Thursday 5 September 2013

क्या दक्षिण से मिलने जा रहा है बॉलीवुड को सुपर स्टार !

चालीस साल पहले रिलीज़ प्रकाश मेहरा की सुपर हिट फिल्म ज़ंजीर ने अमिताभ  बच्चन को सुपर स्टार बना दिया था. उस समय अमिताभ बच्चन ३१ साल के थे.  बताते हैं कि उस समय तक अमिताभ बच्चन १३ सुपर फ्लॉप फ़िल्में दे चुके थे. उनके बॉम्बे से लुटिया पुटिया बटोर लेने की नौबत आ गयी थी. ज़ंजीर से उन्होंने हिंदी दर्शकों को अपने आकर्षण में कुछ इस तरह बाँधा कि उतार चढ़ावों के बावजूद उनकी दूकान चल रही है. अब चालीस साल बाद अपूर्व लाखिया की ज़ंजीर फिल्म की रीमेक फिल्म ज़ंजीर २.० रिलीज़ हो रही है. यह फिल्म उन्होंने चालीस साल पहले की ज़ंजीर के निर्देशक प्रकाश मेहरा के बच्चों से अनुमति लेकर इस फिल्म का रीमेक किया है. कहते हैं कि इतिहास खुद को दोहराता है. इस लिहाज़ से ज़ंजीर २.० के हीरो रामचरन तेज बॉलीवुड के सुपर स्टार बनने जा रहे हैं. अमिताभ बच्चन १९७३ की ज़ंजीर के समय ३१ साल के थे. जबकि, रामचरन इस समय २८ साल के हैं. उन्होंने तेलुगु फिल्मों में २००७ से अपना फिल्म
करियर शुरू किया था. वह अब तक चिरुथा, मगधीरा, ऑरेंज, रचा और नायक जैसी हिट सुपर हिट फ़िल्में दे चुके हैं. वह बॉलीवुड की एक सुपर हिट फिल्म से अपने हिंदी फिल्म करियर की शुरुआत कर रहे हैं.  बॉलीवुड की सबसे सफल  अभिनेत्रियों में से एक प्रतिभाशाली अभिनेत्री प्रियंका चोपड़ा फिल्म में उनकी नायिका हैं. एक एक्शन फिल्म से रामचरन ज़बरदस्त शुरुआत सकते हैं. फिल्म में वह अपनी अभिनय प्रतिभा का प्रदर्शन कर हिंदी दर्शकों को अपना कायल बना सकते हैं।  उन्हें याद होगा कि अभी उनके तमिल काउंटरपार्ट धनुष ने रान्झाना में केवल अपनी अभिनय प्रतिभा के ज़रिये हिंदी दर्शकों को अपना प्रशंसक बनाया।

                       होगा क्या यह तो बॉक्स ऑफिस पर दर्शकों द्वारा तय किया जाएगा।  फिलहाल तो यह सोचा ही जा सकता  है कि दक्षिण आ रहा है एक सुपर स्टार !
 

हिंदी फिल्मों में 'गुरु' महिमा



हिंदी फिल्मों में गुरु नाम  वाले केवल एक अभिनेता हुए गुरुदत्त. ९ जुलाई १९२५ को बेंगलुरु में जन्मे गुरुदत्त का नाम वसंत कुमार शिवशंकर पादुकोण था. उन्होंने बाजी, जाल, मिस्टर एंड मिसेज ५५, प्यासा और कागज़ के फूल जैसी फिल्मों का निर्देशन किया. वह एक संवेदनशील अभिनेता थे. १० अक्टूबर १९६४ को उन्होंने आत्महत्या कर ली.
२००७ में रिलीज़ मणिरत्नम की फिल्म गुरु ने  अभिषेक बच्चन और ऐश्वर्य रॉय की अब तक ढाई अक्षर प्रेम के और उमराव जान जैसी फ्लॉप फिल्मों की जोड़ी को हिट बना दिया। अब यह बात दीगर है कि धीरू भाई अम्बानी के जीवन पर गुरु के  ऐश-अभिषेक जोड़ी की फिल्म रावण फ्लॉप हो गयी. दिलचस्प तथ्य यह है कि रावण का निर्देशन गुरु मणि रत्नम ने ही किया था.
१९८९ में श्रीदेवी की उमेश महरा निर्देशित फिल्म गुरु रिलीज़ हुई थी। इस फिल्म में उनके जोड़ीदार मिथुन चक्रवर्ती थे. इस फिल्म को  बॉक्स ऑफिस पर सफलता मिली थी. इसी फिल्म के दौरान मिथुन चक्रवर्ती और श्रीदेवी की शादी की अफवाह उडी और फोटो प्रकाशित हुए.
दक्षिण के सुपर स्टार धनुष हिंदी फिल्म रान्झाना की सफलता के बाद दक्षिण के अभिनेताओं के हिंदी गुरु बन गए हैं. वह आज कल तमिल फिल्मों के मशहूर अभिनेता भारत को हिंदी उच्चारण सिखा रहे हैं. भारत फिल्म जैकपोट से बॉलीवुड में डेब्यू करेंगे।
अभिनेता सलमान खान आज कल ब्राजील की मॉडल ब्रूना अब्दुल्ला के गुरु बने हुए हैं. वह मेंटल फिल्म में सना खान और डेज़ी शाह के हीरो हैं, लेकिन उनका पूरा ध्यान फिल्म में एक छोटा रोल कर रही ब्रूना अब्दुल्ला को हिंदी सिखाने में लगा हुआ है. ब्रूना ने अब तक कैश, आई हेट लव स्टोरीज़. देसी ब्वॉयज़, हिम्मतवाला और एक तमिल फिल्म बिल्ला-2 में अभिनय किया है.
भगवान दादा को  बॉलीवुड का डांस गुरु  कहा जा सकता है. चालीस और पचास के दशक में उनके नाचने के ख़ास अंदाज़ ने धूम मचा दी थी. दर्शक उनका डांस देखने के लिए ही फिल्म देखने जाते थे. अमिताभ बच्चन को लम्बी टांगों के कारण डांस करने में परेशानी होती थी. इसलिए उन्होंने भगवान् दादा वाला अंदाज़ अपनाया। अमिताभ भगवान् दादा को अपना डांसिंग गुरु कहते थे. बाद में किसी न किसी फिल्म में मिथुन चक्रवर्ती, ऋषि कपूर और गोविन्द ने भी भगवान् दादा स्टाइल में डांस किया।
सुना है कि अनिल शर्मा देओलों धर्मेन्द्र, सनी देओल और बॉबी देओल को लेकर एक फिल्म मास्टर बनाने हैं.
 

Tuesday 3 September 2013

गैंग्स ऑफ़ घोस्ट के खास गाने के शूट लिए नए लोकेशन की तलाश


 गैंग्स  ऑफ़ घोस्ट की यूनिट को फिल्म के एक ख़ास गीत के लिए मुंबई में ख़ास लोकेशन की तलाश है. पहले इस गीत की शूटिंग मुंबई की कुख्यात शक्ति मिल्स में होनी थी. बरसों से वीरान पड़ी इस मिल में पिछले दिनों एक मागज़ीने की महिला फोटोग्राफर के साथ जघन्य बलात्कार से बॉलीवुड भी आहत हुआ है. इसीलिए, निर्देशक सतीश कौशिक ने यह निर्णय लिया कि हम इस घटना का विरोध करते हुए अपनी फिल्म की शूटिंग लक्ष्मी मिल में नहीं करेंगे। अब गैंग्स  ऑफ़ घोस्ट के गैंग को तलाश है उपयुक्त लोकेशन की. क्या किसी की निगाह में शक्ति मिल्स  मिल्स जैसी वीरान मिल है?
 लेकिन ध्यान रहे कि वह जगह बलात्कारियों और अपराधियों की चारागाह नहीं होनी चहिये. गैंग्स ऑफ़ घोस्ट से प्रियंका चोपड़ा और परिणीती चोपड़ा की कजिन मीरा चोपड़ा का डेब्यू होने जा रहा है.
 

Monday 2 September 2013

रजनीकांत की फिल्म कोचदैइयान का ट्रेलर गणेश चतुर्थी के दिन रिलीज़ होगा


                          
इंडियन सुपरस्टार रजनीकांत की फिल्म कोचदैइयान  का ट्रेलर ९ सितम्बर को गणेश  चतुर्थी के दिन रिलीज़ होगा. रोबोट के बाद रिलीज़ होने वाली रजनीकांत की यह फिल्म है. इस ३डी फिल्म का निर्देशन रजनीकांत की बेटी सोन्दर्य ने किया है. फिल्म के ट्रेलर की रिलीज़ के बारे में सोन्दर्य ने अपने ट्विटर अकाउंट में लिखा, ''(आइ ऍम) एक्साइटेड टु announce  'कोचदैयान' टीज़र विल रिलीज़ दिस सितम्बर ९.'' यह भारत की पहली मोशन कैप्चर टेक्नोलॉजी फिल्म है. इस टेक्नोलॉजी पर हॉलीवुड की अवतार और टिन टिन  जैसी फ़िल्में बनायी गयी

डबिंग करते हुए रजनीकांत 
हैं. मूल रूप से तमिल में बनायी गयी इस फिल्म को हिंदी के अलावा तेलुगु और मलयालम में डब कर रिलीज़ किया जायेगा। इस फिल्म में रजनीकांत की दोहरी भूमिका है. तथा दक्षिण के शरद कुमार, शोबना, आदि पिनिसेत्टी और नासर जैसे मशहूर कलाकारों के अलावा हिंदी फिल्मों की सबसे सफल अभिनेत्री दीपिका पदुकोन और अभिनेता जेकी श्रॉफ महत्वपूर्ण भूमिकाओं में नज़र आयेंगे। इस फिल्म को  जापानी, इतालियन और स्पेनिश भाषाओँ में डब कर वर्ल्डवाइड रिलीज़ किया जयेगा. फिल्म के बजट के बारे में बताया जा रहा है कि इस फिल्म के निर्माण में १०० करोड़ से अधिक का खर्च हो चूका है.

 

Friday 30 August 2013

प्रकाश झा का कमज़ोर 'सत्याग्रह'


प्रकाश झा की आज रिलीज़ हुई फिल्म सत्याग्रह की पूरी कहानी  मशहूर सामाजसेवी  अन्ना हजारे के दिल्ली में छेड़े गए आमरण अनशन और सत्याग्रह की चरित्र by चरित्र नक़ल है. प्रकाश झा और  उनकी लेखक टीम का कोई ओरिजिनल है तो वह यह कि अन्ना से प्रेरित करैक्टर दद्दू जी फिल्म के क्लाइमेक्स में पुलिस की फायरिंग का शिकार हो जाता है.  फिल्म को लिखा जितना मामूली गया है, उतना ही मामूली काम अजय देवगन, अमिताभ बच्चन, अर्जुन रामपाल, करीना कपूर, अमृता राव, विपिन शर्मा, आदि से लिया गया है, यहाँ तक कि  मनोज बाजपाई भी अपनी पिछली फिल्मों आरक्षण और राजनीती के करैक्टर को बुरी तरह से दोहराते हैं. प्रकाश झा को एक स्टार दिया जाना चाहिए कि उन्होंने इतने बड़े सितारों की ऐसी की तैसी कर दी. बेचारी अमृता राव को न तो ढंग का रोल मिला, न ढंग के कपडे ही. अजय देवगन अब काफी थक चुके लगते हैं. भगवान् का शुक्र है कि अभी वह चुके नहीं हैं. अच्छा होगा कि  वह दोस्ती निभाने के बजाय रोल देखना शुरू कर दें. करीना कपूर ने खूबसूरत शक्ल के साथ बुरा काम अंजाम दिया है. ऐसा लग रहा है कि अमिताभ बच्चन ज़ल्द ही मिल्लेनियम फ्लॉप स्टार बनाने जा रहे हैं.   
आरक्षण फियास्को के बाद से प्रकाश झा अब अपनी फिल्मों के किसी जीवित या मृत,  वास्तविक या काल्पनिक घटना से रेसेम्ब्लेंस से साफ़ इनकार करते है, वह सत्याग्रह को अन्ना हजारे के आन्दोलन से प्रेरित मानने से इनकार करते हैं, लेकिन फिल्म का हर फ्रेम अन्ना के आन्दोलन की याद दिलाता है. पर इसके बावजूद उनका यह रील लाइफ आन्दोलन बिलकुल भी प्रभावित नहीं कर पाता. प्रकाश झा ने अन्ना के आन्दोलन को बीजेपी के समर्थन का आरोप भी फिल्म में लगाया है. विपिन शर्मा का गौरी शंकर का किरदार बीजेपी अध्यक्ष राजनाथ सिंह की याद ताज़ा करता है. प्रकाश झा ने जनता की नब्ज़ पकड़ने वाला विषय लिया ज़रूर था. लेकिन, वह खुद आन्दोलन की नब्ज़ नहीं समझ पाए. उनकी फिल्म का आन्दोलन बेहद सतही और निर्जीव लगता है. यह आन्दोलन जनता का नहीं इंडिविजुअल ख्वाहिशों वाला बन जाता है. सब कुछ इतना आसान दिखाया गया है कि एक आन्दोलन की भावना बिल्ड नहीं होने पाती. प्रकाश झा की फिल्म अन्ना के आन्दोलन का समर्थन भी नहीं करती और उसकी पोल खोलने की हिम्मत भी नहीं जुटा पाती। अगर प्रकाश झा अजय देवगन के किरदार के जरिये पूंजीपतियों के अन्ना के आन्दोलन को समर्थन की पोल खोलते और अन्ना के समर्थकों की व्यक्तिगत ख्वाहिशों की पोल खोल पाते तो एक अच्छा काम कर पाते। लेकिन, वह शायद अन्ना के आन्दोलन से इतने भयभीत हैं कि उसकी पोल खोलने वाली कहानी गढ़ने की हिम्मत तक नहीं जुटा पाते। कहा जा सकता है कि सत्याग्रह प्रकाश झा की सबसे कमज़ोर फिल्मों में से एक है.
अब बात आती है फिल्म देखने और इसे स्टार देने की. यह फिल्म प्रकाश झा की अन्ना के जन आन्दोलन पर बेहद कमज़ोर फिल्म है. आप देखना चाहे तो देखे ताकि यह जान सकें कि अन्ना के आन्दोलन के प्रति फिल्मकारों का रवैया क्या है. रही बात स्टार की तो मैं स्टार देता नहीं. क्योंकि, मुझे स्टार देने लायक फिल्म देखना आता नहीं। मैं जो लिखता हूँ आम दर्शक के नजरिये से. इस नज़रिए से मैं प्रकाश झा को एक स्टार देना चाहूँगा की उन्होंने बड़ी आसानी से इतने बड़े सितारों को मटियामेट कर दिया।  

Monday 26 August 2013

मद्रास कैफ़े जा रहे हैं दर्शक

                                                       मद्रास कैफ़े, चेन्नई एक्सप्रेस और वन्स अपॉन अ टाइम इन मुंबई दुबारा का वीकेंड बॉक्स ऑफिस कलेक्शन देखिये, ज़मीन  आसमान का फर्क नज़र आएगा।  दो हज़ार स्क्रीन में रिलीज़ जॉन अब्राहम  की फिल्म मद्रास कैफ़े ने पहले दिन स्लो स्टार्ट करते हुए २५ से ३५ प्रतिशत की ऑक्यूपेंसी के सात ५.१७ करोड़ का बिज़नस किया. शुक्रवार की शाम से ही मद्रास कैफ़े ने pickup करना शुरू किया. इस प्रकार से फिल्म ने शनिवार को ७ करोड़ कमाए। सन्डे को फिल्म ने जम्प लिया. बिज़नस हुआ ८.५० करोड़ का. इस प्रकार से मद्रास कैफ़े का वीकेंड कलेक्शन २०.६७ करोड़ का हुआ. इस प्रकार से जॉन अब्राहम ने अपनी पिछली सोलो फिल्म फ़ोर्स के वीकेंड रिकॉर्ड में सुधार कर लिया. फ़ोर्स ने वीकेंड में ५.०५, ४.७५ और ६.२० करोड़ का बिज़नस करते हुए कुल १६ करोड़ का वीकेंड कलेक्शन किया था.
                             चेन्नई एक्सप्रेस का कलेक्शन देखिये. शुक्रवार को इस फिल्म ने मद्रास कैफ़े के कलेक्शन का डेढ़ गुना यानि ३३.१२ करोड़ का कलेक्शन किया। इसके बाद फिल्म का कलेक्शन गिरना शुरू हुआ और अगले दो दिनों में फिल्म ने २८.०५ और ३२.५० का कलेक्शन किया, जो पहले दिन के कलेक्शन से कम था. ऐसा इस लिए हुआ कि चेन्नई एक्सप्रेस बेसिर पैर की स्टार अट्रैक्शन पर आधारित फिल्म थी.  जबकि,मद्रास कैफ़े में कंटेंट था. फिल्म मकर की  ईमानदारी थी. जबकि, चेन्नई एक्सप्रेस हॉलिडे क्राउड को भुनाने के लिए प्रदर्शित की गयी थी. ऐसी फिल्मों का दर्शक फिल्म के कंटेंट से नहीं, फिल्म के अग्रेस्सिव पब्लिसिटी का शिकार हो कर फिल्म देखने आता है. मद्रास के चेन्नई संस्करण की यही त्रासदी है.  

Saturday 24 August 2013

एक बार ज़रूर जाइये 'मद्रास कैफ़े'

                   
                     निर्माता जॉन अब्राहम की इस शुक्रवार रिलीज़ फिल्म मद्रास कैफ़े बॉक्स ऑफिस पर खान अभिनेताओं वाली फिल्मों जैसा धमाल नहीं मचाएगी. यह फिल्म सौ करोड़ क्लब में आने की सोच भी नहीं सकती. लेकिन, इतना तय है कि मद्रास कैफ़े जॉन अब्राहम और शुजित सिरकार की जोड़ी एक ईमानदार कोशिश है. विक्की डोनर से उन्होंने लीक से हट कर फिल्मों का जो सिलसिला शुरू  था, उसकी दूसरी कड़ी है मद्रास कैफ़े।
                      मद्रास कैफ़े का हीरो जॉन अब्राहम हैं. लेकिन उन्होंने कहीं भी अपने करैक्टर को लार्जर देन लाइफ बना कर दर्शकों की तालियाँ बटोरने की झूठी कोशिश नहीं की. मद्रास कैफ़े की कहानी ८० के  दशक और शुरूआती ९० के दशक तक फैले श्रीलंका के सिविल वॉर पर है. फिल्म में रियल करैक्टर के नाम बदल दिए गए हैं. श्रीलंका की सेना और तमिल ईलम के विद्रोहियों के संघर्ष, भारतीय सेना का पीस कीपिंग फ़ोर्स के रूप में सिविल वॉर में हस्तक्षेप और असफलता जैसी प्रोमिनेन्ट घटनाओं को फिल्म में शामिल किया गया है. फिल्म ख़त्म होती है राजीव गांधी की हत्या के साथ.
                      जॉन अब्राहम ने विक्की डोनर के शुजित सिरकार को एक बार फिर अपनी फिल्म का डायरेक्टर बनाया है.  फिल्म को शोमनाथ डे और शुदेंदु भट्टाचार्य ने लिखा है. इन दोनों ने बहुत चुस्ती से अपना काम किया है. शुजित ने हर फ्रेम को बिना अतिरेक में गए स्वाभाविक ढंग से फिल्माया है. फिल्म में श्रीलंका में संघर्ष के दृश्य हैं, लेकिन कहीं भी documentry का एहसास नहीं होता. फिल्म देखते समय ऐसा लगता है जैसे हम रियल श्रीलंका में घूम रहे हैं. फिल्म कहीं भी हिंसक नहीं लगती. तभी तो इस फिल्म को यु /ए  प्रमाण पत्र दिया गया है. मद्रास कैफ़े का रॉ एजेंट विक्रम सिंह आम आदमी से थोडा हट कर ही है. पर उसे सुपरमैन नहीं कहा जा सकता. वह लिट्टे के लोगों द्वारा पकड़ा जाता है. उसके डिपार्टमेंट के लोग उसे धोखा देते है. लेकिन, वह इन सबसे रेम्बो के अंदाज़ में नहीं निबटता। एक जिम्मेदार अधिकारी जैसा व्यवहार करेगा, वैसा ही व्यवहार विक्रम सिंह करता है. यही फिल्म की खासियत है.
                      मद्रास कैफ़े की सबसे बड़ी खासियत है इसके सामान्य और स्वाभाविक चरित्र। यहाँ तक कि प्रभाकरन और उसके साथियों का चित्रण भी स्वाभाविक हुआ है. श्रीलंका से लेकर दिल्ली तक तमाम करैक्टर अपने स्वाभाविक अंदाज़ में हैं, यहाँ तक कि राजीव गांधी का चरित्र भी. फिल्म के हीरो जॉन अब्राहम है. वह बहुत अच्छे एक्टर नहीं। लेकिन अपना काम ईमानदारी से करते हैं. उन्हें एक एजेंट के रोल में अपने शरीर पर थोड़ी चुस्ती लानी चाहिए थी. चलने फिरने के अंदाज़ को बदलना चाहिए था. शुजित सिरकार को इस और ध्यान देना चाहिए था।  लेकिन शायद उनके लिए करैक्टर के बजाय कथ्य ज्यादा महत्त्व रखते थे. रॉकस्टार के बाद नर्गिस फाखरी एक विदेशी अखबार की पत्रकार जाया के रोल में हैं. उन्होंने अपना काम ठीक ठाक कर दिया है. यह रोल टेलर मेड जैसा था. जॉन अब्राहम की पत्नी के रोल में राशी खन्ना का काम बढ़िया है. अजय रत्नम एना भास्करन की भूमिका में स्वाभाविक हैं. श्री के रोल में कन्नन भास्करन स्वाभाविक हैं.श्रीलंका में रॉ के लिए काम कर रहे बल की भूमिका में प्रकाश बेलावादी के लिए यह तो नहीं कहा जा सकता कि उनके रूप में हिंदी फिल्मों को एक विलेन मिल गया. लेकिन उनमे संभावनाएं हैं.  कैबिनेट सेक्रेटरी की भूमिका में पियूष पाण्डेय ठीक लगे हैं. सिद्धार्थ बासु रॉ चीफ के रूप में जमे नहीं।                      
                       इस फिल्म के लिए शांतनु मोइत्रा का संगीत, चंद्रशेखर प्रजापति का संपादन, कमलजीत नेगी का कैमरा वर्क ,मनोहर वर्मा के स्टंट वीरा कपूर की डिजाइनिंग और मेकअप डिपार्टमेंट की टीम का काम एसेट की तरह है. यह लोग फिल्म को रिच और दर्शनीय बनाते हैं. मद्रास कैफ़े को बेहतरीन टीम वर्क का नमूना कहा जाना चाहिए।
                       अभी मई में जॉन अब्राहम की फिल्म शूटआउट at वडाला रिलीज़ हुई थी. मान्य सुर्वे बने जॉन अब्राहम की ज़बरदस्त बॉडी और ओवर एक्टिंग पर खूब तालियाँ बजी थीं. मगर इस फिल्म में ऐसा कुछ नहीं है. मौका निकाल कर सलमान खान की तरह बॉडी दिखाने के बजाय जॉन ने अपने अभिनय के जरिये अपना काम ईमानदारी से किया है. यकीन जानिये सिनेमाहाल में बैठा दर्शक जॉन अब्राहम के कारनामों पर तालियाँ नहीं बजाता। लेकिन, जब फिल्म ख़त्म होती है तो वह कुछ सोचता सा उठता है. वह मद्रास कैफ़े में कहीं खोया हुआ होता है. यही फिल्म की सफलता है.
                       जॉन अब्राहम ने अपना काम ईमानदारी से कर दिया है. अब बारी दर्शकों की है. वह मद्रास कैफ़े में एक बार ज़रूर। यहाँ मिलने वाली श्रीलंका की कॉफ़ी आपको निहाल कर देगी. तो क्या जा रहे हैं आप दर्शक बन कर आज ही.