हॉलीवुड की फिल्मों में मानव के बजाय मशीन का प्रभाव बढ़ता जा रहा है. ख़ास तौर पर विज्ञान फंतासी फिल्मों में विश्व को संकट से बचने की लड़ाई जीतने में या तो मशीन आगे रहती है या मानव के साथ सक्रिय सहयोग करती है. कभी इन फिल्मों में तो मशीन ही हीरो बन जाती है. हॉलीवुड फिल्मों में स्पेशल इफेक्ट्स और कंप्यूटर ग्राफ़िक्स का प्रभाव बढ़ता जा रहा है. ब्लेड २ और हेलबॉय सीरीज की फिल्मों के निर्देशक गुइलेर्मो डेल टोरो की पिछले शुक्रवार रिलीज़ फिल्म पसिफ़िक रिम एक ऐसी ही फिल्म है. पसिफ़िक रिम २०२० की दुनिया की परिकल्पना है, जिसमे ड्रैगन कायजू शहरों पर हमला कर देते है. उनको रोकना किसी एक मानव के वश की बात नही। मानव युक्त मशीन ही यह काम कर सकती है. इस मशीन को एक मनुष्य का दिमाग भी संचालित नहीं कर सकता. इसके लिए दो दिमागों की ज़रुरत है. विश्व के सभी देशों के दिमाग मिल कर उस कायजू का नाश करते है। कैसे !
फिल्म में मशीन को महत्त्व दिया गया है. अन्दर से मानव द्वारा संचालित की जा रही मशीन है तो स्पेशल इफेक्ट्स, VFX, कंप्यूटर ग्राफ़िक्स, आदि नाना वैज्ञानिक अविष्कारों का उपयोग कर जैगर की ईजाद की गयी है. वही कायजू को मारने में सक्षम है. चूंकि फिल्म में मशीन का महत्व है, इसलिए अभिनय की ख़ास गुंजाईश नही. इसीलिए चार्ली हुन्नम, रिनको किकुची, इदरिस एल्बा, चार्ली डे और रोन पेर्लमन ने अभिनय की रस्म अदायगी कर दी है. १९० मिलियन डॉलर में बनी इस फिल्म की पटकथा ट्रेविस बेअचेम के साथ खुद गुइलेर्मो ने लिखी है. कयाजू और जैगर की फाइट थ्रिल पैदा करती है. लेकिन दर्शक ऐसी कल्पना से तालमेल नहीं बैठा पाते कि सात साल बाद विश्व पर किसी कायजू का हमला होगा और उनकी रक्षा मानव मशीन करेगी. किसी भी विज्ञानं फंतासी फिल्म में मशीन का होना स्वाभाविक है. लेकिन, क्लाइमेक्स में मशीन की मदद से मानव को ही जीतते दिखाया जाना चहिये. पसिफ़िक रिम में इसे कुछ इस तरह से दिखाया गया है कि आम दर्शक खुशी से चीख नहीं पड़ता . यही फिल्म की बड़ी असफलता है.
उच्च तकनीक के इस्तेमाल से बनायी गयी इस फिल्म में तकनीकी टीम का काम बहुत सराहनीय है. अगर इस टीम को अच्छी पटकथा मिली होती तो यह टीम एक सफल फिल्म दे पाती.
No comments:
Post a Comment