हिट फिल्म एम. एस धोनी : द अनटोल्ड स्टोरी में धोनी की गर्लफ्रेंड प्रियंका झा का किरदार करने वाली दिशा पाटनी जल्दी ही इंडो चाइनीस फिल्म कुंग फु योग में जैकी चैन की साथ स्क्रीन शेयर करते हुए नज़र आएँगी। फिल्म का कुछ हिस्सा आइलैंड में फिल्माया गया है। इसी की शूटिंग के दौरान दिशा और जैकी चैन लकी मैस्कॉट "ला एंड ज़इ " के साथ फन टाइम स्पेंट करते हुए नज़र आये। दिलचस्प बात यह है कि इन सॉफ्ट टॉयस से जैकी चैन को इतना लगाव है कि वे हमेशा इन्हें अपने साथ हर यात्रा में ले जाते है। फिल्म के एक एक्शन सीक्वेंस के लिए दिशा और जैकी चैन को अंडरवाटर शूट करना था। इस सीक्वन्स की शूटिंग आइलैंड पर की जा रही थी। वहां का तापमान माइनस पांच डिग्री था। मगर अपने प्रोफेशनल कमिटमेंट के कारण दिशा और जैकी ने इस सिक्वेंस को बिना किसी शिकवे शिकायत के शूट किया।
भारतीय भाषाओँ हिंदी, तेलुगु, तमिल, कन्नड़, मलयालम, पंजाबी, आदि की फिल्मो के बारे में जानकारी आवश्यक क्यों है ? हॉलीवुड की फिल्मों का भी बड़ा प्रभाव है. उस पर डिजिटल माध्यम ने मनोरंजन की दुनिया में क्रांति ला दी है. इसलिए इन सब के बारे में जानना आवश्यक है. फिल्म ही फिल्म इन सब की जानकारी देने का ऐसा ही एक प्रयास है.
Friday, 11 November 2016
कुंग फू योग में दिखी दिशा पाटनी और जैकी चैन की बॉन्डिंग
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मैं हिंदी भाषा में लिखता हूँ. मुझे लिखना बहुत पसंद है. विशेष रूप से हिंदी तथा भारतीय भाषाओँ की तथा हॉलीवुड की फिल्मों पर. टेलीविज़न पर, यदि कुछ विशेष हो. कविता कहानी कहना भी पसंद है.
Wednesday, 9 November 2016
कई शत्रुओं के घेरे में बैड बॉयज फॉर लाइफ !
कई शत्रुओं के घेरे में बैड बॉयज फॉर लाइफ !
पंद्रह साल बाद डिटेक्टिव माइक लोव्रे और डिटेक्टिव मार्कस बर्नेट की जोड़ी एक साथ ड्रग माफिया के खिलाफ अभियान चलाती नज़र आएगी। २००३ में आखिरी बार विल स्मिथ और मार्टिन लॉरेंस की जोड़ी इन किरदारों को फिल्म बैड बॉयज २ में करती नज़र आयी थी। माइकल बे निर्देशित १३० मिलियन डॉलर में बनी बैड बॉयज २ ने बॉक्स ऑफिस पर २७३ मिलियन डॉलर से अधिक का बिज़नस किया था। इस सफलता के बावजूद बैड बॉयज की तीसरी फिल्म बनाना किसी न किसी कारण से टलता रहा था। लेकिन, अब खबर है कि बात बन गई है। फिल्म का नाम बैड बॉयज फॉर लाइफ होगा। अभी फिल्म की स्क्रिप्ट को रिराइट किया जा रहा है। कारण यह है कि पिछली बैड बॉयज से १३ साल का अंतराल हो गया है। इसलिए, फिल्म किस टाइमज़ोन और पृष्ठभूमि पर होगी, यह तय होना है। अब तक की बैड बॉयज फिल्मों को सेंसर बोर्ड से पीजी १३ सर्टिफिकेट मिलता रहा है। डायरेक्टर जो कार्नहन मुतमईन हैं कि उनकी फिल्म को आर-रेटिंग मिलेगी। वह कहते हैं, "मैं बैड बॉयज फॉर लाइफ को पीजी-१३ रेटेड नहीं बनाना चाहता। दुनिया में ८०० मिलियन डॉलर का बिज़नस करने वाले डेडपूल आर- रेटेड फिल्म थी। नई वॉल्वरिन भी आर-रेटेड है। मेरा मानना है कि लोग पीजी १३ के बजाय आर-रेटेड फिल्म देखते हैं। बैड बॉयज फिल्मों की सफलता को पीजी-१३ रेटिंग की सफलता कहा जा सकता है। लेकिन, यहां आर- रेटिंग वाली मैट्रिक्स ट्राइलॉजी की सफलता को भूलना नहीं चाहिए।" इसका मतलब यह हुआ कि बैड बॉयज फॉर लाइफ में शत्रुओं से घिरे डिटेक्टिव लोव्रे और बर्नेट को भयंकर हिंसा के ज़रिये निबटना होगा। बैड बॉयज फॉर लाइफ १२ जनवरी २०१८ को रिलीज़ होगी और चौथी बैड बॉयज फिल्म ३ जुलाई २०१९ को रिलीज़ होगी।
पंद्रह साल बाद डिटेक्टिव माइक लोव्रे और डिटेक्टिव मार्कस बर्नेट की जोड़ी एक साथ ड्रग माफिया के खिलाफ अभियान चलाती नज़र आएगी। २००३ में आखिरी बार विल स्मिथ और मार्टिन लॉरेंस की जोड़ी इन किरदारों को फिल्म बैड बॉयज २ में करती नज़र आयी थी। माइकल बे निर्देशित १३० मिलियन डॉलर में बनी बैड बॉयज २ ने बॉक्स ऑफिस पर २७३ मिलियन डॉलर से अधिक का बिज़नस किया था। इस सफलता के बावजूद बैड बॉयज की तीसरी फिल्म बनाना किसी न किसी कारण से टलता रहा था। लेकिन, अब खबर है कि बात बन गई है। फिल्म का नाम बैड बॉयज फॉर लाइफ होगा। अभी फिल्म की स्क्रिप्ट को रिराइट किया जा रहा है। कारण यह है कि पिछली बैड बॉयज से १३ साल का अंतराल हो गया है। इसलिए, फिल्म किस टाइमज़ोन और पृष्ठभूमि पर होगी, यह तय होना है। अब तक की बैड बॉयज फिल्मों को सेंसर बोर्ड से पीजी १३ सर्टिफिकेट मिलता रहा है। डायरेक्टर जो कार्नहन मुतमईन हैं कि उनकी फिल्म को आर-रेटिंग मिलेगी। वह कहते हैं, "मैं बैड बॉयज फॉर लाइफ को पीजी-१३ रेटेड नहीं बनाना चाहता। दुनिया में ८०० मिलियन डॉलर का बिज़नस करने वाले डेडपूल आर- रेटेड फिल्म थी। नई वॉल्वरिन भी आर-रेटेड है। मेरा मानना है कि लोग पीजी १३ के बजाय आर-रेटेड फिल्म देखते हैं। बैड बॉयज फिल्मों की सफलता को पीजी-१३ रेटिंग की सफलता कहा जा सकता है। लेकिन, यहां आर- रेटिंग वाली मैट्रिक्स ट्राइलॉजी की सफलता को भूलना नहीं चाहिए।" इसका मतलब यह हुआ कि बैड बॉयज फॉर लाइफ में शत्रुओं से घिरे डिटेक्टिव लोव्रे और बर्नेट को भयंकर हिंसा के ज़रिये निबटना होगा। बैड बॉयज फॉर लाइफ १२ जनवरी २०१८ को रिलीज़ होगी और चौथी बैड बॉयज फिल्म ३ जुलाई २०१९ को रिलीज़ होगी।
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विंस्टन चर्चिल के 'डार्केस्ट ऑवर'
विंस्टन चर्चिल के 'डार्केस्ट ऑवर'
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान ग्रेट ब्रिटेन के प्रधान मंत्री रहे सर विंस्टन चर्चिल को टीवी सीरीज और फिल्मों में कई एक्टर जीवन्त कर चुके हैं। चर्चिल के किरदार को परदे पर पहली बार १९५१ में रिलीज़ फिल्म ऐन अमेरिकन इन पेरिस में डडले फील्ड मैलोन ने और इसके बाद द मैन हु नेवर वाज़ (१९५६) में पीटर सेलर्स ने, विंस्टन चर्चिल: द वालिण्ट इयर्स (१९६१) में रिचर्ड बर्टन ने, यंग विंस्टन (१९७१) में साइमन वार्ड ने, जेनी: लेडी रैन्डोल्फ चर्चिल (१९७४) में वारेन क्लार्क ने, चर्चिल एंड द जनरल्स (१९७९) में टिमोथी वेस्ट ने, विंस्टन चर्चिल: द विल्डरनेस इयर्स (१९८१) और वॉर एंड रिमेम्ब्रेन्स (१९८९) में रॉबर्ट हार्डी ने, द विंड्स ऑफ़ वॉर (१९८३) में होवार्ड लैंग ने, वर्ल्ड वॉर सेकंड: व्हेन लायंस रोअरड (१९९४) में बॉब हॉस्किंस ने, द गैदरिंग स्टॉर्म (२००२) में अल्बर्ट फिने ने चर्चिल के किरदार को किया। आगामी फिल्म चर्चिलस सीक्रेट (२०१६ में) माइकल गैमबोन सर विंस्टन चर्चिल के किरदार में नज़र आएंगे। अब चर्चिल का किरदार परदे पर करने वाले अल्बर्ट फिने, माइकल गैमबोन और ब्रायन कॉक्स जैसे ब्रितानी अभिनेताओं की कड़ी में गैरी ओल्डमैन का नाम भी जुड़ रहा है। वह जो राइट की सर विंस्टन चर्चिल के द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान के कठिन निर्णायक क्षणों पर फिल्म डार्केस्ट ऑवर में सर सिंस्टन चर्चिल कर किरदार करेंगे। जर्मनी की सेना बड़ी तेज़ी से आगे बढ़ती जा रही है। हिटलर पूरे यूरोप के लिए बड़ा खतरा बन गया है। चर्चिल को निर्णय लेना है कि हिटलर से शर्मनाक संधि करनी है या आत्मघाती साबित हो सकने वाला युद्ध लड़ना है। ऐसे कठिन समय में चर्चिल की साथी उनकी सिगार है। वह सिगार सुलगाते हैं और कहते हैं, "मैथ्यू ! मैं ऑप्शन बी चुनुंगा।" इस फिल्म की स्क्रिप्ट अन्थोनी मकर्टन ने लिखी है। फिल्म में चर्चिल की सहधर्मिणी क्लेमेंटाइन का किरदार क्रिस्टिन स्कोट थॉमस कर रही हैं। बेन मेंडेलसोन और जॉन हर्ट क्रमशः किंग जॉर्ज सिक्स्थ और भूतपूर्व प्रधानमंत्री नेविले चेम्बर्लेन का किरदार कर रहे हैं। फिल्म २४ नवम्बर को रिलीज़ होगी।
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान ग्रेट ब्रिटेन के प्रधान मंत्री रहे सर विंस्टन चर्चिल को टीवी सीरीज और फिल्मों में कई एक्टर जीवन्त कर चुके हैं। चर्चिल के किरदार को परदे पर पहली बार १९५१ में रिलीज़ फिल्म ऐन अमेरिकन इन पेरिस में डडले फील्ड मैलोन ने और इसके बाद द मैन हु नेवर वाज़ (१९५६) में पीटर सेलर्स ने, विंस्टन चर्चिल: द वालिण्ट इयर्स (१९६१) में रिचर्ड बर्टन ने, यंग विंस्टन (१९७१) में साइमन वार्ड ने, जेनी: लेडी रैन्डोल्फ चर्चिल (१९७४) में वारेन क्लार्क ने, चर्चिल एंड द जनरल्स (१९७९) में टिमोथी वेस्ट ने, विंस्टन चर्चिल: द विल्डरनेस इयर्स (१९८१) और वॉर एंड रिमेम्ब्रेन्स (१९८९) में रॉबर्ट हार्डी ने, द विंड्स ऑफ़ वॉर (१९८३) में होवार्ड लैंग ने, वर्ल्ड वॉर सेकंड: व्हेन लायंस रोअरड (१९९४) में बॉब हॉस्किंस ने, द गैदरिंग स्टॉर्म (२००२) में अल्बर्ट फिने ने चर्चिल के किरदार को किया। आगामी फिल्म चर्चिलस सीक्रेट (२०१६ में) माइकल गैमबोन सर विंस्टन चर्चिल के किरदार में नज़र आएंगे। अब चर्चिल का किरदार परदे पर करने वाले अल्बर्ट फिने, माइकल गैमबोन और ब्रायन कॉक्स जैसे ब्रितानी अभिनेताओं की कड़ी में गैरी ओल्डमैन का नाम भी जुड़ रहा है। वह जो राइट की सर विंस्टन चर्चिल के द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान के कठिन निर्णायक क्षणों पर फिल्म डार्केस्ट ऑवर में सर सिंस्टन चर्चिल कर किरदार करेंगे। जर्मनी की सेना बड़ी तेज़ी से आगे बढ़ती जा रही है। हिटलर पूरे यूरोप के लिए बड़ा खतरा बन गया है। चर्चिल को निर्णय लेना है कि हिटलर से शर्मनाक संधि करनी है या आत्मघाती साबित हो सकने वाला युद्ध लड़ना है। ऐसे कठिन समय में चर्चिल की साथी उनकी सिगार है। वह सिगार सुलगाते हैं और कहते हैं, "मैथ्यू ! मैं ऑप्शन बी चुनुंगा।" इस फिल्म की स्क्रिप्ट अन्थोनी मकर्टन ने लिखी है। फिल्म में चर्चिल की सहधर्मिणी क्लेमेंटाइन का किरदार क्रिस्टिन स्कोट थॉमस कर रही हैं। बेन मेंडेलसोन और जॉन हर्ट क्रमशः किंग जॉर्ज सिक्स्थ और भूतपूर्व प्रधानमंत्री नेविले चेम्बर्लेन का किरदार कर रहे हैं। फिल्म २४ नवम्बर को रिलीज़ होगी।
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Monday, 7 November 2016
सिर्फ आयरन मैन से पीछे है डॉक्टर स्ट्रेंज !
इस शुक्रवार रिलीज़ सुपर हीरो फिल्म डॉक्टर स्ट्रेंज मार्वेल स्टूडियोज की ऎसी १४वी फिल्म बन गई है, जिसका बॉक्स ऑफिस पर नंबर वन डेब्यू हुआ है। डॉक्टर स्ट्रेंज ने डॉमेस्टिक मार्किट में ८४.९ मिलियन डॉलर की ओपनिंग ले कर मार्वेल स्टूडियोज और डिज्नी के लिए टॉप का स्थान पाया है। इस प्रकार से, डॉक्टर स्ट्रेंज का पूरी दुनिया में ओपनिंग वीकेंड ३२५ मिलियन डॉलर का होगा। इस प्रकार से यह फिल्म मार्वेल की टॉप ओपनिंग करने वाली फिल्मों थॉर: द डार्क वर्ल्ड, अंट-मैन, कैप्टेन अमेरिका: द फर्स्ट एवेंजर, गार्डियंस ऑफ़ द गैलेक्सी और कैप्टेन अमेरिका: द विंटर सोल्जर के साथ शामिल हो गई है। मार्वेल की फिल्म थॉर: द डार्क वर्ल्ड भी नवम्बर में रिलीज़ हुई थी। द डार्क वर्ल्ड की डॉमेस्टिक ओपनिंग ८५.७३ मिलियन डॉलर की हुई थी। लेकिन, यह ओपनिंग ३८४१ थिएटरों में रिलीज़ के बाद मिली थी। जबकि, डॉक्टर स्ट्रेंज ३८८२ थिएटरों में रिलीज़ की गई है। डॉक्टर स्ट्रेंज के साथ रिलीज़ ड्रीमवर्क की एनीमेशन फिल्म ट्रॉल ४५.६ मिलियन डॉलर और लायंसगेट की मेल गिब्सन निर्देशित फिल्म हैकसॉ रिज १४.७ मिलियन डॉलर की ओपनिंग लेकर क्रमशः दूसरे और तीसरे स्थान पर काबिज़ हैं। मेल गिब्सन निर्देशित पिछली फिल्म एपोकैलिप्टो को भी इतनी ही ओपनिंग मिली थी। सिंगल करैक्टर फिल्म को मिली बड़ी ओपनिंग के लिहाज़ से डॉक्टर स्ट्रेंज पिछले साल रिलीज़ कैप्टेन अमेरिका: द फर्स्ट अवेंजर और थॉर तथा २००८ में रिलीज़ अंट-मैन और द इनक्रेडिबल हल्क से काफी आगे हैं। इन चारों फिल्मों ने क्रमशः ६५ मिलियन डॉलर, ६६ मिलियन डॉलर, ५७ मिलियन डॉलर और ५५.४ मिलियन डॉलर की ओपनिंग ली थी। डॉक्टर स्ट्रेंज से सोलो हीरो फिल्म आयरन मैन ही आगे हैं, जिसने ९८.६ मिलियन डॉलर की बड़ी ओपनिंग ली थी।
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मैं हिंदी भाषा में लिखता हूँ. मुझे लिखना बहुत पसंद है. विशेष रूप से हिंदी तथा भारतीय भाषाओँ की तथा हॉलीवुड की फिल्मों पर. टेलीविज़न पर, यदि कुछ विशेष हो. कविता कहानी कहना भी पसंद है.
कुणाल और तारा ने कहा- हम दोनों होंगे कामयाब !
कुणाल रॉय कपूर और तारा अलीशा बेरी |
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Sunday, 6 November 2016
अर्नाल्ड श्वार्ज़नेगर के साथ सिल्वेस्टर स्टेलॉन का एस्केप प्लान २
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.मंदी की चपेट में चीन का बॉक्स ऑफिस
चीनी बॉक्स ऑफिस को मंदी ने हिला कर रख दिया है। फ़िल्में उतना बिज़नस नहीं कर पा रही जितनी अपेक्षा की जा रही थी। इसलिए सरकार ने चीन के फिल्म उद्योग को संरक्षित करने के लिए हॉलीवुड फिल्मों का कोटा तय करने की अपनी नीति में थोड़ी ढील दे दी लगती है। नवम्बर और दिसम्बर के महीने में ज्यादा हॉलीवुड फ़िल्में रिलीज़ होंगी। ट्वेंटिएथ सेंचुरी फॉक्स की फिल्म कीपिंग अप विथ द जोनेसेस और मिस पेरेग्रींस होम फॉर पेचुलिअर पेक्यूलियर चिल्ड्रन को ८ नवम्बर और २ दिसम्बर को रिलीज़ की अनुमति दे दी गई है। इसके अलावा २३ नवम्बर को पैरामाउंट की अलाइड, २५ नवम्बर को डिज्नी की मोआना और २९ नवम्बर को वार्नर ब्रदर्स की सुली भी रिलीज़ होनी हैं। आखिरी समय में हॉलीवुड फिल्मों को हरी झंडी दिखाने का नतीजा है कि डिज्नी की डॉक्टर्स स्ट्रेंज, हैरी पॉटर स्पिन ऑफ फैंटास्टिक बीस्ट्स एंड वेयर टू फाइंड देम और आंग ली की बिली लिंस लॉन्ग हाफटाइम वाक के साथ कुल आठ हॉलीवुड फ़िल्में नवम्बर में रिलीज़ होने जा रही हैं। चीन रेवेन्यू शेयरिंग के आधार पर ३४ फिल्मों का आयात करता है। अब यह आंकड़ा चार ज़्यादा हो गया है। इस आधार पर हॉलीवुड फ़िल्में बॉक्स ऑफिस पर रेवेन्यू का २५ परसेंट ले जाती हैं। फ्लैट फ्री आधार पर चीन के वितरक एकमुश्त आधार पर फिल्म ले कर रिलीज़ करते हैं। इस प्रकार से ३०-३५ फ़िल्में रिलीज़ हुआ करती हैं। इस साल चीन का बॉक्स ऑफिस आंकड़ा पिछले साल २३ अक्टूबर तक ८.९ बिलियन डॉलर के मुकाबले इस साल ५.६ बिलियन डॉलर ही रहा है। इस समय के आंकड़ों के लिहाज़ से चीन इस साल ६.५ बिलियन डॉलर कम कलेक्शन करेगा।
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Saturday, 5 November 2016
दादा शम्मी कपूर के गीत पर पोता रणबीर कपूर
१९६७ में रिलीज़ और शक्ति सामंत निर्देशित फिल्म 'ऐन इवनिंग इन पेरिस' में शम्मी कपूर और शर्मीला टैगोर पर फिल्माया गया एक गीत 'ऐसा मौका फिर कहाँ मिलेगा' करण जौहर ने अपनी फिल्म 'ऐ दिल है मुश्किल' में शम्मी कपूर के पोते रणबीर कपूर और अनुष्का शर्मा पर फिल्माया था। लेकिन, बाद में इसे मूल फिल्म से हटा दिया गया। पहले सुनिए इस गीत को-
अब ऐन इवनिंग इन पेरिस के इस गीत को शम्मी कपूर और शर्मीला टैगोर पर फिल्माया गया देखिये और सुनिए. कितने बकवास लग रहे हैं 'ऐ दिल है मुश्किल' के रणबीर कपूर और अनुष्का शर्मा. यही फर्क है पीएल राज और आज के डांस डाइरेक्टरों का।
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Wednesday, 2 November 2016
परदे पर उतरेगी मॉर्टल एंजिन्स
द लार्ड ऑफ़ द रिंग्स सीरीज की फिल्मों के बाद जब निर्देशक पीटर जैक्सन द हॉबिट सीरीज की फिल्मों पर काम कर रहे थे, उसी दौरान उन्होंने फिलिप रीव के भविष्य में झांकते चार उपन्यासों की सीरीज में पहले उपन्यास मॉर्टल एंजिन्स पर फिल्म पर काम करना शुरू कर दिया था । लेकिन, वह इस उपन्यास पर फिल्म बनाने का पहला गंभीर प्रयास द हॉबिट सीरीज की आखिरी फिल्म द बैटल ऑफ़ द फाइव आर्मीज के बाद ही शुरू कर सके। कोई आठ महीने पहले उन्होंने मॉर्टल एंजिन्स की स्क्रिप्ट पर काम पूरा कर लिया था। उपन्यास की कहानी भविष्य के इंग्लैंड की पृष्ठभूमि पर है, जो 'सिक्स मिनट वॉर' से नष्टप्राय है। पीटर जैक्सन इस फिल्म को यूनिवर्सल पिक्चर्स और मीडिया राइट्स कैपिटल के साथ मिल कर बना रहे हैं। इस फिल्म के निर्माण में लार्ड ऑफ़ द रिंग्स और द हॉबिट के फ्रान वाल्श और फिलिप बॉयेंस भी सहयोग कर रहे हैं। अलबत्ता, इस फिल्म का निर्देशन पीटर जैक्सन नहीं कर रहे। इस फिल्म से पीटर जैक्सन के सहयोगी क्रिस्चियन रिवर्स का बतौर निर्देशक डेब्यू हो रहा है। इस फिल्म की शूटिंग अगले साल के वसंत से न्यूज़ीलैण्ड में शुरू हो जाएगी। मोर्टल एंजिन्स का पटकथा रूपांतरण फ्रान वाल्श और फिलिपा बॉयेंस के साथ पीटर जैक्सन कर रहे हैं। पहला उपन्यास मॉर्टल एंजिन्स २००१ में प्रकाशित हुआ था। इसके बाद २००३ में प्रिडेटर'स गोल्ड, २००५ में इनफेरनल डिवाइसेज और २००६ में अ डार्कलिंग प्लेन प्रकाशित हुए।
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इंडियाना जोंस ५ से नहीं जुड़ेंगे जॉर्ज लुकास
काल्पनिक चरित्र डॉक्टर हेनरी 'इंडियाना' जोंस पर पांचवी फिल्म पर काम शुरू हो चुका है। पहली बार १९८१ में रेडर्स ऑफ़ द लॉस्ट आर्क के साथ हैरिसन फोर्ड डॉक्टर इंडियाना जोंस के अवतार में परदे पर उतरे। इस फिल्म के बाद, हैरिसन फोर्ड ने इंडियाना जोंस सीरीज की शेष तीन फिल्मों टेम्पल ऑफ़ डूम (१९८४), द लास्ट क्रूसेड और किंगडम ऑफ़ द क्रिस्टल स्कल में भी इस किरदार को किया। इन चारों फिल्मों की कहानी इंडियाना जोंस के रचयिता जॉर्ज लुकास ने ही लिखी थी। चूंकि, जॉर्ज लुकास ही इंडियाना जोंस के क्रिएटर थे, इसलिए उनका विज़न इन फिल्मों में साफ़ नज़र आता था। हालाँकि, इन चारों फिल्मों का निर्देशन स्टीवन स्पीलबर्ग ने किया था। इस पांचवी फिल्म में जॉर्ज लुकास का कोई योगदान नहीं होगा। दरअसल, जॉर्ज लुकास को फिल्म किंगडम ऑफ़ द क्रिस्टल स्कल में पचास के दशक के सस्ते एक्शन और कॉमेडी की घालमेल के लिए जिम्मेदार माना जाता है, जिसके कारण चौथी इंडियाना जोंस फिल्म विफल हो गई। इंडियन जोंस सीरीज की चार फिल्मों के निर्माण में २७९ मिलियन डॉलर खर्च हुए थे। वर्ल्डवाइड बॉक्स ऑफिस पर यह फ़िल्में १.९८७ बिलियन का कलेक्शन कर चुकी है। इंडियाना जोन्स ५ को डेविड कोएप लिख रहे हैं। इसलिए, इस फिल्म में जॉर्ज लुकास का प्रभाव नदारद होगा। मगर, इस पांचवी फिल्म के डॉक्टर हेनरी 'इंडियाना' जोंस हैरिसन फोर्ड ही होंगे और फिल्म का निर्देशन स्टीवन स्पीलबर्ग ही करेंगे। यह फिल्म १९ जुलाई २०१९ को रिलीज़ होगी।
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द फ़्लैश ने खोया डायरेक्टर
हॉलीवुड में क्रिएटिव डिफरेंस की वजह से डाइरेक्टरों के बाहर होने का सिलसिला जारी है। अब इस क्रिएटिव डिफरेंस का नया शिकार हुए हैं रिक फामूयिमा बने हैं। वह डीसी फिल्म्स की फिल्म द फ़्लैश से बाहर हो गए हैं। इस फिल्म के वह दूसरे डायरेक्टर हैं, जो क्रिएटिव डिफरेंसेज़ के कारण फिल्म छोड़ने को मज़बूर हुए हैं। फामूयिमा से पहले सेथ ग्राहम-स्मिथ को क्रिएटिव डिफरेंस की वजह से द फ़्लैश छोडनी पड़ी थी। दरअसल, वार्नर ब्रदर्स और डीसी फिल्म्स को फामूयिमा का कहानी कहने के तरीका पसंद नहीं आया था। क्रिस्टोफर मिलर और फिल लार्ड की कहानी की स्क्रिप्ट सेथ ग्राहम-स्मिथ ने लिखी है। एज्रा मिलर, किएरसे क्लेमॉन्स, बिली क्रूडप और रे फिशर की मुख्य भूमिका वाली फिल्म द फ़्लैश कहानी है पुलिस साइंटिस्ट बैरी एलन की, जो साइंस लैब में एक केमिकल की ट्रे पर बिजली गिरने से, भरे केमिकल से भीग जाता है। इस घटना के बाद बैरी बिजली की रफ़्तार से भाग सकता है। वह अब सेंट्रल सिटी के लोगों को द फ़्लैश बन कर बचाने लगता है। द फ़्लैश १८ मार्च २०१८ को रिलीज़ होगी। दर्शक द फ़्लैश करैक्टर को फिल्म बैटमैन वर्सस सुपरमैन : डौन ऑफ़ जस्टिस में एज्रा मिलर के कैमिया में देख चुके हैं। अब यह करैक्टर १७ नवम्बर २०१७ को जैक स्नायडर की फिल्म जस्टिस लीग में भी नज़र आएगा। इस रोल को भी एज्रा मिलर ही कर रहे हैं।
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सीक्वल जो एज ऑफ़ टुमारो का प्रीकुएल भी होगी!
टॉम क्रूज़ और एमिली ब्लंट की २०१४ में रिलीज़ फिल्म 'एज ऑफ़ टुमारो' को इसकी टैग लाइन लिव. डाई. रिपीट से ज्यादा पहचान मिली थी, ने बॉक्स ऑफिस पर ३७० मिलियन डॉलर से अधिक का कारोबार किया था। हालाँकि, एज ऑफ़ टुमारो ने अपनी लागत १७८ मिलियन डॉलर के मुक़ाबले ख़ास बिज़नस नहीं किया था। खुद अभिनेता टॉम क्रूज़ भी फिल्म के सीक्वल के पक्ष में नहीं थे। लेकिन, इस फिल्म ने विज्ञानं फंतासी फिल्म के दर्शकों का दिल जीत लिया था। अब इस फिल्म का सीक्वल बनाये जाने की खबर है। एज ऑफ़ टुमारो का सीक्वल फिल्म के नायक टॉम क्रूज़ के आईडिया पर ही है। एज ऑफ़ टुमारो का डायरेक्शन डॉग लीमन ही करेंगे। वार्नर ब्रदर्स के इस सीक्वल को विज्ञान फंतासी फिल्म का गेम चेंजर बताया जा रहा है। इस सीक्वल फिल्म को एज ऑफ़ टुमारो का प्रीकुएल भी बताया जा रहा है। डॉग का दावा है कि इस फिल्म की कहानी पहली फिल्म की कहानी से अधिक प्रभावशाली है। इस फिल्म में एक्शन और साइंस फिक्शन की कुछ ऎसी मिक्सिंग की जाएगी कि आगे बनाने वाली फिल्मों के लिए यह उदाहरण फिल्म बन जाएगी। फिलहाल, अभी इस फिल्म की रिलीज़ डेट तय नहीं हुई है। इसलिए, फिल्म की अन्य सूचनाओं का ही मज़ा उठाना होगा।
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Tom Criuise
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Wednesday, 26 October 2016
खेल फिल्मों को चाहिए बड़े सितारे और चुस्त स्क्रिप्ट !
श्रेष्ठ बाल फिल्म
का राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार जीत चुकी डायरेक्टर सौमेंद्र पढ़ी की फिल्म बुधिया
सिंह बोर्न टू रन इस शुक्रवार रिलीज़ हो रही है। उड़ीसा के वंडर बॉय के नाम से
मशहूर बुधिया सिंह के जीवन पर बुधिया के पांच साल की उम्र में ४८ बार
मैराथन में दौड़ने, उसके कोच के साथ जुड़े विवादों के बाद बुधिया का करियर ख़त्म होने
की इस दास्ताँ में कई घुमाव और उतार चढ़ाव हैं, जो एक दिलचस्प फिल्म के लिए अच्छा
कथानक साबित हो सकते हैं। लेकिन, इस फिल्म के साथ कोई बड़ा सितारा नहीं। मनोज
बाजपेई बुधिया के कोच विरंची दास की भूमिका में हैं, लेकिन उनकी पहचान मसाला
फिल्मों के हीरो से ज्यादा रीयलिस्टिक फिल्मों के हीरो वाली है। ऐसे हीरो फिल्म
नहीं चलवा सकते। हिंदी की खेल फिल्मों का इतिहास गवाह है कि बॉलीवुड ने सुल्तान
तक कई कथित खेल फ़िल्में बनाई हैं। इनमे क्रिकेट के अलावा हॉकी, एथलेटिक्स, फुटबॉल
और बॉक्सिंग पर फ़िल्में शामिल हैं। लेकिन, ज़्यादातर खराब स्क्रिप्टिंग और बड़े सितारों
का शिकार हो गई।
क्रिकेट में फ्लॉप सुपर स्टार !
हिंदी में क्रिकेट पर बहुत सी फ़िल्में बनाई गई। इन फिल्मों में नए या कम पहचाने चेहरों से लेकर सुपर स्टार्स ने भी अभिनय किया। लेकिन, इनमे से कई फ़िल्में औंधे मुंह गिरी। बहुत से सुपर स्टार्स को क्रिकेट कतई रास नहीं आया। २००१ में लगान जैसी हिट फिल्म देने वाले आमिर खान ने अपने करियर की शुरुआत में ही क्रिकेट पर फिल्म अव्वल नंबर में अभिनय किया था। देव आनंद द्वारा निर्देशित फिल्म में आमिर खान ने उभरते क्रिकेटर की भूमिका की थी। मगर, १९९० में रिलीज़ देव आनंद की लिखी यह फिल्म कमज़ोर कथानक के कारण बुरी तरह से असफल हुई। ज़ाहिर है कि उस समय तक आमिर खान सुपर स्टार नहीं बने थे, लेकिन ख़राब कहानी पर क्रिकेट फिल्म से कोई सुपर स्टार भी असफल हो सकता है, इसका उदाहरण निखिल आडवानी की अक्षय कुमार और अनुष्का शर्मा अभिनीत फिल्म पटियाला हाउस हैं। यह फिल्म इंग्लैंड के गेंदबाज़ मोंटी पनेसर के करियर से प्रेरित फिल्म होने के बावजूद दर्शकों को प्रभावित नहीं कर सकी। रवीना टंडन ने २००३ में बतौर प्रोडूसर पहली फिल्म क्रिकेट पर स्टंप्ड बनाई थी। उन्होंने इस फिल्म में अपने रसूख का इस्तेमाल करते हुए सलमान खान और सचिन तेंदुलकर का स्पेशल अपीयरेंस भी करवाया था। लेकिन, यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर स्टंप आउट हो गई। लव स्टोरी (१९८१) से सुपर स्टार साबित हो रहे कुमार गौरव ने १९८३ में मोहन कुमार की क्रिकेट फिल्म आल राउंडर में मुख्य किरदार किया था। लेकिन, यह फिल्म भी बुरी तरह से पिटी।
हिंदी में क्रिकेट पर बहुत सी फ़िल्में बनाई गई। इन फिल्मों में नए या कम पहचाने चेहरों से लेकर सुपर स्टार्स ने भी अभिनय किया। लेकिन, इनमे से कई फ़िल्में औंधे मुंह गिरी। बहुत से सुपर स्टार्स को क्रिकेट कतई रास नहीं आया। २००१ में लगान जैसी हिट फिल्म देने वाले आमिर खान ने अपने करियर की शुरुआत में ही क्रिकेट पर फिल्म अव्वल नंबर में अभिनय किया था। देव आनंद द्वारा निर्देशित फिल्म में आमिर खान ने उभरते क्रिकेटर की भूमिका की थी। मगर, १९९० में रिलीज़ देव आनंद की लिखी यह फिल्म कमज़ोर कथानक के कारण बुरी तरह से असफल हुई। ज़ाहिर है कि उस समय तक आमिर खान सुपर स्टार नहीं बने थे, लेकिन ख़राब कहानी पर क्रिकेट फिल्म से कोई सुपर स्टार भी असफल हो सकता है, इसका उदाहरण निखिल आडवानी की अक्षय कुमार और अनुष्का शर्मा अभिनीत फिल्म पटियाला हाउस हैं। यह फिल्म इंग्लैंड के गेंदबाज़ मोंटी पनेसर के करियर से प्रेरित फिल्म होने के बावजूद दर्शकों को प्रभावित नहीं कर सकी। रवीना टंडन ने २००३ में बतौर प्रोडूसर पहली फिल्म क्रिकेट पर स्टंप्ड बनाई थी। उन्होंने इस फिल्म में अपने रसूख का इस्तेमाल करते हुए सलमान खान और सचिन तेंदुलकर का स्पेशल अपीयरेंस भी करवाया था। लेकिन, यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर स्टंप आउट हो गई। लव स्टोरी (१९८१) से सुपर स्टार साबित हो रहे कुमार गौरव ने १९८३ में मोहन कुमार की क्रिकेट फिल्म आल राउंडर में मुख्य किरदार किया था। लेकिन, यह फिल्म भी बुरी तरह से पिटी।
कुछ दूसरी फ्लॉप फ़िल्में
ऐसे में, जबकि सुपर
स्टार्स को क्रिकेट रास नहीं आ रहा है तो बाकी सितारों की क्या बिसात ! किटू सलूजा
ने राहुल बोस के साथ तारे ज़मीन पर के बाल कलाकार जईन खान को लेकर क्रिकेट पर फिल्म
चेन कुली की मेन कुली का निर्माण किया था। हॉलीवुड फिल्म लाइक माइक पर आधारित यह
फिल्म एक तेरह साल के लडके की कहानी थी, जिसके हाथ कपिल देव का बैट लग जाता है। इसके बाद उसका करियर नाटकीय
मोड़ लेता है। मंदिरा बेदी ने फिल्म
मीराबाई नॉट आउट में क्रिकेट की दीवानी प्रशंसक की भूमिका की थी। इस फिल्म में
अनिल कुंबले का कैमिया हुआ था। से सलाम क्रिकेट के दीवाने चार युवकों की कहानी थी,
जो क्रिकेट खेलना चाहते थे। लेकिन,
उनका स्कूल कुश्ती पर केन्द्रित था। हैटट्रिक फिल्म एक विवाहित जोड़े की कहानी थी, जिनका वैवाहिक जीवन पति के क्रिकेट क्रेजी होने
के कारण खतरे में पड़ जाता है। अभिनेता हरमन बवेजा ने भी एक क्रिकेट फिल्म
विक्ट्री में अभिनय किया था। मैच फिक्सिंग पर वर्ल्ड कप २०११ टाइटल से एक फिल्म
रिलीज़ हुई थी। कम पहचाने चेहरों वाली यह फ़िल्में बॉक्स ऑफिस पर औंधे मुंह गिरी। अभी क्रिकेट टीम के भूतपूर्व कैप्टेन मोहम्मद अज़हरुद्दीन पर फिल्म अज़हर फ्लॉप हुई है।
क्रिकेट पर सफल
फ़िल्में
कब बजट और मंझोले
सितारों के साथ क्रिकेट पर कुछ सफल फ़िल्में भी बनी। निर्माता विधु विनोद चोपड़ा की
राजेश मापुस्कर लिखित और निर्देशित फिल्म फेरारी की सवारी एक पारसी पिता और उसकी
अपने बेटे का लॉर्ड्स में क्रिकेट खेलने का सपना पूरा कराने की कहानी थी। शर्मन
जोशी ने इस फिल्म में पिता की भूमिका की थी। फिल्म को समीक्षकों द्वारा भी
सराहा गया। निर्माता सुभाष घई की फिल्म इक़बाल एक गूंगे बहरे लडके इकबाल के
क्रिकेट खेलने का सपना पूरा करने की कहानी थी। इस फिल्म में श्रेयस तलपडे ने
गूंगे-बहरे इक़बाल और नसीरुद्दीन शाह ने उसके कोच की भूमिका की थी। अपने कलाकारों
के प्रभावशाली अभिनय के कारण इक़बाल दर्शकों को आकर्षित कर पाने में कामयाब हुई थी। इस फिल्म के निर्देशक नागेश कुकनूर थे। इमरान हाशमी की फिल्म जन्नत और जन्नत २
क्रिकेट के खेल में सट्टेबाजी पर फ़िल्में थी। अपने गीत संगीत के कारण जन्नत को
अच्छी सफलता मिली थी। लेकिन, जन्नत २ इतनी सफल नहीं हो सकी थी। क्रिकेट और साम्प्रदायिकता पर
अभिषेक कपूर निर्देशित सुशांत सिंह राजपूत अभिनीत फिल्म काई पो चे को बढ़िया सफलता
मिली थी।
फुटबॉल पर फ़िल्में
हिंदी में खेल फिल्मो
के लिहाज़ से प्रकाश झा की डेब्यू फिल्म हिप हिप हुर्रे उल्लेखनीय है। इस फिल्म
में कॉलेज में फुटबॉल और फुटबॉल में राजनीति को दिखाया गया था। राज किरण ने मुख्य
भूमिका की थी। यह पहली फिल्म थी, जिसने हिंदी फिल्म निर्माताओं को खेल फ़िल्में
बनाने की दिशा में सोचने को मज़बूर कर दिया था। २००७ में यूटीवी मोशन पिक्चर्स ने
फिल्म गोल या दे दना दन गोल का निर्माण किया था। यूके में दक्षिण एशियाई समुदाय
के फुटबॉल खिलाड़ियों द्वारा प्रोफेशनल फुटबॉल में अपना सिक्का जमाने के प्रयास पर
इस फिल्म को विवेक अग्निहोत्री ने निर्देशित किया था। मुख्य भूमिका मे जॉन
अब्राहम, बिपाशा बासु, अरशद वारसी और बोमन ईरानी के नाम उल्लेखनीय हैं। इस फिल्म
को औसत सफलता मिली थी। कश्मीर और फुटबॉल की पृष्ठभूमि पर पियूष झा की फिल्म
सिकंदर उल्लेखनीय है। इस फिल्म में एक छोटा बच्चा अपने माँ-बाप के जेहादियों
द्वारा मार दिए जाने के बाद कुपवाड़ा में रहने लगता है। वहां उसकी रूचि फुटबॉल में
पैदा होती है। कैसे फूटबाल का खेल उस बच्चे को जिहादी बनने से रोकता है, फिल्म
इसका प्रभावी चित्रण करती थी।
दूसरे खेलों पर फ़िल्में
रवि एक अनुशासन पसंद
सख्त मिजाज़ पिता है। वह चाहता है कि उसका इकलौता बेटा एथलेटिक्स की प्रतियोगिता
जीते। अपने पिता की मर्ज़ी के कारण वह बच्चा घायल होने के बावजूद दौड़ता है और
दूसरे स्थान पर आता है। इस फिल्म में पिता की भूमिका सुनील शेट्टी ने और उनके बेटे
मयंक टंडन बने थे. यह फिल्म सफल नहीं हुई थी। लेकिन, बॉक्सिंग, दौड़ और हॉकी पर
कुछ सफल फ़िल्में उल्लेखनीय हैं. वैसे यह सभी फ़िल्में बड़े सितारों वाली फ़िल्में थी। बॉक्सिंग पर निर्देशक ओमंग कुमार की रियल लाइफ फिल्म मैरी कोम में प्रियंका
चोपड़ा ने मुख्य भूमिका की थी। बॉक्सिंग पर ही अनिल शर्मा की देओलों के साथ फिल्म अपने भी सफल हुई थी। भाग मिल्खा भाग में फरहान अख्तर ने अंतर्राष्ट्रीय
धावक मिल्खा सिंह का किरदार किया था। हॉकी की महिला टीम को विश्व कप जितवाने वाले
एक दागी हॉकी फॉरवर्ड पर फिल्म चक दे इंडिया को शाहरुख़ खान की बेहतरीन एक्टिंग, शिमिट अमीन के निर्देशन और तमाम दूसरे कलाकारों के संतुलित अभिनय के कारण सफल हुई
थी। सेना के धावक पान सिंह तोमर के डाकू बनाने की रियल स्टोरी पर तिग्मांशु
धुलिया ने फिल्म पान सिंह तोमर का निर्माण किया था। इस फिल्म में इरफ़ान खान ने
मुख्य किरदार किया था। शैलेश वर्मा की २०१४ में रिलीज़ फिल्म बदलापुर बॉयज कबड्डी
पर आधारित फिल्म थी। मंसूर खान की फिल्म जो जीता वही सिकंदर दो कॉलेजों के बीच प्रतिस्पर्धा
और साइकिल चैंपियन बनने की कहानी पर फिल्म में आमिर खान की केंद्रीय भूमिका थी। अरिंदम
चौधरी की फिल्म रोक सको तो रोक लो को जो जीता वही सिकंदर से प्रेरित बताया जाता है। इस फिल्म में सनी देओल मुख्य भूमिका में थे। सैफ अली खान और रानी मुख़र्जी की
फिल्म तारा रम पम कार रेसिंग पर फिल्म थी। इस फिल्म को औसत सफलता मिली थी। .
क्षेत्रीय भाषाओँ की
खेल फ़िल्में
प्रकाश राज ने
क्रिकेट को लेकर एक पिता और बेटे के बीच टकराव को लेकर फिल्म धोनी का निर्माण किया
था . पिता अपने बेटे को एमबीए करवाना चाहता है, जबकि बेटे को क्रिकेट का दूसरा महेंद्र सिंह धोनी
बनाने की ख्वाहिश है. यह फिल्म महेश मांजरेकर की मराठी फिल्म का तमिल और तेलुगु
भाषा में रीमेक फिल्म थी. दक्षिण से बॉक्सिंग पर इरुधि शुत्तरू और जॉनी का निर्माण
किया गया. १९९१ में दौडाक अश्विनी नाचाप्पा के जीवन पर तेलुगु फिल्म अश्विनी का
निर्माण किया गया था . इस फिल्म में अश्विनी नाचाप्पा ने ही शीर्षक भूमिका की थी. कबड्डी
पर पंजाबी भाषा में फिल्म कबड्डी वन्स अगेन और कन्नड़ में कबड्डी का निर्माण हुआ .
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फिल्म पुराण
मैं हिंदी भाषा में लिखता हूँ. मुझे लिखना बहुत पसंद है. विशेष रूप से हिंदी तथा भारतीय भाषाओँ की तथा हॉलीवुड की फिल्मों पर. टेलीविज़न पर, यदि कुछ विशेष हो. कविता कहानी कहना भी पसंद है.
बेनेडिक्ट वॉन्ग ही होंगे अवेंजर्स : इनफिनिटी वॉर के वॉन
मार्वेल कॉमिक्स के कैरेक्टरों में बेनेडिक्ट वोंग भी ख़ास है। इस करैक्टर को मार्वेल की कई कॉमिक्स बुक में मुख्य किरदार की मदद करते देखा जा सकता है। फिलहाल, इस करैक्टर को दर्शक फिल्म डॉक्टर स्ट्रेंज में डॉक्टर स्ट्रेंज के घरेलु नौकर के किरदार में देखेंगे। यह एक स्वामिभक्त किरदार है। इस किरदार को बेनेडिक्ट कम्बरबैच के साथ बेनेडिक्ट वॉन्ग कर रहे हैं। बेनेडिक्ट वॉन्ग एक ब्रिटिश एक्टर हैं। उन्हें नेटफ्लिक्स की २०१४ में रिलीज़ फिल्म मारकोपोलो में कुबलाई खान के किरदार में देखा गया था। पिछले साल स्पेस साइंस फिक्शन फिल्म द मार्शियन में ब्रूस एनजी के किरदार में नज़र आये थे। बेनेडिक्ट वॉन्ग को स्टेट ऑफ़ प्ले, लुक अराउंड यू, फ्रैंकेंस्टीन टॉप बॉय, रन और प्रे जैसी टीवी सीरीज में देखा गया। बेनेडिक्ट वॉन्ग डॉक्टर स्ट्रेंज के बाद एक बार फिर अपने वॉन्ग करैक्टर को फिल्म अवेंजर्स : इंफिनिटी वॉर में करेंगे। फिल्म अवेंजर्स : इंफिनिटी वॉर में ब्लैक विडो, स्टार लार्ड, थॉर, कैप्टेन मार्वल, स्कारलेट विच, गमोरा, विंटर सोल्जर, आयरन-मैन, कैप्टेन अमेरिका, स्पाइडर- मैन आदि जैसे सुपर पावर रखने वाले किरदारों के साथ डॉक्टर स्ट्रेंज को भी शामिल किया गया है। वॉन्ग डॉक्टर स्ट्रेंज के घरेलु नौकर के किरदार में ही होंगे। जहाँ, डॉक्टर स्ट्रेंज ४ नवम्बर को रिलीज़ हो रही है, वहीँ अवेंजर्स :इनफिनिटी वॉर की शूटिंग अगले साल जनवरी से शुरू होगी। फिल्म ४ मई २०१८ को रिलीज़ की जायेगी।
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टिम मिलर नहीं करेंगे डेडपूल २
इस साल की बड़ी सफल फिल्म डेडपूल के डायरेक्टर टिम मिलर ने डेडपूल का सीक्वल छोड़ दिया है। डेडपूल के निर्माण में ५८ मिलियन डॉलर खर्च हुए थे। लेकिन, मार्वल के एक कॉमिक करैक्टर पर डेडपूल ने बॉक्स ऑफिस पर ७८२.६ मिलियन डॉलर का बिज़नस कर लिया था। इसलिए, स्वाभाविक था कि डेडपूल २ के निर्देशन के लिए टिम मिलर सबसे सही चुनाव थे। बताया जाता है कि फिल्म में वेड विल्सन उर्फ़ डेडपूल का किरदार करने वाले अभिनेता रयान रेनॉल्ड्स से क्रेएटिव डिफरेंस होने का कारण टिम मिलर को फिल्म छोडनी पड़ी। हालाँकि, टिम मिलर ने स्टूडियो के साथ फिल्म साइन नहीं की थी, लेकिन वह फिल्म की स्क्रिप्ट को मांजने के काम में जुटे हुए थे। टिम मिलर श्रेष्ठतम विसुअल इफेक्ट्स आर्टिस्ट थे। उन्होंने, हाईडअवे, पिलग्रिम वर्सस द वर्ल्ड, द गर्ल विथ ड्रैगन टैटू और थॉर द डार्क वर्ल्ड के विसुअल इफेक्ट्स में सहयोग किया था। डेडपूल उनकी बतौर डायरेक्टर पहली फिल्म थी। इसीलिए फिल्म में टिम मिलर का प्रभाव साफ नज़र आता था । हालाँकि, क्रिएटिव डिफरेंस के कारण मिलर ने रयान रेनॉल्ड्स के साथ डेडपूल २ न करने का फैसला किया है। लेकिन, इस फिल्म के स्टूडियो फॉक्स का इरादा मिलर को छोड़ने का नहीं हैं। मिलर को डेनियल सोआरेज़ के उपन्यास पर फिल्म इनफ्लक्स का निर्देशन करने का जिम्मा सौंपा गया है। यह फिल्म इन्फ्यूल्स ट्राइलॉजी की पहली फिल्म होगी।
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द लास्ट नाइट में नज़र आएंगे मिनी डाइनोबोट्स
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आईमैक्स में रिलीज़ होगी ट्वेंटिएथ सेंचुरी फॉक्स की चार फ़िल्में
पूरी दुनिया में आईमैक्स में रिलीज़ फिल्म डेडपूल की सफलता को देखते हुए आईमैक्स कॉर्पोरेशन ने ट्वेंटिएथ सेंचुरी फॉक्स की चार फिल्मों को ख़ास तौर पर रिलीज़ करने का समझौता किया है। इसके अनुसार आईमैक्स द्वारा अगले साल दस जून को रिलीज़ होने जा रही मार्वल की अनाम फिल्म के अलावा २०१८ में तीन फिल्मों १ दिसम्बर को मेज़ रनर: द डेथ क्योर, २ सितम्बर को प्रिडेटर और ७ जुलाई को अलिटा: बैटल एंजेल दुनिया के तमाम आईमैक्स थिएटरो में रिलीज़ की जाएंगी। इन फिल्मों को आईमैक्स फॉर्मेट में डिजिटली मिलाया जायेगा। इससे फिल्म की तमाम इमेज बिलकुल साफ़ और चमक वाली नज़र आएंगी। ऎसी फ़िल्में जब आईमैक्स ख़ास थिएटरो में शक्तिशाली डिजिटल ऑडियो में दिखाई जाएंगी तो दुनिया के दर्शकों को बिलकुल ऐसा अनुभव मिलेगा, जैसे वह खुद मूवी का हिस्सा हैं।
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इंदिरा गाँधी, आपातकाल और बॉलीवुड फ़िल्में
राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार विजेता निर्देशक शिवाजी लोटन पाटिल की इंदिरा गाँधी हत्याकांड की पृष्ठभूमि पर पोलिटिकल थ्रिलर फिल्म ३१ अक्टूबर को सेंसर बोर्ड ने नौ कट के साथ पारित कर दिया है । अब यह फिल्म इंदिरा गाँधी की हत्याकांड की तारिख से २४ दिन पहले ७ अक्टूबर को रिलीज़ होगी । ३१ अक्टूबर इंदिरा गाँधी की हत्या के बाद भड़के सिख विरोध दंगों में सिख परिवार के जीवित रहने के लिए संघर्ष की सच्ची कहानी है । इस फिल्म को दुनिया के कई फिल्म फेस्टिवल में सराहना मिली है । फिल्म के निर्माता हैरी सचदेवा और आनंद प्रकाश कहते हैं, “हमें गर्व है कि हम तमाम बाधाओं को पार इस विषय को लोगों के सामने बड़े परदे पर लाने में सफल हुए हैं ।“
कैंची के शिकार ‘कौम दे हीरे’
इसमे कोई शक नहीं कि इस निर्माता जोड़ी को फिल्म पारित कराने में सेंसर से जूझना पडा । तमाम आलोचनाओं से जूझ रहे सेंसर बोर्ड को ध्यान रखना था कि फिल्म में ऎसी कोई बात न चली जाए, जिससे हिंसा भड़के । इसके बावजूद ३१ अक्टूबर के निर्माता भाग्यशाली हैं कि उनकी फिल्म चार महीने के बाद सेंसर द्वारा पारित कर दी गई । इस लिहाज़ से दो साल पहले एक पंजाबी फिल्म इतनी भाग्यशाली नहीं साबित हो सकी । सेंसर बोर्ड ने २०१४ में इस आधार पर निर्देशक रविंदर रवि की पंजाबी फिल्म कौम दे हीरे को बैन कर दिया कि यह इंदिरा गांधी की हत्या को जस्टिफाई करती थी और उनके हत्यारों बेंत सिंह, सतवंत सिंह और केहर सिंह को ग्लोरीफी करती थी। इस फिल्म को लीला सेमसन के सेंसर बोर्ड द्वारा हिंसा भड़कने की आशंका पर पारित नहीं किया गया था ।
इंदिरा गाँधी पर फ़िल्म !
भारत की प्रथम महिला प्रधान मंत्री इंदिरा गाँधी पर उनके जीवन और उनकी मृत्य के बाद फ़िल्में बनाने की कई कोशिशें की गई । बीबीसी द्वारा २००२ में निक रीड की ८० मिनट का एक वृत्तचित्र इंदिरा गाँधी: द डेथ ऑफ़ मदर इंडिया टेलीकास्ट की गई । लेकिन, इसके अलावा काफी दूसरे प्रयास परवान नहीं चढ़ सके । २००९ में इंदिरा गाँधी हत्याकांड पर एक अंतर्राष्ट्रीय फिल्म बनाने का फैसला किया गया था । यह फिल्म इंदिरा गाँधी के हत्याकांड पर केन्द्रित थी । हत्याकांड के दिन इंदिरा गाँधी का इंटरव्यू करने पहुंचे पीटर उस्तीनोव की भूमिका के लिए अल्बर्ट फिन्ने को लिया गया था । हेलेन मिरेन क्वीन एलिज़ाबेथ, टॉम हंक्स और टोमी ली जोंस क्रमशः लिंडन बी जॉनसन और रिचर्ड निक्सन का किरदार करने वाले थे । ब्रितानी एक्ट्रेस एमिली वाटसन मार्गरेट थैचर का किरदार करने वाली थी । इस फिल्म में इंदिरा गाँधी की भूमिका के लिए माधुरी दीक्षित का नाम चल रहा था । उस समय इस फिल्म का बजट ४० मिलियन पौंड रखा गया था । लेकिन, कृष्णा शाह की यह फिल्म शूटिंग की दहलीज़ तक नहीं पहुँच सकी ।
बॉलीवुड अभिनेत्रियाँ चाहें इंदिरा गाँधी बनना
इंदिरा गाँधी और उनके बेटे संजय गाँधी ने आपातकाल के दौरान बॉलीवुड को नाहक परेशान किया था । किशोर कुमार के गीतों के प्रसारण पर रोक, हिंदी फिल्मों पर कडा सेंसर और बैन बॉलीवुड पर भारी पड़ रहे थे । इसके बावजूद हिंदी फिल्मों की तमाम अभिनेत्रियाँ सेलुलाइड पर इंदिरा गाँधी बनने के लिए बेताब नज़र आती थी । कृष्णा शाह की इंदिरा गाँधी पर फिल्म में इंदिरा गाँधी बनाने के लिए बॉलीवुड की धक् धक् गर्ल माधुरी दीक्षित बेताब थी । २००२ में निर्माता नितिन केनी ने १५ करोड़ की लागत से इंदिरा गांधी के जीवन पर फिल्म इंदिरा गांधी अ ट्रिस्ट विथ डेस्टिनी बनाने का ऐलान किया था। इस फिल्म में मनीषा कोइराला इंदिरा गांधी की भूमिका करने वाली थी। मनीषा ने फिल्म के लिए अपना फर्स्ट लुक भी जारी कर दिया था । हाल ही में, अभिनेत्री विद्या बालन ने एक इंटरव्यू में यह स्वीकार किया था कि वह बड़े परदे पर इंदिरा गाँधी की भूमिका करना चाहती हैं । रहस्य फिल्म के निर्देशक मनीष गुप्ता ने इंदिरा गाँधी पर फिल्म के लिए विद्या बालन से संपर्क भी किया था । विद्या बालन ने स्क्रिप्ट पसंद भी की थी । मनीष गुप्ता कहते हैं, “विद्या बालन थोड़ी सशंकित थी । इंदिरा गाँधी पर फिल्म से पहले काफी सावधानियां बरतनी होती हैं ।“ प्रेम रतन धन पायो और गोलियों की रासलीला राम-लीला की अभिनेत्री स्वरा भास्कर को भी इंदिरा गाँधी का किरदार करने की बेताबी है ।
इमरजेंसी और भारतीय सिनेमा
इमरजेंसी का बुरा प्रभाव भारतीय सिनेमा पर भी पडा । इंदिरा गांधी ने २५ जून १९७५ को इमरजेंसी का ऐलान किया था। यह आपातकाल २१ मार्च १९७७ तक जारी रहा। इस दौरान भारत की फिल्म इंडस्ट्री को आपातकालीन ज़्यादतियां साहनी पड़ी। आपातकाल के दौरान गुलजार की राजनीतिक फिल्म आंधी का प्रदर्शन रोक दिया गया । गुलज़ार की फिल्म आंधी का प्रदर्शन इस आधार पर रोका गया कि यह फिल्म इंदिरा गांधी पर आधारित थी। इस फिल्म में सुचित्रा सेन का करैक्टर इंदिरा गाँधी से मिलता जुलता था । अमृत नाहटा की फिल्म किस्सा कुर्सी का इमरजेंसी का तगड़ा मज़ाक उड़ाती थी। इस फिल्म में शबाना आज़मी ने गूंगी बाहरी जनता का किरदार किया था। इसके प्रिंट संजय गांधी द्वारा गुड़गांव की मारुती फैक्ट्री में जला दिए गए। तेलुगु फिल्म यमगोला (१९७७) भी इमरजेंसी का मज़ाक बनाती थी। इस फिल्म को हिंदी में लोक परलोक टाइटल के साथ रीमेक किया गया। इन सभी फिल्मों को आपातकाल की ज्यादतियों का सामना करना पड़ा ।
एक शोले दो क्लाइमेक्स
कहा जाता है कि गाँधी परिवार से नज़दीकियों के कारण अमिताभ बच्चन की मुख्य भूमिका वाली फिल्म शोले को हिंसा के बावजूद पारित कर दिया गया था । लेकिन, वास्तव में इस फिल्म को काफी कट्स और रीशूट के बाद ही पारित किया गया । रमेश सिप्पी ने फिल्म के अंत में ठाकुर के द्वारा गब्बर सिंह की हत्या होते दिखाया गया था । मगर सेंसर को लगा था कि एक पूर्व पुलिस अधिकारी द्वारा एक डाकू की हत्या गलत सन्देश देने वाली हो सकती थी । इस पर रमेश सिप्पी को क्लाइमेक्स की फिर शूटिंग करनी पड़ी । इसमे ठाकुर द्वारा गब्बर सिंह को मारने से पहले ही पुलिस पहुँच जाती थी और गब्बर सिंह को अपने कब्ज़े में ले लेती थी । ठाकुर के परिवार की गब्बर सिंह द्वारा हत्या के दृश्यों को भी काट दिया गया था । इमाम के बेटे को गब्बर द्वारा मारे जाने का दृश्य भी काट दिया गया था । बाद में रमेश सिप्पी ने डीवीडी के चार घंटे के अनकट वर्शन में ठाकुर द्वारा गब्बर सिंह के मारे जाने के दृश्य सहित सभी सेंसर किये गए दृश्यों को रखा था ।
इमरजेंसी पर फ़िल्में
आईएस जौहर की फिल्म नसबंदी में संजय गांधी के नसबंदी कार्यक्रम का मज़ाक बनाया गया था । सत्यजीत रे की १९८० में रिलीज़ फिल्म हीरक राजर देशे बाल हास्य फिल्म थी। लेकिन, इसमे भी आपातकाल पर व्यंग्यात्मक टिप्पणी की गई थी। बालू महेंद्रू निर्देशित १९८५ की मलयालम फिल्म यात्रा की मुख्य कथा आपातकाल के दौरान मानवाधिकारों के उल्लंघन का चित्रण करने वाली थी। एक अन्य मलयालम फिल्म पिरावी (१९८८) भी एक पिता की अपने बेटे की खोज की कहानी थी, जिसे पुलिस ने गिरफ्तार करने के बाद प्रताड़ना देकर मार डाला था। सुधीर मिश्र की शाइनी आहूजा, केके मेनन और चित्रांगदा सिंह अभिनीत फिल्म हज़ारों ख्वाहिशें ऐसी की पृष्ठभूमि भी आपतकाल पर थी। यह फिल्म आपातकाल के दौरान नक्सल आंदोलन के विस्तार और खात्मे की कहानी थी। इस फिल्म में सत्तर के दशक के भारतीय युवा के सामाजिक और राजनीतिक परिवर्तन का बढ़िया चित्रण किया गया था। मराठी फिल्म शाला (२०१२) भी इमरजेंसी के दौरान की कठिनाइयों पर फिल्म थी। सलमान रुश्दी के उपन्यास मिडनाइट्स चिल्ड्रन में इंदिरा गांधी का निगेटिव चित्रण किया गया था। यह फिल्म भारत के अंतरराष्ट्रीय फिल्म मेले में नहीं दिखाई गई।
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फिल्म पुराण
मैं हिंदी भाषा में लिखता हूँ. मुझे लिखना बहुत पसंद है. विशेष रूप से हिंदी तथा भारतीय भाषाओँ की तथा हॉलीवुड की फिल्मों पर. टेलीविज़न पर, यदि कुछ विशेष हो. कविता कहानी कहना भी पसंद है.
बॉलीवुड ने ही ‘पिंक’ को शर्म से ‘लाल’ किया !
निर्माता शूजित
सरकार की फिल्म पिंक में अमिताभ बच्चन का चरित्र स्थापित करता है कि अगर औरत न कह
रही है तो उसे न समझा जाना चाहिए सेक्सुअल रिलेशन बनाने के लिए ज़बरदस्ती नहीं की
जानी चाहिए। हालाँकि, इससे पहले फिल्म इसे स्वीकार करती हैं कि अगर कोई लड़की छोटे
कपडे पहन कर क्लब या पार्टी में जाती है, दोस्त या दोस्त के दोस्तों के साथ शराब
पीती है और डिनर खाती है और पैसे मांगती है तो वह चरित्रहीन समझी जाती है। कोई लड़का उससे ज़बरदस्ती
कर सकता है। हालाँकि, ऐसा उस लडके की घटिया मानसिकता का परिणाम दिखाया गया है। लेकिन, यहाँ सवाल यह है कि किसी लडके में यह संस्कार आये कहाँ से। यह संस्कार किसने
दिए। पिंक तो यह कह ही रही है।
क्या बॉलीवुड ज़िम्मेदार नहीं !
बड़ा सवाल यह है कि
इस प्रकार के संस्कार युवाओं या पुरुषों के मन में किसने भरे ! उस समाज ने जिसके
परिवारों में बेटों के साथ बेटियाँ भी होती हैं ! बेशक, पड़ोस की आधुनिक या तेज़
तर्रार लड़की को देख कर ऐसा समझा जा सकता है। लेकिन क्या हिंदी फ़िल्में युवाओं में गंदे संस्कार भरने के आरोप से
बरी हो सकती है ? बिलकुल नहीं। हिंदी फिल्मों ने ही महिला चरित्र को रसातल में
डुबोने की साज़िश की है, अपने हीरो की हीरोइज्म स्थापित करने के लिए। बॉलीवुड का इतिहास
गवाह है कि तमाम अभिनेता अपनी नायिका को अपमानित कर सुपर स्टार ही नहीं मेगा स्टार तक बने।
कोड़े से पीटने वाले
अमिताभ !
पिंक में अमिताभ
बच्चन का चरित्र महिला की न को महत्त्व देता था। लेकिन इन्ही अमिताभ बच्चन की फिल्मों में
बॉक्स ऑफिस की खातिर नायिका के चरित्र को रसातल में डुबो दिया। उसकी अवमानना की। अमिताभ की ज़्यादातर
फिल्मों की नायिका शो पीस थी। वह खुद एंटी सोशल करैक्टर किया करते थे। जिसे एंग्री यंगमैन खिताब दिया गया था। यह करैक्टर अपनी नायिका कोा छेड़ता ही नहीं था, बल्कि, शारीरिक रूप से प्रताड़ित
भी करता था। फिल्म शहंशाह में अमिताभ बच्चन के करैक्टर के लिए मीनाक्षी शेषाद्री का चरित्र इस लिए हल्का था कि वह आधुनिक थी और कम कपडे पहन कर घूमा करती
थी। वह फिल्म में उसे नोचते खसोटते दिखाए गए। फिल्म मर्द में अमिताभ बच्चन बिगडैल, बददिमाग अमृता सिंह को कोड़े से पीटते हैं
और उसकी पीठ पर नमक मलते हैं। दर्शक उस समय सीटियाँ बजाते हैं, जब अमृता सिंह उनकी
इस हरकत का मज़ा ले रही होती हैं। अमिताभ बच्चन ने ही यह स्थापित किया कि अमीर होना
बुरी बात है। ऎसी अमीरज़ादियों का अपहरण कर घर में बाँध कर रखा जा सकता है (फिल्म
कुली) और पीटा जा सकता है। दीवार में परवीन बॉबी को हमबिस्तर बनाने वाले अमिताभ बच्चन हीरो है लेकिन
परवीन बॉबी को कॉल गर्ल होने के कारण जान देनी पड़ती है।
हीरो बना अपहर्ता
नायिका का अपहरण कर
हीरो बनना तो कई अभिनेताओं का शगल रहा है। सनी देओल अपनी पहली फिल्म बेताब की
नायिका अमृता सिंह का उसके घर से अपहरण कर बंधक बना लेते हैं। फिल्म हीरो का नायक
(जैकी श्रॉफ) भी मीनाक्षी शेषाद्री का अपहरण कर लेता है। बॉबी, लव स्टोरी, आदि
तमाम टीन एज रोमांस वाली फिल्मों में नायक अपनी नायिका को भगा ले जाता है। दिलचस्प
तथ्य यह है कि दर्शक इन चरित्रों के अभिनेताओं को सुपर स्टार बना देता है। नायिका
ऐसे लम्पट चरित्र पर मर मिटती है। नायिका के घरवालों को नायक को स्वीकार करना
पड़ता है।
जंपिंग जैक जीतेंद्र
कदाचित जीतेंद्र
पहले ऐसे अभिनेता थे, जिन्होंने ऑन स्क्रीन अपनी नायिका को सबसे ज्यादा प्रताड़ित
किया। अपनी पहली एक्शन फिल्म फ़र्ज़ में जीतेंद्र बबिता को बेतरह झिंझोड़ कर रख देते
थे। जीतेंद्र की नायिका बनने वाली हेमा मालिनी, श्रीदेवी, जयाप्रदा आदि इस नोचखसोटी की गवाह हैं। इन फिल्मों की नायिका माने या न माने जीतेंद्र के करैक्टर को खुद को उसका प्यार साबित
करवाना ही है। फिल्मों में इसी प्रकार के रोल कर
जीतेंद्र सबसे ज्यादा कमाई करने वाले स्टार बने। आज भी दक्षिण की फिल्मों में
जीतेंद्र वाला हीरो कायम है। जीतेंद्र से पहले शम्मी कपूर, विश्वजीत और जॉय मुख़र्जी भी अपनी नायिकाओं को जबरन छेड़ा करते थे।
पवित्र रिश्ता, बिन
ब्याही माँ
अमिताभ बच्चन,
जीतेंद्र, शम्मी कपूर या किसी दूसरे अभिनेता को क्या दोष दें, हिंदी फिल्मों ने
हमेशा से स्त्री चरित्र को ढीले चरित्र वाली महिला के बतौर दिखाया है। पचास-साठ के दशक तक महिला चरित्र कामुकता में बह कर पहली रात ही शारीरिक सम्बन्ध बना
लेती थी। नतीजे के तौर पर वह गर्भवती हो जाती थी। अब इस बिन ब्याही माँ को समाज
के ताने सुनने ही हैं, अपने बच्चे को भी पालपोस कर बड़ा करना है। नायिका अपने प्रेम
को पवित्र बताते हुए ढाई घंटे की फिल्म में रोती बिलखती हुई बेटे को पालती रहती है। अमर में
दिलीप कुमार का चरित्र एक रात का सम्बन्ध बना कर निम्मी को छोड़ कर चल देता है। धुल का फूल की माला सिन्हा भी ऐसे ही पवित्र प्रेम के परिणामस्वरूप गर्भवती हो
जाती है। एक फूल दो माली की साधना, आखिरी ख़त की इन्द्राणी मुख़र्जी, अंदाज़ की हेमा
मालिनी ऎसी ही बिन ब्याही माँ के फ़िल्मी उदाहरण है। हिंदी फिल्मों में टू पीस
बिकनी की ईजाद करने वाली शर्मीला टैगोर ने तो आ गले लग जा फिल्म में शशि कपूर के
साथ एक रात के सम्बन्ध से माँ बनने के बाद दाग, आराधना, मौसम, आ गले लग जा,
सत्यकाम, सनी, स्वाति, आदि फिल्मों में बिन ब्याही माँ बनने का कीर्तिमान स्थापित कर दिया। तभी तो फिल्म क्या कहना की प्रीती जिंटा अपनी कामुकता
से लज्जित होने के बजाय ताल ठोंक कर खुद को पवित्र रिश्ता बनाने वाली बिन ब्याही
माँ घोषित करती है। हिंदी फिल्मकारों ने नायिका की एक रात की कामुकता को पवित्र
प्यार का दर्ज़ा दे कर समाज के (ख़ास तौर पर महिला दर्शकों के) आंसू निकालने और दर्शक
बटोरने में कामयाबी हासिल की थी।
ठण्ड का इलाज़
हिंदी फिल्मों के
नायक ने कई फार्मूले ईजाद किये। इनमे से एक फार्मूला ठण्ड का ईलाज था। तमाम
हिंदी फिल्मों में नायक ठण्ड से ठिठुरती नायिका का शरीर गर्म करने के लिए खुद नंगा
हो कर, नंगी नायिका के साथ सो जाता है। कथित रूप से शरीर गर्म करने की इस प्रक्रिया को आ गले लग जा में शर्मीला टैगोर पर शशि
कपूर ने आजमाया था। अमिताभ बच्चन फिल्म गंगा जमुना सरस्वती में अपनी नायिका मीनाक्षी शेषाद्री के ठन्डे शरीर को गर्म करने के लिए यही तरीका अपनाते हैं। शक्ति
सामंत अपनी फिल्म आराधना में बारिश में भीग चुकी शर्मीला टैगोर और राजेश खन्ना पर
एक कामुक टॉवल डांस (रूप तेरा मस्ताना) फिल्माते हैं और इसके बाद दोनों को सांकेतिक भाषा में शारीरिक
सम्बन्ध स्थापित करते दिखाते हैं। उस दौर की फिल्मों को देखने वाले दर्शको याद होगा
कि कैसे ऐसे दृश्य के शुरू होते ही सिनेमाघरों में दर्शक सीटियाँ बजाना और
चिल्लाना शुरू कर देते थे।
कुलटा! हमें कहीं का
न छोड़ा !
उस दौर की फिल्मों
की खासियत थी कि इन में नायिका की निजता का कोई महत्त्व नहीं था। उस दौर की उन
फिल्मों में जहां नायिका एक रात के संबंधों के कारण गर्भवती हो जाती थी, उसकी दाई
या डॉक्टर तमाम लोगों के सामने खुलेआम ऐलान करती थी कि नायिका गर्भवती है। इस ऐलान के लिए लीला मिश्रा
ख़ास तौर पर मशहूर थी जो निराशा भरे तेवरों के साथ यह कहती थी ‘अरे कुलटा
तूने हमें कहीं मुंह दिखाने के लायक नहीं छोड़ा। पुराने ज़माने की सुलोचना और लीला
चिटनिस से लेकर नयी जमाने की प्रीटी जिंटा तक को यह डायलाग सुनने पड़े। इसके बावजूद
ऎसी कुलटा नायिका बॉलीवुड फिल्मों में बार बार नज़र आती रही।
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फिल्म पुराण
मैं हिंदी भाषा में लिखता हूँ. मुझे लिखना बहुत पसंद है. विशेष रूप से हिंदी तथा भारतीय भाषाओँ की तथा हॉलीवुड की फिल्मों पर. टेलीविज़न पर, यदि कुछ विशेष हो. कविता कहानी कहना भी पसंद है.
'वॉर' ही है पाकिस्तान की घृणा का 'बॉर्डर' !
पाकिस्तानी आतंकवादियों द्वारा उरी में भारतीय सेना के कैंप पर हमला कर १८ सैनिकों को मार डालने की घटना के बाद हिन्दुस्तानियों में बेचैनी है। शहर शहर प्रदर्शनों की श्रंखला में महाराष्ट्र में शिवसेना और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना का पाकिस्तानी कलाकारों को ४८ घंटों में देश छोड़ देने का अल्टीमेटम भी आ जुडा है। इन दोनों सेनाऑ के बयान के बाद बॉलीवुड में भी पक्ष और विपक्ष बनने शुरू हो गए हैं। पाकिस्तानी कलाकारों के खेमे में खड़े लोगों का कहना है कि इसमे कलाकार कहाँ से आ गए। उनका क्या दोष ! क्या सचमुच पाकिस्तान की फिल्म इंडस्ट्री लॉलीवुड निर्दोष है ! वास्तविकता तो यह है कि पाकिस्तानी फिल्मे एंटी-इंडियन ही नहीं खालिस सांप्रदायिक हैं, हिन्दू विरोध पर टिकी हुई। इन फिल्मो से हिन्दुओ के प्रति घृणा का प्रदर्शन होता है।
पाकिस्तानी घृणा की 'बॉर्डर'
पाकिस्तानी फिल्म बॉर्डर भारत और खास तौर पर हिन्दुओ के खिलाफ ज़हरीली घृणा का उम्दा उदाहरण है। इस फिल्म में हिंदुओं के प्रति घृणा साफ झलकती है। फिल्म में भारतीय सैनिकों को सांप्रदायिक हिंदुओं द्वारा नियंत्रित और मुसलमान औरतों के साथ बलात्कार करने वाला बताया गया है। फिल्म में एक हिन्दू लड़की (यह किरदार पाकी एक्ट्रेस सना नवाज़ ने किया है) एक फौजी अधिकारी के गठीले शरीर पर कामुक हो जाती है। जब लड़की को मालूम होता है कि उसका हमबिस्तर सैनिक भारतीयों को मारना चाहता है तो वह इस्लाम क़ुबूल कर भारतीय फौज को मारने निकल पड़ती है। फिल्म में पाकिस्तानी सैनिक 'नौसिखुए' भारतीय सैनिकों को मार डालती है। एक सीन में दुबई में भारतीय फौजी और पाकिस्तानी फौजी अफसर के बीच बॉक्सिंग मुक़ाबला दिखाया गया है जिसमे वह अफसर भारतीय सैनिक को बुरी तरह से पीट देता है। इस फिल्म के संवाद भारत और हिन्दुओ के विरुद्ध घृणा फैलाने वाले हैं।
फव्वाद खान का घृणित सीरियल दास्तान
पाकी एक्टर फव्वाद खान करण जौहर की दिवाली में रिलीज़ होने जा रही फिल्म ऐ दिल है मुश्किल में सेकंड लीड है। इस पाकिस्तानी एक्टर के विरोध में आई शिव सेना और एमएनएस का विरोध देश के काफी सेक्युलर टाइप के लोग आवाज़ उठा रहे हैं। लेकिन शायद इन लोगों को नहीं मालूम की फव्वाद खान ने एक ऐसे टीवी सीरियल दास्तान में अभिनय किया है जिसमे हिन्दुओ और सिक्खों को मुसलमानों को सांप्रदायिक और पार्टीशन के दौरान मुसलमानों की ह्त्या करने वाली कौम बताया गया है। इस सीरियल को 'ज़ी ज़िन्दगी' ने 'वक़्त ने किया क्या हसीं सितम' टाइटल के साथ टेलीकास्ट किया था। लेकिन इस सीरियल को काफी एडिट कर एक प्रेम कहानी के बतौर ही पेश किया गया।
हिन्दू घृणा से भरी अन्य पाकी फ़िल्में
२००० में रिलीज़ एक अन्य पाकिस्तानी फिल्म तेरे प्यार में में भारतीय हिन्दू लड़की का पाकिस्तानी फौजी से रोमांस दिखाया गया है। इस फिल्म में भारत की आर्मी को सिख विरोधी और सिखों को पाकिस्तान समर्थक दिखाया गया है। फिल्म के क्लाइमेक्स में पाकिस्तान का हीरो पूरी भारतीय सेना की बटालियन को नष्ट कर भारत में घुस कर अपनी प्रेमिका को ले जाता है। मूसा खान (२००१) में कश्मीरी पंडितों को दुष्ट और चालबाज़ बताया गया है। इस फिल्म का हीरो सुपरपावर रखने वाला पाकिस्तानी है। भारतीय सैनिकों के प्रति पाकिस्तानी घृणा का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि सीरीज अल्फा ब्रावो चार्ली में पाकिस्तानी महिला सैनिक भारतीय सैनिकों को सियाचिन में बुरी तरह से परास्त करती है। फिल्म जन्नत की तलाश भी हिंदुओं और सिखों के खिलाफ घृणा से भरी है।
'पृथ्वी' से श्रेष्ठ 'गोरी' !
फिल्म घर कब आओगे में बड़ी दिलचस्प फिल्म है। इस फिल्म में फिलीपीन्स से यहूदी आतंकवादियों द्वारा पूरे कराची में बम ब्लास्ट करते दिखाया गया है। लेकिन इन यहूदी आतंकवादियों के नाम चार्ल्स शोभराज, पृथ्वी और ओबेरॉय है। सबसे ज़्यादा दिलचस्प है फिल्म का एक संवाद 'पृथ्वी के सामने सिर्फ गोरी ही आ सकता है' है। इस संवाद के ज़रिये हिन्दू शासक पृथ्वीराज चौहान की मोहम्मद गोरी से पराजय दिखाने और भारतीय मिसाइल पृथ्वी के सामने पाकिस्तानी मिसाइल गोरी की श्रेष्ठता स्थापित करने की कोशिश की गई है।
भारत विरोधी आई-एस पी आर
पाकिस्तानी सेना की मीडिया विंग है। यह विंग सुनिश्चित करती है कि एंटी इंडिया और एंटी हिन्दू खबरें, वृत्त चित्र और खबरे प्रसारित और प्रकाशित हों। यह विंग पाकिस्तानी फिल्मों को शुरू से आखिर तक मॉनीटर करती है। कहानी में बदलाव से लेकर शूटिंग में दखल और सेंसर करने तक इसकी भूमिका होती है। अगर किसी भारतीय फिल्म में पाकिस्तानी सेना और उग्रवादियों के खिलाफ एक शब्द भी होता है तो आई-एस पी आर ऎसी फिल्म को सेंसर से पारित नहीं होने देती। इस विंग के इशारे पर इसी साल तीन हिंदी फ़िल्में नीरजा, ढ़िशूम और अम्बरसरिया पाकिस्तान में रिलीज़ नहीं हो पाई।
हिंदुस्तानी फिल्मों के खिलाफ पाकिस्तानी निर्माता-वितरक
इसी साल पाकिस्तान के फिल्म निर्माताओं और वितरकों ने हिंदुस्तानी फिल्मों को पाकिस्तान में रिलीज़ से रोकने के लिए एक पिटीशन लाहौर हाई कोर्ट में दायर की थी। इस पिटीशन में मोशन पिक्चर्स आर्डिनेंस लॉ १९७९ को लागू करने की मांग की गई थी। पिछले साल पाकिस्तानी कॉमेडियन इफ्तिखार अहमद ठाकुर ने लाहौर कोर्ट में रिट दायर कर भारतीय फिल्मों पर स्थाई रोक लगाने की थी। कोर्ट ने इस रिट को ठाकुर को पाकिस्तान के सांस्कृतिक विभाग से अनुरोध करने की हिदायत के साथ खारिज़ कर दिया था । भारतीय फिल्मों पर रोक लगाने के पक्ष में पाकिस्तान के मोअम्मर राणा, शान, संगीता और शाहिद जैसे बड़े एक्टर रहते हैं। फिल्म निर्देशक सईद नूर, असलम डार, अल्ताफ हुसैन, मसूद बट और परवेज़ राणा, फिल्म निर्माता जानी मालिक और चौधरी कामरान भी इसी विचार के हैं।
भारतीय एजेंट राहत फ़तेह अली खान !
ज़हर उगलने के लिहाज़ से पाकिस्तानी मीडिया पीछे नहीं। इस्लामाबाद से प्रकाशित होने वाले अंग्रेजी अख़बार द डेली मेल ने भारतीय टीवी सीरियल छोटे उस्ताद को लेकर एक बड़ी दिलचस्प रिपोर्ट निकाली थी। बच्चों के इस म्यूजिक रियलिटी शो छोटे उस्ताद में भारत और पाकिस्तान के १०-१० बच्चे हिस्सा ले रहे थे। इन बच्चों को पाकिस्तान से लाने का ज़िम्मा राहत फ़तेह अली खान का था। अख़बार ने रिपोर्ट में कहा कि राहत भारतीय एजेंसी रॉ यानि रिसर्च एंड एनालिसिस विंग की वन नेशन थ्योरी के सपोर्ट में काम कर रहे हैं। इसके लिए उन्हें म्यूजिक और पाकिस्तानी बच्चों का सहारा लिया है। इन बच्चों के मुंह से हिंदुस्तानी गीत गवाये जायेंगे। अखबार ने पाकिस्तानी बच्चों का राहत फ़तेह अली खान का कैमल जॉकी बताया। इस अख़बार ने भारतीय चैनलों स्टार प्लस और ज़ी टीवी को पाकिस्तानी बच्चों के दिमाग से टू नेशन थ्योरी को मिटाने के लिए रॉ के हाथों खेलने का आरोप लगाते हुए कहा कि पाकिस्तानी बच्चों के मुंह कहलाया गया कि जब वह इंडिया में उतरे तो उन्हें नहीं लगा कि वह पाकिस्तान में नहीं हैं। द डेली मेल की रिपोर्ट में रॉ द्वारा कथित रूप से एंटी पाकिस्तानी हिंदी फिल्मों की फंडिंग का आरोप भी लगाया।
ज़ाहिर है कि लॉलीवुड भारत का दोस्त नहीं। इसके शीर्ष एक्टर, निर्माता और वितरक हिंदुस्तानी फिल्मों के विरोधी हैं। पाकिस्तानी दर्शक सलमान खान शाहरुख़ खान और आमिर खान की फ़िल्में हिट बनाते हैं। लेकिन, यही भारत विरोधी फिल्म वार को शाहरुख़ खान की फिल्म चेन्नई एक्सप्रेस से ज़्यादा सफल भी बनाते हैं। यह फ़िल्में हिंदुओं के प्रति उन्मादी भाषा का इस्तेमाल इन्ही कलाकारों के मुंह से बुलवाती है, जो बॉलीवुड की फिल्मों में पैसा कमाने की मंशा से आते है, न कि सांप्रदायिक या सांस्कृतिक सौहार्द्र के लिए । वॉर और बॉर्डर जैसी एंटी हिन्दू फिल्मों को हिट बनाने वाला पाकिस्तानी आवाम ही है।
पाकिस्तानी घृणा की 'बॉर्डर'
पाकिस्तानी फिल्म बॉर्डर भारत और खास तौर पर हिन्दुओ के खिलाफ ज़हरीली घृणा का उम्दा उदाहरण है। इस फिल्म में हिंदुओं के प्रति घृणा साफ झलकती है। फिल्म में भारतीय सैनिकों को सांप्रदायिक हिंदुओं द्वारा नियंत्रित और मुसलमान औरतों के साथ बलात्कार करने वाला बताया गया है। फिल्म में एक हिन्दू लड़की (यह किरदार पाकी एक्ट्रेस सना नवाज़ ने किया है) एक फौजी अधिकारी के गठीले शरीर पर कामुक हो जाती है। जब लड़की को मालूम होता है कि उसका हमबिस्तर सैनिक भारतीयों को मारना चाहता है तो वह इस्लाम क़ुबूल कर भारतीय फौज को मारने निकल पड़ती है। फिल्म में पाकिस्तानी सैनिक 'नौसिखुए' भारतीय सैनिकों को मार डालती है। एक सीन में दुबई में भारतीय फौजी और पाकिस्तानी फौजी अफसर के बीच बॉक्सिंग मुक़ाबला दिखाया गया है जिसमे वह अफसर भारतीय सैनिक को बुरी तरह से पीट देता है। इस फिल्म के संवाद भारत और हिन्दुओ के विरुद्ध घृणा फैलाने वाले हैं।
फव्वाद खान का घृणित सीरियल दास्तान
पाकी एक्टर फव्वाद खान करण जौहर की दिवाली में रिलीज़ होने जा रही फिल्म ऐ दिल है मुश्किल में सेकंड लीड है। इस पाकिस्तानी एक्टर के विरोध में आई शिव सेना और एमएनएस का विरोध देश के काफी सेक्युलर टाइप के लोग आवाज़ उठा रहे हैं। लेकिन शायद इन लोगों को नहीं मालूम की फव्वाद खान ने एक ऐसे टीवी सीरियल दास्तान में अभिनय किया है जिसमे हिन्दुओ और सिक्खों को मुसलमानों को सांप्रदायिक और पार्टीशन के दौरान मुसलमानों की ह्त्या करने वाली कौम बताया गया है। इस सीरियल को 'ज़ी ज़िन्दगी' ने 'वक़्त ने किया क्या हसीं सितम' टाइटल के साथ टेलीकास्ट किया था। लेकिन इस सीरियल को काफी एडिट कर एक प्रेम कहानी के बतौर ही पेश किया गया।
हिन्दू घृणा से भरी अन्य पाकी फ़िल्में
२००० में रिलीज़ एक अन्य पाकिस्तानी फिल्म तेरे प्यार में में भारतीय हिन्दू लड़की का पाकिस्तानी फौजी से रोमांस दिखाया गया है। इस फिल्म में भारत की आर्मी को सिख विरोधी और सिखों को पाकिस्तान समर्थक दिखाया गया है। फिल्म के क्लाइमेक्स में पाकिस्तान का हीरो पूरी भारतीय सेना की बटालियन को नष्ट कर भारत में घुस कर अपनी प्रेमिका को ले जाता है। मूसा खान (२००१) में कश्मीरी पंडितों को दुष्ट और चालबाज़ बताया गया है। इस फिल्म का हीरो सुपरपावर रखने वाला पाकिस्तानी है। भारतीय सैनिकों के प्रति पाकिस्तानी घृणा का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि सीरीज अल्फा ब्रावो चार्ली में पाकिस्तानी महिला सैनिक भारतीय सैनिकों को सियाचिन में बुरी तरह से परास्त करती है। फिल्म जन्नत की तलाश भी हिंदुओं और सिखों के खिलाफ घृणा से भरी है।
'पृथ्वी' से श्रेष्ठ 'गोरी' !
फिल्म घर कब आओगे में बड़ी दिलचस्प फिल्म है। इस फिल्म में फिलीपीन्स से यहूदी आतंकवादियों द्वारा पूरे कराची में बम ब्लास्ट करते दिखाया गया है। लेकिन इन यहूदी आतंकवादियों के नाम चार्ल्स शोभराज, पृथ्वी और ओबेरॉय है। सबसे ज़्यादा दिलचस्प है फिल्म का एक संवाद 'पृथ्वी के सामने सिर्फ गोरी ही आ सकता है' है। इस संवाद के ज़रिये हिन्दू शासक पृथ्वीराज चौहान की मोहम्मद गोरी से पराजय दिखाने और भारतीय मिसाइल पृथ्वी के सामने पाकिस्तानी मिसाइल गोरी की श्रेष्ठता स्थापित करने की कोशिश की गई है।
भारत विरोधी आई-एस पी आर
पाकिस्तानी सेना की मीडिया विंग है। यह विंग सुनिश्चित करती है कि एंटी इंडिया और एंटी हिन्दू खबरें, वृत्त चित्र और खबरे प्रसारित और प्रकाशित हों। यह विंग पाकिस्तानी फिल्मों को शुरू से आखिर तक मॉनीटर करती है। कहानी में बदलाव से लेकर शूटिंग में दखल और सेंसर करने तक इसकी भूमिका होती है। अगर किसी भारतीय फिल्म में पाकिस्तानी सेना और उग्रवादियों के खिलाफ एक शब्द भी होता है तो आई-एस पी आर ऎसी फिल्म को सेंसर से पारित नहीं होने देती। इस विंग के इशारे पर इसी साल तीन हिंदी फ़िल्में नीरजा, ढ़िशूम और अम्बरसरिया पाकिस्तान में रिलीज़ नहीं हो पाई।
हिंदुस्तानी फिल्मों के खिलाफ पाकिस्तानी निर्माता-वितरक
इसी साल पाकिस्तान के फिल्म निर्माताओं और वितरकों ने हिंदुस्तानी फिल्मों को पाकिस्तान में रिलीज़ से रोकने के लिए एक पिटीशन लाहौर हाई कोर्ट में दायर की थी। इस पिटीशन में मोशन पिक्चर्स आर्डिनेंस लॉ १९७९ को लागू करने की मांग की गई थी। पिछले साल पाकिस्तानी कॉमेडियन इफ्तिखार अहमद ठाकुर ने लाहौर कोर्ट में रिट दायर कर भारतीय फिल्मों पर स्थाई रोक लगाने की थी। कोर्ट ने इस रिट को ठाकुर को पाकिस्तान के सांस्कृतिक विभाग से अनुरोध करने की हिदायत के साथ खारिज़ कर दिया था । भारतीय फिल्मों पर रोक लगाने के पक्ष में पाकिस्तान के मोअम्मर राणा, शान, संगीता और शाहिद जैसे बड़े एक्टर रहते हैं। फिल्म निर्देशक सईद नूर, असलम डार, अल्ताफ हुसैन, मसूद बट और परवेज़ राणा, फिल्म निर्माता जानी मालिक और चौधरी कामरान भी इसी विचार के हैं।
भारतीय एजेंट राहत फ़तेह अली खान !
ज़हर उगलने के लिहाज़ से पाकिस्तानी मीडिया पीछे नहीं। इस्लामाबाद से प्रकाशित होने वाले अंग्रेजी अख़बार द डेली मेल ने भारतीय टीवी सीरियल छोटे उस्ताद को लेकर एक बड़ी दिलचस्प रिपोर्ट निकाली थी। बच्चों के इस म्यूजिक रियलिटी शो छोटे उस्ताद में भारत और पाकिस्तान के १०-१० बच्चे हिस्सा ले रहे थे। इन बच्चों को पाकिस्तान से लाने का ज़िम्मा राहत फ़तेह अली खान का था। अख़बार ने रिपोर्ट में कहा कि राहत भारतीय एजेंसी रॉ यानि रिसर्च एंड एनालिसिस विंग की वन नेशन थ्योरी के सपोर्ट में काम कर रहे हैं। इसके लिए उन्हें म्यूजिक और पाकिस्तानी बच्चों का सहारा लिया है। इन बच्चों के मुंह से हिंदुस्तानी गीत गवाये जायेंगे। अखबार ने पाकिस्तानी बच्चों का राहत फ़तेह अली खान का कैमल जॉकी बताया। इस अख़बार ने भारतीय चैनलों स्टार प्लस और ज़ी टीवी को पाकिस्तानी बच्चों के दिमाग से टू नेशन थ्योरी को मिटाने के लिए रॉ के हाथों खेलने का आरोप लगाते हुए कहा कि पाकिस्तानी बच्चों के मुंह कहलाया गया कि जब वह इंडिया में उतरे तो उन्हें नहीं लगा कि वह पाकिस्तान में नहीं हैं। द डेली मेल की रिपोर्ट में रॉ द्वारा कथित रूप से एंटी पाकिस्तानी हिंदी फिल्मों की फंडिंग का आरोप भी लगाया।
ज़ाहिर है कि लॉलीवुड भारत का दोस्त नहीं। इसके शीर्ष एक्टर, निर्माता और वितरक हिंदुस्तानी फिल्मों के विरोधी हैं। पाकिस्तानी दर्शक सलमान खान शाहरुख़ खान और आमिर खान की फ़िल्में हिट बनाते हैं। लेकिन, यही भारत विरोधी फिल्म वार को शाहरुख़ खान की फिल्म चेन्नई एक्सप्रेस से ज़्यादा सफल भी बनाते हैं। यह फ़िल्में हिंदुओं के प्रति उन्मादी भाषा का इस्तेमाल इन्ही कलाकारों के मुंह से बुलवाती है, जो बॉलीवुड की फिल्मों में पैसा कमाने की मंशा से आते है, न कि सांप्रदायिक या सांस्कृतिक सौहार्द्र के लिए । वॉर और बॉर्डर जैसी एंटी हिन्दू फिल्मों को हिट बनाने वाला पाकिस्तानी आवाम ही है।
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मैं हिंदी भाषा में लिखता हूँ. मुझे लिखना बहुत पसंद है. विशेष रूप से हिंदी तथा भारतीय भाषाओँ की तथा हॉलीवुड की फिल्मों पर. टेलीविज़न पर, यदि कुछ विशेष हो. कविता कहानी कहना भी पसंद है.
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