Tuesday 4 November 2014

जब सदाशिव अमरापुरकर को पड़ी गालियां!

१८ नवंबर १९८३।  लखनऊ का कैपिटल सिनेमा।  इस सिनेमाहॉल में गोविन्द निहलानी की फिल्म अर्द्धसत्य रिलीज़ हो रही थी।  उस समय तक आक्रोश और विजेता फिल्म से गोविन्द निहलानी चर्चित निर्देशक बन चुके थे।  आक्रोश के भीकू लहन्या के कारण ओम पूरी का  गहरे चेचक के दंगों  से भरा चेहरा दर्शकों के दिमाग पर असर कर चुका  था।  अर्द्ध सत्य में ओम पूरी पुलिस अधिकारी अनंत वेलणेकर  का किरदार कर रहे थे।  फिल्म शुरू हुई।  दर्शक घटनाक्रम में उलझता चला गया।  फिल्म के अंत में अनंत नेता का गला घोट कर मार देता है।  पूरा सिनेमाघर दर्शकों की जोशीली तालियों से गूँज रहा था।  यह तमाम तालियां अनंत वेलणेकर  यानि ओम पुरी  की जीत के लिए थीं।  लेकिन, दर्शकों के दिमाग में रामा शेट्टी घूम रहा था।  रामा शेट्टी, जो भ्रष्ट नेता था।  वह अनंत वेलणकर का हर तरह से शोषण करता है।  लेकिन, जब वह उसके ज़मीर को ललकारता है तो अनंत उसे मार देता है।  दर्शक पूरी फिल्म में रामा शेट्टी की भृकुटियों, उसके माथे की सलवटों और कुटिल संवाद अदायगी से उबाल रहा था। इसी लिए जब लखनऊ का पहले शो का दर्शक सिनेमाघर से बाहर निकला, तब जुबां पर अनंत वेलणेकर  से ज़्यादा रामा शेट्टी का नाम था। बाहर निकालता दर्शक रामा शेट्टी को गंदी गालियां बक रहा था। इस रामा शेट्टी को इस क़दर क़दर दर्शकों के जेहन पर बैठाने का काम  किया था मराठी थिएटर और फिल्मों के अभिनेता सदाशिव अमरापुरकर ने।  इसके बाद , लखनऊ के फिल्म प्रेमियों ने सदाशिव अमरापुरकर की बुरे और सुहृदय चरित्र वाली फ़िल्में केवल उनके कारण ही देखी थी।  हुकूमत और  इश्क़ की सफलता इसका प्रमाण है। 

११ मई १९५० को जन्मे गणेश कुमार नर्वोडे, जब २४ साल बाद सदाशिव नाम से रंगमंच पर उतरे थे, उस समय शायद ही किसी को एहसास रहा होगा कि यह गहरे रंग वाला अहमदनगर में पैदा हुआ व्यक्ति एक दिन बॉलीवुड को एक नयी विधा देगा। अर्द्धसत्य के रामा शेट्टी के ज़रिये ही बॉलीवुड के दर्शकों का परिचय सदाशिव अमरापुरकर से हुआ ।  इस फिल्म में सदाशिव की संवाद अदायगी का  ख़ास चुभता लहज़ा और माथे में पड़ती सलवटें हिंदी फिल्मों के खलनायक की नहीं परिभाषा गढ़ रही थी । अर्द्ध सत्य के हिट होते ही सदाशिव अमरापुरकर के रूप में हिंदी  फिल्मों को भिन्न शैली में संवाद बोलने वाला विलेन  और चरित्र अभिनेता मिल गया । इस फिल्म के लिए सदाशिव अमरापुरकर को बेस्ट सपोर्टिंग एक्टर का फिल्मफेयर अवार्ड मिला ।  इस फिल्म के बाद उन्हें जवानी, आर पार, तेरी मेहरबानियाँ, खामोश, आखिरी रास्ता, मुद्दत और हुकूमत जैसी बड़ी फ़िल्में मिल गयीं ।  हालाँकि,  इन फिल्मों में ज़्यादातर में उन्हें नेगेटिव रोल ही मिले ।  हुकूमत के वह मुख्य विलेन  थे ।  सदाशिव अमरापुरकर अपने करियर के शीर्ष पर पहुंचे महेश भट्ट की फिल्म सड़क से ।  इस फिल्म में उन्होने औरत के वेश में रहने वाले खल नायक महारानी का किरदार किया था ।  इस फिल्म के लिए सदाशिव अमरापुरकर को पहली बार स्थापित फिल्मफेयर का श्रेष्ठ खल अभिनेता का पुरस्कार मिला ।  नब्बे के दशक के मध्य में सदाशिव अमरापुरकर के करियर को कॉमेडी मोड़ मिला । उन्होंने डेविड धवन की फिल्म आँखें में इंस्पेक्टर प्यारे मोहन का कॉमिक किरदार किया था । सदाशिव अमरापुरकर  और कादर  खान ने एक साथ दिल लगा के देखों, हम हैं कमाल के, ऑंखें, आग, द  डॉन, कुली नंबर १, याराना, छोटे सरकार,मेरे दो अनमोल रतन, आंटी नंबर  १,बस्ती, परवाना, खुल्लम खुल्ला प्यार करें , कोई मेरे दिल में है, झाँसी की रानी, हम हैं धमाल के और दीवाने  तथा  गोविंदा के साथ आँखें, आंटी नंबर १, कुली नंबर १, दो आँखें बारह हाथ, राजा भैया को भी अच्छी सफलता मिली ।  इन कॉमेडी फिल्मों के बीच सदाशिव अमरापुरकर ने एक बार भी खल नायिकी के हुनर दिखाए फिल्म इश्क़ में ।  वह इस फिल्म में अजय देवगन के अमीर पिता बने थे। सदाशिव अमरापुरकर ने अपने पूरे फिल्म करियर में दो सौ से ज़्यादा फिल्मों में भिन्न किरदार किये ।  उन्हें हमेशा यह मलाल रहा कि  हिंदी फिल्म निर्माताओं ने उन्हें टाइप्ड भूमिकाएं ही दी ।   इसीलिए उन्होंने धीरे धीरे कर हिंदी फिल्मों में अभिनय करना कम कर दिया ।  उनकी आखिरी फिल्म बॉम्बे टॉकीज  २०१३ में रिलीज़ हुई थी ।  सदाशिव अमरापुरकर के दौर में कादर  खान, परेश रावल, अनुपम खेर, आदि जैसे  मज़बूत चरित्र अभिनेता थे ।  उन्होंने इन सशक्त हस्ताक्षरों के बीच अपने ख़ास अंदाज़ में  अपनी ख़ास जगह बनायी । इससे साबित होता है कि अमरापुरकर हिंदी फिल्मों के हरफनमौला सदाशिव थे।   







Monday 3 November 2014

रसूख वाला बॉय फ्रेंड ज़रूरी है- श्रेया नारायण

यों  तो श्रेया नारायण का प्रोफाइल काफी भरा पूरा है।  उनके खाते में नॉक आउट, कुछ करिये, राजनीति, तनु वेड्स मनु, सम्राट एंड क., साहब बीवी और गैंगस्टर, रॉक ऑन,  आदि फ़िल्में दर्ज हैं।  रेखा के साथ इंद्र कुमार की फिल्म सुपर नानी  पिछले शुक्रवार रिलीज़ हुई है।  इस फिल्म में वह रेखा की बहु के किरदार में हैं, जो फिल्म अभिनेत्री बना चाहती हैं।  पेश है उनसे हुई बातचीत -
१- सुपर नानी रिलीज़ हो चुकी है।  कैसा लग रहा है ?
मेरे पेट में मरोड़ जैसी उठ रही थी।  मैं लम्बे समय बाद काम पर लौटी थी।  मैं अपनी माँ की बीमारी के कारण  कोई दो साल तक फिल्म नहीं कर पायी।  वह इस फिल्म को देखना चाहती थीं, लेकिन, जब तक फिल्म पूरी होती उनकी डेथ हो गयी।
२- रेखा और रणधीर कपूर जैसे वरिष्ठ कलाकारों के साथ फिल्म का अनुभव कैसा रहा ? कोई तनाव ?
हाँ, होता है।  आप इतने वरिष्ठ कलाकारों की वरिष्ठता और सम्मान के प्रति सतर्क रहते हो।   लेकिन,  आपको अपना ख्याल भी रखना होता है।  कभी इतने वरिष्ठों के साथ काम बेहतर हो जाता है।  कभी सामान्य से कम भी।  यह डायरेक्टर पर निर्भर करता है कि  वह बैलेंस कैसे बनाता है।
३- अन्य फिल्मों के चरित्रों के मुकाबले सुपर नानी में आपका किरदार कैसा है ?
मैंने वायआरएफ की सीरीज पाउडर में एक पुलिस की मुखबिर धंधे वाली का किरदार किया था।  मैं साहब बीवी और गैंगस्टर में महुआ रखैल का किरदार कर रही थी।  रॉकस्टार में मेरा कैमिया था। मैंने ज़्यादातर फिल्मों में सेक्सी और ग्लैमरस रोल किये हैं। पर इन सब से अलग है मेरा सुपर नानी का किरदार।  यह पूरी तरह से हास्य से भरपूर है।
४- रॉकस्टार की छोटी भूमिका करने का क्या नजरिया था ?
मुझे लोग आज भी उस रोल के लिए याद रखते हैं।  यह दिमाग को झिंझोड़ देने वाली भूमिका थी।  मैंने इसमे अपनी अभिनय शक्ति दिखायी थी।  मैं समझती हूँ कि  विश्व के किसी भी सिनेमा में छोटे मगर प्रभावशाली रोल का महत्व होता है।
५- बतौर एक्टर और बतौर सामान्य स्त्री आपकी चाहत क्या है ?
मैं चुनौतीपूर्ण भूमिका करना चाहती हूँ, जो पिछली भूमिका से भिन्न हो । हर रोल में भिन्नता होनी चाहिए।  नहीं तो सब बोरिंग हो जाता है।  वैसे मैं एक प्यारी सी पारिवारिक ज़िन्दगी चाहती हूँ।  मैं अपने सपने पूरे करना चाहती हूँ।  मेरा हमेशा कोई लक्ष्य होता है, और मैं उसी के अनुसार काम करती हूँ।  इससे ज़िंदगी सकारात्मक हो जाती है।
६- आपकी राजनीतिक और शैक्षणिक पृष्ठभूमि है।  क्या आप कभी राजनीति  में जाना चाहेंगी ?
हाँ बिलकुल।  मैं मैनेज कर पाने में सक्षम हूँ।  मैं दबाव झेल सकती हूँ।  मैं ख़राब से खराब  परिस्थितियों में भी संयम नहीं खोती।  मैंने अपनी माँ के कैंसर के दिनों में मृत्य की चुनौती झेली है।
७- बॉलीवुड में नए चेहरों की भरमार हो रही है।  आप इन्हे क्या सलाह देना चाहेंगी ?
अगर आप इंडस्ट्री से नहीं हैं तो मिस इंडिया बनिए।  ऑडिशन में समय बर्बाद मत कीजिये।  किसी स्टार को या ताकतवर रसूखवाले पुरुष  को मित्र बनाइये।  अगर यह नहीं है तो आप समय बर्बाद करते हैं।  अगर आपमे प्रतिभा नहीं भी है  घबराइये नहीं।  अच्छा चेहरा मोहरा, कनेक्शन और कम कपडे आपके काफी काम आएंगे।
८- आपको कौन या क्या प्रेरणा देता है ?
 न्याय के लिए संघर्ष मुझे प्रेरित करता है।  सादगी और दयालुता सबसे बड़े इंस्पिरेशन है।  ऐसे सामान्य लोग, जो अपनी कमियों के बावजूद दूसरों के लिए करने को तैयार रहते हैं, मेरे प्रेरक हैं।  मुझे मेरे दोस्त और परिवार प्रेरणा देता है।  मैं किसी से भी प्रेरणा ले सकती हूँ, अगर मेरी ज़िंदगी के लिए सार्थक हो, मेरे बौद्धिक लक्ष्य को पाने में सहायक हो।
राजेंद्र कांडपाल

सलमान खान की बॉक्स ऑफिस पर 'जय' कराने वाले 'बोरडे'

जहाँ एक तरफ तमाम वेब पेज, अख़बार और सोशल साइट्स पर चरित्र अभिनेता सदाशिव अमरापुरकर के दुखद निधन के समाचार से भरे हुए थे, वहीँ एक दिन पहले स्वर्गवासी हुए नृत्य निर्देशक जय बोरडे का कोई नाम लेवा तक नहीं था।  अलबत्ता, सलमान खान ने  ट्विटर पेज पर उनके निधन पर शोक ज़रूर व्यक्त किया था।   सलमान खान का जय बोरडे को याद करना स्वाभाविक था।  सलमान खान के स्टारडम पर जय बोरडे के डांस स्टेप्स का बड़ा योगदान था।  उन्होंने सलमान खान की पहली सुपर डुपर हिट फिल्म मैंने प्यार किया का नृत्य निर्देशन किया था।  इस फिल्म ने सलमान खान को टॉप पर पहुँचाने में मदद की।  इसके बाद जय बोरडे सलमान खान और राजश्री की सभी फिल्मों का निर्देशन कर रहे थे। उन्होंने कुदरत, कसम पैदा करने वाले की और लव इन गोवा के नृत्य निर्देशन में सह  भूमिका निभाई थी।  उन्हें स्वतंत्र रूप से किसी फिल्म की कोरियोग्राफी करने का मौका नसीरुद्दीन शाह की फिल्म हीरो हीरालाल से मिला।  उन्होंने सलमान खान की बाग़ी, सनम बेवफा, कुर्बान, सूर्यवंशी, एक लड़का एक लड़की, निश्चय, हम आपके हैं कौन, वीरगति और हम साथ साथ हैं का नृत्य निर्देशन भी किया था।  ग़दर एक प्रेमकथा में सनी देओल जैसे नृत्य के गैर जानकार अभिनेता से मैं निकला गड्डी   लेकर जैसे गीत पर नृत्य करा ले जाना जय बोरडे की प्रतिभा का ही कमाल था।  उन्होंने राजश्री की मैं प्रेम की दीवानी हूँ और विवाह फिल्मों का नृत्य निर्देशन भी किया।  उन्हें फिल्म हम आपके हैं कौन के नृत्य निर्देशन के लिए राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार भी मिला।  जय बोरडे निधन पर दुःख व्यक्त करते हुए सलमान खान ने कहा, "जय मेरे प्रिय कोरियोग्राफर थे।  मैंने उनके साथ हम आपके हैं  कौन,मैंने प्यार किया, हम साथ साथ हैं, आदि के गीतों पर स्टेप्स करने का पूरा पूरा आनंद लिया था। ईश्वर उनकी  आत्मा को शांति दे। 

सदाशिव के रामा शेट्टी ने हिंदी फिल्मों के विलेन को नए आयाम दिए थे

११ मई १९५० को जन्मे गणेश कुमार नर्वोडे , जब २४ साल बाद सदाशिव नाम से रंगमंच पर उतरे थे, उस समय शायद ही किसी को एहसास रहा होगा कि  यह गहरे रंग वाला अहमदनगर में पैदा हुआ व्यक्ति एक दिन बॉलीवुड को एक नयी विधा देगा।  १९७४ में  मराठी नाटकों से अपने अभिनय करियर की शुरुआत करने वाले सदाशिव ने १९७४ में पहली मराठी फिल्म अमरस पा ली. शुरू में सदाशिव को मराठी फिल्मों में छोटे रोल ही मिले।  उन्हें बड़ा और मशहूर करने वाला रोल मिला  मराठी फिल्म बाल गंगाधर तिलक में तिलक का ।  इस फिल्म के बाद सदाशिव ने कई मराठी फ़िल्में की।  उन्होंने अपनी फिल्म निर्माण कंपनी अंजना आर्ट्स के तहत मराठी फ़िल्में भी बनायी । इसी दौरान बॉलीवुड कला फिल्मों की आलोचना हो रही थी कि यह कूड़ा फ़िल्में हैं, इनका आम दर्शकों से ख़ास सरोकार भी नहीं होता, जिन्हे ज़्यादा दर्शक देखता ही नहीं ।  उस दौरान श्याम बेनेगल का सिनेमा चर्चित हो रहा था ।  उनके सिनेमा को जीवंत करने का काम श्याम के सिनेमेटोग्राफर गोविन्द निहलानी कर रहे थे ।  गोविन्द निहलानी जब सिनेमा बनाने उतरे तो उन्होंने  मेंटर श्याम बेनेगल से थोड़ा हट कर रास्ता चुना ।  श्याम बेनेगल की फिल्मों के दबे कुचले किरदार गोविन्द निहलानी की फिल्म में आकर आक्रोशित हो रहे थे ।  ओमपुरी की मुख्य  भूमिका वाली फिल्म आक्रोश ऎसी ही फिल्म थी ।  इस फिल्म ने कला फिल्मों के शोषित नायक को भी विद्रोही चोला पहना दिया ।  कला सिनेमा और मुख्य धारा के बीच सेतु का काम किया गोविन्द निहलानी की फिल्म अर्द्धसत्य ने ।  यह फिल्म व्यवस्था के नीचे दबे हुए एक पुलिस अधिकारी अनंत वेलणेकर  के विद्रोह की थी ।  एक नेता रामा  शेट्टी के तलुवे चाटते चाटते वह अधिकारी विद्रोह कर उठता है और नेता को उसका गला दबा कर मार देता है ।  नेताओं और पुलिस भ्रष्टाचार से पीड़ित तत्कालीन दर्शकों की आवाज़ बने ओम पूरी । लेकिन, ओम पूरी का किरदार रामा  शेट्टी के बिना अधूरा था । ओमपुरी के पुलिस किरदार को उकसाने वाले रामा शेट्टी का किरदार मराठी फिल्मों के अभिनेता सदाशिव अमरापुरकर ने किया था ।  इस फिल्म में सदाशिव की संवाद अदायगी का  ख़ास चुभता लहज़ा और माथे में पड़ती सलवटें हिंदी फिल्मों के खलनायक की नहीं परिभाषा गढ़ रही थी ।  यह पहली फिल्म थी जिसमे व्यवस्था के महत्वपूर्ण अंग एक राजनेता पर उंगली उठायी गयी थी । अर्द्ध सत्य के हिट होते ही सदाशिव अमरापुरकर के रूप में हिंदी  फिल्मों को भिन्न शैली में संवाद बोलने वाला विलेन  और चरित्र अभिनेता मिल गया । इस फिल्म के लिए सदाशिव अमरापुरकर को बेस्ट सपोर्टिंग एक्टर का फिल्मफेयर अवार्ड मिला ।   दिलचस्प बात यह है कि  सदाशिव अमरापुरकर को अर्द्ध सत्य की सफलता के बाद जो  फिल्म मिली वह श्याम और तुलसी रामसे  की हॉरर फिल्म पुराना मंदिर थी ।  इस फिल्म में उन्होंने दुर्जन चौकीदार की भूमिका की थी ।  अर्द्ध सत्य से सदाशिव के अभिनय का डंका मुख्य धारा के फिल्मकारों के बीच बज गया ।  उन्हें जवानी, आर पार, तेरी मेहरबानियाँ, खामोश, आखिरी रास्ता, मुद्दत और हुकूमत जैसी बड़ी फ़िल्में मिल गयीं ।  हालाँकि,  इन फिल्मों में ज़्यादातर में उन्हें नेगेटिव रोल ही मिले ।  हुकूमत के वह मुख्य विलेन  थे ।  धर्मेन्द्र की मुख्य भूमिका  वाली हुकूमत ने उसी साल प्रदर्शित फिल्म मिस्टर इंडिया से ज़्यादा कमाई की थी ।  इस फिल्म के बाद धर्मेन्द्र और सदाशिव अमरापुरकर की नायक-खल नायक जोड़ी हिट हो गयी ।  सदाशिव अमरापुरकर अपने करियर के शीर्ष पर पहुंचे महेश भट्ट की फिल्म सड़क से ।  इस फिल्म में उन्होने औरत के वेश में रहने वाले खल नायक महारानी का किरदार किया था ।  इस फिल्म के लिए सदाशिव अमरापुरकर को पहली बार स्थापित फिल्मफेयर का श्रेष्ठ खल अभिनेता का पुरस्कार मिला ।  नब्बे के दशक के मध्य में सदाशिव अमरापुरकर के करियर को कॉमेडी मोड़ मिला । उन्होंने डेविड धवन की फिल्म आँखें में इंस्पेक्टर प्यारे मोहन का कॉमिक किरदार किया था । इस फिल्म से गोविंदा और कादर  खान के साथ सदाशिव अमरापुरकर की जोड़ी खूब जम  गयी ।  सदाशिव अमरापुरकर  और कादर  खान ने एक साथ दिल लगा के देखों, हम हैं कमाल के, ऑंखें, आग, द  डॉन, कुली नंबर १, याराना, छोटे सरकार,मेरे दो अनमोल रतन, आंटी नंबर  १,बस्ती, परवाना, खुल्लम खुल्ला प्यार करें , कोई मेरे दिलम में है, झाँसी की रानी, हम हैं धमाल के और दीवाने जैसी १७ फ़िल्में कीं । गोविंदा के साथ सदाशिव अमरापुरकर की कॉमेडी फिल्मों आँखें, आंटी नंबर १, कुली नंबर १, दो आँखें बारह हाथ, राजा भैया को भी अच्छी सफलता मिली ।  इन कॉमेडी फिल्मों के बीच सदाशिव अमरापुरकर ने एक बार भी खल नायिकी के हुनर दिखाए फिल्म इश्क़ में ।  वह इस फिल्म में अजय देवगन के अमीर पिता बने थे। सदाशिव अमरापुरकर ने अपने पूरे फिल्म करियर में दो सौ से ज़्यादा फिल्मों में भिन्न किरदार किये ।  उन्हें हमेशा यह मलाल रहा कि  हिंदी फिल्म निर्माताओं ने उन्हें टाइप्ड भूमिकाएं ही दी ।   इसीलिए उन्होंने धीरे धीरे कर हिंदी फिल्मों में अभिनय करना कम कर दिया ।  उनकी आखिरी फिल्म बॉम्बे टॉकीज  २०१३ में रिलीज़ हुई थी, जिसमे उन्होंने दिबाकर बनर्जी के निर्देशन में बनी कहानी में भूमिका की थी ।  सदाशिव अमरापुरकर के दौर में कादर  खान, परेश रावल, अनुपम खेर, आदि जैसे  मज़बूत चरित्र अभिनेता थे ।  उन्होंने इन सशक्त हस्ताक्षरों के बीच अपने ख़ास अंदाज़ में  अपनी ख़ास जगह बनायी । यह काफी है बताने के लिए कि  अमरापुरकर हिंदी फिल्मों के हरफनमौला सदाशिव थे।   






Sunday 2 November 2014

यह नोरा सुन्दर, सेक्सी और ताकतवर भी है

नोरा फतेही को बॉलीवुड पर ज़बरदस्त विदेशी हमला कहा जा सकता है।  वह मोरक्को की सुन्दरी हैं।  सुपर मॉडल रही हैं।  अपने देश में हॉट ब्यूटी मानी जाती हैं। कनाडा में वह बेली डांसर के रूप में मशहूर हुईं । बॉलीवुड को ऎसी ही विदेशी और हॉट सुंदरियों की चाहत रहती है।  फिर नोरा फतेही में तो पंजाबी रक्त भी मिला है।  यानि बॉलीवुड में विदेशी खूबसूरत अभिनेत्रियों का जमावड़ा लगा ही रहता है।  लेकिन, नोरा फतेही इनसे काफी अलग हैं।  उन्होंने निर्देशक कमल सडाना की फिल्म 'रोर टाइगर ऑफ़ द  सुंदरबन्स' सीजे की भूमिका  की है।  पर यह भूमिका सेक्स बम वाली नहीं।  बेशक, फिल्म के पहले ही दृश्य में वह अपनी छातियों के उभारों को दिखाती नज़र आती है।   लेकिन, वास्तव में वह फिल्म में सेक्स सिंबल नहीं, बल्कि एक कमांडो की भूमिका कर रही हैं. वह जंगल में नर भक्षी शेर को मारने के लिए अपने साथियों के साथ आयीं हों, इसलिए उनकी बदन दिखाने वाली पोशाकें उपयुक्त हैं।   लेकिन,फिल्म के आगे बढ़ते  बढ़ते  नोरा अपने रंग में आने लगती हैं। वह हॉलीवुड की एक्शन सुंदरियों की तर्ज़ पर एक्शन करती हैं. एयर ग्लाइडिंग करती हैं।  उनके एक्शन खतरनाक हद तक किये गए हैं। इस प्रकार से नोरा फतेही अन्य पुरुष किरदारों की मौजूदगी में भी दर्शकों में अपनी मौजूदगी दर्ज़ करा ले जाती हैं। अपनी भूमिका के बारे में नोरा कहती हैं, "जब मैं पहली बार कमल से मिलीं, उन्होंने फिल्म का टेस्ट शॉट दिखाया तो मैं फिल्म पर फ़िदा हो गयी।  मेरी भूमिका ब्यूटी, ब्रेन और ब्रॉन यानि शारीरिक शक्ति का मिक्सचर हैं। हम लोगों को अपना सब कुछ लगा देना पड़ता था।  जब दिन ख़त्म होता तब हम अपने शरीर के ज़ख्मों को सहला रहे होते।" रोर टाइगर्स ऑफ़ द  सुंदरबन्स से नोरा फतेही की शुरुआत बढ़िया हुई है।  एक्शन फिल्मों में एक्शन नायिका के लिए वह निर्माताओं की पसंद बन सकती हैं, बशर्ते कि  वह अपनी हिंदी को माज लें।  वैसे इस समय भी उन्हें इमरान हाशमी के साथ फिल्म मिस्टर एक्स में एक आइटम सांग मिला है।  उनके प्रकाश झा की फिल्म क्रेजी कक्कड़ फैमिली में भी एक ख़ास भूमिका मिलने की खबर है।

कैलेंडर से फिल्म अभिनेत्री तक हिमांषा

हिमांषा वेंकटसामी की ग्लैमर जगत में शुरुआत किंगफ़िशर कैलेंडर  मॉडल के बतौर हुई थी।  हालाँकि, इस कैलेंडर की शूट के बाद हिमांषा  दक्षिण अफ्रीका चली गयीं।  उनका ज़्यादा समय वहीँ बीता। क्योंकि, वह दक्षिण अफ्रीका में मेडिकल शिक्षा के साथ साथ ड्रामा और एक्टिंग भी सीख रही थीं। "क्योंकि, मैं हमेशा से फिल्म एक्ट्रेस बनाना चाहती थीं," कहती हैं हिमांषा ।   लेकिन, किंगफ़िशर कैलेंडर ने तमाम दूसरी मॉडल की तरह हिमांषा  के लिए भी बॉलीवुड के दरवाज़े खुलवा दिए थे । पर इससे पहले ही वह दक्षिण अफ्रीका में सुपरमॉडल बन गयी थीं ।  अलबत्ता, किंगफ़िशर  कैलेंडर की बदौलत हिमांषा  को कमल सडाना की फिल्म रोर टाइगर ऑफ़ द  सुंदरबन्स मिल गयी ।  उन्हें ऑडिशन के लिए बुलाया गया ।  उन्हें सात पेज की स्क्रिप्ट पकड़ा दी गयी और संवाद बोलने के लिए कहा गया ।  हिमांषा  के लिए हिंदी बिलकुल अजनबी भाषा जैसी थी ।  लेकिन, हमांशा  कहती हैं, "मुझे चुनौती रास आती है। मैंने अपने संवाद ठीक ठाक बोल डाले ।" इसके बाद कमल सडाना ने हिमांषा  को  फिल्म में पंडित और उसके साथियों की ट्रैक गाइड झुम्पा बना दिया ।  हिमांषा  ने फिल्म में काफी एक्शन किये हैं ।  वह साँपों से भरे कीचड़  में दौड़ी हैं ।  मगरमच्छो से भरी नहर की तेज़ धार में तैरी  हैं । उनके लिए अब एक्शन कुछ ख़ास कठिन नहीं रह गया है ।  इसके बावजूद हिमांषा रोर के बाद एक्शन फिल्म नहीं कर रहीं ।  वह एक फिल्म में पंजाबी कवयित्री का किरदार कर रही हैं ।  वह कहती हैं, "मैं इंटरेस्टिंग स्क्रिप्ट और इंटेस भूमिकाएं करना चाहूंगी ।"

राजेंद्र कांडपाल

यह 'अकबर' विलेन है क्योकि…!


सोनी एंटरटेनमेंट चैनल के ऐतिहासिक सीरियल 'भारत का वीर पुत्र महाराणा प्रताप' में माहौल बदलने वाला है।  अभी तक कुंवर प्रताप और अजबदे के बीच की मीठी तकरार का माहौल बड़ी तेज़ी से बदलेगा।  वास्तविकता तो यह है कि सीरियल महाराणा प्रताप में तेज़ी से बदलाव हुआ है।  प्रताप और अजबदे के चरित्र बदल चुके हैं।  अब दोनों बड़े हो गए हैं।  किशोरावस्था में दोनों परिस्थितियोंवश अलग हो गए थे ।  अब दोनों युवा हो चुके हैं ।  शरद मल्होत्रा कुंवर प्रताप और रचना पारूलकर अजबदे बन चुकी हैं ।  अब दर्शकों को इंतज़ार है युवा अकबर का।  टीवी के इस अकबर को अभिनेता कृप सूरी कर रहे हैं।  मुग़ल-ए -आज़म के पृथ्वीराज कपूर और जोधा अकबर के ह्रितिक रोशन के बाद, कृप सूरी के अकबर का महत्व  इस लिहाज़ से होगा कि  यह छोटे परदे का जवान अकबर होगा ।  परन्तु, मुग़ल-ए -आज़म के पृथ्वीराज कपूर और जोधा अकबर के ह्रितिक रोशन के द्वारा खेले गए अकबर से कृप सूरी का अकबर  इस दृष्टिकोण से बहुत अलग है कि टीवी का अकबर विलेन  है। वह प्रताप को परास्त करने के लिए घात प्रतिघात करता रहता है ।  अब यह टकराव आमने सामने का होने जा रहा है ।  कृप सूरी को अपने अकबर को खल  चरित्र बनाने के लिए ख़ास मेहनत करनी होगी ।  "लेकिन", कहते हैं कृप  सूरी, "नेगेटिव रोल करना कठिन होता है।  पर एक आर्टिस्ट को चैलेंज स्वीकार करना चाहिए. इसीलिए मैंने अकबर को रोल करना मंज़ूर किया।" कृप सूरी कई टीवी सीरियलों में काम कर चुके हैं।  मान रहे तेरा पिता, अपनों के लिए गीता का धर्मयुद्ध और फुलवा जैसे सीरियल कर चुके, कृप सूरी को लाइफ ओके के दर्शक सीरियल सावित्री के राहुकाल की भूमिका से अच्छी तरह पहचानते हैं ।  आजकल वह उतरन में असगर का रोल कर रहे हैं ।  पर भारत के वीर पुत्र महाराणा प्रताप के अकबर को पृथ्वीराज कपूर और ह्रितिक रोशन के अकबर की टक्कर में बनाये रखना कृप सूरी के लिए सचमुच बड़ी चुनौती साबित होगा ।



                                                                                                

स्ट्रगल कर रहे जिमी शेरगिल !

खबर है कि एक्टर जिमी शेरगिल के स्ट्रगल का दौर शुरू होने जा रहा है।  जिमी के प्रशंसकों को यह खबर चौंकाने वाली लग सकती है. जिमी और स्ट्रगल।  सवाल हीं नहीं उठता।  उनकी हर साल तीन  चार फ़िल्में रिलीज़ होती रहती हैं. इस साल भी, उनकी तीन हिंदी फ़िल्में रिलीज़ हो चुकी हैं।  पंजाबी फिल्म इंडस्ट्री के वह स्थापित नाम हैं।  ऐसे में उनके स्ट्रगल करने का सवाल ही नहीं उठता।  लेकिन, वह स्ट्रगल कर रहे हैं, पर ऑन  स्क्रीन।  मनोज मेनन और आसिफ क़ाज़ी की फिल्म गन पे डन  में जिमी शेरगिल एक स्ट्रगलिंग एक्टर पंचम का किरदार कर रहे हैं, जिसके आइडल फ़िरोज़ खान हैं।  वह मिमिक्री करता है और समझता है कि  बहुत अच्छा काम कर रहा।  अभीक  भानु निर्देशित गन पे डन हँसा  हँसा  कर लोटपोट कर देने वाली रोमांस कॉमेडी फिल्म है।  इस फिल्म में जिमी शेरगिल की नायिका तारा  अलीशा हैं।  विजय राज़, संजय मिश्रा, वृजेश हीरजी जैसे सक्षम अभिनेता जिमी को सपोर्ट करने के लिए मौजूद है।  पिछले दिनों इस फिल्म का मुहूर्त संपन्न हुआ।  इस मौके पर अपने रोल के बारे में जिमी शेरगिल ने कुछ यों  बताया, "पंचम अपने आइडल फ़िरोज़ खान की तरह एक्टर बनने के लिए मुंबई आया है।  परन्तु, वह अपनी मिमिक्री को ही अभिनय समझता है। वह नहीं जानता कि  वह बहुत ख़राब करता है।"

Saturday 1 November 2014

'सुपर' तो नहीं ही है यह 'नानी'

इंद्र कुमार ने कभी दिल, बेटा, राजा, इश्क़, मन और रिश्ते जैसी मनोरंजक और परिवार से जुडी फिल्मों का निर्माण किया था।  यह फ़िल्में हिट हुई. सभी श्रेणी के दर्शकों द्वारा पसंद की गयी।  फिर वह मस्ती पर उतर  आये।  मस्ती जैसे सेक्स कॉमेडी बना डाली।  फिल्म हिट हो गयी तो प्यारे मोहन, धमाल, डबल धमाल और ग्रैंड मस्ती जैसी फ़िल्में बना डालीं।  इसके साथ ही परिवार उनका सरोकार  छूटता चला गया।  अब जबकि वह ग्रैंड मस्ती जैसी सौ करोडिया सेक्स कॉमेडी फिल्म के बाद सुपर  नानी से परदे पर रेखा को लेकर आये हैं तो लगता है जैसे वह फिल्म बनाना भूल गए हैं. उन्होंने रेखा जैसी बहुमुखी प्रतिभा वाली अभिनेत्री को नानी बनाया , लेकिन कहानी घिसी पिटी ले बैठे।  रेखा नानी बनी है, जिसका उसके घर में उसका पति और बच्चे अपमान और उपेक्षा करते हैं।  तभी आता है नाती शरमन जोशी।  वह यह सब देख कर अपनी नानी को सुपर नानी बनाने की कोशिश करता है।
जब तक रेखा नानी होती हैं, आकर्षित करती हैं. वह बेहतरीन अभिनय करती थीं , कर सकती हैं और आगे भी  लेंगी, फिल्म से साबित करती हैं।  लेकिन, जैसे ही वह सुपर नानी का चोला पहनती हैं, बिलकुल बेजान हो जाती हैं. यह इंद्र कुमार की असफलता है कि  वह पूरी फिल्म में रेखा की उपयोगिता नहीं कर सके।  इंद्र कुमार का रेखा को मॉडल बना कर सुपर नानी बनाने का विचार ही, अस्वाभाविक है।  वह किसी दूसरे एंगल से रेखा को सुपर नानी साबित कर सकते थे।  जैसे वह फिल्म में रेखा के बेटे से उधार लेनी आये गुंडे खुद के लिए रेखा की ममता देख कर वापस चले जाते  हैं.
फिल्म को इंद्र कुमार के लिए नहीं रेखा और शरमन जोशी की जोड़ी के कारण देखा जा सकता है।  यह जोड़ी जब भी परदे  पर आती  है,  छा  जाती है।  शरमन जोशी बेहद सजीव अभिनय करते हैं।  पता नहीं क्यों फिल्मकार उनका उपयोग घटिया कॉमेडी करवाने के लिए ही क्यों करते हैं।  इंद्र कुमार की बिटिया श्वेता के 'इंद्र कुमार की बिटिया' टैग से उबरने की जुगत फिल्म में नज़र नहीं आती।  रणधीर कपूर को न पहले एक्टिंग आती थी, न इस फिल्म में वह कुछ कर पाये हैं।  अनुपम खेर ने यह फिल्म निश्चित ही पैसों के लिए ही की होगी।  बाकी, दूसरों को जिक्र करने से कोई फायदा नहीं है।

बॉक्स ऑफिस पर 'रोर' टाइगर्स ऑफ़ द सुंदरबन्स



विक्टोरिया नंबर २०३, चोरी मेरा काम, यह रात फिर न आएगी, प्रोफ़ेसर प्यारेलाल, जैसे फिल्मों के निर्देशक ब्रिज  सडाना और पुरानी स्टंट फिल्मों की नायिका सईदा  खान के बेटे कमल सडाना ने लम्बे समय तक अजय गोयल और सुखवंत ढड्डा का निर्देशक असिस्टेंट रहने के बाद  कमल ने फिल्म बेखुदी से काजोल के साथ फिल्म डेब्यू किया।  बेखुदी को बॉक्स ऑफिस पर दर्शकों की बेरुखी मिली। लेकिन, काजोल चल निकली, कमल सडाना पीछे रह गए।  उन्होंने रंग और बाली उम्र को सलाम जैसी फ्लॉप फ़िल्में करने के बाद अपने हीरो को सलाम कर दिया और कर्कश फिल्म का निर्देशन किया।  फिल्म ज़्यादातर फेस्टिवल्स में देखि जा सकी।  अपने पिता की फिल्म विक्टोरिया नंबर २०३ का रीमेक बनाने के बाद वह तकनीकी प्रक्षिक्षण के लिए विदेश चले गए।  उन्होंने स्पेशल  इफेक्ट्स में ख़ास तौर पर वीएफएक्स में, रूचि दिखलायी।  इसी का नतीजा है इस शुक्रवार रिलीज़ फिल्म रोर टाइगर्स ऑफ़ द  सुंदरबन्स।  कमल सडाना ने रोर को लिखा और निर्देशित किया है।  फिल्म के संवाद और पटकथा आनंद गोराडिया ने लिखी है। 
फिल्म की कहानी सिर्फ इतनी है कि पंडित का भाई सुंदरबन के जंगलों में वाइल्ड फोटोग्राफी करने आता है।  वह  जंगल में शिकारियों द्वारा लगाए गए ट्रैप से एक सफ़ेद शेर के बच्चे को बचा कर अपने कमरे में ले आता है।  फारेस्ट अफसर उस बच्चे को अपने साथ ले जाती है।  शेर के बच्चे के मुंह में लगे खून को जिस तौलिये से पोंछा जाता है, वह जंगल के कमरे में ही रखा है।  शेरनी उसे सूंघते हुए आती है और पंडित के भाई को मार डालती है। शेरनी से अपने भाई की मौत का बदला लेने के लिए पंडित अपने फौजी साथियों के साथ जंगल आता है।  वह फारेस्ट अफसर के मना करने बावजूद शेरनी को मारने के लिए जंगल में पानी के रास्ते घुसता है। फिर सब कैसे एक एक कर मारे जाते हैं? क्या पंडित शेरनी को मार पाता  है? क्या होता है यह जानना देखने के लिहाज से ज़बरदस्त है।  
हिमार्षा
फिल्म की कहानी बेकार है।  अगर, इस फिल्म की कहानी केवल जंगल की घटनाओं को लेकर बनायीं जाती तो कुछ बात बनती।  क्योंकि, शेरनी बदला लेने की थ्योरी तो पहली ही नज़र खारिज हो जाती है।  इसे रोमांचक घटनों से गूंथा जा सकता था।  स्क्रिप्ट और  स्क्रीन प्ले के द्वारा इसे बखूबी किया गया है।  वीएफएक्स के द्वारा ऐसे ऐसे रोमांचक दृश्य फिल्माएं गए हैं, जो अभूतपूर्व हैं।  सिनेमाघर में बैठे दर्शक जंगल का रोमांच महसूस करते हैं।  इस फिल्म की खासियत यह है कि  यह कहानी चलने के साथ साथ सुंदरबन के बारे में महत्वपूर्ण जानकारियां भी देती जाती हैं।  जानवरों और साँपों के व्यवहार का भी दर्शकों से परिचय कराती जाती है। इन्ही सब कारणों से फिल्म रोर टाइगर्स ऑफ़ द  सुंदरबन्स ख़ास बन जाती है।  निर्देशन के लिहाज़ से कमल सडाना अच्छा काम कर ले जाते हैं। रोमांच फिल्मों में संगीत (बैक ग्राउंड) और  फोटोग्राफी का ख़ास महत्त्व होता है।  जॉन स्टीवर्ट और माइकल वाटसन इस क्षेत्र में अपना काम ज़बरदस्त करते हैं।  उनके कारण फिल्म साधारण से असाधारण बन जाती है।  कमल सडाना के साथ मुजम्मिल नासिर ने अपने संपादन से फिल्म को सुस्त नहीं पड़ने दिया है।  एक के बाद एक रोमांचक दृश्य दर्शकों को चौंकाते जाते है।  जब फिल्म ख़त्म होती है तो वह तालियां बजाने से खुद को रोक नहीं पाता।  यही कमल सडाना और उनके साथियों की सफलता है।
नोरा फतेही
फिल्म में पंडित की मुख्य भूमिका में टीवी एक्टर अभिनव शुक्ल है।  उनका काम अच्छा है।  सुब्रता दत्त को भीरा की खल  भूमिका दी है।  पर लिखते समय भीरा को ख़ास तवज़्ज़ो नहीं दी गयी है।  इसलिए वह उभरने नहीं पाते। फिल्म की तमाम स्टारकास्ट काम पहचानी या नयी है। आरन चौधरी ने सूफी, प्रणय दीक्षित ने मधु, वीरेंदर सिंह घूमन ने सीजे, अचिंत कौर ने फारेस्ट अफसर, पुलकित ने उदय और अली क़ुली ने हीरो की भूमिका की है।  यह सब अपनी भूमिकाओं के उपयुक्त है।  यहाँ  जिक्र करना होगा दो अभिनेत्रियों का।  सीजे की भूमिका में नोरा फतेही और झुम्पा की भूमिका में हिमर्षा फिल्म को ख़ास बनाती है।  हालाँकि, यह दोनों अभिनेत्रियां अभिनय के लिहाज़ से कमज़ोर हैं, लेकिन अपनी सेक्स अपील से दर्शकों को बहला ले जाती हैं।  नोरा फतेही तो एक्शन भी खूब करती हैं।  जंगल में शेरों  से बच कर भाग सीजे दर्शकों को तालियां बजाने  को मज़बूर कर देती हैं।  


अगर आप जंगल की वास्तविकता देखना चाहते हैं, जंगल और उसके प्राणियों को समझना चाहते हैं, अगर आप रोमांच के दीवाने हैं, तो रोर टाइगर्स ऑफ़ द  सुंदरबन्स आपके लिए ही बनी है।  ज़रूर देखिएगा।  कमल सडाना से आगे भी कुछ अच्छी फिल्मे देखने को मिल सकती हैं।   
































ऋचा चड्ढा का 'मसान' में स्वच्छ भारत अभियान


भारतीय प्रधान मंत्री  के स्वच्छ भारत मन्त्र का असर बॉलीवुड पर काफी हुआ है। बॉलीवुड सेलिब्रिटी की ऐसी प्रभावित कलाकारों की श्रंखला में ऋचा चड्ढा भी शामिल हो गयी हैं. ऋचा चड्ढा को दर्शकों ने फुकरे और गैंग्स ऑफ़ वासेपुर जैसी फिल्मों में लीक से हट कर भूमिकाएं करते देखा हैं। काम बजट की फिल्मों में उनके किरदार यादगार बन जाते हैं।  आजकल ऋचा वाराणसी यानि प्राचीन बनारस में नीरज घैवन  की फिल्म मसान की शूटिंग कर  रही हैं  । उन्होंने यह निर्णय लिया कि वह सेट पर गन्दगी न तो खुद फैलाएंगी न किसी को फैलाने देंगी।  उन्होंने यूनिट के सभी लोगों से अनुरोध किया कि  वह लोग शूटिंग के   दौरान प्लास्टिक बैग, कप और प्लेट का उपयोग नहीं करें।  अगर कोई ऎसी चीज है भी तो उसे कूड़ेदान में डालें   या किसी नियत स्थान पर पहुंचा दें।  ख़ास तौर पर बनारस के घाटों को शूटिंग के बाद रोज ही बिलकुल साफ़ कर दें।  वह कहती हैं, "पवित्र गंगा को स्वच्छ रखने के लिहाज़ से स्वच्छ भारत अभियान बहुत पॉजिटिव है। हम केवल बोलते हैं, गंगा को साफ़ करने के लिए करते कुछ नहीं।  हमारा यह छोटा योगदान है। हो सकता है इससे कुछ दूसरे भी प्रेरित हों।" इसमे कोई शक नहीं कि  ऋचा चड्ढा को यह छोटा योगदान महत्वपूर्ण है, क्योंकि, फिल्म वालों का सन्देश निचले स्तर  तक आसानी से पहुँच जाता है।

शुरू होगा प्रेम रतन धन पायो से नया ट्रेंड !

खबर है कि निर्देशक सूरज बडजात्या की फिल्म प्रेम रतन धन पायो से नया ट्रेंड शुरू हो सकता है. उल्लेखनीय है कि राजश्री प्रोडक्शंस का अपनी फिल्मो के वितरण का अपने आप में अनोखा तरीका है. यह बैनर अपनी फ़िल्में हजारों प्रिंट में एक साथ रिलीज़ कर वीकेंड में १०० करोड़ कमाने में विश्वास नहीं करता. राजश्री प्रोडकशन्स ने हम आपके हैं कौन के सेटेलाइट और वीडियो के अधिकार बेचे नहीं थे. बाद की फिल्मों को पहले सीमित प्रिंट्स में रिलीज़ करने के बाद धीरे धीरे प्रिंटों की संख्या में इज़ाफ़ा किया. अब यह बात दीगर है कि कभी यह दांव उल्टा पड़ा. लेकिन, राजश्री प्रोडक्शन ने अपना तरीका नहीं बदला. अब पता चला है कि राजश्री प्रोडक्शंस फिल्म प्रेम रतन धन पायो को रिलीज़ करने के लिए किसी डिस्ट्रीब्यूटर का सहारा नहीं लेगा. राजश्री प्रोडक्शन का अपना डिस्ट्रीब्यूशन ऑफिस पूरे देश में है. पूरे भारत के प्रदर्शकों ने राजश्री प्रोडक्शन से संपर्क करके प्रेम रतन धन पायो की रिलीज़ के लिए अपने सिनेमाघरों का प्रस्ताव पेश किया है. वह अपना थिएटर बुक कराने के लिए कुछ धनराशि का भुगतान करने तक के लिए तैयार है. ध्यान रहे कि सलमान खान की दोहरी भूमिका वाली फिल्म प्रेम रतन धन पायो दिवाली २०१५ वीकेंड में रिलीज़ होगी. अगर, राजश्री का यह प्लान टारगेट पर लगता है तो कोई शक नहीं कि जल्द ही डिस्ट्रीब्यूटर नाम का जीव फिल्म निर्माता और सिनेमाघर मालिकों के बीच से गायब हो जाए.

मैं डायरेक्शन एन्जॉय करता हूँ - आदित्य ओम

आदित्य ओम को एक्टर या डायरेक्टर या दोनों ही कहा जा सकता है।  वह बन्दूक  और शूद्र जैसी चर्चित और विवादित फिल्मों के हीरो थे।  उनकी फिल्म फन फ्रीक्ड  फेसबुक रिलीज़ होने वाली है। इस फिल्म, उनकी पहले की फिल्मों, एक्टिंग या डायरेक्शन के उनके शौक, आदि पर उनसे हुई बातचीत के कुछ अंश-
फन  फ्रीक्ड फेसबुक क्या है ? यह किसके लिए है ? इससे आप क्या बताना चाहते हैं? क्या फेसबुक खतरनाक है? या सावधानी बरतनी चाहिए ?
'फन फ्रीक्ड  फेसबुक' सबके लिये है । यह एक शुद्ध कमर्शियल फिल्म है,  जिसका उद्देश्य मनोरंजन करना है, हाँ इसमें सोशल मीडिया एडिक्शन और उसके ख़तरों से जुड़े पहलुओं को भी छुआ गया है । इंटरनेट  एक अजीबोग़रीब दुनिया है, जहाँ  इनफार्मेशन और नॉलेज के अलावा समाज की हर बुराई भी आसानी से उपलब्ध है । इंटरनेट पर आप किसी भी तरह की झूठी पहचान बना के किसी से भी बात कर सकते है  यह वाक़ई एक वर्चुअल वर्ल्ड है ।
 आजकल मोबाइल या एसएमएस को हॉरर का जरिया बना लिया गया है. क्या इलेक्ट्रॉनिक्स गैजेट्स डराने वाले हैं ?  
टेक्नोलॉजी हमेशा उपयोग करने वाले के ऊपर होती है कि  वह  उसका सही ग़लत कैसा भी इस्तेमाल कर सकता है । एक पारदर्शी माध्यम न होने के कारण फेसबुक या एसएमएस या ट्वीटर पर उलटी सीधी बात करने वालों को एक निर्भीकता एक सुरक्षा मिल जाती है । इलेक्ट्रॉनिक्स गैजेट ने जीवन को आसान बनाया है,  लेकिन इंटरनेट ने हर व्यक्ति को ड्यूल आइडेंटिटी दी है- एक रियल और एक वर्चुअल जिसके मनोवैज्ञानिक असर दूरगामी और भयावह है ।
आपने पहले अपने एक्टिंग करियर की  शुरुआत साउथ की मूवीज से की।  आपको हिंदी फिल्मों में आने में १२ साल क्यों लगे? इस बीच आपकी एक फिल्म मिस्टर लोनली  रिलीज़ हुई। 
मैंने कोई भी चीज़ किसी प्लानिंग या टाईमटेबल के तहत नहीं की, क्योंकि जीवन ऐसे चलता नहीं है । जो काम हाथ में आया वो अपनी क्षमताओं के अनुसार निभाया । कुछ ग़लतियाँ भी हुई लेकिन हर क़दम पर मेरा एक ही प्रयास था कि किस तरीक़े से अपनी कला को और निखारू हाउ टू  बिकम अ टोटल सिनेमा पर्सन, जिसे सिनेमा  के हर पहलू की पकड़ हो, समझ हो  । बॉलीवुड आज एक बंद दुनिया हैै, जहाँ  कनेक्शंस, नेटवर्किंग, फैमिली नाम और अथाह पैसे के बग़ैर आप मेनस्ट्रीम में मुख्य अभिनेता या एवं फिल्म डायरेक्टर के तौर पे सर्वाइव  नहीं कर पायेंगे । इन सारी कसौटियों पर मैं खरा नहीं उतरता था।  फिर भी मैंने हार नहीं मानी है और प्रयत्नशील हूँ ।
मिस्टर लोनलीकिस प्रकार की फिल्म थी ?
मिस्टर लोनली एक बग़ैर किसी संवाद वाली एक्सपेरिमेंटल फिल्म थी,  जो शायद मैं और अच्छी बना सकता था।
आपकी फ़िल्में बन्दूक और शूद्र  चर्चित भी हुई और  विवादित भी, लेकिन यह फ़िल्में बॉक्स ऑफिस पर नहीं चल सकीं। आप अपनी इस असफलता के लिए किसे दोषी मानते है ?
आजकल फिल्म्स का बॉक्स ऑफिस सिर्फ़ उसकी मार्केटिंग निश्चित करती है। ये तथ्य हर कोई जानता है । दो सौ करोड़ और डेढ़ सौ करोड़ कमाने वाली फिल्मों की क्वालिटी की सच्चाई हर कोई जानता है । बंदूक़ और शूद्र (इसका निर्देशन मेरे मित्र  संजीव जैस्वाल ने किया था) दोनो अपने दायरे में अच्छी फ़िल्में थी, जिन्हें समीक्षकों का भरपूर प्रेम मिला लेकिन बॉक्स ऑफिस पर कुछ ख़ास नहीं हो पाया । हम लोग अपनी मार्केटिंग में फेल हुये लेकिन बहुत कम लोग इस बात को समझते हैं कि इन फिल्मों की इतनी बड़ी रिलीज़ होना ही बहुत बड़ी बात है ।
दो हिंदी फिल्मों की असफलता से आपने क्या सबक लिया ?
अपने काम पर और अपनी मेहनत अौर आत्मविशलेशण तथा कमर्शियल पहलू को ध्यान में रखना । प्रोडक्ट ऐसा हो जिसकी मार्केटिंग युथ और कंस्यूमर सेगमेंट में हो सके ।
क्या आप हमेशा अपनी फ़िल्में डायरेक्ट करते हैं ? क्या इस प्रकार से आप पर एक्स्ट्रा प्रेशर नहीं रहता ? यह किस  किस प्रकार से फायदेमंद लगता है आपको ?
सिनेमा विज़न का खेल है . अगर कल किसी दूसरे डायरेक्टर ने अच्छे विज़न के साथ एप्रोच किया और हमारे बजट मे़ काम करने को तैयार है तो क्यों नही । ऐसा कोई भी नियम मैंने अपने ऊपर नहीं लगाया है । जहाँ तक रही प्रेशर की बात तो जिस काम को आप एन्जॉय करते है़ं उसमें प्रेशर कैसा ।
फेसबुक के पोस्टर में छह अधनंगी लड़कियां दिखायी गयीं हैं।  इस पोस्टर से आप क्या बताना चाहते हैं ?
जी ये  फीमेल सेंट्रिक फिल्म है । इसके किरदारों की पृष्ठभूमि हाई सोसाइटी की है  उसी के हिसाब से उनका पहनावा है ।  मेरी पिछली फ़िल्मों में भी किरदारों के बैकग्राउंड के अनुसार ही पहनावा था ।
माया मोबाइल के बारे में बताएं ?
माया मोबाइल मेरी बहुचर्चित शार्ट फिल्म है,  जिसमें मोबाइल फोन मिलने के बाद एक गाँव के पुजारी का जीवन किस प्रकार बदल जाता है, दिखाया गया है । माया मोबाइल को इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल्स में बहुत अवार्ड्स भी मिले। मैंने शार्ट फिल्म विधा में काफ़ी काम किया है   मेरी एक और शार्ट फिल्म 'फॉर माय मदर' भी काफ़ी सराही गई ।
आपको डायरेक्शन पसंद है या एक्टिंग? अगर डायरेक्शन  पसंदीदा एक्टर है, जिसे आप डायरेक्ट करना चाहेंगे और एज ऐन एक्टर किस के डायरेक्शन में काम करना चाहेंगे ?
जो अभिनेता मेरी कहानी पर फिट हो, उसी के साथ काम करने की मेरी इच्छा रहती है । किसी ख़ास एक्टर के हिसाब से मैंने आजतक किसी फिल्म को नहीं बनाया । बतौर एक्टर अगर मुझे हॉलीवुड के कुछ डायरेक्टर्स जैसे कि डैनी  बॉयल, टारनटिनो,  मार्टिन स्कोर्सेस, ओलिवर स्टोन की फिल्मों में खड़ा होने का भी मौक़ा मिले तो यह मेरा सौभाग्य होगा । ऑफ़ कोर्स मैं किल्म डायरेक्शन ज़्यादा एन्जॉय करता हूँ, क्योंकि इसमें सारी मानवीय कलाओं का समागम है । इट  इज़  द हाईएस्ट इवॉल्वड आर्ट फॉर्म व्हिच इन्वोल्वेस इंटीग्रेशन ऑफ़ द  विसुअल, साउंड एंड इन्ट्यूसन। 


आवाज़ बदल रहा है बाजीराव रणवीर सिंह !

रणवीर सिंह के बारे में कहा जाता है कि  वह अपने किरदारों में डूब जाने वाले अभिनेता हैं।  अब तक उन्होंने जितनी फ़िल्में की हैं, उनसे वह अपनी रोमियो टाइप इमेज बनाते नज़र आते हैं।  ऎसी भूमिकाएं उनकी ऑफ स्क्रीन इमेज के साथ मेल खाती हैं।  अब उन्होंने खुद को भूमिकाओं के अनुरूप ढालने का प्रयास भी शुरू कर दिया है।  संजयलीला भंसाली की फिल्म गोलियों की रास लीला -राम-लीला में उनकी भूमिका उनकी इमेज के अनुरूप आधुनिक गुजराती रोमियो टाइप थी।  परन्तु राम की भूमिका के लिए उन्होंने अपने बाल लम्बे रखे और मूछों के साथ ठेठ गुजराती पोशाकों में नज़र आये।  अब बाजीराव मस्तानी में उन्होंने परफेक्शन की  दिशा में अगला कदम रखा है।  फिल्म के लिए उन्होंने अपने सर के बाल मुंडवा दिए हैं।  वह क्लीन शेव, एक मराठी पेशवा जैसे चेहरे  मोहरे के लिए पूरी तरह से तैयार हैं।  लेकिन, रणवीर सिंह यहीं नहीं रुक रहे।  उन्होंने एक पेशवा का राजसी बाना ही नहीं पहना है, उन्होंने अपनी आवाज़ में भी बदलाव किया है।  उन्होंने अपनी आवाज़ में उतार चढ़ाव के जरिये गहराई और भारीपन लाने का प्रयास किया है।  एक ऐसा ही प्रयास अमिताभ बच्चन ने १९९० में रिलीज़ फिल्म अग्निपथ में विजय दीनानाथ की आवाज़ के लिए किया था।  इस प्रकार से, रणवीर सिंह अमिताभ बच्चन का अनुसरण करते लगते हैं।  अब देखने वाली बात होगी कि पत्नी काशीबाई और नर्तकी प्रेमिका मस्तानी के प्रेम में उलझे रणवीर सिंह खुद को कितना प्रभावशाली साबित कर पाते हैं।




दीपिका पादुकोण के ऑफ स्क्रीन प्रेमियों का स्क्रीन टकराव !

अभी तक की धमाकेदार खबर यह है कि क्रिसमस २०१५ किसी खान का नहीं होगा।  अगले साल की २५ दिसंबर को संजयलीला भंसाली और इम्तियाज़ अली ने सुरक्षित करा लिया है।  इस दिन शुक्रवार है।  यानि परफेक्ट वीकेंड।  एक्सटेंडेड वीकेंड का कोई टंटा नहीं। इसलिए, संजयलीला भंसाली ने अपनी निर्देशित फिल्म बाजीराव मस्तानी और इम्तियाज़ अली ने भी अपनी निर्देशित फिल्म तमाशा की रिलीज़ की तारीख २५ दिसंबर तय कर दी है।  संजय की फिल्म में रणवीर सिंह, दीपिका पादुकोण और प्रियंका चोपड़ा मुख्य भूमिका में हैं।  इम्तियाज़ अली की फिल्म में इम्तियाज़ के प्रिय अभिनेता रणबीर कपूर दीपिका पादुकोण के साथ तमाशा दिखा रहे हैं। इस प्रकार से दीपिका पादुकोण अपनी  मुख्य भूमिका वाली फिल्म बाजीराव मस्तानी के सामने तमाशा लेकर आ खडी हुई हैं।  दिलचस्पी यहीं ख़त्म नहीं होती।  यह दीपिका के प्रेमियों का स्क्रीन टकराव भी है।  रणवीर सिंह के साथ दीपिका रोमांस सुर्ख होता रहता है।  बात तो यहाँ तक है कि  दोनों शादी करने जा रहे हैं।  कुछ ऎसी ही सुर्खियां दीपका के रणबीर के साथ रोमांस को भी मिलती थीं। उन दिनों कहा गया कि  दीपिका रणबीर के घर के लोगों से भी मिल चुकी हैं।  लेकिन, बाद में सब कुछ कैटरीना  कैफ हो गया ।  अब जबकि दीपिका के जीवन में रणवीर सिंह और रणबीर कपूर के जीवन में कैटरीना कैफ आ गयी हैं, यह देखना दिलचस्प हो जाता है कि  अपनी दो फिल्मों से अपने दो प्रेमियों (बेशक एक पूर्व और दूसरा वर्तमान) को आमने सामने ला चुकी, दीपिका पादुकोण की इन फिल्मों को २५ दिसंबर का बॉक्स ऑफिस कैसा रिस्पांस देता है ? क्या ऐतिहासिक ड्रामा जीतेगा या आधुनिक तमाशा ! दर्शक, दीपिका पादुकोण की किस फिल्म को तरजीह देंगे ! वर्तमान प्रेमी  रणवीर सिंह के साथ बाजीराव मस्तानी को या पूर्व प्रेमी रणबीर कपूर के साथ तमाशा को ! देख तमाशा देख !!!

अनोखी स्टार कास्ट वाली फिल्म पीकू

सुजीत सरकार की फिल्म पीकू अब तक की बड़ी और अनोखी कास्ट वाली फिल्म होगी।   पीकू में सदी के महानायक अमिताभ बच्चन के साथ बेहतरीन दीपिका पादुकोण और इरफ़ान खान जैसे बेहतरीन एक्टर पहली बार एक साथ अभिनय करते हुए दिखेंगे । इस फिल्म का दूसरा शेडूल नवंबर २०१४ से कलकत्ता में शुरू होगा।   फिल्म का पहला शेडूल इस साल अगस्त से सितम्बर के बीच मुंबई में पूरा किया जा चुका है । सोनी एंटरटेनमेंट नेटवर्क डिवीज़न तथा स्वरस्वती एनटरटेन्मेंट क्रिएशन लिमिटेड और राइजिंग सन फिल्म के संयुक्त सहयोग से बनायी जा रही फिल्म पीकू २०१५ की सबसे चर्चित फिल्म मानी जा रही है।  फिल्म के निर्देशक सुजीत सरकार  इस से पहले विकी डोनर और मद्रास कैफे जैसी चर्चित फिल्मो का निर्देशन कर चुके है । पीकू  एक रोलरकोस्टर की सवारी जैसी  उत्साही पिता और पुत्री की कहानी है ।  पिता और पुत्री के किरदार में अमिताभ बच्चन और दीपका होगे । पीकू के बारे में सुजीत सरकार कहते है, " पीकू  एक ऐसी  कहानी है,  जो  आपके दिल को छू जायेगी । ​ मेरे लिए काफी सम्मान की  बात है कि अमिताभ जी , दीपिका और इरफ़ान खान जैसे पावर हाउस परफॉर्मर्स के साथ काम कर हूँ। " इस फिल्म में अमिताभ बच्चन किस प्रकार के नज़र आएंगे, उसकी एक झलक सोशल मीडिया के लिए जारी हुई है. इसमे अमिताभ बढ़ी तोंद के साथ थके हुए नज़र आ रहे हैं। अमिताभ बच्चन कहते है "फिल्म की कहानी बड़ी रोचक है ।  इस साल मैं कई प्रोजेक्ट्स  कर रहा हूँ।  उनमे से पीकू मेरे लिए खास है ।" पीकू अगले साल अप्रैल में रिलीज़ होगी।