भारतीय भाषाओँ हिंदी, तेलुगु, तमिल, कन्नड़, मलयालम, पंजाबी, आदि की फिल्मो के बारे में जानकारी आवश्यक क्यों है ? हॉलीवुड की फिल्मों का भी बड़ा प्रभाव है. उस पर डिजिटल माध्यम ने मनोरंजन की दुनिया में क्रांति ला दी है. इसलिए इन सब के बारे में जानना आवश्यक है. फिल्म ही फिल्म इन सब की जानकारी देने का ऐसा ही एक प्रयास है.
Friday, 31 May 2013
बॉक्स ऑफिस को दीवाना बना देगी यह जवानी
यह जवानी है दीवानी क्यों देखें? देखें तो क्यों, न देखें तो क्यों? इस पर बात करने से पहले सबसे बड़ी बात यह कि रणबीर कपूर और दीपिका पादुकोण की इस जवानी को ज़रूर देखें। यह आज के युवा की फिल्म है जो घूमना चाहता है, दौड़ना चाहता है, ऊँचाइयाँ छूना चाहता और गिरना भी चाहता है। पर फिल्म खालिस आज के युवा वाली नहीं, जैसी कुछ हफ्ते पहले रिलीज हिट फिल्म आशिक़ी 2 थी, जिसका युवा निराश, शराब में डूबा हुआ और लड़की से शादी से पहले सेक्स करने वाला। ठेठ आज के युवा की तरह, जो मिलते ही सेक्स और बिस्तर की बात ही करते हैं। कोंडोम और गर्भ निरोधक पर्स में जमे रहते हैं, न जाने कब ज़रूरत पड़ जाये। यह जवानी है दीवानी का बनी फ्लर्ट से इश्क को ज़्यादा बेहतर समझता है।
यह जवानी है दीवानी में आशिक़ी 2 के हीरो आदित्य रॉय कपूर भी हैं। इत्तेफाक ही है कि उनका चरित्र अवि, आशिक़ी 2 के राहुल जैसा ही है- शराब पीने वाला, बिसतरबाज़ और कमोबेश अपनी कमजोरियों के लिए खुद को दोषी नहीं मानने वाला। अगर फिल्म अवि पर होती तो शायद आशिक़ी 2 का सेकुएल बन गयी होती। पर यह फिल्म भट्ट कैंप से नहीं, बल्कि धर्मा प्रॉडक्शन के करण जौहर की फिल्म है। यह बैनर कहीं न कहीं मूल्यों की बात करता है। अयान मुखर्जी फिल्म के डाइरेक्टर हैं, जिन्होंने वेक अप सिड बनाई थी। उनकी फिल्म का नायक कबीर थापर उर्फ बनी आज का युवा है। बनी आज का युवा है तो वह घूमना चाहता है, दौड़ना चाहता है, ऊँचाइयाँ छूना चाहता और गिरना भी चाहता है। बिल्ली यानि चशमिश पढ़ाकू नैना तलवार। हमेशा किताबों में डूबी रहने वाली। वह पढ़ाई से ऊब कर, अपने स्कूल के साथियों को मौज मजा लेते हुए देख कर, खुद भी एंजॉय करना चाहती है। इसलिए वह मनाली जाती है। स्टेशन पर मिलता है, बनी। बनी लड़कियों से फ्लर्ट करता है। लेकिन वह आज के लड़कों की तरह पहली मुलाकात में लड़कियों से सेक्स करना नहीं चाहता। नैना तलवार घरेलू प्रकार की है। अपना शहर, माता पिता और दोस्त परिवार उसकी प्राथमिकता हैं। बनी उसको देखता है। पर उससे फ्लर्ट नहीं करता। नैना पूछती है तो कहता है कि तुम फ्लर्ट के नहीं इश्क के काबिल हो। यही फर्क है आज के सेक्स के भूखे युवा से अलग इश्क को इबादत समझने वाला यह जवानी है दीवानी का बनी में। मनाली में नैना बिल्कुल बिंदास हो जाती है। वह उस लाइफ को एंजॉय करती है। वह बनी से प्रेम करने लगती है। वह उससे अपने प्रेम का इज़हार करना चाहती है कि बनी बताता है कि वह विदेश जा रहा है, अपना सपना पूरा करने के लिए। आठ साल बीत जाते हैं। बनी अपनी बेस्ट फ्रेंड की शादी में शामिल होने आता है। चारों दोस्त फिर मिलते हैं। बनी न जाने कब नैना से प्यार करने लगता है। वह उससे कहता है कि वह नैना से प्रेम करता है और शादी करना चाहता है। वह नैना से कहता है कि चलो, मैं तुम्हारा हाथ थाम कर दुनिया घूमना चाहता हूँ। नैना शहर, दोस्त, परिवार को तरजीह देती है। वह कहती है, हम कितनी भी कोशिश करें, कुछ न कुछ तो छूट ही जाता है। इसलिए जो सामने है उसे एंजॉय करो। बनी को एहसास होता है कि ऊँचाइयाँ छूने के उसके सपनों ने उसे पिता की मौत की खबर तक नहीं लगने दी थी। तब वह नैना से शादी कर अपने शहर में दोस्तों के बीच रहने का निर्णय लेता है।
यह जवानी है दीवानी युवाओं को उपदेश नहीं देती तो पतन की राह भी नहीं दिखाती। फिल्म यह नहीं कहती कि आप सपने मत देखो। लेकिन यह ज़रूर बताती है कि कुछ न कुछ तो छूट ही जाता है। फिल्म बताती है कि कुछ ऐसे मूल्य हैं, जिनका भौतिकवादी युग में भी महत्व हैं। अयान ने इस घिसी पिटी उपदेश देती जैसी लगने वाली फिल्म को बेहद मनोरंजक ढंग से बिना अश्लील हुए बनाया है। फिल्म का कोई भी एक्टर मिडिल फिंगर नहीं दिखाता, हीरो अपनी हीरोइन से नहीं पूछता कि क्या उसने सेक्स किया है। वह उसे बिस्तर पर पटकने की कोशिश नहीं करता। दोनों इश्क को एहसास की तरह भोगते हैं, आँखों और हाव भाव से व्यक्त करते हैं। इसके बावजूद फिल्म युवा है, क्योंकि, फिल्म में वह पूरी मस्ती है जो आज का युवा करता है और करना चाहता है। बस सेक्स की डोज़ नहीं है।
फिल्म में रणबीर कपूर और दीपिका पादुकोण मुख्य भूमिका में हैं। यकीन जानिए क्या खूब कैमिस्ट्रि है दोनों के बीच। दोनों अपनी आँखों और चेहरे से अपने इमोशन एक्सप्रेस करते हैं। रणबीर कपूर तो गजब की एक्टिंग करते ही हैं। दीपिका पादुकोण साबित करती हैं कि वह अपनी समकालीन सभी अभिनेत्रियों को पीछे छोड़ कर बहुत आगे जाने वाली हैं। वह खूबसूरत है, वह सेक्सी हैं पर यहाँ ग्लैमरस लगती हैं। उन्होने अपने ऊम्फ फैक्टर को यूज करने की कोई कोशिश नहीं की है। रणबीर कपूर की तरह युवाओं के दिलों में बस जाती हैं दीपिका। फिल्म में दीपिका का एक डाइलॉग है, जो फिल्म के प्रोमोस में काफी चला है- अवि तुम समझते क्यों नहीं कि अगर मैं दो मिनट भी तुम्हारे पास रही तो मुझे प्यार हो जाएगा...फिर से। यकीन जानिए सिनेमाघर में बैठे दर्शक बेतहाशा तालियाँ बजाते हैं और स्वागत करते हैं दीपिका के निर्णय का। यह प्रमाण है कि दर्शकों को दीपिका-रणबीर chemistry खूब जमी। कल्कि कोएचलीन पहली बार अच्छी लगीं। आदित्य रॉय कपूर को थोड़ा एक्टिंग से काम लेना होगा, नहीं तो वह जल्द ही बासी हो जाएंगे। बाकी कलाकार ठीक ठाक हैं।
फिल्म निर्देशक की फिल्म है, लेखकों की फिल्म है। अयान मुखर्जी इस पुरानी लगने वाली कहानी को अपनी कल्पनाशीलता के सहारे बिल्कुल नए ढंग से पेश करते हैं। देशी विदेशी लोकेशन है, पर यह कहानी को भटकाती नहीं, चरित्रों को उभारती है। मनिकन्दन का कैमरा मुख्य चरित्र की ऊंचाई तक पहुँचने की इच्छा को पूरा सहयोग देता है। एडिटिंग काफी चुस्त है, इसलिए फिल्म तेज़ तर्रार बन पड़ी है।
प्रीतम युवाओं को पसंद आने वाला संगीत बनाते हैं। यंग आडियन्स को टार्गेट करने वाली फिल्मों की वह जान हैं। यह जवानी है दीवानी का संगीत युवाओं को जवानी का एहसास कराने वाला है।
फिल्म देखिये। युवा भी देखें और युवाओं के अम्मा अब्बा भी। युवा इसलिए देखें कि सपने देखने और पूरा कराने ज़रूरी हैं, पर उतने ही ज़रूरी माता पिता और उनके एहसास भी। फिल्म में सेक्स उतना ज़रूरी नहीं, जितना इश्क। रणबीर कपूर के स्वाभाविक अभिनय के लिए फिल्म देखी जा सकती है। यों फिल्म केवल दीपिका पादुकोण के लिए भी देखी जा सकती है। फिल्म की शुरुआत में ही माधुरी दीक्षित का घाघरा आइटम डांस है। वैसे यह फिल्म में नहीं होता तो भी फिल्म चलती ही। लेकिन, यह आइटम बताता है कि माधुरी दीक्षित में आज भी तेज़ाब है।
कल दीपिका पादुकोण अपनी फिल्म की सफलता की मन्नत मनाने Mumbai के मशहूर सिद्धिविनायक मंदिर गयी थीं। आज उनकी फिल्म को अच्छी ओपेनिंग मिली है। लेकिन, अगर दीपिका मंदिर नहीं भी जाती तो फिल्म को हिट होना ही था। सच जानिए फिल्म को देखने के बाद दर्शक जैसे रिसपोन्स दे रहे हैं, वह इस फिल्म को इस साल की सबसे बड़ी हिट फिल्म बनाने का संकेत कर रहे हैं। मार दी रणबीर कपूर और दीपिका पादुकोण ने हिट फिल्मों की हट्रिक्क एक साथ।
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फिल्म समीक्षा
मैं हिंदी भाषा में लिखता हूँ. मुझे लिखना बहुत पसंद है. विशेष रूप से हिंदी तथा भारतीय भाषाओँ की तथा हॉलीवुड की फिल्मों पर. टेलीविज़न पर, यदि कुछ विशेष हो. कविता कहानी कहना भी पसंद है.
Thursday, 30 May 2013
नहीं रहे बांगला फिल्मों के ऋतु
ऋतुपर्णों घोष ने अपने कैरियर की शुरुआत एडवर्टाइजिंग से शुरू की थी। हिरेर अंगटी उनकी पहली बंगला फिल्म थी। अबोहमान के लिए उन्हे बेस्ट डाइरेक्टर का राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिला। इसके बाद उन्होने कुल आठ राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार प्राप्त किए। उन्होने अपने फिल्म कैरियर में 20 फिल्में लिखीं। एक उड़िया फिल्म से वह पहली बार स्क्रीन में नज़र आए। उनकी फिल्मों दहन और रेन कोट को कार्लोवी वरी इंटरनेशनल फिल्म
फेस्टिवल में तथा चोखेर बाली और अंतरमहल को लोकार्नो इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में नामित किया गया था।
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श्रद्धांजलि
मैं हिंदी भाषा में लिखता हूँ. मुझे लिखना बहुत पसंद है. विशेष रूप से हिंदी तथा भारतीय भाषाओँ की तथा हॉलीवुड की फिल्मों पर. टेलीविज़न पर, यदि कुछ विशेष हो. कविता कहानी कहना भी पसंद है.
Wednesday, 29 May 2013
युवा दर्शकों को दीवाना बना लेने वाली है यह जवानी !
इस शुक्रवार रिलीज होने जा रही फिल्म यह जवानी है दीवानी की सफलता के लिए फिल्म की नायिका दीपिका पादुकोने व्रत उपवास रख रहीं हैं तथा उनके सिद्धि विनायक मंदिर जाने की भी खबर है। दीपिका यह सब किस लिए कर रही हैं? क्योंकि, किसी फिल्म की सफलता या असफलता का दारोमदार किसी एक एक्टर या एक्ट्रेस पर नहीं होता, बल्कि यह एक टीम वर्क है। वैसे अगर यह जवानी है दीवानी हिट हो गयी तो दीपिका पादुकोण कॉकटेल और रेस 2 के बाद लगातार तीसरी हिट फिल्म देने वाली अभिनेत्री बन जाएंगी। मगर, दीपिका का उपवास महज इसी कारण से नहीं। दीपिका पादुकोण फिल्म के प्रति काफी उत्साहित हैं। यह उनकी पसंदीदा फिल्म में से एक है। दीपिका को लगता है कि यह जवानी है दीवानी अच्छी बन पड़ी फिल्म है। उन्होने इसके लिए काफी मेहनत भी की है। इसलिए, उनका फिल्म की सफलता के लिए उत्साह में उपवास रखना स्वाभाविक है।
यह जवानी है दीवानी के हिट होने की प्रार्थना तो कई लोग कर रहे होंगे। करण जौहर भी, जो फिल्म के निर्माता हैं। अयान मुखर्जी भी, जो फिल्म के निर्देशक हैं। इस फिल्म के बाद वह अपनी पहली दोनों फिल्में हिट बनाने वाले निर्देशक बन जाएंगे। रणबीर कपूर भी, जो फिल्म के हीरो हैं। यह फिल्म उन्हे बरफी के बाद एक वास्तविक हिट फिल्म का हीरो बना देगी। कल्कि कोएचलीन और आदित्य रॉय कपूर भी, जो फिल्म के को-स्टार हैं। आदित्य तो आशिक़ी 2 के बाद इस साल लगातार दूसरी हिट फिल्म दे सकेंगे।
फिल्म का हिट और फ्लॉप का गणित बहुत आसान नहीं। आजकल कोई फिल्म केवल बॉक्स ऑफिस के बूते पर सफल होने का इत्मीनान नहीं रखती। बहुत से ऐसे रास्ते हैं, जिनसे किसी फिल्म को बॉक्स ऑफिस पर दर्शक न बटोर पाने के बावजूद घाटे का सौदा नहीं समझा जाता। इस लिहाज से यह जवानी है दीवानी को रिलीज से पहले ही हिट क्या 100 करोड़ कमा लेने वाली फिल्म बताया जा रहा है। करण जौहर ने, यह जवानी है दीवानी के वितरण अधिकार 55 करोड़ में बेच लिए हैं। उन्होने सैटिलाइट राइट्स 28 करोड़ में बेचे हैं। सात करोड़ म्यूजिक राइट्स बेच कर मिल गए हैं। ओवरसीज डिस्ट्रीबूटर्स ने 11 करोड़ पहले ही दे दिये हैं। विडियो और अन्य राइट्स बेच कर करण जौहर को 2.5 करोड़ वैसे ही मिल जाने हैं। इस प्रकार से यह जवानी है दीवानी सौ करोड़ से ज़्यादा तो फिल्म रिलीज होने से पहले ही कमा चुकी है।
इसके बावजूद तमाम निगाहें 31 मई के यह जवानी है दीवानी के बॉक्स ऑफिस आंकड़ों पर लगी होगी। कहा जा रहा है कि क्या यह जवानी है दीवानी का पहले दिन का कलेक्शन 15 करोड़ तक हो सकेगा? इसकी उम्मीद काफी है। हालांकि, फिल्म में आशिक़ी 2 के आदित्य रॉय कपूर भी हैं, लेकिन इस फिल्म को पहचान रणबीर कपूर और दीपिका पादुकोण की फिल्म की तरह ही मिली है। इसलिए फिल्म की अच्छी ओपेनिंग रणबीर कपूर की फिल्म की अच्छी ओपेनिंग मानी जाएगी, न कि आदित्य रॉय कपूर की। जहां तक यह जवानी है दीवानी को बढ़िया ओपेनिंग का सवाल है, फिल्म के लिए समय पूरी तरह से अनुकूल है। आईपीएल खत्म हो चुका है। छुट्टियों का समय है। युवा पीढ़ी पढ़ाई से उबर कर छुट्टी के मूड में है। वैसे पिछले चार सालों का इतिहास गवाह है कि जून में रिलीज फिल्में बॉक्स ऑफिस पर चाँदी बटोरती हैं। 2010 में रणबीर कपूर की कैटरीना कैफ और अन्य के स्टार्स के साथ फिल्म राजनीति रिलीज हुई थी। 4 जून 2010 को रिलीज इस फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर 94 करोड़ कमाए। 3 जून 2011 को सलमान खान और असिन की अनीस बजमी निर्देशित एक्शन कॉमेडी रेडी रिलीज हुई थी। इस फिल्म ने बढ़िया ओपेनिंग लेकर 3 इडियट्स का
वीकेंड रेकॉर्ड भी ध्वस्त कर दिया। फिल्म ने कमाए कुल 122 करोड़। 2012 में 1 जून को अक्षय कुमार प्रभूदेवा के निर्देशन में एक्शन कॉमेडी राउडि राठोर में नज़र आए। इस फिल्म ने सभी रेकॉर्ड ध्वस्त करते हुए 2012 की तीसरी सबसे ज़्यादा कलेक्शन करने वाली फिल्म होने का सम्मान प्राप्त किया। इस लिहाज से रणबीर कपूर तथा अन्य की फिल्म यह जवानी है दीवानी के बढ़िया ओपेनिंग लेने तथा 100 करोड़ से ज़्यादा कमाई केवल बॉक्स ऑफिस पर कलेक्शन से करने की उम्मीद की जा रही है।
यह संभव है। फिल्म की हाइप ज़बरदस्त बन गई है। फिल्म का संगीत चार्ट बस्टर है। छोटे पर्दे पर फिल्म के प्रोमोस और सिनेमाघरों में ट्रेलर दर्शकों को आकर्षित कर रहे हैं। दीपिका पादुकोण सेक्सीएस्ट बेस्ट हैं। रणबीर कपूर हमेशा की तरह युवा दिलों की धड़कन बनने को बेकरार नज़र आ रहे हैं। आदित्य रॉय कपूर और कल्कि कोएचलीन की जोड़ी रणबीर दीपिका की जोड़ी को सपोर्ट कर रही है। इससे यह उम्मीद करना बेमानी नहीं कि यह जवानी है दीवानी भारतीय युवाओं को अपना दीवाना बना लेगी।
यह जवानी है दीवानी के हिट होने की प्रार्थना तो कई लोग कर रहे होंगे। करण जौहर भी, जो फिल्म के निर्माता हैं। अयान मुखर्जी भी, जो फिल्म के निर्देशक हैं। इस फिल्म के बाद वह अपनी पहली दोनों फिल्में हिट बनाने वाले निर्देशक बन जाएंगे। रणबीर कपूर भी, जो फिल्म के हीरो हैं। यह फिल्म उन्हे बरफी के बाद एक वास्तविक हिट फिल्म का हीरो बना देगी। कल्कि कोएचलीन और आदित्य रॉय कपूर भी, जो फिल्म के को-स्टार हैं। आदित्य तो आशिक़ी 2 के बाद इस साल लगातार दूसरी हिट फिल्म दे सकेंगे।
फिल्म का हिट और फ्लॉप का गणित बहुत आसान नहीं। आजकल कोई फिल्म केवल बॉक्स ऑफिस के बूते पर सफल होने का इत्मीनान नहीं रखती। बहुत से ऐसे रास्ते हैं, जिनसे किसी फिल्म को बॉक्स ऑफिस पर दर्शक न बटोर पाने के बावजूद घाटे का सौदा नहीं समझा जाता। इस लिहाज से यह जवानी है दीवानी को रिलीज से पहले ही हिट क्या 100 करोड़ कमा लेने वाली फिल्म बताया जा रहा है। करण जौहर ने, यह जवानी है दीवानी के वितरण अधिकार 55 करोड़ में बेच लिए हैं। उन्होने सैटिलाइट राइट्स 28 करोड़ में बेचे हैं। सात करोड़ म्यूजिक राइट्स बेच कर मिल गए हैं। ओवरसीज डिस्ट्रीबूटर्स ने 11 करोड़ पहले ही दे दिये हैं। विडियो और अन्य राइट्स बेच कर करण जौहर को 2.5 करोड़ वैसे ही मिल जाने हैं। इस प्रकार से यह जवानी है दीवानी सौ करोड़ से ज़्यादा तो फिल्म रिलीज होने से पहले ही कमा चुकी है।
इसके बावजूद तमाम निगाहें 31 मई के यह जवानी है दीवानी के बॉक्स ऑफिस आंकड़ों पर लगी होगी। कहा जा रहा है कि क्या यह जवानी है दीवानी का पहले दिन का कलेक्शन 15 करोड़ तक हो सकेगा? इसकी उम्मीद काफी है। हालांकि, फिल्म में आशिक़ी 2 के आदित्य रॉय कपूर भी हैं, लेकिन इस फिल्म को पहचान रणबीर कपूर और दीपिका पादुकोण की फिल्म की तरह ही मिली है। इसलिए फिल्म की अच्छी ओपेनिंग रणबीर कपूर की फिल्म की अच्छी ओपेनिंग मानी जाएगी, न कि आदित्य रॉय कपूर की। जहां तक यह जवानी है दीवानी को बढ़िया ओपेनिंग का सवाल है, फिल्म के लिए समय पूरी तरह से अनुकूल है। आईपीएल खत्म हो चुका है। छुट्टियों का समय है। युवा पीढ़ी पढ़ाई से उबर कर छुट्टी के मूड में है। वैसे पिछले चार सालों का इतिहास गवाह है कि जून में रिलीज फिल्में बॉक्स ऑफिस पर चाँदी बटोरती हैं। 2010 में रणबीर कपूर की कैटरीना कैफ और अन्य के स्टार्स के साथ फिल्म राजनीति रिलीज हुई थी। 4 जून 2010 को रिलीज इस फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर 94 करोड़ कमाए। 3 जून 2011 को सलमान खान और असिन की अनीस बजमी निर्देशित एक्शन कॉमेडी रेडी रिलीज हुई थी। इस फिल्म ने बढ़िया ओपेनिंग लेकर 3 इडियट्स का
वीकेंड रेकॉर्ड भी ध्वस्त कर दिया। फिल्म ने कमाए कुल 122 करोड़। 2012 में 1 जून को अक्षय कुमार प्रभूदेवा के निर्देशन में एक्शन कॉमेडी राउडि राठोर में नज़र आए। इस फिल्म ने सभी रेकॉर्ड ध्वस्त करते हुए 2012 की तीसरी सबसे ज़्यादा कलेक्शन करने वाली फिल्म होने का सम्मान प्राप्त किया। इस लिहाज से रणबीर कपूर तथा अन्य की फिल्म यह जवानी है दीवानी के बढ़िया ओपेनिंग लेने तथा 100 करोड़ से ज़्यादा कमाई केवल बॉक्स ऑफिस पर कलेक्शन से करने की उम्मीद की जा रही है।
यह संभव है। फिल्म की हाइप ज़बरदस्त बन गई है। फिल्म का संगीत चार्ट बस्टर है। छोटे पर्दे पर फिल्म के प्रोमोस और सिनेमाघरों में ट्रेलर दर्शकों को आकर्षित कर रहे हैं। दीपिका पादुकोण सेक्सीएस्ट बेस्ट हैं। रणबीर कपूर हमेशा की तरह युवा दिलों की धड़कन बनने को बेकरार नज़र आ रहे हैं। आदित्य रॉय कपूर और कल्कि कोएचलीन की जोड़ी रणबीर दीपिका की जोड़ी को सपोर्ट कर रही है। इससे यह उम्मीद करना बेमानी नहीं कि यह जवानी है दीवानी भारतीय युवाओं को अपना दीवाना बना लेगी।
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इस शुक्रवार
मैं हिंदी भाषा में लिखता हूँ. मुझे लिखना बहुत पसंद है. विशेष रूप से हिंदी तथा भारतीय भाषाओँ की तथा हॉलीवुड की फिल्मों पर. टेलीविज़न पर, यदि कुछ विशेष हो. कविता कहानी कहना भी पसंद है.
Tuesday, 28 May 2013
फास्ट अँड फ्यूरियस 6 की स्पीड से ध्वस्त इश्क इन पेरिस !
जैसा कि मैंने अपने इस ब्लॉग में लिखा था, Hollywood की फिल्म फास्ट अँड फ्यूरियस 6 ने इंडियन बॉक्स ऑफिस पर Bollywood की फिल्मों का कत्ले आम कर ही दिया। विन डीजल, पॉल वॉकर, Dwayne Johnson और मिशेल रोड्रिगुएज अभिनीत और Justin लिन निर्देशित फास्ट अँड फ्यूरियस 6 ने साथ रिलीज तीन हिन्दी फिल्मों इश्क इन पेरिस, हम हैं रही कार के और ज़िंदगी 50 50 को बॉक्स ऑफिस पर ध्वस्त कर दिया। इत्तिफाक़ की बात यह थी कि यह तीनों हिन्दी फिल्मे एक्ट्रेस से पहचानी जाने वाली थीं। इश्क़ इन पेरिस प्रीति जिंटा की फिल्म थीं, हम हैं रही कार के में अदा शर्मा प्रोमिनेंट थीं। ज़िंदगी 50 50 तो फिफ्टी फिफ्टी क्या हंडरेड परसेंट वीणा मालिक की सेक्स अपील पर निर्भर थीं। लेकिन तीनों फिल्में पहले दिन ही औंधे मुंह गिरी। उम्मीद थी कि प्रीति जिंटा की फिल्म अच्छी ओपेनिंग ज़रूर लेगी, लेकिन इस 15 परसेंट की ओपेनिंग ही मिल सकी। वीणा मालिक और अदा शर्मा की फिल्मों को तो दर्शकों ने मुड़ कर देखने की ज़रूरत ही नहीं समझी। यही कारण था कि जहां इश्क्क़ इन पेरिस को 1.25 करोड़ का वीकेंड मिला, वही हम हैं रही कार के तथा ज़िंदगी 50 50 को लाख की डिजिट पा कर ही संतोष करना पड़ा। जबकि, इन तीनों फिल्मों को मीलों दूर छोड़ते हुए फास्ट अँड फ्यूरियस 6 ने 21.55 करोड़ का वीकेंड निकाल लिया। यह हॉलीवुड की किसी फिल्म का दूसरा सबसे अच्छा वीकेंड हैं। यह फिल्म 29 जून 2011 को रिलीज द अमेजिंग स्पाइडर मैन के 29.10 करोड़ के वीकेंड को परास्त नहीं कर पायी।
यहाँ दो प्रश्न उभर कर आते हैं। क्या हॉलीवुड की फिल्मों का क्रेज़ बढ़ा है? जी हाँ, हॉलीवुड की फिल्में और उनके सुपर स्टार बॉलीवुड के सुपर स्टार्स को दिन में तारे दिखा रहे हैं। हॉलीवुड की फिल्मों को दर्शक मिल भी रहे हैं। जारी प्रिंटों की बढ़ती संख्या इसका प्रमाण हैं। फास्ट अँड फ्यूरियस 6 को 1200 प्रिंटों में रिलीज किया गया। इतने प्रिंट्स में कभी बॉलीवुड की बड़ी फिल्में ही रिलीज हुआ करती थीं। फास्ट अँड फ्यूरियस 6 इतने ज़्यादा प्रिंटों में रिलीज के बावजूद 75 परसेंट तक का कलेक्शन करने में सफल हुई। इस फिल्म को Saturday और सनडे में इंक्रीज़ मिला। शनिवार को फास्ट अँड फ्यूरियस 6 के दर्शक 10 प्रतिशत बढ़े तो सनडे में यह इंक्रीज़ 7 प्रतिशत और ज़्यादा हो गयी। इस प्रकार से फास्ट अँड फ्यूरियस 6 ने पहले दिन 6.02 करोड़, दूसरे दिन 6.63 और सनडे को 7.05 करोड़ का कलेक्शन किया। इस फिल्म का पैड प्रीव्यू भी बहुत उत्साह जनक 1.85 करोड़ का हुआ। ज़ाहिर है कि यह आंकड़े हॉलीवुड फिल्मों की भारत में लोकप्रियता को बयान करने वाले हैं। पहले दिन फास्ट अँड फ्यूरियस 6 से अधिक बिज़नस करने वाली हॉलीवुड की दो फिल्में स्पाइडर मैन 4 और आइरन मैन 3 ही हैं। इन फिल्मों ने पहले दिन क्रमशः 8 करोड़ और 6.75 करोड़ कमाए।
दूसरा प्रश्न यह है कि क्या फास्ट अँड फ्यूरियस 6 से प्रीति जिंटा की फिल्म इश्क इन पेरिस को नुकसान झेलना पड़ा? प्रीति जिंटा के समर्थक कहना चाहेंगे कि अगर फास्ट अँड फ्यूरियस का छटा संस्करण न होता तो इश्क इन पेरिस का बिज़नस ज़्यादा होता। लेकिन यह कपोल कल्पना ही है। प्रीति जिंटा की फिल्म एक खराब कहानी, खराब अभिनय वाली, खराब बनी फिल्म थी। इसे तो सोलो रिलीज पर भी पिटना ही था। कुछ लाख का कलेक्शन घटने या बढ़ने से कुछ खास फर्क नहीं पड़ता।
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Monday, 27 May 2013
सिल्क स्मिथा न बन सकी 'मेंटल' सना खान
कहना ही पड़ेगा बेचारी साना खान! हिन्दी फिल्म यही है हाइ सोसाइटी से अपने करियर का आगाज करने वाली सना खान को पहली ही फिल्म के सुपर फ्लॉप हो जाने के बाद दक्षिण की ओर रुख करना पड़ा। वहाँ तमिल फिल्म ई में उनके अभिनय की सराहना हुई। लेकिन, इसके बाद रिलीज सना की तमाम हिन्दी और तमिल तेलुगू फिल्मे बॉक्स ऑफिस पर सस्ते में निबट गईं। सना ने बॉम्बे तो गोवा और धना धन गोल में आइटम करने के बाद हल्ला बोल में छोटा रोल मिला। हिन्दी फिल्मों में खास सफलता नहीं मिली। फिर सना खान को
बिग बॉस 6 में प्रतिभागी के रूप में देखा गया। इस शो ने जैसे सना खान की किस्मत बदल दी। इस शो के होस्ट सलमान खान ने, जो आम तौर पर औरतों पर ज़्यादा मेहरबान रहते हैं, सना को अपनी फिल्म मेंटल के लिए चुन लिया। हालांकि, फिल्म में सलमान खान की नायिका डेज़ी शाह हैं, लेकिन सलमान के ऑपोज़िट रोल पा लेने से ऐसा लगा कि सना खान की किस्मत का सितारा चमक गया। अब वह जल्द ही दक्षिण से उत्तर की ओर तेज़ी से बह निकालेंगी। पर सना अँड सलमान प्रोपोसेस गॉड डिस्पोजेज़ जैसा हो गया। सना खान पर एक पंद्रह साल की लड़की के अपहरण का आरोप लगा। मुंबई पुलिस उनकी खोज में निकल पड़ी। सना खान को सिर पर पैर रख कर फरार होना पड़ा। एक बारगी जब ऐसा लग रहा था कि सलमान खान की फिल्म पा कर सना खान का हिन्दी फिल्मों में कैरियर नए सिरे से परवान चढ़ेगा कि सना सलमान प्रोपोसेस, गॉड डिस्पोसेस की
शिकार हो गईं। हालांकि, टिवीटर पर सलमान खान सना के पक्ष में ट्विटिया रहे हैं। लेकिन लगता नहीं कि इस इमेज वाली साना को कोई दूसरा फिल्म निर्माता अपनी फिल्मों में लेना चाहेगा। बेचारी गरीब सना के कैरियर के आटे को गीला कर दिया, उनकी बहुप्रतीक्षित और बहुचर्चित तमिल फिल्म के फ्लॉप होने ने । दक्षिण की seductress सिल्क स्मिथा के जीवन पर Bollywood की फिल्म द dirty पिक्चर बनाए जाने के बाद दक्षिण में भी अपनी सिल्क स्मिथा पर फिल्म बनाने की होड लग गयी। दक्षिण की सिल्क स्मिथा बनने के लिए बॉलीवुड की कुछ एक्ट्रेस भी तैयार थी। लेकिन छींका फूटा सना के भाग्य से। उन्हे ओरु नडिगाईं डायरी मिल गयी। सना खान को भरोसा था कि यह फिल्म उनके ऊंफ फेक्टर को उभारेगी ही, उन्हे सक्षम अभिनेत्री भी साबित करेगी। लेकिन, ऐसा कुछ नहीं हुआ। सना खान न तो दर्शकों को अपील कर पायीं, न ही अपनी अभिनय प्रतिभा का कायल बना पायीं। सना खान की दक्षिण की सिल्क स्मिथा बनने की तमन्ना यों ध्वस्त हो गयी। अब सना खान न तो बॉलीवुड की रहीं, न टॉलीवुड की।
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फिल्म पुराण
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Saturday, 25 May 2013
फास्ट अँड फुरिऔस 6 यानि आजा मेरी गाड़ी में बैठ जा!
आज से दो दिन कम 13 साल पहले यानि 22 जून 2001 को फास्ट अँड फुरिऔस सीरीज की पहली फिल्म द फास्ट अँड द फुरिऔस रिलीज हुई थी। रोब कोहेन द्वारा निर्देशित तथा वीं डीजल और और पॉल वॉकर अभिनीत मोटर कार रेसिंग पर आधारित इस फिल्म की रफ्तार का जादू दुनिया भर के दर्शकों पर कुछ ऐसा चढ़ा कि 38 मिल्यन डॉलर में बनी इस फिल्म ने 144.53 मिल्यन डॉलर की कमाई कर डाली। इसके बाद से अब तक फास्ट अँड फुरिऔस सीरीज की पाँच फिल्में - 2 फास्ट अँड 2 फुरिऔस, द फास्ट अँड द फुरिऔस- टोक्यो ड्रिफ्ट, फास्ट अँड फुरिऔस और फास्ट फाइव रिलीज हो चुकी हैं। इन पांचों फिल्मों ने पूरी दुनिया में अपनी तेज़ रफ्तार कारों का जादू चलाते हुए पूरे विश्व में अरबों रुपये की कमाई कर डाली है। इस सीरीज की छठी फिल्म फास्ट अँड फुरिऔस 6 आज रिलीज हुई है।
इस फिल्म में एक बार फिर रफ्तार का जादू बरकरार है। विन डीजल, पॉल वॉकर, Dwayne Johnson, जोरदाना Brewster, मिशेल रोड्रिगुएज, ल्यूक एवान्स, आदि हॉलीवुड के दर्जनों छोटे बड़े सितारों से भरी इस फिल्म में सांस रोक देने वाले स्टंट हैं, इमोशन है, दिल को छूने वाले संवाद हैं और एक चुस्त कहानी और पटकथा है। Justin लिन का शानदार और कल्पनाशील निर्देशन है। होब्स, टोरेट्टों और उसके साथियों को भाड़े के हत्यारों के सरगना और उसके गिरोह का खात्मा करने के लिए उनके अपराधों की माफी प्रस्ताव देता है। टोरेट्टों और उसके साथी होब्स के प्रस्ताव को मान लेते हैं। इसके साथ ही शुरू होता है बड़ी बड़ी गाड़ियों की रफ्तार का रोमांच और इंसानी साहस और खतरों का सामना करने की क्षमता का सांस रोक देने वाला प्रदर्शन। इस फिल्म को दर्शक पूरे 130 मिनट तक सांस रोके देखता रहता है। इस दौरान इन जाँबाज पुरुषों के साथ उनकी महिला सहयोगियों के हैरतअंगेज स्टंट उन्हे तलैया बजाने के लिए मजबूर कर देते हैं। फास्ट अँड फुरिऔस 6 में वह सब कुछ है, जो एक आम दर्शक चाहता है। खास तौर पर भारतीय दर्शकों के लिए बिंदास सेक्स अपील की डोज़ है।
इस फिल्म के एक निर्माता अभिनेता विन डीजल भी हैं। क्रिस मॉर्गन ने तेज़ रफ्तार स्क्रीनप्ले के जरिये निर्देशक जस्टिन लिन की दर्शकों पर पकड़ बनाए रखी है। Stephen एफ विंडोन का कैमरा फिल्म की लोकेशन को दिखाने के साथ उसकी रफ्तार से भी परिचित कराता है। लुकास विडाल का म्यूजिक फिल्म के दृश्यों में रफ्तार कायम रखता है। ग्रेग द'औरिया, Kelly मत्सुमोटों और Christian वैगनर की तिकड़ी ने अपनी कैंची के जरिये फिल्म को सुस्त नहीं पड़ने दिया है।
फास्ट अँड फुरिऔस 6 रफ्तार के सौदागरों की फिल्म है, जो युवा दर्शकों को पसंद आएगी। अगर आप खुद को युवा समझते हैं तो आप इस फिल्म को देख सकते हैं। यह देखने वाली बात होगी कि फास्ट अँड फुरिऔस सीरीज की यह छटीं फिल्म वर्ल्ड वाइड बॉक्स ऑफिस पर कितनी कमाई करती है। लेकिन यह तो तय है कि इंडियन बॉक्स ऑफिस पर यह फिल्म Bollywood की फिल्मों का कत्लेआम करने जा रही है।
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फिल्म समीक्षा
मैं हिंदी भाषा में लिखता हूँ. मुझे लिखना बहुत पसंद है. विशेष रूप से हिंदी तथा भारतीय भाषाओँ की तथा हॉलीवुड की फिल्मों पर. टेलीविज़न पर, यदि कुछ विशेष हो. कविता कहानी कहना भी पसंद है.
Friday, 24 May 2013
बोर इश्क इन पेरिस
इश्क इन पेरिस के जरिये अभिनेत्री प्रीति जिंटा ने अपने सर पर निर्माता और लेखिका के दो ताज और पहन लिए। लेकिन क्या प्रीति जिंटा के इश्क इन पेरिस से निर्माता और लेखक बनने को ताज कहा जा सकता है? बेशक कहा जाएगा, लेकिन कलंक का ताज। इश्क इन पेरिस बना का प्रीति जिंटा ने यह साबित कर दिया कि प्रीति अब तक बतौर अभिनेत्री जितनी समझदार साबित होती थीं, इश्क इन पेरिस बना कर उन्होने उसका कचरा कर दिया। उन्होने यह फिल्म निर्देशक प्रेम सोनी के साथ लिखी कहानी पर ही बनाई है। कहानी क्या है, इस कहानी से वह कहना क्या चाहती हैं, यह शायद खुद प्रीति भी नहीं बता सकें। बेहद बकवास कहानी है। एक लड़का और एक लड़की मिलते हैं पेरिस में। एक पूरी रात वह पेरिस के रोमैन्स में बिताते हैं। वह खाते, पीते, घूमते और फिल्म बनाते हैं, पर सेक्स नहीं करते। क्योंकि, लड़की भी शादी नहीं करना चाहती और लड़का भी। कहानी जितनी बकवास लग रही है, उतनी ही इसकी लिखाई भी है। न स्क्रिप्ट चुस्त हैं और न ही स्क्रीनप्ले में नवीनता है। सब कुछ बेहद बासी और उबाऊ है। कभी शक्ति सामंत ने एन ईवनिंग इन पेरिस के जरिये भारतीय दर्शकों को पेरिस की रंगीन रातों के बारे में बताया था। प्रीति जिंटा और प्रेम सोनी मिल कर इस रंगीनीयत को बदरंग कर देते हैं। प्रेम सोनी की जितनी सपाट और भाव विहीन फिल्म मैं और मिसेज खन्ना थी, उतनी ही सपाट और भाव विहीन इश्क इन पेरिस हैं।
प्रीति जिंटा ने इश्क की मुख्य भूमिका की है। यकीन मानिए, इतना बेजान इश्क अगर लैला मजनू या रोमियो जूलिएट का होता तो शायद यह जोड़ियाँ अमर नहीं हो पातीं। प्रीति जिंटा के चेहरे से बुढ़ापा साफ झलकने लगा है। उनकी सेक्स अपील में वह बात नहीं रही, जो दर्शकों को सिनेमाघरों तक खींच लाती थी। वह तेरा नाम था जैसी उबाऊ फिल्म से अपने कैरियर की शुरुआत करने वाले गौरव चानना ने इश्क इन पेरिस में अपना नाम रेहान मालिक रखा है। उन्हे रियल लाइफ में नाम बदलने की क्या सूझी, यह तो गौरव उर्फ रेहान ही जाने। लेकिन इश्क इन पेरिस भी उनकी पहली फिल्म जितनी उबाऊ है तथा उनका अभिनय उसी जगह ठहरा हुआ है। वह अजीबोगरीब मुंह बनाने को ही अभिनय समझते हैं।
सलमान खान फिल्म में एक डांस नंबर में हैं। नहीं भी करते तो कोई फर्क नहीं पड़ता। बाकी किसी भी कलाकार का जिक्र न करना अपना और पाठकों का समय बचाना ही होगा।
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Tuesday, 21 May 2013
हे ईश्वर! क्या इस फ्राइडे बॉक्स ऑफिस पर कत्ले आम होने जा रहा है?
इस शुक्रवार तीन हिन्दी फिल्मों की रिलीज की सूचना है। हम हैं रही कार के अभिनेता देव गोयल की debut फिल्म है। फिल्म में उनकी नायिका अदा शर्मा है। अदा शर्मा को दर्शक पाँच साल पहले विक्रम भट्ट की फिल्म 1920 में देख चुके हैं। उनकी दूसरी फिल्म फिर 2011 में रिलीज हुई थी। हम हैं राही कार के में जुही चावला, अनुपम खेर, चंकी पांडे, रति अग्निहोत्री और विवेक वासवानी अन्य भूमिकाओं में हैं। इस फिल्म का निर्देशन ज्योतिन गोयल कर रहे हैं। ज्योतिन इनाम दस हज़ार, जहरीले और safari जैसी बड़ी फिल्में डाइरैक्ट कर चुके हैं। वह देव के पिता हैं। खुद ज्योतिन मशहूर निर्माता निर्देशक देवेंद्र गोयल के बेटे हैं। देवेंद्र गोयल ने आस, अलबेली, नरसी भगत, चिराग कहाँ रोशनी कहाँ, रज़िया सुल्ताना, प्यार का सागर, दूर की आवाज़, दस लाख, एक फूल दो माली, धड़कन, एक महल हो सपनों का, आदमी सड़क का, आदि जैसी 16 बड़ी हिट फिल्में बनाई हैं। हम राही कार के से ज्योतिन को अपने बेटे को सफल बनाना ही है, खुद को भी सफल निर्देशक साबित करना हैं, क्योंकि, उनकी पिछली रिलीज फिल्में बॉक्स ऑफिस पर खास नहीं कर सकी थीं। इस रोड मूवी में दो दोस्तों की Mumbai से पुणे की कार यात्रा की है, जो उनकी कुछ घंटे की यात्रा को रात भर की भयावनी यात्रा बना देती है।
इत्तिफाक़ की बात ही है कि इस हफ्ते की दूसरी रिलीज होने जा रही फिल्म इश्क्क़ इन पेरिस भी एक रात की कहानी है, जो दो अजनबियों बीच रोमांटिक घटनाओं को जन्म देती है। यह निर्देशक प्रेम सोनी की मैं और मिसेज खन्ना के बाद दूसरी फिल्म है। इस फिल्म में प्रीति जिंटा पूरे पाँच साल बाद मुख्य भूमिका में नज़र आएंगी। इस फिल्म में वह इश्क्क़ की भूमिका कर रही हैं। उनके हीरो गौरव चानना हैं, जिन्होने अपना नाम बदल कर (!) रेहान मालिक रखा है। इस फिल्म में सलमान खान और शेखर कपूर खास भूमिका में हैं।
इस हफ्ते की तीसरी हिन्दी फिल्म ज़िंदगी फिफ्टी फिफ्टी है। राजीव एस रूईया निर्देशित इस फिल्म में वीणा मालिक मुख्य भूमिका में हैं। इस फिल्म के लिए वीणा मालिक ने अंग प्रदर्शन की हर सीमा को लांघ जाने की भरसक कोशिश की है। फिल्म में रिया सेन, राजन वर्मा, आर्य बब्बर, राजपाल यादव, मुरली शर्मा, अतुल परचूरे महत्वपूर्ण भूमिकाओं में हैं। एक सेक्स वर्कर की इस फिल्म में सभी फ़ीमेल कैरक्टर ने जम कर अंग प्रदर्शन किया है और मेल को-स्टार्स के साथ कामुक सीन किए हैं। कुछ वितरकों का दावा है कि यह फिल्म पहले ही सुपर हिट हो चुकी है।
साफ तौर पर दो दोस्तों और प्रेमियों के बीच तथा एक वेश्या की गरम रातों की तीन फिल्में इस हफ्ते रिलीज हो रही हैं।इसमे प्रीति जिंटा की फिल्म इश्क्क़ इन पेरिस के बाज़ी मारने की पूरी संभावना है। लेकिन, इससे ज़्यादा संभावना बॉक्स ऑफिस पर भीषण कत्लेआम की है। विन डीजल, पॉल वॉकर, द्वयने Johnson, Jason स्टाथाम, मिशेल रोड्रिगुएज, जोरड़ाना Brewster, ल्यूक एवान्स, एलसा पटकी, गिना कारनों और त्यरेसे Gibson बेहद खतरनाक हैं। यह किसी का भी कत्ल करने से नहीं हिचकने वाले। बेशक वह यह कत्लेआम और हिंसा पर्दे पर करते हैं, लेकिन उनकी पर्दे की यह हिंसा हम हैं रही कार के, इश्क्क़ इन पेरिस और ज़िंदगी 50 50 पर भारी पड़ सकती है। Hollywood के इन कलाकारों की फिल्म फास्ट अँड फुरीऔस 6 इंडियन बॉक्स ऑफिस को झिंझोड़ने का काम कर सकती है। ऐसी दशा में बॉक्स ऑफिस पर चाँदी तो बरसेगी, मगर इन हिन्दी फिल्मों का कत्लेआम भी होगा, इसमें कोई शक नहीं।
पूरी दुनिया में सबसे ज़्यादा सफल इस फास्ट अँड फुरीऔस सीरीज की छठी फिल्म की कहानी 2011 में रिलीज इस सीरीज की पाँचवी फिल्म में सात डकैतों द्वारा डाली गयी डकैती के बाद से शुरू होएगी। डोमिनिक टोरेट्टों यानि विन डीजल से America की डिप्लोमटिक सेक्युर्टी सर्विस का एजेंट ल्यूक इस गिरोह का क्रिमिनल रेकॉर्ड साफ कर देनी की शर्त पर भाड़े के हत्यारों का खात्मा करने के लिए कहता है। फास्ट अँड फुरीऔस सीरीज की पांचों फिल्मे बेहद सफल रही हैं। इन फिल्मों ने वर्ल्ड वाइड 1591 मिलियन डॉलर से अधिक की कमाई की थी। इन फिल्मों के निर्माण में 409 मिलियन डॉलर खर्च हुए थे। इस लिहाज से तीनों हिन्दी फिल्में फास्ट अँड फुरीऔस 6 के सामने कहीं नहीं टिकती। दर्शक अभिनेता विन डीजल, ल्यूक एवान्स, द्वयने जोहनसन को अच्छी तरह से पहचानते हैं। सड़क पर खतरनाक तरीके से भागती बड़ी गाड़ियां हिन्दी दर्शकों को रोमांचित करती हैं। ज़ाहिर है कि रोमांच के सौदागर हिन्दी दर्शक 38 साल की प्रीती जिंटा के रोमैन्स को देखना क्यों चाहेंगे? वीणा मालिक अब इतनी एक्सपोज हो चुकी हैं कि उनका एक्सपोजर हिन्दी दर्शकों को सिनेमाघरों तक नहीं ला सकता। ऐसे में नए चेहरों की क्या बिसात। ज़ाहिर है कि बॉक्स ऑफिस पर हॉलीवुड की इकलौती फिल्म तीन तीन Bollywood फिल्मों का कत्लेआम करने जा रही है। ईश्वर इन फिल्मों की आत्माओं को शांति दे।
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इस शुक्रवार
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जिसे मजबूत कंधे नहीं मिलते वह 'औरंगजेब' हो जाता है
अतुल सभरवाल की फिल्म औरंगजेब का औरंगजेब ने अपने पिता भाई से दगा नहीं की, लेकिन दर्शक उससे दगा कर गए । इतनी उलझी हुई कहानी दर्शकों ने सिरे से खारिज कर दी। अभिनेता अर्जुन कपूर में दोहरी भूमिका के अनुकूल अभिनय प्रतिभा नहीं। वह अपने दो किरदार अलग नहीं रख सके। अभिनय के मामले में पृथ्वीराज सुकुमार सब पर भरी पड़े। लेकिन, उनकी साख दक्षिण में ज़्यादा है। ऋषि कपूर ने प्रभावित किया, लेकिन उनका किरदार किसी फिल्म को हिट नहीं बना सकता। सलमा आगा की बेटी साशा आगा में इतनी सेक्स अपील नहीं कि वह बिकनी पहने और दर्शक पानी में आग की तरह जलने लगे। नतीजे के तौर पर यशराज बैनर की यह फिल्म ज़बरदस्त प्रचार के बावजूद दर्शकों को सिनेमाघर तक नहीं ला सकी। इस फिल्म की ओपेनिंग 3.90 करोड़ की हुई। शनिवार भी कुछ खास नहीं रहा। फिल्म को मिले 3.91 करोड़ दिलाने वाले दर्शक ही। सनडे का होलिडे भी केवल 4.50 करोड़ के दर्शक ही दिला पाया। यानि 12 करोड़ से थोड़ा ज़्यादा का खराब बिज़नस। इससे ज़्यादा बिज़नस तो Hollywood की एनिमेशन फिल्म एपीक ने किया। साबित हो गया कि कमजोर कंधों को दूसरे कंधों की ज़रूरत होती है। अन्यथा, वह बॉक्स ऑफिस पर 'औरंगजेब' हो जाता है।
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बॉक्स ऑफिस पर
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Friday, 17 May 2013
दर्शक इसे औरंगजेब नहीं समझें !
औरंगजेब ! छठा मुगल शासक, जो अपने पिता और भाइयों को क़ैद कर और मार कर दिल्ली की गद्दी पर काबिज हो गया था। यशराज फिल्म्स के बैनर तले बनी, अतुल सभरवाल निर्देशित फिल्म औरंगजेब का शीर्षक, फिल्म के मुख्य कैरक्टर के औरंगजेब की तरह होने के कारण औरंगजेब रखा गया है। फिल्म में हमशक्ल भाई हैं, पिता है, माँ है, बड़ा बिज़नस है। पर औरगजेब जैसा कोई किरदार नहीं। यहाँ तक कि मुख्य किरदार अजय और विशाल में से भी कोई औरंगजेब नहीं।
औरंगजेब की कहानी यशोवर्द्धन की है, जिसका गुड़गांव में रेयल्टी का साम्राज्य है। वह सभी गलत धंधे करता है। उसका एक पुत्र है, जो बिगड़ा शहजादा है। इस कैरक्टर को देख कर लगता है कि वह औरंजेब होगा। पर यह औरंगजेब नहीं। पिता के मरने से पहले एसीपी आर्य को मालूम पड़ता है कि उसके पिता की एक अन्य पत्नी और पुत्र है, जो नैनीताल में रहते हैं। पिता मरने से पहले दोनों का जिम्मा आर्य को सौंप जाता है। आर्य पैसे देने नैनीताल जाता है तो अपने सौतेले भाई को देख कर उसका हाथ यक ब यक अपनी रिवॉल्वर पर चला जाता है। क्योंकि, विशाल की शक्ल हू ब हू यशोवर्द्धन के बेटे अजय से मिलती है। वह यह बात अपने चाचा और डीसीपी रवीकान्त को बताता है। रवीकान्त, यशोवर्द्धन का साम्राज्य खत्म करने के लिए अजय की जगह विशाल को प्लांट कर देता है। रवीकान्त और उसका पूरा परिवार भ्रष्ट है। उनके लिए पैसा ही सबकुछ है।
अतुल सबबरवाल की इस कहानी में लगातार उतार चढ़ाव, ट्विस्ट अँड टर्न हैं। लेकिन, इन सब का फिल्म के शीर्षक से कोई लेना देना नहीं। इतने ट्विस्ट अँड टर्न के बावजूद फिल्म प्रभाव नहीं छोड़ती तो इसका दोष अतुल की स्क्रिप्ट को जाता है। पहली बात तो यह है कि उनकी कहानी ही बेसिर पैर की है। अजय की जगह विशाल को बड़ी आसानी से प्लांट कर दिया जाता है। उतना बड़ा साम्राज्य चलाने वाले यशोवर्द्धन को इसका तनिक पता नहीं चलता। उसकी, चतुर चालाक रखेल अमृता सिंह भी इसे नहीं भाँप पाती। यह कहानी की सबसे बड़ी कमजोरी है। इसके बाद अतुल की स्क्रिप्ट भी काफी ढीली ढाली है। कभी लगता है कि अतुल की पकड़ बन रही है, अचानक ही वह उसे ढीला कर देते हैं। कहानी इधर से उधर बेलगाम भागती रहती है। किसी को नहीं मालूम कि क्या हो रहा है। अगर फिल्म की कहानी यशोवर्द्धन के साम्राज्य को खत्म करने के लिए विशाल को अजय की जगह प्लांट करने तक सीमित रखा जाता तो बात बन भी सकती थी। पर इसमे बिल्डर, माफिया और राजनीतिक नेक्सस भी है। डीसीपी रवीकान्त की रेयल्टी का बादशाह बनने की महत्वाकांक्षा भी है। फिल्म के इतने ज़्यादा औरंगजेब फिल्म की कहानी कहानी को बेदम कर देते हैं। असली औरंगजेब राम बन जाता है।
फिल्म में ऋषि कपूर ने अग्निपथ के बाद एक बार फिर खल भूमिका की है। वह प्रभावी हैं। जैकी श्रोफ़्फ़ ठीक ठाक हैं। उनकी बिज़नस पार्टनर अमृता सिंह भी प्रभावित करती हैं। आर्य की पत्नी के रोल में स्वरा भास्कर ध्यान आकर्षित करती हैं। साशा आग़ा अपने मोटे और बेडौल जिस्म का प्रदर्शन कर स्वीमिंग पूल और रूपहले पर्दे पर आग तो नहीं लगा पातीं। लेकिन अपनी माँ सलमा आग़ा का नाम डुबोने में ज़रूर कामयाब होती हैं। उनका हिन्दी फिल्मों में कोई भविष्य हैं, नहीं लगता। दीप्ति नवल ने फिल्म में अपनी भूमिका क्यों स्वीकार की, वही बता सकती हैं। क्योंकि, इसमे उनके करने के लिए कुछ भी नहीं था। तन्वी आज़मी तो अपेक्षाकृत लंबी भूमिका के बावजूद प्रभावित नहीं कर पातीं। अन्य कलाकार खास उल्लेखनीय नहीं।
फिल्म में अर्जुन कपूर की दोहरी भूमिका है। ऐसी भूमिकाओं को निर्देशकीय कल्पनाशीलता के अलावा अभिनेता या अभिनेत्री की अभिनय क्षमता की भी दरकार होती हैं। अतुल सभरवाल, अजय और विशाल के किरदारों को भिन्नता दे पाने में नाकामयाब रहे हैं। दर्शक कन्फ्युज हो जाता है कि कौन अजय है और कौन विशाल है । रही अर्जुन कपूर की बात तो वह कहीं कहीं ही प्रभावित करते हैं। उनके नाज़ुक कंधे दोहरी भूमिकाओं का बोझ सहन नहीं कर पाते। उनको इन दोनों चरित्रों को मैनरिज़म की भिन्नता देनी चाहिए थी। हाव भाव और आवाज़ से इसे डिफ़्रेंट रखना चाहिए था। पर वह ऐसा नहीं कर पाते।
फिल्म का मुख्य आकर्षण बन कर उभरते हैं दक्षिण के सितारे पृथ्वीराज सुकुमार। आर्य की भूमिका में वह सब पर भारी हैं। उनका रोल काफी कठिन और जटिल था। वह भ्रष्ट परिवार के हट कर सदस्य हैं। सुकुमार ने अपने संयत अभिनय से अपनी भूमिका को प्रभावशाली और सब पर भारी बनाया है। पृथ्वीराज को हिन्दी दर्शकों ने, रानी मुखर्जी की मुख्य भूमिका वाली फिल्म अईया में देखा था। वह इस फिल्म से आगे बढ़े लगते हैं। हिन्दी संवाद भी उन्होने अच्छी तरह से बोले हैं। वह हिन्दी फिल्मों में अपना कोई मुकाम बना सकते हैं, बशर्ते कि अपनी भूमिका के साथ कोई समझौता न करें।
फिल्म की सबसे बड़ी कमी अनावश्यक ट्विस्ट अँड टर्न तो हैं ही, फिल्म में मसालों की भी काफी कमी है। इतनी घुमावदार कहानी को मनोरंजन की दरकार होती है। फिल्म की स्क्रिप्ट में इस ओर ध्यान नहीं दिया गया। साशा आग़ा में इतना दम नहीं नज़र आया कि दर्शक उनके दम पर सिनेमाघर में डटा रहे। नीरज वोरलिया को फिल्म को चुस्त और रफ्तारदार बनाने के लिए अपनी कैंची का दमदार प्रदर्शन करना चाहिए था। पर वह ऐसा नहीं कर पाये। फिल्म की लंबाई उबाती है। इस फिल्म को 90 मिनट तक सीमित किया जा सकता था।
फिल्म के एक्शन में शाम कौशल का कौशल नज़र नहीं आया। एन कार्तिक गणेश का कैमरा फिल्म के चरित्रों का परिचय कराता चलता है। रेमो डीसूजा का नृत्य निर्देशन पहली बार अप्रभावी रहा। विपिन मिश्रा का पार्श्व संगीत फिल्म का टेम्पो बनने में मदद करता है।
अंत में बात, अतुल सभरवाल की। औरंगजेब उनकी पहली फिल्म है। उन्हे बड़ा बैनर, बड़े सितारे और बड़ा कनवास मिला है। यह उनके लिए अपनी प्रतिभा प्रदर्शन का बढ़िया मौका था। फिल्म की कहानी, पटकथा, संवाद, आदि अतुल के ही हैं। वह इनके जरिये फिल्म को तेज़ रफ्तार और ग्रिपिंग बना सकते थे। पर वह नाकामयाब रहते हैं। उन्होने ढेरो ट्विस्ट अँड टर्न को ही दर्शकों पर पकड़ के लिए पर्याप्त समझ लिया था। बतौर निर्देशक वह अपने लेखक की मदद नहीं कर पाते। उन्हे इस कहानी को अपनी दृष्टि देनी चाहिए थीं .हालांकि, पहले सीन में, जब आर्य विशाल को देखता है तो वह चौंक कर अपना हाथ रिवॉल्वर की ओर ले जाता हैं। ऐसा लगता है कि हमशकलों के रहस्य वाली कोई अलग तरह की कहानी देखने को मिलेगी। लेकिन कहानी के आगे बढ़ने के साथ ही, सब बहुत साधारण हो जाता है। अतुल कुछेक दृश्यों में ही प्रभावित कर पाते हैं। मसलन, ऋषि कपूर का अपने दामाद को कत्ल करने का दृश्य।
कुल मिलकर कहा जा सकता है कि अगर आप फिल्म को देखना चाहते हैं तो इसे न तो औरंगजेब के लिए देखने जाएँ, न ही बिछुड़े हुए भाइयों की कहानी की तरह। इसे एक साधारण अपराध कथा की तरह देखा जा सकता है, जो कम से कम बोर तो नहीं करती!
औरंगजेब की कहानी यशोवर्द्धन की है, जिसका गुड़गांव में रेयल्टी का साम्राज्य है। वह सभी गलत धंधे करता है। उसका एक पुत्र है, जो बिगड़ा शहजादा है। इस कैरक्टर को देख कर लगता है कि वह औरंजेब होगा। पर यह औरंगजेब नहीं। पिता के मरने से पहले एसीपी आर्य को मालूम पड़ता है कि उसके पिता की एक अन्य पत्नी और पुत्र है, जो नैनीताल में रहते हैं। पिता मरने से पहले दोनों का जिम्मा आर्य को सौंप जाता है। आर्य पैसे देने नैनीताल जाता है तो अपने सौतेले भाई को देख कर उसका हाथ यक ब यक अपनी रिवॉल्वर पर चला जाता है। क्योंकि, विशाल की शक्ल हू ब हू यशोवर्द्धन के बेटे अजय से मिलती है। वह यह बात अपने चाचा और डीसीपी रवीकान्त को बताता है। रवीकान्त, यशोवर्द्धन का साम्राज्य खत्म करने के लिए अजय की जगह विशाल को प्लांट कर देता है। रवीकान्त और उसका पूरा परिवार भ्रष्ट है। उनके लिए पैसा ही सबकुछ है।
अतुल सबबरवाल की इस कहानी में लगातार उतार चढ़ाव, ट्विस्ट अँड टर्न हैं। लेकिन, इन सब का फिल्म के शीर्षक से कोई लेना देना नहीं। इतने ट्विस्ट अँड टर्न के बावजूद फिल्म प्रभाव नहीं छोड़ती तो इसका दोष अतुल की स्क्रिप्ट को जाता है। पहली बात तो यह है कि उनकी कहानी ही बेसिर पैर की है। अजय की जगह विशाल को बड़ी आसानी से प्लांट कर दिया जाता है। उतना बड़ा साम्राज्य चलाने वाले यशोवर्द्धन को इसका तनिक पता नहीं चलता। उसकी, चतुर चालाक रखेल अमृता सिंह भी इसे नहीं भाँप पाती। यह कहानी की सबसे बड़ी कमजोरी है। इसके बाद अतुल की स्क्रिप्ट भी काफी ढीली ढाली है। कभी लगता है कि अतुल की पकड़ बन रही है, अचानक ही वह उसे ढीला कर देते हैं। कहानी इधर से उधर बेलगाम भागती रहती है। किसी को नहीं मालूम कि क्या हो रहा है। अगर फिल्म की कहानी यशोवर्द्धन के साम्राज्य को खत्म करने के लिए विशाल को अजय की जगह प्लांट करने तक सीमित रखा जाता तो बात बन भी सकती थी। पर इसमे बिल्डर, माफिया और राजनीतिक नेक्सस भी है। डीसीपी रवीकान्त की रेयल्टी का बादशाह बनने की महत्वाकांक्षा भी है। फिल्म के इतने ज़्यादा औरंगजेब फिल्म की कहानी कहानी को बेदम कर देते हैं। असली औरंगजेब राम बन जाता है।
फिल्म में ऋषि कपूर ने अग्निपथ के बाद एक बार फिर खल भूमिका की है। वह प्रभावी हैं। जैकी श्रोफ़्फ़ ठीक ठाक हैं। उनकी बिज़नस पार्टनर अमृता सिंह भी प्रभावित करती हैं। आर्य की पत्नी के रोल में स्वरा भास्कर ध्यान आकर्षित करती हैं। साशा आग़ा अपने मोटे और बेडौल जिस्म का प्रदर्शन कर स्वीमिंग पूल और रूपहले पर्दे पर आग तो नहीं लगा पातीं। लेकिन अपनी माँ सलमा आग़ा का नाम डुबोने में ज़रूर कामयाब होती हैं। उनका हिन्दी फिल्मों में कोई भविष्य हैं, नहीं लगता। दीप्ति नवल ने फिल्म में अपनी भूमिका क्यों स्वीकार की, वही बता सकती हैं। क्योंकि, इसमे उनके करने के लिए कुछ भी नहीं था। तन्वी आज़मी तो अपेक्षाकृत लंबी भूमिका के बावजूद प्रभावित नहीं कर पातीं। अन्य कलाकार खास उल्लेखनीय नहीं।
फिल्म में अर्जुन कपूर की दोहरी भूमिका है। ऐसी भूमिकाओं को निर्देशकीय कल्पनाशीलता के अलावा अभिनेता या अभिनेत्री की अभिनय क्षमता की भी दरकार होती हैं। अतुल सभरवाल, अजय और विशाल के किरदारों को भिन्नता दे पाने में नाकामयाब रहे हैं। दर्शक कन्फ्युज हो जाता है कि कौन अजय है और कौन विशाल है । रही अर्जुन कपूर की बात तो वह कहीं कहीं ही प्रभावित करते हैं। उनके नाज़ुक कंधे दोहरी भूमिकाओं का बोझ सहन नहीं कर पाते। उनको इन दोनों चरित्रों को मैनरिज़म की भिन्नता देनी चाहिए थी। हाव भाव और आवाज़ से इसे डिफ़्रेंट रखना चाहिए था। पर वह ऐसा नहीं कर पाते।
फिल्म का मुख्य आकर्षण बन कर उभरते हैं दक्षिण के सितारे पृथ्वीराज सुकुमार। आर्य की भूमिका में वह सब पर भारी हैं। उनका रोल काफी कठिन और जटिल था। वह भ्रष्ट परिवार के हट कर सदस्य हैं। सुकुमार ने अपने संयत अभिनय से अपनी भूमिका को प्रभावशाली और सब पर भारी बनाया है। पृथ्वीराज को हिन्दी दर्शकों ने, रानी मुखर्जी की मुख्य भूमिका वाली फिल्म अईया में देखा था। वह इस फिल्म से आगे बढ़े लगते हैं। हिन्दी संवाद भी उन्होने अच्छी तरह से बोले हैं। वह हिन्दी फिल्मों में अपना कोई मुकाम बना सकते हैं, बशर्ते कि अपनी भूमिका के साथ कोई समझौता न करें।
फिल्म की सबसे बड़ी कमी अनावश्यक ट्विस्ट अँड टर्न तो हैं ही, फिल्म में मसालों की भी काफी कमी है। इतनी घुमावदार कहानी को मनोरंजन की दरकार होती है। फिल्म की स्क्रिप्ट में इस ओर ध्यान नहीं दिया गया। साशा आग़ा में इतना दम नहीं नज़र आया कि दर्शक उनके दम पर सिनेमाघर में डटा रहे। नीरज वोरलिया को फिल्म को चुस्त और रफ्तारदार बनाने के लिए अपनी कैंची का दमदार प्रदर्शन करना चाहिए था। पर वह ऐसा नहीं कर पाये। फिल्म की लंबाई उबाती है। इस फिल्म को 90 मिनट तक सीमित किया जा सकता था।
फिल्म के एक्शन में शाम कौशल का कौशल नज़र नहीं आया। एन कार्तिक गणेश का कैमरा फिल्म के चरित्रों का परिचय कराता चलता है। रेमो डीसूजा का नृत्य निर्देशन पहली बार अप्रभावी रहा। विपिन मिश्रा का पार्श्व संगीत फिल्म का टेम्पो बनने में मदद करता है।
अंत में बात, अतुल सभरवाल की। औरंगजेब उनकी पहली फिल्म है। उन्हे बड़ा बैनर, बड़े सितारे और बड़ा कनवास मिला है। यह उनके लिए अपनी प्रतिभा प्रदर्शन का बढ़िया मौका था। फिल्म की कहानी, पटकथा, संवाद, आदि अतुल के ही हैं। वह इनके जरिये फिल्म को तेज़ रफ्तार और ग्रिपिंग बना सकते थे। पर वह नाकामयाब रहते हैं। उन्होने ढेरो ट्विस्ट अँड टर्न को ही दर्शकों पर पकड़ के लिए पर्याप्त समझ लिया था। बतौर निर्देशक वह अपने लेखक की मदद नहीं कर पाते। उन्हे इस कहानी को अपनी दृष्टि देनी चाहिए थीं .हालांकि, पहले सीन में, जब आर्य विशाल को देखता है तो वह चौंक कर अपना हाथ रिवॉल्वर की ओर ले जाता हैं। ऐसा लगता है कि हमशकलों के रहस्य वाली कोई अलग तरह की कहानी देखने को मिलेगी। लेकिन कहानी के आगे बढ़ने के साथ ही, सब बहुत साधारण हो जाता है। अतुल कुछेक दृश्यों में ही प्रभावित कर पाते हैं। मसलन, ऋषि कपूर का अपने दामाद को कत्ल करने का दृश्य।
कुल मिलकर कहा जा सकता है कि अगर आप फिल्म को देखना चाहते हैं तो इसे न तो औरंगजेब के लिए देखने जाएँ, न ही बिछुड़े हुए भाइयों की कहानी की तरह। इसे एक साधारण अपराध कथा की तरह देखा जा सकता है, जो कम से कम बोर तो नहीं करती!
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फिल्म समीक्षा
मैं हिंदी भाषा में लिखता हूँ. मुझे लिखना बहुत पसंद है. विशेष रूप से हिंदी तथा भारतीय भाषाओँ की तथा हॉलीवुड की फिल्मों पर. टेलीविज़न पर, यदि कुछ विशेष हो. कविता कहानी कहना भी पसंद है.
Wednesday, 15 May 2013
'इश्कजादे' अर्जुन कपूर को चाहिए हिट 'औरंगजेब'
इस शुक्रवार निर्देशक अतुल सब्बर्वाल की फिल्म औरंगजेब रिलीज हो रही है। इस फिल्म में अर्जुन कपूर, साशा आग़ा, जैकी श्रोफ, ऋषि कपूर, सिकंदर खेर और स्वरा भास्कर की मुख्य भूमिका है। दक्षिण के सितारे पृथ्वीराज सुकुमार महत्वपूर्ण भूमिका में है। दीप्ति नवल और तन्वी आज़मी भी दर्शकों को लंबे समय बाद किसी मुख्य धारा की फिल्म में नज़र आएंगी।
फिल्म के नायक अर्जुन कपूर ने पिछले साल ही यश राज बैनर की ही फिल्म इशकजादे से हिन्दी फिल्मों में प्रवेश किया था। निर्देशक हबीब फैसल की 12 करोड़ लागत में बनी इशकजादे ने 64 करोड़ कमाए थे। अर्जुन कपूर के अभिनय की भी प्रशंसा हुई थी। औरंगजेब में दोहरी भूमिका के जरिये दर्शकों पर उनके प्रभाव की एक बार फिर परीक्षा होनी है। फिल्म के प्रोमोस में अर्जुन प्रभावशाली लग रहे हैं। उनके साथ पाकिस्तानी गायिका और Bollywood में निकाह के द्वारा प्रवेश करने वाली असफल अभिनेत्री सलमा आग़ा की बेटी साशा आग़ा फिल्म की नायिका हैं। उन्होने फिल्म का एक गीत भी गाया है और सेक्स अपील का भी भरपूर प्रदर्शन किया है। फिल्म के अभी जारी प्रोमो में वह अर्जुन कपूर के साथ अर्द्ध नग्न हो गरमागरम चुंबन आलिंगन कर रही हैं। अब देखने वाली बात यह होगी कि उनकी यह सेक्स अपील हिन्दी दर्शकों को कितना लुभा पाती है।
जहां तक कहानी की बात है, यह दिलचस्प है। अर्जुन कपूर एक अपराधी है। वह अपने अपराध करने के बाद कोई सुराग नहीं छोड़ता। इसलिए पुलिस के लोग उसके हमशक्ल को उसकी जगह प्लांट कराते हैं, ताकि अपराध को खत्म कर सकें। इस कहानी को सुनते समय साठ के दशक में रिलीज शम्मी कपूर की दोहरी भूमिका वाली फिल्म चाइना टाउन, Amitabh बच्चन और शाहरुख खान की डॉन फिल्में और शत्रुघ्न सिन्हा की फिल्म कालीचरण की याद आ सकती है। यह फिल्मे Hollywood की फिल्म द प्रिजनर ऑफ जेंडा का रीमेक फिल्में कही जाती थीं। इस लिहाज से औरंगजेब कर अर्जुन कपूर भी प्रिजनर ऑफ जेंडा साबित होता है। यहाँ
खास बात यह है यह तमाम हिन्दी रीमेक फिल्में बॉक्स ऑफिस पर सफल साबित हुई थीं। इसलिए यह कहा जा सकता है कि अर्जुन कपूर दूसरी हिट फिल्म देने जा रहे हैं।
फिल्म के नायक अर्जुन कपूर ने पिछले साल ही यश राज बैनर की ही फिल्म इशकजादे से हिन्दी फिल्मों में प्रवेश किया था। निर्देशक हबीब फैसल की 12 करोड़ लागत में बनी इशकजादे ने 64 करोड़ कमाए थे। अर्जुन कपूर के अभिनय की भी प्रशंसा हुई थी। औरंगजेब में दोहरी भूमिका के जरिये दर्शकों पर उनके प्रभाव की एक बार फिर परीक्षा होनी है। फिल्म के प्रोमोस में अर्जुन प्रभावशाली लग रहे हैं। उनके साथ पाकिस्तानी गायिका और Bollywood में निकाह के द्वारा प्रवेश करने वाली असफल अभिनेत्री सलमा आग़ा की बेटी साशा आग़ा फिल्म की नायिका हैं। उन्होने फिल्म का एक गीत भी गाया है और सेक्स अपील का भी भरपूर प्रदर्शन किया है। फिल्म के अभी जारी प्रोमो में वह अर्जुन कपूर के साथ अर्द्ध नग्न हो गरमागरम चुंबन आलिंगन कर रही हैं। अब देखने वाली बात यह होगी कि उनकी यह सेक्स अपील हिन्दी दर्शकों को कितना लुभा पाती है।
जहां तक कहानी की बात है, यह दिलचस्प है। अर्जुन कपूर एक अपराधी है। वह अपने अपराध करने के बाद कोई सुराग नहीं छोड़ता। इसलिए पुलिस के लोग उसके हमशक्ल को उसकी जगह प्लांट कराते हैं, ताकि अपराध को खत्म कर सकें। इस कहानी को सुनते समय साठ के दशक में रिलीज शम्मी कपूर की दोहरी भूमिका वाली फिल्म चाइना टाउन, Amitabh बच्चन और शाहरुख खान की डॉन फिल्में और शत्रुघ्न सिन्हा की फिल्म कालीचरण की याद आ सकती है। यह फिल्मे Hollywood की फिल्म द प्रिजनर ऑफ जेंडा का रीमेक फिल्में कही जाती थीं। इस लिहाज से औरंगजेब कर अर्जुन कपूर भी प्रिजनर ऑफ जेंडा साबित होता है। यहाँ
खास बात यह है यह तमाम हिन्दी रीमेक फिल्में बॉक्स ऑफिस पर सफल साबित हुई थीं। इसलिए यह कहा जा सकता है कि अर्जुन कपूर दूसरी हिट फिल्म देने जा रहे हैं।
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इस शुक्रवार
मैं हिंदी भाषा में लिखता हूँ. मुझे लिखना बहुत पसंद है. विशेष रूप से हिंदी तथा भारतीय भाषाओँ की तथा हॉलीवुड की फिल्मों पर. टेलीविज़न पर, यदि कुछ विशेष हो. कविता कहानी कहना भी पसंद है.
माधुरी दीक्षित का 'घाघरा'
अयान मुखर्जी निर्देशित फिल्म यह जवानी है दीवानी में आइटम टाइप के गीतों की भरमार जैसी लगती है। इस फिल्म में रणबीर कपूर की नायिका दीपिका पादुकोने हैं। इस जोड़ी को दर्शकों ने पहली बार 2008 में फिल्म बचना ऐ हसीनों में देखा था। इस फिल्म में इकलौते हीरो रणबीर की तीन नायिकाएँ दीपिका पादुकोने के अलावा मिनिषा लांबा और बिपाशा बसु भी थीं। फिल्म बॉक्स ऑफिस पर हिट साबित हुई थी। इस लिहाज से पाँच साल बाद दोनों एक साथ आ रहे हैं तथा यह जवानी हैं दीवानी रणबीर-दीपिका जोड़ी की दूसरी फिल्म है। रणबीर कपूर डाइरेक्टर अयान मुखर्जी के साथ दूसरी बार फिल्म कर रहे हैं। रोमैन्स फिल्म यह जवानी है दीवानी की कहानी एक ऐसे लड़के की है, जो बेफिक्र है, लाइफ को एंजॉय करना चाहता है। यंग आडियन्स को टार्गेट करने वाली इस फिल्म के तमाम गीत झूमाने वाले हैं। बदतमीज़ दिल, बलम पिचकारी और दिलवाली गर्लफ्रेंड के घाघरा गीत तो खालिस आइटम सॉन्ग है। इस गीत को माधुरी दीक्षित के साथ रणबीर कपूर पर पिक्चराइज़ किया गया है। रणबीर बचपन से माधुरी के प्रशंसक रहे हैं। इसलिए उन्हे माधुरी के साथ इस
आइटम को करने में मज़ा आया। रणबीर की दीवानगी का अंदाज़ा निर्देशक अयान मुखर्जी को भी था, इसलिए उन्होने रणबीर को माधुरी के गाल में चुंबन लेने की विशेष अनुमति भी दी। माधुरी दीक्षित आज 46 साल की हो गयी हैं। रणबीर कपूर उनसे 16 साल छोटे हैं। उम्र के इतने लंबे फासले के बावजूद रणबीर की घाघरा गीत में माधुरी के प्रति दीवानगी साफ नज़र आती थी। इसीलिए उन्होने मज़ाक में कहा भी, ''जब माधुरी दीक्षित की शादी हुई तो मेरा दिल टूट गया था.'' कभी करोड़ों युवा दिलों की धकधक माधुरी दीक्षित आज भी उतनी ही सेक्सी और आकर्षक हैं। इसलिए रणबीर अगर माधुरी दीक्षित के घाघरा पर मर मिटे हों तो कैसा संदेह!
आइटम को करने में मज़ा आया। रणबीर की दीवानगी का अंदाज़ा निर्देशक अयान मुखर्जी को भी था, इसलिए उन्होने रणबीर को माधुरी के गाल में चुंबन लेने की विशेष अनुमति भी दी। माधुरी दीक्षित आज 46 साल की हो गयी हैं। रणबीर कपूर उनसे 16 साल छोटे हैं। उम्र के इतने लंबे फासले के बावजूद रणबीर की घाघरा गीत में माधुरी के प्रति दीवानगी साफ नज़र आती थी। इसीलिए उन्होने मज़ाक में कहा भी, ''जब माधुरी दीक्षित की शादी हुई तो मेरा दिल टूट गया था.'' कभी करोड़ों युवा दिलों की धकधक माधुरी दीक्षित आज भी उतनी ही सेक्सी और आकर्षक हैं। इसलिए रणबीर अगर माधुरी दीक्षित के घाघरा पर मर मिटे हों तो कैसा संदेह!
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फिल्म पुराण
मैं हिंदी भाषा में लिखता हूँ. मुझे लिखना बहुत पसंद है. विशेष रूप से हिंदी तथा भारतीय भाषाओँ की तथा हॉलीवुड की फिल्मों पर. टेलीविज़न पर, यदि कुछ विशेष हो. कविता कहानी कहना भी पसंद है.
Tuesday, 14 May 2013
नहीं रहा ग्लैमर को गुलज़ार करने वाला 'माली'
मशहूर फिल्म फोटो ग्राफर जगदीश माली नहीं रहे। Mumbai के एक हॉस्पिटल में उनका निधन हो गया।
जगदीश माली को स्टार फॉटोग्राफर कहा जाता था। उनके कैमरा का लोहा गौतम राजध्यक्ष, अशोक सालियान, राकेश श्रेष्ठ और जायेश शेठ जैसे फॉटोग्राफर भी मानते थे। क्योंकि, जगदीश का कैमरा पूरी फिल्म की भाषा बोल देता था। वह बहुत मूडी थे। जब तक मूड में नहीं आते, उनका कैमरा क्लिक नहीं करता। उन्होने, जिन फिल्म हस्तियों के फोटो क्लिक करे वह मशहूर तो थे ही कैरियर के टॉप पर भी पहुँच गए। रेखा, Amitabh बच्चन, शाहरुख खान और एमरान हाशमी को माली ने अपनी दृष्टि से देखा, कैमरा से क्लिक किया और फोटो छपते ही यह मशहूर हो गए। गुलाम फिल्म का श्वेत श्याम पोस्टर जगदीश माली की प्रतिभा का परिचय देने वाला है। इस पोस्टर में आमिर खान घूंसा ताने हुए है और उनके हाथ की उँगलियाँ अंगूठी से भरी नज़र आती है। यह पोस्टर गुलाम में बॉक्सिंग करने वाले और हाथों की अंगूठियों से पहचान बनाने वाले आमिर खान की भूमिका और फिल्म की कहानी कह देता था। कैमरा के ऐसी भाषा जगदीश का कैमरा ही बोल सकता था।
जगदीश माली, अपने मोडेल को केवल मोडेल की तरह नहीं देखता था। वह उसे सामान्य अभिनेता या अभिनेत्री की तरह देखता था। वह ऐसा कोई भी पोज क्लिक कर सकते थे, जो उन्हे प्रेरित करता हो। जगदीश माली को सबसे ज़्यादा शोहरत रेखा के उस फोटो से मिली जिसमे सेमी नूड रेखा बांद्रा की सड़कों पर बदहवास भागती दिखाया गया था। यह फोटो रेखा पर एक गोस्सिप के साथ प्रकाशित हुआ था। इस फोटो ने और प्रकाशित लेख ने फिल्म उद्योग में हलचल पैदा कर दी थी। रेखा की b की तमाम जीवंत फोटो जगदीश माली के कैमरा से ही निकली थी।
जगदीश माली इस साल के शुरू में अभिनेत्री और मोडेल मींक बरार के द्वारा सड़क पर बीमार देखे जाने और अखबार में खबर आने से सुर्खियों में आए। इस खबर में जगदीश माली को बीमार और बेटी अंतरा माली द्वारा उपेक्षित करने का आरोप लगा था। मींक ने कथित रूप से सलमान खान को सूचित किया। उन्होने अपनी गाड़ी के जरिये जगदीश माली को उनके स्टूडियो अपार्टमेंट में पहुंचाया। हालांकि, बाद में जगदीश ने खुद के बीमार होने या लावारिस फिरने का खंडन किया था।
जगदीश माली की बेटी अंतरा माली ने नाच, मैं माधुरी दीक्षित बनाना चाहती हूँ आदि फिल्मों में अपना असफल कैरियर अंजाम दिया।
Bollywood ग्लैमर को गुलज़ार करने वाले जगदीश माली को श्रद्धांजलि।
जगदीश माली को स्टार फॉटोग्राफर कहा जाता था। उनके कैमरा का लोहा गौतम राजध्यक्ष, अशोक सालियान, राकेश श्रेष्ठ और जायेश शेठ जैसे फॉटोग्राफर भी मानते थे। क्योंकि, जगदीश का कैमरा पूरी फिल्म की भाषा बोल देता था। वह बहुत मूडी थे। जब तक मूड में नहीं आते, उनका कैमरा क्लिक नहीं करता। उन्होने, जिन फिल्म हस्तियों के फोटो क्लिक करे वह मशहूर तो थे ही कैरियर के टॉप पर भी पहुँच गए। रेखा, Amitabh बच्चन, शाहरुख खान और एमरान हाशमी को माली ने अपनी दृष्टि से देखा, कैमरा से क्लिक किया और फोटो छपते ही यह मशहूर हो गए। गुलाम फिल्म का श्वेत श्याम पोस्टर जगदीश माली की प्रतिभा का परिचय देने वाला है। इस पोस्टर में आमिर खान घूंसा ताने हुए है और उनके हाथ की उँगलियाँ अंगूठी से भरी नज़र आती है। यह पोस्टर गुलाम में बॉक्सिंग करने वाले और हाथों की अंगूठियों से पहचान बनाने वाले आमिर खान की भूमिका और फिल्म की कहानी कह देता था। कैमरा के ऐसी भाषा जगदीश का कैमरा ही बोल सकता था।
जगदीश माली, अपने मोडेल को केवल मोडेल की तरह नहीं देखता था। वह उसे सामान्य अभिनेता या अभिनेत्री की तरह देखता था। वह ऐसा कोई भी पोज क्लिक कर सकते थे, जो उन्हे प्रेरित करता हो। जगदीश माली को सबसे ज़्यादा शोहरत रेखा के उस फोटो से मिली जिसमे सेमी नूड रेखा बांद्रा की सड़कों पर बदहवास भागती दिखाया गया था। यह फोटो रेखा पर एक गोस्सिप के साथ प्रकाशित हुआ था। इस फोटो ने और प्रकाशित लेख ने फिल्म उद्योग में हलचल पैदा कर दी थी। रेखा की b की तमाम जीवंत फोटो जगदीश माली के कैमरा से ही निकली थी।
जगदीश माली इस साल के शुरू में अभिनेत्री और मोडेल मींक बरार के द्वारा सड़क पर बीमार देखे जाने और अखबार में खबर आने से सुर्खियों में आए। इस खबर में जगदीश माली को बीमार और बेटी अंतरा माली द्वारा उपेक्षित करने का आरोप लगा था। मींक ने कथित रूप से सलमान खान को सूचित किया। उन्होने अपनी गाड़ी के जरिये जगदीश माली को उनके स्टूडियो अपार्टमेंट में पहुंचाया। हालांकि, बाद में जगदीश ने खुद के बीमार होने या लावारिस फिरने का खंडन किया था।
जगदीश माली की बेटी अंतरा माली ने नाच, मैं माधुरी दीक्षित बनाना चाहती हूँ आदि फिल्मों में अपना असफल कैरियर अंजाम दिया।
Bollywood ग्लैमर को गुलज़ार करने वाले जगदीश माली को श्रद्धांजलि।
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फिल्म पुराण
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Monday, 13 May 2013
दर्शक गो गोवा..गिप्पी गॉन!
इसके लिए किसी ज्योतिष की ज़रूरत नहीं थी। इसीलिए, रिलीज से पहले ही यह मान लिया गया था कि बॉक्स ऑफिस पर गो गोवा गॉन से गिप्पी पिछड़ जाएगी। वही हुआ भी। गो गोवा गॉन ने पहले दिन 3.75 करोड़ का बिज़नस किया। शनिवार को फिल्म ने मार्जिनल राइज़ किया और 4.30 करोड़ कमाए। सनडे का अच्छा फायदा गो गोवा गॉन को हुआ। इस फिल्म ने 5.25 करोड़ बटोरे और फ़र्स्ट वीकेंड कलेक्शन 13.30 करोड़ का हो गया। गो गोवा गॉन Bollywood की पहली ज़ोम-कॉम यानि ज़ोमबी - कॉमेडी फिल्म है। एक काल्पनिक चलता फिरता मुर्दा, जो तेज़ नहीं चल सकता । कमोबेश घिसट घिसट कर ही चल सकता है। ज़िंदा इंसान उसकी पकड़ से भाग सकता है, अगर डर उसके पैर न लड़खड़ा दे, वह भयभीत बुत सा खड़ा न रह जाए। ज़ाहिर है कि फिल्म के तमाम ज़िंदा चरित्र ज़ोमबी की पकड़ में अपने भय कारण आते थे और जान गँवाते थे। बॉक्स ऑफिस पर बिल्कुल ऐसा ही हुआ। गो गोवा गॉन की कहानी-पटकथा बिल्कुल घिसटती हुई थी। कई बार लड़खड़ाई भी । पर ज़ोमबी के भय ने, इस लड़खड़ाती फिल्म की पकड़ दर्शकों पर बनाए रखी। नतीजे के तौर पर फिल्म एक बेहतर प्रदर्शन कर पाने में सफल हुई। हालांकि, फिल्म में वह सैफ अली खान भी थे, जिनकी फिल्म रेस2 ने इसी साल सौ करोड़ क्लब में कदम रखा है। सैफ के लिहाज से फिल्म का प्रदर्शन कमजोर लगता हो, पर फिल्म की लागत के लिहाज से यह कम नहीं लगता। फिल्म के निर्देशक द्वय यह दावा कराते हैं कि गो गोवा गॉन का बजेट सैफ की फिल्म के बजेट से काफी कम है। फिल्म को जहां सैफ के होने का फायदा हुआ, वहीं तीन दोस्तों की कहानी और कुनाल खेमू की कॉमेडी का फायदा भी हुआ। गंदी गलियों और अश्लील हाव भाव ने जहां फॅमिली को फिल्म से दूर रखा, वहीं चवन्नी छाप दर्शकों और युवा जोड़ों के लिए खाद पानी का काम किया। वैसे अगर गो गोवा गॉन में सैफ और कुनाल न भी होते, तो भी फिल्म का प्रदर्शन ठीक ही रहता। हिन्दी फिल्म दर्शक हॉरर और गलियों का दीवाना है।
गो गोवा गॉन और गिप्पी दोनों ही फिल्मों की नज़र मल्टीप्लेक्स दर्शकों पर थी। गिप्पी को तो खालिस मल्टीप्लेक्स दर्शकों को ध्यान में रख कर बनाया गया था। निर्माता करण जौहर की गिप्पी से बार बार स्टूडेंट्स ऑफ द इयर की बू आ रही थी। वही एक दूसरे की टांग खींचते, गाली गलौज करते, सेक्सी इशारे करते और सेक्स के नाबदान में गिरे कॉलेज के युवा। गिप्पी मोटी है, उसका मज़ाक उड़ता है। एक दिन वह तय करती है कि वह भी कॉलेज की खूबसूरत मानी जाने वाली लड़की जैसा बन कर दिखाएगी। कहानी में कोई नयापन नहीं था, सोनम नायर का विजन भी फिल्म में नज़र नहीं आया। वह उन मेट्रो लड़की लड़कों को, जो ज़ीरो साइज़ पर मरते हैं, तथा देह की अतिरिक्त कलोरी बहाने के लिए जिम में पसीना बहते हैं, यह समझा पाने में नाकामयाब रही कि मोटी लड़कियां भी सेक्स सिम्बल हो सकती हैं। फिल्म का शीर्षक भी आकर्षक नहीं था। नतीजतन, गिप्पी गो गोवा गॉन से मार खा गयी। इस फिल्म का, बॉक्स ऑफिस पर कलेक्शन 75 लाख, 1 करोड़ और 1.25 करोड़ के तीन दिनों के कलेक्शन के साथ 3 करोड़ रहा। ज़ाहिर है कि गिप्पी गो गोवा गॉन से काफी पीछे, ज़ोमबी की तुलना में लगभग घिसटती हुई चली। दर्शक मोटी गिप्पी की सेक्स अपील महसूस करने के बजाय, पूजा गुप्ता की संतुलित देह के पीछे घिसटते ज़ोमबी के पीछे लग गए।
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बॉक्स ऑफिस पर
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Saturday, 11 May 2013
जाओ संजय दत्त, जेल हो आओ!
संजय दत्त को अब जेल जाना ही होगा। अपनी सज़ा के साढ़े तीन साल पूरे करने ही होंगे। वैसे उनकी जान अभी भी राज्यपाल के निर्णय पर टिकी होगी। हालांकि, संजय दत्त ने मसीहा बनने की बड़ी कोशिशें की। जताने की कोशिश की कि वह कानून मानने वाले विनम्र सिपाही है। वह अपनी फिल्में पूरी कर चुपचाप जेल चले जाएंगे। पर इसी बीच वह मामले को खींचने की कोशिश भी करते रहे। सुप्रीम कोर्ट से पहले जेल जाने की आखिरी सीमा बढ़ाने और फिर पुनर्विचार के लिए डाली गयी अर्ज़ी से यह प्रमाणित होता था कि संजय दत्त जेल जाने से बुरी तरह से डरे हुए हैं। वह जानते हैं कि इस बार जेल गए तो बिल्कुल खत्म हो कर निकलेंगे। उनका मान सम्मान, शोहरत बिल्कुल खत्म हो चुकी होगी। बतौर हीरो भी वह बेमानी साबित हो चुके होंगे।
संजय दत्त अपनी सज़ा पर सूप्रीम कोर्ट के फैसले के से बाद लगातार एक मज़े हुए अभिनेता की तरह व्यवहार कर रहे हैं। कोर्ट के फैसले के बाद प्रैस कॉन्फ्रेंस कर खुद को कानून का पालन करने वाला और अंत में बहन से गले लग कर आँखों से दो बूंद आँसू टपकाने का मतलब ही यही था कि वह सूप्रीम कोर्ट के आदेश से भी अपने पेशे को लाभ दिलवाना चाहते हैं। उन्होने, इस सज़ा की कुछ ऐसे पब्लिसिटी करवाई जैसे वह शहीद किए गए थे। उनका साफ इरादा पब्लिसिटी और दर्शकों की सहानुभूति बटोरने का था। (इसमे उन्हे कितनी सफलता मिली, इसका पता 24 मई को हम हैं रही कार के, जिसमे वह मेहमान भूमिका में हैं तथा 14 जून को पुलिसगिरी के रिलीज होने पर चल जाएगा, जिसके वह हीरो हैं) हालांकि, उनकी इन कलाबाजियों से अभिनेता नाना पाटेकर उनसे नाराज़ भी हो गए। पर इसमे उनका साथ फिल्म उद्योग ने दिया। क्योंकि उनका अरबों रुपया(!) संजय दत्त की फिल्मों में फंसा था। अब यह बात दीगर है कि संजय अपने बैनर पर एक फिल्म भी बनने में जुट गए थे, जिसमे उनके तथा अन्य लोगों या संस्थाओं के पैसे फँसने ही हैं। यहा एक बात नहीं समझ में आई कि पूरा फिल्म उद्योग बरसों से जानता है कि संजय दत्त को जेल जाना ही होगा, तो उन पर और उनकी फिल्मों पर पैसा क्यों फंसाया गया और आज भी फंसाया जा रहा है। संजय दत्त ने भी अपने फिल्म निर्माताओं का नुकसान हो जाएगा की दुहाई देते हुए सूप्रीम कोर्ट से मोहलत मांग ली। लेकिन उनका इरादा कभी भी समर्पण कर जेल जाने का नहीं था और आज भी नहीं है। मजबूरी होगी तो बात दूसरी है। अब वह या उनका कोई नुमाइंदा Maharashtra के राज्यपाल से अपील करेगा। वैसे इस मामले को जितना तूल दिया जा चुका है, उससे नहीं लगता कि राज्यपाल संजय दत्त की शेष सज़ा माफ करेंगे। क्योंकि, इसी लाइन में दूसरे मुजरिम भी हैं तथा संजय दत्त को न्यूनतम सज़ा भी मिली थी।
संजय दत्त को अब 16 मई को जेल के बाहर खड़ा होना ही होगा। निश्चित रूप से उस समय उनके साथ फिल्म इंडस्ट्री के काफी लोग होंगे, उन्हे भावभीनी बिदाइ देने के लिए। लेकिन यह सहानुभूति दर्शकों के दिलो दिमाग पर कितनी घर कर पाएगी, यह देखा जाना महत्वपूर्ण होगा। अगर दर्शकों में दत्त के प्रति सहानुभूति है तो वह श्रद्धा स्वरूप दत्त की पोलिसगिरी देखने जाएंगे। अगर सहानुभूति नहीं और यह सहानुभूति दर्शक बन कर सिनेमाघरों पर नहीं टूटी तो 53 साल के संजय की फिल्में औंधे मुंह बॉक्स ऑफिस पर लुढ़क जाएंगी। इसके बाद वही होगा जो एक फेडिंग एक्टर के साथ होता है। संजय दत्त जब 42 महीने की सज़ा सात कर लौटेंगे तब 57 साल के हो चुके होंगे। Bollywood Hollywood की तरह नहीं जहां साठे को पाठा कहा जाता है। इस उम्र में पहुँच कर ही एक्टर को मेच्युर माना जाता है। उसके योग्य फिल्में लिखी और बनाई जाती हैं। बॉलीवुड में ऐसा एक्टर चरित्र अभिनेता बन जाता है। उसे बाप बनना होता है या दादा नाना।
क्या सचमुच ऐसा होगा कि संजय दत्त की जेल यात्रा उन्हे और उनकी फिल्मों को प्रशंसकों और दर्शकों का तोहफा दे! यह प्रश्न जितना कठिन है उतना आसान भी। अब नब्बे का दशक नहीं रहा, जब संजय दत्त और उनका कैरियर शवाब पर था। फिल्म उद्योग उनसे करोड़ों कमाने की उम्मीद रखता था। संजय दत्त के भी लाखों प्रशंसक थे। लेकिन, ध्यान रहे कि उस दौर में भी संजय दत्त की प्रिय अभिनेत्री माधुरी दीक्षित ने उनसे किनारा कर लिया। हालांकि, उसी दौरान सुभाष घई की फिल्म खलनायक भी रिलीज होने वाली थी। माधुरी फिल्म में संजय दत्त की नायिका थी। जहां तक खलनायक के हिट होने का सवाल है, सुभाष घई ने माहिर तरीके से संजय दत्त के जेल जाने को फिल्म के लिए भुनाया। उन्होने इससे हट कर खलनायक के माधुरी दीक्षित पर फिल्मांकित चोली के पीछे क्या है गीत को विवादित तारीक से हवा भी दी। इसका फायदा खलनायक को मिला। लेकिन, यह संजय दत्त के लिए दर्शकों की सहानुभूति की हवा नहीं थी। इस बार तो हवा बिल्कुल अलग है। संजय दत्त में वह आकर्षण नहीं रहा कि दर्शक उन्हे देखने जाएँ। उनके प्रशंसकों की पीढ़ी बदल चुकी है या उनके प्रति अपना कोममिटमेंट बदल चुकी है। उनकी लोयल्टी दूसरे अभिनेताओं के लिए शिफ्ट हो गयी है।
आगे आगे देखिये क्या होता है? संजय दत्त फिलहाल तो तुम जाओ जेल !!!
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फिल्म पुराण
मैं हिंदी भाषा में लिखता हूँ. मुझे लिखना बहुत पसंद है. विशेष रूप से हिंदी तथा भारतीय भाषाओँ की तथा हॉलीवुड की फिल्मों पर. टेलीविज़न पर, यदि कुछ विशेष हो. कविता कहानी कहना भी पसंद है.
Friday, 10 May 2013
हो सके तो गो गोवा गॉन नहीं, गो टु गोवा !!!
राजा निदिमोरु और कृष्णा डीके ने गो गोवा गॉन की कहानी शोर इन द सिटी से पहले ही लिखी थी। लेकिन, फिल्म बनते बनते अब बन पायी है।
इस फिल्म का शीर्षक गो गोवा गॉन क्यों है, पता नहीं चलता। यह जोम्बी फिल्म है। भारत में जोम्बी फिल्मे नया कान्सैप्ट है। हॉलीवुड के दर्शक जानते हैं कि जोम्बी चलता फिरता मुर्दा होता है। यह जीवित आदमियों को मार कर खाता है और ऐसा मारा गया आदमी भी जोम्बी बन जाता है। इस लिहाज से फिल्म के नाम से कहानी का कुछ पता चलना चाहिए था। अब चूंकि, फिल्म में गोवा दिखाया गया है तो टाइटल में गोवा शामिल का लिया गया। लेकिन गो और गॉन क्यों? शायद तुकबंदी के लिए। जोम्बी तो भारत के किसी कोने में बनते और मरते दिखाये जा सकते थे। क्या फर्क पड़ता।
इस जोम्बी फिल्म में गोवा में लोग एक ड्रग पार्टी में शामिल होने आते हैं। यह ड्रग पार्टी बोरिस यानि सैफ अली खान ने दी है। यकायक, पार्टी में आए लोगों में से कुछ जोम्बी बनने लगते हैं। यह जोम्बी बने लोग एक दूसरे को मार कर खाने लगते हैं। जो भी मारा जाता है, वह भी जोम्बी बन जाता है और जीवित आदमी को मार कर खा जाता है।
गो गोवा गॉन में कुणाल खेमू, वीर दास और आनंद तिवारी तीन दोस्त बने हैं। हालांकि, यह तीन दोस्तों की कहानी है, लेकिन फिल्म पूरी तरह से जोम्बीज पर केंद्रित है। इन तीनों दोस्तों की एक दूसरे के साथ छेड़ छाड़ होती रहती है, बिल्कुल आज की फिल्मों की तरह। खूब गालियां बाकी गयी हैं और अश्लील हाव भाव प्रदर्शित हुए हैं। पूजा गुप्ता ग्लैमर की मात्रा परोसती रहती हैं। सैफ अली खान जोम्बी हंटर बोरिस बन कर अपनी बंदूकों से बेहिसाब गोलियां बरसाते रहते हैं। पता नहीं क्यों वह ड्रग पार्टी में बंदूक पेटी रख लाये!
इस फिल्म के निर्माता सैफ अली खान जैसे बड़े अभिनेता है। लेकिन फिल्म के बजेट में खूब कंजूसी बरती गयी है। ज़्यादा फिल्म जंगल की भागदौड़ और समुद्र के किनारे ही बीतती है। खुद सैफ ने अपना मेकअप भी बेहद कम खर्चीला करवाया है। वह जोम्बी हंटर के बजाय जोकर जैसे लगते हैं। वैसे अगर फिल्म में सैफ न होते तो फिल्म को इतनी सेफ ओपेनिंग भी नहीं मिलती। जोम्बीज के चेहरे पर खड़िया और केचप का लेप साफ नज़र आता है। निर्देशक जोड़ी ने जोंबियों को हॉलीवुड की नकल में ही पेश किया है। अब जोम्बी बोलते नहीं हैं, तो यह पता करना मुश्किल हो जाता है कि वह इंडियन जोम्बी हैं या फ़ॉरेन जोम्बी।
फिल्म की कहानी कुछ खास नहीं। स्क्रिप्ट और स्क्रीन प्ले में खास मेहनत करने की कोशिश निर्देशक जोड़ी के साथ सीता मेनन ने नहीं की है। सीता ने हिन्दी के संवाद भी लिखे हैं। सब कुछ बेहद साधारण है। अलबत्ता, फिल्म को काफी हद तक बचाने की कोशिश कुणाल, वीर दास और आनंद तिवारी करते नज़र आते हैं। अपने मकसद में यह तिकड़ी काफी हद तक कामयाब भी होती है। इसका मतलब यह नहीं कि इन तीनों का अभिनय साधारण से अच्छा है। सैफ तो निराश करते हैं। वह बंदूक और ज़ुबान चलाने के अलावा कुछ नहीं करते। फिल्म में घटनाओं और रफ्तार की काफी कमी है। जब फिल्म के तमाम जीवित चरित्र तेज़ी से भाग रहे होते हैं, तब कहानी जोम्बी की तरह पिछड़ रही होती है। राजा और कृष्णा ने टेक्निकल वर्क ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका और दक्षिण Africa के विदेशी तकनीशियनों को सौंप दिया है। इससे फिल्म के स्तर में मामूली सुधार होता है। फिल्म की फोटोग्राफी Australia और America के फोटोग्राफरों ने की है। उन्होने, हॉलीवुड की तमाम जोम्बी फिल्मों जैसा अपना काम भी कर दिया है।
फिल्म के बारे में बहुत लिखने से कोई फायदा नहीं। भारतीय दर्शकों के लिए जोम्बी ल्यूक केनी की फिल्म राइस ऑफ द जोम्बी के बाद दूसरी जोम्बी फिल्म है। वह इंडियन जोंबियों का मज़ा लेता है। तीन दोस्तों की बेवकूफ़ियों को भी झेलता है। जोंबियों के अनोखेपन और सैफ की मौजूदगी के कारण फिल्म दर्शकों के आकर्षण का केंद्र बनती है।
रही बात फिल्म गो गोवा गॉन को देखने की तो भाई सुझाव है कि अगर आपकी जेब में पैसो हो तो गोवा गो कर जाइए। गो गोवा गॉन नहीं देखेंगे तो भी पछताएंगे नहीं। जोम्बी गॉन।
नोट- मैंने गिप्पी नहीं देखी। कारण यह कि गिप्पी के बारे में बताया जा रहा है कि गिप्पी मल्टीप्लेक्स दर्शकों के लिए बनाई गयी है। मैं तो सिंगल स्क्रीन थिएटर में अन्य दर्शकों के साथ फिल्म का मज़ा लेता हूँ और बदमज़ा झेलता हूँ। वैसे गिप्पी जैसी फिल्मे बहुत बन चुकी हैं और बनाई जा रही है।
इस फिल्म का शीर्षक गो गोवा गॉन क्यों है, पता नहीं चलता। यह जोम्बी फिल्म है। भारत में जोम्बी फिल्मे नया कान्सैप्ट है। हॉलीवुड के दर्शक जानते हैं कि जोम्बी चलता फिरता मुर्दा होता है। यह जीवित आदमियों को मार कर खाता है और ऐसा मारा गया आदमी भी जोम्बी बन जाता है। इस लिहाज से फिल्म के नाम से कहानी का कुछ पता चलना चाहिए था। अब चूंकि, फिल्म में गोवा दिखाया गया है तो टाइटल में गोवा शामिल का लिया गया। लेकिन गो और गॉन क्यों? शायद तुकबंदी के लिए। जोम्बी तो भारत के किसी कोने में बनते और मरते दिखाये जा सकते थे। क्या फर्क पड़ता।
इस जोम्बी फिल्म में गोवा में लोग एक ड्रग पार्टी में शामिल होने आते हैं। यह ड्रग पार्टी बोरिस यानि सैफ अली खान ने दी है। यकायक, पार्टी में आए लोगों में से कुछ जोम्बी बनने लगते हैं। यह जोम्बी बने लोग एक दूसरे को मार कर खाने लगते हैं। जो भी मारा जाता है, वह भी जोम्बी बन जाता है और जीवित आदमी को मार कर खा जाता है।
गो गोवा गॉन में कुणाल खेमू, वीर दास और आनंद तिवारी तीन दोस्त बने हैं। हालांकि, यह तीन दोस्तों की कहानी है, लेकिन फिल्म पूरी तरह से जोम्बीज पर केंद्रित है। इन तीनों दोस्तों की एक दूसरे के साथ छेड़ छाड़ होती रहती है, बिल्कुल आज की फिल्मों की तरह। खूब गालियां बाकी गयी हैं और अश्लील हाव भाव प्रदर्शित हुए हैं। पूजा गुप्ता ग्लैमर की मात्रा परोसती रहती हैं। सैफ अली खान जोम्बी हंटर बोरिस बन कर अपनी बंदूकों से बेहिसाब गोलियां बरसाते रहते हैं। पता नहीं क्यों वह ड्रग पार्टी में बंदूक पेटी रख लाये!
इस फिल्म के निर्माता सैफ अली खान जैसे बड़े अभिनेता है। लेकिन फिल्म के बजेट में खूब कंजूसी बरती गयी है। ज़्यादा फिल्म जंगल की भागदौड़ और समुद्र के किनारे ही बीतती है। खुद सैफ ने अपना मेकअप भी बेहद कम खर्चीला करवाया है। वह जोम्बी हंटर के बजाय जोकर जैसे लगते हैं। वैसे अगर फिल्म में सैफ न होते तो फिल्म को इतनी सेफ ओपेनिंग भी नहीं मिलती। जोम्बीज के चेहरे पर खड़िया और केचप का लेप साफ नज़र आता है। निर्देशक जोड़ी ने जोंबियों को हॉलीवुड की नकल में ही पेश किया है। अब जोम्बी बोलते नहीं हैं, तो यह पता करना मुश्किल हो जाता है कि वह इंडियन जोम्बी हैं या फ़ॉरेन जोम्बी।
फिल्म की कहानी कुछ खास नहीं। स्क्रिप्ट और स्क्रीन प्ले में खास मेहनत करने की कोशिश निर्देशक जोड़ी के साथ सीता मेनन ने नहीं की है। सीता ने हिन्दी के संवाद भी लिखे हैं। सब कुछ बेहद साधारण है। अलबत्ता, फिल्म को काफी हद तक बचाने की कोशिश कुणाल, वीर दास और आनंद तिवारी करते नज़र आते हैं। अपने मकसद में यह तिकड़ी काफी हद तक कामयाब भी होती है। इसका मतलब यह नहीं कि इन तीनों का अभिनय साधारण से अच्छा है। सैफ तो निराश करते हैं। वह बंदूक और ज़ुबान चलाने के अलावा कुछ नहीं करते। फिल्म में घटनाओं और रफ्तार की काफी कमी है। जब फिल्म के तमाम जीवित चरित्र तेज़ी से भाग रहे होते हैं, तब कहानी जोम्बी की तरह पिछड़ रही होती है। राजा और कृष्णा ने टेक्निकल वर्क ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका और दक्षिण Africa के विदेशी तकनीशियनों को सौंप दिया है। इससे फिल्म के स्तर में मामूली सुधार होता है। फिल्म की फोटोग्राफी Australia और America के फोटोग्राफरों ने की है। उन्होने, हॉलीवुड की तमाम जोम्बी फिल्मों जैसा अपना काम भी कर दिया है।
फिल्म के बारे में बहुत लिखने से कोई फायदा नहीं। भारतीय दर्शकों के लिए जोम्बी ल्यूक केनी की फिल्म राइस ऑफ द जोम्बी के बाद दूसरी जोम्बी फिल्म है। वह इंडियन जोंबियों का मज़ा लेता है। तीन दोस्तों की बेवकूफ़ियों को भी झेलता है। जोंबियों के अनोखेपन और सैफ की मौजूदगी के कारण फिल्म दर्शकों के आकर्षण का केंद्र बनती है।
रही बात फिल्म गो गोवा गॉन को देखने की तो भाई सुझाव है कि अगर आपकी जेब में पैसो हो तो गोवा गो कर जाइए। गो गोवा गॉन नहीं देखेंगे तो भी पछताएंगे नहीं। जोम्बी गॉन।
नोट- मैंने गिप्पी नहीं देखी। कारण यह कि गिप्पी के बारे में बताया जा रहा है कि गिप्पी मल्टीप्लेक्स दर्शकों के लिए बनाई गयी है। मैं तो सिंगल स्क्रीन थिएटर में अन्य दर्शकों के साथ फिल्म का मज़ा लेता हूँ और बदमज़ा झेलता हूँ। वैसे गिप्पी जैसी फिल्मे बहुत बन चुकी हैं और बनाई जा रही है।
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फिल्म समीक्षा
मैं हिंदी भाषा में लिखता हूँ. मुझे लिखना बहुत पसंद है. विशेष रूप से हिंदी तथा भारतीय भाषाओँ की तथा हॉलीवुड की फिल्मों पर. टेलीविज़न पर, यदि कुछ विशेष हो. कविता कहानी कहना भी पसंद है.
Thursday, 9 May 2013
गोल्डेन पेंट बॉडी आयशा सागर
ऑस्ट्रेलिया से आई आयेशा सागर को बिंदास बेब कहना ठीक होगा।
ऑस्ट्रेलिया में अपनी छाती पर ऑस्ट्रेलिया का झण्डा बना कर उन्होने शोहरत पायी। भारत आयीं गायिका और अभिनेत्री बनने। कहाँ तक सफल हुईं, यह अभी रहस्य के पर्दे में हैं।
इसलिए अब वह बेपरदा हो रही हैं। उनकी यह बेपर्दिगी किसी फिल्म के लिए नहीं। उन्होने, अपने नग्न शरीर पर गोल्डेन पेंट पुतवाया और जा पहुंची कैमरा के सामने। जो चित्र खिंचे उनमे उन्हे बर्थड़े सूट में दिखना ही था। उन्होने इसे सोश्ल साइट में डलवा दिया। नतीजतन, उनके टिवीटर बॉक्स पर धड़ाधड़ हिट्स मिलने लगी। पेश है ऐसी ही उनकी कुछ पिक्चर और आमंत्रित हैं आपकी हिट्स-
ऑस्ट्रेलिया में अपनी छाती पर ऑस्ट्रेलिया का झण्डा बना कर उन्होने शोहरत पायी। भारत आयीं गायिका और अभिनेत्री बनने। कहाँ तक सफल हुईं, यह अभी रहस्य के पर्दे में हैं।
इसलिए अब वह बेपरदा हो रही हैं। उनकी यह बेपर्दिगी किसी फिल्म के लिए नहीं। उन्होने, अपने नग्न शरीर पर गोल्डेन पेंट पुतवाया और जा पहुंची कैमरा के सामने। जो चित्र खिंचे उनमे उन्हे बर्थड़े सूट में दिखना ही था। उन्होने इसे सोश्ल साइट में डलवा दिया। नतीजतन, उनके टिवीटर बॉक्स पर धड़ाधड़ हिट्स मिलने लगी। पेश है ऐसी ही उनकी कुछ पिक्चर और आमंत्रित हैं आपकी हिट्स-
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फोटो फीचर
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क्या अभिनेता अर्जुन ऑन स्क्रीन लव मेकिंग के उस्ताद हैं?
अर्जुन कपूर के लव मेकिंग में उस्ताद होने के प्रश्न यों ही नहीं पूछे जा रहे। आगामी 17 मई को रिलीज होने जा रही फिल्म औरंगजेब की स्टिल्स से अर्जुन उस्ताद खिलाड़ी मालूम पड़ते हैं। फिल्म के एक दूसरे के प्यार में बुरी तरह से खोये जोड़े के यह चित्र काफी कामुक किस्म के हैं। अर्जुन कपूर स्मूचिंग में व्यस्त नज़र आ रहे हैं। इसमे उनका सक्रिय सहयोग कर रही हैं सालमा 'निकाह' आगा की बेटी साशा आगा। इन चित्रों को देखिये और खुद ही राय कायम कीजिये।
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फोटो फीचर
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Wednesday, 8 May 2013
जॉन अब्राहम और सोनाक्षी सिन्हा की नयी जोड़ी का 'वैल्कम'
अनीस बज़्मी, अपनी 2007 की सुपर हिट फिल्म वेलकम का सेकुएल जल्द ही फ्लोर पर ले जा रहे हैं। 2007 की वैल्कम में अक्षय कुमार और कैटरीना कैफ मुख्य भूमिका में थे। अनिल कपूर, नाना पाटेकर, फिरोज खान और मालिका शेरावत सपोर्टिंग रोल में थे। चालीस करोड़ की लागत से बनी वैल्कम, बॉक्स ऑफिस पर अब तक 116 करोड़ की कमाई कर चुकी है। अब पूरे 6 साल बाद इस फिल्म के सेकुएल का ऐलान किया गया है। आम तौर पर, सेकुएल में मूल फिल्म की मुख्य कास्ट को रिपीट किया जाता है। लेकिन वैल्कम 2 के सेकुएल की स्टार कास्ट में काफी परिवर्तन हो चुके हैं। पहले, अक्षय कुमार की जगह जॉन अब्राहम आए। कैटरीना कैफ को साइन कर लिया गया था। लेकिन फिर न जाने क्या हुआ कि अब कैटरीना कैफ की जगह सोनाक्षी सिन्हा आ गयी हैं। इसका मतलब यह हुआ कि अनीस बज़्मी, वैल्कम 2 में एक बिल्कुल नयी जोड़ी को पहली बार पेश करेंगे। शूटआउट एट वडाला के हिट हो जाने के बाद जॉन अब्राहम के कद में काफी इजाफा हुआ है। सोनाक्षी सिन्हा पहले से ही लकी एक्ट्रेस मानी जा रही हैं। इसलिए, अनीस बज़्मी एक बार फिर एक सुपर हिट फिल्म की उम्मीद कर सकते हैं। अनीस बज़्मी ने इसका पूरा इंतजाम भी कर लिया है। वैल्कम की स्टार कास्ट में केवल अनिल कपूर और नाना पाटेकर ही अपनी अपनी भूमिकाओं में रिपीट किए जा रहे हैं। फिरोज खान का निधन हो चुका है। इसलिए, उनके आरडीएक्स के रोल को सेकुएल में अमिताभ बच्चन कर रहे हैं। इस स्टार कास्ट को देख कर लगता है कि अनीस ने बॉक्स ऑफिस के सभी मसाले जुटा लिए हैं। मगर, अब मालिका शेरावत की दुकान बॉलीवुड में लगभग बंद हो चुकी हैं। हिन्दी फिल्मों में मल्लिका की सेक्स अपील का कोई तोड़ नहीं था। लेकिन अनीस ने मल्लिका का भी तोड़ निकाल लिया है। वैल्कम के सेकुएल में मल्लिका की ईशिका पॉर्न स्टार सनी लियोने करेंगी। तो लीजिये न वैल्कम 2 में डबल एस यानी स्टार और सेक्स की डबल डोज़ का मज़ा।
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फिल्म पुराण
मैं हिंदी भाषा में लिखता हूँ. मुझे लिखना बहुत पसंद है. विशेष रूप से हिंदी तथा भारतीय भाषाओँ की तथा हॉलीवुड की फिल्मों पर. टेलीविज़न पर, यदि कुछ विशेष हो. कविता कहानी कहना भी पसंद है.
Tuesday, 7 May 2013
क्या बच्चों की फिल्म को डरा पाएगा चलता फिरता मुर्दा!
इस शुक्रवार दर्शकों को अपने शहर के सिनेमाघरों में दिलचस्प नज़ारा देखने को मिलेगा। क्योंकि, इस हफ्ते जो दो हिन्दी फिल्में रिलीज होने वाली हैं, उनमे एक बच्चों की फिल्म गिप्पी है और दूसरी एक ज़ोमबी यानि चलते फिरते मुरदों वाली फिल्म गो गोवा गॉन है।
गिप्पी के निर्माता करण जौहर हैं तथा इसका निर्देशन सोनम नायर कर रही हैं। यह सोनम नायर की देबू फिल्म है तथा इस फिल्म की कहानी, संवाद और पटकथा सोनम ने ही लिखी है। गिप्पी कहानी है 14 साल की एक लड़की की, जो शिमला में अपनी माँ पप्पी और भाई बूबू के साथ रह रही है। वज़न कुछ ज़्यादा होने के कारण उसे जब तब अजीबो गरीब परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है। वह समझ नहीं पाती है कि इसे वह किस प्रकार से इमोश्नल, फ़िज़िकल और सोश्ल तरीके से निबटे। उसे स्कूल में पीछे की बेंच पर बैठना पड़ता है। साथी स्टूडेंट उसे चिढ़ाते हैं। दरकते घर के इमोशन से कैसे निबटे, वह समझ नहीं पाती। इसी दौरान वह एक लड़के के प्यार में पड़ जाती है। पर जल्द ही उसे अपने एक तरफा प्यार के कारण शर्मिंदा होना पड़ता है। सभी उसका मज़ाक बनाते हैं। तब वह डिसाइड करती है कि अब वह इस परिस्थिति से अपनी सहपाठिन खूबसूरत और ग्लेमरस लड़की शमीरा से निबटेगी। क्या होता है, यही गिप्पी की कहानी है। इस फिल्म में गिप्पी की भूमिका में दिल्ली की रिया विज नज़र आएंगी। फिल्म में वह जिस लड़के से प्यार करने लगती है, उसकी भूमिका ताहा शाह ने की है। ताहा Dubai के एक अमीर परिवार से हैं। 2011 में उन्होने यशराज बैनर के यंग फिल्म्स बैनर के तहत बनी फिल्म लव का द एंड से देबू किया था। पर वह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर बुरी तरह से फ़ेल हुई थी।
गिप्पी के सामने निर्माता सैफ अली खान के इलुमनाती बैनर की फिल्म गो गोवा गॉन रिलीज हो रही है। इसे ज़ोमबी कॉमेडी फिल्म कहा जा रहा है। इस फिल्म में कुनाल खेमू, वीर दास और पूजा गुप्ता एक शादी में शामिल होने जाते हैं। इसी दौरान कुछ ऐसा घटता है कि दुल्हन ज़ोमबी बन जाती है। उसके कारण पूरी बारात के लोग ज़ोमबी बनना शुरू हो जाते हैं। अब कुणाल खेमू और वीर दास इस समस्या का हल बड़े हास्यपूर्ण ढंग से किस प्रकार निकलते हैं, यही फिल्म का रोचक पहलू है। इसमे उनका साथ ज़ोमबी हंटर बने सैफ अली खान देते हैं। गो गोवा गॉन Bollywood की पहली ज़ोमबी फिल्म नहीं। कुछ हफ्ते पहले दर्शक राइज़ ऑफ द ज़ोमबी देख चुके हैं। किर्ति कुलहरी और ल्यूक केनी की इस फिल्म को हॉरर ज़ोमबी मूवी कहा गया था। मगर, Hollywood का सबसे प्रिय विषय ज़ोमबी हिन्दी दर्शकों को आकर्षित नहीं कर सका। अब ज़ोमबी की ओर आकृष्ट करने का सारा दारोमदार सैफ के कंधों पर है। वह ज़ोमबी हंटर बने हैं, उन पर ज़ोमबी का प्रभाव पड़ता है और उनका चेहरा बदलने लगता है। दर्शक सैफ और कॉमेडी के कारण फिल्म को देखना चाहेंगे। अभी तक अपनी रोमांटिक फिल्मों से पहचाने जाने वाले सैफ अली खान का ज़ोमबी हंटर रूप दर्शकों में उत्सुकता का विषय बना हुआ है। फिल्म का निर्देशन राजा निदिमोरु और कृष्णा डीके का है। यह जोड़ी शोर इन द सिटी में अपनी प्रतिभा का परिचय दे चुकी है।
ज़हीर है कि यह हफ्ता दिलचस्प है। करण जौहर अपनी फिल्म के जरिये अपने मित्र सैफ अली खान की फिल्म के सामने होंगे। दो बड़े बैनरों की फिल्मों का यह मुकाबला इस लिए भी दिलचस्प होगा कि इस से दो भिन्न फिल्म शैलियाँ टकरा रही होंगी। अब अगला हफ्ता बताएगा कि सैफ अली खान अपनी ज़ोमबी फिल्म के जरिये दर्शकों को आकर्षित करते हैं या करण जौहर अपनी शैली में बनी इस साल की दूसरी छात्र फिल्म से दर्शकों को आकर्षित कर पाते हैं। इस मुकाबले में इतना तो निश्चित है कि गो गोवा गॉन, गिप्पी से आगे रहेगी। बशर्ते कि वह जॉन Abraham की फिल्म शूटआउट एट वडाला के प्रभाव से दर्शकों को उबार पाये।
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इस शुक्रवार
मैं हिंदी भाषा में लिखता हूँ. मुझे लिखना बहुत पसंद है. विशेष रूप से हिंदी तथा भारतीय भाषाओँ की तथा हॉलीवुड की फिल्मों पर. टेलीविज़न पर, यदि कुछ विशेष हो. कविता कहानी कहना भी पसंद है.
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