प्रसून जोशी के, सेंसर बोर्ड का चीफ बनने के बाद से सब कुछ
प्रसून प्रसून चल रहा है। बड़ी फिल्मों,
बड़े बैनर की फिल्मों और बड़े सितारों की फिल्मों की चांदी है। फिल्म भेज दीजिये,
तीन दिन में पास। बाकी के लिए कैलेंडर हैं न !
इधर एक और गड़बड़झाला चल रहा
है। हॉलीवुड की फिल्म एक्वामैन को,
भारतीय सेंसर बोर्ड ने यूए प्रमाण पत्र दे दिया। यानि इस फिल्म को बच्चे
भी अपने बड़ों के साथ देख सकते हैं। जबकि
इस फिल्म में हिंसा और खराब शब्दों की भरमार थी। सेंसर ने केवल बास्टर्ड्स यानि
हरामी शब्द ही म्यूट करवाए।
जबकि इस फिल्म को ब्रितानी सेंसर बोर्ड ने १२ए
सर्टिफिकेट दिया है। यानि यह फिल्म १२ साल
से कम के बच्चे नहीं देख सकते। हालाँकि, पहले
ब्रितानी सेंसर बोर्ड ने फिल्म के लिए कड़ी १५ रेटिंग वाला प्रमाण पत्र तजवीज किया
था। इस पर फिल्म के निर्माताओं को हिंसक दृश्यों और गालियों को कम करना पड़ा,
ताकि दर्शकों की संख्या बढ़ सके। मगर भारतीय सेंसर बोर्ड ने इसे उदारता
दिखाते हुए, दर्शक दे दिए। ऐसा कैसे संभव हुआ ?
जवाब है मद्रास का सेंसर बोर्ड।
मद्रास का सेंसर बोर्ड उदार माना जाता है। दक्षिण की कामुक दृश्यों वाली और
हिंसा से भरपूर फ़िल्में बिना किसी ज़्यादा न नुकुर के पारित हो जाती हैं। एक्वामैन
के निर्माता फिल्म को मुंबई ऑफिस के बजाय सेंसर के मद्रास ऑफिस में अपनी फिल्म ले
गए और अखिल भारतीय रिलीज़ के लिए यूए प्रमाणपत्र पा लिया। वहीँ मुंबई के सेंसर बोर्ड ने,
पहलाज निहलानी की गोविंदा अभिनीत फिल्म रंगीला राजा पर २० कट मारने का
आदेश दे दिया था।
आम तौर पर, बॉलीवुड की फ़िल्में और हॉलीवुड की सभी
फ़िल्में मुंबई स्थित सेंसर बोर्ड के ऑफिस से प्रमाणित कराई जाती हैं। लेकिन, अब हो यह
रहा है कि हॉलीवुड के फिल्म निर्माता अपनी फिल्मे मद्रास या दिल्ली के सेंसर बोर्ड
ऑफिस लिए चले जाते हैं। फिल्म आसान पास भी हो जाती है। पहलाज निहलानी की माने तो
ऐसा प्रसून जोशी की अध्यक्षता में मुंबई का सेंसर बोर्ड फिल्म को सेंसर करने में
देर करता है।
यहाँ बताते चलें कि इंग्लिश एक्वामैन को चेन्नई सेंसर बोर्ड ने पारित
किया। जबकि, शंकर की तमिल में बनी फिल्म २.० को सेंसर के
लिए मुंबई लाया गया था।
सुनने में आया है कि प्रसून जोशी, सेंसर चीफ
के काम के बजाय साहित्य सेवा के लिए देश विदेश की यात्रा पर रहना ज़्यादा पसंद करते
हैं। अगर कोई उन्हें कुछ लिखता है,
तो उसका जवाब तक नहीं देते। मुंबई
के बड़े फिल्म पत्रकारों को भी मिलने में कठिनाई होती है। इसी का नतीजा है कि
शुक्रवार १४ दिसंबर से बच्चे अपने बड़ो के हिंसक दृश्य देखेंगे और गलियों का मज़ा
लूटेंगे।
झलकारी बाई की भूमिका में अंकिता लोखंडे - पढ़ने के लिए क्लिक करें
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