Wednesday 26 October 2016

बेनेडिक्ट वॉन्ग ही होंगे अवेंजर्स : इनफिनिटी वॉर के वॉन

मार्वेल कॉमिक्स के कैरेक्टरों में बेनेडिक्ट वोंग भी ख़ास है।  इस करैक्टर को मार्वेल की कई कॉमिक्स बुक में मुख्य किरदार की मदद करते देखा जा सकता है।  फिलहाल, इस करैक्टर को दर्शक फिल्म डॉक्टर स्ट्रेंज में डॉक्टर स्ट्रेंज के घरेलु नौकर के किरदार में देखेंगे।  यह एक स्वामिभक्त किरदार है।  इस किरदार को बेनेडिक्ट कम्बरबैच के साथ बेनेडिक्ट वॉन्ग कर रहे हैं।  बेनेडिक्ट वॉन्ग एक ब्रिटिश एक्टर हैं।  उन्हें नेटफ्लिक्स की २०१४ में रिलीज़ फिल्म मारकोपोलो में कुबलाई खान के किरदार में देखा गया था।  पिछले साल स्पेस साइंस फिक्शन फिल्म द मार्शियन में ब्रूस एनजी के किरदार में नज़र आये थे।  बेनेडिक्ट वॉन्ग को स्टेट ऑफ़ प्ले, लुक अराउंड यू, फ्रैंकेंस्टीन टॉप बॉय, रन और प्रे जैसी टीवी सीरीज में देखा गया।  बेनेडिक्ट वॉन्ग डॉक्टर स्ट्रेंज के बाद एक बार फिर अपने वॉन्ग करैक्टर को फिल्म अवेंजर्स : इंफिनिटी वॉर में करेंगे।  फिल्म अवेंजर्स : इंफिनिटी वॉर में ब्लैक विडो, स्टार लार्ड, थॉर, कैप्टेन मार्वल, स्कारलेट विच, गमोरा, विंटर सोल्जर, आयरन-मैन, कैप्टेन अमेरिका, स्पाइडर- मैन आदि जैसे सुपर पावर रखने वाले किरदारों के साथ डॉक्टर स्ट्रेंज को भी शामिल किया गया है।  वॉन्ग डॉक्टर स्ट्रेंज के घरेलु नौकर के किरदार में ही होंगे।  जहाँ, डॉक्टर स्ट्रेंज ४ नवम्बर को रिलीज़ हो रही है, वहीँ अवेंजर्स :इनफिनिटी वॉर की शूटिंग अगले साल जनवरी से शुरू होगी।  फिल्म ४ मई २०१८ को रिलीज़ की जायेगी। 

टिम मिलर नहीं करेंगे डेडपूल २

इस साल की बड़ी सफल फिल्म डेडपूल के डायरेक्टर टिम मिलर ने डेडपूल का सीक्वल छोड़ दिया है। डेडपूल के निर्माण में ५८ मिलियन डॉलर खर्च हुए थे।  लेकिन, मार्वल के एक कॉमिक करैक्टर पर डेडपूल ने बॉक्स ऑफिस पर ७८२.६ मिलियन डॉलर का बिज़नस कर लिया था।  इसलिए, स्वाभाविक था कि डेडपूल २ के निर्देशन के लिए टिम मिलर सबसे सही चुनाव थे।  बताया जाता है कि फिल्म में वेड विल्सन उर्फ़ डेडपूल का किरदार करने वाले अभिनेता रयान रेनॉल्ड्स से क्रेएटिव डिफरेंस होने का कारण टिम मिलर को फिल्म छोडनी पड़ी।  हालाँकि, टिम मिलर ने स्टूडियो के साथ फिल्म साइन नहीं की थी, लेकिन वह फिल्म की स्क्रिप्ट को मांजने के काम में जुटे हुए थे।  टिम मिलर श्रेष्ठतम विसुअल इफेक्ट्स आर्टिस्ट थे।  उन्होंने, हाईडअवे, पिलग्रिम वर्सस द वर्ल्ड, द गर्ल विथ ड्रैगन टैटू और थॉर द डार्क वर्ल्ड के विसुअल इफेक्ट्स में सहयोग किया था।  डेडपूल उनकी बतौर डायरेक्टर पहली फिल्म थी।  इसीलिए फिल्म में टिम मिलर का प्रभाव साफ नज़र आता  था ।  हालाँकि,  क्रिएटिव डिफरेंस के कारण मिलर ने रयान रेनॉल्ड्स के साथ डेडपूल २ न करने का फैसला किया है।  लेकिन, इस फिल्म के स्टूडियो फॉक्स का इरादा मिलर को छोड़ने का नहीं हैं।  मिलर को डेनियल सोआरेज़ के उपन्यास पर फिल्म इनफ्लक्स का निर्देशन करने का जिम्मा सौंपा गया है। यह फिल्म इन्फ्यूल्स ट्राइलॉजी की पहली फिल्म होगी।

द लास्ट नाइट में नज़र आएंगे मिनी डाइनोबोट्स

ट्रांसफार्मर्स सीरीज की अब तक की चार फिल्मों में विशाल दैत्याकार क्रोधित मानव मशीनें देख चुके दर्शकों के लिए इस सीरीज की पांचवी फिल्म ट्रांसफार्मर्स: द लास्ट नाइट देखना बिलकुल नया अनुभव होगा।  माइकल बे निर्देशित इस फिल्म में विशाल डाइनोबोट्स होंगे ही, मिनी-  डाइनोबोट्स  भी नज़र आएंगे।  यह फिल्म दर्शकों के लिए बिलकुल नया अनुभव होगी।  फिल्म में कैड एगर, इज़ाबेला, विलियम लेनॉक्स, जोशुआ जॉयस और किंग आर्थर के मानव चरित्र होंगे ही, पीटर कलेन की आवाज़ में ऑप्टिमस प्राइम भी अपनी मौजूदगी दर्ज करा रहा होगा।  इसके अलावा बम्बलबी, हाउंड, ड्रिफ्ट, क्रॉसहेयर्स, हॉट रॉड, स्क़्वीक्स, आदि जैसी ऑटोबॉट मशीनें भी होंगी।  फिल्म में मार्क वह्ल्बेर्ग कैड एगर की भूमिका कर रहे हैं।  वह फिल्म के रोमांच को बताते हुए कहते हैं, "फिल्म में सर एंथोनी हॉपकिंस भी हैं।  बिलकुल नई शांत स्टार कास्ट है।  उत्तेजनाहीन नए रोबोट्स हैं।  नया विलेन है, वह भी शांत।  यहाँ तक कि फिल्म के विशाल डाइनोबोट्स भी उत्तेजनाहीन लगेंगे।  लेकिन, आपको सबसे ज़्यादा मज़ा आएगा नन्हे डाइनोबोट्स देख कर।  इज़ाबेला मोनर फिल्म की नई नायिका हैं। इसके अलावा  जेरॉड कार्मिचेल, लॉरा हेडेक और सेंटिआगो कैबेर भी अपनी भूमिकाएं कर रहे हैं।  लिएम कैरिगन ने किंग आर्थर की भूमिका की है।  ट्रांसफार्मर्स: द लास्ट नाइट २३ जून २०१७ को रिलीज़ होगी।  इस फ्रैंचाइज़ी की बम्बलबी स्पिन ऑफ फिल्म ८ जून २०१८ को रिलीज़ होगी।  ट्रांसफार्मर्स सीरीज की छठी फिल्म का निर्माण भी किया जायेगा, जो  २०१९ में २८ जून को रिलीज़ होगी।  

आईमैक्स में रिलीज़ होगी ट्वेंटिएथ सेंचुरी फॉक्स की चार फ़िल्में

पूरी दुनिया में आईमैक्स में रिलीज़ फिल्म डेडपूल की सफलता को देखते हुए आईमैक्स कॉर्पोरेशन ने ट्वेंटिएथ सेंचुरी फॉक्स की चार फिल्मों को ख़ास तौर पर रिलीज़ करने का समझौता किया है।  इसके अनुसार आईमैक्स द्वारा अगले साल दस जून को रिलीज़ होने जा रही मार्वल की अनाम फिल्म के अलावा २०१८ में तीन फिल्मों १ दिसम्बर को मेज़ रनर: द डेथ क्योर, २ सितम्बर को प्रिडेटर और ७ जुलाई को अलिटा: बैटल एंजेल दुनिया के तमाम आईमैक्स थिएटरो में रिलीज़ की जाएंगी।  इन फिल्मों को आईमैक्स फॉर्मेट में डिजिटली मिलाया जायेगा।  इससे फिल्म की तमाम इमेज बिलकुल साफ़ और चमक वाली नज़र आएंगी। ऎसी फ़िल्में जब आईमैक्स ख़ास थिएटरो में शक्तिशाली डिजिटल ऑडियो में दिखाई जाएंगी तो दुनिया के दर्शकों को बिलकुल ऐसा अनुभव मिलेगा, जैसे वह खुद मूवी का हिस्सा हैं।

इंदिरा गाँधी, आपातकाल और बॉलीवुड फ़िल्में

राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार विजेता निर्देशक शिवाजी लोटन पाटिल की इंदिरा गाँधी हत्याकांड की पृष्ठभूमि पर पोलिटिकल थ्रिलर फिल्म ३१ अक्टूबर को सेंसर बोर्ड ने नौ कट के साथ पारित कर दिया है  अब यह फिल्म इंदिरा गाँधी की हत्याकांड की तारिख से २४ दिन पहले ७ अक्टूबर को रिलीज़ होगी ।  ३१ अक्टूबर इंदिरा गाँधी की हत्या के बाद भड़के सिख विरोध दंगों में सिख परिवार के जीवित रहने के लिए संघर्ष की सच्ची कहानी है । इस फिल्म को दुनिया के कई फिल्म फेस्टिवल में सराहना मिली है । फिल्म के निर्माता हैरी सचदेवा और आनंद प्रकाश कहते हैं, “हमें गर्व है कि हम तमाम बाधाओं को पार इस विषय को लोगों के सामने बड़े परदे पर लाने में सफल हुए हैं ।“
कैंची के शिकार ‘कौम दे हीरे’
इसमे कोई शक नहीं कि इस निर्माता जोड़ी को फिल्म पारित कराने में सेंसर से जूझना पडा । तमाम आलोचनाओं से जूझ रहे सेंसर बोर्ड को ध्यान रखना था कि फिल्म में ऎसी कोई बात न चली जाए, जिससे हिंसा भड़के । इसके बावजूद ३१ अक्टूबर के निर्माता भाग्यशाली हैं कि उनकी फिल्म चार महीने के बाद सेंसर द्वारा पारित कर दी गई । इस लिहाज़ से दो साल पहले एक पंजाबी फिल्म इतनी भाग्यशाली नहीं साबित हो सकी । सेंसर बोर्ड ने २०१४ में इस आधार पर निर्देशक रविंदर रवि की पंजाबी फिल्म कौम दे हीरे को बैन कर दिया कि यह इंदिरा गांधी की हत्या को जस्टिफाई करती थी और उनके हत्यारों बेंत सिंह, सतवंत सिंह और केहर सिंह को ग्लोरीफी करती थी। इस फिल्म को लीला सेमसन के सेंसर बोर्ड द्वारा हिंसा भड़कने की आशंका पर पारित नहीं किया गया था ।
इंदिरा गाँधी पर फ़िल्म !
भारत की प्रथम महिला प्रधान मंत्री इंदिरा गाँधी पर उनके जीवन और उनकी मृत्य के बाद फ़िल्में बनाने की कई कोशिशें की गई । बीबीसी द्वारा २००२ में निक रीड की ८० मिनट का एक वृत्तचित्र इंदिरा गाँधी: द डेथ ऑफ़ मदर इंडिया टेलीकास्ट की गई । लेकिन, इसके अलावा काफी दूसरे प्रयास परवान नहीं चढ़ सके । २००९ में इंदिरा गाँधी हत्याकांड पर एक अंतर्राष्ट्रीय फिल्म बनाने का फैसला किया गया था । यह फिल्म इंदिरा गाँधी के हत्याकांड पर केन्द्रित थी । हत्याकांड के दिन इंदिरा गाँधी का इंटरव्यू करने पहुंचे पीटर उस्तीनोव की भूमिका के लिए अल्बर्ट फिन्ने को लिया गया था । हेलेन मिरेन क्वीन एलिज़ाबेथ, टॉम हंक्स और टोमी ली जोंस क्रमशः लिंडन बी जॉनसन और रिचर्ड निक्सन का किरदार करने वाले थे । ब्रितानी एक्ट्रेस एमिली वाटसन मार्गरेट थैचर का किरदार करने वाली थी । इस फिल्म में इंदिरा गाँधी की भूमिका के लिए माधुरी दीक्षित का नाम चल रहा था । उस समय इस फिल्म का बजट ४० मिलियन पौंड रखा गया था । लेकिन, कृष्णा शाह की यह फिल्म शूटिंग की दहलीज़ तक नहीं पहुँच सकी ।
बॉलीवुड अभिनेत्रियाँ चाहें इंदिरा गाँधी बनना
इंदिरा गाँधी और उनके बेटे संजय गाँधी ने आपातकाल के दौरान बॉलीवुड को नाहक परेशान किया था । किशोर कुमार के गीतों के प्रसारण पर रोक, हिंदी फिल्मों पर कडा सेंसर और बैन बॉलीवुड पर भारी पड़ रहे थे । इसके बावजूद हिंदी फिल्मों की तमाम अभिनेत्रियाँ सेलुलाइड पर इंदिरा गाँधी बनने के लिए बेताब नज़र आती थी । कृष्णा शाह की इंदिरा गाँधी पर फिल्म में इंदिरा गाँधी बनाने के लिए बॉलीवुड की धक् धक् गर्ल माधुरी दीक्षित बेताब थी । २००२ में निर्माता नितिन केनी ने १५ करोड़ की लागत से इंदिरा गांधी के जीवन पर फिल्म इंदिरा गांधी अ ट्रिस्ट विथ डेस्टिनी बनाने का ऐलान किया था।  इस फिल्म में मनीषा कोइराला इंदिरा गांधी की भूमिका करने वाली थी। मनीषा ने फिल्म के लिए अपना फर्स्ट लुक भी जारी कर दिया था । हाल ही में, अभिनेत्री विद्या बालन ने एक इंटरव्यू में यह स्वीकार किया था कि वह बड़े परदे पर इंदिरा गाँधी की भूमिका करना चाहती हैं । रहस्य फिल्म के निर्देशक मनीष गुप्ता ने इंदिरा गाँधी पर फिल्म के लिए विद्या बालन से संपर्क भी किया था । विद्या बालन ने स्क्रिप्ट पसंद भी की थी । मनीष गुप्ता कहते हैं, “विद्या बालन थोड़ी सशंकित थी । इंदिरा गाँधी पर फिल्म से पहले काफी सावधानियां बरतनी होती हैं ।“ प्रेम रतन धन पायो और गोलियों की रासलीला राम-लीला की अभिनेत्री स्वरा भास्कर को भी इंदिरा गाँधी का किरदार करने की बेताबी है ।
इमरजेंसी और भारतीय सिनेमा
इमरजेंसी का बुरा प्रभाव भारतीय सिनेमा पर भी पडा । इंदिरा गांधी ने २५ जून १९७५ को इमरजेंसी का ऐलान किया था।  यह आपातकाल २१ मार्च १९७७ तक जारी रहा।  इस दौरान भारत की फिल्म इंडस्ट्री को आपातकालीन ज़्यादतियां साहनी पड़ी।  आपातकाल के दौरान गुलजार की राजनीतिक फिल्म आंधी का प्रदर्शन रोक दिया गया । गुलज़ार की फिल्म आंधी का प्रदर्शन इस आधार पर रोका गया कि यह फिल्म इंदिरा गांधी पर आधारित थी। इस फिल्म में सुचित्रा सेन का करैक्टर इंदिरा गाँधी से मिलता जुलता था । अमृत नाहटा की फिल्म किस्सा कुर्सी का इमरजेंसी का तगड़ा मज़ाक उड़ाती थी।  इस फिल्म में शबाना आज़मी ने गूंगी बाहरी जनता का किरदार किया था।  इसके प्रिंट संजय गांधी द्वारा गुड़गांव की मारुती फैक्ट्री में जला दिए गए। तेलुगु फिल्म यमगोला (१९७७) भी इमरजेंसी का मज़ाक बनाती थी।  इस फिल्म को हिंदी में लोक परलोक टाइटल के साथ रीमेक किया गया। इन सभी फिल्मों को आपातकाल की ज्यादतियों का सामना करना पड़ा 
एक शोले दो क्लाइमेक्स
कहा जाता है कि गाँधी परिवार से नज़दीकियों के कारण अमिताभ बच्चन की मुख्य भूमिका वाली फिल्म शोले को हिंसा के बावजूद पारित कर दिया गया था । लेकिन, वास्तव में इस फिल्म को काफी कट्स और रीशूट के बाद ही पारित किया गया । रमेश सिप्पी ने फिल्म के अंत में ठाकुर के द्वारा गब्बर सिंह की हत्या होते दिखाया गया था । मगर सेंसर को लगा था कि एक पूर्व पुलिस अधिकारी द्वारा एक डाकू की हत्या गलत सन्देश देने वाली हो सकती थी । इस पर रमेश सिप्पी को क्लाइमेक्स की फिर शूटिंग करनी पड़ी । इसमे ठाकुर द्वारा गब्बर सिंह को मारने से पहले ही पुलिस पहुँच जाती थी और गब्बर सिंह को अपने कब्ज़े में ले लेती थी । ठाकुर के परिवार की गब्बर सिंह द्वारा हत्या के दृश्यों को भी काट दिया गया था । इमाम के बेटे को गब्बर द्वारा मारे जाने का दृश्य भी काट दिया गया था । बाद में रमेश सिप्पी ने डीवीडी के चार घंटे के अनकट वर्शन में ठाकुर द्वारा गब्बर सिंह के मारे जाने के दृश्य सहित सभी सेंसर किये गए दृश्यों को रखा था ।
इमरजेंसी पर फ़िल्में
आईएस जौहर की फिल्म नसबंदी में संजय गांधी के नसबंदी कार्यक्रम का मज़ाक बनाया गया था । सत्यजीत रे की १९८० में रिलीज़ फिल्म हीरक राजर देशे बाल हास्य फिल्म थी। लेकिनइसमे भी आपातकाल पर व्यंग्यात्मक टिप्पणी की गई थी।  बालू महेंद्रू निर्देशित १९८५ की मलयालम फिल्म यात्रा की मुख्य कथा आपातकाल के दौरान मानवाधिकारों के उल्लंघन का चित्रण करने वाली थी।  एक अन्य मलयालम फिल्म पिरावी (१९८८) भी एक पिता की अपने बेटे की खोज की कहानी थीजिसे पुलिस ने गिरफ्तार करने के बाद प्रताड़ना देकर मार डाला था।  सुधीर मिश्र की शाइनी आहूजाकेके मेनन और चित्रांगदा सिंह अभिनीत फिल्म हज़ारों ख्वाहिशें ऐसी की पृष्ठभूमि भी आपतकाल पर थी।  यह फिल्म आपातकाल के दौरान नक्सल आंदोलन के विस्तार और खात्मे की कहानी थी।  इस फिल्म में सत्तर के दशक के भारतीय युवा के सामाजिक और राजनीतिक परिवर्तन का बढ़िया चित्रण किया गया था। मराठी फिल्म शाला (२०१२) भी इमरजेंसी के दौरान की कठिनाइयों पर फिल्म थी। सलमान रुश्दी के उपन्यास मिडनाइट्स चिल्ड्रन में इंदिरा गांधी का निगेटिव चित्रण किया गया था।  यह फिल्म भारत के अंतरराष्ट्रीय फिल्म मेले में नहीं दिखाई गई।  

बॉलीवुड ने ही ‘पिंक’ को शर्म से ‘लाल’ किया !

निर्माता शूजित सरकार की फिल्म पिंक में अमिताभ बच्चन का चरित्र स्थापित करता है कि अगर औरत न कह रही है तो उसे न समझा जाना चाहिए सेक्सुअल रिलेशन बनाने के लिए ज़बरदस्ती नहीं की जानी चाहिए। हालाँकि, इससे पहले फिल्म इसे स्वीकार करती हैं कि अगर कोई लड़की छोटे कपडे पहन कर क्लब या पार्टी में जाती है, दोस्त या दोस्त के दोस्तों के साथ शराब पीती है और डिनर खाती है और पैसे मांगती है तो वह चरित्रहीन समझी जाती है। कोई लड़का उससे ज़बरदस्ती कर सकता है। हालाँकि, ऐसा उस लडके की घटिया मानसिकता का परिणाम दिखाया गया है। लेकिन, यहाँ सवाल यह है कि किसी लडके में यह संस्कार आये कहाँ से। यह संस्कार किसने दिए। पिंक तो यह कह ही रही है। 

क्या बॉलीवुड ज़िम्मेदार नहीं !
बड़ा सवाल यह है कि इस प्रकार के संस्कार युवाओं या पुरुषों के मन में किसने भरे ! उस समाज ने जिसके परिवारों में बेटों के साथ बेटियाँ भी होती हैं ! बेशक, पड़ोस की आधुनिक या तेज़ तर्रार लड़की को देख कर ऐसा समझा जा सकता है। लेकिन क्या हिंदी फ़िल्में युवाओं में गंदे संस्कार भरने के आरोप से बरी हो सकती है ? बिलकुल नहीं। हिंदी फिल्मों ने ही महिला चरित्र को रसातल में डुबोने की साज़िश की है, अपने हीरो की हीरोइज्म स्थापित करने के लिए। बॉलीवुड का इतिहास गवाह है कि तमाम अभिनेता अपनी नायिका को अपमानित कर सुपर स्टार ही नहीं मेगा स्टार तक बने।  
कोड़े से पीटने वाले अमिताभ !
पिंक में अमिताभ बच्चन का चरित्र महिला की न को महत्त्व देता था। लेकिन इन्ही अमिताभ बच्चन की फिल्मों में बॉक्स ऑफिस की खातिर नायिका के चरित्र को रसातल में डुबो दिया। उसकी अवमानना की। अमिताभ की ज़्यादातर फिल्मों की नायिका शो पीस थी। वह खुद एंटी सोशल करैक्टर किया करते थे।  जिसे एंग्री यंगमैन खिताब दिया गया था। यह करैक्टर अपनी नायिका कोा छेड़ता ही नहीं था, बल्कि, शारीरिक रूप से प्रताड़ित भी करता था। फिल्म शहंशाह में अमिताभ बच्चन के करैक्टर के लिए मीनाक्षी शेषाद्री का चरित्र इस लिए हल्का था कि वह आधुनिक थी और कम कपडे पहन कर घूमा करती थी। वह फिल्म में उसे नोचते खसोटते दिखाए गए। फिल्म मर्द में अमिताभ बच्चन बिगडैल, बददिमाग अमृता सिंह को कोड़े से पीटते हैं और उसकी पीठ पर नमक मलते हैं। दर्शक उस समय सीटियाँ बजाते हैं, जब अमृता सिंह उनकी इस हरकत का मज़ा ले रही होती हैं। अमिताभ बच्चन ने ही यह स्थापित किया कि अमीर होना बुरी बात है। ऎसी अमीरज़ादियों का अपहरण कर घर में बाँध कर रखा जा सकता है (फिल्म कुली) और पीटा जा सकता है। दीवार में परवीन बॉबी को हमबिस्तर बनाने वाले अमिताभ बच्चन हीरो है लेकिन परवीन बॉबी को कॉल गर्ल होने के कारण जान देनी पड़ती है। 
हीरो बना अपहर्ता
नायिका का अपहरण कर हीरो बनना तो कई अभिनेताओं का शगल रहा है। सनी देओल अपनी पहली फिल्म बेताब की नायिका अमृता सिंह का उसके घर से अपहरण कर बंधक बना लेते हैं। फिल्म हीरो का नायक (जैकी श्रॉफ) भी मीनाक्षी शेषाद्री का अपहरण कर लेता है।  बॉबी, लव स्टोरी, आदि तमाम टीन एज रोमांस वाली फिल्मों में नायक अपनी नायिका को भगा ले जाता है। दिलचस्प तथ्य यह है कि दर्शक इन चरित्रों के अभिनेताओं को सुपर स्टार बना देता है। नायिका ऐसे लम्पट चरित्र पर मर मिटती है। नायिका के घरवालों को नायक को स्वीकार करना पड़ता है। 
जंपिंग जैक जीतेंद्र
कदाचित जीतेंद्र पहले ऐसे अभिनेता थे, जिन्होंने ऑन स्क्रीन अपनी नायिका को सबसे ज्यादा प्रताड़ित किया। अपनी पहली एक्शन फिल्म फ़र्ज़ में जीतेंद्र बबिता को बेतरह झिंझोड़ कर रख देते थे। जीतेंद्र की नायिका बनने वाली हेमा मालिनी, श्रीदेवी, जयाप्रदा आदि इस नोचखसोटी की गवाह हैं। इन फिल्मों की नायिका माने या न माने जीतेंद्र के करैक्टर को खुद को उसका प्यार साबित करवाना ही है। फिल्मों में इसी प्रकार के रोल कर जीतेंद्र सबसे ज्यादा कमाई करने वाले स्टार बने। आज भी दक्षिण की फिल्मों में जीतेंद्र वाला हीरो कायम है। जीतेंद्र से पहले शम्मी कपूर, विश्वजीत और जॉय मुख़र्जी भी अपनी नायिकाओं को जबरन छेड़ा करते थे।  
पवित्र रिश्ता, बिन ब्याही माँ
अमिताभ बच्चन, जीतेंद्र, शम्मी कपूर या किसी दूसरे अभिनेता को क्या दोष दें, हिंदी फिल्मों ने हमेशा से स्त्री चरित्र को ढीले चरित्र वाली महिला के बतौर दिखाया है। पचास-साठ के दशक तक महिला चरित्र कामुकता में बह कर पहली रात ही शारीरिक सम्बन्ध बना लेती थी। नतीजे के तौर पर वह गर्भवती हो जाती थी। अब इस बिन ब्याही माँ को समाज के ताने सुनने ही हैं, अपने बच्चे को भी पालपोस कर बड़ा करना है। नायिका अपने प्रेम को पवित्र बताते हुए ढाई घंटे की फिल्म में रोती बिलखती हुई बेटे को पालती रहती है। अमर में दिलीप कुमार का चरित्र एक रात का सम्बन्ध बना कर निम्मी को छोड़ कर चल देता है। धुल का फूल की माला सिन्हा भी ऐसे ही पवित्र प्रेम के परिणामस्वरूप गर्भवती हो जाती है। एक फूल दो माली की साधना, आखिरी ख़त की इन्द्राणी मुख़र्जी, अंदाज़ की हेमा मालिनी ऎसी ही बिन ब्याही माँ के फ़िल्मी उदाहरण है। हिंदी फिल्मों में टू पीस बिकनी की ईजाद करने वाली शर्मीला टैगोर ने तो आ गले लग जा फिल्म में शशि कपूर के साथ एक रात के सम्बन्ध से माँ बनने के बाद दाग, आराधना, मौसम, आ गले लग जा, सत्यकाम, सनी, स्वाति, आदि फिल्मों में बिन ब्याही माँ बनने का कीर्तिमान स्थापित कर दिया। तभी तो फिल्म क्या कहना की प्रीती जिंटा अपनी कामुकता से लज्जित होने के बजाय ताल ठोंक कर खुद को पवित्र रिश्ता बनाने वाली बिन ब्याही माँ घोषित करती है। हिंदी फिल्मकारों ने नायिका की एक रात की कामुकता को पवित्र प्यार का दर्ज़ा दे कर समाज के (ख़ास तौर पर महिला दर्शकों के) आंसू निकालने और दर्शक बटोरने में कामयाबी हासिल की थी। 
ठण्ड का इलाज़
हिंदी फिल्मों के नायक ने कई फार्मूले ईजाद किये। इनमे से एक फार्मूला ठण्ड का ईलाज था। तमाम हिंदी फिल्मों में नायक ठण्ड से ठिठुरती नायिका का शरीर गर्म करने के लिए खुद नंगा हो कर, नंगी नायिका के साथ सो जाता है। कथित रूप से शरीर गर्म करने की इस प्रक्रिया को आ गले लग जा में शर्मीला टैगोर पर शशि कपूर ने आजमाया था। अमिताभ बच्चन फिल्म गंगा जमुना सरस्वती में अपनी नायिका मीनाक्षी शेषाद्री के ठन्डे शरीर को गर्म करने के लिए यही तरीका अपनाते हैं। शक्ति सामंत अपनी फिल्म आराधना में बारिश में भीग चुकी शर्मीला टैगोर और राजेश खन्ना पर एक कामुक टॉवल डांस (रूप तेरा मस्ताना) फिल्माते हैं और इसके बाद दोनों को सांकेतिक भाषा में शारीरिक सम्बन्ध स्थापित करते दिखाते हैं। उस दौर की फिल्मों को देखने वाले दर्शको याद होगा कि कैसे ऐसे दृश्य के शुरू होते ही सिनेमाघरों में दर्शक सीटियाँ बजाना और चिल्लाना शुरू कर देते थे। 
कुलटा! हमें कहीं का न छोड़ा !
उस दौर की फिल्मों की खासियत थी कि इन में नायिका की निजता का कोई महत्त्व नहीं था। उस दौर की उन फिल्मों में जहां नायिका एक रात के संबंधों के कारण गर्भवती हो जाती थी, उसकी दाई या डॉक्टर तमाम लोगों के सामने खुलेआम ऐलान करती थी कि नायिका गर्भवती है। इस ऐलान के लिए लीला मिश्रा ख़ास तौर पर मशहूर थी जो निराशा भरे तेवरों के साथ यह कहती थी ‘अरे कुलटा तूने हमें कहीं मुंह दिखाने के लायक नहीं छोड़ा। पुराने ज़माने की सुलोचना और लीला चिटनिस से लेकर नयी जमाने की प्रीटी जिंटा तक को यह डायलाग सुनने पड़े। इसके बावजूद ऎसी कुलटा नायिका बॉलीवुड फिल्मों में बार बार नज़र आती रही। 

'वॉर' ही है पाकिस्तान की घृणा का 'बॉर्डर' !

पाकिस्तानी आतंकवादियों द्वारा उरी में भारतीय सेना के कैंप पर हमला कर १८ सैनिकों को मार डालने की घटना के बाद हिन्दुस्तानियों में बेचैनी है।  शहर शहर प्रदर्शनों की श्रंखला में महाराष्ट्र में शिवसेना और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना का पाकिस्तानी कलाकारों को ४८ घंटों में देश छोड़ देने का अल्टीमेटम भी आ जुडा है। इन दोनों सेनाऑ के बयान के बाद बॉलीवुड में भी पक्ष और विपक्ष बनने शुरू हो गए हैं। पाकिस्तानी कलाकारों के खेमे में खड़े लोगों का कहना है कि इसमे कलाकार कहाँ से आ गए।  उनका क्या दोष ! क्या सचमुच पाकिस्तान की फिल्म इंडस्ट्री लॉलीवुड निर्दोष  है ! वास्तविकता तो यह है कि पाकिस्तानी फिल्मे एंटी-इंडियन ही नहीं खालिस सांप्रदायिक हैं, हिन्दू  विरोध पर टिकी हुई।  इन फिल्मो से हिन्दुओ के प्रति घृणा का  प्रदर्शन होता है।
पाकिस्तानी घृणा की 'बॉर्डर'
पाकिस्तानी फिल्म बॉर्डर भारत और खास तौर पर हिन्दुओ के खिलाफ ज़हरीली घृणा का उम्दा उदाहरण है।  इस फिल्म में हिंदुओं के प्रति घृणा साफ झलकती है।  फिल्म में भारतीय सैनिकों को सांप्रदायिक हिंदुओं द्वारा नियंत्रित और मुसलमान औरतों के साथ बलात्कार करने वाला बताया गया है।  फिल्म में एक हिन्दू लड़की (यह किरदार पाकी एक्ट्रेस सना नवाज़ ने किया है) एक फौजी अधिकारी के गठीले शरीर पर कामुक हो जाती है।  जब लड़की को मालूम होता है कि उसका हमबिस्तर सैनिक भारतीयों को मारना चाहता है तो वह इस्लाम क़ुबूल कर भारतीय फौज को मारने निकल पड़ती है।  फिल्म में पाकिस्तानी सैनिक 'नौसिखुए' भारतीय सैनिकों को मार डालती है।  एक सीन में दुबई में भारतीय फौजी और पाकिस्तानी फौजी अफसर के बीच बॉक्सिंग मुक़ाबला दिखाया गया है जिसमे वह अफसर भारतीय सैनिक को बुरी तरह से पीट देता है। इस फिल्म के संवाद भारत और हिन्दुओ के विरुद्ध घृणा फैलाने वाले हैं।
फव्वाद खान का घृणित सीरियल दास्तान
पाकी एक्टर फव्वाद खान करण जौहर की दिवाली में रिलीज़ होने जा रही फिल्म ऐ दिल है मुश्किल में सेकंड लीड है।  इस पाकिस्तानी एक्टर के विरोध में आई शिव सेना और एमएनएस का विरोध देश के काफी सेक्युलर टाइप के लोग आवाज़ उठा रहे हैं।  लेकिन शायद इन लोगों को नहीं मालूम की फव्वाद खान ने एक ऐसे टीवी सीरियल दास्तान में अभिनय किया है जिसमे हिन्दुओ और सिक्खों को मुसलमानों को सांप्रदायिक और पार्टीशन के दौरान मुसलमानों की ह्त्या करने वाली कौम बताया गया है। इस सीरियल को 'ज़ी ज़िन्दगी' ने 'वक़्त ने किया क्या हसीं सितम' टाइटल के साथ टेलीकास्ट किया था।  लेकिन इस सीरियल को काफी एडिट कर एक प्रेम कहानी के बतौर ही पेश किया गया।
हिन्दू घृणा से भरी अन्य पाकी फ़िल्में
२००० में रिलीज़ एक अन्य पाकिस्तानी फिल्म तेरे प्यार में में भारतीय हिन्दू लड़की का पाकिस्तानी फौजी से रोमांस दिखाया गया है।  इस फिल्म में भारत की आर्मी को सिख विरोधी और सिखों को पाकिस्तान समर्थक दिखाया गया है।  फिल्म के क्लाइमेक्स में पाकिस्तान का हीरो पूरी भारतीय सेना की बटालियन को नष्ट कर भारत में घुस कर अपनी प्रेमिका को ले जाता है।  मूसा खान (२००१) में कश्मीरी पंडितों को दुष्ट और चालबाज़ बताया गया है।  इस फिल्म का हीरो सुपरपावर रखने वाला पाकिस्तानी है।  भारतीय सैनिकों के प्रति पाकिस्तानी घृणा का अंदाजा इसी  से लगाया जा सकता है कि सीरीज अल्फा ब्रावो चार्ली में पाकिस्तानी महिला सैनिक भारतीय सैनिकों को सियाचिन में बुरी तरह से परास्त करती है।   फिल्म जन्नत की तलाश भी  हिंदुओं और सिखों के खिलाफ घृणा से भरी है।
'पृथ्वी' से श्रेष्ठ 'गोरी' !
फिल्म घर कब आओगे में बड़ी दिलचस्प फिल्म है।  इस फिल्म में फिलीपीन्स से यहूदी आतंकवादियों द्वारा पूरे कराची में बम ब्लास्ट करते दिखाया गया है।  लेकिन इन यहूदी आतंकवादियों के नाम चार्ल्स शोभराज, पृथ्वी और ओबेरॉय है।  सबसे ज़्यादा दिलचस्प है फिल्म का एक संवाद 'पृथ्वी के सामने सिर्फ गोरी ही आ सकता है' है।  इस संवाद के ज़रिये हिन्दू शासक पृथ्वीराज चौहान की मोहम्मद गोरी से पराजय दिखाने और भारतीय मिसाइल पृथ्वी के सामने पाकिस्तानी मिसाइल  गोरी की श्रेष्ठता स्थापित करने  की कोशिश की गई है।  
भारत विरोधी आई-एस पी आर
पाकिस्तानी सेना की मीडिया विंग है।  यह विंग सुनिश्चित करती है कि एंटी इंडिया और एंटी हिन्दू खबरें, वृत्त चित्र और खबरे प्रसारित और प्रकाशित हों।  यह विंग पाकिस्तानी फिल्मों को शुरू से आखिर तक मॉनीटर करती है। कहानी में बदलाव से लेकर शूटिंग में दखल और सेंसर करने तक इसकी भूमिका होती है।  अगर किसी भारतीय फिल्म में पाकिस्तानी सेना और उग्रवादियों  के खिलाफ एक शब्द भी होता है तो आई-एस पी आर ऎसी फिल्म को सेंसर से पारित नहीं होने देती।  इस विंग के इशारे पर इसी साल तीन हिंदी फ़िल्में नीरजा, ढ़िशूम और अम्बरसरिया पाकिस्तान में रिलीज़ नहीं हो पाई।
हिंदुस्तानी फिल्मों के खिलाफ पाकिस्तानी निर्माता-वितरक
इसी साल पाकिस्तान के फिल्म निर्माताओं और वितरकों ने हिंदुस्तानी फिल्मों को पाकिस्तान में रिलीज़ से रोकने के लिए एक पिटीशन लाहौर हाई कोर्ट में दायर की थी।  इस पिटीशन में मोशन पिक्चर्स आर्डिनेंस लॉ १९७९ को लागू करने की मांग की गई थी।  पिछले साल पाकिस्तानी कॉमेडियन इफ्तिखार अहमद ठाकुर ने लाहौर कोर्ट में रिट दायर कर भारतीय फिल्मों पर स्थाई रोक लगाने  की  थी।  कोर्ट ने इस रिट को ठाकुर को पाकिस्तान के सांस्कृतिक विभाग से अनुरोध करने की  हिदायत के साथ खारिज़ कर दिया था ।  भारतीय फिल्मों पर रोक लगाने के पक्ष में पाकिस्तान के मोअम्मर राणा, शान, संगीता और शाहिद जैसे बड़े एक्टर रहते हैं।  फिल्म निर्देशक सईद नूर, असलम डार, अल्ताफ हुसैन, मसूद बट और परवेज़ राणा, फिल्म निर्माता जानी मालिक और चौधरी कामरान भी इसी विचार के हैं।
भारतीय एजेंट राहत फ़तेह अली खान !
ज़हर उगलने के लिहाज़ से पाकिस्तानी मीडिया पीछे नहीं।  इस्लामाबाद से प्रकाशित होने वाले अंग्रेजी अख़बार द डेली मेल ने भारतीय टीवी सीरियल छोटे उस्ताद को लेकर एक बड़ी दिलचस्प रिपोर्ट  निकाली थी। बच्चों के इस म्यूजिक रियलिटी शो छोटे उस्ताद में भारत और पाकिस्तान के १०-१० बच्चे हिस्सा ले रहे थे।  इन बच्चों को पाकिस्तान से लाने का ज़िम्मा राहत फ़तेह अली खान का था।  अख़बार ने रिपोर्ट में कहा कि राहत भारतीय एजेंसी रॉ यानि रिसर्च एंड एनालिसिस विंग की वन नेशन थ्योरी के सपोर्ट में काम कर रहे हैं।  इसके लिए उन्हें म्यूजिक और पाकिस्तानी बच्चों का सहारा लिया है।  इन बच्चों के मुंह से हिंदुस्तानी गीत गवाये जायेंगे।  अखबार ने पाकिस्तानी बच्चों का राहत फ़तेह अली खान का कैमल जॉकी बताया।  इस अख़बार ने भारतीय चैनलों स्टार प्लस और ज़ी टीवी को पाकिस्तानी बच्चों के  दिमाग से टू नेशन थ्योरी को मिटाने के लिए रॉ के हाथों खेलने का आरोप लगाते हुए कहा कि पाकिस्तानी बच्चों के मुंह कहलाया गया कि जब वह इंडिया में उतरे तो उन्हें नहीं लगा कि वह पाकिस्तान में नहीं हैं।  द डेली मेल की रिपोर्ट में रॉ द्वारा कथित रूप से एंटी पाकिस्तानी हिंदी फिल्मों की फंडिंग का आरोप भी लगाया।
ज़ाहिर है कि लॉलीवुड भारत का दोस्त नहीं।  इसके शीर्ष एक्टर, निर्माता और वितरक हिंदुस्तानी फिल्मों के विरोधी हैं।  पाकिस्तानी दर्शक सलमान खान शाहरुख़ खान और आमिर खान की फ़िल्में हिट बनाते  हैं।  लेकिन, यही भारत विरोधी फिल्म वार को शाहरुख़ खान की फिल्म चेन्नई एक्सप्रेस से ज़्यादा सफल भी बनाते हैं। यह फ़िल्में हिंदुओं के प्रति उन्मादी भाषा का इस्तेमाल इन्ही कलाकारों के मुंह से बुलवाती है, जो  बॉलीवुड की फिल्मों में पैसा कमाने की मंशा से आते है, न कि सांप्रदायिक या सांस्कृतिक सौहार्द्र के लिए । वॉर और बॉर्डर जैसी एंटी  हिन्दू फिल्मों को हिट बनाने वाला पाकिस्तानी  आवाम ही है।