निर्देशक सचिन पी करांदे की फिल्म जैक एंड दिल एक अलमस्त युवा की कहानी है, वह उतना ही
कमाता है, जीतनी उसकी
ज़रुरत है। उसकी आदत है जासूसी उपन्यास
पढ़ना ताकि वह खुद अपना एक उपन्यास लिख सके।
अब यह बात दूसरी है कि वह खुद जासूसी के चक्कर में फंस जाता है। सचिन अग्रवाल की फिल्म गेम पैसा लड़की की
नाज़ुक एक मासूम लड़की है, जिसके जीवन में संघर्ष ही संघर्ष है। यह संघर्ष उसे एक अंडरवर्ल्ड डॉन की रखैल बना
देते हैं। कहानियों के सारांश से, यह फ़िल्में
एक आम स्त्री और पुरुष की लगती हैं। जिनकी अपनी अपनी समस्या है। लेकिन, यह समस्याएं व्यक्तिगत ज़्यादा है, आम समस्या
नहीं। आम आदमी की समस्या को उठाने वाली
फिल्म है निर्देशक श्रीनारायण सिंह की बत्ती गुल मीटर चालू। इस फिल्म में बिजली के गुल रहने और बढे बिल से
परेशान आम आदमी की कहानी उठाई गई है। इस
कहानी को परदे पर शाहिद कपूर, यामी गौतम और
श्रद्धा कपूर ने किया है। यह
फ़िल्में अपने दर्शकों को कितना प्रभावित कर सकती है, इसका पता लेख छपने तक चल गया होगा।
टॉयलेट थी आम आदमी की समस्या !
आम आदमी की बिजली समस्या पर फिल्म बत्ती गुल मीटर चालू, ख़ास तौर पर
छोटे शहरों के दर्शकों को प्रभावित कर सकती है।
परन्तु की कथ्य की प्रस्तुति इसे बड़े शहरों में भी दर्शक दिला देगी। क्योंकि आम आदमी की समस्या को फिल्म में
ईमानदारी के साथ मनोरंजक ढंग से उठाया गया हो तो, आम दर्शक ऐसी फिल्म स्वीकार करता है। श्रीनारायण
सिंह की ही पिछली फिल्म टॉयलेट एक प्रेमकथा गाँव-कसबे में महिलाओं के लिए शौच की
समस्या को उठाने के बावजूद यूनिवर्सल अपील वाली साबित हुई।
पिछले साल की फिल्मों में मध्यम वर्ग
इस लिहाज़ से,
पिछले साल ही रिलीज़ कुछ फ़िल्में साबित करती थी कि आम आदमी की समस्या भी
ख़ास हो सकती है कि सभी देखें। साकेत चौधरी निर्देशित हिंदी मीडियम के केंद्र में
माध्यम वर्ग था। इरफ़ान खान का किरदार कारोबारी है। लेकिन, वह अपनी बेटी को इंग्लिश मीडियम स्कूल में
गरीबों के कोटे से दाखिला दिलवाने के लिए गरीब बन जाता है। यह फिल्म हिंदुस्तान के
माध्यम वर्ग की इलीट वर्ग में शामिल होने की इच्छा और आपने बच्चों को अंग्रेजी
स्कूल में दाखिला दिलाने की जद्दोजहद का चित्रण करती थी। वही, दीवाली वीकेंड पर रिलीज़ फिल्म सीक्रेट
सुपरस्टार मुस्लिम लड़की द्वारा गायिका बनने के लिए अपने कट्टरपंथी पिता से संघर्ष
करने की कहानी थी। इस फिल्म को भी सभी ने देखा।
शशांक खेतान की फिल्म बद्री की दुल्हनिया छोटे शहरों की लड़कियों के
बड़े ख्वाब देखने की कहानी है। इस फिल्म में आलिया भट्ट का चरित्र एयर होस्टेस
बनने के लिए लंदन जाता है। यह सभी फ़िल्में
बॉक्स ऑफिस पर बड़ी हिट साबित हुई थी।
कभी किसान और गरीब ही था आम आदमी
आम आदमी की कहानियों पर फिल्म आज की बात नहीं। १९३० के दशक में, वी शांताराम ने बड़ी उम्र के विधुर से काम
उम्र की लड़की की शादी पर दुनिया न माने, समाज की कोढ़ दहेज़ प्रथा पर दहेज़, हिन्दू-मुस्लिम
भाई चारे पर पडोसी,
वेश्या उद्धार पर आदमी जैसे नाना विषयों पर फ़िल्में बना डाली थी। मेहबूब खान ने किसान समस्या पर औरत और मदर
इंडिया का निर्माण किया था। बिमल रॉय ने
गाँव मज़दूर, किसान और
गरीबी पर दो बीघा जमीन और छुआछूत की समस्या पर सुजाता बना दी थी। छुआछूत की समस्या पर बॉम्बे टॉकीज की फ्रैंज
ऑस्टेन निर्देशित फिल्म अछूत कन्या भी थी। हृषिकेश मुख़र्जी और बासु चटर्जी ने तो
आम आदमी पर कई व्यंग्यात्मक कॉमेडी फिल्मों का निर्माण किया।
बहुमुखी प्रतिभा के एक्टर बने आम आदमी !
उस समय के,
फिल्मकार आम आदमी की कहानी को परदे पर प्रभावशाली ढंग से कहने में इसलिए
सक्षम हो पाए कि उस समय कई ऐसे एक्टर भी थे, बहुमुखी प्रतिभा के धनी और समर्पित थे
। इन एक्टरों का व्यक्तित्व किसी भी
भूमिका में फब जाने वाला था। मज़हर खान, गजानन जागीरदार, शाहू मोदक
और खुद वी शांताराम थे तो मेहबूब के लिए नरगिस और राजकुमार। तमाम राजसी भूमिकाये
करने वाले पृथ्वीराज कपूर ने दहेज़ में एक पिता की भूमिका में प्रभावित किया
था। बिमल रॉय की फिल्मों को बलराज साहनी, सुनील दत्त, अशोक कुमार
और दिलीप कुमार मिल गए थे। उस समय राजकपूर
भोले भाले आम भारतीय का प्रतिनिधित्व करते थे।
गुरु दत्त ने भी इस आम आदमी को बखूबी किया। धर्मेंद्र ने, आम आदमी को
परदे पर उतारने में हृषिकेश मुख़र्जी का लंबा साथ दिया। बाद में, हृषिकेश मुख़र्जी और बासु चटर्जी की फिल्मों
के आम आदमी को अमोल पालेकर मिल गए। आज, बड़े परदे पर इस आम आदमी को, नवाज़ुद्दीन
सिद्दीक़ी, आयुष्मान
खुराना, पंकज
त्रिपाठी, राजकुमार
राव, इरफ़ान खान, आदि एक्टर बखूबी उतार रहे हैं।
चालू है सिलसिला
यही कारण है कि आम आदमी पर फिल्मों का सिलसिला चालू है। मुक्काबाज़, पैडमैन, हिचकी, राज़ी, होम और हम, ख़ज़ूर पे
अटके, भावेश जोशी
सुपरहीरो, सूरमा, फन्ने खान, मुल्क, बृजमोहन अमर
रहे, सत्यमेव
जयते, आदि फ़िल्में
आम आदमी, उसकी
ख्वाहिशों, भावनाओं और उसके संघर्ष को दर्शा चुकी हैं। कुछ दूसरी फ़िल्में इसी आम
आदमी पर अभी आनी हैं। इन फिल्मों में आम
आदमी, उसका परिवार, उसकी
इच्छाएं, उसका संघर्ष, उसकी
भावनाये हैं। दिलचस्प तथ्य यह है कि इन्हे सक्षम निर्देशक बना रहे हैं।
सुई धागा और पटाखा
आगामी शुक्रवार को तमाम ट्रेड पंडितों की निगाहें बॉक्स ऑफिस पर होंगी। इस दिन मध्यम वर्ग पर दो फ़िल्में रिलीज़ हो रही हैं। सुई धागा मेड इन इंडिया, मध्यमवर्गीय परिवार की कहानी है, जिसका बेटा
मौजी कुछ करता धरता नहीं है। पत्नी के आने के बाद, उसके जीवन में बदलाव आता है ।
मौजी कपडे सिल सकता है और ममता बढ़िया कढ़ाई-बुनाई कर सकती है। दोनों, मिल कर काम करते हैं और अपनी तक़दीर बदल
डालते हैं। इस फिल्म का निर्देशन उन्ही शरत कटारिया ने किया है, जिन्होंने २०१५
में, दम लगा के हईशा जैसी फिल्म बनाई थी । विशाल भारद्वाज निर्देशित दूसरी फिल्म
पटाखा किसी समस्या को तो नहीं उठाती, लेकिन गाँव के एक परिवार की दो बहनों के बीच
की अदावत को हास्य शैली में पेश करती है। गाँव के परिवार की दो बहने, शादी से
पहले और बाद भी लड़ती रहती हैं। एक समय उन्हें एहसास होता है कि वह एक दूसरी के
बिना नहीं रह सकती। इन दोनों फिल्मों में मुख्य भूमिकाये वरुण धवन, अनुष्का
शर्मा, सान्या
मल्होत्रा और राधिका मदान कर रही हैं।
सिलसिला इसके बाद भी
आमजन पर फिल्मों का चलता ही
रहेगा। प्रदीप सरकार की फिल्म हेलीकाप्टर
इला की अकेली माँ इला (काजोल) पढ़ना चाहती हैं।
जब बेटे की जिम्मेदारी थोड़ा कम होती है तो वह आगे पढ़ने के लिए अपना नाम उसी
स्कूल में लिखा लेती हैं,
जहाँ उसका बेटा पढ़ता है । वहीँ
नवोदित निर्देशक अमित रविन्दरनाथ शर्मा की फिल्म बधाई हो, एक
मध्यमवर्गीय परिवार की उस स्थिति को दर्शाती है, जब जवान बेटे के रहते पत्नी गर्भवती हो जाती
है। मोहल्ले के लोग और दोस्त, बेटे
(आयुष्मान खुराना) को बधाई हो कहते है। आनंद एल राय की फिल्म जीरो एक बौने के हीरो
बनने की कहानी है। अगले साल रिलीज़ होने जा
रही फिल्मों में,
विकास बहल की फिल्म सुपर ३० में हृथिक रोशन एक गणित के अध्यापक आनंद कुमार
की भूमिका कर रहे हैं,
जो आईआईटी के लिए उन गरीब बच्चों को मुफ्त पढ़ाता है, जो मोटी फीस
नहीं चुका सकते। गली बॉयज, दो दोस्तों
की कहानी है,
जो सडकों पर गाते नाचते हैं, इसके बावजूद
लंदन के डांस स्कूल में अपना दाखिला करा पाने में कामयाब होते है। यह सभी फ़िल्में
आम आदमी के अपना लक्ष्य पाने के लिए किये गए संघर्ष की प्रेरणादायक कहानियाँ हैं ।
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