Tuesday, 11 August 2015

"मेरे साईं राम" का म्यूजिक रिलीज किया

पिछले दिनों, विख्यात निर्माता टी पी अग्रवाल एवं के सी बोकाडिया ने फिल्म "मेरे साईं राम" का म्यूजिक एल्बम रिलीज़ किया। उक्त अवसर पर अन्य मेहमानो में निर्माता व संपादक कुमार मोहन, नृत्य निर्देशक पप्पू खन्ना, कलाकार सुरेन्द्र पल, बिग बॉस के एजाज खान, सुधीर दलवी, लाइफलाइन एजेंसी के शब्बीर भाई के आलावा फिल्म की पूरी यूनिट व मीडिया के लोग उपस्तिथ थे। फिल्म के निर्माता हैं, सुजीत घोष व अरुंधति घोष, निर्देशन नवीन जोशी का है, संगीत शकील अहमद, गीत सुजीत घोष व हेमंत भट्ट, गायक घनी मुहम्मद, सुजाता पटवा व मदन शुक्ल हैं, फिल्म की मार्केटिंग स्क्रीन शॉट मीडिया एवं एंटरटेनमेंट ग्रुप ने किया है, ऑडियो 'रेड एंड येलो' ने रिलीज़ किया है। इस फिल्म के प्रस्तुतकर्ता एस आर जी फिल्म्स एंड वीडियो हैं। फिल्म को अपने अभिनय से सुधीर दलवी, मुकुल नाग और स्मिता डोंगरे ने सजाया है।
यह फिल्म साईबाबा की अन्य पिछली फिल्मो की तरह उनके जीवन पर आधारित न होकर एक भक्त और साईबाबा की कहानी है, इस फिल्म में साईबाबा के आदर्श और उनके द्वारा दी गयी शिक्षा पर आधारित है।


कोलकाता की 'मांझी'

फिल्म निर्माता निर्देशक केतन मेहता ने अपनी फिल्म 'माझी : द माउंटेन मैन' के प्रमोशन का अजब आईडिया ईज़ाद किया है।  वह आजकल अपनी मांझी-टीम को लेकर शहर घूम रहे हैं और उस शहर माँझियों यानि उन हस्तियों को जिन्होंने विपरीत परिस्थितियों में भी बिना साहस खोये ऐसा काम क्या, जिसने उन्हें समाज में अमर कर दिया।  मांझी द माउंटेन मैन की कहानी एक ऐसे व्यक्ति की कहानी है, जो पहाड़ काट कर रास्ता बनाता है।  फिल्म में नाज़ुद्दीन सिद्दीकी मांझी की भूमिका में हैं। सुभाषिनी मिस्त्री एक ऐसा नाम है, जिसे कलकत्ता में मांझी के नाम से भी जाना जाता है। हाल ही में मांझी द माउंटेन मेन की टीम प्रमोशन के लिए कोलकत्ता पहुंची।  टीम ने सुभाषिनी मिस्त्री से मुलाकात की। इस दौरान सुभाषिनी ने मांझी के टीम से बाते की। बातचीत में मालूम हुआ कि सुभाषिनी जिंदगी में बहुत कष्ट से आगे आयी है। २३ साल की उम्र में उनका पति का साथ छूट गया। क्यूंकि वह अपने पति के इलाज का खरचा उठा न सकी। पति के जाने के बावजूद उन्होंने मूड कर नहीं देखा। बच्चो के पालन पोषण के लिए उन्होंने सब्जियां बेचीं तथा घरो में बर्तन तक माँझे ।  कुछ सालो बाद उन्होंने एक बीघा जमीन खरीदी और उस पर एक अस्पताल बनाया।इस हॉस्पिटल में गरीब से गरीब लोगो का मुफ्त इलाज़ किया जाता है। अब सुभाषिनी के दो अस्पताल है।  एक अस्पताल में उनका एक बेटा खुद डॉक्टर है। यहाँ तक पहुंच ने के लिए सुभाषिनी ने ४७ साल कड़ी मेहनत की है।  वह अब तक़रीबन ७० साल की है और समाज सेवा से जुडी हुई है। पश्चिम बंगाल सरकार उन्हें अपना गौरव मानती है। 



अक्षय कुमार हुए दंग देख कर ९० किलो की पगड़ी

अभी अक्षय कुमार की २ अक्टूबर को रिलीज़ होने जा रही फिल्म 'सिंह इज़ ब्लिंग' का सांग वीडियो जारी हुआ है।  'तुंग तुंग बाजे' गीत में पंजाबी तड़का  लाने के लिए भांगड़ा और गिद्दा के पुरस्कार सम्मानित कलाकारों को लिया गया है।  इस गीत की शूटिंग पंजाब के कई शहरों में की गई है।  इस शूटिंग के दौरान अक्षय कुमार एक निहंग के संपर्क में आये, जिसने ९० किलो की पगड़ी पहन रखी थी । अक्षय कुमार ९० किलों की पगड़ी पहने निहंग को देख कर दंग रह गए।  इसे देखने के बाद यह तय पाया गया कि इस गीत में पगड़ी वाले निहंग को ख़ास दिखाया जाये। प्रीतम चक्रवर्ती के संगीत निर्देशन में 'तुंग तुंग बाजे' गीत को युवा पंजाब के दिलों की धड़कन दिलजीत दोसांझ ने गया है।  'द लायन ऑफ़ पंजाब', 'जट्ट और जूलियट' और सरदारजी जैसी हिट फिल्मों के एक्टर और गायक दिलजीत दोसांझ का फिल्म 'उड़ता पंजाब' से बॉलीवुड डेब्यू हो रहा है।  इस फिल्म में दिलजीत करीना कपूर के अपोजिट हैं।

स्वरुप संपत की वापसी

फिल्म और टीवी एक्ट्रेस स्वरुप संपत की पूरे १४ साल बाद वापसी होने जा रही है।  वह करीना कपूर और अर्जुन कपूर की आर बाल्की निर्देशित फिल्म 'की एंड का' में करीना कपूर की मॉड शॉड मदर की भूमिका से वापसी कर रही हैं।  १९७९ की मिस इंडिया स्वरुप संपत १९८४ में प्रसारित शफी इनामदार के साथ दीदी जीजा और साले के दिलचस्प कॉमेडी सीरियल 'यह जो हैं ज़िन्दगी'  की रेनू से घर घर में मशहूर हो गई थी । हालाँकि, इससे पहले वह हृषिकेश मुख़र्जी की कॉमेडी फिल्म 'नरम गरम' में अपने फिल्म करियर की शुरुआत कर चुकी थी।  इस फिल्म में स्वरुप के नायक अमोल पालेकर थे।  स्वरुप संपत की कुछ मशहूर फिल्मों में 'नाखुदा', 'तुम्हारे बिना', 'सवाल', 'बहु की आवाज़', आदि हैं।  एक्टर परेश रावल के साथ शादी करने के बाद अपने परिवार पर ध्यान लगाने के लिए, 'साथिया' फिल्म की २००२ में रिलीज़  के बाद स्वरुप संपत ने फिल्म और टीवी को अलविदा कह दी।  अब वह एक बार फिर बड़े परदे पर दस्तक दे रही हैं, तो स्वरुप संपत के प्रशंसकों का खुश होना लाजिमी है।  फिल्म में ट्वेंटीज के दो बच्चों की ५७ साल की माँ स्वरुप संपत ३५ साल की करीना कपूर की माँ बन रही हैं।  इस फिल्म के स्वरुप संपत में तमाम सीन करीना और अर्जुन के साथ ही हैं। स्वरुप संपत कहती हैं, "मुझे इन दोनों के साथ काम करके बड़ा मज़ा आया।" 




अब जॉन अब्राहम भी बने गायक !

अभी, सितम्बर में रिलीज़ होने जा रही सूरज पंचोली और आत्या शेट्टी की डेब्यू फिल्म 'हीरो' के टाइटल सांग के सलमान खान द्वारा गाये जाने की चर्चा हो ही रही थी कि अब एक दूसरे अभिनेता के गायक बनने की खबर आ गई है।  अब अभिनेता जॉन अब्राहम भी गायक बन गए हैं।  जहाँ 'हीरो' सलमान खान के बैनर की फिल्म है। वहीँ, जॉन अब्राहम अपनी अभिनीत फिल्म 'वेलकम बैक' में एक ख़ास गीत गा रहे हैं। जॉन अब्राहम यह एक पूरा गीत खुद अपने लिए ही गा रहे हैं। जॉन अब्राहम पर फिल्माए गए इस गीत के बोल 'टाइम लगाये कायको, अरे बन जा मेरी बाइको' हैं।  जहाँ सलमान खान का गया फिल्म हीरो का गीत एक रोमांस गीत है, जो फिल्म के रोमांटिक जोड़े पर फिल्माया गया है, वहीँ जॉन का गीत एक टपोरी टाइप गीत है।  इस गीत को आमिर खान के गाये फिल्म गुलाम के 'आती क्या खंडाला' और शाहरुख़ खान के फिल्म 'जोश' के 'अपुन बोला तू मेरी लैला' गीत की तरह का गीत है।  इस गीत की धुन संगीतकार अनु मालिक ने तैयार की है।  इस गीत में जॉन अब्राहम के साथ अनु मालिक की बेटी अनमोल मालिक ने आवाज़ दी है।  जॉन अब्राहम यह गीत अनिल कपूर और नाना पाटेकर की परदे की बहन श्रुति हासन को पटाने के लिए गाते हैं ।  निर्माता सलमान खान की फिल्म हीरो और अभिनेता जॉन अब्राहम की फिल्म 'वेलकम बैक' का बहुचर्चित टकराव टल चूका है, लेकिन, इसके बावजूद बतौर गायक इन दोनों का टकराव देखना दिलचस्प होगा।  निर्देशक अनीस बज़्मी, जो सलमान खान के साथ 'नो एंट्री' और 'रेडी' जैसी हिट फ़िल्में बना चुके हैं और 'नो एंट्री में एंट्री' बनाने जा रहे हैं, सलमान खान के अपोजिट जॉन अब्राहम के इस गीत को जल्द से जल्द आकाशीय चैनलों से प्रसारित करना चाहते हैं।

Monday, 10 August 2015

विनय पाठक प्रधान मंत्री के लिए नेहरू जैकेट बना रहे हैं

इस वर्ष स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर अभिनेता विनय पाठक प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी जी  को एक नेहरू जैकेट भेंट स्वरुप भेज रहे हैं जो उन्होंने खुद अपने हाथों से तैयार की है, और यह कला विनय ने स्वतन्त्रता सैनानी गौर हरी दास से सीखी है, जिनका किरदार वह फ़िल्म 'गौर हरी दास्ताँ -द फ्रीडम फ़ाइल' में निभा रहे हैं । विनय ने बताया कि गौर हरी दास जी ने यह कला पूर्व प्रधानमन्त्री मोरारजी देसाई जी को भी सिखाई थी । विनय ने भी किरदार की तयारी के लिए गौर हरी दास जैसे ही इस कला में दक्ष होने के लिए विधिवत ट्रेनिंग ली है, और फ़िल्म के दृश्यों की रेहेरसल्स के दौरान ही कब उन्हें चरखे से प्यार हो गया पता ही नहीं चला और उसी समय उन्होंने निश्चय कर लिया कि वह एक चरखे से बनायीं गयी नेहरू जैकेट प्रधानमन्त्री जी को गौर हरी दास फ़िल्म की पूरी यूनिट की तरफ से ज़रूर भेंट करेंगे । स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या 14 अगस्त को वह इस जैकेट को भेंट करने के लिए वह बेहद उत्सुक है, उसी दिन फ़िल्म गौर हरी दास्ताँ -द फ्रीडम फ़ाइल को भी रिलीज़ किया जायेगा ।

'सिंह इज़ ब्लिंग' की एक झलक (Photo feature)


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'शानदा'र के कुछ जानदार फोटोज


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तमाशा की रैपअप पार्टी

फिल्म 'तमाशा' पूरी हुई। ९ अगस्त को हुई फिल्म की रैपअप पार्टी में रणबीर कपूर और दीपिका पादुकोण भी कुछ ऐसे शामिल हुए। देखिये कुछ फोटोज - 
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जब 'भाइयों' ने वेलकम किया टुटी वेडिंग का !

अनीस बज़्मी की कॉमेडी डॉन ड्रामा फिल्म 'वेलकम बैक' के गाने 'टुटी वेडिंग बोले दी' के वीडियो को टेलीविज़न और सोशल साइट्स पर की सफलता के बाद फिल्म वेलकम बैक के म्यूजिक को जोरशोर से लांच होना ही था। पिछले दिनों फिल्म के तीन मुख्य भाई किरदारों  मजनू भाई, उदय भाई और अज्जु भाई यानि अनिल कपूर, नाना पाटेकर और जॉन अब्राहम ने फिल्म के आधा दर्जन से ज़्यादा संगीतकारों द्वारा तैयार संगीत को लांच किया।  'टुटी वेडिंग बोले दी' के संगीतकार मीका सिंह हैं।  उन्होंने ही इस गीत को गया भी है और वीडियो में हिस्सा भी लिया है।  इस गीत के बारे में फिल्म के निर्देशक अनीस बज़्मी बताते हैं, "मैं कॉंफिडेंट हूँ कि वेलकम बैक का टाइटल सांग २००७ की फिल्म वेलकम के टाइटल सांग की तरह पसंद किया जायेगा सराहा जायेगा।  मीका सिंह ने इस एलबम में शानदार काम किया है।  यह पूरे एल्बम का श्रेष्ठ गीत है।" 
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मी लार्ड ! यह बॉलीवुड कोर्ट रूम ड्रामा है

कोर्ट रूम ड्रामा कानून (१९६०) से जज्बा (२०१५) तक आ पहुंचा है। नर्गिस से लेकर ऐश्वर्या राय बच्चन तक और राजेंद्र कुमार से लेकर अरशद वारसी तक, न जाने कितने एक्टर्स ने काला कोट पहन कर रूपहले परदे पर ड्रामा फैलाया है। कभी हिंदी फिल्मो का क्लाइमेक्स हुआ करता था कोर्ट रूम ड्रामा। सस्पेंस और थ्रिलर फिल्मों की जान रहा है कोर्ट रूम ड्रामा। कभी यह ड्रामा पूरी फिल्म में फैला नज़र आता है। इसी साल रिलीज़ हिंदी मराठी कोर्ट रूम ड्रामा फिल्म ‘कोर्ट’ को बेस्ट फीचर फिल्म का नेशनल फिल्म अवार्ड मिला है। अब दर्शकों की तमाम निगाहें संजय गुप्ता की फिल्म ‘जज्बा’ पर लगी हुई हैं, जिससे ऐश्वर्या राय बच्चन एक वकील के किरदार में फिल्मों में अपनी वापसी कर रही हैं। 
फिल्म के टाइटल में अदालत और कानून!
कोर्ट रूम ड्रामा आँखों के सामने ले आता है निचली अदालत या हाई कोर्ट की बिल्डिंग, काले कोट पहने घूमते लोग, अदालत का कमरा, ऊंची डायस पर बैठा जज, दांये कटघरे पर खडा मुज़रिम और काले कोट में सजे एक दूसरे पर चिल्लाते वकील। कभी पूरी फिल्म या फिल्म के आखिरी कुछ मिनटों में यह दृश्य ड्रामेबाजी के नाटकीय आयाम स्थापित करता था। कोर्ट रूम ड्रामा की यह झलक हिंदी फिल्मों के शीर्षकों में भी नज़र आती थी। बॉलीवुड ने अदालत टाइटल के साथ १९४८, १९५८ और १९७७ में हिंदी फिल्मों का निर्माण किया। अदालत शीर्षक के साथ आप की अदालत, जनता की अदालत, मेरी अदालत और आखिरी अदालत जैसी फिल्मों का निर्माण हुआ। ए आर कारदार ने १९४३ में शाहू मोदक, महताब और बद्री प्रसाद को लेकर कानून टाइटल से फिल्म बनाई। कानून शीर्षक वाली बीआर चोपड़ा की राजेंद्र कुमार, अशोक कुमार और नंदा की फिल्म रहस्य रोमांच के लिहाज़ से मास्टरपीस थी। इस फिल्म में राजेंद्र कुमार ने पहली बार काला कोट पहन कर अधिवक्ता कैलाश खन्ना की भूमिका की थी। कानून शीर्षक वाली दो अन्य फ़िल्में १९९४ और २०१४ में रिलीज़ हुई। कानून टाइटल वाली अमिताभ बच्चन, रजनीकांत और हेमा मालिनी की एक फिल्म अँधा कानून सुपर हिट हुई थी। इसके अलावा आज का अँधा कानून, धरम और कानून, दूसरा कानून, फ़र्ज़ और कानून, गुनाह और कानून, कहाँ है कानून, कानून अपना अपना, कानून और मुजरिम, कानून का क़र्ज़, कानून की हथकड़ी, कानून की ज़ंजीर, कानून क्या करेगा, कानून मेरी मुट्ठी में, कायदा कानून, कुदरत का कानून, नया कानून, कानून कानून है, मेरा कानून, आदि कानून शीर्षक वाली दर्जनों फ़िल्में रिलीज़ हुई। इनमे कुछ फ्लॉप हुई तो कुछ का कोर्ट रूम ड्रामा हिट भी हो गया। 
अदालत और कानून नहीं तो क्या हुआ....!
ज़रूरी नहीं कि टाइटल में अदालत या कानून का इस्तेमाल हो।  लेकिन, इनमे कोर्ट रूम ड्रामा था।साठ और सत्तर के दशक तक तो अदालत, कानून और कोर्ट रूम फिल्मों की ज़रूरी डिश हुआ करती थी। यह फ़िल्में किसी हॉलीवुड या विदेशी फिल्मों का रीमेक हुआ करती थी। मसलन, विक्रम भट्ट की लिसा हेडन और आफताब शिवदासानी अभिनीत फिल्म कसूर हॉलीवुड फिल्म जैग्ड एज की रीमेक थी। अजय देवगन और अक्षय खन्ना की फिल्म दीवानगी हॉलीवुड फिल्म प्राइमल फियर का रीमेक थी। समर खान की कोर्ट रूम ड्रामा फिल्म शौर्य मोटा मोटी अ फ्यू गुड मेन पर आधारित थी। इसके अलावा निर्देशक सुहैल तातारी की फिल्म अंकुर अरोरा मर्डर केस और राजकुमार राव की हंसल मेहता निर्देशित फिल्म शाहिद उल्लेखनीय फ़िल्में हैं। कुछ ऐसी फ़िल्में भी हैं, जिनके कोर्ट रूम ड्रामा ने फिल्मों को हिट बना दिया। 
ऐतराज (२००४)- अब्बास मस्तान ने हॉलीवुड फिल्म डिस्क्लोजर का भारतीयकरण कर अक्षय कुमार, करीना कपूर और प्रियंका चोपड़ा की फिल्म ऐतराज़ बना दिया। इस फिल्म में अन्नू कपूर और करीना कपूर ने काला कोट पहन कर कोर्ट रूम में भरपूर ड्रामा किया था। वकील करीना कपूर अपने ऑनस्क्रीन पति अक्षय कुमार को बलात्कार के आरोप से बरी करवाती हैं।  
नो वन किल्ड जेसिका (२०११)- जेसिका लाल मर्डर केस पर राजकुमार गुप्ता की नो वन किल्ड जेसिका में दिखाया गया था कि किस प्रकार से वकीलों द्वारा सबूतों के साथ छेड़छाड़ की जाती है। इस फिल्म में विद्या बालन और रानी मुख़र्जी की मुख्य भूमिका थी। 
ओएमजी- ओह माय गॉड (२०१२)- गुजराती नाटक पर इस फिल्म का फॉर्मेट बड़ा दिलचस्प था। एक वकील अपनी दूकान का मुआवजा लेने के लिए ईश्वर, अल्लाह और क्राइस्ट को प्रतिवादी बनाता है। अक्षय कुमार और परेश रावल के उत्कृष्ट अभिनय और उमेश शुक्ल के निर्देशन ने फिल्म को हिट बना दिया। फिल्म के कोर्ट रूम में दिलचस्प पैरवी का ड्रामा था। 
जॉली एलएलबी (२०१३)- सुभाष कपूर की यह फिल्म एक असफल वकील अरशद वारसी के माध्यम से अदालतों की स्थिति पर व्यंग्य करती थी। किस प्रकार से नामचीन वकील अदालत को प्रभावित करने की कोशिश करते हैं, इसका चित्रण भी फिल्म में हुआ था। फिल्म में अरशद वारसी और बोमन ईरानी के बीच का कोर्ट रूम ड्रामा फिल्म की जान था। 
एक रुका हुआ फैसला (१९८६)- निर्देशक बासु चटर्जी ने रंजित कपूर के साथ अमेरिकन फिल्म १२ एंग्री मेन (१९५७) को एक रुका हुआ फैसला बना दिया था। पंकज कपूर, दीपक काजीर, अमिताभ श्रीवास्तव, एस एम् ज़हीर, एम् के रैना, के के रैना, आदि की जूरी की भूमिका वाली फिल्म ‘एक रुका हुआ फैसला’ में जूरी के बारह सदस्यों को बंद कमरे में एक आदमी द्वारा अपने बूढ़े पिता की हत्या पर बहस करके फैसला लेना है। केवल एक कमरे में फिल्माई गई यह फिल्म उत्कृष्ट लेखन का नमूना है। 
मोहन जोशी हाज़िर हों (१९८४)- सईद अख्तर मिर्ज़ा की फिल्म ‘मोहन जोशी हाज़िर हो’ मोहन के किरदार से न्याय व्यवस्था की खामियों और सुस्तियों को व्यंग्यात्मक ढंग से उजागर करती थी। नेशनल फिल्म अवार्ड विजेता इस फिल्म में दसियों साल तक मुकदमे चलते रहने, वकीलों और अदालत का क्रमचारियों की मिली भगत से अपराधियों के छूट जाने को दर्शाया गया था। फिल्म में मोहन जोशी की भूमिका में भीष्म सहनी ने मार्मिक अभिनय किया था। वकील बने नसीरुद्दीन शाह और सतीश शाह की कुटिलता देखने योग्य थी। 
वकीलों के किरदार में सुपर स्टार
जब हिंदी फिल्मों के कोर्ट रूम ड्रामा का इतिहास पुराना है तो ज़ाहिर है कि वकील किरदार भी उतने ही पुराने रहे होंगे। इन काले कोट वाले किरदारों को तमाम सुपर स्टार्स ने किया। इनकी अदायगी के कारण उनकी फिल्मों के कोर्ट रूम सीन्स जानदार बन गए। हिंदी फिल्मों के सदाबहार हीरो अशोक कुमार ने कई फिल्मों में वकील किरदार किये। उनके अभिनय से सजी वकील किरदार वाली फिल्मों में धूल का फूल, पूजा के फूल, ममता, धुंध, आदि उल्लेखनीय थी। अनिल कपूर ने चॉकलेट, ठिकाना, मेरी जंग और युद्ध में वकील किरदार किये थे। मेरी जंग में उनका अदालत में ज़हर पीकर एक मुजरिम को निर्दोष साबित करने का सनसनीखेज था। अमिताभ बच्चन ने महान और ज़मानत में काला कोट पहना। शत्रुघ्न सिन्हा के दोस्ताना और विश्वनाथ के वकील किरदार सुपर हिट हुए. उन्होंने फिल्म जुल्मों सितम, इंसानियत के दुश्मन, आमिर आदमी गरीब आदमी और परवाना में भी वकील किरदार किये। फिल्म जंगबाज़ में राजकुमार ने वकील की भूमिका की थी। फिल्म का किरदार उनकी रियल लाइफ की तरह हेलीकाप्टर से अदालत आता था। वकील किरदार करने वाले अन्य सुपर स्टारों में विनोद खन्ना (मुकद्दर का सिकंदर, कैद और पहचान), सुनील दत्त (वक़्त), सनी देओल (दामिनीं और योद्धा), ऋषि कपूर (कारोबार), मिथुन चक्रवर्ती (हत्यारा), गोविंदा(क्योंकि, मैं झूठ नहीं बोलता), अभिषेक बच्चन (फिर मिलेंगे), संजीव कुमार (लाखों की बात और खुद्दार), दिलीप कुमार (किला), राजेंद्र कुमार (कानून और साजन की सहेली), सलमान खान (निश्चय) ने भी वकील किरदार किये थे। सुपर स्टारों में आमिर खान और शाहरुख़ खान ने अभी तक काला कोट नहीं पहना है।  
नर्गिस से ऐश्वर्या राय तक 
कदाचित नर्गिस ने सबसे पहले फिल्म आवारा में काला कोट पहन कर फिल्मों में वकील नायिका का आगाज़ किया। ममता में सुचित्रा सेन भी वकील बनी थी, जो अपनी माँ की मार्मिक वकालत करती थी। इसके अलावा हेमा मालिनी (दर्द और कुदरत का कानून), करीना कपूर (ऐतराज़), लिसा रे (कसूर), रवीना टंडन (पहचान), डिंपल कपाडिया (ज़ख़्मी शेर), वहीदा रहमान (अल्लाहरखा) और लारा दत्ता (बर्दाश्त) ने भी वकील किरदार किये। अब ऐश्वर्या राय बच्चन फिल्म 'जज़्बा' में वकील का किरदार कर रही हैं। 
चरित्र अभिनेता बने वकील 
कुछ चरित्र अभिनेताओं के किये वकील किरदार मुख्य किरदारों पर भारी पड़े। चरित्र अभिनेता इफ्तिखान की फिल्म नज़राना, दोस्ताना, मैं तेरे लिए, खट्टा मीठा, सफ़र, अपराधी कौन, आदि फिल्मों में वकील किरदार उल्लेखनीय थे। इसके अलावा प्राण (मिट्टी और सोना तथा गुमनाम), केएन सिंह (मेरा साया), सदाशिव अमरापुरकर (रिश्ते और सबसे बड़ा खिलाड़ी‑), मदनपुरी (इत्तेफाक), कादर खान (खुदगर्ज और जस्टिस चौधरी), गोगा कपूर (आज की औरत, अंजाने रिश्ते और शहंशाह), डैनी डेन्ग्ज़ोप्पा (ढाल, अधिकार, जीवन, जख्मी शेर और आखिरी संघर्ष), गुलशन ग्रोवर (बवंडर) अमजद खान (चमेली की शादी), अनुपम खेर (सत्यमेव जयते, एतबार, जिद्दी, गर्व और जख्मी शेर), किरण कुमार (नजर के सामने, मोक्ष और क्योंकि मै झूठ नहीं बोलता), परेश रावल (एतराज और अकेले हम अकेले तुम), अमरीश पुरी (मेरी जंग, हलचल और दामिनी), शक्ति (कपूर पाप की आंधी), मोहन जोशी (लाल बादशाह और क्रोध) के वकील किरदार भी यादगार हैं। 
हास्य अभिनेता भी पीछे नहीं
कई हास्य अभिनेताओं ने वकील किरदार में अपनी छाप छोडी। असरानी (ये तेरा घर ये मेरा घर और प्रियतमा), केस्टो मुखर्जी (आप के दीवाने), उत्पल दत्त (हनीमून), जानी लीवर (हद कर दी आपने), पेटल (किरायेदार), असित सेन (मंझली दीदी), देवन वर्मा (सुर संगम), राकेश बेदी (सुनो ससुरजी) तथा (वादा), आईएस जौहर (प्रियतमा और अप्रैल फूल) के वकील किरदार दर्शकों को आज भी याद हैं।  
अमर
अमर फिल्म में दिलीप कुमार और मधुबाला वकील बने हैं। एक प्रवास के दौरान दिलीप कुमार गाँव की एक लड़की निम्मी से शारीरिक सम्बन्ध बनाते हैं। इन संबंधों के फलस्वरूप निम्मी माँ बन जाती है। लेकिन, वह बच्चे के बाप का नाम किसी को नहीं बताती। जयंत गाँव का गुंडा है, जिसे वकील मधुबाला सज़ा करवाती है। जेल से छूट कर जयंत गाँव जाता है। जब उसे बच्चे के बारे में मालूम होता है, तब वह निम्मी से बच्चे के पिता का नाम पूंछता है। मामला कोर्ट तक पहुंचता है। तमाम नाटकीय बहस के बाद दिलीप कुमार अपना जुर्म क़ुबूल करता है। लेकिन, वह नापसंदगी की शादी को उम्रकैद की सज़ा मानते हुए, तीन साल की सज़ा भुगतना मंज़ूर करता है। यह कथानक महबूब की फिल्म अमर का है। 


विषय एक फिल्म अनेक !

हालिया रिलीज़ फिल्म 'रहस्य' के निर्देशक मनीष गुप्ता ने विशाल भरद्वाज पर आरोप लगाया है कि विशाल मेरी फिल्म कोई नुक्सान पहुंचाने के लिए तलवार दम्पति के साथ सांठ गाँठ कर रहे थे।  दरअसल, विशाल भरद्वाज २००८ में हुए कुख्यात  आरुषि हत्याकांड पर फिल्म बनाना चाहते थे।  इसके लिए वह तलवार दम्पति और उनके वकील के लगातार संपर्क में थे।  लेकिंन, मनीष गुप्ता ने इस कांड  पर फिल्म 'रहस्य'  आठ महीनों में पूरी कर ली।  विशाल भरद्वाज रहस्य के पहले बना लिए जाने से मनीष से नाराज़ थे।  इसीलिए उन्होंने रहस्य को रुकवाने में तलवार दम्पति का साथ दिया।  यानि यह मामला साफ़ तौर पर एक विषय पर फिल्म बनाये जाने से पैदा दुश्मनी थी। इसके बावजूद फिल्म निर्देशक और गीतकार गुलज़ार की बेटी मेघना गुलजार इसी आरुषि मर्डर केस पर फिल्म 'तलवार' का निर्माण कर रही हैं।
२८ अगस्त को जब दर्शक कबीर खान की फिल्म 'फैंटम' देख रहे होंगे, उन्हें  फिल्म कहीं देखी हुई सी लगेगी।  दर्शकों को याद आयेगी निर्देशक नीरज पाण्डेय की अक्षय कुमार अभिनीत फिल्म 'बेबी' की।  इन दोनों फिल्मों के कथानक में काफी समानता है।  केवल नीरज पाण्डेय और कबीर खान के स्टोरी ट्रीटमेंट में ही फर्क होगा।  फैंटम की पृष्ठभूमि भी मुंबई के २६/११
अटैक और वैश्विक आतंकवाद पर फिल्म है।  जहाँ बेबी का अजय राजपूत आतंकवादियों के पीछे इंस्तांबुल, नेपाल, अबु धाबी, आदि देशों तक पहुँचता था, वहीँ फैंटम का दनयाल खान भी यूरोप, अमेरिका और आतंकवाद की नर्सरी पश्चिम एशिया तक जाता दिखाया जायेगा।  'बेबी' की तापसी पन्नू की तरह फैंटम में भी कटरीना कैफ सैफ की मदद करने वाली स्पेशल एजेंट बनी हैं।  इन्ही सब समानताओं के कारण फैंटम की रिलीज़ अप्रैल से अगस्त कर दी गई।
'ओह माय गॉड' ! 'पीके' भी !!
अभी बहुत पीछे जाने की ज़रुरत नहीं।  आमिर खान और राजकुमार हिरानी की जोड़ी की फिल्म 'पीके' और अक्षय कुमार और उमेश शुक्ल की फिल्म ओएमजी :ओह माय गॉड की कहानी बिलकुल सामान थी।  फर्क केवल यह था कि जहाँ फिल्म का मुख्य चरित्र धार्मिक
कठमुल्लों को अदालत तक घसीट कर उनका पर्दाफाश करता हैं, वहीँ पीके  में यह काम एक एलियन पीके करता है।  ओएमजी गंभीर और विचारवान फिल्म थी। वहीँ पीके कॉमेडी में सनी एक हलकी फुल्की सामान्य कॉमेडी फिल्म थी।  विवादों और हिन्दू धर्म पर ज़्यादा प्रहार करने के कारण यह फिल्म हिट हो गई।
बॉलीवुड में कहानियों का टोटा हो गया लगता है।  तभी तो एक एक बाद एक सामान कथानकों पर फ़िल्में बनाई जाने लगी है।  अब यह बात दीगर है कि एक फिल्म के बाद दूसरी फिल्म  की रिलीज़ पर वक़्त लगाने और निर्देशक तथा कलाकारों की भिन्नता के कारण दर्शक ज़्यादा प्रभावित नहीं होते।  २००९ में रिलीज़ कबीर खान की जॉन अब्राहम, कटरीना कैफ और  नील नितिन मुकेश की फिल्म न्यू यॉर्क और रेंसिल डि सिल्वा की सैफ अली खान, करीना कपूर और विवेक ओबेरॉय की फिल्म कुर्बान की कहानी में भी काफी समानता थी।  अब यह बात दीगर है कि कुर्बान को बॉक्स ऑफिस पर सफलता नहीं मिली।  न्यू यॉर्क ने पहले रिलीज़ हो कर विषय की नवीनता का फायदा  उठा लिया।

अनारकली बनाम मुग़ल ए आज़म
सामान विषय  पर फ़िल्में बॉलीवुड का कोई नया ट्रेंड नहीं।  कोई साठ साल पहले के आसिफ ने अपनी सलीम अनारकली की मोहब्बत की दास्ताँ पर फिल्म बनाने का ऐलान किया था।  इस फिल्म के लिए दिलीप कुमार, मधुबाला और पृथ्वीराज  कपूर को साइन किया गया।  मुग़ल ए आज़म अभी लेखन के स्तर पर थी कि फिल्म की कहानी लीक हो गई।  फिल्मिस्तान ने अनारकली के लिए जहांगीर के मुग़ल बादशाह  विरुद्ध विद्रोह की कहानी पर फिल्म लिखवा कर १९५३ में अनारकली टाइटल से रिलीज़ करवा दी। इस फिल्म में प्रदीप कुमार ने सलीम, बीना रॉय ने अनारकली और मुबारक ने अकबर का किरदार किया था।  नन्दलाल जसवंतलाल के निर्देशन मे  फिल्म अनारकली के सी रामचन्द्र और वसंत प्रकाश के संगीत से सजे गीत सुपर हिट हो गए। अनारकली उस साल १९५३ की सबसे बड़ी हिट फिल्म साबित हुई।   एक ही कथानक के बावजूद के आसिफ ने मुग़ल ए आज़म बंद नहीं की। आसिफ को आम तौर पर फिल्म बनाने में काफी वक़्त लगता था। वह परफेक्शन पसंद फिल्मकार थे। इसलिए, उन्हें मुग़ल ए आज़म बनाने में काफी वक़्त लगा। मुग़ल ए आज़म ५ अगस्त १९६० को रिलीज़ हुई। नौशाद के संगीत से सजी यह फिल्म भी बड़ी हिट फिल्म साबित हुई। 

के आसिफ ने तो अपना प्रोजेक्ट ख़त्म नहीं किया।  लेकिन, राजकुमार हिरानी को फिल्म मुन्नाभाई चले अमेरिका बनाने का इरादा छोड़ना पड़ा।  वह लगे रहो मुन्नाभाई के बाद संजय दत्त और अरशद वारसी की जोड़ी के साथ 'मुन्नाभाई चले अमेरिका बनाना चाहते थे।  विधु विनोद चोपड़ा की फिल्म 'एकलव्य' के साथ फिल्म का टीज़र भी रिलीज़ किया गया।  लेकिन, तभी हिरानी को पता चला कि करण जौहर भी इसी से मिलते जुलते सब्जेक्ट पर के सीरियस फिल्म 'माय नाम इज़ खान' बनाने जा रहे हैं।  इस पर उन्होंने 'मुन्नाभाई चले अमेरिका' बनाने का इरादा छोड़ दिया।  कुछ ऐसा ही मधुर भंडारकर ने भी किया।  वह एक बार गर्ल के राजनीतिज्ञ बनने की कहानी पर फिल्म 'मैडमजी' बनाने जा रहे थे।  उनकी फिल्म में प्रियंका चोपड़ा मुख्य भूमिका में थी।  लेकिन, तभी उन्हें मालूम पड़ा कि केसी बोकाडिया की फिल्म 'डर्टी पॉलिटिक्स' का विषय भी सामान है।  पिछले दिनों रिलीज़ फिल्म 'डर्टी पॉलिटिक्स' में मल्लिका शेरावत ने जो भूमिका की थी, वही प्रियंका चोपड़ा करने वाली थी।  

आशुतोश गोवारिकर की फिल्म खेले हम जी जान से और अनुराग कश्यप की बेदब्रत पैं निर्देशित चट्टगांव की कहानियाँ मानिनी चटर्जी की किताब डू ऑर डाई : द चिट्टगांव अपराइजिंग १९३-४० पर आधारित थी।  हालाँकि, आशुतोष गोवारिकर ने इस किताब पर फिल्म बनाने के अधिकार मानिनी से खरीद लिए थे।  लेकिन, अनुराग कश्यप ने भी इसी विषय पर फिल्म बनाना शुरू कर दिया।  अब यह बात दीगर है कि अभिषेक बच्चन और दीपिका पादुकोण की फिल्म खेले हम जी जान से पहले रिलीज़ हो कर बुरी तरह से असफल हो गई।  अनुराग कश्यप ने आरोप लगाया कि अमिताभ बच्चन ने अपने रसूख का फायदा उठा कर उनकी फिल्म रिलीज़ नहीं होने दी।  
कुछ और सामान विषय वाली फ़िल्में 
एक ही विषय पर दो फिल्मों का सिलसिला जारी है।  अभिषेक चौबे की फिल्म उड़ता पंजाब और लव रंजन की फिल्म वाइल्ड वाइल्ड पंजाब के विषय पंजाबी युवा और उनकी परेशानियां हैं।  अभिषेक चौबे की फिल्म में शाहिद कपूर, करीना कपूर और अलिया भट्ट और लव रंजन की फिल्म में पंजाबी फिल्मों के सितारे गिप्पी ग्रेवाल मुख्य भूमिका के रहे हैं। इन दोनों ही फिल्मों की शूटिंग आसपास ही शुरू हुई है।  अब देखने वाली बात कि कौन फिल्म पहले रिलीज़ होती है।  
३१ जुलाई को अजय देवगन की फिल्म 'दृश्यम' रिलीज़ होगी।  इस फिल्म की कहानी ३ जुलाई को रिलीज़ कमल हासन की फिल्म 'पापनाशम' से मिलती जुलती है।  क्योंकि यह दोनों ही फिल्मे २०१३ में हिट मलयाली फिल्म 'दृश्यम' पर आधारित हैं।  इस फिल्म पर  २०१४ में दो फ़िल्में कन्नड़ दृश्य और तेलुगु दृश्यम बनाई गई थी।  इस बारे में  अजय देवगन की फिल्म 'दृश्यम' के निर्देशक निशिकांत कामथ कहते हैं, "मेरी फिल्म का ट्रीटमेंट 'पापनाशम्' से अलग होगा।  दृश्यम का विषय ऐसा है, जिस पर कितनी भी भाषाओँ में फ़िल्में बनाई जा सकती है। मलयाली दृश्यम पर तेलुगु और कन्नड़ में फ़िल्में बनाई गई और सभी फ़िल्में हिट हुई।"

राजेंद्र कांडपाल 




मिला जोवोविच की रेजिडेंट ईविल के फाइनल चैप्टर में वापसी

हॉलीवुड की हीरोइन सेंट्रिक  एक्शन फिल्मों की नायिका के रूप में अभिनेत्री मिला जोवोविच लाजवाब हैं।  रेसिडेटं ईविल सीरीज की फिल्मों की ऐलिस के किरदार ने उन्हें रेजिडेंट ईविल सीरीज की फिल्मों रेजिडेंट ईविल, रेजिडेंट ईविल अपोकलीप्स, रेजिडेंट ईविल: एक्सटिंक्शन, रेजिडेंट ईविल : आफ्टरलाइफ और रेजिडेंट ईविल: रेट्रीब्यूशन की नायिका बना दिया।  रेजिडेंट ईविल सीरीज की पिछली फिल्म रेट्रीब्यूशन २०१२ में रिलीज़ हुई थी।  शादी के बाद मिला गृहस्थी में रम गई।  वह माँ भी बन गई।  लेकिन, अब एक बार फिर वह स्मृति-लोप की बीमारी से ग्रस्त ऐलिस का किरदार करने के लिए पूरी तरह से तैयार हैं।  वह रेजिडेंट ईविल सीरीज की आखिरी फिल्म 'द फाइनल चैप्टर' में अपने तमाम एक्शन दृश्यों को आत्म विश्वास से कर रही है।  दो बार की तलाक़शुदा अभिनेत्री मिला जोवोविच के वर्तमान पति पॉल डब्ल्यू एस एंडरसन ही उनके फाइनल चैप्टर के डायरेक्टर हैं।  इस फिल्म में ऐलिस को मानवता के आखिरी चिन्ह को ख़त्म करने के लिए तैयार रेड क्वीन को ख़त्म करने के लिए समय से टक्कर लेनी है।  रेजिडेंट ईविल : द फाइनल चैप्टर २ सितम्बर २०१६ को रिलीज़ होगी।  

बेन एफ्लेक करेंगे द बैटमैन को डायरेक्ट

मास्क वाले सुपर हीरो के प्रशंसकों के लिए यह खुश खबर है।  वार्नर ब्रदर्स और डिटेक्टिव कॉमिक्स यानि डीसी की मास्क वाले सुपर हीरो की फिल्म ' बैटमैन' के लिए राइटर, डायरेक्टर और रिलीज़ डेट तय कर ली गई है। बैटमैन की स्पिन-ऑफ फिल्म 'द बैटमैन' में अभिनेता बेन अफ्लेक बैटमैन सूट और नकाब पहने ही होंगे, वह इस फिल्म के डायरेक्टर भी होंगे।  बेन ने कैमरा के पीछे गॉन बेबी गॉन, द टाउन और एर्गो जैसी हिट फ़िल्में दी हैं। इस फिल्म को एर्गो और बैटमैन वर्सेज सुपरमैन : डौन ऑफ़ जस्टिस के लेखक क्रिस टेरियो लिख रहे हैं।  द बैटमैन को डायरेक्ट करना बेन अफ्लेक के लिए आसान काम नहीं होगा।  वह 'द बैटमैन' के एक्टर-डायरेक्टर तो हैं ही, वह अगले साल जनवरी में रिलीज़ को तैयार फिल्म 'द अकाउंटेंट' के पोस्ट प्रोडक्शन के अलावा 'डॉन  ऑफ़ जस्टिस', 'सुसाइड स्क्वाड', 'लाइव बइ नाईट' तथा 'जस्टिस लीग पार्ट १ और २ में भी व्यस्त होंगे।  यह सभी फ़िल्में २०१६ और २०१७ में रिलीज़ होनी हैं।  जस्टिस लीग फिल्मों के आसपास ही 'द बैटमैन' को रिलीज़ होना है।



Friday, 17 July 2015

गौर हरी दास जी की धर्मपत्नी ने बहुत कुछ सिखाया: कोंकणा सेन

फीचर  फ़िल्म 'गौर हरी दास्ताँ -द फ्रीडम' फ़ाइल में कोंकणा सेन आज़ादी के गुमनाम नायक गौर हरी दास की पत्नी लक्ष्मी दास जी का चरित्र निभा रही है। कोंकणा को लक्ष्मी दास जी के किरदार से जुडी तमाम बारीकियों और जीवन शैली को खुद लक्ष्मी दास जी ने बताया है। सूत्रों ने बताया है कि लक्ष्मी दास जी सभी कॉस्ट्यूम ट्रायल के समय कोंकणा के साथ पूरे समय मौजूद थी।
आज के समय में जहाँ डिज़ाइनर और स्टाइलिश कॉस्ट्यूम के साथ किरदार को प्रभावशाली बनाये जाने की कोशिश की जाती है,वहीँ दूसरी और इस फ़िल्म में वास्तविकता को आधार बनाते हुए,कोंकणा के चरित्र को बखूबी दर्शाया गया है।कोंकणा ने भावुक होते हुए बताया कि स्क्रिप्ट पढ़ने के तुरंत बाद से ही वह लक्ष्मी दास जी से मिलने के लिए उत्सुक हो गयीं थी।लक्ष्मी दास जी ने उन्हें पूरा घर घुमाया,और अपनी हर आदत और नजरिया कोंकणा के साथ बांटा।यहाँ तक कि उनका किचन में बर्तन पकड़ने का अंदाज़ और अपने पति ले लिए चाय बनाने का तरीका तक उन्होंने बहुत गहनता से अध्ययन किया।इस संजीदा अभिनेत्री ने यह भी बताया कि उनका सबसे बड़ा गुण मृदुभाषिता है जो उन्होंने इस पूरी फ़िल्म के दौरान अपनी संवाद अदायगी में उपयोग की है।तीन दिनों तक कोंकणा के लक्ष्मीदास जी के घर बिताया गया समय बहुत दिलचस्प रहा।खादी और सूती कपड़ों से बनी साड़ियों का चयन इस किरदार को खूबसूरत रंग देने के लिए खुद लक्ष्मी दास जी ने किया है।

मिस्टर इंडिया मेलबोर्न में फहराएंगे तिरंगा

लगातार चौथे वर्ष इंडियन फ़िल्म फेस्टिवल ऑफ़ मेलबोर्न, भारतीय सिनेमा को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ज़ोर शोर से मनाने के लिए तैयार है।मेलबोर्न में अगस्त माह में होने वाले इस फेस्टिवल की थीम समानता है। विद्या बालन एक बार फिर  इस फेस्टिवल का मुख्य आकर्षण होंगी।सुपरस्टार, मिस्टर इंडिया अनिल कपूर,15 अगस्त को इस फ़ेस्टिवल में भारतीय तिरंगे को फहराएंगे।इस महोत्सव में मेलबोर्न की विशिष्ट शख्सियतें मौजूद रहेंगी।अनिल कपूर अपनी नयी फ़िल्म 'दिल धड़कने दो' और इंडियन सिनेमा की धड़कन माने जाने वाली फ़िल्म 'मिस्टर इंडिया' प्रस्तुत करेंगे। इस महोत्सव के मास्टर स्ट्रोक सेक्शन में ऑस्ट्रेलियाई विभूति पॉल कॉक्स द्वारा भारत पर बनायीं गयी डाक्यूमेंट्री, सत्यजीत रॉय की चारुलता और फ़िल्म नायक प्रदर्शित की जायेगी।अनिल कपूर ने बताया कि भारतीय सिनेमा का विश्व के विभिन्न देशों में प्रतिनिधित्व् करना हमेशा से ही उनके लिए गौरव की बात रही है।और इसका महत्व तब और बढ़ जाता है जब आपको स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर अपने देश के तिरंगे को फहराने का मौका मिलता है।अनिल मेलबोर्न में सिनेमा प्रेमियों से रुबरु होने के लिए बेहद उत्साहित है।


क्या इस 'बजरंगी' को पसंद करेंगे 'भाईजान' ?

सलमान खान और कबीर खान ईद से पहले इसी सवाल का जवाब ढूँढ़ते होंगे ? 
एक महा हनुमान भक्त, जो मांस मछली नहीं खाता, मस्जिद और मजार में नहीं घुसना चाहता, लेकिन एक पाकिस्तानी लड़की के लिए अवैध तरीके से पाकिस्तान घुसने से नहीं हिचकता . पाकिस्तान में भी वह हनुमान जी की दुहाई देता रहता है . इसमे कहीं साम्प्रदायिकता नहीं. कहीं पाकिस्तान को गाली नहीं दी गई है. कहीं पाकिस्तान की सहलाई भी नहीं गई है . कबीर खान ने एक बहुत अच्छी कहानी, बड़े शानदार तरीके से कही है . इसमे न कहीं सेकुलरिज्म है, न कही हिन्दुवाद, न इस्लाम का अतिरेक. थोड़ा ड्रामा ज्यादा है. लेकिन, जहाँ हीरो की छवि से अलग फिल्म बनानी हो तो इतना ड्रामा रखना ही होगा.लेकिन अनावश्यक ड्रामेबाजी/भाषणबाजी नहीं है . यही फिल्म का पॉजिटिव पॉइंट है . ज़ाहिर है कि बजरंगी भाईजान मास्टरपीस फिल्म है . किसी भी समय में हिट होने वाली फिल्म है .
अगर इस गुलाल उड़ाते बजरंगी को भाईजान ने पसंद कर लिया तो सलमान खान की बजरंगी भाईजान बॉक्स ऑफिस पर आमिर खान की फिल्म 'पीके' को ज़बरदस्त किक मारने जा रही है. इसीलिए यह सवाल बड़ा हो जाता है कि क्या इस बजरंगी को पसंद करेंगे भाईजान ?

Thursday, 16 July 2015

चार सुपर हीरो मतलब फैंटास्टिक फोर

१९८६ में कॉन्स्टन्टिन फिल्म के बर्नड एईशिन्गर ने कम बजट की फिल्म बनाने के लिए चार सुपर हीरो रीड रिचर्ड्स, बेन ग्रिम, सुसान स्टॉर्म और जॉनी स्टॉर्म की कहानी को मार्वेल से खरीद लिया था। इस फिल्म के पूरा होने के बाद पूरी कास्ट ने प्रमोशनल टूर भी किये। लेकिन, रिलीज़ से पहले ही निर्माताओं पर फिल्म के घटिया निर्माण के आरोप लगाने लगे कि लाइसेंस बनाए रखने के लिए फिल्म बनाई गई है। इस पर मार्वल कॉमिक्स ने कॉन्स्टन्टिन फिल्म से फिल्म के नेगटिव खरीद लिए ताकि आगे चल कर बड़े बजट की फिल्म बनाई जा सके। इस प्रकार से १९९४ की फिल्म ‘द फैंटास्टिक फोर’ हॉलीवुड के इतिहास की ऎसी फिल्म बन गई, जो न तो सिनेमाघरों में रिलीज़ हुई, न ही होम विडियो पर . अलबत्ता, पायरेटेड सीडी पर इसे रिलीज़ होता देखा गया। आइये चार सुपर हीरो पर बनी फिल्मों के बारे में -  
द फैंटास्टिक फोर (१९९४)
चार सुपर हीरो वाली पहली फिल्म ‘द फैंटास्टिक फोर’ बड़े परदे का मुंह नहीं देख सकी। इस फिल्म को डीवीडी और दूसरे फॉर्मेट पर ज़रूर रिलीज़ किया गया। यह फिल्म छोटे बजट की फिल्म बनाने में माहिर रॉजर कार्मन और बर्नड एईशिन्गर ने बनाई थी। इस फिल्म में फैंटास्टिक फोर के उत्पति और उनकी पृथ्वी को बचाने के लिए डॉक्टर डूम से लड़ी गई पहली लड़ाई का चित्रण हुआ था।  ओले सस्सून फिल्म के डायरेक्टर थे। अलेक्स हाइड-वाइट ने रीड रिचर्ड/मिस्टर फैंटास्टिक, जे अंडरवुड ने जॉनी स्टॉर्म/ह्यूमन टॉर्च, रेबेका स्टाब ने शु स्टॉर्म/इनविजिबल वुमन और बिचैल बैले स्मिथ ने बेन ग्रिम के किरदार किये थे। अन्य भूमिकाओं में विलेन डॉक्टर विक्टर वोन डूम अभिनेता जोसफ कल्प, अलिसिया मास्टर्स अभिनेत्री कैट ग्रीन, आदि के नाम उल्लेखनीय हैं। चार अंतरिक्ष यात्रियों के प्रायोगिक स्पेसक्राफ्ट पर धूमकेतु से कॉस्मिक रेज़ की बारिश होती है। इस कॉस्मिक हमले से चारों यात्री बच तो जाते हैं, लेकिन उनके शरीर मे चौंकाने वाले परिवर्तन होने लगते हैं तथा उनमे अलौकिक शक्तियां पैदा हो जाती हैं।  इन शक्तियों के द्वारा फैंटास्टिक फोर पृथ्वी को बचाने में मददगार हो सकते हैं। लेकिन, शर्त यह है कि दोनों को मिल कर यह काम करना होगा।  
फैंटास्टिक ४ (२००५)
कॉन्स्टन्टिन फिल्म से फैंटास्टिक फोर के नेगेटिव प्राप्त करने के बाद मार्वेल ने फिल्म के निर्माण पर अपना ध्यान लगाना शुरू किया। १९९७ में क्रिस कोलंबस और माइकल फ्रांस की स्क्रिप्ट पर पीटर सिगल ने काम शुरू किया। सिगल के बाद फिलिप मॉर्टन और सैम हैम ने स्क्रिप्ट पर काम किया। मार्वल ने राजा गोस्नेल को ४ जुलाई २००१ को फिल्म रिलीज़ करने के प्रोग्राम के साथ फिल्म ‘फैंटास्टिक ४’ के निर्देशन का भार सौंप दिया। मगर राजा ने फिल्म स्कूबी-डू के लिए यह फिल्म छोड़ दी। फिर पीटोन रीड ने कमान संभाली। वह फिल्म को साठ के दशक की पीरियड फिल्म बनाना चाहते थे। जल्द ही पीटोन भी चले गए। अप्रैल २००४ में टिम स्टोरी को डायरेक्टर की कुर्सी पर बैठाया गया। टिम की फिल्म में मिस्टर फैंटास्टिक, इनविजिबल वुमन, ह्यूमन टोर्च, द थिंग और डूम का किरदार क्रमशः लोन ग्रफड, जेसिका अल्बा, क्रिस इवांस, माइकल चिक्लिस और जूलियन मैकमोहन कर रहे थे। यह फिल्म ८ जुलाई २००५ को रिलीज़ हुई। 
फैंटास्टिक ४: राइज ऑफ़ द सिल्वर सर्फर (२००७)
फैंटास्टिक ४ ने बॉक्स ऑफिस पर ३०० करोड़ डॉलर से ज्यादा ग्रॉस किया था, इसलिए ट्वंटीथ सेंचुरी फॉक्स ने टिम स्टोरी को फिल्म के सीक्वल ‘राइज ऑफ़ द सिल्वर सर्फर’ के डायरेक्शन का भार फिर सौंप दिया। सीक्वल फिल्म की कहानी कॉमिक बुक ‘द गेलक्टस ट्राइलॉजी’ और वारेन एलिस कि कॉमिक बुक 'अल्टीमेट एक्सटिंक्शन’ पर आधारित थी।  सिल्वर सर्फर की कॉस्मिक एनर्जी पृथ्वी पर बुरा प्रभाव डालने लगती है। जिसके फलस्वरूप प्लेनेट के चारों ओर क्रेटर्स बनने लगते हैं। इसी दौरना रीड और सुसान की शादी होने वाली है। अमेरिकी सेना फैंटास्टिक फोर और डूम से मदद मांगती है। इस फिल्म में सभी प्रमुख भूमिकाएं ‘फैंटास्टिक ४’ के कलाकारों ने ही की थी। यह फिल्म १५ जून २००७ को रिलीज़ हुई।    
फैंटास्टिक ४: राइज ऑफ़ द सिल्वर सर्फर’ के बॉक्स ऑफिस प्रदर्शन ने ट्वेंटीथ सेंचुरी फॉक्स को बेहद निराश किया था। इसलिए सिल्वर सर्फर के स्पिन-ऑफ को फिलहाल के लिए रोक दिया गया। 
बजट और बॉक्स ऑफिस
फैंटास्टिक फोर सीरीज की ६ जुलाई २००५ को रिलीज़ पहली अधिकृत फिल्म ‘फैंटास्टिक फोर’ १०० मिलियन डॉलर के बजट से तैयार हुई थी। इस फिल्म ने वर्ल्ड वाइड ३३०.५८ मिलियन डॉलर का ग्रॉस कलेक्शन किया। दूसरी फिल्म ‘फैंटास्टिक फोर: राइज ऑफ़ द सिल्वर सर्फर’ १३ जून २००७ को रिलीज़ हुई। १३० मिलियन डॉलर के बजट से तैयार ‘राइज ऑफ़ द सिल्वर सर्फर’ ने वर्ल्डवाइड २८९ मिलियन डॉलर का ग्रॉस किया। ज़ाहिर है कि दूसरी फिल्म का कलेक्शन काफी कम था। वैसे यह फिल्म सीरीज मार्वल कॉमिक्स की सबसे ज्यादा ग्रॉस करने वाली चौथी सीरीज मानी जाती है।फैंटास्टिक फोर सीरीज की फिल्मों को बड़े खराब रिव्यु मिले। ज़्यादातर समीक्षकों ने फिल्म को डेढ़ से दो स्टार तक ही दिए।  
फैंटास्टिक फोर (२०१५)
ट्वेंटिएथ सेंचुरी फॉक्स ने अगस्त २००९ में यानि सिल्वर सर्फर की रिलीज़ के चार साल बाद फैंटास्टिक फोर की रिबूट फिल्म पर काम शुरू करवा दिया।  टिम स्टोरी के बजाय जॉश ट्रैंक को डायरेक्शन की कमान सौंपी गई।  फिल्म को लिखने के लिए माइकल ग्रीन, जेरेमी स्लाटर, सेठ ग्राहम-स्मिथ एंड सिमोन किनबर्ग को लगाया गया।  जनवरी २०१४ में फिल्म के लिए कलाकारों का चयन शुरू हो गया।  चूंकि, फैंटास्टिक फोर की कहानी रिबूट थी तथा इसका समकालीन महत्त्व था, इसलिए पुरानी कास्ट को बिलकुल बदल दिया गया। माइल्स टेलर को मिस्टर फैंटास्टिक, केट मारा को इनविजिबल वुमन, माइकल बी जॉर्डन को ह्यूमन टॉर्च. जैमी बेल को द थिंग और टॉबी केबेल को डूम के किरदार में  ले लिया गया। इस फिल्म की टैग लाइन कहती है - अगर आप दुनिया बदलना चाहते हैं तो आपको उसकी सुरक्षा के लिए भी तैयार रहना होगा। फैंटास्टिक फोर की रिबूट फिल्म की कहानी चार युवा टेलिपोर्ट की है, जो अंतरिक्ष में घूमते हुए दूसरे और खतरनाक ग्रह में चले जाते हैं, जिसके प्रभाव से उनके शरीर में  भयानक बदलाव हो जाते हैं।  लेकिन, इन चारों को अपने इन शारीरिक परिवर्तनों पर काबू पाते हुए, डॉक्टर डूम के खतरे से पृथ्वी को बचाना है।  यहाँ शर्त यही  है कि वह अपनी ताक़त का उपयोग मिल कर एक साथ ही कर सकते हैं।  यह फिल्म ७ अगस्त को रिलीज़ होगी।  
फैंटास्टिक फोर (२०१५) की संभावित सफलता के प्रति ट्वेंटिएथ सेंचुरी फॉक्स के इत्मीनान का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि स्टूडियो ने फिल्म की एक फोटो ज़ारी होने से पहले ही फिल्म का सीक्वल बनाने का ऐलान कर दिया था। हालाँकि, २०१५ की फैंटास्टिक फोर ७ अगस्त को रिलीज़ होनी है, लेकिन स्टूडियो ने फैंटास्टिक फोर के अनाम सीक्वल की रिलीज़ की तारीख़ ९ जून २०१७ निर्धारित कर दी है।  

गजेन्द्र को लेकर ऍफ़टीटीआई में 'महाभारत'

फिल्म और टीवी के अभिनेता गजेन्द्र चौहान ने जब बीआर चोपड़ा के सीरियल 'महाभारत' में युधिष्ठिर का किरदार किया था, तब उन्होंने कल्पना भी नहीं की होगी कि कभी उनकों लेकर 'महाभारत' छिड़ेगी।  फिल्म एंड टेलीविज़न इंस्टिट्यूट ऑफ़ इंडिया के चेयरमैन के पद पर गजेन्द्र चौहान की नियुक्ति के बाद इंस्टिट्यूट में महाभारत छिड़ गया है।  इंस्टिट्यूट के छात्र एक महीने से हड़ताल पर है।  जिस संस्थान में लाइट कैमरा साइलेंस की गूँज उठनी चाहिए, वहां ख़ामोशी छाई हुई है।  छात्र नहीं चाहते कि इस संस्थान का चेयरमैन फिल्म की ख़ास योग्यता न रखने वाला व्यक्ति तैनात हो।  ऋषि कपूर, रणबीर कपूर यहाँ तक कि अनुपम खेर, आदि भी गजेन्द्र चौहान के विरोध में लाम बंद हैं।  लेकिन, क्या सचमुच गजेन्द्र चौहान इतने नाकाबिल हैं कि उनके काम को परखे बिना, उनकी काबिलियत पर सवालिया निशान लगा दिया जाये? क्या फिल्म निर्माण के विभिन्न पहलुओ का प्रशिक्षण देने संस्थान के लिए ढेरों फ़िल्में बनाने वाले, उनमे अभिनय करने वाले व्यक्ति को तैनात होना चाहिए क्या आज भी संसथान की ज़रुरत अदूर गोपालकृष्णन, श्याम बेनेगल, गिरीश कर्नाड, यु आर अनंतमूर्ति और सईद मिर्ज़ा जैसे फिल्मकार हैं ? क्या उनका चुनाव मनमाने तरीके से हुआ था ?
गजेन्द्र चौहान के चेयरमैन पद पर चुनाव को लेकर भ्रम ज्यादा है । कुछ अखबार कह रहे हैं कि चेयरमैन पद के लिए कुछ और नामो पर विचार नहीं किया गया, जबकि कुछ अखबार कह रहे हैं कि रजनीकांत और अमिताभ बच्चन पर गजेन्द्र को वरीयता दी गई । इससे साफ़ है कि फिल्म एंड टेलीविज़न इंस्टिट्यूट ऑफ़ इंडिया विवादों से ज्यादा घिरा हुआ है। हर कोई अपनी नाक घुसेड सकता है । वास्तविकता तो यह है कि संसथान में में पढ़ाई का माहौल बिलकुल नहीं है । इस इंस्टिट्यूट में आखिरी दीक्षांत समारोह १९९७ में हुआ था, जिसमे ट्रेजिडी किंग दिलीप कुमार को बुलाया गया था।  लेकिन, इस समारोह की ट्रेजिडी यह हुई कि छात्रों के हंगामे के कारण इसे रद्द कर देना पडा।  उसके बाद से इस ५५ साल के इंस्टिट्यूट में १७ सालों में कोई दीक्षांत समारोह नहीं हुआ है। १९९७ से पहले दीक्षांत सामारोह १९८९ में हुआ था।  इस संसथान की समस्याएं इक्का-दुक्का नहीं । यहाँ समस्याओं का जमावड़ा लगा हुआ है।  कोर्स का बैकलॉग तो है ही, सिलेबस भी आउटडेटेड हो चुका है। छात्रों की भरमार है। बताते हैं कि इस इंस्टिट्यूट में १५०-२०० अतिरिक्त छात्र डेरा जमाये बैठे हैं। यह कथित छात्र यहाँ क्या कर रहे हैं, कोई पूछने वाला नहीं हैं । छात्रों की संख्या के अनुपात में टीचर बहुत कम है। चार सौ छात्रों के लिए केवल तीस टीचर ही हैं। लगभग ७० प्रतिशत गेस्ट फैकल्टी होती है।  जबकि फिल्म मेकिंग ऎसी विधा है, जिसके लिए वन टू वन कांटेक्ट भी बेहद ज़रूरी हो जाता है। श्रेष्ठ फैकल्टी तो बेहद ज़रूरी है । लेकिन, जो है उसकी क्या हालत है ? फैकल्टी और छात्रों के बीच हमेशा दुश्मनी का नाता बना रहता है। हर समय म्यान से तलवारे खिंची रहती हैं। सुब्रहमन्यम स्वामी तो यहाँ के छात्रों को नक्सल बताते हैं । यह संस्थान ६ साल का कोर्स चलाता है । यह भी बुरी हालत में है । पिछले साल यह घोषणा हुई थी कि १९९५ से २००६ के बीच के कोर्स पूरा कर चुके छात्रों को डिप्लोमा दिया जाएगा। यहाँ पिछले चार सालों से एडमिशन बिलकुल बंद थे। इससे संस्थान की वित्तीय दशा बदतर हो गई। 
स्पष्ट रूप से ऍफ़टीआईआई की समस्या प्रशासनिक और आर्थिक है। अधिक टीचर, गेस्ट टीचर और सुविधाओं की जरूरत ज़्यादा है।  यह पिछले दो दशकों से केवल तीन पूर्ण कालिक महिला शिक्षक ही तैनात रहे हैं। इस समय पूर्ण कालिक शिक्षकों की संख्या २१ हैं, जो सभी पुरुष हैं। संस्थान में २००२ से कोई डायरेक्टर नहीं है। इंस्टिट्यूट के पिछले डायरेक्टर मोहन अगाशे ने २००२ में इस्तीफ़ा दे दिया था। अजीब बात नहीं कि इतने लम्बे समय से डायरेक्टर की महत्वपूर्ण पोस्ट को न भरे जाने पर किसी छात्र ने कोई प्रोटेस्ट नहीं किया था। दो साल पहले प्रशासन ने फैकल्टी को यह सलाह दी थी कि वह बैंकों से सैलरी लोन के रूप में ले, जिसका ब्याज संस्थान द्वारा दिया जायेगा। ज़ाहिर है कि सस्थान की समस्या प्रशासनिक और आर्थिक समस्या से निबटने के लिए किसी विशुद्ध फिल्मकार के बजाय थोड़ा हट कर चेयरमैन की ज़रुरत है। प्रोफेशनल व्यक्ति अपना फिल्म मेकिंग का काम तो बखूबी कर सकता है, लेकिन अन्य कामों के लिए समय और साधन की ज़रुरत होती है । इन्हें किया जाना तभी संभव है, जब केंद्र या राज्य सरकार में सुनवाई हो । इसके लिए किसी दक्षिण झुकाव वाले चेयरमैन से ज्यादा आरएसएस कथित आदमी गजेन्द्र चौहान प्रभावी हो सकते हैं । 
इसके लिए इंस्टिट्यूट में विश्वास का माहौल कायम करना होगा। संसथान से बॉलीवुड के सक्रिय लोगों को दूर रखना होगा । संस्थान को अंतर्राष्ट्रीय दर्जा दिए जाने की बात चल रही है।  अगर ऐसा हुआ तो ऍफ़टीआईआई के छात्रों को वर्ल्ड क्लास कैनवास मिलेगा। शिक्षकों और गेस्ट टीचर की संख्या बढ़ाने के धन की सख्त ज़रुरत है।  जो संस्थान अपनी फैकल्टी को तनख्वाह न दे पा रहा हो, वह कैसे सर्वाइव कर सकता है।  इसके लिए गजेन्द्र सिंह चौहान सक्षम साबित हो सकते हैं। उनके राजनीतिक सूत्र संस्थान को आर्थिक रूप से ठोस बना सकते हैं। जहां तक प्रशासन की बात है, इसके लिए किसी का ज़्यादा फ़िल्में करना या बनाना आवश्यक नहीं। तभी तो श्याम बेनेगल कहते हैं, "गजेन्द्र चौहान की काबिलियत को परखा जाना चाहिए।" यह तभी संभव है जब गजेन्द्र चौहान अपनी कुर्सी पर बैठे।  इसके लिए ज़रूरी है कि छात्र बिना किसी राजनीतिक पूर्वाग्रह के चौहान से बात करे।  वैसे बताते हैं कि गजेन्द्र के विरोध में कुछ राजनीतिक विचारधारा के छात्र ही है, जिन्हे पढ़ाई से कोई सरोकार नहीं है। 
 


बजरंगी भाईजान के साथ बाजीराव मस्तानी का ट्रेलर

संजयलीला भंसाली की पीरियड ड्रामा रोमांस फिल्म 'बाजीराव मस्तानी' का टीज़र आज रिलीज़ किया गया।  इस फिल्म का थिएट्रिकल ट्रेलर १७ जुलाई को सलमान खान और करीना कपूर की फिल्म 'बजरंगी भाईजान' के साथ १९ जुलाई को रिलीज़ होगा। यह ट्रेलर ३ मिनट २ सेकंड्स का होगा। रणवीर सिंह के साथ प्रियंका चोपड़ा और दीपिका पादुकोण की केंद्रीय भूमिका वाली फिल्म 'बाजीराव मस्तानी' १८ दिसम्बर को रोहित शेट्टी निर्देशित शाहरुख़ खान और काजोल की फिल्म 'दिलवाले'  के सामने रिलीज़ होगी।  इस प्रकार से संजयलीला भंसाली की फिल्म का सीधा टकराव भंसाली के पसंदीदा हीरो शाहरुख़ खान की फिल्म के साथ हो रहा है। यहाँ ख़ास उल्लेखनीय है कि संजयलीला भंसाली बाजीराव मस्तानी को २००३ में ऐश्वर्या राय और सलमान खान की उस समय की हॉट जोड़ी के साथ बनाना चाहते थे। लेकिन, इनके ब्रेक-अप के बाद उन्होंने सलमान खान के साथ करीना कपूर को ले कर फिल्म बनाने का इरादा बनाया। फिल्म में रानी मुख़र्जी पेशवा बाजीराव की पत्नी काशीबाई की भूमिका कर रही थी। लेकिन, इसी दौरान सलमान खान और करीना कपूर द्वारा दूसरी फिल्म साइन कर लेने के कारण नाराज़ भंसाली ने यह प्रोजेक्ट स्क्रैप कर दिया। क्योंकि, वह इस ताज़ातरीन जोड़ी को पहली बार खुद पेश करना चाहते थे। इसके बाद भंसाली ने ब्लैक, सावरिया, गुज़ारिश और गोलियों की रासलीला : राम-लीला जैसी मशहूर फ़िल्में बना डाली। अब यह संयोग नहीं तो और क्या है कि भंसाली की फिल्म का ट्रेलर उसी जोड़े की फिल्म के साथ रिलीज़ हो रहा है, जिसे उन्होंने निकाल बाहर किया था। दूसरी ओर उनकी फिल्म उनके प्रिय एक्टर शाहरुख़ खान की फिल्म के अपोजिट रिलीज़ हो रही है। भंसाली ने शाहरुख़ खान के साथ देवदास जैसी हिट फिल्म बनाई थी। बाजीराव मस्तानी से दीपिका पादुकोण अपनी डेब्यू फिल्म तथा चेन्नई एक्सप्रेस और हैप्पी न्यू ईयर जैसी सुपर हिट फिल्मों के हीरो शाहरुख़ खान की फिल्म के अपोजिट ताल ठोंक रही होंगी। अब देखने वाली बात होगी कि गोलियों की रासलीला : राम-लीला जैसी हिट फिल्म के निर्देशक संजयलीला भंसाली की फिल्म की नायिका दीपिका पादुकोण, उन्हें चेन्नई एक्सप्रेस जैसी बड़ी हिट फिल्म देने वाले डायरेक्टर रोहित शेट्टी की फिल्म के सामने कैसा प्रदर्शन कर पाती है!