Friday 21 June 2013

क्या दर्शक बनाना चाहेगा धनुष को अपना राँझना!

 
 तनु वेड्स मनु जैसी 2011 में रिलीज मनोरंजक फिल्म बनाने वाले आनंद एल राज की फिल्म है आज रिलीज राँझना। उनका यूपी कनैक्शन है। इसलिए उनकी फिल्मों की पृष्ठभूमि भी उत्तर प्रदेश का कोई शहर ही होता है। तनु वेड्स मनु में कानपुर था। राँझना में वाराणसी  है। अगर नहीं भी होता तो कोई भी हो सकता था। मुंबई  में भी राँझना जैसे आशिक हैं। दिल्ली में तो ढेरों भरे हैं। गुजरात में भी आशिकों की भरमार है। विश्वास न हो तो अपने संजय लीला भंसाली से पूछ लो कि वह परदे पर कितने गुजरातियों से राम लीला या रास लीला करवा चुके हैं। अब, चूंकि, राँझना का राँझना वाराणसी का है तो वह मंदिर के पुजारी का बेटा है। मंदिर में डमरू बजाता है। चंदा मांगते फिरता है। बाकी वह सेकुलर टाइप का है। एक मुसलमान लड़की से शादी करना चाहता है। लड़की के हाथों से 15 लप्पड़ खाने के बाद 16वें लप्पड़ में लड़की भी उसे चाहने लगती है। लड़की के परिवार में पता चलता है तो हँगामा मच जाता है। लड़की को अलीगढ़  भेज दिया जाता है। वह अलीगढ़ से दिल्ली की सेकुयलर यूनिवरसिटि जेएनयू में चली जाती हैं, जहां पूरे देश को नेता और राजनीति की सप्लाइ होती है। लड़की को भी एक अदद नेता मिल जाता है। वह उसे अकरम बता कर बनारस ले आती है शादी के लिए। हिन्दू लड़का टूटे दिल के साथ लड़की के माता पिता को लड़की की शादी अकरम से करने को राजी भी करता है। लेकिन ऐन शादी के मौके पर हिन्दू लड़के के सामने भेद खुलता है कि अकरम वास्तव में हिन्दू है। वह यह भेद निकाह के वक़्त खोल देता है। लड़की के परिवार के लोग नकली अकरम को मार मार कर रेल्वे लाइन पर मरने   के लिए छोड़ देते हैं। यहाँ यह समझ में नहीं आता कि वह कुन्दन यानि धनुष को क्यों छोड़ देते हैं? क्या अकरम मारा जाता है? क्या लड़के का लड़की से शादी का रास्ता साफ हो जाता है? नहीं भाई नहीं। यूपी वाले की फिल्म है, आसानी से खत्म होने वाली नहीं। 140 मिनट से ज़्यादा चलती हैं राजनीति का तड़का लेकर।
बस इससे ज़्यादा कहानी लिखने की ताकत नहीं । आनंद की राँझना के लेखक हिमांशु शर्मा ने यह क्या किया। सेकुलर कहानी के साथ राजनीति के इतने पेंच क्यों जोड़ दिये? अगर ऐसा नहीं भी होता तो भी क्या हो जाता। कहानी कभी इधर लुढ़कती तो कभी उधर लुढ़कती और भटकती चलती चली जाती है बनारस से Jalandhar और फिर दिल्ली। अबे अगर बनारस में ही खत्म हो जाती तो क्या हो जाता। क्या वहाँ राजनीतिक नेता पैदा करने वाली बनारस हिन्दू यूनिवरसिटि नहीं? हो सकता है  उसे आनंद सेकुलर न मानते होंगे। बहरहाल, फिल्म बनारस के राँझना से निकल कर दिल्ली के जेएनयू के नेता छात्रों का नेतृत्व  करने वाले कुन्दन तक पहुँच जाती है। कहानी में इस प्रकार के अविश्वसनीय ट्विस्ट अँड टर्न देख देख कर दर्शक का भेजा फ्राई हो सकता है। यहीं कारण है कि फिल्म दर्शकों तक अपना उद्देश्य नहीं पहुंचा पाती। समझ में नहीं आता कि यह रोमैन्स फिल्म है या कुछ और।
राँझना के सबसे  मजबूत पक्ष हैं अभिनेता धनुष । क्या अभिनय कराते हैं वह। अत्यधिक गरीब और कमोबेश बदसूरत चेहरे के बावजूद वह बेहद सशक्त अभिनय करते हैं। लगता ही नहीं कि दर्शक दक्षिण के एक बड़े अभिनेता को देख रहे हैं। हर प्रकार के भाव वह बड़ी आसानी से अपने चेहरे पर लाकर दर्शकों तक पहुंचा देते हैं। पूरी फिल्म धनुष की फिल्म बन जाती है। अगर, हिन्दी दर्शकों ने दक्षिण का अभिनेता होने के नाते धनुष के साथ नाइंसाफ नहीं किया तो दर्शकों को आगे भी धनुष की अच्छे अभिनय वाली कुछ अच्छी फिल्में देखने को मिल सकती हैं। धनुष की प्रेमिका से नेताइन बनने वाली जोया की भूमिका में सोनम कपूर हैं। उनका अभिनय अच्छा है। लेकिन हिन्दी बोलते समय ऐसा लगता है जैसे सोनम के दांतों में दर्द हो रहा हो।  स्पेशल अपीयरेंस में अभय देओल जमे हैं। धनुष के दोस्त मुरारी की भूमिका में जीशान अयुब प्रभावशाली रहे हैं। स्वरा भास्कर का अभिनय भी प्रशंसनीय है। फिल्म की लंबाई को नियंत्रित किए जाने की ज़रूरत थी। पर कहानी के इधर से उधर भटकने के कारण यह संभव नहीं था। हेमल कोठारी अपने काम को ठीक तरह से अंजाम नहीं दे सके। एआर रहमान का संगीत फिल्म को खास सपोर्ट करने वाला नहीं।
अब रही बात फिल्म देखने की या न देखने की  तो धनुष के लिए, उनके सोनम के साथ रोमैन्स के लिए राँझना देखी जा सकती है । लेकिन, बनारस के लिए देखने जैसी कोई बात नहीं है फिल्म में। वैसे दर्शक जिस प्रकार से फुकरे जैसी फिल्में पसंद कर रहे हैं, उसे देखते हुए राँझना की गाड़ी बॉक्स ऑफिस पर धीमी ही सही चलती रहनी चाहिए।
एक बात यूपी के फ़िल्मकारों से। भैये क्या अपनी फिल्म के किरदारों खास तौर पर महिला किरदारों के मुंह से गालिया निकलवाना ज़रूरी है?









Thursday 20 June 2013

फ्युचर 'टैन्स' : राँझना, एनिमी...शॉर्टकट रोमियो


कल जब आनंद एल राज की राँझना, आशु त्रिखा की एनिमी और सुशी गणेश की शॉर्टकट रोमियो रिलीज  होने  जा रही  हैं, इन फिल्मों की धनुष, महाक्षय और नील नितिन मुकेश की अभिनेता तिकड़ी के दिलो दिमाग पर टेंशन छाया होगा।  इन फिल्मों के साथ इन तीनों अभिनेताओ का भविष्य यानि फ्युचर शिद्दत से जुड़ा हुआ है। जब तक इन फिल्मों पर दर्शकों का निर्णय पता नहीं लगता, तब तक इन अभिनेताओं का तनाव में यानि टेंशन में  होना स्वाभाविक है।
राँझना दक्षिण के सुपर स्टार धनुष की फिल्म है। धनुष का भविष्य दक्षिण की तमिल और तेलुगू फिल्मों में सुरक्षित है। लेकिन, उनके हाथों में दक्षिण के अभिनेताओं का भविष्य है। अभी तक दक्षिण का कोई अभिनेता हिन्दी फिल्मों में इतना सफल नहीं हो सका है कि बॉलीवुड बादशाह या सुपेरस्टार का खिताब पा सके। इनमे कमल हासन और रजनीकान्त जैसे सुपर अभिनेता भी शामिल हैं। रजनीकान्त तो धनुष के ससुर  भी हैं। अगर वह हिन्दी फिल्मों के राँझना बन पाये तो अपने ससुर से सुपर साबित होंगे। एक प्रकार से धनुष का तनाव खुद   के लिए तो है, अपने साथी अभिनेताओं के लिए भी है।
एनिमी अस्सी के दशक के गरीब फिल्म निर्माताओं के अमिताभ बच्चन मिथुन चक्रवर्ती के बेटे मिमोह उर्फ  महाक्षय चक्रवर्ती की फिल्म है। महाक्षय ने मिमोह नाम से पाँच साल पहले फिल्म जिमी से डेबू किया था। फिल्म बुरी तरह से फ्लॉप हुई। दूसरी फिल्म हैमिल्टन पैलेस रिलीज ही नहीं हो सकी। 2011 में महाक्षय की दो फिल्मे हौंटेड 3डी और लूट रिलीज हुई। 3डी होने के कारण हौंटेड चली। लेकिन महाक्षय को लूट के फ्लॉप होने का नुकसान अधिक हुआ। एनिमी एक कॉप एक्शन ड्रामा फिल्म है। इस फिल्म में महाक्षय अपने पिता मिथुन चक्रवर्ती के सीबीआई अधिकारी के किरदार के ऑपोज़िट सीआईडी अधिकारी के रोल में हैं। फिल्म में सुनील शेट्टी, केके मेनन और ज़ाकिर हुसैन जैसे सक्षम अभिनेताओं के साथ हैं। यह फिल्म हिट हुई तो महाक्षय को अपना कैरियर खत्म होने से बचाने का थोड़ा वक़्त मिल सकेगा।
महाक्षय जैसा ही हाल नील नितिन मुकेश का भी है। मशहूर गायक मुकेश के पोते और नितिन मुकेश के बेटे नील ने अपने कैरियर की शुरुआत सस्पेन्स थ्रिलर फिल्म जॉनी गद्दार से धर्मेंद्र जैसे सीनियर अभिनेता के साथ फिल्म से हुई थी। इस फिल्म को ठीकठाक सफलता मिली थी। पर फिल्म में उनका नेगेटिव किरदार उनके कैरियर के लिहाज से मुफीद नहीं साबित हुआ। नील की अगली फिल्म बिपाशा बसु के साथ आ देखें जरा फ्लॉप हो गयी। न्यूयॉर्क और जेल अच्छी गईं। पर नील को खास फायदा नहीं हुआ। इसमे कोई शक नहीं कि नील ने अपनी अब तक रिलीज 11 फिल्मों में अपने अभिनय का लोहा मनवाया । पर कैरियर के लिहाज से इन्हे बॉक्स ऑफिस पर इतनी सफलता नहीं मिल सकी कि नील अपना स्थायी मुकाम बना पाते। इसीलिए नील को शॉर्टकट रोमियो से बेहद अपेक्षाएँ हैं। इस फिल्म का हिट होना नील के लिए ज़रूरी है। क्योंकि, उनकी इस साल रिलीज दो फिल्में डेविड और 3जी असफल हुई हैं। अगर, शॉर्ट कट रोमियो ठीक ठाक सफलता भी हासिल नहीं कर पायी तो नील की फिल्मों की असफलता की हैटट्रिक बन जाएगी। इसलिए नील नितिन मुकेश सबसे ज़्यादा टैन्स हो रहे होंगे।

बॉक्स ऑफिस पर कल क्या होगा? क्या धनुष, नील और महाक्षय का रिलैक्स हो पाएंगे? क्योंकि, इन तीनों को एक दूसरे से नहीं बल्कि, हॉलीवुड के सुपर सितारे ब्रैड पिट की फिल्म वर्ल्ड वार ज़ेड से डर महसूस हो रहा होगा। यह हॉलीवुड की जोम्बी फिल्म है। हॉलीवुड की जोम्बी फिल्में भारतीय दर्शकों को भी पसंद आती हैं। इसलिए धनुष को राँझना में अपना रोमैन्स, नील को शॉर्ट कट रोमियो में अपना थ्रिलर रोमैन्स और महाक्षय को एनिमी में अपना एक्शन इतना स्ट्रॉंग बनाना होगा कि वह हॉलीवुड के चलते फिरते मुरदों को टक्कर दे पाये। क्या ऐसा होगा? इन तीनों अभिनेताओं में जो भी ऐसा कर पाया वह टेंशन मुक्त होगा। यही है इन तीनों का फ्युचर टैन्स ।



Monday 17 June 2013

'मैन ऑफ स्टील' से चुटाए गए 'अंकुर अरोरा' और 'फुकरे'


हॉलीवुड की फिल्में लगातार बॉलीवुड की फिल्मों को उन्ही के बॉक्स ऑफिस पर लगातार पटखनी दे रही हैं। इस शुक्रवार, बेशक कम मशहूर चेहरों वाली छोटे बजट की फिल्में हॉलीवुड की बड़े बजट की फिल्म के सामने थीं, लेकिन यह फिल्में बड़े प्रोड्यूसरों की फिल्में थी। हॉलीवुड की ज़क Snyder निर्देशित सुपर हीरो फिल्म मैन ऑफ स्टील को वॉर्नर ब्रदर्स पिक्चर्स इंडिया द्वारा 800 प्रिंट्स में रिलीज किया गया था। पर दो हिन्दी फिल्मों फुकरे और अंकुर अरोरा मर्डर केस के निर्माता बड़ी फिल्मों के और अनुभवी निर्माता थे। फुकरे रितेश सिधवानी

और फरहान अख्तर की फिल्म थी। जबकि, अंकुर अरोरा मर्डर केस के निर्माता विक्रम भट्ट काफी अनुभवी  
फ़िल्म निर्माता निर्देशक हैं। इसलिए इन लोगों ने अपनी प्रतिष्ठा के अनुरूप अपनी अपनी फिल्मों का जम कर प्रचार किया था। इसके बावजूद दोनों हिन्दी फिल्मों का बॉक्स ऑफिस पर बुरा हाल हुआ। हॉलीवुड के सुपर हीरो सुपरमैन की फिल्म मैन ऑफ स्टील ने छलांगों पर छलांग भरते हुए बॉक्स ऑफिस पर वीकेंड में 21 करोड़ की कमाई कर डाली। इसके मुकाबले फुकरे ने 9 करोड़ से कुछ ज़्यादा कमाए तो अंकुर अरोरा 1 करोड़ से आगे नहीं बढ़ पाये।

हॉलीवुड की विज्ञान फैंटसी भारतीय दर्शकों को खूब रास आ रही है। मैन ऑफ स्टील अपने स्पेशल एफफ़ेक्ट्स के कारण दर्शकों को रास आयी। जबकि, दूसरी ओर फुकरे की चार दोस्तों की कहानी में नयेपन की कोई गुंजायश नहीं थी। वही बासी घटनाक्रम और चुट्कुलेनुमा संवाद दर्शकों को लुभा नहीं सके। भाई रितेश और फरहान काठ की हांडी बार बार नहीं चढ़ती। अंकुर अरोरा मर्डर केस बेशक एक ईमानदार कोशिश थी, पर दर्शक फिल्म देखने मनोरंजन के लिए जाता है। वह जीवन से जुड़ी प्रेरणादायक घटनाओं को देखना चाहता है, पर इतने सपाट ढंग से नहीं। लेकिन, सबसे बड़ी बात यही है कि मैन ऑफ स्टील की अपील हिन्दी फिल्मों पर भरी पड़ी।
                                                                

Sunday 16 June 2013

वर्ल्ड वार ज़ेड- चलते फिरते मुरदों से युद्ध


आज रिलीज हो रही हॉलीवुड के मशहूर अभिनेता ब्रैड पिट की फिल्म वर्ल्ड वर ज़ेड की कहानी यूनाइटेड नेशन्स के लिए काम करने वाले Gerry लेन की कहानी है, जो विश्व की सरकारों, मानवता और सेना को खत्म करती जा रही जोम्बी के आतंक से छुटकारा दिलाने के लिए विश्व की यात्रा कर रहा है। वह अपने इस प्रयास में कैसे सफल होता है, यह वर्ल्ड वार ज़ेड की रोचक कहानी है। यह हॉलीवुड की जोम्बी फिल्मों की श्रखला में एक फिल्म है।

फिल्म का निर्देशन क्वांटम ऑफ सोलके, मोंस्टर्स बॉल, फिंडिंग नेवेर्लंद और द काइट रनर जैसी फिल्मों का निर्देशन कर चुके मार्क फॉस्टर ने किया है। फिल्म को Mathew Michael carnahan ने ड्रेव गोड्डार्ड और डमों लिंदेलोफ के साथ मिल कर लिखा है। फिल्म मैक्स ब्रुक्स की पुस्तक वर्ल्ड वार ज़ेड पर आधारित है। एक घंटा 56 मिनट लंबी इस फिल्म की निर्माण लागत 200 मिल्यन डॉलर की है। फिल्म 2डी, रियलडी 3डी और आइमैक्स 3डी जैसी उत्क्रष्ट तकनीक का इस्तेमाल कर बनाई गयी है।

ब्रैड पिट की इस फिल्म को पहली बार, वर्ल्डवाइड रिलीज से पहले इंटरनेट पर देखा जा सकेगा। विडियो  ऑन डिमांड  कंपनी Netflix के इंटरनेट के जरिये फिल्म रिलीज के क्षेत्र में उतर आने के कारण यह संभव हो रहा है।  नेट्फ़्लिक्स ने उत्कृष्ट तकनीक का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है। इस कंपनी ने मेगा टिकिट प्रणाली लागू की है। इस योजना को पैरामाउंट पिक्चर्स ने शुरू किया है। इस योजना के अंतर्गत इच्छुक दर्शकों को 50 डॉलर का टिकिट खरीदना होगा। उन्हे फिल्म देखने के लिए  3डी ग्लाससेस और पॉपकॉर्न का पाकेट तथा पोस्टर दिया जाएगा। जब इस फिल्म को ब्लू रे में जारी किया जाएगा, तब फिल्म की एक डिजिटल कॉपी भी दी जाएगी। हॉलीवुड की फिल्मों के दर्शकों को नयी फिल्म देखने के लिए 15 डॉलर का टिकिट खरीदना पड़ता है। घर से सिनेमाघर और सिनेमाघर से घर तक जाने और थिएटर में स्नैक्स आदि लेने का खर्च अलग होता है।

हालांकि, नेट्फ़्लिक्स की यह योजना काफी महंगी प्रतीत होती है। फिर भी इस योजना से दर्शकों को सिनेमाघर  तक जाने और महंगे टिकिट खरीद कर फिल्म देखने की ज़हमत नहीं उठानी पड़ेगी। अगर यह योजना सफल हुई तो संभव है कि अन्य फिल्म निर्माण कंपनियां इस योजना के साथ आयें। भारत में तो कमल हासन द्वारा विश्वरूपम को फिल्म की थिएटर रिलीज से दो दिन पहले रिलीज करने की योजना बनाई तो वितरकों के विरोध के कारण अपने कदम पीछे खींचने पड़े थे। 

Friday 14 June 2013

फुकरे फुकरे ही होते हैं !


इधर बॉलीवुड को दोस्तों पर फिल्में बनाने का शौक चर्राया है। कई पो चे, चश्मे बद्दूर, स्टूडेंट ऑफ द इयर  जैसी  फिल्मों की सफलता ने इस ट्रेंड को  बढ़ावा ही दिया है। इसी का नतीजा है मृगदीप सिंह लांबा निर्देशित, निर्माता रितेश सिधवानी और फरहान अख्तर की फिल्म फुकरे।
फुकरे अन्य दोस्ती फिल्मों के मुकाबले अलग इस लिहाज से है कि यह फिल्म दो या तीन दोस्तों की नहीं, बल्कि चार चार दोस्तों की दोस्ती की कहानी है। फिल्म में चार दोस्तों और उनकी दो महबूबाओं के किरदार के अलावा एक महिला डॉन भोली पंजबान के किरदार को खास महत्व दिया गया। बाकी, हर लिहाज से फिल्म घिसी पिटी ही है। फुकरे यानि चार निठल्ले बेकार दोस्तों की कहानी है। दो दोस्त लॉटरी के जरिये पैसा कमाते हैं। एक दोस्त सपना देख कर नंबर बताता है। दोनों इसी नंबर के लॉटरी टिकिट खरीदते हैं और इनाम जीतते हैं। तीसरा ग्रेजुएट बनाने के लिए पेपर ओपेन करने की फिराक में रहता है। चौथा गायक बनाना चाहता है, पर मौका मिलने पर माइक के सामने गा नहीं पाता। यह चारों इत्तेफाकन मिलते हैं और ढेरों कमाने के लिए भोली पंजाबन के जाल में फंस जाते हैं।
कहानी के लिहाज से फिल्म बिल्कुल रद्दी है। विपुल विग एक अच्छी कहानी लिखने में असफल रहे हैं। विपुल ने ही मृगदीप के साथ फिल्म की पटकथा लिखी है। पर यह कल्पनाहीनता का शिकार है। लगभग सभी सीन बासी हैं। कहीं भी लेखक निर्देशक की कल्पनाशीलता नहीं झलकती। दोस्तों की फिल्म में महिला डॉन का किरदार  कोई अच्छी कल्पना नहीं। फिल्म रुकती थमती चलती रहती है। केवल क्लाइमैक्स में ही थोड़ी rafter पकड़ती है।
फिल्म के चार दोस्त पुलकित सम्राट, मनजोत सिंह, अली फज़ल  और वरुण शर्मा बने हैं। यह चारों कुछ खास करते नज़र नहीं आते। बेहद बासी अभिनय है इन चारों का। मेल कैरक्टर में इन चारों से अच्छा अभिनय पंडित के रोल में पंकज त्रिपाठी करते हैं। फ़ीमेल कैरक्टर में विशाखा सिंह और प्रिया आनंद ने अपनी भूमिकाओं के साथ न्याय किया है। इस फिल्म में सबसे महत्वपूर्ण कैरक्टर भोली पंजाबन का है। इस भूमिका को रिचा चड्ढा ने किया है। रिचा चड्ढा को गंग्स ऑफ वासेपुर के दो भागों से सुर्खियां मिली। लेकिन, इस फिल्म में भोली पंजाबन की भूमिका में वह ख्दु को डुबोने को उतारू नज़र आती हैं। वह डॉन हैं। अच्छी बात है। अभिनेत्रियों को ऐसे रोल करने का पूरा अधिकार है। पर वह सेक्सी क्यों नज़र आ रही थीं। जहां फिल्म की दूसरी नायिकाएँ सामान्य लड़कियों की तरह नज़र आ रही थीं, रिचा चड्ढा अपने उघड़े बदन और अनावश्यक रसीलापन दिखा कर खुद को उम्र में कम बताने का प्रयास कर रही थीं। वह बहुत निराश करती हैं।
इस फिल्म में ऐसा कुछ नहीं है, जो उल्लेखनीय हो। दर्शक फिल्म के पंचों के कारण हँसता है। पर पूरी तरह से संतुष्ट नहीं होता। वैसे फिल्म के दर्शक फिल्म में ऊबते नहीं। यही मृगदीप सिंह लांबा की सफलता है। लेकिन, फरहान अख्तर और रितेश सिधवानी से ऐसी रद्दी कहानी पर फिल्म की उम्मीद नहीं थी। 

स्पेशल एफ़ेक्ट्स से बना सुपरमैन !


हॉलीवुड को भारत में अपने सुपरमैन से बहुत उम्मीदें रहती हैं। आइरन मैन 3 ने पिछले महीने ही सफलता के रेकॉर्ड तोड़े थे। इसीलिए मैन ऑफ स्टील यानि सुपरमैन से भी काफी उम्मीदें थीं। लेकिन, क्या सुपरमैन सिरीज़ की रिबूट फिल्म मैन ऑफ स्टील Hollywood की उम्मीद पर खरी उतरेगी?
सुपरमैन सिरीज़ की छठी फिल्म मैन ऑफ स्टील में काफी कुछ नया था। यह फिल्म सुपरमैन का सेकुएल नहीं  रिबूट है।  यानि इस  फिल्म में सुपरमैन के मैन ऑफ स्टील बनने और पत्रकार बनने की दास्तान है। सुपरमैन  कौन था, कहाँ से आया, उसे परा शक्तियां कहाँ और कैसे मिली? इस फिल्म की यही कहानी है। इसीलिए फिल्म में एक्शन काम है। चमत्कार हैं, पर स्पेशल इफैक्ट और कम्प्युटर ग्राफिक्स के। फिल्म के डाइरेक्टर भी नए हैं और हीरो भी नया है। सुपरमैन रिटर्न्स की बुरी असफलता के बाद Brandon रॉथ का सिरीज़ से पत्ता कट गया। वह केवल एक ही बार सुपरमैन बन पाये। जैक स्निदर निर्देशक की कुर्सी पर आ बैठे। reboot में इस नयी जोड़ी की कड़ी परीक्षा थी। पर यह जोड़ी फ़र्स्ट क्लास मार्क्स से पास नहीं हो पायी। फिल्म यह तो बताती है कि मैन  ऑफ स्टील की कहानी सुपरमैन के मैन ऑफ स्टील बनने की है। मगर पटकथा लेखक और कहानीकार डेविड एस गोयर तथा Christopher Nolan यह साबित कर पाने में असफल रहे हैं। मानव के बीच में रहने वाले इस लोहे के आदमी को सचमुच लोहा साबित होना चाहिए था। लेकिन जैक स्निडर ने हेनरी केविल के बजाय अपनी तकनीकी टीम पर ज़्यादा भारोषा किया। नतीजतन फिल्म तकनीकी उत्कृष्टता का शिकार हो गयी। इस फिल्म का जब तक क्लाइमैक्स आता है, दर्शक ठंडा हो चुका होता है। यह फिल्म मानवता के प्रति कोई संदेश नहीं देती। जबकि इसके पहले की कड़िया अमेरिका ही नहीं विश्व को बचाने का संदेशा देती थीं।
सुपरमैन के किरदार में हेनरी केविल बहुत प्रभावित नहीं करते। उन पर भारी पड़ते हैं फिल्म के विलेन Michael शेन्नॉन। तकनीकी दृष्टि से फिल्म उत्कृष्ट श्रेणी की है। लेकिन, इनमे कोई नयापन नहीं। इन्हे देखते समय गोड्ज़िला जैसी फिल्मों की याद आ जाती है। ग्लाडियाटोर से मशहूर रसेल क्रोव ने सुपरमैन के पिता की भूमिका की है। वह प्रभावशाली हैं।
 मैन ऑफ स्टील की इंडियन बॉक्स ऑफिस पर शुरुआत अच्छी रही है। इस फिल्म ने 75 प्रतिशत तक की ओपेनिंग ली है। जैसी इस ब्लॉग में मैन ऑफ स्टील के बारे में लिखते समय कहा गया था, फुकरे और अंकुर अरोरा मर्डर केस कहीं बहुत पीछे छूट गए हैं। लेकिन, मैन ऑफ स्टील वीकेंड के बाद इंडियन आडियन्स पर अपनी कितनी पकड़ दिखा पाती है, यही महत्वपूर्ण होगा।
 
 

Thursday 13 June 2013

मैन ऑफ स्टील के सामने कैसे टिकेंगे अंकुर और फुकरे !

 इस सुपर स्टार का जन्म 81 साल पहले कॉमिक्स बूक में हुआ था। 35 साल पहले इस का रील लाइफ जन्म हुआ। आज यह दुनिया भर का पसंदीदा कैरक्टर बन चुका है। सुपरमैन !जी हाँ, दुनिया भर के दर्शक इस सुपर हीरो को इसी नाम से जानते हैं। कॉमिक्स से निकल कर यह किरदार रेडियो और टीवी से होता हुआ बड़े पर्दे पर छा गया है। 1978 में, जब इस कैरक्टर पर फिल्म सुपरमैन रिलीज हुई थी तब किसी को उम्मीद नहीं थी कि यह इतनी सफल होएगी। इसीलिए Robert Benton की कहानी पर Richard डोनोर निर्देशित इस फिल्म को महज 817 प्रिंट्स में रिलीज किया गया। 55 मिल्यन डॉलर में बनी इस फिल्म ने 300 मिल्यन डॉलर कमा डाले। तब से यह कैरक्टर Hollywood के दूसरे सुपर पावर रखने वाले स्पाइडरमन, आइरन मेन, आदि के साथ दुनिया को अपनी ताकत का भरोसा दिलाने में जुटा हुआ है।
अब तक, सुपरमैन सिरीज़ की 5 फिल्में रिलीस हो चुकी हैं।  14 जून को रिलीस हो रही सुपरमैन सिरीज़ की छठी फिल्म मैन ऑफ स्टील, दरअसल सुपरमैन सिरीज़ का रेबूट है।  सुपरमैन सिरीज़  की पाँचवी फिल्म सुपरमैन रिटर्न्स बॉक्स ऑफिस पर वर्ल्ड वाइड कुछ खास नहीं कर सकी। 270 मिल्यन डॉलर में बनी सुपरमैन रिटर्न्स ने केवल 391 मिल्यन डॉलर ही कमाए। नतीजे के तौर पर फिल्म के निर्देशक ब्रायन सिंगर को बर्खास्त कर दिया गया। Brandon रॉथ दूसरी बार सुपरमैन नहीं बन सके।
सुपरमैन सिरीज़ की इस छठी कड़ी में सुपरमैन का रोल द काउंट ऑफ मोंटे  क्रिस्टे और रेड राइडिंग हूड़ के अभिनेता हेनरी केविल कर रहे हैं। फिल्म का निर्देशन साइन्स फिक्सन  और एक्शन फिल्मों के महारथी जैक स्निडर कर रहे हैं।

इधर कुछ सालों से, हॉलीवुड के सुपर हीरो Bollywood के सुपर हीरो को बुरी तरह से चुनौती दे रहे हैं। सुपरमैन यानि मैन ऑफ स्टील का दबदबा इस शुक्रवार बॉक्स ऑफिस पर होना स्वाभाविक है। क्योंकि, मैन ऑफ स्टील के सामने बॉलीवुड की दो छोटी चुनौतियां ही हैं। सुहेल तातारी की केके मेनन, टिस्का चोपरा, पाओली डैम और विशाखा सिंह जैसी सामान्य स्टार कास्ट वाली छोटे बजेट की फिल्म अंकुर अरोरा मर्डर केस के अलावा  बड़े निर्माता फरहान अख्तर और रेतेश सिधवानी की मृगदीप सिंह लांबा की मामूली बजेट में बनी फिल्म फुकरे रिलीस हो रही है। चार दोस्तों की कहानी वाली इस दोस्ती फिल्म में वरुण शर्मा, पुलकित सम्राट, मनोज सिंह, अली फज़ल, रिचा चड्डा, विशाखा सिंह और प्रिया आनंद जैसे नए चेहरे है। ज़ाहिर है कि यह फिल्में मैन ऑफ

स्टील  के सामने कहीं नहीं टिकतीं। इसलिए एक प्रकार से हॉलीवुड की फिल्म के लिए बॉलीवुड ने मैदान छोड़ रखा है। बॉलीवुड की छोटे बजेट वाली फिल्में माउथ पब्लिसिटी पर थोड़ा अच्छा बिज़नस  कर सकती हैं। लेकिन जिस प्रकार से अगले हफ्तों में बड़ी फिल्में लाइन में हैं उससे लगता नहीं कि फुकरे या अंकुर अरोरा मर्डर केस कुछ खास कर पाएँगी। वैसे इस हफ्ते की एक महत्वपूर्ण बात यह है कि मैन ऑफ स्टील को भी भारतीय दर्शकों को लुभाने के लिए ज़ोर मारना पड़ेगा। क्योंकि, सुपरमैन रिटर्न्स भारत में भी कुछ खास नहीं कर पायी थी।