बहुत सी ऎसी फ़िल्में थी, जिनमे नायक और नायिका के अलावा छोटी भूमिका में
ही सही, सपोर्टिंग एक्टर्स ने अपना प्रभाव
छोड़ा। इन सह कलाकारों ने अपनी फिल्म के
मुख्य चरित्र को ओवरशैडो नहीं किया, बल्कि मज़बूती प्रदान की।
पद्मावत के मलिक कफूर जिम सरभ
संजय लीला भंसाली की फिल्म पद्मावत में अलाउद्दीन खिलजी की क्रूरता में
रंग भरता था,
उसके गुलाम मलिक कफूर का चरित्र।
इस भूमिका को अभिनेता जिम सरभ ने अंजाम दिया था। वह बेहद सहज ढंग से अपनी क्रूरता को अंजाम दे
रहे थे।
राजकुमार गुप्ता की फिल्म रेड चरित्रों पर गढ़ी गई फिल्म थी। फिल्म में अजय
देवगन ने एक आय कर अधिकारी अमय पटनायक की भूमिका की थी। अजय देवगन की अभिनय प्रतिभा बेजोड़ है। लेकिन,फिल्म में अपनी सहज दुष्टता से सपोर्ट कर
रहे थे रहे थे,
नेता रामेश्वर सिंह उर्फ़ ताऊजी की
भूमिका से सौरभ शुक्ला। अगर सौरभ न होते
तो इस फिल्म को इतना उभार नहीं मिल
पाता।
विक्की कौशल ने, संजू की
कमली की भूमिका से पहले,
आलिया भट्ट की केंद्रीय भूमिका वाली फिल्म राज़ी में सहमत के पाकिस्तानी
सैन्य अधिकारी पति की भूमिका से प्रभावित किया था। संजू में तो जैसे उनका किरदार छा गया था।
वह फिल्म में रणबीर कपूर के संजू को सपोर्ट करते हुए, दर्शकों की
सहानुभूति दिलवाते थे।
बेशक,
बधाई हो के १०० करोड़ क्लब में शामिल होने के लिए आयुष्मान खुराना को
क्रेडिट दिया जा रहा है। लेकिन, क्या उन्हें इतना क्रेडिट मिल पाता अगर उनकी रील
लाइफ माँ प्रियम्वदा गर्भवती न हो जाती।
इस भूमिका को परदे पर नीना गुप्ता ने किया था। उनकी आँखों और चेहरे से झलकती उनकी बेबसी और शर्मिंदगी
काबिले तारीफ थी।
गजराज राव को खुद को साबित करने में २४ साल लग गए। उनका हिंदी फिल्म
डेब्यू शेखर कपूर की फिल्म बैंडिट क्वीन में
बहुत छोटी भूमिका से हुआ था। उन्हें सही मौक़ा मिला फिल्म बधाई हो के
जीतेन्दर की भूमिका से। यह व्यक्ति खुद को
असहाय, शर्मिंदा और
पश्चाताप में डूबा महसूस करता है, जब उसकी बीवी के गर्भवती होने की खबर घर से मोहल्ले
तक फ़ैल जाती है। छोटे शहर के लिहाज़ से तो
यह बहुत शर्मिंदा करने वाला काम था। गजराज राव के सहज अभिनय ने इस भूमिका को बेहद
प्रभावशाली बना दिया।
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