दर्शकों को, रोशन परदे
पर, चलती फिरती परछाइयाँ अँधेरे में ही क्यों दिखाई जाती हैं ? ताकि दर्शकों को इस
सुनहरे जीवन की सच्चाई देखने का मौका नहीं मिले । लेकिन, यह सच्चाइयाँ सामने आती है,
पर तब तक काफी देर हो चुकी होती है।
अन्यथा कोई यह सोच सकता है कि सिल्वर स्क्रीन पर अमिताभ बच्चन,
धर्मेन्द्र, सनी देओल, संजय दत्त और गोविंदा आदि १९८० और १९९० के तमाम बड़े सितारों
के खिलाफ आवाज़ बुलंद करने वाले एक्टर महेश आनंद की आवाज़ दर्शकों को १८ साल तक
सुनाई नहीं पड़ी थी । मगर किसी को इसका ख्याल तक नहीं आया ।
शायद फिल्म प्रेमी चौंक
उठे होंगे, जब उन्होंने सुना होगा कि शहेंशाह, मजबूर, स्वर्ग, थानेदार, विश्वात्मा,
मजबूर, खुद्दार, बेताज बादशाह, विजेता और कुरुक्षेत्र जैसी बड़ी फिल्मों में विलेन
की भूमिका कर चुके एक्टर महेश आनंद शनिवार को मृत पाए गए । उनका शरीर गल रहा था।
क्या महेश आनंद इतनी
गुमनाम मौत का हक़दार थे ? लेकिन उनकी मौत के बाद भी किसी बड़े एक्टर ने अपना शोक
प्रकट नहीं किया । यहाँ तक कि कभी महेश आनंद के प्यार में पागल रहने वाली एक्ट्रेस
रीना रॉय की बहन बरखा ने भी महेश आनंद की मौत पर एक हाथ जोड़े हुए इमोजी के अलावा
कोई शोक सन्देश नहीं भेजा ।
महेश आनंद का शूटिंग के दौरान एक फेफड़ा नष्ट हो गया था
। वह बीमार रहने लगे । उनको शराब की बड़ी लत लग चुकी थी । २००२ में उनकी पत्नी और
बच्चे, उन्हें अकेला छोड़ कर अमेरिका चले गए थे । उसके बाद से उन्होंने महेश की कोई खबर नहीं ली ।
किसी फिल्म निर्माता ने भी आर्थिक कठिनाइयों से जूझ रहे इस एक्टर को अपनी किसी
फिल्म के लिए नहीं बुलाया ।
जब, रंगीला राजा के लिए पहलाज निहलानी ने महेश आनंद को
बुलाया तो उनके पास अपने घर से पहलाज के ऑफिस जाने तक के पैसे नहीं थे । पहलाज ने
उन्हें अपनी फिल्म में लेकर, उनमे आशा का संचार किया था । लेकिन, तब तक ज़िन्दगी ने
उनका साथ छोड़ने का मन बना लिया था ।
महेश आनंद को श्रद्धांजलि ।
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