गीतकार
रुस्तम घायल का आरोप है कि,
मुम्बई में
फिल्मकार प्रकाश झा ने ना पहचाना और ना ही किसी फिल्म में गाना लिखने का अवसर दिया, यह बड़े लोग सिर्फ बड़ी - बड़ी बातें करते
हैं। रुस्तम को उनका साथ भले नहीं मिला, भोजपुरी सिनेमा से इतना मान- सम्मान और प्यार - दुलार मिला कि, भोजपुरी गीतकारों में उनकी एक अलग पहचान
बन गई है। सिर्फ भोजपुरी ही नहीं उन्होंने हिंदी और अवधी में भी गाने लिखे है।
फिल्मी और गैर फिल्मी बहुत सारे उनके लिखे गीत संगीत कंपनियों के द्वारा जारी किए
गए हैं और उन गानों से बतौर गीतकार उन्हें अच्छी खासी रॉयल्टी मिलती है।
मृदुभाषी सरल स्वभाव समभाव अहं
से दूर रहने वाले व्यक्ति हैं रुस्तम घायल। रुस्तम घायल अपनी धुन के पक्के आदमी
हैं। अपने पुराने दिनों को याद करते हुए कहते हैं कि, 'जब मैंने गाना लिखना शुरू किया तो, अपने ही गाँव के मशहूर निर्माता -
निर्देशक प्रकाश झा पर बड़ा भरोसा और गर्व करता था कि हमारे अपने हैं और मैं बम्बई
जाऊंगा तो, प्रकाश जी जरूर सहारा देंगे और अपनी फिल्म
मेंं गाना लिखने का मौका देंगे। मगर जब मैं मुम्बई में आकर उनसे मिला तो, मेंरे सारे सपनों पर तुषारापात हो गया।
सारा जोश ठंढा हो गया। बहुत निराश हुआ मै उनके व्यवहार से। और उसी समय मन में ठान
लिया कि, यहां से वापस नहीं जाऊंगा और फिल्म गीतकार
बन कर रहुंगा। बस,
वह दिन और आज
का दिन, मेरा संघर्ष जारी है। सैकड़ों गाने फिल्म
एवं एल्बम में आ चुके हैं। अभी तो बहुत से गाने आने बाकी है। मुझे लगता है, अभी तक मेरा सबसे बेस्ट गाना नहीं आया है।
इस लिए मैं मरते दम तक लिखना चाहता हूं।'
बॉलीवुड की मजिल प्रतिभावान
व्यक्तियों के लिए हमेशा सहज रही है। सिर्फ जीविकोपार्जन की मुश्किलें सभी के
सामने आती है। रुस्तम अपनी धुन के पक्के हैं, जो ठान लेते हैं, वह करते हैं। गांव घर - परिवार का किसानी और सिलाई का अनुभव यहां उनके
हौसले को मजबूत बना दिया। खेती ,- किसानी का काम करते तो कहां और कैसे? फिल्मी दुनिया से दूर जा भी नहीं सकते थे। बस, उनको सिलाई का काम भा गया। दर्जी बनकर
खाने - कमाने लगे। लेकिन थोड़े समय में ही उन्होंने अपने काम में थोड़ा सा
परिवर्तन किया। दर्जी मास्टर से अल्ट्रेशन मास्टर बन गए। बेशक उन्होंने वक्त की
नजाकत को पहचान लिया था। बड़े शहरों में लोग - बाग नए कपड़े सिलवाने से ज्यादा
रेडी मेड कपड़े खरीदना पसंद करते हैं और इनकी फिटिंग के लिए अल्ट्रेशन करने वाले
टेलर की मदद लेते हैं। इसमें काम कम और दाम अच्छा खासा मिल जाता है। आज भी मुम्बई
के जोगेश्वरी पूर्व में नए - पुराने कपड़ों का अल्टर बनाते अपनी कलम से कुछ न कुछ
लिखते रहते हैं। ऐसे ही काम करते हुए उन्होने सैकड़ों गाने लिखे हैं।
पिछले दिनों भोजपुरी फिल्म
"ज़िंदा दिल" का ट्रेलर रिलीज हुआ। इसमें रुस्तम घायल के लिखे गीतोंं की
चर्चा सर्वत्र हो रही है। यह फिल्म शीघ्र रिलीज होगी। अब तक रुस्तम घायल के लिखे
गीतों को जाने माने पार्श्वगायको उदितनरायण, भरत शर्मा व्यास, मनोज तिवारी,
विनय बिहारी, कल्पना अवस्थी, विनोद राठौड़ जैसे दिग्गजों ने अपने
स्वरों से सजाया है। कई भोजपुरी फिल्में रिलीज को तैयार हैं। जिसमें प्रमुख है
प्यार के रंग हजार,
कसम धरती
मइया की, बा केहू माई के लाल, ई कइसन प्रथा, सुहागिन, सेनुरा के लाज,
गजब भइल रामा, केहू हमसे जीत न पाई, कजरी आदि। कई हिन्दी फिल्मों के लिए भी
इनके लिखे गीत रिकॉर्ड हो चुके हैं। सभी रिलीज की लाइन में हैं। कई एलबम बजार में
उपलब्ध हैं। लगभग सभी कैसेट कम्पनियों के लिए गीत लिखे हैं। जिसमें टी सिरीज, वीनस, माइल स्टोन,
असना, वेब इत्यादि हैं।
इतनी उपलब्धि
प्राप्त करने के बावजूद भी वह जमीन से जुडें हैं। आज भी अपने गाँव जाते हैं तो, खेती बारी में हाँथ बँटाते हैं। हिम्मत न
हारने वाले मशहूर गीतकार रुस्तम घायल जी आज नवरचनाकारों के लिए मिसाल बन चुके हैं।
फुरसत के पलों में ये काव्यगोष्ठियों में जाकर नव रचनाकारों की प्रेरणा भी बनते
हैं और उनको आगे बढ़ने के हुनर भी बताते हैं। कहते हैं कि, 'आप सब अपनी मेहनत अपनी लगन से आगे बढें। मंजिल खुद आपके कदम
चूमेगी।' इन्हें कई संस्थाओं से सम्मान भी मिले
हैं। हाल ही में उनको देश की प्रतिष्ठित साहित्यिक, सामाजिक व सांस्कृतिक संस्था "काव्य सृजन" का प्रथम फिल्म
साहित्य रत्न सम्मान प्राप्त हुआ है।