सोन चिड़िया, चम्बल के डाकुओं पर फिल्म है। इन डकैतों के बीच का टकराव है। डकैतों के इस टकराव और खूनी जंग ने कभी, चम्बल घाटी को दहला दिया था। १९६० और १९७० के दशक में इन डाकू फिल्मों को दर्शकों की कमी नहीं थी। बड़े बड़े सितारे भी डाकू चरित्र करने को बेकरार हुआ करते थे। आज, अभिषेक चौबे की फिल्म सोन चिड़िया में, बॉक्स ऑफिस के सुपरस्टार नहीं जुटे हैं। लेकिन, सुशांत सिंह राजपूत, मनोज बाजपेयी, रणवीर शोरे, आशुतोष राणा और भूमि पेडनेकर जैसे सशक्त एक्टर इस डाकू फिल्म के आकर्षण हैं। चम्बल के डाकू कभी चम्बल का आतंक हुआ करते थे। उनके नाम पर बनी हिंदी फ़िल्में हिट हुआ करती थी। क्या चम्बल के डाकुओं के नाम पर बनी सोन चिड़िया उसी तरह हिट होगी ?
रियल लाइफ डाकुओं की कहानी पर विश्वास करें तो ज़्यादातर बदला लेने के लिए
डाकू बने। किसी के परिवार के किसी सदस्य
को मार डाला गया। किसी की ज़मीन जायदाद छीन
ली गई। ऐसे सब लोग डाकू बन गए। कुछ ही ऐसे थे, जिनको खून बहाने का शौक था, इलाके में
आतंक फ़ैलाने का इरादा था। शोले का गब्बर सिंह आतंक फैलाने के लिए डाकू बनने का
उदहारण है। अलबत्ता बाकी ज़्यादातर फ़िल्मी
डाकू भी, बदला लेने
के लिये डाकू बने। अब चाहे वह मदर इंडिया का बिरजू हो या गंगा जमुना का गंगा या
फिर पान सिंह तोमर का पान सिंह, सभी को अपना बदला चुकाना था। यहाँ तक कि महिला डकैत भी बदला लेने के लिए
बनी।
हिंदी फिल्मों के कोई ऐसा बड़ा सितारा नहीं बचा, जिसने फिल्म
में डाकू का चोला न पहना हो। दिलीप कुमार (गंगा जमुना), अमिताभ
बच्चन (गंगा की सौगंध),
धर्मेंद्र (पत्थर और पायल), विनोद खन्ना (मेरा गांव मेरा देश, पत्थर और
पायल), सुनील दत्त
(मुझे जीने दो),
इरफ़ान खान (पान सिंह तोमर), सीमा बिस्वास (बैंडिट क्वीन), डाकू हसीना
(ज़ीनत अमान),
हेमा मालिनी (रामकली), मिथुन चक्रवर्ती (बदला), अजय देवगन
(लज्जा) डाकू किरदार कर चुके हैं। अमजद खान को तो शोले के डाकू गब्बर सिंह ने
सुपरस्टार बना दिया।
डाकू फिल्मों में जीतनी विविधता दिखाई देती है, उतनी किसी
दूसरे विषय पर बनी फिल्मों में दिखाई नहीं देती।
मुझे जीने दो का खतरनाक डाकू जरनैल सिंह एक नर्तकी के प्यार में आ कर सुधर
जाता था। राजकपूर की फिल्म जिस देश में
गंगा बहती है डाकुओं के समर्पण पर बनी उत्कृष्ट फिल्म थी। मदर इंडिया और गंगा
जमुना ऐसी फ़िल्में थी,
जिनमे खुद माँ और भाई अपने डकैत पुत्र और भाई को गोली मार देते थे। रमेश
सिप्पी की फिल्म शोले का जेलर डाकू गब्बर सिंह से बदला लेने के लिए दो चोरों को
किराए में लेता है। पान सिंह तोमर बीहड़ में उतरने से पहले सेना में था और उत्कृष्ट
एथेलीट था।
आज की डाकू फिल्मों की सफलता ?
सोन चिड़िया की सफलता को, ६० और ७० के दशक की डाकू फिल्मों के आईने में देखे
तो इसे सफल होना ही है। लेकिन, पिछले कुछ सालों में, हिंदी फिल्म दर्शकों को चम्बल रास नहीं
आता। चम्बल की पृष्ठभूमि पर फिल्म फेमस
असफल हुई थी। यशराज फिल्म्स की अंग्रेज़ों के जमाने के डाकुओं पर अमिताभ बच्चन और
आमिर खान की फिल्म ठग्स ऑफ़ हिंदुस्तान भी असफल हुई थी। रामगोपाल वर्मा की फिल्म डाकू वीरप्पन पर फिल्म
वीरप्पन भी फ्लॉप हुई थी। ज़ाहिर है कि कुछ सालों में डाकू फ़िल्में बनी ही कम
हैं। जो बनी भी, उन्हें
असफलता ही हासिल हुई।
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