Tuesday 16 July 2013

पसिफ़िक रिम : मशीन के सामने बेदम मनुष्य


हॉलीवुड की फिल्मों में मानव के बजाय मशीन का प्रभाव बढ़ता जा रहा है. ख़ास तौर पर विज्ञान  फंतासी फिल्मों में विश्व को संकट से बचने की लड़ाई जीतने में या तो मशीन आगे रहती है या मानव के साथ सक्रिय सहयोग करती है. कभी इन फिल्मों में तो मशीन ही हीरो बन जाती है. हॉलीवुड फिल्मों में स्पेशल इफेक्ट्स और कंप्यूटर ग्राफ़िक्स का प्रभाव बढ़ता जा रहा है. ब्लेड २  और हेलबॉय सीरीज की फिल्मों के निर्देशक गुइलेर्मो डेल टोरो की पिछले शुक्रवार रिलीज़ फिल्म पसिफ़िक रिम एक ऐसी ही फिल्म है. पसिफ़िक रिम २०२० की दुनिया की परिकल्पना है, जिसमे ड्रैगन कायजू शहरों पर हमला कर देते है. उनको रोकना किसी एक मानव के वश की बात नही। मानव युक्त मशीन ही यह काम कर सकती है. इस मशीन को एक मनुष्य  का दिमाग भी संचालित नहीं कर सकता. इसके लिए दो दिमागों की ज़रुरत है. विश्व के सभी देशों के दिमाग मिल कर उस कायजू का नाश करते है। कैसे !
फिल्म में मशीन को महत्त्व दिया गया है. अन्दर से मानव द्वारा संचालित की जा रही मशीन है तो स्पेशल इफेक्ट्स, VFX, कंप्यूटर ग्राफ़िक्स, आदि नाना वैज्ञानिक अविष्कारों का उपयोग कर जैगर की ईजाद की गयी है. वही कायजू को मारने में सक्षम है. चूंकि फिल्म में मशीन का महत्व है, इसलिए अभिनय की ख़ास गुंजाईश नही. इसीलिए चार्ली हुन्नम, रिनको किकुची, इदरिस एल्बा, चार्ली डे और रोन पेर्लमन ने अभिनय की रस्म अदायगी कर दी है. १९० मिलियन डॉलर में बनी इस फिल्म की पटकथा ट्रेविस बेअचेम के साथ खुद गुइलेर्मो ने लिखी है. कयाजू और जैगर की फाइट थ्रिल पैदा करती है. लेकिन दर्शक ऐसी कल्पना से तालमेल नहीं बैठा पाते कि सात साल बाद विश्व पर किसी कायजू  का हमला होगा और उनकी रक्षा मानव मशीन करेगी. किसी भी विज्ञानं फंतासी फिल्म में मशीन का होना स्वाभाविक है. लेकिन, क्लाइमेक्स में मशीन की मदद से मानव को ही जीतते दिखाया जाना चहिये. पसिफ़िक रिम में इसे कुछ इस तरह से दिखाया गया है कि आम दर्शक खुशी से चीख नहीं पड़ता . यही फिल्म की बड़ी असफलता है.
उच्च तकनीक के इस्तेमाल से बनायी गयी इस फिल्म में तकनीकी टीम का काम बहुत सराहनीय है. अगर इस टीम को अच्छी पटकथा मिली होती तो यह टीम एक सफल फिल्म दे पाती.

बॉक्स ऑफिस पर तीसरे स्थान पर 'मिल्खा'

निर्देशक राकेश ओमप्रकाश मेहरा की फिल्म भाग मिल्खा भाग १९६०  के रोम ओलंपिक्स की चार सौ मीटर दौड़ में चौथे स्थान पर रह कर भारत के उड़न सिख बनने वाले मिल्खा सिंह की तरह बॉक्स ऑफिस पर दौड़ मार रही है. इस फिल्म ने वीकेंड में ३२  करोड़ कम कर, वीकेंड में १९  करोड़ कमाने वाली रनवीर  सिह और सोनाक्षी सिन्हा की फिल्म लुटेरा, २० करोड़ से ज्यादा कमाने वाली धनुष और सोनम की फिल्म रान्झना तथा २२ -३० करोड़ कमाने वाली इमरान हाश्मी और विद्या बालन की फिल्म घनचक्कर को पछाड़ दिया है. यह फिल्म इस साल सबसे ज्यादा कमाने वाली फिल्मों में तीसरे और चौथे स्थान की फिल्म शूटआउट एट वडाला  तथा हिम्मतवाला के कलेक्शन को पीछे छोड़ कर, तीसरे स्थान पर पहुँच गयी है. अलबत्ता भाग मिल्खा भाग बॉक्स ऑफिस के रेस में यह जवानी है दीवानी तथा रेस २ से पिछड़ गयी है. भाग मिल्खा भाग की यह दौड़ मुंबई दिल्ली-यूपी, पंजाब और मैसूर सर्किट के बॉक्स ऑफिस की बदौलत है. भाग मिल्खा भाग को मल्टीप्लेक्स थिएटर में ज्यादा पसंद किया गय.
भाग मिल्खा भाग ने साबित कर दिया कि  अगर सूझ बूझ से फिल्म लिखी गयी हो निर्देशक कल्पनाशील हो तो स्पोर्ट्स बार बनी फिल्मों को भी सफलता मिल सकती है. यह फिल्म राकेश ओमप्रकाश मेहरा की दिल्ली ६ की पिछली असफलता के दाग को ख़त्म कर दिया है. भाग मिल्खा भाग अभिनेता फरहान अख्तर के कद को ऊँचाई देने वाली फिल्म है.  

 

Saturday 13 July 2013

बॉलीवुड हीरो के 'प्राण'

तिरानबे साल पहले 12 फरवरी को जन्मे प्राण कृष्ण सिकंद का 12 जुलाई को देहांत हो गया. आज अख़बारों की सुर्खियाँ हैं कि हिंदी फिल्मों के मशहूर विलेन प्राण का निधन हो गया . एक बेजोड़ अभिनेता का यह कैसा  मूल्यांकन ? वह किस कोण से विलेन थे. इतने सुन्दर चहरे और शानदार व्यक्तित्व वाला केवल विलेन कैसे? बहुत कम लोग जानते होंगे कि शिमला में नाटक के दिनों में मदन पूरी की रामलीला में प्राण ने सीता का रोल किया था. फिल्मों में भी वह अपने अभिनय के नए कीर्तिमान स्थापित करते रहे. उन्होंने विलीन और करैक्टर रोल्स को एक जैसी महारत से किया. शहीद का डाकू केहर सिंह किधर से विलेन था, जो भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु के लिए उपवास रखता है, आंसू बहता है. उपकार का मलंग चाचा, जो हीरो को बचने में अपनी जान दे देता. क्या रियल लाइफ में ऐसा चाचा विलेन कहलाता  है? नहीं ना! तब प्राण का मलंग चाचा विलेन कैसे हो गया? क्या इसलिए कि इस किरदार को करने वाला अभिनेता सैकड़ों हिंदी फिल्मों में खलनायिकी के तेवर दिखा चुका था. यह तो एक  अच्छे अभिनेता की निशानी है कि इतना खूबसूरत आदमी हिंदी फिल्मों के विलेन को तेवर दे रहा था. लेकिन प्राण ने तो खानदान पिलपिली साहेब और हलाकू जैसी फिल्मों का हीरो बनाने के बाद जब खुद का चेहरा देखा तो उन्हें लगा कि वह हीरो के रूप में इतने खूबसूरत नहीं। वह तो हिंदी फिल्मों के विलेन को नए नए चहरे देना चाहते थे, नई ऊँचाइयाँ देना चाहते थे ताकि वह हर हिंदी फिल्म की ज़रुरत बन जाये. जिद्दी में देव आनंद के अपोजिट विलेन बन कर प्राण ने न केवल देव आनंद को हिट बनाया, फिल्म हिट हुई, बल्कि खुद प्राण भी बतौर विलेन सुपर डुपेर हिट हो गये. एक समय ऐसा था जब प्राण के लिए ख़ास तौर पर रोल  रखे और लिखाये जाते थे. फिल्म की कास्टिंग में ...एंड अबोव आल प्राण।
प्राण कितने अच्छे अभिनेता थे इसका अंदाज़ा इसी से लगाया जा सकता है कि उन्होंने बिना लाउड हुए अपने चरित्र को इतना दुष्ट बनाया कि विश्वजीत और जॉय मुख़र्जी जैसे मामूली अभिनय करने वाले बड़े हीरो बन गये. जब भी वह परदे पर आये दर्शक गालियों और तालियों से उनका स्वागत करते. क्या अभी तक कोई ऐसा विलेन हुआ है जिसे गालियों के साथ तालियाँ  भी मिले. लेकिन, रियल लाइफ में वह लोगों के कितने बड़े हीरो थे इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जब 1963 में रिलीज़ फिल्म फिर वही दिल लाया हूँ का क्लाइमेक्स पहलगाम में फिल्माया जा रहा था तो फिल्म के डायरेक्टर नासिर हुसैन ने रियलिटी के लिए स्थानीय लोगों को भीड़ के रूप में जूता लिया था. लेकिन, हुआ यह कि जब प्राण जॉय मुख़र्जी को मरते तो भीड़ तालियाँ बजाने लगती और उन्हें चीयर करने लगती. इस पर फिल्म के क्रू मेम्बर्स को भीड़ को समझाना पड़ा कि हीरो प्राण नहीं जॉय मुख़र्जी हैं, इसलिए जॉय के प्राण को मारने पर तालियाँ बजायी जाये। ऐसा था प्राण का हीरो विलेन। प्राण ही अकेले अभिनेता थे जिन्हें अमिताभ से ज्यादा फीस दी गयी. वह भी डॉन के दिनों में।
प्राण ने अपने जीवन में कई देशी विदेशी अवार्ड्स जीते। वह पद्मभूषण थे और दादा साहेब फालके अवार्ड्स विनर भी. उन्हें चार फिल्मफेयर अवार्ड्स भी मिले.
प्राण साहब बॉलीवुड के प्राण थे, हीरो के हीरो प्राण थे. उनके जाने के बाद भी हिंदी फिल्मों के दर्शक उन्हें अभिनय के स्कूल के रूप में याद करते रहेंगे। श्रद्धांजलि।





 

भाग मिल्खा बॉक्स ऑफिस पर भाग


किसी घटना, जीवित व्यक्ति या हस्ती पर फिल्म बनाने के अपने खतरे होते हैं . सबसे बड़ा खतरा होता है बॉक्स ऑफिस। क्या दर्शक ऎसी फ़िल्में स्वीकार करेंगे? बॉलीवुड फिल्म मेकर्स को यही सवाल सबसे ज्यादा परेशां करता है.
इसके बावजूद राकेश ओमप्रकाश  मेहरा ने उड़न सिख मिल्खा सिंह पर फिल्म बना कर यह खतरा उठाया है. किसी फिल्म की सफलता उसके कल्पनाशील निर्देशन के अलावा चुस्त लेखन पर भी निर्भर करती हैं, घटनाये कुछ इस तरह पिरोया जाना, ताकि दर्शक बंधा रहे, ऊबे नहीं और फिल्म का प्रभाव और आत्मा भी ख़त्म न हो. उड़न सिख पर भाग मिल्खा भाग बना कर राकेश ओमप्रकाश मेहरा ने यह खतरा उठाया है. इसमे वह काफी हद तक सफल भी रहे हैं, कैसे यह एक अलग बात है.
भाग मिल्खा भाग की कहानी शुरू होती है ओलंपिक्स की चार सौ मीटर दौड़ में भारत की पदकों की एक मात्र उम्मीद  मिल्खा सिंह के चौथे स्थान पर रहने से. इसी जगह पर राकेश ने यह जताने की कोशिश की है कि मिल्खा सिंह पूरी दौड़ में आगे रहने के बावजूद चौथे स्थान पर कैसे पिछड़ गये. इसके बाद फिल्म एक के बाद एक फ़्लैश बेक और फ़्लैश बेक में फ़्लैश बेक के साथ आगे बढ़ती जाती है. मिल्खा सिंह का बचपन, विभाजन में परिवार को खो देने का दर्द, सबसे तेज़ भागने की जिजीविषा और प्रारंभिक असफलता, सफलता और असफलता और क्लाइमेक्स की सफलता पर आकर फिल्म ख़त्म होती है. इस समय तक फिल्म तीन घंटा सात मिनट  हो जाती है. इसमे कोई शक नहीं कि मेहरा दर्शकों को बांधे रहते हैं . वह मिल्खा सिंह के जीवन से जुडी  घटनाओं को हलके फुल्के तरीके से दिखाते है। मसलन उनका सोनम कपूर से रोमांस बच्चो के साथ कोयला   चोरी करना दरोगा को चाकू मारना और पकड़ा जाना, फिर पैसों और अच्छे जीवन के लिए सेना से जुड़ना . राकेश यह सारे प्रसंग प्रभावशाली ढंग से रखते है। लेकिन न जाने क्यों वह पचास साथ के दशक की एक खिलाडी के जीवन पर फिल्म में  बहन के अपने पति के साथ सेक्स और मिल्खा सिंह के ऑस्ट्रेलिया की लड़की के साथ वाइल्ड सेक्स का मोह नहीं छोड़ पाते. शायद बॉक्स ऑफिस का भूत उन्हें काट रहा था. यह स्वाभाविक भी था. मिल्खा और उनकी बहन के यह रोमांस फिल्म में नहीं भी होते तो कोई फर्क नहीं पड़ना था. इन द्रश्यों को काट कर फिल्म की लम्बाई कम की जा सकती है. इससे फिल्म रफ़्तार वाली और दर्शकों को ज्यादा बाँध सकने वाली बन जायेगी.

भाग मिल्खा भाग का शीर्षक मिल्खा सिंह के पिता द्वारा स्क्रीन पर बोले गए आखिरी शब्दों पर रखा गया है, लेकिन या मिल्खा सिंह की जीवनी को उभारता है. हालाँकि फिल्म लिखते समय राकेश के समझौते साफ़ नज़र आते है। वह भारत के सफलतम धावक मिल्खा सिंह के जीवन को दिखाना चाहते थे, यह तो तय है. लेकिन बॉक्स ऑफिस पर सफल होने के लिए उन्होंने पाकिस्तान से जुड़े भारतीय सेंटीमेंट को उभारने की कोशिश की है. भारत के लिए अब्दुल खालिक पाकिस्तान से चुनौती था. उसे हराना उस समय के भारत के लिहाज़ से भी बड़ी बात थी. मिल्खा उसे एशियाई खेलों में हरा भी चुके थे. लेकिन, उसे फ्रेंडली गेम में पाकिस्तान में पाकिस्तान को हराना को अपनी फिल्म का क्लाइमेक्स बनाना, राकेश की पाकिस्तान को खलनायक बनाने की सफल कोशिश कहा जा सकता है. मिल्खा सिंह के लिए पाकिस्तान दुश्मन देश था. उसे उसी की ज़मीन में हराना मिल्खा सिंह के लिए बड़ी बात थी. लेकिन उसे फिल्म का क्लाइमेक्स बनाना फिल्म के लिए बड़ी बात नहीं हो सकती. मिल्खा सिंह का शीर्ष रोम ओलंपिक्स में चार सौ मीटर दौड़ में चौथे स्थान पर रहना था. राकेश इसे अपनी फिल्म का क्लाइमेक्स बना कर और इस सम्मानित खिलाडी को उसकी पराजय में विजय दिखा कर सच्ची श्रद्धांजलि दे सकते थे. लेकिन वह बॉक्स ऑफिस को श्रद्धांजलि देते नज़र आये. बहरहाल भारतीय जन मानस के लिहाज से और अँधेरे सिनेमाघर में  बैठे दर्शकों की तालियाँ बटोरने के लिहाज से राकेश का यह अंदाज़ सफल रहा है.
जहाँ तक अभिनय की बात है, यह फिल्म फरहान अख्तर और पवन मल्होत्रा की फिल्म है. फरहान अख्तर अपने एथेलीट लुक से मिल्खा सिंह होने का एहसास कराते है. वह मिल्खा सिंह की हर जद्दो जहद को कामयाबी से प्रस्तुत करते है। वह इमोशन में भी पीछे नहीं रहते. लेकिन, उन पर भारी पड़ते है मिल्खा सिंह के कोच गुरुदेव सिंह के रोले में पवन मल्होत्रा. पवन ने काबिले तारीफ अभिनय किया है. हालाँकि वह कई बार सिख की भूमिका में नज़र आये है. लेकिन हर बार लाउड लगे है. जिस प्रकार से गुरुदेव सिंह ने रियल मिल्खा सिंह को कालजयी मिल्खा सिंह बनाया वैसे पवन मल्होत्रा फरहान को सही मायनों में मिल्खा सिंह नज़र आने के लिए सुपोर्ट करते है. लेकिन, बॉलीवुड और हॉलीवुड के तमाम दिग्गज कलाकारों की मौजूदगी में उभर कर आते हैं  दिल्ली के मुंडे पारस रतन शारदा . मिल्खा सिंह के साथी सैनिक के रोले में दिल्ली का यह एमबीए पास लड़का फिल्म के हवन कुंड मस्तों का झुण्ड हम हवन करेंगे गीत में फरहान अख्तर के सामने भी वह अपने ज़बरदस्त और मस्त डांस के कारण छा जाते है। इंडियन कोच के रूप में क्रिकेटर युवराज सिंह के पिता योगराज सिंह, आर्मी में प्रशिक्षक  प्रकाश राज, मिल्खा सिंह का पहला प्यार सोनम कपूर, मिल्खा सिंह के पिता की भूमिका में आर्ट मालिक तथा मिल्खा की बड़ी बहन दिव्या दत्ता अपनी अपनी भूमिकाओं के साथ न्याय करते है।
जवाहर लाल नेहरु के रूप में दलीप ताहिल कुछ ख़ास नहीं . प्रसून जोशी के गीत तथा शंकर एहसान लोय का संगीत मस्त और माहौल के अनुरूप है. सिनेमेटोग्राफर बिनोद प्रधान का काम लाजवाब है. वह मिल्खा सिंह की सफलता असफलता को अपने कैमरा में दर्ज करते चले जाते है। फ्लैशबैक के द्रश्यों में बिनोद प्रधान ने कुछ मिनट तक ब्लैक एंड वाइट फिर रंगीन छायांकन कर दर्शकों को फ़्लैश बेक में कहानी सफलतपूर्वक समझा दी है. डॉली अहलुवालिया की प्रशंसा करनी चाहिए कि उन्होंने समय काल का ध्यान रख कर तमाम चरित्रों को उनके अनुरूप पोशाके पहनायी। फिल्म के एडिटर पी एस भारती अगर अपनी कैंची को तेज़ तर्रार रखते तो फिल्म का मज़ा ज्यादा होता।






 

Tuesday 9 July 2013

लुटेरा के कंटेंट से हार गयी संजय दत्त की स्टार पॉवर

 
हिंदी फिल्मों के दर्शकों के लिए कंटेंट इम्पोर्टेन्ट है या स्टार पॉवर ? इस सप्ताह रिलीज फिल्मों ने इसे एक बार फिर साबित कर दिया. ५ जुलाई को विक्रमादित्य मोटवाने निर्देशित और सोनाक्षी सिन्हा के साथ रणवीर कपूर की जोड़ी वाली फिल्म लुटेरा तथा संजय दत्त, प्रकाश राज और प्राची देसी के अभिनय वाली दक्षिण के डायरेक्टर के एस रविकुमार की डेब्यू फिल्म पुलिसगिरी  रिलीज हुई . अब तक सलमान खान अक्षय कुमार और अजय देवगन की फिल्मों की नायिका सोनाक्षी पहली बार रणवीर सिंह के साथ जोड़ी बना रही थी. यह फिल्म अपने प्रोमो से क्लास फिल्म भी लग रही थी. फिर भी दर्शकों को फिल्म के निर्देशक विक्रमादित्य मोटवाने  से काफी उम्मीदें थी. लेकिन, पुलिसगिरी की सारी  उम्मीदें अभिनेता संजय दत्त पर थीं, जो फिल्म की रिलीज से कुछ दिन पहले ही जेल भेजे गए थे. सहानुभूति लहर की उम्मीद किसे नहीं होती. लेकिन हुआ क्या?
बॉक्स ऑफिस पर पहले दिन ही दोनों फिल्मों को स्लो स्टार्ट मिला. पहले दिन लुटेरा ने 4. ५ करोड़ का कलेक्शन किय. जबकि पुलिसगिरी केवल २.७ ५  करोड़ ही कमा सकी. शनिवार को पुलिस गिरी में ड्राप हुआ। कमाए ढाई करोद. यह फिल्म सन्डे को तीन करोड़ का नेट करके , वीकेंड में कुल 8.2 5  का कलेक्शन ही कर सकी. दूसरी और लुटेरा ने अच्छे रिव्यु और माउथ पब्लिसिटी के जरिये छलांगे मारनी शुरू दी. शनिवार और रविवार इस फिल्म ने पचीस से तीस परसेंट तक की ऊंची छलांग मारी। शनिवार को लुटेरा का कलेक्शन साढ़े पांच करोड़ हो गया। रविवार को तो फिल्म ने सवा छह करोड़ का कलेक्शन कर संजय दत्त की फिल्म के मुकाबले दो गुने से ज्यादा यानि 19 करोड़ का बिज़नस कर डाला .
साफ तौर पर स्टार पॉवर दर्शकों पर काम नहीं कर सकी। पोलिसगिरी की कमज़ोर कहानी और निर्देशन ने संजय दत्त का कबाड़ा कर दिय. इस फिल्म को दबंग ३ का खिताब दे दिया गया. पोलिसगिरी का इतना बिज़नस भी सिंगल स्क्रीन थिएटर की वज़ह से ही हो सक. जबकि, कंटेंट के सहारे लुटेरा ने मल्टीप्लेक्स दर्शकों को अपना मुरीद बनाया ही. मेट्रो शहरों में इसने अच्छा बिज़नस किय. अलबत्ता, लुटेरा बिहार राजस्थान और उत्तर प्रदेश में बहुत ज्यादा पसंद नहीं की गयी.
साफ़ तौर पर लुटेरा के कंटेंट से हार गयी संजय दत्त की स्टार पॉवर।

Monday 8 July 2013

नहीं रहे दिलीप कुमार को डाइरेक्टर बनाने वाले सुधाकर बोकाड़े


दो दशक लंबा फिल्म निर्माता सुधाकर बोकाड़े का कैरियर 6 सेप्टेम्बर को दिल का दौरा पड़ने के बाद  यकायक खत्म हो गया । सुधाकर बोकाड़े ने दिव्या इंटरनेशनल की स्थापना सामाजिक संदेश देने वाली हिन्दी और क्षेत्रीय भाषा की फिल्मे बनाने के लिए की थी । उन्होने अपने समय के तमाम बड़े सितारों के साथ फिल्में बनायीं। लॉरेंस डीसूजा निर्देशित फिल्म साजन से उन्होने माधुरी दीक्षित के साथ सलमान खान और संजय दत्त की तिकड़ी को पेश किया। यह अपने समय की सुपर हिट रोमांटिक त्रिकोण फिल्म थी। उनकी पहली फिल्म दिलीप कुमार, गोविंदा और माधुरी दीक्षित के साथ फिल्म इज़्ज़तदार से की। जीतेंद्र और जया प्रदा के साथ फिल्म न्याय अन्याय, नाना पाटेकर और माधुरी दीक्षित के साथ प्रहार, जैकी श्रोफ, डिंपल कपाड़िया के साथ सपने साजन के, अजय देवगन, मनीषा कोइराला और करिश्मा कपूर के साथ धनवान, सुमीत सहगल, नीलम और विकास भल्ला के साथ सौदा, दिलीप कुमार और जैकी श्रोफ के साथ कलिंगा और सैफ आली खान, अतुल अग्निहोत्री, पूजा भट्ट और शीबा के साथ सनम तेरी कसम का निर्माण किया। उन्हे दिलीप कुमार और नाना पाटेकर को निर्देशक की कुर्सी पर बैठाने के श्रेय भी जाता है। उन्होने संगीतकार आदेश श्रीवास्तव, सिंगर सुखाविंदर, एक्शन डाइरेक्टर शाम कौशल और चीता यग्नेश शेट्टी, डांस डाइरेक्टर बीएच तरुणकुमार, रेखा चिन्नी प्रकाश, लेखिका रीमा राकेश नाथ और सिनेमैटोग्राफर कबीर लाल को मौका दिया। उनकी आखिरी दो फिल्में कलिंगा और सनम तेरी कसम विवादों में फंस कर या तो रिलीज नहीं हो सकी या फिर काफी लंबे समय बाद सीमित सिनेमा घरों में ही रिलीज हो सकी। कलिंगा के दौरान दिलीप कुमार के नखरों के कारण बड़े बजेट की फिल्म कलिंगा के निर्माण में काफी देरी होती चली गयी। इससे सुधाकर बोकाड़े को काफी नुकसान हुआ। उनके परिवार में दो बेटियाँ और एक बेटा था। ईश्वर उनकी आत्मा को शांति दे।

 

Sunday 7 July 2013

बैंग बैंग करेगी रितिक कैटरीना की जोड़ी !

रितिक रोशन ने अपनी अगले साल रिलीज होने वाली फिल्म बेंग बेंग का फ़र्स्ट लुक टिवीटर पर जारी किया है। इस पिक्चर में रितिक और कैटरीना  एक दूजे में खोये हुए नज़र आते हैं। सिद्धार्थ राज आनंद निर्देशित फिल्म बेंग बेंग हॉलीवुड की 2010 में रिलीज टॉम क्रुज़ और कैमरुन डियाज़ अभिनीत एक्शन कॉमेडी  फिल्म नाइट अँड डे का हिन्दी रीमेक है। इस फिल्म से मशहूर अभिनेता डैनी डेंग्ज़ोपा वापसी कर रहे हैं। फिलहाल, रितिक रोशन के दिमाग से क्लोट हटाने के लिए हुए माइनर ऑपरेशन के कारण इस फिल्म का तीसरा शैड्यूल कुछ समय के लिए टल गया है। लेकिन, यह फिल्म 1 मई 2014 को निश्चित रूप से रिलीज होगी। तो तैयार हो जाइए मई दिवस के दिन सिनेमा हाल में रितिक के साथ बेंग बेंग करने को ।