Thursday 4 January 2018

काशी का दंश झेलती मोहल्ला अस्सी !

यह किरदार गाली बकता है 
दिल्ली हाईकोर्ट ने, १२ दिसम्बर को, सेंट्रल बोर्ड ऑफ़ फिल्म सर्टिफिकेशन को आदेश दिए कि वह डॉक्टर चन्द्रप्रकाश द्विवेदी की फिल्म मोहल्ला अस्सी को सिर्फ एक कट के साथ, बालिगों के लिए फिल्म का प्रमाणपत्र देते हुए पारित करे। सेंसर बोर्ड ने इस फिल्म को सर्टिफिकेट देने से मना कर दिया था और अपीलेट ट्रिब्यूनल ने फिल्म पर दस कट लगाने के आदेश दिए थे, जिसके खिलाफ निर्माता अदालत में आये थे। लेकिन, अदालत के आदेश के बाद भी अभी मोहल्ला अस्सी को सिनेमाघरों का मुंह देखने के लिए दिल्ली हाई कोर्ट के नए आदेश का इंतज़ार करना पड़ रहा है। 
काशी की पृष्ठभूमि पर, संस्कृत पढ़ाने वाले एक ब्राह्मण के परिवार की त्रासदी को दिखाने वाली फिल्म मोहल्ला अस्सी रिलीज़ होने की तारीख से पहले ही विरोध और बैन का दंश झेलते हुए तीन साल से डिब्बा बंद पड़ी हुई है। मशहूर कथाकार काशीनाथ सिंह के चर्चित उपन्यास काशी का अस्सी पर आधारित डॉक्टर चन्द्रप्रकाश द्विवेदी की इस फिल्म में मुख्य भूमिका में सनी देओल और साक्षी तंवर है। 
जैसा कि आम तौर पर होता है, मोहल्ला अस्सी को भी रिलीज़ होने से पहले ही विरोध का सामना करना पडा। इस फिल्म का ट्रेलर रिलीज़ होते ही इसका विरोध शुरू हो गया। इस फिल्म के तमाम किरदार गालियों की भाषा का इस्तेमाल तो कर ही रहे थे, भगवान् शंकर बहुरूपिया भी माँ बहन की गालियाँ बकते दिखाया गया था । इसे देख कर वाराणसी के बुद्दिजीवी और संत समाज में कड़ी प्रतिक्रिया हुई। प्रधान मंत्री कार्यालय को पत्र लिख कर फिल्म से आपत्तिजनक भाषा हटाये जाने की मांग की गई। मोहल्ला अस्सी २८ जून २०१५ को रिलीज़ होनी थी। लेकिन, इसके पहले ही काशी में विरोध का सिलसिला शुरू हो गया। इसके बाद २१ जून को सनी देओल और साक्षी तंवर के साथ साथ फिल्म से जुड़े सभी लोगों डॉक्टर चन्द्र प्रकाश द्विवेदी, रवि किशन, सौरभ शुक्ल, आदि पर ऍफ़आईआर दर्ज करा दी गई। देश के कई हिस्सों में हिन्दुओं के भारी विरोध के कारण डॉक्टर चन्द्रप्रकाश द्विवेदी की यह फिल्म रिलीज़ नहीं हो सकी। इस फिल्म के खिलाफ मामला अदालत तक गया। तीस हजारी कोर्ट ने ३० जून को फिल्म पर रोक लगा दी। इस बीच इलाहाबाद हाई कोर्ट ने फिल्म के खिलाफ दर्ज की गई याचिका पर सेंसर बोर्ड से जवाब माँगा तो सेंसर बोर्ड ने जवाब दिया कि फिल्म उनके पास सेंसर के लिए पहुंची ही नहीं है। दिलचस्प बात यह थी कि बकौल फिल्मकार इस समय तक फिल्म के बड़े हिस्से की डबिंग बाकी थी। डॉक्टर द्विवेदी द्वारा फिल्म जून २०१६ में केन्द्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड के समक्ष प्रस्तुत की गई। बोर्ड ने फिल्म में गाली गलौच और धार्मिक भावनाए भड़काने के आधार पर फिल्म को प्रमाण पत्र देने से इनकार कर दिया। इस पर निर्माता क्रॉसवर्ड एंटरटेनमेंट ने फिल्म सर्टिफिकेट अपीलेट ट्रिब्यूनल (ऍफ़सीएटी) में अपील दायर की. ट्रिब्यूनल ने १० कट करने के आदेश दिए थे। फिल्म निर्माता ने इन्ही आदेशों के खिलाफ दिल्ली हाई कोर्ट में अपील दायर की थी।  
मोहल्ला अस्सी के निर्देशक डॉक्टर चन्द्रप्रकाश ने चाणक्य जैसे उच्च कोटि के सीरियल और पिंजर जैसी फ़िल्में बनाई हैं। वह खुद ब्राह्मण हैं। हालाँकि, यह फिल्म इन्टरनेट पर लीक हो चुकी है. इसे काफी लोगों द्वारा देखा भी जा चुका हैं। इसमे कोई शक नहीं कि फिल्म में भगवान् शिव के चरित्र से गालियाँ कहलवाई गई हैं, लेकिन बाकी फिल्म एक ब्राह्मण परिवार की दशा, उसकी गरीबी, घर के मुखिया की पिछड़ी सोच तथा परिस्थतियोंवश मज़बूरी में चाहते या न चाहते हुए भी खुद को बदलने की कोशिश का बड़ा मार्मिक और सटीक चित्रण हुआ है। इस फिल्म में ऐसा कुछ नहीं है कि किसी समुदाय को चोट पहुंचती हो। फिर, फिल्म को बिना देखे उसे रोके जाने की कोशिश कहाँ तक उचित कही जा सकती हैं। इस मामलें दिल्ली की एक निचली अदालत द्वारा फिल्म के बिना सेंसर में पारित हुए रोक लगाने का आदेश उचित प्रतीत नहीं होता। क्योकि, इस से फिल्म के खिलाफ बनी हवा तेज़ हो गई। यह फिल्म सनी देओल और साक्षी तंवर की शानदार केमिस्ट्री का प्रमाण है। सनी देओल की संस्कृत पढ़ाने वाले तन्नी गुरु की भूमिका उन्हें बेमिसाल एक्टर साबित करती है। मोहल्ला अस्सी धार्मिक ऐतिहासिक महत्त्व की नगरी बनारस के व्यवसाईकरण और फर्जी गुरुओं तथा विदेशी पर्यटकों के साथ ठगी का पर्दाफ़ाश भी करती है। किसी बुराई को इंगित करना, बुरा कैसे कहा जा सकता है। 
फिल्मों के सन्दर्भ में सभी पक्षों का रवैया काफी खराब रहा है। फिल्मकार अपनी फिल्म को व्यावसायिक सफलता दिलाने के लिए तथ्यों को तोड़ने मरोड़ने और अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर धार्मिक भावनाओं को चोट पहुंचाने से गुरेज़ नहीं करती। अदालते भी ज़ल्दबाज़ी में आदेश दे कर, बिना सेंसर फिल्मों को भी रोक देती हैं। सेंसर फिल्मों को पारित करने के बजाय बैन कर देता है। भावनाओं पर ठेस के नाम पर सडकों में उतरना आम हो गया है। मोहल्ला अस्सी और हाल ही में पद्मावती उर्फ़ पद्मावत पहली या आखिरी फ़िल्में नहीं हैं, जिन्हें सभी पक्षों के खराब रवैये का सामना करना पड़ा। उपयुक्त हो अगर फ़िल्मकार अभिव्यक्ति के नाम पर दूसरे पक्ष की भावनाओं को ठेस पहुंचाने से बचे और बाकी लोग फिल्म को जनता के निर्णय के लिए सिनेमाघरों में रिलीज़ होने दे। 

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