Sunday, 26 June 2016

फिर क्वीन विक्टोरिया के किरदार में जुडी डेंच

हॉलीवुड फिल्म अभिनेत्री जुडी डेंच एक बार फिर क्वीन विक्टोरिया के किरदार में नज़र आयेंगी । जुडी डेंच ने १९९७ में रिलीज़ मिसेज ब्राउन में पहली बार क्वीन विक्टोरिया का किरदार किया था । इस फिल्म के लिए वह ऑस्कर के लिए नामित हुई तथा उन्होंने बाफ्टा अवार्ड और गोल्डन ग्लोब अवार्ड जीता ।  गोल्डन ऑय फिल्म से जेम्स बांड फिल्मों की बांड की बॉस एम का किरदार करने वाली जुडी ने दो साल बाद यानि १९९८ में रिलीज़ जॉन मैडेन की फिल्म शेक्सपियर इन लव में क्वीन एलिज़ाबेथ प्रथम की भूमिका के लिए सह अभिनेत्री का ऑस्कर अवार्ड जीता । इस फिल्म के लिए उन्हें बाफ्टा अवार्ड भी मिला । अब वह स्टीफेन फ्रेअर्स की फिल्म विक्टोरिया एंड अब्दुल में क्वीन विक्टोरिया का किरदार कर रही हैं । इस फिल्म की कहानी ली हॉल ने लिखी है । फिल्म एक क्लर्क अब्दुल करीम की कहानी है, जो १८८७ में क्वीन की स्वर्ण जयंती मनाने के जश्न की तैयारी के लिए भारत का दौरा करता है । इसी दौरे में वह रानी के प्यार में बांध जाता है । रानी को शाही परम्पराओं का निर्वाह भी करना है । वह अब्दुल के साथ अपनी दोस्ती में नई ज़िन्दगी देखती है । इस फिल्म की शूटिंग इस साल शुरू हो जायेगी तथा फिल्म २०१७ में रिलीज़ होगी । जुडी ने दो बार क्वीन का किरदार किया है तथा दोनों ही बार उन्हें बाफ्टा और ऑस्कर अवार्ड्स मिले हैं । क्या क्वीन एंड अब्दुल के लिए भी वह कोई पुरस्कार जीत सकेंगी ? जुडी इस साल ३० सितम्बर को रिलीज़ होने जा रही फिल्म मिस पेरेग्रींस होम फॉर पिक्युलियर  चिल्ड्रेन में मिस अवोसेट के किरदार मे दिखाई देंगी ।

Thursday, 23 June 2016

दो बार बेस्ट एक्ट्रेस अवार्ड जीतने वाली सयानी गुप्ता

'लीचेस' में अपने अभिनय के लिए वाह-वाही लूटने वाली सयानी गुप्ता एक बार फिर अपने रंग में दिखायी पड़ रही हैं।इस बार इस ज़बरदस्त अदाकारा ने 'बैंगलौर इंटरनेशनल फ़िल्म फेस्टिवल' में अपनी शॉर्ट फ़िल्म 'माला' के लिए बेस्ट एक्ट्रेस का अवार्ड जीता है।फ़िल्म का प्रीमियर इस साल 'मामी मुम्बई फ़िल्म फेस्टिवल' में भी किया जाएगा।यह फ़िल्म 'कान्स 2016' के फेस्टिवल में भी पहुँच चुकी है और इसे निर्देशित किया है कौशिक रॉय ने।कौशिक रॉय पिछले तीन दशकों से विज्ञापन जगत का एक जाना पहचाना नाम हैं।जे.डब्लू.टी.से शुरुआत करने वाले कौशिक, डीडीबी मुद्रा में चीफ क्रिएटिव ऑफिसर भी रहे हैं और वर्तमान में रिलायंस इंडस्ट्री लिमिटेड में प्रेसिडेंट ब्रांड और मार्केटिंग कम्युनिकेशन के पद पर हैं।उनकी पहली फीचर फ़िल्म इरफान खान और शोभना के साथ 'अपना आसामान' थी।महिला सशक्तिकरण से प्रेरित, शार्ट फ़िल्म 'माला' अचानक ही 'जिओ मामी' मुम्बई फ़िल्म फेस्टिवल के दौरान उनके ज़हन में आयी।यह फिल्म माला नाम की एक ऐसी लड़की की कहानी है जो फ़िल्ममेकर बनना चाहती है वहीँ दूसरी ओर उसका परिवार उसके इस सपने के विरुद्ध उसकी शादी जल्द से जल्द कर देना चाहता है।लेकिन अपने परिवार से झूठ बोलकर माला मुम्बई, फ़िल्म फेस्टिवस्ल को अटेंड करने आ जाती है।यह फ़िल्म अभी हाल ही में '5th बैंगलोर इंटरनेशल शार्ट फ़िल्म फेस्टिवल' में भी प्रदशित की गयी है और इस फ़िल्म की अभिनेत्री सयानी गुप्ता को बेस्ट एक्ट्रेस अवार्ड्स से सम्मानित किया गया है।

इस पर बात करते हुए सायानी ने कहा," मैँ बहुत खुश हूँ।पहले 'लीचेस' ने बहुत से फिल्म फेस्टिवल में अवार्ड्स जीते और अब 'माला' भी हर फेस्टिवल में बेहद पसंद की जा रही है।मैं मानती हूँ की शार्ट फिल्म्स विभिन्न चरित्रों को प्रदर्शित करने का एक बहुत सशक्त माध्यम है जबकि फीचर फ़िल्म में यह आज़ादी सीमित होती है।इन फिल्मों में एक्सपेरीमेंट के लिए बहुत जगह होती है।फ़िल्म 'माला' मामी फ़िल्म फेस्टिवल पर आधारित है, फ़िल्म में दिखाया गया है कि कैसे एक फ़िल्म फेस्टिवल आपकी ज़िन्दगी को बदल सकता है।इस फ़िल्म में माला एक ऐसा पात्र है जो फिल्मों के लिए दीवानी है।यह वो लड़की है जिसका सपना है एक फिल्मकार बनने का और जब उसकी मुलाकात फ़िल्म फेस्टिवल में किरण राव, अनुपमा चोपड़ा और कल्कि जैसी हुनरमंद, मज़बूत और हिम्मती महिलाओं से होती है तो उसे लगता है कि उसका भी यह सपना उन सभी की तरह सच हो सकता है।माला फ़िल्म फेस्टिवल में प्रदर्शित 'मलाला' फ़िल्म से भी बेहद प्रभावित होती है।मलाला जैसी साहासी लड़की की अदभुत कहानी उसे भी कुछ कर गुजरने का जज़्बा दे जाती है।कुछ ऐसी कहानी है इस फ़िल्म की।मैं महसूस करती हूँ कि सच्ची कहानियों को कहने वाली फिल्मो में काम करने का अपना एक अलग मायने होता है या आप यह कह सकते हैं कि हक़ की लड़ाई लड़ने वाली फिल्मों के प्रति मेरा एक अलग ही झुकाव है।आज इस तरह की फिल्मों की सोसाइटी को ज़रुरत भी है।एक एक्टर या फिल्मकार होने के नाते यह हमारा फ़र्ज़ होना चहिये कि हम ऐसी कहानियों को भी दिखाएँ जो एक बड़ा बदलाव ला सकती हैं।मैं खुद हर साल मामी फ़िल्म फेस्टिवल अटेंड करती हूँ और उनके लिये यह फ़िल्म करना मेरे लिये एक रोमांचित कर देने वाला अनुभव है।"

Tuesday, 21 June 2016

सह नायिका की बहार निगार सुल्ताना !

हिंदी फिल्म दर्शक मुग़ल ए आज़म की बहार को नहीं भूल सकते, जो सलीम अनारकली की मोहब्बत की दुश्मन थी।  लेकिन, बहार की भूमिका निगार सुल्ताना के लिए नहीं लिखी गई थी।  फिल्म के निर्देशक के आसिफ ने इस रोल को अपनी पहली पत्नी सितारा देवी को ध्यान में रख कर लिखा था।  लेकिन, निगार सुल्ताना से  निकाह के  बाद यह रोल निगार को चला गया।  निगार  सुल्ताना ने बहार की भूमिका को सजीव बना दिया।  निगार सुल्ताना की पहली फिल्म रंगभूमि थी, जो १९४६ में रिलीज़ हुई थी।  राजकपूर की फिल्म आग उनका पहला ब्रेक था।  १९४९ में रिलीज़ फिल्म पतंगा में उन पर फिल्माया गया मेरे पिया गए रंगून, वहां से किया है टेलीफोन आज भी पॉपुलर गीतों में शुमार हैं।   निगार सुल्ताना ने अपने करियर में कोई ४९ फिल्मों में अभिनय किया।  उन्हें ज़्यादातर सह भूमिकाओं के लिए याद किया जाता है।  उन्होंने अशोक कुमार और बीना रॉय के साथ फिल्म सरदार और दिलीप कुमार  और मीना कुमारी के साथ फिल्म यहूदी जैसी उल्लेखनीय फ़िल्में की।  उनकी अन्य उल्लेखनीय फिल्मों में दिल की बस्ती, खेल, शीश महल, दामन, आनंद भवन, तनख्वाह, दुर्गेश नन्दिनीं और मिर्ज़ा ग़ालिब थी।  पचास के दशक मे काफी सक्रिय निगार सुल्ताना ने राज की बात, दो कलियाँ, बंसी और बिरजू और राज की बात में चरित्र भूमिकाएं की।  उनकी आखिरी फिल्म जुम्बिश अ मूवमेंट १९८६ में रिलीज़ हुई थी।  २१ जून १९३२ को हैदराबाद में जन्मी निगार सुल्ताना की मौत ६७ साल की उम्र में मुंबई में हो गई।

Saturday, 18 June 2016

बालवीर का प्रपोजल सही मौके पर आया – निगार जेड खान

निगार जेड खान को लिपस्टिक, प्रतिमा और कसम से जैसे सीरियलों के निगेटिव  किरदारों से शोहरत मिली है। उन्हें कई रियलिटी शो में भी देखा गया।  उनका बहन गौहर खान के साथ शो खान सिस्टर्स ख़ास लोकप्रिय हुआ।  पिछले साल जुलाई में दुबई के एक पाकिस्तानी व्यापारी के साथ शादी कर सेटल निगार खान अब सब टीवी के शो बालवीर में प्रचण्डिका का निगेटिव किरदार कर रही हैं।  लेकिन, यह किरदार उनके तमाम निगेटिव किरदारों से अलग है।  कैसे, आइये जानते हैं उन्ही से- 
शादी के बाद बालवीर सीरियल ! क्या कारण थे ?
ईमानदारी से कहूं तो यह मेरा अभिनय के प्रति लगाव था शादी के बाद हर अभिनेत्री ब्रेक लेती है मैं समझती हूँ कि शादी के बाद अपना ध्यान दूसरी बातों से हटा लेना चाहिए मेरे शौहर तो ख़ास तौर पर मेरी देखभाल के अधिकारी है मुझे ख़ुशी है कि मैंने थोड़े समय के लिए अभिनय से अपना ध्यान हटाया इससे किसी अभिनेत्री को आराम करने का मौका भी मिल जाता है, वह फिर ताज़ादम होकर अपने काम में मन लगा सकती है सौभाग्य से बालवीर का प्रपोजल सही मौके पर आया हालाँकि, मुझे पहले से ही वैम्पिश रोल के ऑफर मिल रहे थे लेकिन, अबू धाबी में रहने के कारण मैं २६ दिनों का कॉन्ट्रैक्ट साइन नहीं कर सकती थी सब टीवी और प्रोडक्शन हाउस ने मेरे रोल की शूटिंग महीने में दस दिन में पूरा कर लेने का आश्वासन दे कर मुझे कॉन्ट्रैक्ट साइन करने में मदद की
शो में अपने करैक्टर के बारे में बताइये !
बलवीर में मैं प्रचंडिका का किरदार कर रही हूँ यह करैक्टर टीवी के तमाम निगेटिव किरदारों से अलग है यह उत्तेजनारहित और शांत है प्रचंडिका ठेठ बुरी औरतों की तरह नहीं, जो अपना क्रोध और भय दिखाती रहती हैं यह बहुत स्टाइलिश है वह पारे की तरह है  जहाँ शांत है, वहीँ दुष्ट भी वह बालवीर की ज़िन्दगी में समस्याएं पैदा करती रहती है  
अपने लुक के बारे में बताएं !
मेरे लुक को लेकर पूरी टीम ने दो महीने तक विचार किया मैंने अपनी पूरी ज़िन्दगी में पहली बार बैंगनी लिपस्टिक लगाईं है मैं मुतमईन नहीं थी कि मैं इसे कर ले जाऊंगी पर मुझे अब लगता है कि मैं इसे कर सकती थी
आप सब टीवी जैसे कॉमेडी सीरियलों वाले चैनल में काम कर रही हैं क्या कभी कॉमेडी सीरियल में काम करेंगे ?
मैंने पहले काफी कॉमेडी की है वास्तव में मैंने कुछ साल पहले एक कॉमेडी रियलिटी शो भी किया था मुझे इसमे बड़ा मजा आया पर फिक्शन कितना एन्जॉय करूंगी, पता नहीं में स्लैपस्टिक कॉमेडी नहीं कर सकती मुझे यह पसंद नहीं बतौर अभिनेत्री मैं कैमिया कर सकती हूँ इसलिए अगर इस तरह से कोई कॉमेडी शो मिलेगा तो करूंगी हाँ, मैंने सब टीवी के लिए सबसे ज्यादा लोकप्रिय और दर्शकों के पसंदगी   वाला शो यस बॉस किया था
आप दुबई में सेटल हैं दुबई-मुंबई के बीच भागदौड़ कैसे कर ले जाती हैं ?
मुझे इन दोनों जगहों में भागना-दौड़ना अच्छा लगता है सच मैं मुंबई को बहुत मिस करती हूँ मैंने इंडिया से एक ही समय में तीन तीन शो किये हैं अगर मुझ पर छोड़ा जाए तो मैं मुंबई-दुबई के चक्कर लगाते हुए अपना काम करते रहना पसंद करूंगी मुझे इससे प्यार है
बड़ी स्क्रीन के बारे में क्या सोचा है ?

नहीं, वास्तव में मैंने इंडस्ट्री में पिछले १५ सालों से रहते हुए भी बड़े परदे के लिए कभी प्लान नहीं किया मुझे कई ऑफर आये अगर मुझे कोई पसंदीदा करैक्टर मिलेगा, तभी मैं बड़े परदे के लिए काम करना चाहूंगी मैं खुद को एक्टर साबित करना चाहती हूँ, न कि छोटे कपड़ों में सेक्सी फिगर का प्रदर्शन करना मैं इसके बिलकुल खिलाफ हूँ।  


अल्पना कांडपाल 

Friday, 17 June 2016

संगम की नायिका ने कैबरे किया था

निर्माता, निर्देशक और अभिनेता राजकपूर की फिल्म संगम १८ जून १९६४ को रिलीज़ हुई थी।  यह आर के फिल्म्स की ही नहीं, अभिनेता राजकपूर की भी पहली रंगीन फिल्म थी।  उससे पहले तक राजकपूर की सभी फ़िल्में श्वेत श्याम थी।  इस लिहाज़ से, राजकपूर की छोटे भाई शम्मी कपूर उनसे पहले रंगीन फिल्म जंगली (१९६१) के नायक बन चुके थे।  इस रोमांटिक ट्रायंगल फिल्म को इन्दर राज आनंद ने लिखा था।  फिल्म में राजकपूर, राजेंद्र कुमार और वैजयंतीमाला का संगम हुआ था।  इस फिल्म का संगीत  शंकर जयकिशन ने दिया था।  टैक्नीकलर में बनाई गई फिल्म संगम की लम्बाई २३८ मिनट यानि चार घंटे से सिर्फ २ मिनट कम अवधि की थी । यह पहली बॉलीवुड फिल्म थी, जिसमे दो मध्यांतर हुए।  फिल्म की तमाम शूटिंग वेनिस, पेरिस और स्विट्ज़रलैंड जैसी विदेशी लोकेशन पर हुई थी। देसी लोकेशन पर फिल्म को प्रयाग में शूट  किया गया था।  संगम के बाद ही बॉलीवुड की तमाम फिल्मों की शूटिंग विदेशी लोकेशन पर होने लगी।  आज़ादी के बाद, इस फिल्म में पहली बार चुम्बन का दृश्य दिखलाया गया।  यह शायद इकलौती ऎसी फिल्म है, जिसके ज़्यादातर गीतों पर बॉलीवुड  फिल्मों के टाइटल रखे गए।  बोल राधा बोल (ऋषि कपूर और जूही चावला), हर दिल जो प्यार करेगा (सलमान खान, प्रीटी जिंटा और रानी मुख़र्जी), महबूबा (संजय दत्त, अजय देवगन और मनीषा कोइराला), मेरे सनम (आशा पारेख, विश्वजीत और प्राण), दोस्त (धर्मेंद्र, हेमा मालिनी और शत्रुघ्न सिन्हा), बुड्ढा मिल गया (नवीन निश्चल, ओम प्रकाश और अर्चना) आदि फिल्मों के टाइटल संगम के गीतों से ही उधार लिए गए थे।  संगम में राजकपूर के करैक्टर का नाम गोपाल था।  गोपाल राजकपूर का पारिवारिक ड्राइवर और केयर टेकर का नाम था।  राजेंद्र कुमार की भूमिका के लिए सबसे पहले दिलीप कुमार और फिर देव आनंद को एप्रोच किया गया था।  इनके मना करने पर ही राजेंद्र कुमार सुंदर के रोल  में लिए गए। दिलीप कुमार गोपाल या सुन्दर में से किसी भी रोल के लिए तैयार  थे, बशर्ते कि फिल्म की फाइनल एडिटिंग दिलीप कुमार ही करेंगे।  राजकपूर को यह मंजूर नहीं हुआ।  संगम के निर्माण में एक करोड़ खर्च हुए थे।   लेकिन, संगम ने बॉक्स ऑफिस पर १६ करोड़ की कमाई कर राजकपूर को मालामाल कर दिया। दसारी  नारायण राव ने संगम को तेलुगु और कन्नड़ में स्वप्ना टाइटल के साथ रीमेक किया।  १९८८ में संगम का रीमेक सनी देओल, अनिल कपूर और श्रीदेवी के साथ राम अवतार बनाया गया।  



फिल्म निर्माता बन नयी पारी की शुरुआत करेंगे इमरान हाश्मी

​इमरान हाश्मी एक सफल अभिनेता तो है ही साथ ही वे "किस ऑफ़ लाइफ" इस किताब से लेखक भी बन गए है,अब इमरान हाशमी अपने होम प्रोडक्शन इमरान हाश्मी फिल्म्स बैनर तले फिल्म का निर्माण कर बतौर फिल्म निर्माता नयी पारी शुरू करेंगे। 
इमरान हाशमी "मासेस के हीरो " के रूप में जाना जाता है हाल ही में प्रदर्शित हुई फिल्म अजहर ने यह साबित भी कर दिया।  फिल्म ने ८५ प्रतिशत से ज्यादा कारोबार मल्टीप्लेक्स में ८५ किया है। 
अभिनेता इमरान हाश्मी बेहद खुश है की टोनी पहले इंसान है जिन्हे इमरान ने बतौर निर्देशक इमरान हाश्मी फिल्म के लिए अप्रोच किया गया है। 
​इमरान और टोनी 
 
​जल्दी ही एक साथ
 एक रोमांचक 
​वेंचर के ​
लिए एक साथ
​ ​
​आएंगे
, जिसका विवरण 
​का ​
खुलासा 
​होना बाकी
 है।
फिल्म 
​का निर्माण 
 इमरान हाशमी फिल्म्स 
​तथा
 टोनी डिसूजा और नितिन के 
​ऑडबॉल
 मोशन पिक्चर्स के बैनर तले 
​निर्माण
 किया जाएगा।

फिल्म ध्रुवा के लिए जापानी मार्शियल आर्ट फॉर्म आइकिदो की ट्रेनिंग लेंगे राम चरण

टॉलीवुड सुपरस्टार राम चरण अपनी आगामी फिल्म ध्रुवा में आई पी एस  अफसर का किरदार निभाएंगे जिसके लिए वे अभी से ही कड़ी मेहनत कर रहे हैं, अपने किरदार को परफेक्ट बनाने के लिए वे जापानी मार्शियल आर्ट फॉर्म आइकिदो की ट्रेनिंग लेंगे. इस कला का मुख्य लक्ष्य  ये है की प्रैक्टिशनर्स   खुद के  बचाव  के लिए इस  कला का इस्तेमाल कर सकते है. राम चरण अपनी आगामी फिल्म में आई पी एस  अफसर का किरदार निभा रहे है और यह आर्ट फॉर्म इस किरदार के लिए बहुत ही सटीक होगा.
रामचरण अपने हर काम को परफेक्ट करने में विश्वास रखते है इसीलिए उन्होंने इस आर्ट फॉर्म को सीखने के लिए स्पेशल ट्रेनर को अपॉइन्ट कर रहे है.

बॉक्स ऑफिस पर 'उड़' न सकेगा यह 'पंजाब' !

पिछले दिनों अनुराग कश्यप और एकता कपूर के साथ बॉलीवुड के तमाम सितारे क्रिएटिव फ्रीडम का रोना रो रहे थे।  यह लोग बॉम्बे हाई कोर्ट तक पहुंचे और कोर्ट को अस्थाई सेंसर बोर्ड बना कर फिल्म से सेंसर द्वारा लगाए गए गालियों के कट हटवा लाये।  इसलिए उड़ता पंजाब की समीक्षा की शुरुआत फिल्म में गालियों से।  खूब गालियाँ है।  चरसी भी गाली बक रहे हैं और पुलिस वाले भी।  लड़कियाँ औरते भी और आदमी तो बकेंगे ही।  पर एक बात समझ में नहीं आई।  निर्माताओं ने अंग्रेजी सब टाइटल में अंग्रेजी में Mother Fucker को Mother F***er और Sister Fucker को Sister F***ker कर दिया है। क्यों ? अंग्रेजी में माँ को चो... में परेशानी क्यों हुई कश्यप और चौबे को !
जहाँ तक पूरी उड़ता पंजाब की बात है, इसे फिल्म के फर्स्ट हाफ, अलिया भट्ट और दिलजीत दोसांझ के बढ़िया अभिनय के लिए देखा जा सकता है।  अलिया ने बिहारन मजदूरनी और दिलजीत दोसांझ ने एक सब इंस्पेक्टर के रोल को बखूबी जिया है।  शाहिद कपूर के लिए करने को कुछ ख़ास नहीं था।  अनुराग कश्यप ने उन्हें स्टार स्टेटस दिलाने के लिए साइन किया होगा।  करीना कपूर बस ठीक हैं।
अभिषेक चौबे ने अपने निर्देशन के लिए फिल्म की पटकथा सुदीप शर्मा के साथ खुद लिखी है।  मध्यांतर से पहले फिल्म पंजाब के युवाओं में ड्रग्स के चलन, पुलिस भ्रष्टाचार को बखूबी दिखाती है।  लेकिन, फिल्म में सभी डार्क करैक्टर देख कर पंजाब के प्रति निराशा होती है।  पता नहीं कैसे उड़ता पंजाब की यूनिट पंजाब में फिल्म शूट कर पाई! इंटरवल के बाद अभिषेक चौबे की फिल्म से पकड़ छूट जाती है।  पूरी फिल्म एक बहुत साधारण थ्रिलर फिल्म की तरह चलती है।  लेखक के लिए पंजाब की ड्रग समस्या का हल बन्दूक ही लगाती है।  क्या ही अच्छा होता अगर दिलजीत दोसांझ और करीना कपूर के करैक्टर अख़बार, चैनलों और अदालतों के द्वारा पंजाब के ड्रग माफिया का सामना करते।  लेकिन, अनुराग कश्यप इतनी हिम्मत नहीं जुटा पाते।  संभव है कि लेखक जोड़ी की कल्पनाशीलता आम मसाला फिल्म लिखने से आगे नहीं बढ़ पाई हो।  फिल्म के कुछ दृश्य सचमुच स्तब्ध करने वाले हैं।  मसलन, अलिया भट्ट के करैक्टर को नशीले इंजेक्शन लगा लगा कर बलात्कार करने, ड्रग फैक्ट्री में नशीली दवाओं के निर्माण, करीना कपूर के करैक्टर की हत्या, आदि के दृश्य।  लेकिन, करीना कपूर की हत्या के बाद फिल्म हत्थे से उखड जाती है।  अभी तक सबूत जुटा रहा दिलजीत दोसांझ का करैक्टर एंग्री यंग मैन बन कर अपनो का ही खून बहा देता।
अनुराग कश्यप एंड कंपनी फिल्म के रशेज देख कर जान गई थी कि फिल्म में बहुत जान नहीं है। इसलिए, गालियों को बनाए रखने का शोशा छोड़ा।  कोई शक नहीं अगर सेंसर बोर्ड भी इस खेल में शामिल हो गया हो।  इसके एक सदस्य अशोक पंडित तो खुला खेल खेल रहे थे।
सुदीप शर्मा के संवाद ठीक ठाक है।  पंजाबी ज्यादा है।  अंग्रेजी सब टाइटल की ज़रुरत समझ में नहीं आई।  राजीव रवि के कैमरा और मेघा सेन की कैंची ने अपना काम बखूबी किया है।

लास्ट मूमेंट बताया गया कि लिप-लॉक करना है- संगीता चौहान

कई विज्ञापन फिल्मों में अपनी आकर्षक मुस्कान का प्रदर्शन कर चुकी संगीता चौहान आजकल अपनी एक बड़ी फिल्म की रिलीज़ की तैयारी में व्यस्त है । लव यू अलिया टाइटल वाली इस कन्नड़ फिल्म में संगीता को भूमिका चावला, वी रविचंद्रन और सुदीप जैसे बड़े सितारों के साथ अभिनय का मौका मिला है । फिल्म के डायरेक्टर इन्द्रजीत लंकेश साउथ के बड़े निर्देशकों में शुमार किये जाते हैं । लव यू अलिया कन्नड़ के अलावा हिंदी में भी डब कर रिलीज़ की जा रही है । पेश है संगीता चौहान से एक बातचीत-
लव यू अलिया क्या कोई सन्देश देने वाली फिल्म है ?
आजकल के परिवार में साथ खाने और बैठ कर बातचीत करने के रिश्ते ख़त्म हो चुके है । यह सम्बन्ध ट्वीट और मेसेज भेजने तक ही सीमित हैं । लव यू अलिया आधुनिक परिवार के सदस्यों के डिनर टेबल पर बैठ कर बातचीत करने और आपसी संबंधो, आदि पर गहराई से नज़र डालती है ।
अलिया के बारे में कुछ बताये ?  
अलिया तलाकशुदा माता-पिता की संतान है । उसे शादी जैसी संस्था पर कतई विश्वास नहीं । वह शादी करना नहीं चाहती । परिस्थितियां उसे महसूस कराती है । मैं इस मुख्य किरदार को करके खुद को । भाग्यशाली समझती हूँ । अलिया एक सीधी साडी लड़की है, जिसे संबंधों से जुड़ना पड़ता है और तब उसकी ज़िन्दगी में जटिलताएं पैदा होने लगती है । आपने अब तक जितने करैक्टर देखें हैं, अलिया उनसे काफी अलग है ।
इन्द्रजीत लंकेश दक्षिण के प्रतिष्ठित नाम है । उनके साथ काम करने का कैसा अनुभव रहा ?
मैं उनकी कार्य शैली से बेहद प्रभावित हुई हूँ । उन्हें दक्षिण की फिल्मों का यश चोपड़ा कहा जा सकता है । मैं भाग्यशाली हूँ कि मुझे यह रोल मिला और लंकेश ने मुझ पर विश्वास किया ।  
क्या इस फिल्म के लिए कोई ख़ास ट्रेनिंग ली ?
मैंने नीरज कबी के साथ एक्टिंग की वर्कशॉप की । नीरज एक्टर भी हैं और एक्टिंग टीचर भी ।
शूटिंग के दौरान का कोई कठिन दौर ?
फिल्म में एक लिप-लॉक का सीन है । मुझे इसकी इत्तला बैंकाक में शूटिंग के दौरान आखिरी मौके पर दी गई । शुरू में मैं समझ नहीं पा रही थी कि इसे कैसे करूंगी । लेकिन, फिर कर लिया ।
आपकी दूसरी फ़िल्में ?
यह मेरी दूसरी फिल्म है । मेरी पहली फिल्म शार्पशूटर थी । मैंने अभी हिंगलिश में एक शॉर्ट फिल्म शूट की है । इसकी निर्देशक हीना डीसूजा हैं । इस फिल्म का वर्किंग टाइटल काफी जटिल था । इसलिए अभी टाइटल फाइनल होना है ।
आप इंडस्ट्री में किसे आदर्श मानती है ?
विद्या बालन मेरी रोल मॉडल हैं । उन्होंने अपनी मेहनत और लगन के बलबूते पर अपना एक यह मुकाम बनाया है । संघर्षों के बावजूद उन्होंने कभी उम्मीद नहीं छोड़ी । अभिनेताओं में आर माधवन और आमिर खान मेरे पसंदीदा है । 

अल्पना कांडपाल 

Thursday, 16 June 2016

First Look of Bhushan Kumar’s Befikra starring Tiger Shroff and Disha Patani

When it comes to singles Bhushan Kumar seems to have gotten unstoppable. The producer is now coming out with his third single in just a month. T-Series recently launched two singles ‘Dillagi’ and ‘Tum Ho To Lagta hai’ which has been rising on the charts gaining its postion in the list of millions of view. While these songs are still trending the producer is now coming out with yet another single titled “Befikra” with the sensational pair, Tiger Shroff and Disha Patani. 
The song which is a peppy track has been shot in the beautiful city of love, Paris under the direction of Sam Bombay. The music to the song has been given by Meet Bros, the musical duo have even given their voice to the song along with Aditi Singh Sharma and lyrics has been penned down by Kumaar.

नई फिल्मों के पोस्टरों में फिल्म की नायिका को तरजीह






Wednesday, 15 June 2016

बारह साल पहले एक थी सुरैया !

सुरैया का एक्टिंग करियर १९४१ में नानूभाई वकील की फिल्म ‘ताज महल’ में बालिका मुमताज महल के रोल से शुरू हुआ था। वह अपने मामा और चरित्र अभिनेता एम ज़हूर के साथ ताज महल की शूटिंग देखने के लिए मोहन स्टूडियो गई थी। नानूभाई वकील ने उन्हें देखा और नन्ही मुमताज का रोल दे दिया। इसके साथ ही सुरैया के बतौर अभिनेत्री करियर की शुरुआत हो गई। 
सुरैया अपने बचपन के दोस्तों राजकपूर और मदन मोहन के आल इंडिया रेडियो के बच्चों के प्रोग्राम में हिस्सा लिया करती थी। वहीँ, उन्हें संगीतकार नौशाद ने पहली बार सुना। उन्होंने सुरैया से पहली बार ए आर कारदार की फिल्म ‘शारदा’ के लिए पंछी जा पीछे रहा है मेरा बचपन गीत गवाया था। इस गीत को उस समय की बड़ी अभिनेत्री महताब पर फिल्माया गया था। महताब उम्र में सुरैया से काफी बड़ी थी।  वह सशंकित थी कि इस १३ साल की बच्ची की आवाज़ उन पर कैसे सूट करेगी। लेकिन,  नौशाद ने सुरैया से ही गीत गवाया।  इसके साथ ही सिंगिंग स्टार सुरैया का जन्म हुआ।  
स्टेशन मास्टर और तमन्ना जैसी फिल्मों के बाद सुरैया को गायिका अभिनेत्री के बतौर बड़ा ब्रेक मिला फिल्म हमारी बात में।  १९४५ में रिलीज़ फिल्म फूल ने सुरैया को बतौर गायिका अभिनेत्री ज़बरदस्त शोहरत दी। सुरैया की गायन की अग्नि परीक्षा हुई, नौशाद की संगीत से सजी फिल्म अनमोल घडी (१९४६) से। इस फिल्म में नूरजहाँ नायिका थी। फिल्म में नूरजहाँ ने जवां है मोहब्बत, आवाज़ दे कहाँ है, आ जा मेरी बर्बाद मोहब्बत के सहारे, मेरे बचपन के साथी और क्या मिल गया भगवान जैसे आल टाइम सुपर हिट गीत गाये थे . लेकिन, बाज़ी मारी सुरैया ने सोचा था क्या, क्या हो गया गीत से।  लोग इस गीत को सुनने के लिए बार बार फिल्म देखने आते थे और जैसे ही गीत ख़त्म होता हॉल से बाहर निकल जाते थे। 
सुरैया की तक़दीर बदली देश के विभाजन ने। देश विभाजन के दौरान हिंदी फिल्म इंडस्ट्री की कई हस्तियाँ पाकिस्तान चली गई थीं।  इनमे नूरजहाँ भी एक थी। नूरजहाँ पाकिस्तान चली गई। लेकिन, सुरैया ने भारत रहना ही मंज़ूर किया। इसके बाद सुरैया का करियर बिलकुल बदल गया।  चूंकि, वह गा भी सकती थी, इसलिए वह फिल्म निर्माताओं की पहली पसंद बन गई। उस समय की बड़ी अभिनेत्रियों नर्गिस और कामिनी कौशल पर सुरैया को तरजीह मिलने लगी। क्योंकि, यह अभिनेत्रियाँ अपने गीत नहीं गा सकती थी। जबकि, सुरैया की खासियत यह थी कि वह नूरजहाँ की तरह अच्छा गा सकती थी और नर्गिस और कामिनी कौशल की तरह बढ़िया अभिनय भी कर सकती थी। 
सुरैया को उनकी तीन फिल्मों ने हिन्दुस्तानी फिल्म इंडस्ट्री की बड़ी स्टार बना दिया। दो फ़िल्में प्यार की जीत (१९४८) और बड़ी बहन (१९४९) में सुरैया के नायक रहमान थे। तीसरी फिल्म दिल्लगी (१९४९) में वह श्याम की नायिका थी। यह तीनों फ़िल्में बड़ी म्यूजिकल हिट फ़िल्में थी। प्यार की जीत और बड़ी बहन के संगीतकार हुस्नलाल भगतराम थे, जबकि दिल्लगी का संगीत नौशाद ने दिया था। दिल्लगी के बाद नौशाद और सुरैया की जोड़ी जम गई। १९४७ से १९५० के बीच इन दोनों ने कोई ३० फ़िल्में बतौर संगीतकार और गायिका जोड़ी की। लेकिन, सुरैया की यह सफलता बहुत थोड़े दिन रही।  एक उभरती गायिका लता मंगेशकर ने सुरैया के साम्राज्य को ध्वस्त कर दिया। यह सिलसिला शुरू हुआ नौशाद के संगीत निर्देशन में फिल्म अंदाज़ के गीत उठाये जा उनके सितम गीत से। सुरैया की हिट फिल्म ‘बड़ी बहन’ में लता मंगेशकर ने भी गीत गए थे। जहाँ सुरैया ने खुद पर फिल्माए गए गीत ओ लिखने वाले ने और बिगड़ी बनाने वाले गाये थे, वहीँ लता मंगेशकर ने सुरैया के साथ फिल्म की  सह नायिका गीता बाली के लिए दो गीत चुप चुप खड़े हो ज़रूर कोई बात है और चले जाना नहीं गाये थे। इन चारों गीतों को ज़बरदस्त सफलता मिली। सुरैया जैसी स्थापित गायिका की मौजूदगी में मिली इस कामयाबी ने लता मंगेशकर को बतौर गायिका स्थापित कर दिया। इसके साथ ही सुरैया का सितारा भी धुंधलाने लगा। फिसलते करियर के दौरान भी सुरैया ने कुछ ऐसी फ़िल्में की, जिहोने सुरैया को शोहरत और सम्मान दोनों दिए। 
मिर्ज़ा ग़ालिब (१९५४) में सुरैया ग़ालिब की प्रेमिका और तवायफ मोती बाई के किरदार में थी। यह फिल्म सुपर हिट फिल्म तो साबित हुई ही, इस फिल्म ने राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों में श्रेष्ठ फिल्म का स्वर्ण कमल जीता। इस फिल्म में सुरैया ने गुलाम मोहम्मद के संगीत निर्देशन में दिले नादाँ तुझे हुआ क्या है और ये न थी हमारी किस्मत जैसे सदाबहार हिट गीत गाये।  इस फिल्म का सुरैया के लिए क्या महत्त्व रहा होगा, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि भारत के पहले प्रधान मंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु ने उनकी प्रशसा करते हुए कहा था कि तुमने मिर्ज़ा ग़ालिब की रूह को जिंदा कर दिया। सुरैया की आखिरी फिल्म रुस्तम सोहराब १९६३ में रिलीज़ हुई थी। इस फिल्म में सुरैया के नायक पृथ्वीराज कपूर थे, जो बीस साल पहले की सुरैया की फिल्म इशारा में उनके नायक थे। इस फिल्म का गीत ये कैसी अजाब दास्ताँ हो गई सुरैया का गाया आखिरी गीत भी साबित हुआ। 
सुरैया ने अपने २० साल के फिल्म करियर में अपने समय के सभी बड़े अभिनेताओं मोतीलाल और अशोक कुमार से ले कर भारत भूषण तक के साथ अभिनय किया तथा के एल सहगल और तलत महमूद से लेकर मोहम्मद रफ़ी और मुकेश तक सभी गायकों के साथ युगल गीत गाये। उन्होंने लता मंगेशकर के साथ भी दो युगल गीत गाये। इनमे एक गीत संगीतकार हुस्नलाल भगतराम का संगीतबद्ध फिल्म बालम (१९४९) का ओ परदेसी मुसाफिर तथा दूसरा नौशाद का संगीतबद्ध फिल्म दीवाना (१९५२) का मेरे लाल मेरे चंदा तुम जियों हजारों साल था। दिलचस्प तथ्य यह था कि सुरैया ने गायन की कोई क्लासिकल ट्रेनिंग नहीं ली थी।  इसके बावजूद उन्होंने सचिन देव बर्मन का संगीतबद्ध क्लासिकल गीत गीत मन मोर हुआ मतवाला गाया था। यहाँ एक दिलचस्प तथ्य यह है कि बचपन के दोस्त मदन मोहन केवल एक फिल्म ख़ूबसूरत (१९५२) के लिए गीत गवाए। 
सुरैया के प्रति दर्शकों में पागलपन का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि छात्र उनकी फिल्म का पहले दिन का पहला शो देखने के लिए क्लास तथा ऑफिसों में काम करने वाले लोग दफ्तर छोड़ कर सिनेमाघरों के बाहर खड़े नज़र आते थे। अभिनेता धर्मेन्द्र ने एक बातचीत में बताया था कि उन्होंने सुरैया की फिल्म दिल्लगी ४० बार देखी थी। सुरैया जमाल शेख बॉलीवुड की ऎसी गायिका अभिनेत्री थी, जो अपने रिटायरमेंट लेने तक अभिनय करती रही और अपने गीत गाती रही। उनका आखिरी गाया गीत रुस्तम शोहराब फिल्म का 'ये कैसी अजाब दास्ताँ हो गई' था, जो उन पर ही फिल्माया गया था। इसके साथ ही सुरैया का बतौर एक्टर और सिंगर करियर ख़त्म हो गया।  ३१ जनवरी २००४ को वह एक थी सुरैया हो गई।  


हत्या पर केंद्रित होती है क्राइम थ्रिलर फ़िल्में

अनुराग कश्यप एक बार फिर अपनी पसंदीदा शैली थ्रिलर रमन राघव २.० लेकर आ रहे हैं। आज की मुंबई की पृष्ठभूमि पर यह फिल्म वास्तव में १९६० में हुए एक सीरियल किलर रमन राघव के करैक्टर से प्रेरित फिल्म है। रमन राघव २.० एक क्राइम थ्रिलर फिल्म है, क्योंकि इस फिल्म के केंद्र में एक हत्यारा है और उसके द्वारा की गई हत्याओं का रहस्य है। इस फिल्म में नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी ने रमन की भूमिका की है। आम तौर पर थ्रिलर फ़िल्में दर्शकों की पसंदीदा होती हैं।  लेकिन, अगर यह क्राइम थ्रिलर है तो कहने ही क्या ? पहली ही रील में हत्या दर्शकों को  सिनेमाघरों में अपनी सीटों से चिपकाए रहती है।  आइये जानते हैं ऎसी कुछ अलग किस्म की क्राइम थ्रिलर फिल्मों के बारे में-   
तलाश: द आंसर लाइज विदिन- आमिर खान, करीना कपूर और रानी मुख़र्जी की साइकोलॉजिकल थ्रिलर फिल्म तलाश: द आंसर लाइज विदिन एक हत्या का रहस्य सुलझाने की ज़िम्मेदारी ओढ़े इंस्पेक्टर सुरजन शेखावत, उसके परिवार और एक कॉल गर्ल के इर्द गिर्द घूमती थी। इसी रहस्य को खोलने में वह एक कॉल गर्ल के नज़दीक आता है। जब हत्या का रहस्य खुलता है तो सभी चौंक पड़ते हैं। फिल्म की निर्देशक रीमा कागती थीं। 
मनोरमा सिक्स फीट अंडर- अभय देओल, गुल पनाग और राइमा सेन की इस फिल्म मनोरमा सिक्स फ़ीट अंडर को बहुत चर्चा नहीं मिली। यह फिल्म एक नौसिखिउए जासूस की थी, जो राजस्थान में एक हत्या के रहस्य से पर्दा उठाते हुए विचित्र परिस्थितियों में फंस जाता है। इस फिल्म के निर्देशक नवदीप सिंह थे। 
गुप्त: द हिडन ट्रुथ- बॉबी देओल, काजोल और मनीषा कोइराला की मुख्य भूमिका वाली इस फिल्म में साहिल सिन्हा (बॉबी देओल) पर अपने सौतेले पिता की हत्या का आरोप है। वह, जब इस इस हत्या की तह में जाने की कोशिश करता है तो नई मुसीबत में फंस जाता है। इस फिल्म का निर्देशन राजीव राय ने किया था। 
इत्तफाक- राजेश खन्ना और नंदा अभिनीत इस फिल्म में एक पेंटर पर अपनी पत्नी की हत्या का आरोप लगा है  उसे पागलखाने भेजा जाता है कि वह वहां से भाग निकलता है वह भागते हुए एक घर में आ छुपता है लेकिन, उसे क्या मालूम कि यहाँ उस पर दूसरे खून का आरोप लगने वाला है इस फिल्म के निर्देशक यश चोपड़ा थे
द स्टोनमैन मर्डर्स- अस्सी के दशक की रियल लाइफ घटनाओं पर फिल्म द स्टोनमैन मर्डर्स पत्थर मार कर अपने शिकार की हत्या करने वाले हत्यारे की गिरफ्तारी पर फिल्म थी इस फिल्म में के के मेनन और अरबाज खान मुख्य भूमिका में थे फिल्म के निर्देशक मनीष गुप्ता थे 
अजनबी- अक्षय कुमार, बॉबी देओल, करीना कपूर और बिपाशा बासु अभिनीत फिल्म अजनबी में राज मल्होत्रा पर हत्या का आरोप लगता है वह शक के आधार पर एक जोड़े का पीछा करता है। इस फिल्म के निर्देशक थ्रिलर फिल्मों के उस्ताद अब्बास मुस्तान की जोड़ी थी
गुमनाम- मनोज कुमार, नंदा, हेलेन, प्राण और महमूद निर्देशित फिल्म गुमनाम एक वीराने बंगले में छोड़ दिए लोगों और उनकी एक के बाद एक होती हत्याओं पर फिल्म थी इस फिल्म का निर्देशन राजा नवाथे ने किया था फिल्म का संगीत सुपर हिट हुआ था 
तीसरी मंजिल- शम्मी कपूर और आशा पारेख की फिल्म तीसरी मंजिल सुनीता की बहन को तीसरी मंजिल से फेंक कर मार देने के दृश्य से शुरू होती थी सुनीता अपनी बहन के कातिल को ढूढ़ना चाहती हैउसे बताया जाता है कि उसकी बहन एक होटल के बैंड प्लेयर रॉकी से प्रेम करती थी  जब हत्या का रहस्य खुलता है, तब दर्शक चौंक पड़ते हैं इस फिल्म का निर्देशन विजय आनंद ने किया था 
१०० डेज- माधुरी दीक्षित के किरदार देवी को होने वाली घटनाओं का आभास हो जाता है. वह भी अपनी बहन के हत्यारे की खोज में लगी है . इस फिल्म का निर्देशन पार्थो घोष ने किया था
खिलाडी- अक्षय कुमार, आयशा जुल्का, सबीहा और दीपक तिजोरी की मुख्य भूमिका वाली फिल्म चार दोस्तों राज, बोनी, शीतल और नीलम की कहानी है शीतल की हत्या हो जाती है किसने की है यह हत्या? अब्बास मुस्तान की जोड़ी को बतौर निर्देशक स्थापित कर देने वाली इस फिल्म में रहस्य का पर्दाफाश चौंकाने वाला था
कौन- केवल मनोज बाजपेई, उर्मिला मातोंडकर और सुशांत सिंह के करैक्टर के इर्दगिर्द घूमती यह फिल्म एक साइको किलर की तलाश कराती थी मनोज बाजपेई का करैक्टर कुछ इसी प्रकार की हरकते करता था, जो उर्मिला के घर घुस आया है इस फिल्म का निर्देशन रामगोपाल वर्मा ने किया था 
एक रुका हुआ फैसला- पंकज कपूर, के के रैना, एम् के रैना, अन्नू कपूर, आदि सशक्त अभिनेताओं की यह फिल्म अपने आप में अनोखी फिल्म थी बारह सदस्यों की जूरी को अपने पिता के कातिल युवक को दोषी ठहराए जाने पर निर्णय लेना है ज़्यादातर एक कमरे में फिल्माई गई इस फिल्म का निर्देशन बासु चटर्जी ने किया था 
समय: व्हेन टाइम स्ट्राइक्स- सुष्मिता सिंह, जैकी श्रॉफ और सुशांत सिंह की मुख्य भूमिका वाली फिल्म में महिला पुलिस अधिकारी एक सीरियल किलर की तलाश कर रही है फिल्म का निर्देशन रोबी ग्रेवाल ने किया था
धुंद- अशोक कुमार, संजय खान, जीनत अमान, डैनी डैंग्जोप्पा और नवीन निश्चल की फिल्म धुंद में एक अपाहिज की हत्या हो जाती है  शक के घेरे में उसकी पत्नी है इस फिल्म का निर्देशन बीआर चोपड़ा ने किया था   
रहस्य- के के मेनन, आशीष विद्यार्थी, टिस्का चोपड़ा और अश्विनी कलसेकर अभिनीत रहस्य डॉक्टर दम्पति की बेटी की हत्या पर फिल्म थी, जिसका दोषी डॉक्टर दम्पति को ही बताया जा रहा है इस फिल्म का निर्देशन मनीष गुप्ता ने किया था
बीस साल बाद- विश्वजीत, वहीदा रहमान, मदन पूरी, मनमोहन कृष्ण, सज्जन और असित सेन अभिनीत फिल्म बीस साल बाद एक हवेली के वंशजो की हो रही हत्याओं पर केन्द्रित फिल्म थी यह बॉलीवुड की पहली हॉरर फिल्म मानी जाती है इस फिल्म से डायरेक्टर बिरेन नाग का डेब्यू हुआ था .
खामोश- नसीरुद्दीन शाह, शबाना आज़मी, अमोल पालेकर, सोनी राजदान और पंकज कपूर की फिल्म खामोश एक उभरती अभिनेत्री की हत्या की गुत्थी सुलझाने की कहानी थी इस फिल्म में अमोल पालेकर, सोनी राजदान और शबाना आज़मी ने खुद के काल्पनिक किरदार किये थे फिल्म के निर्देशक विधु विनोद चोपड़ा थे 
हॉलीवुड से प्रेरित क्राइम थ्रिलर 
बॉलीवुड की ज्यादा क्राइम थ्रिलर फ़िल्में हॉलीवुड की फिल्मों पर आधारित थी मसलन मनोरमा सिक्स फीट अंडर हॉलीवुड की रोमन पोलंस्की निर्देशित जैक निकल्सन और फाए डनअवे अभिनीत फिल्म चाइनाटाउन (१९७४०) पर, इत्तफाक हॉलीवुड फिल्म साइनपोस्ट पर, अजनबी निर्देशक एलन जे पकुला निर्देशित अमेरिकन थ्रिलर कंसेंटिंग एडल्ट्स पर, एक रुका हुआ फैसला सिडनी लुमेट निर्देशित अमेरिकन फिल्म १२ एंग्री में पर, समय: व्हेन टाइम स्ट्राइक्स ब्रैड पिट और मॉर्गन फ्रीमैन अभिनीत फिल्म Se7en (सेवेन) पर, बीस साल बाद आर्थर कानन डायल की फिल्म द हाउंड ऑफ़ बास्कर्विलेस पर आधारित थी वहीँ द स्टोनमैन मर्डर्स और रहस्य (मोटे तौर पर आरुषी हत्याकांड) रियल लाइफ घटना पर फ़िल्में थी गुमनाम अगाथा क्रिस्टी के मशहूर थ्रिलर उपन्यास एंड देन देयर वर नन, धुंद भी अगाथा क्रिस्टी के उपन्यास द अनएक्सपेक्टेड गेस्ट पर आधारित थी
बढ़िया हिट संगीत 

आम तौर पर थ्रिलर फिल्मों में संगीत का ख़ास महत्त्व नहीं होता। मगर, बॉलीवुड ने कुछ बढ़िया हिट संगीत वाली सस्पेंस थ्रिलर फिल्मों का निर्माण किया है क्राइम थ्रिलर फ़िल्में भी इसका अपवाद नहीं । एक रुका हुआ फैसला, द स्टोनमैन मर्डर्स और इत्तफाक में कोई नाच गीत नहीं थे। लेकिन, तीसरी मंज़िल में आरडी बर्मन, गुमनाम में शंकर जयकिशन, बीस साल बाद में हेमंत कुमार, खिलाडी में जतिन-ललित, धुंद में रवि, गुप्त में विजू शाह और अजनबी में अनु मालिक का संगीत हिट हुआ था । 

अल्पना कांडपाल