शुजीत सरकार की ८ मई को रिलीज़ होने जा रही फिल्म 'पीकू' यूँ तो बाप-बेटी के रिश्तों की दास्ताँ हैं। लेकिन, पृष्ठभूमि में बंगाल है। नया पुराना कलकत्ता है। बंगला संस्कृति है। रविन्द्र संगीत है और बंगला से प्रभावित संवाद भी। यह तो ८ मई को ही पता चलेगा कि 'पीकू' बंगाल वास्तविकता के कितना करीब है और दर्शकों के दिलों के कितना करीब भी।
कभी हिंदी फिल्मों में बंगाली, बंगाली कल्चर और बांगला भाषा का प्रभाव साफ़ झलकता था। यह स्वभाविक भी था। बंगालियों ने ही हिंदी फिल्मों को रोपा, सींचा और खाद पानी दिया था। बांग्ला साहित्य पर बनी देवदास, परिणीता, आदि साहित्यिक कृतियों पर बनी फिल्मों ने हिंदी दर्शकों को आकर्षित किया। अशोक कुमार, सुचित्रा सेन, आदि जैसे कलाकार हिंदी फिल्मों के स्तम्भ थे। तमाम बंगाली निर्देशकों ने कल भी हिंदी फिल्मों को तराशा और आज भी तराश रहे हैं।
बंगाली फिल्म डायरेक्टर
बिमल रॉय, सत्यजित रे, असित सेन, शक्ति सामंत, सत्येन बोस, हृषिकेश मुख़र्जी, बासु चटर्जी और बासु भट्टाचार्य जैसी बंगाली प्रतिभाओं ने उत्कृष्ट हिंदी फ़िल्में बना कर हिंदी फिल्म इडस्ट्री को आज का बॉलीवुड बनाने में मदद की। बिमल रॉय की 'देवदास', 'परिणीता', 'बंदिनी', आदि फिल्मों ने हिंदी दर्शकों का उत्कृष्ट बंगला साहित्य से परिचय कराया। महिला शक्ति को बिना शोर शराबे के स्थापित करने की कोशिश की। सत्यजित रे की 'शतरंज के खिलाडी' और 'कफ़न' फ़िल्में हिंदी फिल्मों में मील का पत्थर हैं। असित सेन की फिल्म 'ममता', शक्ति सामंत की हावड़ा ब्रिज से लेकर अमर प्रेम तक, सत्येन बोस की दोस्ती, हृषिकेश मुख़र्जी कीकी मुसाफिर और अनाड़ी से लेकर चुपके चुपके, गोलमाल और रंग बिरंगी तक, बासु चटर्जी की छोटी सी बात, चितचोर और रजनीगंधा से लेकर एक रुका हुआ फैसला और कमला की मौत तक, बासु भट्टाचार्य की तीसरी कसम से लेकर पंचवटी और आस्था तक फिल्मों ने हिंदी फिल्मों को विश्व पटल पर स्थापित कर दिया। उनकी इस परिपाटी को अनुराग बासु (मर्डर, गैंगस्टर, लिफ़े…इन अ मेट्रो, बर्फी, आदि फ़िल्में), दिबाकर बनर्जी (खोसला का घोसला, ओये लकी लकी ओये, शंघाई और डिटेक्टिव ब्योमकेश बक्शी फ़िल्में), सुजॉय घोष (झंकार बीट्स और कहानी फ़िल्में), ओनिर (सॉरी भाई, बस एक पल, आई एम, आदि फ़िल्में), शूजित सरकार (यहाँ और विक्की डोनर फ़िल्में), अयान मुख़र्जी (वेकअप सिड और यह जवानी है दीवानी फ़िल्में), प्रदीप सरकार (परिणीता और मर्दानी फ़िल्में), ऋतुपर्णो घोष (द लास्ट लीअर, चोखेर बाली, आदि फ़िल्में), अपर्णा सेन (३६ चोरिंगी लेन, मिस्टर एंड मिसेज अय्यर, आदि फ़िल्में) और केन घोष (इश्क़ विश्क, फ़िदा और चांस पे डांस फ़िल्में) आगे बहुत आगे ले जा रहे हैं।
बांगला साहित्य पर फ़िल्में
बंगाली संस्कृति का हिंदी दर्शकों से पहला परिचय बांगला साहित्य पर बनी फिल्मों के ज़रिये ही हुआ। शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय की रचनाओं देवदास और परिणीता पर बार बार फ़िल्में बनाई गई। रबीन्द्रनाथ टैगोर की कृति काबुलीवाला, महाश्वेता देवी की कृति हज़ार चौरासी की माँ और रुदाली तथा झुम्पा लहरी की रचना द नेमसेक पर भी फ़िल्में बनाई गई। देवदास पर तो पीसी बरुआ से लेकर बिमल रॉय, संजय लीला भंसाली और अनुराग कश्यप तक ने फ़िल्में बनाई। देवदास के राजनीतिक संस्करण पर सुधीर मिश्रा द्वारा 'और देवदास' फिल्म बनाई जा रही है। कुछ अन्य साहित्यिक कृतियों पर बनी फिल्मों में हृषिकेश मुख़र्जी की मझली दीदी, बासु चटर्जी की स्वामी, केबी तिलक की छोटी बहु, बासु चटर्जी की अपने पराये और गुलजार की खुशबू ख़ास उल्लेखनीय हैं। गुलजार ने ही रबीन्द्रनाथ टैगोर की कृति पर लेकिन और ऋतुपर्णो घोष ने चोखेर बलि बनाई थी। १९३० के चटगांव विद्रोह पर मानिनी चटर्जी के उपन्यास डू एंड डाई पर आशुतोष गोवारिकर की खेले हम जी जान से भी उल्लेखनीय फिल्म थी।
बांगला पृष्ठभूमि और संस्कृति पर फ़िल्में
हिंदी दर्शकों को बंगाली पृष्ठभूमि और संस्कृति पर फ़िल्में बांगला साहित्य पर बनी हिंदी फिल्मों में ही देखने को मिली। शरतचन्द्र चट्टोपाध्याय और रबीन्द्रनाथ टैगोर जैसे बांगला लेखकों के उपन्यास और कहानी पर बनी परिणीता, देवदास, काबुलीवाला, आदि में बंगाल और वहाँ की संस्कृति के दर्शन होते थे। वैसे दुर्गा पूजा के दृश्य, नृत्य और गीत हिंदी फिल्मों के अभिन्न अंग रहे हैं। हाल ही में रिलीज़ कुछ हिंदी फ़िल्में परिणीता, बरफी, गुंडे, देवदास, लुटेरा, डिटेक्टिव ब्योमकेश बख्शी, आदि बांगला संस्कृति के गलत सही प्रदर्शन के कारण चर्चित हुई।
विद्या बालन का बंगाल कनेक्शन- विद्या बालन केरल से हैं। लेकिन, उनके
एक्टिंग करियर की शुरुआत गौतम हालदार की बंगला फिल्म भलो थेको से हुई थी।
उनकी तीन हिंदी फ़िल्में परिणीता, भूल भुलैया और कहानी बंगाली प्रभाव वाली
फ़िल्में थी।
बंगाली एक्ट्रेस
देविका रानी हिंदी फिल्मों की पहली इलीट एक्ट्रेस थी। सुचित्रा सेन, अपर्णा सेन, जया भादुड़ी (बच्चन), काजोल, कोंकणा सेनशर्मा, रानी मुख़र्जी, बिपाशा बासु, सुष्मिता सेन, नंदिता दास, कोएना मित्रा, रिया सेन और लिसा रे ऎसी बंगाली अभिनेत्रियां हैं, जिनका प्रभाव बॉलीवुड पर किसी न किसी रूप में पड़ा हैं। हालांकि,ज़्यादातर बंगाली अभिनेत्रियां अपनी सेक्स अपील के कारण चर्चित हुई। लेकिन, सुचित्रा सेन, शर्मीला टैगोर, काजोल, रानी मुख़र्जी, कोंकणा सेनशर्मा, आदि कुछ अभिनेत्रियां अपने संवेदनशील अभिनय के कारण जानी गई। मौशमी चटर्जी,राखी गुलजार, बिपाशा बासु हॉरर थ्रिलर फिल्मों की ज़रुरत बन चुकी हैं।
बंगाली एक्टर
प्रारंभिक फिल्मों के अशोक कुमार तक अभिनेताओं की हिंदी फिल्मों में पहचान बनी। लेकिन,सामान्य तौर पर पंजाबी अभिनेता ही हिंदी फिल्मों की ज़रुरत बने रहे। अलबत्ता, प्रदीप कुमार, जॉय मुख़र्जी, विश्वजीत, आदि बंगाली अभिनेताओं को म्यूजिकल रोमांस फिल्मों में सफलता मिली। मिथुन चक्रवर्ती बंगाली अभिनेताओं में सबसे ज़्यादा सफल रहे। हिंदी फिल्मों में असफल होने वाली बंगाली हस्तियों में उत्तम कुमार और सौमित्र चटर्जी का नाम उल्लेखनीय है। समित भज, असित बरन, विक्टर बनर्जी, आदि को भी असफलता मिली।
विद्या बालन का बंगाल कनेक्शन- विद्या बालन केरल से हैं। लेकिन, उनके
एक्टिंग करियर की शुरुआत गौतम हालदार की बंगला फिल्म भलो थेको से हुई थी।
उनकी तीन हिंदी फ़िल्में परिणीता, भूल भुलैया और कहानी बंगाली प्रभाव वाली
फ़िल्में थी।
कॉमेडी-ड्रामा फिल्म 'पीकू' की पृष्ठभूमि में बंगाल हैं। इसके डायरेक्टर शूजित सरकार भी बेंगाली हैं। लेकिन, फिल्म के तीन बंगाली चरित्र पीकू, भास्कर बनर्जी और राणा चौधरी करने वाले कलाकार दीपिका पादुकोण, अमिताभ बच्चन और इरफ़ान खान बंगाली नहीं। अमिताभ बच्चन की पत्नी और बहु बेंगाली हैं। अलबत्ता पीकू में मौशमी चटर्जी, जिशु सेनगुप्ता और अनिरुद्ध रॉय चौधरी जैसे बंगाली कलाकारों की भूमिकाएं ख़ास हैं। ८ मई को पता चलेगा की बांगला पृष्ठभूमि पर फिल्म 'पीकू' दर्शकों को कितना प्रभावित कर पाती है।
अल्पना कांडपाल