Sunday 23 August 2015

जब बैन हो जाता है पाकिस्तान में बॉलीवुड !

पाकिस्तान में छिपा मुंबई हमलों का मास्टर माइंड हफ़ीज़ सईद 'फैंटम' से डरा हुआ है। उसे लगता है कि कबीर खान की सैफ अली खान और कैटरीना कैफ अभिनीत फिल्म 'फैंटम' उसे मुंबई हमलों का दोषी मानती है। हफ़ीज़ सईद का डर जायज़ है।  फैंटम के ट्रेलर की शुरुआत ही मुंबई अटैक की तस्वीरों और हफ़ीज़ सईद की उस रिकॉर्डिंग से होती है, जिसमे वह पूछ रहा है कि क्या तुम साबित कर सके कि मुंबई अटैक में हाफिज सईद का हाथ है ? अब छह साल हो चुके हैं, क्या तुम्हे कुछ मिला ?' इसी ट्रेलर के आखिर में फिल्म का नायक कहता है, "अमेरिकियों ने पाकिस्तान में घुस कर ओसामा को मार डाला ? हम ऐसा क्यों नहीं कर सकते ?"  रील लाइफ में सईद का वकील पाकिस्तान की अदालत में इसे पेश करते हुए कहता है कि यह मेरे क्लाइंट को सीधे धमकी है।
पाकिस्तानी एक्टर हमज़ा अली अब्बासी भी 'फैंटम' की आड़ में बॉलीवुड की आलोचना करते हैं।  वह बॉलीवुड को दोमुंहा बताते हैं।  हमजा कबीर खान की फिल्म को 'निराशाजनक गंदगी' बताते हैं। वह चाहते हैं कि पाकिस्तानी भी भारत और रॉ के द्वारा बलोचिस्तान में फैलाये गए शिया सुन्नी आतंकवाद पर फिल्म बनाये।
पाकिस्तान आतंकवाद को लेकर उतना चिंतित नहीं, जितना बॉलीवुड द्वारा बनाई जा रही अपनी इमेज को लेकर है।  फैंटम को  निराशाजनक कूड़ा बताने वाला पाकिस्तान बजरंगी भाईजान, पीके और हैदर को हाथों हाथ लेता हैं, क्योंकि बजरंगी भाईजान पाकिस्तानियों की प्रति नरम है, यहाँ तक कि आर्मी को भी दोस्ताना दिखाया गया है।  पीके हिन्दू धर्म गुरुओं को गरियाते हुए पाकिस्तानियों को 'बेईमान नहीं होते' साबित करती है और हैदर कश्मीर में उग्रवाद के लिए भारतीय सेना को जिम्मेदार बताती है।  लेकिन, वह बजरंगी भाईजान वाले निर्देशक कबीर खान की फिल्म फैंटम को अस्वीकार करने की तयारी कर रहा  है क्योंकि यह फिल्म उनके यहाँ पल रहे आतंकवादी हाफिज सईद को इंगित करती है।
जब 'बेबी' से डरा पाकिस्तान !
पाकिस्तान को रास नहीं आता कि बॉलीवुड फ़िल्में उसे आतंकवादियों की पनाहगाह बताये। यही कारण है कि पाकिस्तान अक्षय कुमार की आतंकवाद पर नीरज पाण्डेय की फिल्म 'बेबी' को बैन कर देता है, क्योंकि यह फिल्म भी पाकिस्तानी एक्टर रशीद नाज़ के चहरे में मौलाना हफ़ीज़ सईद का चेहरा छिपा दिखाती थी । 'बेबी' साफ़ साफ़ पाकिस्तान को हफ़ीज़ सईद की पनाहगाह बताती थी। पाकिस्तान को भारत की उन फिल्मों से डर लगता है, जिनमे बम विस्फोट, दाढ़ी वाले आतंकवादी और आतंकवाद का कोण हो।  अगर कही फिल्म में ढका-छुपा कर भी पाकिस्तान का हाथ बताया गया है तो समझिए कि फिल्म पाकिस्तान में बैन हो गई।  अगर ऐसा न होता तो रितेश देशमुख की करण अंशुमान निर्देशित कॉमेडी फिल्म 'बंगीस्तन' को पाकिस्तान में रोक का सामना न करना पड़ता।  फिल्म के दो फुकरे धोखे से पाकिस्तान पहुँच जाते हैं।  इस फिल्म में वह बम विस्फोट, ओसामा बिन लादेन और आतंकवाद की बात करते हैं। पाकिस्तान को इससे डर लगता है। पाकिस्तान को यह मंज़ूर नहीं कि उसका नाम इस सब से जोड़ा जाये ।  इसलिए वह 'बंगिस्तान' को बैन कर देता है।
हिंदी फिल्मों पर बैन! कोई नई बात नहीं !! 
पाकिस्तान में हिंदी फिल्मों के बैन का लंबा इतिहास रहा है। १९६२ में पाकिस्तान में सभी भारतीय फिल्मों की एंट्री पर रोक लगा दी थी।  १९७९ में, पाकिस्तान के डिक्टेटर राष्ट्रपति जिया उल हक़ ने पाकिस्तान के इस्लामीकरण का बीड़ा उठाया।  इसके तहत हिंदुस्तानी  फिल्मों को बैन करना पहला कदम था।  हक़ के समय में पाकिस्तान का सेंसर गैर इस्लामिक हर शब्द से कतराता था।  कोई भी ऐसी फिल्म पाकिस्तान  में रिलीज़ नहीं हो सकती थी।  इसके बावजूद कि पाकिस्तानी प्रेजिडेंट बॉलीवुड एक्टर शत्रुघ्न सिन्हा का बेहद अच्छे दोस्त थे।  यही कारण है कि बॉलीवुड की कल्ट फिल्म शोले पाकिस्तानी दर्शक चालीस साल बाद ७० एमएम के परदे पर देख पाये।  २००६ से पाकिस्तान में भारतीय फिल्मों के प्रदर्शन को पूरी तरह से रोक दिया गया।  इस समय भी भारतीय फिल्मों का प्रदर्शन इस हाथ ले, उस हाथ दे की शैली में हो रहा है।  यानि, जितनी तुम्हारी  फ़िल्में, उतनी ही हमारी फ़िल्में प्रदर्शित हों।  बशर्ते यह सब पाकिस्तान (मुसलमान) विरोधी न हो।
बजरंगी भाईजान के मुंह से कश्मीर छीना 
हिंदी फिल्मों पर बैन लगाने के मामले में पाकिस्तान काफी पूर्वाग्रही लग सकता है।  पाकिस्तान में बजरंगी भाईजान बेशक रिलीज़ हुई हो, इसके बावजूद कि फिल्म का जहाँ पाकिस्तानी दर्शक बेसब्री से इंतज़ार कर रहे थे, वहीँ फिल्म इंडस्ट्री के लोग  अपनी फिल्मों को स्क्रीन न मिलने या कम हो जाने के भय से विरोध कर रहे थे। परन्तु, सलमान खान को ईद पर देखने के पाकिस्तानियों के उत्साह को देख कर पाकिस्तानी सेंसर बोर्ड ने फिल्म को कुछ कट के साथ रिलीज़ कर दिया।  परन्तु, काटे गए तमाम दृश्य और डायलाग में सलमान खान का बोला गया यह डायलाग भी था कि कश्मीर का एक हिस्सा हमारे (भारत के) पास भी है ।
पाकिस्तान को केवल इस लिए रंज नहीं कि  हिंदी फिल्मों में दाढ़ी वाले आतंकी, बम विस्फोट और आतंकवाद के तार पाकिस्तान से जुड़े दिखाए जाते हैं।  उसे आईएसआई से भी गुरेज़ है।  जी नहीं, पाकिस्तान
आईएसआई के कारनामों से रंज  नहीं करता, उसे रंज होता है हिंदी फिल्मों का आईएसआई को ग्लोबल टेररिज्म के लिए ज़िम्मेदार दिखाना।  इसिलिये ऎसी सभी हिंदी फ़िल्में पाकिस्तान में बैन हो जाती हैं, जिनमे आईएसआई के तार आतंकवाद से जुड़े हों।  अब चाहे वह फिल्म सलमान खान और कबीर खान की एक था टाइगर रही हो या सैफ अली खान की एजेंट विनोद।  बेबी तो खैर अक्षय कुमार की फिल्म थी।  कुर्बान में मुसलमानों को आतंकवादी दिखाया गया था, जबकि एक था टाइगर की कैटरीना कैफ आईएसआई एजेंट बताई गई थी। तेरे बिन लादेन में तो पाकिस्तानी अधिकारीयों को बुरी छवि में दिखाया गया था।  ऐसे में फैंटम कैसे रिलीज़ हो सकती है, जब इसमे हफ़ीज़ सईद द्वारा मुंबई में २६ नवंबर को कराया गया अटैक है और हफ़ीज़ सईद के भाषण की ऑडियो चलाई गई है।
कुछ दूसरे कारण भी हैं  बैन होने के लिए !
पाकिस्तान को डर्टी पिक्चर भी  गन्दी लगी थी।  फिल्म में विद्या बालन ने अपने उभारों का प्रदर्शन किया ही  था, 'गन्दी' भाषा भी बोली थी।  बकौल पाकिस्तानी सेंसर बोर्ड पाकिस्तानी दर्शकों के लिहाज़ से यह बोल्ड फिल्म है।   बाद में इस फिल्म को काफी कट के बाद 'ए' सर्टिफिकेट के साथ रिलीज़ कर दिया गया।  पाकिस्तान के टेररिस्ट और बोल्ड सब्जेक्ट के अलावा भी  पाकिस्तानी कैची चलने के कारण हैं। पाकिस्तानी सेंसर बोर्ड अपने मुस्लिम दर्शकों के सेंटीमेंट का भी काफी ध्यान रखता है। अक्षय कुमार  की फिल्म 'खिलाडी ७८६' को शुरुआत में इसीलिए बैन किया गया था कि इससे ७८६ का पवित्र अंक जुड़ा था।  मुसलमानों की धार्मिक भावनाएं आहत हो सकती थी। बाद में यह फिल्म बिना ७८६ के रिलीज़ हुई।  इस प्रकार से, १९९२ में अक्षय कुमार की फिल्म 'खिलाडी' के बाद, पाकिस्तान में अक्षय कुमार की दूसरी खिलाड़ी फिल्म रिलीज़ हुई थी। आनंद एल राज की सोनम कपूर और धनुष अभिनीत फिल्म 'रांझणा' को पाकिस्तानी सेंसर बोर्ड ने इस बिना पर प्रदर्शन के अयोग्य माना की फिल्म में मुस्लिम ज़ोया हिंदी कुंदन के प्यार में मुब्तिला होती है।  यह वही सेंसर बोर्ड है, जो मुस्लमान से प्रेम करने वाली हिन्दू लड़की वाली फिल्म 'पीके' को आराम से रिलीज़ होने देता है।  दिलचस्प तथ्य यह है कि पाकिस्तान का आवाम कोई आवाज़ भी नहीं उठाता है।
इसलिए भी बैन 
पाकिस्तान में शाहरुख खान की फिल्म 'चेन्नई एक्सप्रेस' को ईद के दौरान रिलीज़ होने से रोकने के लिए सर्टिफिकेट नहीं दिया गया था।  कारण यह था कि  ८ अगस्त ईद के दिन पाकिस्तान की चार फ़िल्में जोश, इश्क़ खुदा, वॉर और मेरा नाम अफरीदी रिलीज़ होनी थी।  इसलिए पाकिस्तानी फिल्म इंडस्ट्री के हितों की रक्षा के लिए चेन्नई एक्सप्रेस को सर्टिफाई नहीं किया गया।  बाद में यह फिल्म पाकिस्तान में रिलीज़ हुई।  भाग मिल्खा भाग की पाकिस्तान में रिलीज़ की राह में फिल्म में फरहान अख्तर के किरदार मिल्खा सिंह द्वारा बोला गया वह डायलाग आया, जिसमे वह कहता है कि मैं पाकिस्तान नहीं जाऊँगा।   मुझसे नहीं होगा।" इस डायलाग से पाकिस्तान को लगता था कि मिल्खा सिंह १९४७ में हुए अपने परिवार के कत्लेआम के  लिए मुसलमानों को ज़िम्मेदार बता रहा है। इसी प्रकार से डेविड, लाहौर, आदि फिल्मों को भी पाकिस्तान में बैन का सामना करना पड़ा। 
पाकिस्तान में हिट 'सरफ़रोश' !
यह जान कर आश्चर्य होगा कि जहाँ पाकिस्तान विरोधी हिंदी फ़िल्में पाकिस्तान में रिलीज़ नहीं हो पाती, वहीँ आमिर  खान और सोनाली बेंद्रे की मुख्य भूमिका वाली फिल्म 'सरफ़रोश' ज़बरदस्त हिट होती है।  इसे कराची और लाहौर के थिएटर्स में चोरी छुपे दिखाया जाता है।  यह फिल्म पाकिस्तान में सबसे लोकप्रिय फिल्म बन जाती है। फिल्म के पायरेटेड प्रिंट की ज़बरदस्त मांग होती है।  जबकि, यह फिल्म बॉलीवुड की पहली फिल्म थी, जिसमे पाकिस्तान को आतंकवादी देश बताया जाता है।  तब, सरफरोश पाकिस्तान में इतनी बड़ी हिट फिल्म कैसे बनी? जानकार इसके चार कारण गिनाते हैं।  सरफ़रोश की सफलता का सबसे बड़ा कारण थी, अभिनेत्री सोनाली बेंद्रे।  साड़ी में लिपटी भीगी सोनाली पाकी दर्शकों को कामुक लगी। फिल्म मोहाजिरों का ज़िक्र करती थी।  तीसरा फिल्म का म्यूजिक बहुत बढ़िया था।  चौथी बात फिल्म में विस्फोट के दृश्य कराची विस्फोट की याद ताज़ा कराते थे।

राजेंद्र कांडपाल 

Saturday 22 August 2015

३१ अक्टूबर का जलवा

लंडन इंडियन फिल्म फेस्टिवल में फिल्म "३१ अक्टूबर" का वर्ल्ड प्रीमियर होने के बाद , हैरी सचदेवा और मैजिकल ड्रीम्स प्रोडकशन्स प्राइवेट लिमिटेड की यह फिल्म अब आगामी सिख इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में २९ अगस्त को टोरांटो में दिखाई जाएगी। ​३१ अक्टूबर को नेशनल अवार्ड विनर डायरेक्टर शिवाजी लोटन पाटिल ​ने निर्देशित किया है। इस फिल्म की कहानी इतिहास के उन कुछ काले पन्नो की है, जब १९८४ में भारत की तत्कालीन प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी की हत्या की गयी थी। इस फिल्म दिखाया गया है की हत्या के बाद देश में क्या माहौल रहा होगा और किसी एक धर्म और जाती पर इसके कैसे परिणाम हुए। इस फिल्म में कोई गीत नहीं है, सिर्फ बैकग्राउंड स्कोर है जो कि फिल्म इंडस्ट्री के दिग्गज आशा भोसले , उस्ताद ग़ुलाम मुस्तफा अली खान, सोनू निगम और जावेद अली द्वारा क्रिएट किया गया है। इस बारे में ​फिल्म के निर्देशक पाटिल कहते है " यह मेरे लिए सम्मान की बात है। इस फिल्म को दुनिया भर के दर्शको ने पसंद किया है।  लंडन इंडियन फिल्म फेस्टिवल में बढ़िया रिस्पांस मिला है।  ​हम सिख और वैंकूवर अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोह में फिल्म को अच्छे रिस्पांस की उम्मीद हैं। "​ ​निर्माता हैरी सचदेवा आगे बताते हैं,​  "हमें यह  विशाल प्लेटफार्मों मिला है।  सिख और वैंकूवर अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोहों में 31 अक्टूबर को प्रदर्शित करने के लिए बहुत गर्व महसूस हो रहा है।"

अब पत्रकार बनेगी ज़ोया अख्तर की नूरी

ज़ोया अख्तर की इसी साल रिलीज़ फिल्म 'दिल धड़कने दो' में नूरी का नाज़ुक किरदार करने वाली अभिनेत्री रिद्धिमा सूद अब एक पत्रकार की रफ़ टफ भूमिका में नज़र आएंगी।  दिल धड़कने दो रिद्धिमा की डेब्यू फिल्म थी।  इस लिहाज़ से दिल धड़कने दो का बॉक्स ऑफिस पर निराशाजनक प्रदर्शन करना किसी भी न्यूकमर के लिए दुःख की बात होगी।  लेकिन, रिद्धिमा अपनी पहली फिल्म की असफलता से निराश नहीं।  उन्होंने फिर से कमर कस ली है। मधुरिता आनंद की फिल्म 'कजरिया' भ्रूण हत्या के कथानक पर फिल्म है।  फिल्म में वह भ्रूण हत्या के एक मामले को सुलझाते हुए नज़र आएंगी।  आम तौर पर नवोदित अभिनेत्रियां हल्का फुल्का कॉमेडी फिल्मों के किरदार करना चाहती है।  लेकिन, किसी गंभीर किस्म की फिल्म में ग्लैमरविहीन रोल करना रिद्धिमा सूद जैसी किसी अभिनेत्री के बूते की ही बात है।  उम्मीद की जा सकती है कि रिद्धिमा 'कजरिया' में अपनी छिपी अभिनय प्रतिभा को दर्शकों के सामने ला पाएंगी।
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Thursday 20 August 2015

क्या अभिषेक बच्चन के लिए होगा 'आल इज़ वेल' !

अभिषेक बच्चन के लिए 'आल इज़ वेल' क्यों ज़रूरी है।  बॉलीवुड फिल्म इंडस्ट्री में १५ साल बिताने के बाद भी, अभिषेक बच्चन लड़खड़ाते देखे जा सकते हैं।  कहने को वह अपनी पिछली हिट फिल्मों 'हैप्पी न्यू ईयर', 'धूम ३' और 'बोल बच्चन' जैसी हिट फिल्मों के नाम गिना सकते हैं।  लेकिन, इन सभी फिल्मों में, 'हैप्पी न्यू ईयर' और 'बोल बच्चन' में दोहरी भूमिका करने के बावजूद' इनके नायकों शाहरुख़ खान, आमिर खान और अजय देवगन का महत्त्व था।  अगर. अभिषेक बच्चन अपनी किसी हिट सोलो फिल्म की बात करेंगे तो 'बंटी और बबली' और 'गुरु' का ही उल्लेख कर सकते हैं।  यह दोनों फ़िल्में क्रमशः २००५ और २००७ में रिलीज़ हुई थी।  इसका मतलब यह हुआ कि वह ८ साल से सोलो हिट के लिए तरस रहे हैं।  इस लिहाज़ से 'आल इज़ वेल' खास है।  इस फिल्म के निर्देशक उमेश शुक्ल हैं, जो सुपर हिट फिल्म ओह माय गॉड' के निर्देशक के बतौर पहचाने जाते हैं।  'आल इज़ वेल' कॉमेडी फिल्म है।  इस कॉमेडी में अभिषेक बच्चन का साथ असिन, ऋषि कपूर और सुप्रिया पाठक कपूर दे रही हैं।  ऋषि और सुप्रिया करैक्टर एक्टर हैं।  असिन को कोई फर्क नहीं पड़ेगा, यदि फिल्म हिट हो या फ्लॉप।  क्योंकि, वह शादी करने जा रही हैं।  इस लिहाज़ से 'आल इज़ वेल' का बॉक्स ऑफिस पर बढ़िया प्रदर्शन केवल अभिषेक बच्चन के लिए ही महत्वपूर्ण है।  क्या अभिषेक बच्चन के लिए 'आल इज़ वेल' साबित होगी!

अब शाहरुख़ खान लड़ाएंगे आलिया भट्ट के साथ रोमांस !

इसे कास्टिंग कू कहा जायेगा।  गौरी शिंदे ने अपनी अगली फिल्म में अलिया भट्ट से रोमांस रोमांस करने के लिए बॉलीवुड की रोमांस फिल्मों के बादशाह शाहरुख़ खान को लिया है।  करण जौहर की को-प्रोडूस यह फिल्म बड़ी उम्र के आदमी के कम उम्र हसीना से रोमांस की कहानी है।  कल इस फिल्म के बारे में करण जौहर ने ट्वीट किया था।  बेमेल जोड़े की यह रोमांस फिल्म गौरी शिंदे के पति आर बाल्की की फिल्म 'चीनी कम' की याद दिलाती है, जिसमे अमिताभ बच्चन अपने से कम उम्र लड़की तब्बू से रोमांस करते हैं और शादी करना चाहते हैं।  इससे पहले अमिताभ बच्चन राम गोपाल वर्मा की फिल्म 'निःशब्द' में अपने से कम उम्र की लड़की जिया खान के रोमांस में पड़ चुके थे।  बेमेल रोमांस की दृष्टि से १९७७ में रिलीज़ रमेश तलवार की फिल्म 'दूसरा आदमी' की याद आ जाती है, जिसमे राखी गुलजार कम उम्र ऋषि कपूर से प्रेम करने लगती हैं।  नायिकाओं का कुछ ऐसा ही रोमांस फरहान अख्तर की फिल्म 'दिल चाहता है' में डिम्पल कपाड़िया और अक्षय खन्ना की बीच दिखाया गया था।  गौरी शिंदे की फिल्म इन्ही फिल्मों का पुरुष संस्करण लगती है।

Wednesday 19 August 2015

अंकिता श्रीवास्तव कैसे बनी चांदनी !

अंकिता श्रीवास्तव लखनऊ से हैं।  माँ चाहती थी कि बेटी फिल्म अभिनेत्री बने।  सो आ गई मुंबई।  कुछ एड फ़िल्में की।  संघर्ष जारी रखा।  फिर मिल गई वेलकम बैक।  २००७ में रिलीज़ अनीस बज़्मी द्वारा ही निर्देशित, मगर अक्षय कुमार और कैटरीना कैफ की रोमांटिक जोड़ी वाली फिल्म 'वेलकम' की इस रीमेक फिल्म में अक्षय कुमार और कैटरीना कैफ की रोमांटिक जोड़ी नहीं है।  अनिल कपूर और नाना पाटेकर की भाई जोड़ी है। इन दोनों भाइयों पर डोरे डालने वाली मल्लिका शेरावत भी नहीं हैं।  मल्लिका शेरावत ने इशिका का रोल किया था।  अब इशिका का चरित्र निकाल दिया गया है।  इशिका की जगह चांदनी ने ले ली है।  इसी चांदनी किरदार को अंकिता श्रीवास्तव निबाह रही हैं।  लेकिन, अंकिता के चांदनी बनने की कहानी दिलचस्प हैं।  अंकिता श्रीवास्तव श्रीदेवी की फैन हैं।  वह श्रीदेवी बनना चाहती थी। उन्हें श्रीदेवी की फिल्म चांदनी और उसका किरदार चांदनी बेहद पसंद था।  वह वक़्त बेवक़्त चांदनी के किरदार में घुसी रहती थी।  'वेलकम बैक' के ऑडिशन में अंकिता श्रीवास्तव ने निर्देशक अनीस बज़्मी और निर्माता फ़िरोज़ नाडियाडवाला के सामने भी इसी चांदनी को पेश कर दिया।  दोनों को अंकिता का यह परफॉरमेंस पसंद आया।  उन्हें यह परफॉरमेंस कितना पसंद आया होगा, इसका अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि दोनों ने अंकिता के फिल्म के किरदार नज़फगढ़ की राजकुमारी को ही चांदनी नाम दे दिया। अनीज बज्मी कहते है " हमने अंकिता की चांदनी के रूप में एक्टिंग देखी।  बहुत अच्छी लगी।  फ़िरोज़ भाई को वह असल चांदनी लगी तो हम दोनों ने उनके किरदार को भी चांदनी नाम दे दिया।"

सोनू वालिया बनी फिल्म निर्माता

पूर्व मिस इंडिया सोनू वालिया का बॉलीवुड में करियर लम्बा नहीं चल सका।  हालाँकि, सोनू वालिया ने शर्त, खून भरी मांग, आकर्षण, तूफ़ान, क्लर्क, नम्बरी आदमी, खेल, आदि बड़ी फ़िल्में की।  उन्हें फिल्म खून भरी मांग के लिए बेस्ट सपोर्टिंग एक्ट्रेस का फिल्मफेयर पुरस्कार भी मिला।  लेकिन, वह अपनी पहली फिल्म 'आकर्षण' के हीरो अकबर खान के आकर्षण में कुछ इतना बांध गई कि अपना करियर ही गँवा बैठी।  उन्होंने टीवी सीरियल बेताल पचीसी भी किया।  वर्तमान में वह एक अमेरिकी फिल्म प्रोडूसर प्रताप सिंह की पत्नी हैं।  बॉलीवुड छोड़ने के दो दशक बाद, सोनू वालिया एक बार फिर चर्चा में हैं।  वह अब फिल्म प्रोडूसर बन गई हैं।  उन्होंने विनीत शर्मा के साथ एक म्यूजिकल फिल्म जोगिया का निर्माण किया है। इस फिल्म को सान फ्रांसिस्को में फेस्टिवल ऑफ़ ग्लोब में रोहित बक्शी को श्रेष्ठ अभिनेता के अलावा श्रेष्ठ संगीतमय फिल्म का पुरस्कार भी मिला है।  इस फिल्म में सीरियल कहीं तो होगा के रोहित बक्शी नायक हैं।  उनकी नायिका कीर्ति कुल्हारी और सुज़न्ने मुख़र्जी हैं।  अपनी फिल्म के बारे में सोनू वालिया बताती हैं, "संगीत हमारी फिल्मों का आधार है। 'जोगिया' एक गहरी प्रेम कहानी है।  लड़का छोटे शहर का है।  वह संगीत जगत में कुछ बड़ा करना चाहता है।"  इस म्यूजिकल फिल्म का संगीत विनीत शर्मा ने ही तैयार किया है। जोगिया की प्रोडूसर सोनू वालिया को उनके प्रशंसक आज भी याद करते हैं।  क्या उनका एक्टिंग में लौटने का कोई इरादा नहीं है ? कहती हैं सोनू वालिया, "बिलकुल ! मैं एक्टिंग करना चाहूंगी।  बशर्ते रोल मुझे एक्साइट करे।"