लन्दन चिल्ड्रेन्स फिल्म फेस्टिवल की कला निर्देशक डेस फोर्गेस ने बच्चों की फिल्मों को लेकर एक बार कहा था, “बच्चों के लिए बहुत बढ़िया फिल्म वह है, जो बड़ों को भी पसंद आये। फिल्म ऎसी होनी चाहिए जो आपको बांधे रखे, आपको हंसाये, रुलाये और ऐसे संसार में ले जाए, जिससे वापस आ कर आप कुछ अलग सोचने लगे।” इस परिभाषा के लिहाज़ से किसी बाल फिल्म को यूनिवर्सल यानि सबकी पसंदीदा और इमोशन को प्रभावित करने तथा कुछ सोचने को मज़बूर करने वाली फिल्म होना चाहिए।
राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार विजेता बाल फ़िल्में
ऎसी फिल्मों को चुनने के लिहाज़ से राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार की श्रेष्ठ
बाल फिल्म की श्रेणी पर निगाह डालनी होगी।
पिछले दस सालों की फिल्मों पर नज़र डालें तो इन फिल्मों में विविधता है, बच्चों की
समझ के अनुसार उन्हें सीख देने वाली हैं। कन्नड़ फिल्म गब्बचिगालु में शहर के दो
बच्चे गौरैया की खोज में निकलते हैं। कन्नड़ फिल्म पुतानी पार्टी में एक गाँव की
ग्राम पंचायत के बच्चे अपने बड़ों की गलत समझ को सुधारने की कोशिश करते हैं।
हिज्जेगालु की एक गरीब बच्ची अपनी गरीबी और सामाजिक बाधाओं के बावजूद अपने परिवार
को सम्मान दिलाती है और दूसरे बच्चों के सामने आदर्श रखती है। नितेश तिवारी की
फिल्म चिल्लर पार्टी के बच्चे एक कुत्ते को बचाने के लिए आंदोलन करते हैं। हिंदी
फिल्म काफल, गढ़वाल के एक
गाँव के बच्चे की कहानी है,
जो अपने अत्यधिक क्रोधी पिता को सबक सिखाने के लिए एक जादूगरनी से मदद
माँगने जाते हैं। लेकिन,
उस जादूगरनी की पोती उन्हें एक ऎसी यात्रा पर ले जाती हैं, जिससे
उन्हें ज़िन्दगी जीने मे मदद मिलती है। मराठी फिल्म एलिज़ाबेथ एकादशी के बच्चे अपनी
साइकिल बिकने से बचाने की कोशिश करते हैं। हिंदी फिल्म दुरंतो, पांच साल के
बच्चे बुधिया सिंह के ४८ मैराथन दौड़ों में हिस्सा लेने की सच्ची कहानी है। मराठी
फिल्म म्होरक्या का १४ साल का गडरिया बालक गाँव का मुखिया बनना चाहता है।
प्रेरित करने वाली फ़िल्में
बच्चों की फिल्मों का उद्देश्य बच्चों का मनोरंजन तो होना ही चाहिए, साथ ही साथ
उन्हें प्रेरित करने वाली भी होनी चाहिए। विभिन्न भारतीय भाषाओं में बनी फ़िल्में
इस उद्देश्य को पूरा करती है। मलयालम फिल्म चोडयंगल (२०१३) में पांचवी कक्षा के एक
बच्चे को १०१ सवाल तैयार करने के लिए कहा जाता है। यह फिल्म बच्चे को कोशिश करने
के लिए प्रेरित करने वाली फिल्म है। कन्नड़ फिल्म अ आ इ ई (२००६) में बाल चरित्रों
की भरमार थी। एक अध्यापिका गरीब बच्चों को
पढ़ाने के लिए गाँव जाती है। मगर उसका पति
गाँव में रहना नहीं चाहता। यह फिल्म गरीब
बच्चों को अच्छी और मुफ्त शिक्षा के लिए प्रेरित करने वाली है। फिल्म अभय (१९९४)
के कुछ बच्चे एक भुतहा मकान में भूतों से मिलने जाते हैं। भूतों को उनका आना पसंद नहीं। वह उन्हें डराते हैं। लेकिन, बच्चे भूतों के बारे में जान कर ही मानते
हैं। यह फिल्म साबित कराती थी कि बच्चों
को यो ही नहीं डराया जा सकता। उनमे तर्क बुद्धि होती है। ऐसी एक फिल्म भूतनाथ भी
थी।
वनों और वन्य जीवों को बचाने का सन्देश
दुनिया में पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूकता के प्रयास किये जा रहे
हैं। इस दिशा में फ़िल्में अपना सहयोग कर
सकती है। इन फिल्मों के ज़रिये बच्चे पर्यावरण सुरक्षा के प्रति सतर्क रह सकते
हैं। हालिया रिलीज़ फिल्म जंगली में जंगल
है, जंगल का
सौंदर्य है, जंगली जानवर
हैं, उनको खतरे
और उन्हें इन खतरों से बचाने का प्रयास करने वाले लोग भी हैं। यह फिल्म बड़ो और
बच्चों को शिक्षित करने के लिहाज़ से ख़ास हो जाती है। कुछ ऎसी ही फ़िल्में पहले भी
प्रदर्शित हुई है। एडवेंचर ऑफ़ जोजो में जोजो नाम का बच्चा, जंगल में
रहने वाले महावत के साथ शेर के शिकार को रोकता हैं। बंगला फिल्म अमेज़न अभियान में
नायक एक विदेशी के साथ अमेज़न के जंगलों में ख़ज़ाने की खोज में निकालता है।
विकलांग बच्चों की कहानियां
देश में विकलांगों को लेकर कई भ्रांतियां हैं। उन्हें उनकी शारीरिक और
मानसिक विकलांगता को समझते हुए, उनके साथ उचित व्यवहार करें की है। पिछले कुछ सालों
से, भारतीय
फिल्मों के कथानक विकलांग बच्चों पर केंद्रित है। फिल्म अंजलि की छोटी बच्ची अंजलि
मानसकिक विकलांगता की शिकार है। पर साथी बच्चे उस पर भूत का साया देखते हैं। लेकिन, धीरे धीरे
कर उनकी सोच में बदलाव आता है। आमिर खान की फिल्म तारे ज़मीन पर में बच्चों को उनके
मानसिक विकास के अनुरूप पेंटिंग के ज़रिये उनकी कला को उभरने की वकालत की गई है।
ऐसा ही कथानक मलयालम फिल्म केशु का भी था। नागेश कुकनूर की फिल्म धनक में एक बच्ची
अपने अंधे भाई की आँखें वापस लाने के लिए ३०० किलोमीटर का सफर कर शाहरुख़ खान से
मिलने जाती है।
प्रेरित करने वाली हस्तियों पर फिल्म
अपने देश का नाम रौशन करने वाली हस्तियों का बचपन प्रेरणा दे सकता है।
उनका बचपन का अनुभव ही उन्हें समाज में अपनी जगह बनाने में मददगार होता है। इसी साल रिलीज़ फिल्म मणिकर्णिका : द क्वीन ऑफ़
झाँसी में, रानी
लक्ष्मी बाई के बचपन से ही वीर, निडर और कुशल योद्धा होने का पता चलता था। इसीलिए इस फिल्म का टाइटल ही मणिकर्णिका था।
२०११ में रिलीज़ फिल्म का चाय की दूकान पर काम करने वाला बच्चा अब्दुल कलाम के जीवन
से प्रेरित हो कर रात मे स्ट्रीट लाइट की रोशनी में पढ़ता है। फिल्म पीएम नरेंद्र
मोदी में भारतीय प्रधान मंत्री के प्रेरणादाई बचपन का चित्रण हुआ है। वही, चलो जीते हैं फिल्म प्रधान मंत्री के बचपन
में घटी घटनाओ के आधार पर बनाई गई है।
माजिद मजीदी की दो फ़िल्में
ईरानी फिल्म निर्देशक मजीद मजीदी की दो फ़िल्में बेहद ख़ास है। यह बच्चों
में एक दूसरे के प्रति त्याग और बलिदान का चित्रण करती है। चल्ड्रेन्स ऑफ़ हेवन में
बच्चों के पिता एक पास दोनों बच्चों के जूते खरीदने के पैसे नहीं है। इस पर बहन
अपने जूते अपनी भाई को देती है, जब वह स्कूल में नहीं होती और भाई स्कूल जाता
है। बाद में भाई एक दौड़ में जूते जीतता
है। यह कहानी उनकी भारतीय पृष्ठभूमि की फिल्म बियॉन्ड द क्लाउड्स में यह बच्चे बड़े
हो कर हर त्याग करने को तैयार है। भाई
अपनी बहन को बचाने के लिए गुंडों से भीड़ जाता है। यह फ़िल्में भाई-बहन के बीच प्रेम, त्याग और
समर्पण की कहानियां कहती हैं।
हॉलीवुड की फ़िल्में
बच्चों के मनोविज्ञान के लिहाज़ से हॉलीवुड फ़िल्में बेजोड़ है। हॉलीवुड
फिल्मों का बच्चा भी मुख्य चरित्र हो सकता है।
एनीमेशन चरित्र भी प्रेरणा दे सकते
हैं। जादू के संसार मे भी बच्चे यथार्थ को
याद रख पाते हैं। हॉलीवुड की बेबीज डे आउट, होम अलोन, लिटिल
रास्कल्स, डेनिस द
मेनेस, जर्नी टू द
सेंटर ऑफ़ द एअर्थ,
स्पाई किड्स,
जुमान्जी,
द पैरेंट ट्रैप,
द पैसिफिएर,
माटिल्डा,
पीटर पैन,
आदि बच्चों के मुख्य किरदारों की कहानियां हैं। हैरी पॉटर सीरीज की फ़िल्में जादुई दुनिया के
बच्चों को भी जादू को दुनिया के भले के लिए उपयोग करने की शिक्षा देती थी। जाथुरा और जुमान्जी बच्चों
के खेल से शुरू हो करे,
उन्हें खतरनाक काल्पनिक संसार में ले जाती थी। ईटी द एक्स्ट्रा
टेरेस्ट्रियल,
डंस्टन चेक इन,
कैस्पर,
आदि फिल्मों के बच्चे अजनबी
आकृतियों या बड़े जानवरों से बिना डरे हुए परिचय करते हैं। फिल्म सीरीज द क्रोनिकल्स ऑफ़ नार्निया और
चार्ली एंड द चॉकलेट फैक्ट्री, मैरी
पोप्पिंस, आदि फंतासी
फ़िल्में बच्चों की पसंद को ध्यान में रख कर ही बनाई गई है। इनके अलावा कुंग फु पंडा, द श्रेक, आइस एज, मडागास्कर, द
इन्क्रेडिबल्स,
विन्नी द पूह,
फ्रोजेन,
डेस्पिकेबल मी,
टॉय स्टोरी,
द मपेट,
फाइंडिंग निमो,
हाउ टू ट्रेन योर ड्रैगन, मोअना, वाल-इ, द जंगल बुक, आदि फिल्मों
की सीरीज के एनीमेशन चरित्र मानवीय संवेदनाओं की अभियक्ति करने वाले थे।
बॉलीवुड की फंतासी तथा दूसरी फ़िल्में
अनिल कपूर की फिल्म मिस्टर इंडिया, शाहरुख़ खान
की फिल्म रा.वन,
हृथिक रोशन की सुपरहीरो फिल्म
सीरीज कृष,
अजय देवगन की फिल्म टूनपुर का सुपरहीरो, आब्रा का डबरा, शिवा का
इन्साफ, माय डिअर
कुट्टिचेतन, आदि फ़िल्में
फंतासी कथानक के बावजूद बुराई पर अच्छाई की विजय, भय से बिना डरे मुक़ाबला करने का सन्देश देती
थी। इन फिल्मों के अलावा भारतीय बच्चों के लिए स्टैनली की डब्बा, ब्लू
अम्ब्रेला, रॉकफोर्ड, तहान, हवा हवाई, मकड़ी, आदि फ़िल्में
भी देखने लायक हैं।
बच्चों के लिए २०१९ में
इस साल बच्चों की समझ के लिहाज़ से आधा दर्जन फ़िल्में उल्लेखनीय हैं । इन
फिल्मों में हमीद, मेरे प्यारे प्राइम मिनिस्टर, जंगली और गॉन केश रिलीज़ हो चुकी
हैं । हमीद, कश्मीर की पृष्ठभूमि पर एक नन्हे कश्मीरी बच्चे की कहानी है, जिसे
उसकी माँ ने बताया है कि उसके पिता अल्लाह के पास चले गए हैं और ७८६ के ज़रिये उनसे
मिला जा सकता है । वह ७८६ नंबर मिला कर अपने पिता से बात करना चाहता है । लेकिन,
क्या ७८६ नंबर मिला कर यह संभव है ? एक दिन उस बच्चे को ७८६ से सचमुच जवाब मिलता
है । राकेश ओमप्रकाश मेहरा की फिल्म का बाल चरित्र अपनी माँ से बलात्कार के बाद,
प्रधान मंत्री को पत्र लिखता है । इस फिल्म में खुले में शौच की समस्या और गन्दगी
की समस्या को भी बखूबी उठाया गया है । चक रसेल की फिल्म जंगली में वन्य पर्यावरण
और हाथियों के अवैध शिकार का चित्रण किया गया था । निर्देशक कासिम खालो की फिल्म
गॉन केश की नृत्यांगना बनने की इच्छुक किशोरी को उस समय अपने सपने टूटते नज़र आते
हैं, जब बीमारी के कारण उसके सर के बाल गिराने लगते हैं । इन फिल्मों के अलावा, २०१९
में, शोनाली बोस की फिल्म द स्काई इज पिंक की कहानी में पल्मोनरी फाइब्रोसिस की
बीमारी से पीड़ित बच्ची का संघर्ष है । रणबीर कपूर, अलिया भट्ट, अमिताभ बच्चन और
नागार्जुन की फिल्म ब्रह्मास्त्र एक विशुद्ध फंतासी फिल्म है,जो अपने चमत्कारी
दृश्यों के कारण बाल दर्शकों को भी पसंद आयेगी ।
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