई स्थित सेंसर बोर्ड के ऑफिस से प्रमाणित कराई जाती हैं।  लेकिन, अब हो यह रहा है कि हॉलीवुड के फिल्म निर्माता अपनी फिल्मे मद्रास या दिल्ली के सेंसर बोर्ड ऑफिस लिए चले जाते हैं। फिल्म आसान पास भी हो जाती है। पहलाज निहलानी की माने तो ऐसा प्रसून जोशी की अध्यक्षता में मुंबई का सेंसर बोर्ड फिल्म को सेंसर करने में देर करता है।

यहाँ बताते चलें कि इंग्लिश एक्वामैन को चेन्नई सेंसर बोर्ड ने पारित किया। जबकि, शंकर की तमिल में बनी फिल्म २.० को सेंसर के लिए मुंबई लाया गया था।

सुनने में आया है कि प्रसून जोशी, सेंसर चीफ के काम के बजाय साहित्य सेवा के लिए देश विदेश की यात्रा पर रहना ज़्यादा पसंद करते हैं।  अगर कोई उन्हें कुछ लिखता है, तो उसका जवाब तक नहीं देते।  मुंबई के बड़े फिल्म पत्रकारों को भी मिलने में कठिनाई होती है। इसी का नतीजा है कि शुक्रवार १४ दिसंबर से बच्चे अपने बड़ो के हिंसक दृश्य देखेंगे और गलियों का मज़ा लूटेंगे।  


झलकारी बाई की भूमिका में अंकिता लोखंडे - पढ़ने के लिए क्लिक करें 

Thursday 9 August 2018

पाखी को सेंसर प्रमाण पत्र नहीं !

सेंसर बोर्ड ने  निर्देशक सचिन गुप्ता की फिल्म पाखी को प्रमाण पत्र देने से इंकार कर दिया है। पाखी के प्रमाणीकरण पर सेंसर की यह टिप्पणी महत्वपूर्ण है कि बाल तस्करी और यौन हमले के आसपास घूमती इस फिल्म में, इस विषय को बहुत ही अपरिष्कृत तरीके से दर्शाया गया है। इसलिए जांच समिति ने फिल्म का प्रमाणन करने से इंकार कर दिया है।

पाखी एक सोशियल क्राइम ड्रामा  फिल्म है जिसने हाल के दिनों में मीडिया में सुर्खियों मिली थी और राष्ट्रीय स्तर पर प्रचारित गया था। इस फिल्म को १० अगस्त २०१८ को रिलीज होना था।  लेकिन सेंसर सर्टिफिकेट न मिलाने के कारण अब फिल्म  की रिलीज आगे बढ़ा दी गयी है। 

निर्माता का दावा है कि फ़िल्म पाखी सोशल क्राइम ड्रामा फ़िल्म है जो बच्चों के अवैध व्यापार ( चॉइल्ड ट्रैफिकिंग) जैसी सामाजिक बुराइयों से जुडी सत्य घटनाओं पर आधारित है। पिछले एक दशक से देश के कई हिस्सों में महिला अत्याचार  और  बाल शोषण की खबरों ने सुर्खियाँ बनायीं है ऐसे माहौल में फ़िल्म  पाखी  बच्चों के अवैध व्यापार (चॉइल्ड ट्रैफिकिंग) बहुत ही महत्पूर्ण समस्या की तरफ ध्यान आकर्षित करती है।

सेंसर सर्टिफिकेट के इनकार पर, फिल्म निदेशक सचिन गुप्ता कहते हैं, "यह वास्तव में चौंकाने वाला है कि सेंसर बोर्ड ऐसे सामाजिक अपराध ड्रामा को प्रमाणित करने से इंकार कर रहा है। फिल्म में न तो अपमानजनक भाषा है और न ही हिंसा है, लेकिन फिर भी सेंसर ने प्रमाणित करने से मना कर दिया गया है। पहली बार ऐसी सामाजिक  अपराध ड्रामा  फिल्म  नहीं आ रही है। इससे पहले भी सामाजिक अपराध के आधार पर फिल्म बनाई गई थी और सेंसर प्रमाणपत्र मिला है । अब फिल्म को संशोधित समिति ( रिवाइजिंग कमेटी )  के लिए आवेदन  किया गया है। "

सेंसर बोर्ड की टिपण्णी से साफ़ है कि पाखी में एक संजीदे विषय को बेहद अपरिष्कृत ढंग से फिल्माया गया है।  यानि, फिल्म को समाज पर प्रभाव डालने के लिहाज़ से बनाने के बजाय इस अपराध को सिर्फ दिखाने का इरादा था।  आजकल, बॉलीवुड में बालिका यौन शोषण, तस्करी और बलात्कार, आदि विषयों को उठा तो लिया जाता है। लेकिन फिल्मांकन बेहद बचकाने ढंग से होता है। ऐसी फिल्में सिर्फ विषय भुनाने के ख्याल से ही बनाई जाती है।  




टोटल धमाल की स्टाइल के लिए १२ करोड़ - पढ़ने के लिए क्लिक करें 

Thursday 11 January 2018

अब बालिगों के लिए मोहल्ला अस्सी

दो साल लम्बी चली कानूनी लड़ाई के बाद डॉक्टर चंद्रप्रकाश द्विवेदी की फिल्म मोहल्ला अस्सी सेंसर द्वारा पारित कर दी गई है। सेंट्रल बोर्ड ऑफ़ फ़िल्म सर्टिफिकेशन ने बुद्धवार को मोहल्ला अस्सी को बालिगों के लिए प्रमाण पत्र के साथ पारित कर दिया है। फिल्म में सनी देओल के संस्कृत के शिक्षक द्वारा बोले गए गालियों भरे संवादों को म्यूट कर दिया गया है। फिल्म को किसी प्रकार के कोई कट नहीं लगे हैं। यहाँ बताते चलें कि दो साल पहले सेंसर बोर्ड ने इस फिल्म को धर्म और संस्कृति के लिए अपमानजनक बताते हुए पारित करने से मना कर दिया था। इस पर अपीलेट ट्रिब्यूनल ने फिल्म को दस कट के साथ पारित करने को कहा था। लेकिन, फिल्म के निर्माता कोर्ट चले गए।  इस प्रकार से यह लड़ाई दो साल तक चलती रही। इस बीच पूरी फिल्म यू ट्यूब पर लीक भी हो गई। फिल्म को प्रमाण पत्र मिलने के बाद, फिल्म के निर्माता विनय तिवारी का इरादा फिल्म को ज़ल्द से ज़ल्द रिलीज़ करने का है। विनय तिवारी मोहल्ला अस्सी को होली से पहले रिलीज़ करना चाहते हैं। डॉक्टर काशीनाथ सिंह की पुस्तक काशी का अस्सी पर आधारित इस फिल्म में सनी देओल की  संस्कृत के शिक्षक की केंद्रीय भूमिका है। फिल्म में साक्षी तंवर ने उनकी पत्नी की भूमिका की है। फिल्म में रवि किशन, सौरभ शुक्ल, मुकेश तिवारी, राजेंद्र गुप्ता, मिथिलेश चतुर्वेदी, सीमा आज़मी, फैसल रशीद, दविंदर सिंह, मोहित सिन्हा, नरेश जंग और वैभव मिश्र अन्य भूमिकाओं में हैं। 

Thursday 4 January 2018

काशी का दंश झेलती मोहल्ला अस्सी !

यह किरदार गाली बकता है 
दिल्ली हाईकोर्ट ने, १२ दिसम्बर को, सेंट्रल बोर्ड ऑफ़ फिल्म सर्टिफिकेशन को आदेश दिए कि वह डॉक्टर चन्द्रप्रकाश द्विवेदी की फिल्म मोहल्ला अस्सी को सिर्फ एक कट के साथ, बालिगों के लिए फिल्म का प्रमाणपत्र देते हुए पारित करे। सेंसर बोर्ड ने इस फिल्म को सर्टिफिकेट देने से मना कर दिया था और अपीलेट ट्रिब्यूनल ने फिल्म पर दस कट लगाने के आदेश दिए थे, जिसके खिलाफ निर्माता अदालत में आये थे। लेकिन, अदालत के आदेश के बाद भी अभी मोहल्ला अस्सी को सिनेमाघरों का मुंह देखने के लिए दिल्ली हाई कोर्ट के नए आदेश का इंतज़ार करना पड़ रहा है। 
काशी की पृष्ठभूमि पर, संस्कृत पढ़ाने वाले एक ब्राह्मण के परिवार की त्रासदी को दिखाने वाली फिल्म मोहल्ला अस्सी रिलीज़ होने की तारीख से पहले ही विरोध और बैन का दंश झेलते हुए तीन साल से डिब्बा बंद पड़ी हुई है। मशहूर कथाकार काशीनाथ सिंह के चर्चित उपन्यास काशी का अस्सी पर आधारित डॉक्टर चन्द्रप्रकाश द्विवेदी की इस फिल्म में मुख्य भूमिका में सनी देओल और साक्षी तंवर है। 
जैसा कि आम तौर पर होता है, मोहल्ला अस्सी को भी रिलीज़ होने से पहले ही विरोध का सामना करना पडा। इस फिल्म का ट्रेलर रिलीज़ होते ही इसका विरोध शुरू हो गया। इस फिल्म के तमाम किरदार गालियों की भाषा का इस्तेमाल तो कर ही रहे थे, भगवान् शंकर बहुरूपिया भी माँ बहन की गालियाँ बकते दिखाया गया था । इसे देख कर वाराणसी के बुद्दिजीवी और संत समाज में कड़ी प्रतिक्रिया हुई। प्रधान मंत्री कार्यालय को पत्र लिख कर फिल्म से आपत्तिजनक भाषा हटाये जाने की मांग की गई। मोहल्ला अस्सी २८ जून २०१५ को रिलीज़ होनी थी। लेकिन, इसके पहले ही काशी में विरोध का सिलसिला शुरू हो गया। इसके बाद २१ जून को सनी देओल और साक्षी तंवर के साथ साथ फिल्म से जुड़े सभी लोगों डॉक्टर चन्द्र प्रकाश द्विवेदी, रवि किशन, सौरभ शुक्ल, आदि पर ऍफ़आईआर दर्ज करा दी गई। देश के कई हिस्सों में हिन्दुओं के भारी विरोध के कारण डॉक्टर चन्द्रप्रकाश द्विवेदी की यह फिल्म रिलीज़ नहीं हो सकी। इस फिल्म के खिलाफ मामला अदालत तक गया। तीस हजारी कोर्ट ने ३० जून को फिल्म पर रोक लगा दी। इस बीच इलाहाबाद हाई कोर्ट ने फिल्म के खिलाफ दर्ज की गई याचिका पर सेंसर बोर्ड से जवाब माँगा तो सेंसर बोर्ड ने जवाब दिया कि फिल्म उनके पास सेंसर के लिए पहुंची ही नहीं है। दिलचस्प बात यह थी कि बकौल फिल्मकार इस समय तक फिल्म के बड़े हिस्से की डबिंग बाकी थी। डॉक्टर द्विवेदी द्वारा फिल्म जून २०१६ में केन्द्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड के समक्ष प्रस्तुत की गई। बोर्ड ने फिल्म में गाली गलौच और धार्मिक भावनाए भड़काने के आधार पर फिल्म को प्रमाण पत्र देने से इनकार कर दिया। इस पर निर्माता क्रॉसवर्ड एंटरटेनमेंट ने फिल्म सर्टिफिकेट अपीलेट ट्रिब्यूनल (ऍफ़सीएटी) में अपील दायर की. ट्रिब्यूनल ने १० कट करने के आदेश दिए थे। फिल्म निर्माता ने इन्ही आदेशों के खिलाफ दिल्ली हाई कोर्ट में अपील दायर की थी।  
मोहल्ला अस्सी के निर्देशक डॉक्टर चन्द्रप्रकाश ने चाणक्य जैसे उच्च कोटि के सीरियल और पिंजर जैसी फ़िल्में बनाई हैं। वह खुद ब्राह्मण हैं। हालाँकि, यह फिल्म इन्टरनेट पर लीक हो चुकी है. इसे काफी लोगों द्वारा देखा भी जा चुका हैं। इसमे कोई शक नहीं कि फिल्म में भगवान् शिव के चरित्र से गालियाँ कहलवाई गई हैं, लेकिन बाकी फिल्म एक ब्राह्मण परिवार की दशा, उसकी गरीबी, घर के मुखिया की पिछड़ी सोच तथा परिस्थतियोंवश मज़बूरी में चाहते या न चाहते हुए भी खुद को बदलने की कोशिश का बड़ा मार्मिक और सटीक चित्रण हुआ है। इस फिल्म में ऐसा कुछ नहीं है कि किसी समुदाय को चोट पहुंचती हो। फिर, फिल्म को बिना देखे उसे रोके जाने की कोशिश कहाँ तक उचित कही जा सकती हैं। इस मामलें दिल्ली की एक निचली अदालत द्वारा फिल्म के बिना सेंसर में पारित हुए रोक लगाने का आदेश उचित प्रतीत नहीं होता। क्योकि, इस से फिल्म के खिलाफ बनी हवा तेज़ हो गई। यह फिल्म सनी देओल और साक्षी तंवर की शानदार केमिस्ट्री का प्रमाण है। सनी देओल की संस्कृत पढ़ाने वाले तन्नी गुरु की भूमिका उन्हें बेमिसाल एक्टर साबित करती है। मोहल्ला अस्सी धार्मिक ऐतिहासिक महत्त्व की नगरी बनारस के व्यवसाईकरण और फर्जी गुरुओं तथा विदेशी पर्यटकों के साथ ठगी का पर्दाफ़ाश भी करती है। किसी बुराई को इंगित करना, बुरा कैसे कहा जा सकता है। 
फिल्मों के सन्दर्भ में सभी पक्षों का रवैया काफी खराब रहा है। फिल्मकार अपनी फिल्म को व्यावसायिक सफलता दिलाने के लिए तथ्यों को तोड़ने मरोड़ने और अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर धार्मिक भावनाओं को चोट पहुंचाने से गुरेज़ नहीं करती। अदालते भी ज़ल्दबाज़ी में आदेश दे कर, बिना सेंसर फिल्मों को भी रोक देती हैं। सेंसर फिल्मों को पारित करने के बजाय बैन कर देता है। भावनाओं पर ठेस के नाम पर सडकों में उतरना आम हो गया है। मोहल्ला अस्सी और हाल ही में पद्मावती उर्फ़ पद्मावत पहली या आखिरी फ़िल्में नहीं हैं, जिन्हें सभी पक्षों के खराब रवैये का सामना करना पड़ा। उपयुक्त हो अगर फ़िल्मकार अभिव्यक्ति के नाम पर दूसरे पक्ष की भावनाओं को ठेस पहुंचाने से बचे और बाकी लोग फिल्म को जनता के निर्णय के लिए सिनेमाघरों में रिलीज़ होने दे। 

Sunday 17 December 2017

क्या ५ जनवरी को रिलीज़ होगी पद्मावती ?

फिल्मकार संजय लीला भंसाली फिर सक्रिय हो गए हैं।  उनकी २०१५ में रिलीज़ काल्पनिक ऐतिहासिक रोमांस फिल्म बाजीराव मस्तानी को १८ दिसंबर को दो साल पूरे हो जायेंगे।  वह इसे पार्टी दे कर मनाने जा रहे हैं।  फिल्म से जुड़े तमाम ख़ास  और आम को निमंत्रण दिया गया है कि वह भी इस मौके पर शामिल हों।  इसके साथ ही विवादों में फंस कर २०१७ में रिलीज़ न हो सकने वाली फिल्म पद्मावती को फिर सेंसर के लिए भेजा गया।  मगर, इस बार फिर पद्मावती सेंसर के नियमों से उलझ गई है।  पिछली बार फिल्म भेजते समय, पद्मावती के निर्माताओं ने डिस्क्लेमर नहीं भेजा था कि यह फिल्म काल्पनिक है या ऐतिहासिक।  इस बार डिस्क्लेमर भेजा ज़रूर है, लेकिन इसकी भाषा अस्पष्ट है।  डिस्क्लेमर में क्या गड़बड़ है, यह बताने के लिए न तो सेंसर बोर्ड से कोई तैयार है, न ही फिल्म का एक निर्माता वायकॉम १८ कुछ बताता है।  इतना तय  है कि इस बार भी पद्मावती को सर्टिफिकेट मिलने के आड़े डिस्क्लेमर आया।  अब पद्मावती के निर्माताओं को सुस्पष्ट डिस्क्लेमर भेजना होगा।  सूत्र बताते हैं कि इसमें कोई ख़ास परेशानी नहीं है।  यहाँ तक बताया जा रहा है कि १८ दिसंबर को फिल्म को सेंसर बोर्ड द्वारा प्रमाणित कर दिया जायेगा।  अफवाह यह  भी है कि पद्मावती को अगले साल ५ जनवरी या १२ जनवरी को रिलीज़ किया  जा सकता है।  फिल्म का बेसब्री से इंतज़ार कर रहे प्रदर्शक इस फिल्म को मनचाही स्क्रीन्स देने को तैयार हैं।  परन्तु, जानकारों का दावा है कि पद्मावती इतनी जल्दी रिलीज़ नहीं हो सकती।  फिल्म के निर्माता पद्मावती को ज़्यादा स्पेस के साथ रिलीज़ करना चाहेंगे।  नए साल के पहले शुक्रवार को हमेशा से मनहूस  समझा जाता है।  २६ जनवरी से अक्षय कुमार की पैड मैन रिलीज़ हो रही है।  पद्मावती लम्बा रन करना भी चाहे तो पर्याप्त स्क्रीन नहीं मिल सकेंगी।  इसलिए, फिल्म के फरवरी में रिलीज़ किये जाने की खबर है।  होगा क्या ! इसे संजय लीला भंसाली और फिल्म के निर्माताओं से ज़्यादा अच्छी तरह से कोई नहीं जानता।  लेकिन, इतना तय है कि पद्मावती को पब्लिसिटी ज़बरदस्त मिलती जा रही है।  

Thursday 14 December 2017

सेंसर की परीक्षा में पास हुआ टाइगर, फंस गई पद्मावती

इस साल की दो बड़ी फ़िल्में मानी जा रही सलमान खान और कैटरीना कैफ की एक्शन फिल्म टाइगर ज़िंदा है और रणवीर सिंह, दीपिका पादुकोण और शाहिद कपूर की ऐतिहासिक कल्पना फिल्म पद्मावती सेंसर सर्टिफिकेट लिए भेजी गई थी।  खबर है कि सेंसर बोर्ड ने दो  तीन दृश्यों की आवाज़ बंद कर देने के बाद बिना किसी कट के फिल्म को यूए प्रमाणपत्र के साथ पारित कर  दिया है।  यानि इस फिल्म को बच्चे अपने अभिभावकों के साथ  देख सकेंगे। अब यह फिल्म २२ दिसंबर को पूरी दुनिया में एक साथ रिलीज़ होगी।  अलबत्ता, पाकिस्तान में इस फिल्म को हरी झंडी नहीं मिली है।  पता चला है कि पाकिस्तान के हुक्मरानों को फिल्म  में ज़ोया के किरदार को पाकिस्तान की ख़ुफ़िया एजेंसी का दिखाए जाने पर ऐतराज़ है।   इसलिए,अब यह फिल्म पाकिस्तान में २२ दिसंबर को रिलीज़ नहीं हो पाएगी।  सलमान खान की फिल्म एक था टाइगर भी पूरी दुनिया  के साथ पाकिस्तान में रिलीज़ नहीं हो सकी थी।  इधर,  हिंदुस्तान में संजय लीला भंसाली की फिल्म पद्मावती अभी तक सेंसर द्वारा  पारित नहीं की गई है।  सेंसर की ६८ दिनों की डेड लाइन में पद्मावती फंसी हुई है। हालाँकि,  ऐसा नहीं है कि पद्मावती को पारित होने में ६८ दिन ही लगेंगे।  मगर,  सेंसर बोर्ड द्वारा इस नियम के अंतर्गत पेंडिंग फिल्मों  को निबटाया जा रहा है।  यही कारण है कि कई देशों के सेंसर बोर्ड से पारित करने के लिए भेज दी गई पद्मावती को रिलीज़  करने की तारीख अभी तय नहीं की जा सकी  है। किसी विवाद से बचने के लिए फिल्म के निर्माता इंतज़ार कर रहे हैं कि  भारत का सेंसर बोर्ड पहले  फिल्म पारित करे।  जैसे ही सेंसर द्वारा फिल्म पारित की जाएगी,  पद्मावती की रिलीज़ की तारीख का ऐलान कर दिया जायेगा।  

Monday 18 September 2017

इतनी देर तक चूम नहीं सकेगा टॉम क्रूज

पहलाज निहलानी के सेंसर बोर्ड चीफ के पद से हटने के बाद, बॉलीवुड को उम्मीद थी कि पुराने दिन फिर लौट आएंगे। मुखिया प्रसून जोशी के सेंसर बोर्ड में गन्दी गालियों और सेक्स दृश्यों को दिखाया जा सकेगा। स्मूचिंग की अनुमति होगी। बॉलीवुड को याद था कि पहलाज निहलानी ने किस प्रकार से जेम्स बांड को तक संस्कारी बना दिया था, जब फिल्म स्पेक्ट्र में जेम्स बांड डेनियल क्रैग को लंबा चुम्बन लेने की अनुमति नहीं दी गई थी।  लेकिन, अब प्रसून जोशी के सेंसर बोर्ड ने भी कोई उदारता नहीं दिखाई।  इस बार सेंसर की कैंची का शिकार हुआ टॉम क्रूज का पायलट गरी स्पिनेली। टॉम क्रूज हॉलीवुड फिल्म अमेरिकन मेड में ट्रांस वर्ल्ड एयरलाइन्स के पायलट का किरदार कर रहे हैं। डौग लिमन की इस फिल्म के एक दृश्य में टॉम क्रूज अपनी साथी अभिनेत्री सारा राइट के साथ गहन चुम्बन रत दिखाए गए हैं, वह जहाज के कॉकपिट में।  सेंसर बोर्ड के सदस्यों को यह नागवार गुजरा।  जहाज की निषिद्ध कॉकपिट में एक पायलट, किसी बाहरी महिला का चुम्बन ले।  नतीजतन, इस स्मूचिंग को पूरी तरह से काटा तो नहीं गया, पचास प्रतिशत ज़रूर कर दिया गया।  

Wednesday 9 December 2015

एंग्री इंडियन गॉडेसस पर चली सेंसर की कैंची

भारत की पहली महिला मित्रता फिल्म 'एंग्री इंडियन गौड़ेसेस' भारत में रिलीज़ से पहले ही 60 देशों में बेचीं जा चुकी है।  लेकिन, भारत में इस फिल्म पर सेंसर बोर्ड की खूब कैंची चली है। फिल्म के कई सीन काट दिए गए हैं।  फिल्मों में महिलाओं द्वारा इस्तेमाल किये गए अभिशाप शब्द हटा दिए गए हैं।  जबकि हाल ही रिलीज़ हुई  फिल्म में पुरूषों द्वारा इस्तेमाल किये गए अभिशाप शब्दों को ना काटते हुए 'ए' सर्टिफिकेट दे दिया गया है। इतना ही नहीं इस फिल्म में 'माल', 'आदिवासी' और 'इंडियन फिगर' जैसे शब्दों को फिल्म से निकल दिया गया है। जो फिल्म  पूरी दुनिया द्वारा सराही जा रही है, उस फिल्म को अपने ही देश में रिलीज़ के लिए कठनाईओं से गुज़रना पड़ रहा है। इन सब के अलावा सबसे अहम बात इस फिल्म में देवियों (गॉडेस) की तस्वीरों को धुंधला कर दिया गया है।  बताते हैं कि एक बरगी सेंसर बोर्ड ने तो इस फिल्म के नाम से 'गौड़सेसेस' शब्द को भी हटाना को कह दिया था, लेकिन फिर फिल्म के टाइटल पर कोई कैंची नहीं चली है।  फिल्म एंग्री इंडियन गौड़ेसेस के प्रोडूसर गौरव ढींगरा ने इस बारे में बताया, "सेंसर बोर्ड ने हमे  इस फिल्म में जितने भी सीन काटने को कहा हैं, वह सब हास्यास्पद हैं। इन्हे फिल्म से हटाने की कोई वजह ही नहीं है । फिल्म में कई शब्दों को म्यूट  किया गया है, जबकि उन दृश्यों में उन शब्दों का होना ज़रूरी है। मुझे समझ नहीं आता जिस फिल्म को पूरी दुनिया पसंद कर रही है उसी फिल्म को अपने ही देश में रिलीज़ के लिए मुश्किलों का सामना क्यों करना पड़ रहा है। क्या हमारा सेंसर सेंसर बोर्ड महिलाओं को अपनी आवाज़ उठाने का मौका नहीं देना चाहता है।" इस फिल्म को सेंसर बोर्ड ने १६ कट के साथ पारित कर दिया है।