रफ्ता रफ्ता ही सही एक्टर रणदीप हूडा का करियर चलता चला जा रहा है। कॉकटेल, जिस्म २, किक, हाईवे और रंग रसिया जैसी फिल्में इसे रफ़्तार देती हैं। अब वह लम्बे समय बाद कॉनमैन के रूप में मुख्य भूमिका कर रहे हैं। वह सोच समझ कर चुनिंदा फ़िल्में करने के शौक़ीन हैं। 'मैं और चार्ल्स' में वह चार्ल्स शोभराज का कॉन किरदार कर रहे हैं। व्यस्ततता के कारण शादी नहीं की, लेकिन घोड़े पालने का शौक है। पेश है इसी शुक्रवार रिलीज़ होने जा रही फिल्म 'मैं और चार्ल्स' को लेकर उनसे हुई बातचीत के कुछ अंश -
क्या 'मैं और चार्ल्स' चार्ल्स शोभराज की बायोपिक है ?
- यह बायोपिक नहीं है।
१९८६ में दिल्ली में तिहाड़ जेल से एक आदमी १७५ लोगों को धराशायी कर उनके ऊपर से
चाबी लेकर फरार हो गया था। वह कैसे भागा, क्यों भागा, हमने इसी को दिखाया है। इसमें उसका पूरा जीवन नहीं दिखेगा। इसमें केवल
उसके २०-२५ साल के जीवन को दिखाया गया है। उसके जेल से भागने, पकड़े जाने और कोर्ट में पेशी के दौरान की कहानी
है। काफी अध्ययन करके वास्तविकता निकालने की कोशिश की गई है।
ऐसा व्यक्ति जो
पर्यटकों की हत्या करता है। क्या वह नफ़रत के लायक नहीं है ?
-अगर इस तरह से सोचें
तो वो नफरत के लायक हैं। फिल्म में भी हम उसके जुर्म को कोई अच्छा नहीं बताने जा
रहे हैं। लेकिन गौर करने की बात है कि उस पर जो भी हत्या और फ्राड के आरोप लगे,
वो पूरी तरह से साबित नहीं हो पाये। उसके
पास किसी भी देश का पासपोर्ट नहीं था। हिंदुस्तान के सामने उसको लेकर एक समस्या यह
भी थी कि उसे जेल से निकालने के बाद किस देश को सौंपा जाएगा। इस लिए उसे जेल में
ही रखा गया हो सकता है। नेपाल में भी एक पुराने प्लास्टिक के पैकेट और एक बुढ़े
पुलिस अधिकारी के साक्ष्य पर ज्यादा छानबीन किये बिना उसे दोषी ठहरा दिया गया।
आपने शोभराज के
किरदार को जी लिया है। आपके ख्याल से क्या उपेक्षा की कसक और महत्वपूर्ण होने के
लोभ का परिणाम है शोभराज ?
- हां हम कह सकते हैं।
उसके दिल में इन दोनों बातों को लेकर कसक थी। वो गरीबी में बहुत रहा। उसे
यूरोपियनों से चिढ़ थी। शोभराज बहुत ही मार्केटिंग वाला आदमी है। वो जो भी काम करता
था, उसे ग्लोरीफाई करके
करता था। वह न्यूज में बने रहने का आदी रहा। उसे हम सेलीब्रिटी क्राइम वाला
व्यक्ति कह सकते हैं। वो अपने बारे में छपी खबरों को पढ़कर सुकून महसूस करता था।
क्या आपको उससे हमदर्दी ?
-जी मैंने ये किरदार
किया है और अगर मुझमें उसके प्रति हमदर्दी नहीं होगी, तो मैं करुंगा कैसे। फिर मैं उससे जुड़ूंगा नहीं
तो अपने रोल के प्रति न्याय कैसे कर पाउंगा।
तो क्या आप चाहते
हैं कि उसे माफ कर दिया जाए ?
-देखिये अभी वो ७०-७५
साल का है। उस उम्र में बाहर ही जीने के लिए कितनी देखभाल की जरूरत होती है,
तो जेल में वो उम्र काटना तो बेहद ही
कष्टदायी है। ३०-३५ साल से वो जेल में है। १४ साल की उम्र कैद होती है। ऐसे में
मैं सोचता हूं कि उसकी सजा अब माफ कर देनी चाहिए।
अब आपके कंधे पर
फिल्म की जिम्मेदारी की अपेक्षा की जा रही है ?
-कंधे की जिम्मेदारी
निर्माता-निर्देशक की होती है। एक कलाकार
के तौर पर मैं हमेशा शिद्दत से काम करता रहा हूं। अगर मुझको लेकर जिम्मेदारी महसूस
की जा रही है, तो मैं इससे बहुत
खुश हूं। इससे मैं भागने वाला भी नहीं हूँ। अब मुझे ऐसी फिल्में भी मिल रही हैं ।
आप बड़े नाम के साथ काम करते हैं तो एक स्टार के तौर पर जीत होती है।
पीछे मुड़कर देखते
हैं तो ऐसा कुछ दिखता है , जिसे करने से आपकी जर्नी कुछ शॉर्टकट होती ?
-मुझे शुरू से ही
अपने कंधे पर बंदूक रखकर चलाने की ज्यादा जरूरत नहीं थी। अगर मैं दूसरों की पीठ पर
बैठकर उनके कंधे से बंदूक चलाया होता, तो थोड़ा जल्दी आगे आ जाता । पर ये जो संघर्ष है। मानसून वेडिंग जो
बाहर की फिल्म थी, के बाद ४-५ साल कोई
काम नहीं मिला। २००५ में सफर शुरू हुआ और अब तक १०सालों में बहुत मेहनत, लगन, भड़ास और निराशा को अपने अंदर दबाकर हर रोज जूझता रहा हूं। अगर ये सब
नहीं हुआ होता, तो शायद आज मैं ऐसा
नहीं बन पाता । अब कुछ बदलाव आया है। पहले ज्यादा मुंहफट, गुस्सैल और बेवकूफ भी था। लेकिन अब थोड़ा संजीदा
हो गया हूं।
कोई फिल्म साइन करने
से पहले क्या देखते हैं ?
-सबसे पहले ये देखता
हूं कि क्या ये लोग इस काम के स्टार्ट होने के बाद अगले ६ महीने तक झेल पाएंगे।
इनके साथ काम करके मेरी कला, मेरी पहचान किस तरफ जाएगी। फिर अपने सहायक से सलाह करके निर्णय लेता
हूं। मैं ये नहीं कहूंगा कि मैं ज्यादा चूजी हूं। क्योंकि जैसा काम करता हूं,
वैसी फिल्में कम बनती हैं। इसलिए जो काम मेरे पास आते हैं, उसी में से अपनी पसंद के आस-पास वाला काम कर लेता
हूं।
आपके प्रशंसक आपको
गंभीर कलाकार मानते हैं। क्या आप इस दबाव में ऐसा ही करते रहने वाले हैं या रिस्क
भी उठानां है ?
-अब तक निभाये मेरे
किरदार को अगर आप देखें तो वे कहीं ना कहीं रिस्क लेने वाले ही हैं। और मुझे लगता
है, जो मेरे प्रशंसक हैं,
उन्हें वही रिस्क अच्छा लगता है। मैं अपना
काम अपने प्रशंसकों की सोच को आगे रखकर नहीं करने वाला हूं। कहीं मेरी अपनी सोच है,
जिंदगी है, जिसे मैं हर हाल में बरकरार रखने वाला हूं।
क्योंकि अगर यही टूट गया, तो मुझमे बचेगा क्या। आप मेरी फिल्मों को देख लीजिए, आप मुझे किसी एक जोनर में नहीं रख पाएंगे।
सफलता के बावजूद
कुवाँरेपन का कारण क्या है ?
-मेरी शादी मेरे काम
से हो गयी है। मैं अपने काम में इतना बिजी रहता हूं कि दूसरी तरफ ध्यान ही नहीं
जाता कि निजी जिंदगी में क्या है, किसकी कमी है। यह बात दूसरे लोगों के लिए भले ही फ्रस्टेशन की हो,
लेकिन मैं नहीं चाहता कि कोई आए और मैं
अपना पागलपन उस पर थोप कर उसकी जिंदगी को मायूस कर दूं। इससे ये मत सोचिये की मेरी
लाइफ नीरस है। मैं बहुतों से मिलता हूं, घुड़सवारी करता हूं। मेरी पोलो की टीम है, जिसे चलाता हूं। कभी छुट्टी पर नहीं गया हूं ।
हमेशा काम में ही उलझा रहता हूं। मेरी यही रुचि है, मुझे इसी में मजा आता है।
कमर्शियल और आर्ट की
दीवार टूट रही है। क्या सहयोगी बन रहा है ?
-दुनिया बदल रही है।
आज इंटरनेट घर-घर पहुंच रहा है। दूसरे देशों और भाषाओं की फिल्में डब होके घर-घर
में देखी जा रही हैं। इससे लोगों का नये
विषयों से जुड़ाव हो रहा है। एक ही ढर्रे की फिल्मों से नया कुछ टेस्ट मिल रहा है।
मेरे जैसे कलाकार कमर्शियल और आर्ट के बीच की खाई को पाटने में ब्रिज बन रहे हैं।
मैं चाहता हूं कि इस दीवार को तोडऩे में मेरा काम सहयोगी बने।