Sunday 24 September 2017

प्रथम विश्व युद्ध के सैनिक दिलजीत दोसांझ

पंजाबी फिल्मों के सुपर स्टार दिलजीत दोसांझ प्रथम विश्व युद्ध पर एक फिल्म में नायक की भूमिका करेंगे।  यह फिल्म पंजाबी भाषा में बनाई जाएगी।  इस फिल्म का निर्देशन नॉटी जट्स, गोरेया नू दफा करो, दीदारियाँ  और बम्बूकाट जैसी हिट पंजाबी फिल्मों के निर्देशक पंकज बत्रा करेंगे।  पंकज बत्रा की फिल्मों की खासियत होती है उनकी फिल्मों के हीरो।  पंकज की ज़्यादा फिल्मों के नायक पंजाबी गायक होते हैं।  जुलाई में उनकी मराठी फिल्म सैराट की पंजाबी रीमेक फिल्म चन्ना मेरेया रिलीज़ हुई थी।  इस फिल्म से गायक निंजा का डेब्यू हुआ था।  पंकज बत्रा ने एक हिंदी फिल्म आई लव देसी का निर्देशन भी किया था।  लेकिन, यह फिल्म बुरी तरह से फ्लॉप हुई थी।  दिलजीत दोसांझ की पहली हिंदी फिल्म शाहिद कपूर, करीना कपूर और आलिया भट्ट के साथ उड़ता पंजाब थी।  जहाँ तक रियल लाइफ फ़िल्में करने का सवाल है, दिलजीत दोसांझ फिल्म पंजाब १९८४ कर चुके हैं।  इस फिल्म में किरण खेर के साथ उनके अभिनय को बहुत सराहा गया था।

हिंदी फिल्मों में रावण नहीं दशानन !

इस साल के अंत तक रिलीज़ होने वाली कुछ फिल्मों पर नज़र डालते हैं।  सीक्रेट सुपरस्टार, मुआवज़ा ज़मीं का पैसा, रांची डायरीज, आईएसआईएस: एनिमीज ऑफ़ ह्यूमैनिटी और २०१६ द एन्ड उल्लेखनीय हैं। यह फ़िल्में अलग पृष्ठभूमि पर समस्याओं के साथ हैं।  इन सभी फिल्मों में बुराई का रावण मौजूद है।  बेशक, इसका चेहरा बदला हुआ है।  सीक्रेट सुपरस्टार की एक मुस्लिम लड़की संगीत में रूचि रखती है।  आड़े आते हैं कट्टरवादी।  कैसे मुक़ाबला कर पाती है इंसु (ज़ायरा शेख) | रांची डायरीज एक छोटे शहर रांची की गुड़िया की है, जो शकीरा बनाना चाहती है।  उसके इस लक्ष्य का फायदा उठाना चाहता है एक स्थानीय गुंडा।  क्या गुड़िया सफल होती है? मुआवज़ा ज़मीन का पैसा किसानों से जुडी समस्या पर है।  सरकार किसानों की ज़मीन ले लेती है, लेकिन उसको मुआवज़े के लिए नौकरशाही और बिचौलियों के शोषण का शिकार होना पड़ता है।  आईएसआईएस आतंकवादी संगठन पर फिल्म होने के कारण आतंकवाद को निशाना बनाती है। इन सभी फिल्मों में बुराई का रावण है।  सीक्रेट सुपरस्टार में कट्टरवादी हैं, रांची डायरीज में स्थानीय गुंडा है, मुआवज़ा में  नौकरशाही और बिचौलिए हैं, एनिमीज ऑफ़ ह्यूमैनिटी में आतंकवादी संगठन आईएसआईएस, रावण के ही रूप हैं।  आम आदमी, एक व्यक्ति या  व्यवस्था को इनसे जूझना है।  
भारतीय फिल्मों की शुरुआत राजा हरिश्चंद्र से हुई थी, जो सदा सच बोलते थे। धार्मिक किरदार मूक फिल्मों के लिहाज़ से कहानी समझाने वाले और अपीलिंग थे। यही कारण है कि इसके बाद ज़्यादा फ़िल्में धार्मिक या फिर ऐतिहासिक घटनाक्रमों पर बनाई गई।  पहली बोलती फिल्म आलम आरा एक राजकुमार के जिप्सी गर्ल से रोमांस पर फिल्म थी।  इस फिल्म में भी बुराई के रावण की प्रतीक राजा की पत्नी दिलबहार थी। चूंकि, भारत के जनमानस में धार्मिक और पौराणिक चरित्रों की अमिट छवि बनी है, रामायण और महाभारत की कहानियां हर कोई जानता है।  इसलिये, तमाम हिंदी फिल्मों में बुराई के प्रतीक रावण से सच्चाई और अच्छाई का राम  संघर्ष करता रहता था ।  
गाँव की गरीबी और ज़मींदार के शोषण का रावण 
हिंदी फिल्मों का लम्बा इतिहास ग्रामीण पृष्ठभूमि वाली फिल्मों का रहा है।  फिल्म चाहे महबूब खान की रोटी या मदर इंडिया हो या बिमल रॉय की दो बीघा ज़मीन या फिर त्रिलोक जेटली की फिल्म गोदान, गरीबी और  ज़मींदार के शोषण का रावण हर फिल्म में था।  ज़मींदार किसान को क़र्ज़ देता, भारी सूद वसूलता, फिर ज़मीन ही हड़प लेता।  बेचारा किसान और  उसका परिवार बेघर हो जाता।  इन तमाम फिल्मों में रावण जीतता रहा, किसान का राम हारता रहा।  सिर्फ मदर इंडिया की औरत का संघर्ष  ही इस रावण को परास्त कर पाता था। रावण स्त्री लोलुप था।  हिंदी फिल्मों के रावण का  चरित्र भी वैसा ही था।  मिर्च मसाला, निशांत और अंकुर में इसका चित्रण हुआ था।  अलबत्ता श्याम बेनेगल की फिल्म अंकुर के क्लाइमेक्स में ज़मींदार के घर की खिड़की को बजाता हुआ पत्थर निशांत में ग्रामीणों के विरोध में बदल जाता है।  
वेश बदल कर  शहर आया 
सत्तर के दशक में शोषण और अन्याय का प्रतीक रावण गाँव से शहर आ जाता है।  लेकिन, उसका रवैया वही शोषक वाला रहता है।  अमिताभ बच्चन से लेकर सनी देओल और अनिल कपूर तक तमाम बॉलीवुड अभिनेताओं की फ़िल्में शहर के किसी गुंडे या उसके गिरोह या डॉन या अंडरवर्ल्ड की ज़्यादतियों का चित्रण करने के बाद अंत में नायक को जीतता दिखाती थी।  इन एक्शन फिल्मों का कथित राम हिंसा का हथियार पकड़ कर ही रावण को परास्त कर पाता  था।  ज़ंजीर में अमिताभ बच्चन का एंग्री यंग मैन आज का राम था और अजित का तेजा आधुनिक रावण।  यह राम और रावण युद्ध कमोबेश इसी उसी रूप में हर अगली हिंदी फिल्म में नज़र आता रहा।  
फिल्मों की सीतायें भी रावण के खिलाफ 
अस्सी के दशक से हिंदी फिल्मों के रावण का चेहरा बदलने लगा, इसके साथ ही राम का चेहरा भी। अभी तक हिंदी फिल्मों में रावण का मुक़ाबला करने में अकेला राम सामने आता था।  अब राम का युद्ध धर्मयुद्ध बन गया था।  सीता ने भी राम का रूप धर लिया था।  मिर्च मसाला, लज्जा, दामिनी, डोर, फिर मिलेंगे, मातृभूमि, गुलाब गैंग, आदि फ़िल्में तमाम उदाहरणों में कुछ एक हैं, जिनमे फिल्म की नायिकाएं अपने रावणों को ख़त्म करने के लिए कमर कस रही थी। मिर्च मसाला में मसाला बनाने महिलाएं लम्पट जमींदार का खात्मा करने के लिए एकजुट हो जाती थी।  लज्जा की चार औरते अपने मर्दों की ज़्यादतियों के खिलाफ उठ खडी  होती हैं।  दामिनी की नायिका बलात्कार की शिकार अपने घर की नौकरानी को न्याय दिलाने के लिए ससुराल और पति के खिलाफ आवाज़ उठाती है।  अलबत्ता, इस काम में उसका साथ एक शराबी वकील सफलतापूर्वक देता है। डोर का कथानक पुराना लग सकता है।  लेकिन, इसकी विधवा नायिका का अपनी एक मित्र के साथ  गांव समाज की बुराइयों से लड़ने का  जज़्बा किसी को भी प्रेरित कर सकता है।  
फिर मिलेंगे की कहानी एड्स से ग्रस्त लोगों के सामाजिक उपेक्षा के बीच अपना मुकाम बनाने की है। गुलाब गैंग की महिलाएं अपने गाँव की मर्दों के ज़्यादतियों के खिलाफ लड़ने वाली महिलाओं को अपने लट्ठ के बल पर इन्साफ दिलाती है।  मर्दानी में पुलिस ऑफिसर शिवानी शिवाजी रॉय नाबालिग लड़कियों को बेचने वाले रावणों का खात्मा करती है। 
भ्रष्टाचार और आतंकवाद का रावण 
हिंदी फिल्मों में रावण के कई रूप हैं।  समाज में भ्रष्टाचार, आतंकवाद, माफिया-डॉन नेता नेक्सस, महंगाई, चोरबाज़ारी, आदि ढेरों बुराइयों के रावण दसों सिरों के साथ मौजूद हैं। सिस्टम में भ्रष्टाचार पर ढेरों फ़िल्में बनाई गई हैं।  इन फिल्मों में  अर्द्ध सत्य, मेरी आवाज़ सुनो, शूल, जाने भी दो यारों, गंगाजल, रण, सत्याग्रह, रंग दे बसंती, आदि उल्लेखनीय हैं।  इन फिल्मों का नायक प्रशासन और राजनीति में भ्रष्टाचार और गठजोड़  का खात्मा करता है।  सलमान खान की जय हो और अक्षय खन्ना की  गली गली में चोर है में भ्रष्टाचार के खिलाफ आम जनता को जगाया जाता है।  उड़ता पंजाब,  फैशन, देव डी, शैतान, पंख, दम मारो दम, गो गोवा गॉन, आदि फिल्मों में नशे के रावण से लड़ते नायक-नायिका थे, जो हारते भी थे और जीतते भी।  पर उनका संघर्ष जारी रहता था।  ब्लैक फ्राइडे, अ वेडनेसडे, दिल से, मुंबई मेरी जान, रोजा, आमिर, सरफ़रोश, न्यू यॉर्क,  नीरजा, द्रोह  काल, बेबी, ज़मीन, दस, हॉलिडे अ सोल्जर नेवर ऑफ ड्यूटी, आदि फ़िल्में उन बहुत सी फिल्मों का उदाहरण मात्रा हैं, जीनके  नायक-नायिका आतंकवाद से जूझ रहे थे।  

Saturday 23 September 2017

मैनफ़ोर्स के पीछे सनी लियॉन का फ़ोर्स !

सनी लियॉन ने एक बार फिर सनसनी फैला दी है। यह दूसरा मौक़ा है, जब फिल्मों में अपने आइटम नंबर से सनसनी पैदा करने वाली, फिल्म को सफलता की गारंटी देने वाली सनी लियॉन का कंडोम एड सनसनी फैला रहा है। खान से लेकर वापसी करने वाले संजय दत्त को तक सनी लियॉन की ट्रिपि ट्रिपि सनसनी की ज़रुरत होती है। लेकिन, इस बार सनी लियॉन ने सनसनी के साथ विवाद भी पैदा कर दिया है।  वह गर्भनिरोधक कंडोम मैनफोर्स की वुमन (महिला) होते हुए भी मेन-फाॅर्स हैं।  इस कंपनी ने सूरत गुजरात की ऊंची बिल्डिंगों पर सनी लियॉन की सजावट से सजा एक विज्ञापन टांग रखा है।  इस विज्ञापन में गुजराती भाषा में टैग लाइन है- खेलो, प्यार से, इस नवरात्री।  इस विज्ञापन पर नज़र पडने के साथ ही लोगों में गुस्से की लहर पैदा हो गई।  केंद्रीय उपभोक्ता मंत्रालय के मंत्री रामविलास पासवान को सूरत के व्यापारियों ने पत्र लिख कर इस कंडोम ऐड को बैन करने के लिए कहा है।  लोगों के भारी विरोध को देखते हुए स्थानीय अधिकारियों ने इस होर्डिंग को उखाड़ फेंका है।  लेकिन, यह तय है कि सनी लियॉन ने अपनी वुमन फाॅर्स के ज़रिये मैनफोर्स की बिक्री को नई ताक़त दे ही दी है।
गर्भनिरोधक की ताक़त सनी और रणवीर 
गर्भनिरोधक को ताक़त देने वालों में बॉलीवुड से केवल सनी लियॉन ही नहीं। बॉलीवुड हमेशा से कंडोम की बिक्री को ताक़त देता आया है। अभी ही, सनी के विज्ञापन से काफी पहले रणवीर सिंह डुरेक्स के विज्ञापन में एक लड़की के घर के सामने कंडोम बटोरते दिखाई दे रहे थे।  रणवीर सिंह गोलियों की रासलीला-रामलीला के दौरान से ही इस एड से जुड़े हैं। रणवीर सिंह के विज्ञापन 'बोल्ड' माने जाते हैं । वह युवा मस्ती का प्रतीक भी हैं।  हो हल्ला चाहे जितना मचे, समाज पर ऐसे विज्ञापनों का असर होता है। जब से सनी लियॉन ने मैनफ़ोर्स कंडोम का विज्ञापन करना शुरू किया है, इस की निर्माता कंपनी ने तीन हजार करोड़ का बिज़नेस छू लिया है । हालाँकि, ऐसे एड करने वाले रणवीर सिंह और सनी लियॉन पहले हॉलीवुड अभिनेता-अभिनेत्री नहीं। 
'कामसूत्र' से गर्भनिरोधक के काम की पूजा बेदी 
यह विज्ञापन २६ साल पहले बना था।  मुंबई में बिकिनी पहन कर समुद्र के किनारे दौड़ लगाने वाली पूजा बेदी और संदोकान अभिनेता कबीर बेदी की बेटी पूजा बेदी ने १९९१ में वह सनसनी फैला दी थी, जिसे फैलाने का दावा आज के रणवीर सिंह कर रहे हैं।  कामसूत्र के विज्ञापन में पूजा बेदी उस समय के सुपर मॉडल मार्क रॉबिंसन के साथ शावर लेती दिखाई गई थी।  इस विज्ञापन फिल्म ने तहलका मचा दिया था ।  इसे महा बोल्ड बताते हुए उस समय के चैनलों ने इसे प्रसारित करने से मना कर दिया था। उस समय तक पूजा बेदी की पहली फिल्म 'विषकन्या' रिलीज़ नहीं हुई थी।  इस एड के बाद पूजा बेदी की सेक्सी और बोल्ड इमेज पुख्ता हो गई।  इसी एड को बाद में विवेक बाबजी और इन्दर सुलतान ने भी एक झरने के नीचे किया था।  इन दोनों विज्ञापनों ने तत्कालीन समाज को झकझोर दिया था । अब यह बात दीगर है कि इन दोनों विज्ञापनों की बदौलत कामसूत्र कंडोम गर्भनिरोधक का पर्याय बन गया है ।कामसूत्र के बाद मूड्स का एड भी अश्लील माना गया।  इस एड में अभिनेत्री पूजा बत्रा एक पुरुष मॉडल के साथ कामुक मुद्रा में मूड बनाती नज़र आ रही थी। ख़ास बात यह रही कि इन विवादित विज्ञापनों से गर्भनिरोधकों को स्थापित होने का मौक़ा ज़रूर मिला।  लेकिन, इनके एक्टर चाहे वह पूजा बेदी हो या पूजा बत्रा या स्टोर मार्क रॉबिंसन, फिल्मों में बुरी तरह  से फ्लॉप रहे।  
फ्री सेक्स की चाह में 
अब नजरिया बदल रहा है। यह एड बनाने का नजरिया है कि वह अपने उत्पाद के  लिए दर्शकों को किस प्रकार से आकर्षित करता है। १९७० के दशक में भारत सरकार का निरोध का विज्ञापन सुबकती औरत की फोटो के साथ गर्भ को रोकने का अच्छा और आसान उपाय निरोध कह कर प्रचार करता था। इस एड के साथ एड्स का डर भी घुसा रहता था। लेकिन, अब काफी कुछ बदल रहा है।  अगर किसी उत्पाद के लिए यूथ को टारगेट करना है तो कामुकता ज़रूरी हो जाती है। यही कारण है कि अब गर्भनिरोधक के विज्ञापनों में पोर्न फिल्मों की पूर्व अभिनेत्री सनी लियॉन  ज़रूरी हैं या लीला के साथ रासलीला करने वाले रणवीर सिंह।  डुरेक्स का विज्ञापन इसकी पुष्टि करता है कि युवा लड़कियां रणवीर सिंह में कामुकता देखती है। अब गर्भनिरोधक अनिच्छुक गर्भ रोकने या एड्स से बचने का जरिया ही नहीं रहे।  अब यह मौज मजे का ज़रिया बन गए हैं। भारतीय युवाओं में फ्री सेक्स की चाह ने कंडोम्स महत्वपूर्ण बना दिए हैं।  कंडोम्स बनाने वाली कंपनियों के निशाने में भी यही फ्री सेक्स है।  
मामला बाजार का
कभी भारत सरकार गर्भ निरोधक निरोध मुफ्त बांटा करती थी। हाल ही में यह आउटलेट्स से फ्री बांटे गए।  मगर अब गर्भ निरोधक केवल निरोधक नहीं रह गए । अब यह इंडस्ट्री सरकार के कल्याणकारी एजेंडे से हट कर फायदे की इंडस्ट्री बन गई है। एक अनुमान के अनुसार गर्भनिरोधक का कुल व्यापार ७७७ करोड़ से ज़्यादा का है। बाजार का सबसे ज़्यादा हिस्सा ३२.४ प्रतिशत मैनफोर्स का है।  दूसरे स्थान पर मूड्स (१२.७ प्रतिशत) और तीसरे स्थान पर स्कोर (१०.३ प्रतिशत) है। बाकी कंपनियां ४६ प्रतिशत के लिए ज़द्दोज़हद कर रही है। गर्भनिरोधक के मुख्य ब्रांड में मैनफोर्स फ्लेवरड डॉटेड कंडोम, कोहिनूर कंडोम, डुरेक्स एक्सटेंडेड प्लेज़र कंडोम्स, कामसूत्र फ्लेवरस कंडोम्स, मूड्स डॉटेड कंडोम्स, स्कोर कंडोम्स मल्टीप्ल वैरायटी कॉम्बो, कामसूत्र हनीमून पैक, स्कोर नॉटआउट कक्ष डिले कंडोम्स, डीलक्स निरोध (सरकारी), लाइफस्टाइल (स्किन), आदि नाम उल्लेखनीय हैं। यह सभी नाम युथ को टारगेट करने वाले हैं।  
रणवीर सिंह पहली पसंद नहीं थे 
अपने गर्भनिरोधक डुरेक्स के विज्ञापन के लिए कंपनी की पहली पसंद रणवीर सिंह नहीं थे।  कंपनी चाहती थी कि सीरियल किसर इमरान हाश्मी इस विज्ञापन को करें। इमरान हाश्मी के इंकार करने के बाद अर्जुन रामपाल से संपर्क किया गया।  अर्जुन ने भी यह विज्ञापन करने से मना कर दिया।  अंत में रणवीर सिंह से संपर्क साधा गया। अपनी फिल्मों से कैसानोवा इमेज बनाने वाले दिलफेंक आशिक़ रणवीर सिंह डुरेक्स के विज्ञापन के लिए परफेक्ट चॉइस साबित हुए। साफ़ है कि कंपनी का इरादा कंडोम से कामुकता को जोड़ने का था। 
ज़रुरत भी मज़बूरी भी 
गर्भनिरोधक कंपनियों का अपने विज्ञापनों में बॉलीवुड सेलिब्रिटी को लेना उनकी ज़रुरत भी है और मज़बूरी भी। डुरेक्स ने अपनी एक विज्ञापन फिल्म बिना किसी सेलिब्रिटी के बनाई थी, जिसमे एक लड़का सपने में लिफ्ट में एक कामुक लड़की से सेक्स करता है।  तभी उसकी नींद खुल जाती है।  वह भौंचक सा अपनी मेज की ड्रॉर खोलता है। उसके डुरेक्स सुरक्षित है। वह खिल उठता है।  लेकिन, यह विज्ञापन अश्लील माना गया और बैन कर दिया गया। रणवीर सिंह ने इस उत्पाद को अपनी इमेज के सहारे युवाओं के बीच चर्चित कर दिया। अब जहाँ सनी लियॉन कामुकता का प्रतीक है, वहीँ रणवीर सिंह मौज-मजा और मस्ती का प्रतीक है। यहीं कारण है कि अब कंडोम डर से छुटकारा पाने का उपाय नहीं, बल्कि युवा मौज-मज़ा का प्रतीक बन गए हैं।  मैनफोर्स का नवरात्री वाला एड इसी को ध्यान में रख कर बनाया गया है। वहीँ स्कोर को कभी बॉलीवुड सेलिब्रिटी की ज़रुरत नहीं महसूस हुई। उसकी कल्पनाशीलता से भरपूर एड फ़िल्में अनजाने मॉडल्स के साथ भी अपने उपभोक्ताओं को सन्देश पहुँचाने में कामयाब होती हैं।  
जहाँ कंडोम निर्माता कंपनियां बॉलीवुड एक्टर्स के सहारे अपने उत्पादों की बिक्री बढ़ाने की कोशिश में हैं।  वहीँ दूसरी ओर पारसी समुदाय की चिंता दूसरी है।  उनकी आबादी दिनों दिन कम होती जा रहे है। इसलिए, उनका एनजीओ जिओ पारसी बड़े बड़े विज्ञापनों के ज़रिये युवाओं से शादी करने और कम से कम 'आज' कंडोम का उपयोग न करने का अनुरोध करता है।  



Friday 22 September 2017

आई एस बी लीडरशिप सम्मिट २०१७ में करण जौहर

कल से शुरू हो रहे आई एस बी लीडरशिप सम्मिट २०१७ में करण जौहर एंटरटेनमेंट सेक्टर का प्रतिनिधित्व करेंगे। फिल्म निर्माता और निर्देशक करण जौहर अवार्ड्स समारोहों और शोज में अपने मजाकिया अंदाज़ के लिए जाने जाते हैं। इसलिए कई महत्वपूर्ण इवेंट पर उन्हें प्रवक्ता के रूप में  आमंत्रित किया जाता है। आई एस बी लीडरशिप सम्मिट २०१७ में करण जौहर भविष्य में इंडियन सिनेमा में हो रहे बदलाव, चुनौतियों और अवसरों पर बातचीत  करेंगे। यह सम्मिट हैदराबाद में  आयोजित हो रही है। 

टाइगर ज़िंदा है का अबू धाबी शिड्यूल पूरा

यशराज फिल्म्स की मेगा बजट फिल्म टाइगर जिंदा है की अबू धाबी में शूटिंग लम्बे शिड्यूल के पूरा होने के साथ ही ख़त्म हो गयी।  इस शूट में सलमान खान, कटरीना कैफ और अंगद बेदी ने हिस्सा लिया।  इस दौरान फिल्म के कई सनसनीखेज एक्शन दृश्य फिल्माए गए।  इन एक्शन दृश्यों का कोआर्डिनेशन हॉलीवुड की डार्क नाइट और द डार्क नाइट राइजेज के एक्शन डायरेक्टर टॉम स्ट्रूथर्स ने किया।  फिल्म के निर्देशक अली अब्बास ज़फर ने इस शिड्यूल के बारे में बताया, "बहुत कठिन और थकाऊ होने के साथ साथ चुनौतीपूर्ण भी थी और मज़ेदार भी।  हमने ऑस्ट्रिया. मोरक्को और अबू धाबी की प्राचीन मगर अब तक अनदेखी जगहों पर की।  हमें यहाँ इंफ्रास्ट्रक्चर से लेकर सैन्य सहयोग भी मिला।  इससे हमें शूटिंग करने में कोई परेशानी नहीं हुई। टाइगर और ज़ोया (फिल्म के नायक नायिका सलमान खान और कटरीना कैफ के किरदार) की कहानी का यह हिस्सा लार्जर देन लाइफ है, इसलिए शूटिंग भी इसी के अनुरूप की गई है।" एक था टाइगर की इस सीक्वल के एक गीत की शूटिंग होना अभी बाकी है। इस फिल्म को क्रिसमस वीकेंड (२२ दिसंबर) में देखना, कल्पनातीत होगा। फिल्म के अबू धाबी शूट की समाप्ति के बाद फिल्म के निर्देशक अली अब्बास ज़फर के साथ सलमान खान और कटरीना कैफ रिलैक्स अंदाज़ में नज़र आ रहे हैं। 

गोलमाल अगेन का ट्रेलर जारी हुआ

गोलमाल सीरीज को शुरू हुए १२ साल हो रहे हैं।  इस सीरीज की चौथी फिल्म गोलमाल अगेन २० अक्टूबर को रिलीज़ होने जा रही है। सीरीज की पहली फिल्म गोलमाल : फन अनलिमिटेड जुलाई १४, २००६ को रिलीज़ हुई थी।  दो साल बाद, २९ अक्टूबर २००८ को दूसरा हिस्सा गोलमाल रिटर्न्स रिलीज़ हुआ।  तीसरी गोलमाल ५ नवंबर २०१० को गोलमाल ३ टाइटल के साथ रिलीज़ हुई।  बाद की दोनों फ़िल्में दिवाली वीकेंड पर रिलीज़ हुई और इन फिल्मों ने बॉक्स ऑफिस पर ज़बरदस्त बिज़नेस किया।  गोलमाल सीरीज की फिल्मों की खासियत थी कि इन फिल्मों का पहले की फिल्म से कोई सीधा सम्बन्ध नहीं था।  इस फिल्म में कॉमेडी के साथ हॉरर का भी लिंक है।  यह लिंक क्या है, फिल्म देखने से ही पता चलेगा। ख़ास बात यह है कि सभी गोलमाल फिल्मों के नायक गोपाल की भूमिका अजय देवगन कर रहे थे तथा चारों ही फिल्मों के निर्देशक रोहित शेट्टी थे।  गोलमाल अगेन में अजय देवगन के साथ श्रेयस तलपड़े, अरशद वारसी, कुणाल खेमू और तुषार कपूर अपनी भूमिकाओं में हैं।  नील नितिन मुकेश की नई एंट्री हुई है।  गोलमाल रिटर्न्स और गोलमाल ३ की नायिका करीना कपूर की प्रेग्नन्सी के कारण उनकी जगह परिणीति चोपड़ा ने ले ली हैं।  फिल्म में तब्बू की ख़ास भूमिका है।  फिल्म की पटकथा यूनुस सजवाल ने लिखी है।  संवाद फरहाद साजिद के हैं।  इस फिल्म का ट्रेलर आज ही रिलीज़ हुआ है।  ऊपर इसे देखा जा सकता है।  

रॉकी में संजय दत्त का रोमांस होती नफीसा अली

कल (२१ सितम्बर) से तिग्मांशु धुलिया की गैंगस्टर ड्रामा सीरीज साहब बीवी और गैंस्टर की तीसरी फिल्म साहब बीवी और गैंगस्टर ३ की शूटिंग शुरू हो गई।  इस फिल्म में साहब और बीवी यानि आदित्य प्रताप सिंह और माधवी देवी का किरदार जिमी शेरगिल और माही गिल ही करेंगे।  गैंगस्टर के किरदार में संजय दत्त को लिया गया है।  पिछले दिनों इस फिल्म में संजय दत्त का फर्स्ट लुक जारी किया गया था।  संजय दत्त, रणदीप हुड्डा और इरफ़ान खान के बाद  गैंगस्टर किरदार करने वाली तीसरे अभिनेता हैं।  इस फिल्म में संजय दत्त के पिता और माँ की भूमिका कबीर बेदी और नफीसा अली कर रहे हैं।  कबीर बेदी, इस फिल्म से पहले यलगार में संजय दत्त के पिता का किरदार कर रहे हैं।  जहाँ तक नफीसा अली की बात है, याद जाती है संजय दत्त के करियर की शुरुआत की।  जिस समय सुनील दत्त अपने बेटे संजय दत्त को हीरो बनाने के लिए फिल्म रॉकी की तैयारी कर रहे  थे, उसी दौरान नफीसा अली की पहली फिल्म शशि कपूर के साथ जूनून (१९७९) रिलीज़ हुई थी। वह नफीसा अली के काम से काफी प्रभावित हुए थे ।  इसलिए सुनील दत्त रॉकी के लिए नफीसा अली को लेना चाहते थे।    परन्तु, बात नहीं बन सकी।  इस प्रकार से नफीसा अली संजय दत्त की नायिका बनते बनते रह गई।  आज जब कि संजय दत्त से सिर्फ एक साल बड़ी नफीसा अली फिल्म साहब बीवी और गैंगस्टर ३ में उनकी माँ बनने जा रही है, यह घटना अनायास  याद आ रही है।