Sunday 7 July 2013

बैंग बैंग करेगी रितिक कैटरीना की जोड़ी !

रितिक रोशन ने अपनी अगले साल रिलीज होने वाली फिल्म बेंग बेंग का फ़र्स्ट लुक टिवीटर पर जारी किया है। इस पिक्चर में रितिक और कैटरीना  एक दूजे में खोये हुए नज़र आते हैं। सिद्धार्थ राज आनंद निर्देशित फिल्म बेंग बेंग हॉलीवुड की 2010 में रिलीज टॉम क्रुज़ और कैमरुन डियाज़ अभिनीत एक्शन कॉमेडी  फिल्म नाइट अँड डे का हिन्दी रीमेक है। इस फिल्म से मशहूर अभिनेता डैनी डेंग्ज़ोपा वापसी कर रहे हैं। फिलहाल, रितिक रोशन के दिमाग से क्लोट हटाने के लिए हुए माइनर ऑपरेशन के कारण इस फिल्म का तीसरा शैड्यूल कुछ समय के लिए टल गया है। लेकिन, यह फिल्म 1 मई 2014 को निश्चित रूप से रिलीज होगी। तो तैयार हो जाइए मई दिवस के दिन सिनेमा हाल में रितिक के साथ बेंग बेंग करने को ।

सूर्य के सिंगम 2 से थर्राया बॉक्स ऑफिस

Singam 2 First Look Posters
स्टार पावर देखनी हो तो साउथ में जा कर देखिये। साउथ के सितारे है असली स्टार और उन्हे स्टार बनाता है उनके  दर्शकों का क्रेज़। इस शुक्रवार, जब बॉलीवुड से दो फिल्में पुलिसगिरी और लुटेरा रिलीज हुई थी, उसी दिन साउथ के सुपर स्टार सूर्य की अनुष्का (शेट्टी, शर्मा नहीं) और हंसिका के साथ फिल्म सिंगम 2 रिलीज हुई थी। सिंगम 2 तीन साल पहले रिलीज 2010 की सबसे बड़ी हिट फिल्म सिंगम का सेकुएल है। सिंगम का हिन्दी रीमेक सिंघम (सिंहम) 2011 मे सूर्य वाला रोल करके अपने बॉलीवुड के बड़े स्टार अजय देवगन सौ करोड़िया फिल्म के नायक बन गए थे। सिंगम 2 में सूर्य की नायिका हंसिका मोटवानी को हिन्दी दर्शक आपका सुरूर और मनी है तो हनी है जैसी फिल्मों में देखने के बाद रिजैक्ट कर चुके है। हंसिका साउथ की बड़ी अभिनेत्रियों में है। हिन्दी दर्शकों ने सूर्य को भी नहीं बख्शा। वह उन्हे रामगोपाल वर्मा की फिल्म रक्त चरित्र में बिल्कुल नकार चुके हैं। यह 2010 था, जब सूर्य की तमिल फिल्म सिंगम 75 करोड़ पीट रही थी, वहीं उनकी हिन्दी फिल्म रक्त चरित्र बॉक्स ऑफिस पर बुरी तरह से पिट रही थी।
बहरहाल, 5 जुलाई को सूर्य की तमिल फिल्म सिंगम 2 तमिलनाडु के अलावा शेष भारत और पूरे विश्व में रिलीज हुई। यकीन कीजिये बॉक्स ऑफिस थर्रा रहा था। सिंगम 2 ने सिंगल स्क्रीन क्या मल्टीप्लेक्स में भी 100 प्रतिशत की ओपेनिंग ली। सुबह के शो से ही सिनेमाघरों में लंबी कतारे लगी हुई थी। कई थेयट्रेस में मैनेजमेंट को पुलिस बुलानी पड़ी थी।  पहले दिन के टिकिट की एडवांस बूकिंग पहले ही हो चुकी थी। बचे खुचे टिकिट सुबह ही बिक गए। सूर्य के प्रशंसक पहला दिन पहला शो में फिल्म देखने के लिए कलाबाज़ारियों को ढूंढ रहे थे। उन्होने इसके लिए एक हजार में टिकिट खरीदना भी मुनासिब समझा।  सिंगम ने साउथ की फिल्मों के तमाम रेकॉर्ड ध्वस्त कर दिये थे। जब तक सिंगम 2 का शुक्रवार का आखिरी शो खत्म होता, इससे पहले सिंगम 2 ने बॉक्स ऑफिस पर 20 करोड़(अनुमानित) कमा लिए थे।  क्या ऐसी स्टार पावर अपने संजय दत्त में है। बिल्कुल नहीं। वह अपने परम मित्र सलमान खान की तरह, सिंगल स्क्रीन थिएटर के हीरो हैं। पुलिसगिरी को मल्टीप्लेक्स में पुअर स्टार्ट मिला। सिंगल स्क्रीन दर्शकों में भी उत्तर के दर्शक ज़्यादा थे। फिल्म ने कुल जमा ढाई करोड़ का बिज़नस किया। कह सकते हैं कि सिंगम 2 के बिज़नस का आठवा हिस्सा। पुलिसगिरी से दुनी कमाई तो रणवीर सिंह की सोनाक्षी सिन्हा के साथ फिल्म लुटेरा ने कर ली।
क्या कहते हैं हिन्दी फिल्मों के प्रशंसक!!!  

Friday 5 July 2013

दर्शकों दिल लूट लेगा यह 'लुटेरा' और उसकी लुटेरी


1907 में अमेरिकी कहानीकार ओ हेनरी की लघु कथा द लास्ट लीफ़ प्रकाशित हुई थी। ग्रीनविच गाँव की पृष्ठभूमि पर यह कहानी निमोनिया से पीड़ित एक युवती की थी। वह खिड़की से बाहर अंगूर की बेल की पत्तियां झड़ती देखती रहती है। वह सोचती है कि जब इस अंगूर की आखिरी पत्ती गिर जाएगी तब वह भी मर जाएगी.। उसके घर के नीचे एक हताश चित्रकार भी रहता है, जो चाहता है एक मास्टरपीस पेंटिंग बनाना, जिसे सब सराहें। उसे जब युवती की सोच के बारे में पता चलता है तो वह उससे कहता है कि वह ऐसा न सोचे। पत्ती कभी नहीं गिरेगी। एक दिन तूफानी रात में आखिरी पत्ती भी झाड जाती है। आर्टिस्ट को पता चलता है तो वह बेल पर एक पत्ती की पेंटिंग बना कर लगा देता है। समय के साथ वह लड़की दवा लेकर ठीक हो जाती है। उधर आर्टिस्ट को निमोनिया हो जाता है। उसे अस्पताल ले जाया जाता है, पर वह बच नहीं पाता।
ओ हेनरी की यह कहानी जीने की आशा से लबरेज संदेश देने वाली थी। उड़ान से मशहूर विक्रमादित्य मोटवाने की फिल्म लुटेरा देखते हुए आप रोमैन्स से लिपटी इस जीवन की आशा की खुशबू को महसूस करते हैं। वरुण श्रीवास्तव प्राचीन मूर्तियों के लुटेरों के गिरोह का सदस्य है। वह एक जमींदार के मंदिर से प्राचीन मूर्ति चुराने विभाग के कर्मचारी की रूप मे आता है। जमींदार की लड़की पाखी उसे देख कर पहली नज़र  में उससे प्यार करने लगती है। धीरे धीरे वरुण भी पाखी के प्यार में पड़ जाता है। मगर अपने चाचा की खातिर उसे ऐन मंगनी के वक़्त मूर्ति चुरा कर भागना पड़ता है। जमींदार को दिल का दौरा पड़ता और वह मर जाता है। एक साल बाद वरुण और पाखी डलहौजी में अजीब परिस्थिति में फिर मिलते हैं। पाखी को टीबी है। वह मरने के करीब है, जबकि वरुण को पुलिस से भागते समय गोली लगी हुई है। इसी अनोखे मिलन से द लास्ट लीफ़ का प्रवेश होता है। पाखी को लगता है कि जब उस के घर के सामने लगे पेड़ की आखिरी पत्ती गिर जाएगी तो वह भी मर जाएगी।

विक्रमादित्य ने लुटेरा की कहानी भवानी अइयर के साथ लिखी है। फिल्म की स्क्रिप्ट कुछ इस प्रकार लिखी गयी है कि हर रील के साथ दर्शकों में उत्सुकता बढ़ती जाती है, सस्पेन्स गहराता जाता है, इसके बावजूद रोमैन्स की खुशबू महसूस होती रहती है। फिल्म 1953 के कलकत्ता पर है। विक्रमादित्य ने कहानी की प्राचीनता को बनाए रखने के बावजूद वरुण और पाखी की जोड़ी के रोमैन्स की रुचिकर लहर बनाए रखी है। यह फिल्म मसाला थ्रिलर हो सकती थी, लेकिन मोटवाने ने इसे बैलेन्स रखते हुए रोमांटिक थ्रिलर बनाए रखा है। इसके बावजूद कि वरुण और पाखी के बीच गहरे रोमांटिक क्षण आते हैं, लेकिन दर्शक बिना किसी चुंबन या गरमा गरम आह ऊह की आवाज़ों के रोमैन्स को महसूस करता है। यह विक्रमादित्य, भवानी अय्यर की कथा पटकथा के अलावा अनुराग कश्यप के संवादों का असर था। फिल्म में अमित त्रिवेदी का संगीत रोमैन्स को महसूस कराता है। हल्की धुनों के बावजूद दर्शक ऊबता नहीं। अन्यथा आज का दर्शक तो तेज़ धुनों का आदि हो गया है। महेंद्र शेट्टी का केमरा डलहौजी की खूबसूरती को पाखी की खूबसूरती से कुछ इस प्रकार मिलाता है कि दर्शक मुग्ध हो जाता है। उन्होने डलहौजी की गलियों में एक्शन को बेहतर ढंग से फिल्माया है। फिल्म की संपादक दीपिका कैरा से ज़्यादा मेहनत की अपेक्षा थी। उन्हे फिल्म को थोड़ा छोटा करना चाहिए था। सुबरना रॉय चौधरी ने बंगाली वेश भूषा में प्राचीन गहने और वस्त्रों को शामिल कर फिल्म को वास्तविकता देने की भरपूर कोशिश की है। Kazvin दंगोर और धारा जैन की सेट डिज़ाइनिंग माहौल के अनुकूल है।

अब आते है अभिनय पर। सोनाक्षी सिन्हा को अभी तक दर्शकों ने सलमान खान, अक्षय कुमार और अजय देवगन जैसे एक्शन अभिनेताओं के साथ शोख अदाएं बिखेरते देखा था। इन आधा दर्जन फिल्मों में सोनाक्षी सजावटी गुड़िया से अधिक नहीं थी। लेकिन, लुटेरा की पाखी के रूप में वह जितनी सुंदर दिखती हैं, उससे कहीं आधिक प्रभावशाली और दिल को छू लेने वाला अभिनय करती हैं। पाखी के वरुण बने रणवीर सिंह को प्यार भरी निगाह से देखती सोनाक्षी की हिरणी जैसी जैसी आँखें दर्शकों के दिलों में धंस जाती हैं। बीमार पाखी के दर्द और असहायता को सोनाक्षी ने बेहद मार्मिक ढंग से अपनी आँखों और चेहरे के भावों से प्रस्तुत किया है। इस फिल्म के बाद सोनाक्षी का अपनी समकालीन अभिनेत्रियों को काफी पीछे छोड़ देना तय है। उनका पूरा पूरा साथ देते हैं वरुण श्रीवास्तव बने रणवीर सिंह। अभी तक रणवीर सिंह ने खिलंदड़े रोल ही किए हैं। इस फिल्म में वह अपने मूर्तियों के चोर और पाखी के प्रेम में पड़े , उसकी पीड़ा से छटपटते प्रेमी को बेहद स्वाभाविक तरीके से प्रस्तुत किया है। उन्होने साबित कर दिया है कि उनमे अभिनय की क्षमता है, बशर्ते की डाइरेक्टर भी सक्षम हो। अन्य भूमिकाओं में विक्रांत मैसी, आरिफ ज़ाकरिया, अदिल हुसैन, शिरीन गुहा और प्रिंस हैदर मुख्य पत्रों को सपोर्ट करते हैं।
लुटेरा की शुरुआत धीमी गति से होती हैं। खास तौर पर फ़र्स्ट हाफ थोड़ा धीमा है, पर यह कहानी बिल्ड करता है, इधर उधर भटकता नहीं। रोमैन्स के फूल खिलने लगते हैं। दूसरे हाफ में रणवीर के फिर प्रवेश के बाद फिल्म में थ्रिल पैदा होता है, जो ऐसा अमर प्रेम पैदा करता है, जिसकी कल्पना हिन्दी दर्शकों ने की नहीं होगी।
लुटेरा को देखा जाना चाहिए अपनी साफ सुथरी कहानी, माहौल, रोमैन्स तथा सोनाक्षी सिन्हा और रणवीर सिंह के बेहतरीन अभिनय के लिए। जो दर्शक अच्छी फिल्मों की चाहत रखते हो वह निश्चित तौर पर निराश नहीं होंगे।


Thursday 4 July 2013

क्या पुलिस की गिरफ्त में आएगा या पुलिस को भी लूट लेगा लुटेरा!


कल दो फिल्में रिलीज हो रही हैं। एकता कपूर, शोभा कपूर, अनुराग कश्यप और विकास बहल के पिटारे से निकली है विक्रमादित्य मोटवाने की फिल्म  लुटेरा । इस साल जिस प्रकार से एक के बाद एक फिल्मे सौ करोडिया क्लब मे शामिल होती जा रही हैं, उससे यह अनुमान लगाया जा रहा है कि थोड़ा स्लो स्टार्ट के बावजूद लुटेरा पिक करेगी और सौ करोड़ क्लब में शामिल हो जाएगी। यह सच हो सकता था अगर लुटेरा का मुकाबला पुलिसगिरि  से  न हो रहा होता। पुलिसगिरि निर्माता Rahul अग्रवाल और टीपी अग्रवाल की फिल्म है। इसका निर्देशन दक्षिण के केएस रविकुमार कर रहे हैं। फिल्म के संजय दत्त हैं। यह वही संजय दत्त हैं जो अभी जेल गए है तथा कथित सहानुभूति लहर उनके साथ है। संजय दत्त की स्टार पावर के कारण लुटेरा का पुलिसगिरि की हवा निकालना आसान नहीं होगा, लेकिन कठिन कतई नहीं।
सवाल यहा यह है कि दर्शक पुलिसगिरि या लुटेरा को देखे ही क्यों?  संजय दत्त अब चुक चुके अभिनेता हैं। प्राची देसाई, हालांकि फिल्म का सक्रिय प्रचार कर रही हैं। लेकिन, उनमे इतनी दम नहीं कि  वह दर्शकों को सिनेमाहाल तो क्या पत्रकारों को अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में तक ले आ पाएँ । इसलिए अब फिल्म के प्रचार में संजय दत्त की गांधीगिरी के चर्चे हो रहे हैं। उनकी फिल्म को संजय दत्त के जेल के साथी कैदियों को विशेष स्क्रीनिंग में दिखलाया जाएगा। पर ऐसा संभव होगा? पुलिसगिरि की कहानी सत्तर के दशक की ज़ंजीर के जमाने की है। एक ईमानदार कॉप का तबादला एक बदनाम थाने में जाता हैं, जहां दबंगों का बोलबाला है। ऐसे दबंगों को संजय दत्त कैसे खत्म कराते हैं, यही फिल्म की घिसिपीटी कहानी है। इस फिल्म को पहले संजय दत्त की 1990 में रिलीज फिल्म थानेदार के सेकुएल के रूप में किया जा रहा था। फिल्म का नाम थानेदार 2 रखा जाना था। लेकिन, संजय दत्त को यह टाइटल पसंद नहीं आया। नतीजे के तौर पर उन्हीं के सुझाव पर थानेदार 2 को पुलिसगिरि कर दिया गया। इससे अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि पुलिसगिरि बॉक्स ऑफिस पर क्या गुल खिलाएगी।
 
पुलिसगिरि के ऑपोज़िट लुटेरा है। इस फिल्म की कहानी साथ साल पहले के कलकत्ता की है। एक जमींदार के पास एक युवक पुरातत्ववेत्ता का पत्र लेकर आता है, जिसमे उस लड़के को मदद देने का अनुरोध किया गया है। जमींदार लड़के को अपने घर रख लेता है तथा खोज में उसकी मदद करता है। इसी बीच लड़का और लड़की यानि रणवीर कपूर और सोनाक्षी सिन्हा के बीच प्यार पननपने लगता है। दोनों के विवाह की तारीख तय होती ही है कि एक दिन लड़का पुरातत्व के महत्व की एक कीमती चीज़ चुरा कर भाग जाता है। इससे जमींदार का दिल का दौरा पड़ने से निधन हो जाता है। इसके काफी समय बाद लड़का एक बार फिर उसके घर रहस्यमयी स्थितियों में पहुँच जाता है। फिर क्या होता है?
संजय दत्त और प्राची देसाई के मुकाबले रणवीर और सोनाक्षी की जोड़ी अपने समय की बेहद गरम जोड़ी  है। हालांकि, रणवीर का संजय दत्त से कोई मुकाबला नहीं, पर सोनाक्षी सिन्हा बेजोड़ हैं। वह एक के बाद एक हिट फिल्में दे रही हैं। रणवीर की भी पहले की दो फिल्में बैंड बाजा बारात और  लेडिज वरसेस रिकी बहल सफल रही थीं। इस लिहाज से मधुर संगीत, फिल्म के माहौल और विक्रमादित्य मोटवाने के निर्देशन के कारण लुटेरा पुलिसगिरि को पछड़ सकती है।
क्या लुटेरा पुलिस को लूट ले जाएगा? क्या पुलिसगिरि लुटेरा को अपनी गिरफ्त में ले पाएगी? कहा जा रहा है कि संजय दत्त के जेल जाने के बाद उनके पक्ष में दर्शकों के बीच सहानुभूति की लहर है। यह लहर उनकी फिल्म के बॉक्स ऑफिस पर दर्शकों की भीड़ बहा ले आएगी। कल इसी लहर की परीक्षा भी है।  क्या होगा यह कल पता लगेगा। लेकिन इतना तय है कि सिंगल स्क्रीन थिएटर में पुलिसगिरि की पुलिसगिरि ही चलेगी। लुटेरा मल्टीप्लेक्स में बढ़िया प्रदर्शन करेगी। हो सकता है कि माउथ पब्लिसिटी के बाद लुटेरा सिंगल स्क्रीन दर्शकों का दिल भी जीत ले। लेकिन, क्या ऐसा संभव है कि संजय दत्त अपनी पुलिसगिरि से सिंगल स्क्रीन दर्शकों को इतना आकर्षित करे कि वह मल्टीप्लेक्स के सहारे आसमान छू रही फिल्म लुटेरा को पछाड़ सके। क्या ऐसा होगा?  

Wednesday 3 July 2013

इमरान हाशमी के पैरों में क्लार्क गेबल और आमिर खान के जूते !

बाईस साल पहले हॉलीवुड फिल्मों के चोर महेश भट्ट ने एक फिल्म दिल है कि मानता नहीं बनाई थी। इस फिल्म में उनकी बेटी पूजा भट्ट चाकलेटी अभिनेता आमिर खान की नायिका थी। दिल है कि मानता नहीं अस्सी साल पहले रिलीज हॉलीवुड की फिल्म इट हैप्पेंड वन नाइट की कार्बन कॉपी थी। वैसे इसी फिल्म पर निर्माता निर्देशक और अभिनेता राजकपूर ने नर्गिस को लेकर 1956 में रिलीज फिल्म चोरी चोरी का निर्माण किया था। दोनों ही हिन्दी फिल्में बॉक्स ऑफिस पर सफल रही थीं।
अब यानि दिल है कि मानता नहीं की रिलीज के 22 साल बाद महेश भट्ट ने इट हैप्पेंड वन नाइट के रीमेक चोरी चोरी और चोरी चोरी के रीमेक दिल है कि मानता नहीं का फिर से रीमेक करने का फैसला किया है। वैसे महेश भट्ट को अभी यह तय करना है कि घर से भागी एक अमीर बाप की बिगड़ैल लड़की की कहानी को जस का तास रखा जाए या उसमे कुछ फेर बदल किया जाए। होगा क्या यह बाद में मालूम पड़ेगा। फिलहाल इतना मालूम पड़ चुका  है हॉलीवुड के क्लार्क गेबल और आंकिर खान के जूतों में पैर बॉलीवुड के आरिजिनल सिरियल किसर इमरान हाशमी डालेंगे। महेश भट्ट अपनी फिल्म और अपने भांजे को सुपर डुपर हिट बनाना चाहते हैं। क्या वह ऐसा कर पाएंगे? लेकिन, महेश भट्ट के ऐसा कहने से कि इट हैप्पेंड वन नाइट में जो किरदार क्लार्क गेबल और एमी ने निभाया था वह कुछ जांच नहीं पाया था। हम दिखाएँगे कि लड़की लड़के को दिल ही दिल में नहीं प्यार करती बल्कि, वह लड़के के प्यार में पूरी तरह से डूबी हुई है। इसका साफ मतलब यह है कि बॉलीवुड के आधुनिक क्लार्क गेबल इमरान हाशमी अपने प्यार में डूबी हुई लड़की के कितने गहरे और ज़्यादा चुंबन लेते है और अपने बिस्तर पर ले जाते हैं।

फरहान और रेबेका के इंटिमेट दृश्य हटाये गए


भाग मिल्खा भाग की कहानी भारत के मशहूर धावक मिल्खा सिंह पर है। इस फिल्म में मिल्खा सिंह के ज़िन्दगी के कई पहलू को सामने लाया जायेगा। राकेश ओमप्रकाश मेहरा जो कि फिल्म के निर्देशक हैं उनका कहना है कि ये फिल्म सिर्फ मिल्खा के खेल करियर पर ही आधारित नहीं किया गया है बल्कि उनके जीवन में बीते अच्छे से अच्छे और बुरे से बुरे चीज़ों का ज़िक्र किया गया है। 
हाल ही में आये भाग मिल्खा भाग के ट्रेलर में फरहान अख्तर और रेबेका के बीच किसिंग सीन को देखकर दर्शक काफी आश्चर्य चकित रह गए थे लेकिन दर्शकों को इस बात की खबर नहीं कि ट्रेलर में सिर्फ एक छोटी सी किसिंग सीन दिखाई गयी है जबकि फिल्म में उनके बीच अच्छा ख़ासा इंटिमेट सीन है। लेकिन फिल्म के मेकर्स ने ये तय किया कि फिल्म से कुछ दृश्य हटा देने चाहिए। हालाकि उनका मानना है कि ये सभी दृश्य फिल्म के लिए बेहद महत्वपूर्ण हैं पर वो नहीं चाहते थे कि इनकी वजह से फिल्म के मायने बदल जायें। 
फरहान जो कि मिल्खा का किरदार निभा रहे हैं वो रेबेका से ऑस्ट्रेलिया में ऑलंपिक के दौरान मिलते हैं और दोनों एक दूसरे से प्यार करने लगते हैं। फिल्म के सूत्रों के हिसाब से इन दोनों की प्रेम कहानी को फिल्म में बड़े ही दिलचस्प तरीके से फिल्माया गया है। 
भाग मिल्खा भाग 5 जुलाई को रिलीज़ होने वाली है।  

आज रिलीज होगा सत्या 2 का फ़र्स्ट लूक

पंद्रह साल पहले आज ही के दिन 3 जुलाई को निर्देशक रामगोपाल वर्मा की फिल्म सत्या रिलीज हुई थी। इस फिल्म ने मनोज बाजपई, उर्मिला मतोंदकर, जेडी चक्रवर्ती, शेफाली शाह, सौरभ शुक्ल, आदि के कैरियर को नयी दिशा दी थी। सौरभ शुक्ल ने इस गंगस्टेर फिल्म से अपनी कलम की ताक़त का प्रदर्शन किया था। भिखू म्हात्रे और कल्लू मामा के चरित्र cult कैरक्टर बन गए। रामगोपाल वर्मा की फिल्म मात्र दो करोड़ के बजेट से बनाई गयी थी। इस फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर साढ़े पंद्रह करोड़ का बिज़नस किया था। सत्या के बाद रामगोपाल वर्मा ने दो अन्य गंगस्टेर फिल्में कंपनी और डी बनायीं। इन फिल्मों को गंगस्टेर त्रिलोजी कहा जाता है।
आज रामगोपाल वर्मा अपनी फिल्म सत्या 2 का फ़र्स्ट लुक रेलीज़  कर रहे हैं। इस फिल्म को उनकी 15 साल पहले की फिल्म सत्या का सेकुएल कहा जा रहा है। वर्मा ने इस फिल्म को इसी टाइटल के साथ तेलुगू में भी शूट किया है। सत्या की तरह सत्या 2 में भी नयी स्टार कास्ट है। अब देखने की बात यह होगी कि क्या सत्या की सत्या 2 भी हिट साबित होगी? क्या सत्या की नयी स्टार कास्ट की तरह सत्या 2 के नए चेहरे भी हिन्दी दर्शकों के जाने पहचाने चेहरे बन जाएंगे?


छोटी फिल्में... बड़ा धमाका

छोटी फिल्में आजकल बड़ी फिल्मों के मुकाबले ज्यादा आगे हैं। देखा जाये तो ये एक नया ट्रेंड बन चूका है। छोटी फिल्में बॉक्स ऑफिस पर खूब कमाल दिखा रही हैं। अगर 2013 के 6 महीनों की बात करें तो इस बीच कई कम बजट वाली फिल्में आयीं जिन्होंने बॉक्स ऑफिस पर उम्मीद से दुगना कमाया। इस सूची में कई फिल्में शामिल हैं जैसे- फुकरे, आशिकी, मेरे डैड की मारुति, कमांडो, एबीसीडी, काई पो चे, गो गोवा गोन आदि।  
हाल फिलहाल की फिल्में देखें तो फुकरे ने एक बहुत अच्छा उदाहरण दिया है कि एक छोटी फिल्म किस स्तर पर पहुँच सकती है। फुकरे एक छोटी बजट वाली फिल्म होने के साथ साथ नए कलाकारों को लेकर बनाई गयी फिल्म है। यहाँ तक की फिल्म के निर्देशक भी सिर्फ एक फिल्म पुराने हैं बॉलीवुड में। उस हिसाब से देखा जाये तो फिल्म ने ज़ोरदार धमाका मचाया है। बॉलीवुड में जहाँ सिर्फ बड़े बजट या बड़े सितारों की फिल्में चलने का चलन है वहां फुकरे जैसी फिल्म ने ये साबित कर दिया है कि अगर फिल्म की कहानी अच्छी हो और उसका सही तरीके से निर्देशन किया जाये तो दर्शकों को वो ज़रूर लुभाती हैं। फिल्म में भले ही सारे नए चहरे थे लेकिन उन सब ने अपने किरदारों को बहतरीन तरीके से निभाया। वहीँ निर्देशक मृगदीप सिंह लाम्बा ने भी अपने प्रतिभा को साबित किया। 
आशिकी 2 की बात करें तो इस फिल्म में भी 2 नए चहरे आदित्य रॉय कपूर और श्रद्धा कपूर ने काम किया है। फिल्म का निर्देशन मोहित सूरी ने किया है। इस फिल्म ने अपनी उम्मीदों और बजट के भी हिसाब से कई गुना ज्यादा बिजनेस किया। फिल्म ने धीरे धीरे सभी दर्शकों का दिल जीत लिया और फिल्म ने करोडों का आंकड़ा पार कर लिया। 
वहीँ यशराज की भी छोटे बजट वाली फिल्म मेरे डैड की मारुति में सारे नए कलाकार ही थे। फिल्म का निर्देशन आशिमा छिब्बर ने किया था जिनकी ये पहली फिल्म थी। इस फिल्म को भी बॉक्स ऑफिस पर अच्छा रिस्पोन्स मिला।
विपुल शाह की फिल्म कमांडो ने भी नए चहरों के साथ कुछ कम असर नहीं छोड़ा दर्शकों पर। ये एक ऐक्शन फिल्म थी जिसका निर्देशन दिलीप घोष ने किया था।
आने वाली फिल्मों में माना जा रहा है कि आनंद गांधी की शिप ऑफ़ थिसियस और नीरज पाण्डेय की अमन की आशा बॉक्स ऑफिस पर बड़ी छाप छोड़ेंगी।     

Tuesday 2 July 2013

घनचक्कर को बॉक्स ऑफिस पर आया चक्कर


घनचक्कर को बॉक्स ऑफिस पर चक्कर आना ही था। दिलचस्प बात यह थी कि विद्या बालन और इमरान  हाशमी  स्टारर इस फिल्म को बढ़िया वीकेंड भी नहीं मिला। इस फिल्म ने वीकेंड में 6.38, 6.45 और 7.15 के बिज़नस के साथ 19.98 करोड़ का बिज़नस किया। साफ तौर पर विद्या-इमरान जोड़ी द डर्टी पिक्चर वाला जादू नहीं जगा सकी। इससे एक बात और साफ हुई कि अगर फिल्म में एंटर्टेंमेंट एंटर्टेंमेंट और एंटर्टेंमेंट नहीं होगा, कोई विद्या बॉक्स ऑफिस को नहीं पढ़ा सकेगी। विद्या बालन और इमरान हाशमी की जोड़ी वाली यह फिल्म इन दोनों के बीच की ठंडक का शिकार हो गयी। विद्या बालन बेहद नॉन-स्टार्टर लग रही थीं। इमरान हाशमी जब तक स्मूचिंग नहीं करेंगे और अपनी हीरोइन को बिस्तर तक नहीं ले जाएंगे, दर्शकों उन्हे स्वीकार करने नहीं जा रहा। इससे पहले शंघाई भी उनकी अपनी सिरियल किसर इमेज तोड़ने के प्रयास का शिकार हो गयी थी । इमरान हाशमी को यह समझ लेना चाहिए कि आप बिना अभिनय के इमेज थाम कर ही सफल हो सकते हैं। हालांकि, इस फिल्म में इमरान की भूमिका काफी सशक्त और केन्द्रीय थी।
दूसरी ओर पहले सप्ताह में 34.98 करोड़ कमाने वाली दक्षिण के सुपर स्टार धनुष की फिल्म राँझना ने दूसरे वीकेंड में 10.75 करोड़ का बिज़नस किया और इस प्रकार कुल दस दिनों में 45 करोड़ से ऊपर का बिज़नस कर पाने में सफल हुई।


Friday 28 June 2013

घनचक्कर बनते दर्शक!

Emraan Hashmi & Vidya Balan at Ghanchakkar On The Sets
यूटीवी के सिद्धार्थ रॉय कपूर और रोनी स्क्रूवाला की जोड़ी लगता है इस बार चूक गयी। राजकुमार गुप्ता ने इनके लिए आमिर और नो वन किल्ड जेसिका जैसी बढ़िया फिल्में बनाई थी। नो वन किल्ड जेसिका को तो बॉक्स ऑफिस सक्सेस भी मिली तथा प्रशंसा और पुरुस्कार भी । इसलिए, परवेज़ शेख के साथ खुद राजकुमार गुप्ता की लिखी कथा पटकथा पर फिल्म बनाने के लिए यूटीवी की इस जोड़ी का राजी हो जाना, स्वाभाविक भी था। घनचक्कर के लिए इमरान  हाशमी विद्या बालन के साथ लिए गए थे। इस जोड़ी ने द डर्टी पिक्चर जैसी फिल्म दी थी। फिल्म में अमित त्रिवेदी की धुनों पर गीत अमिताभ भट्टाचार्य ने लिखे थे। फिल्म से इतने बड़े नाम जुड़े होने से दर्शकों की फिल्म से उम्मीदें भी बढ़ना स्वाभाविक था। पर यह नहीं कहा जा सकता कि घनचक्कर दर्शकों की ज़्यादा उम्मीदों का शिकार हो गयी। इस फिल्म में कमियों और खामियों का विश्व रेकॉर्ड बनाने की क्षमता है।
फिल्म की कहानी एक बैंक से 35 करोड़ की डकैती डालने की है। पंडित और हुसैन, संजय आत्रे को डरा धमका और लालच दे कर इस डकैती में तिजोरी खोलने के लिए राजी करते है। वह इसमे सफल भी हो जाते हैं। डकैती का पैसा अटैची में रखने के बाद पंडित इस पैसे को तीन महीने तक अपने पास ही रखने के लिए आत्रे से कहता है। अब होता क्या है कि संजय का आक्सीडेंट हो जाता है और वह भूलने की बीमारी का शिकार हो जाता है। सुनने में यह कहानी उम्मीदें जगाने वाली काफी उम्दा लगती है। पहली दो तीन रील तक यह उम्मीद कायम भी रहती है। लेकिन, इसके बाद फिल्म राजकुमार गुप्ता के हाथों से जो फिसलती है तो फिर फिसलती ही चली जाती है। अनावश्यक और बेसिर पैर की घटनाएँ घटती ही रहती हैं। संजय और उसकी पत्नी नीतू तथा पंडित और हुसैन के चार चरित्रों के साथ शुरू यह कहानी पात्रों के  बढ़ने के साथ हल्की पड़ती चली जाती है। कभी ऐसा लगता है कि कोई चौकाने वाला बढ़िया ट्विस्ट आने वाला है। मगर जो कुछ होता है वह फिल्म को कमजोर कर देता है। फिल्म के क्लाइमैक्स का खून खराबा भी अस्वाभाविक है।
सच कहा जाए तो एक अच्छी कहानी पर बढ़िया पटकथा लिखने में राजकुमार गुप्ता और शेख की जोड़ी बिल्कुल चूक गयी। शुरुआत करने के साथ ही वह बिखरते चले गए। इमरान हाशमी का संजय आत्रे का कैरक्टर प्रमुख है, पर उसे भी डिवैलप नहीं किया गया है कि वह तिजोरी खोलने के मामले में इतना मशहूर कैसे हो गया कि उसके पास बड़ी डकैती के प्रस्ताव आने लगे। पंडित और हुसैन किसी लिहाज से डकैत नहीं लगते। बल्कि, वह कमेडियन ज़्यादा महसूस होते हैं। दरअसल उनके कैरक्टर ही ऐसे लिखे गए हैं। राजकुमार गुप्ता न तो रफ्तार रख पाये, न थ्रिल का एहसास करा पाये। ऐसी फिल्मों में संगीत महत्वपूर्ण होता है। लेकिन, घनचक्कर में वह भी बेजान है।
दर्शक घनचक्कर को देखने अभिनेत्री विद्या बालन के चक्कर में गए थे। लेकिन, विद्या बालन को देख कर झल्लाहट पैदा होती हैं। वह फ़ैशन परास्त पंजाबन के बजाय किसी सर्कस की जोकर जैसी लगती है। वह इमरान हाशमी जैसे अभिनेता के सामने भी नहीं उभर पातीं। उन्होने अजीबो गरीब कपड़े पहने हैं। लेकिन, इनमे वह सेक्सी लगने के बजाय बेढंगी लगती हैं। घनचक्कर विद्या बालन के सबसे घटिया फिल्म कही जाएगी। विद्या के मुकाबले इमरान हाशमी का काम अच्छा है। डकैत बने नमित दासऔर राजेश शर्मा ने अपना काम अच्छी तरह से किया है। लेकिन, वह दर्शकों को हंसा पाने में नाकाम रहे हैं।
घनचक्कर को देख कर दर्शकों को चक्कर आ सकते हैं। वह खुद को ठगा महसूस कर सकते हैं । लेकिन, यह उनकी गलती है कि वह घनचक्कर को विद्या बालन की फिल्म के चक्कर में देखने जाते हैं। यह विद्या का Himalayan blonder है कि उन्होने घनचक्कर को अपने पति के चक्कर में साइन कर लिया। इससे विद्या के कैरियर को नुकसान ही होगा। दर्शक घनचक्कर को देखना चाहे तो देखें। लेकिन, अगर नहीं देखना चाहें तो बहुत बेहतर होगा।

Thursday 27 June 2013

क्या दर्शक लगाएँगे विद्या बालन की घनचक्कर के चक्कर !

 इस शुक्रवार बड़े पर्दे पर वन वुमन शो होगा। निर्माता निर्देशक और लेखक अजय यादव की थ्रिलर फिल्म भड़ास में इतना दम नज़र नहीं आता कि वह निर्देशक राजकुमार गुप्ता की रोमांटिक कॉमेडी फिल्म घनचक्कर को बॉक्स ऑफिस पर चक्कर या टक्कर दे सके। पाकिस्तान की अभिनेत्री मीरा की भड़ास में वह बात नहीं कि वह विद्या बालन के घनचक्कर को चकरा सके । मतलब यह कहा जा सकता है कि इस हफ्ते   रिलीस हो रही दो हीरोइन ओरिएंटेड़ फिल्मों के बावजूद शो वन वुमन ही होगा। भड़ास की मीरा के बजाय घनचक्कर की विद्या बालन पूरे वीक पर्दे पर छाई रहेंगी। घनचक्कर में उनके हीरो इमरान हाशमी हैं, जो इस फिल्म से पहले विद्या बालन के साथ फिल्म द डर्टी पिक्चर्स में काम कर चुके हैं। इमरान हाशमी रश, राज़ 3 और एक थी डायन जैसी फिल्मों से खुद को एक अलग इमेज दे पाने में सफल हुए हैं। लेकिन, सबसे मुश्किल होगा विद्या बालन को दर्शकों पर अपनी पकड़ साबित करना। लगातार चार फिल्मों पा, इश्किया, नो वन किल्ड जेसिका, द डर्टी पिक्चर्स और कहानी से खुद के लिए पुरस्कार और सम्मान बटोरे ही, खुद के लिए दर्शकों में अपेक्षाएँ कुछ ज़्यादा ही जगा ली। हिन्दी फिल्मों का दर्शक, उनकी हर फिल्म से कुछ अलग और प्रभावशाली
देखने की उम्मीद करने लगा है। विद्या बालन ने अपनी हीरोइन ओरिएंटेड़ फिल्मों से खुद को स्टार एक्ट्रेस का खिताब बटोर रखा है। घनचक्कर में वह एक पंजाबी ग्रहणी की भूमिका में हैं। विद्या बालन ने बंगाली लड़की के रोल खूब किए हैं। द डर्टी पिक्चर्स में वह सिल्क स्मिथा बनीं थी। नो वन किल्ड जेसिका में वह ईसाई लड़की की भूमिका में थीं। अब वह पंजाबन के रोल में पूरे देश के दर्शकों को लुभाने के प्रयास में होंगी। राजकुमार गुप्ता के साथ घनचक्कर विद्या बालन की दूसरी फिल्म है। गुप्ता की फिल्म नो वन किल्ड जेसिका में रानी 0   के साथ विद्या बालन थीं। कहा जा सकता है कि राजकुमार गुप्ता और विद्या बालन एक हिट जोड़ा है। द डर्टी पिक्चर के बाद इमरान हाशमी भी उनके लकी जोड़े बन चुके हैं। ऐसी स्थिति में घनचक्कर की सफलता को ले कर विद्या के दुश्मन भी एक राय होंगे। लेकिन  विद्या बालन को घनचक्कर को खुद की फिल्म साबित करना होगा। यह तभी संभव होगा, जब फिल्म पूरी तरह से विद्या के इर्द गिर्द घूमती हो और उनका रोल काफी सशक्त हो। विद्या तो खैर बढ़िया अभिनेत्री हैं ही। ऐसे में घनचक्कर दर्शकों को सिनेमाघरों का चक्कर लगवाने वाली विद्या बालन की फिल्म साबित हो सकती है।



सीधे दर्शकों के दिल पर लगा धनुष का तीर


धनुष की कमान से छूटा तीर दर्शकों की दिलों पर सीधा लगा लगता है। दक्षिण के स्टार धनुष की फिल्म राँझना का वीकेंड कलेक्शन दर्शकों पर उनके प्रभाव को बताने वाला था। राँझना ने पहले दिन 5.12 करोड़ का बिज़नस किया था। दूसरे दिन यानि शनिवार को यह बढ़ कर 6.81 करोड़ तक पहुँच गया। सनडे को राँझना ने जंप मारा और कलेक्शन किया 8.15 करोड़। इस प्रकार से वीकेंड कलेक्शन 20.08 करोड़ का रहा। पैंतीस करोड़ के बजेट से बनी फिल्म का इतना कलेक्शन राँझना को हिट फिल्म की कैटेगरी में लाने के लिए काफी था। आम तौर पर वीक डेज़ में कलेक्शन गिरता है। पर सोमवार को राँझना की 3.80 करोड़ की कमाई, फिल्म का उत्साह बढ़ाने वाली थी। क्योंकि, मंगलवार को राँझना ने ज़ोर मारा और फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर दस लाख ज़्यादा बटोर मारे। इस प्रकार से राँझना ने पहले पाँच दिनों में 27.83 करोड़ कमा डाले । उम्मीद की जा रही है कि राँझना का वीक 30 करोड़ से ऊपर जाएगा।
यह धनुष के अभिनय का जलवा था कि अनावश्यक इधर उधर भटकती कहानी वाली इस फिल्म से धनुष ने बांधे रखा। उनका हर मूवमेंट तालियाँ बटोर रहा था, उनकी डाइलॉग डेलीवेरी दर्शकों की सीटियाँ बटोर रही थी। अत्यंत साधारण चेहरे मोहरे वाला  दक्षिण का यह अभिनेता अपनी असाधारण अभिनय प्रतिभा और स्क्रीन प्रेजेंस के कारण उत्तर के दर्शकों का हीरो बन कर उभरा था।
यह राँझना के साधारण रोमैन्स का प्रभाव था कि रणबीर  कपूर और दीपिका पादुकोण  फिल्म यह जवानी है दीवानी के कदम यकायक थम से गए। फुकरे बॉक्स ऑफिस पर निठल्ला साबित हुआ। राँझना के साथ रिलीस दूसरी फिल्में एनिमी और शॉर्ट कट रोमियो को 10 प्रतिशत की ओपेनिंग तक नहीं मिल सकी। इन दोनों फिल्मों के एक करोड़ की कमाई करना भी मुश्किल लग रहा है। यह जवानी है दीवानी अपने चौथे वीकेंड में 183.19 करोड़ कमा चुकी थी। जबकि फुकरे ने दूसरे वीकेंड तक 28.12 करोड़ कमा लिए थे।


  

Saturday 22 June 2013

यह वर्ल्ड वार ज़ेड दर्शकों की भी है

जापान की ऊंची दीवार पर चढ़ते ज़ोमबीज  
यूएन का पूर्व कारिंदा गेरी लेन अपने परिवार के साथ फिलाडेल्फ़िया की भीड़ भरी सड़क पर चला जा रहा है। तभी कार ले रेडियो पर अजीबो गरीब घटनाओ का जिक्र होने लगता है। तभी सड़क पर अजीबो गरीब आवाज़ें आने लगती हैं। इसके साथ ही लोगों पर मुरदों का हमला होने लगता है। वर्ल्ड वार ज़ेड  का यह पहला  सीन  रहस्य, रोमांच और भय का ऐसा ताना बाना बुनता है, जो पूरी फिल्म में दर्शकों को जकड़े रहता है। वह गेरी के साथ दुनिया के उन देशों में जा कर चलते फिरते  मुरदों द्वारा फैलाई गयी तबाही और लाशों के ढेरो को देखता है। वह गेरी बने ब्रैड पिट के साथ मुरदों के आतंक का सामना करने की तैयारी करता है। यही कारण है कि अपने शरीर में घातक बीमारी के विषाणु इंजेक्ट कर, जोंबीज के बीच से निकल रहे ब्रैड पिट भारतीय दर्शकों की ज़बरदस्त तालियों के हकदार हो जाते हैं। ऐसी तालियाँ बॉलीवुड का कोई सलमान खान, शाहरुख खान या रितिक रोशन ही बटोर पाता है। फिल्म जब खत्म होती है तो दर्शकों के चेहरे भयमिश्रित खुशी से खिले नज़र आते हैं।
 इसे मोंस्टर'स बॉल, फाइडिग नेवर लैंड और क्वांटम ऑफ सोलेस जैसी फिल्मों के निर्देशक की कल्पनाशीलता का कमाल कहा जाना चाहिए कि वह Hollywood में सबसे ज़्यादा लोकप्रिय जोंबीज की दुनिया को नष्ट करने की साजिश को स्वीकार्य बना पाते हैं। वह हर सीन कुछ इस प्रकार से पेश करते हैं कि दर्शक सुन्न बैठा सब कुछ देखता रहता है। उन्हे बीच बीच में उनके हीरो का हेरोईक कारनामा तालियाँ बजाने को प्रेरित करता है।   MatthewMichaelCarnahan और  J. Michael Straczynski  की कहानी पर चलते फिरते मुरदों के रोमांच को प्रभावशाली बनाने में Mathew Michael Carnhan, Drew Goddard और damon लिंदेलोफ की तिकड़ी ज़बरदस्त मोर्चा सम्हालती है। जापानियों द्वारा उठाई गयी ऊंची दीवार पर जोंबीज का चढ़ना दर्शकों के रोंगटे खड़ा कर देता है। ऐसे ही तमाम सींस में जब ज़िंदा लोग जीतते हैं, तो दर्शकों की खुशी का कोई ठिकाना नहीं  रहता। बेन सेरेसिन अपने कैमरा के द्वारा जोंबियों के साथ रोमांचकारी दौड़ लगाते हैं। वह मार्क को ऐसा मुरदों का  संसार क्रिएट करने में भरपूर मदद करते हैं।  ऐसी फिल्मों में संगीत यानि बॅक ग्राउंड म्यूजिक का बड़ा महत्व होता है। Marco Beltrami अपने कंधों पर इस जिम्मेदारी को बड़ी मुस्तैदी से सम्हालते हैं। उनका संगीत डराता  ही नहीं, बल्कि रोमांच भी पैदा करता है। रोजर बार्टन और मट्ट चीज की एडिटिंग ने फिल्म की रफ्तार को सपोर्ट किया है।
दो सौ मिल्यन डॉलर में बनी और 116 मिनट लंबी इस फिल्म की जान ब्रैड पिट हैं। वह जहां एक पिता गेरी को अपने भवाभिनय से भिगोते हैं, वही एक जाबांज अधिकारी के रूप में हर हैरतअंगेज सीन को स्वाभाविक भी  बनाते हैं। उनके अभिनय का कमाल है कि दर्शक हर दृश्य से बंधा रहता है तथा हर इमोशन में उनके साथ होता है । ब्रैड पिट की पत्नी की भूमिका में मिरैले एनोस का अभिनय दिल को छूने वाला है। ब्रैड पिट को अन्य कलाकारों जेम्स बैज डेल, मेथ्यु फॉक्स, डेविड मोर्स, लुडी बोएकेन, आदि का खूब साथ मिला है।
अगर दर्शक चलते फिरते मुरदों से डरना चाहते हैं, रोमांचित होना चाहते हैं और उन पर मानवता की जीत दर्ज करना चाहते हैं, तो वर्ल्ड वार ज़ेड को देख कर इन खुशियों का मज़ा लूट सकते हैं।







Friday 21 June 2013

क्या दर्शक बनाना चाहेगा धनुष को अपना राँझना!

 
 तनु वेड्स मनु जैसी 2011 में रिलीज मनोरंजक फिल्म बनाने वाले आनंद एल राज की फिल्म है आज रिलीज राँझना। उनका यूपी कनैक्शन है। इसलिए उनकी फिल्मों की पृष्ठभूमि भी उत्तर प्रदेश का कोई शहर ही होता है। तनु वेड्स मनु में कानपुर था। राँझना में वाराणसी  है। अगर नहीं भी होता तो कोई भी हो सकता था। मुंबई  में भी राँझना जैसे आशिक हैं। दिल्ली में तो ढेरों भरे हैं। गुजरात में भी आशिकों की भरमार है। विश्वास न हो तो अपने संजय लीला भंसाली से पूछ लो कि वह परदे पर कितने गुजरातियों से राम लीला या रास लीला करवा चुके हैं। अब, चूंकि, राँझना का राँझना वाराणसी का है तो वह मंदिर के पुजारी का बेटा है। मंदिर में डमरू बजाता है। चंदा मांगते फिरता है। बाकी वह सेकुलर टाइप का है। एक मुसलमान लड़की से शादी करना चाहता है। लड़की के हाथों से 15 लप्पड़ खाने के बाद 16वें लप्पड़ में लड़की भी उसे चाहने लगती है। लड़की के परिवार में पता चलता है तो हँगामा मच जाता है। लड़की को अलीगढ़  भेज दिया जाता है। वह अलीगढ़ से दिल्ली की सेकुयलर यूनिवरसिटि जेएनयू में चली जाती हैं, जहां पूरे देश को नेता और राजनीति की सप्लाइ होती है। लड़की को भी एक अदद नेता मिल जाता है। वह उसे अकरम बता कर बनारस ले आती है शादी के लिए। हिन्दू लड़का टूटे दिल के साथ लड़की के माता पिता को लड़की की शादी अकरम से करने को राजी भी करता है। लेकिन ऐन शादी के मौके पर हिन्दू लड़के के सामने भेद खुलता है कि अकरम वास्तव में हिन्दू है। वह यह भेद निकाह के वक़्त खोल देता है। लड़की के परिवार के लोग नकली अकरम को मार मार कर रेल्वे लाइन पर मरने   के लिए छोड़ देते हैं। यहाँ यह समझ में नहीं आता कि वह कुन्दन यानि धनुष को क्यों छोड़ देते हैं? क्या अकरम मारा जाता है? क्या लड़के का लड़की से शादी का रास्ता साफ हो जाता है? नहीं भाई नहीं। यूपी वाले की फिल्म है, आसानी से खत्म होने वाली नहीं। 140 मिनट से ज़्यादा चलती हैं राजनीति का तड़का लेकर।
बस इससे ज़्यादा कहानी लिखने की ताकत नहीं । आनंद की राँझना के लेखक हिमांशु शर्मा ने यह क्या किया। सेकुलर कहानी के साथ राजनीति के इतने पेंच क्यों जोड़ दिये? अगर ऐसा नहीं भी होता तो भी क्या हो जाता। कहानी कभी इधर लुढ़कती तो कभी उधर लुढ़कती और भटकती चलती चली जाती है बनारस से Jalandhar और फिर दिल्ली। अबे अगर बनारस में ही खत्म हो जाती तो क्या हो जाता। क्या वहाँ राजनीतिक नेता पैदा करने वाली बनारस हिन्दू यूनिवरसिटि नहीं? हो सकता है  उसे आनंद सेकुलर न मानते होंगे। बहरहाल, फिल्म बनारस के राँझना से निकल कर दिल्ली के जेएनयू के नेता छात्रों का नेतृत्व  करने वाले कुन्दन तक पहुँच जाती है। कहानी में इस प्रकार के अविश्वसनीय ट्विस्ट अँड टर्न देख देख कर दर्शक का भेजा फ्राई हो सकता है। यहीं कारण है कि फिल्म दर्शकों तक अपना उद्देश्य नहीं पहुंचा पाती। समझ में नहीं आता कि यह रोमैन्स फिल्म है या कुछ और।
राँझना के सबसे  मजबूत पक्ष हैं अभिनेता धनुष । क्या अभिनय कराते हैं वह। अत्यधिक गरीब और कमोबेश बदसूरत चेहरे के बावजूद वह बेहद सशक्त अभिनय करते हैं। लगता ही नहीं कि दर्शक दक्षिण के एक बड़े अभिनेता को देख रहे हैं। हर प्रकार के भाव वह बड़ी आसानी से अपने चेहरे पर लाकर दर्शकों तक पहुंचा देते हैं। पूरी फिल्म धनुष की फिल्म बन जाती है। अगर, हिन्दी दर्शकों ने दक्षिण का अभिनेता होने के नाते धनुष के साथ नाइंसाफ नहीं किया तो दर्शकों को आगे भी धनुष की अच्छे अभिनय वाली कुछ अच्छी फिल्में देखने को मिल सकती हैं। धनुष की प्रेमिका से नेताइन बनने वाली जोया की भूमिका में सोनम कपूर हैं। उनका अभिनय अच्छा है। लेकिन हिन्दी बोलते समय ऐसा लगता है जैसे सोनम के दांतों में दर्द हो रहा हो।  स्पेशल अपीयरेंस में अभय देओल जमे हैं। धनुष के दोस्त मुरारी की भूमिका में जीशान अयुब प्रभावशाली रहे हैं। स्वरा भास्कर का अभिनय भी प्रशंसनीय है। फिल्म की लंबाई को नियंत्रित किए जाने की ज़रूरत थी। पर कहानी के इधर से उधर भटकने के कारण यह संभव नहीं था। हेमल कोठारी अपने काम को ठीक तरह से अंजाम नहीं दे सके। एआर रहमान का संगीत फिल्म को खास सपोर्ट करने वाला नहीं।
अब रही बात फिल्म देखने की या न देखने की  तो धनुष के लिए, उनके सोनम के साथ रोमैन्स के लिए राँझना देखी जा सकती है । लेकिन, बनारस के लिए देखने जैसी कोई बात नहीं है फिल्म में। वैसे दर्शक जिस प्रकार से फुकरे जैसी फिल्में पसंद कर रहे हैं, उसे देखते हुए राँझना की गाड़ी बॉक्स ऑफिस पर धीमी ही सही चलती रहनी चाहिए।
एक बात यूपी के फ़िल्मकारों से। भैये क्या अपनी फिल्म के किरदारों खास तौर पर महिला किरदारों के मुंह से गालिया निकलवाना ज़रूरी है?









Thursday 20 June 2013

फ्युचर 'टैन्स' : राँझना, एनिमी...शॉर्टकट रोमियो


कल जब आनंद एल राज की राँझना, आशु त्रिखा की एनिमी और सुशी गणेश की शॉर्टकट रोमियो रिलीज  होने  जा रही  हैं, इन फिल्मों की धनुष, महाक्षय और नील नितिन मुकेश की अभिनेता तिकड़ी के दिलो दिमाग पर टेंशन छाया होगा।  इन फिल्मों के साथ इन तीनों अभिनेताओ का भविष्य यानि फ्युचर शिद्दत से जुड़ा हुआ है। जब तक इन फिल्मों पर दर्शकों का निर्णय पता नहीं लगता, तब तक इन अभिनेताओं का तनाव में यानि टेंशन में  होना स्वाभाविक है।
राँझना दक्षिण के सुपर स्टार धनुष की फिल्म है। धनुष का भविष्य दक्षिण की तमिल और तेलुगू फिल्मों में सुरक्षित है। लेकिन, उनके हाथों में दक्षिण के अभिनेताओं का भविष्य है। अभी तक दक्षिण का कोई अभिनेता हिन्दी फिल्मों में इतना सफल नहीं हो सका है कि बॉलीवुड बादशाह या सुपेरस्टार का खिताब पा सके। इनमे कमल हासन और रजनीकान्त जैसे सुपर अभिनेता भी शामिल हैं। रजनीकान्त तो धनुष के ससुर  भी हैं। अगर वह हिन्दी फिल्मों के राँझना बन पाये तो अपने ससुर से सुपर साबित होंगे। एक प्रकार से धनुष का तनाव खुद   के लिए तो है, अपने साथी अभिनेताओं के लिए भी है।
एनिमी अस्सी के दशक के गरीब फिल्म निर्माताओं के अमिताभ बच्चन मिथुन चक्रवर्ती के बेटे मिमोह उर्फ  महाक्षय चक्रवर्ती की फिल्म है। महाक्षय ने मिमोह नाम से पाँच साल पहले फिल्म जिमी से डेबू किया था। फिल्म बुरी तरह से फ्लॉप हुई। दूसरी फिल्म हैमिल्टन पैलेस रिलीज ही नहीं हो सकी। 2011 में महाक्षय की दो फिल्मे हौंटेड 3डी और लूट रिलीज हुई। 3डी होने के कारण हौंटेड चली। लेकिन महाक्षय को लूट के फ्लॉप होने का नुकसान अधिक हुआ। एनिमी एक कॉप एक्शन ड्रामा फिल्म है। इस फिल्म में महाक्षय अपने पिता मिथुन चक्रवर्ती के सीबीआई अधिकारी के किरदार के ऑपोज़िट सीआईडी अधिकारी के रोल में हैं। फिल्म में सुनील शेट्टी, केके मेनन और ज़ाकिर हुसैन जैसे सक्षम अभिनेताओं के साथ हैं। यह फिल्म हिट हुई तो महाक्षय को अपना कैरियर खत्म होने से बचाने का थोड़ा वक़्त मिल सकेगा।
महाक्षय जैसा ही हाल नील नितिन मुकेश का भी है। मशहूर गायक मुकेश के पोते और नितिन मुकेश के बेटे नील ने अपने कैरियर की शुरुआत सस्पेन्स थ्रिलर फिल्म जॉनी गद्दार से धर्मेंद्र जैसे सीनियर अभिनेता के साथ फिल्म से हुई थी। इस फिल्म को ठीकठाक सफलता मिली थी। पर फिल्म में उनका नेगेटिव किरदार उनके कैरियर के लिहाज से मुफीद नहीं साबित हुआ। नील की अगली फिल्म बिपाशा बसु के साथ आ देखें जरा फ्लॉप हो गयी। न्यूयॉर्क और जेल अच्छी गईं। पर नील को खास फायदा नहीं हुआ। इसमे कोई शक नहीं कि नील ने अपनी अब तक रिलीज 11 फिल्मों में अपने अभिनय का लोहा मनवाया । पर कैरियर के लिहाज से इन्हे बॉक्स ऑफिस पर इतनी सफलता नहीं मिल सकी कि नील अपना स्थायी मुकाम बना पाते। इसीलिए नील को शॉर्टकट रोमियो से बेहद अपेक्षाएँ हैं। इस फिल्म का हिट होना नील के लिए ज़रूरी है। क्योंकि, उनकी इस साल रिलीज दो फिल्में डेविड और 3जी असफल हुई हैं। अगर, शॉर्ट कट रोमियो ठीक ठाक सफलता भी हासिल नहीं कर पायी तो नील की फिल्मों की असफलता की हैटट्रिक बन जाएगी। इसलिए नील नितिन मुकेश सबसे ज़्यादा टैन्स हो रहे होंगे।

बॉक्स ऑफिस पर कल क्या होगा? क्या धनुष, नील और महाक्षय का रिलैक्स हो पाएंगे? क्योंकि, इन तीनों को एक दूसरे से नहीं बल्कि, हॉलीवुड के सुपर सितारे ब्रैड पिट की फिल्म वर्ल्ड वार ज़ेड से डर महसूस हो रहा होगा। यह हॉलीवुड की जोम्बी फिल्म है। हॉलीवुड की जोम्बी फिल्में भारतीय दर्शकों को भी पसंद आती हैं। इसलिए धनुष को राँझना में अपना रोमैन्स, नील को शॉर्ट कट रोमियो में अपना थ्रिलर रोमैन्स और महाक्षय को एनिमी में अपना एक्शन इतना स्ट्रॉंग बनाना होगा कि वह हॉलीवुड के चलते फिरते मुरदों को टक्कर दे पाये। क्या ऐसा होगा? इन तीनों अभिनेताओं में जो भी ऐसा कर पाया वह टेंशन मुक्त होगा। यही है इन तीनों का फ्युचर टैन्स ।



Monday 17 June 2013

'मैन ऑफ स्टील' से चुटाए गए 'अंकुर अरोरा' और 'फुकरे'


हॉलीवुड की फिल्में लगातार बॉलीवुड की फिल्मों को उन्ही के बॉक्स ऑफिस पर लगातार पटखनी दे रही हैं। इस शुक्रवार, बेशक कम मशहूर चेहरों वाली छोटे बजट की फिल्में हॉलीवुड की बड़े बजट की फिल्म के सामने थीं, लेकिन यह फिल्में बड़े प्रोड्यूसरों की फिल्में थी। हॉलीवुड की ज़क Snyder निर्देशित सुपर हीरो फिल्म मैन ऑफ स्टील को वॉर्नर ब्रदर्स पिक्चर्स इंडिया द्वारा 800 प्रिंट्स में रिलीज किया गया था। पर दो हिन्दी फिल्मों फुकरे और अंकुर अरोरा मर्डर केस के निर्माता बड़ी फिल्मों के और अनुभवी निर्माता थे। फुकरे रितेश सिधवानी

और फरहान अख्तर की फिल्म थी। जबकि, अंकुर अरोरा मर्डर केस के निर्माता विक्रम भट्ट काफी अनुभवी  
फ़िल्म निर्माता निर्देशक हैं। इसलिए इन लोगों ने अपनी प्रतिष्ठा के अनुरूप अपनी अपनी फिल्मों का जम कर प्रचार किया था। इसके बावजूद दोनों हिन्दी फिल्मों का बॉक्स ऑफिस पर बुरा हाल हुआ। हॉलीवुड के सुपर हीरो सुपरमैन की फिल्म मैन ऑफ स्टील ने छलांगों पर छलांग भरते हुए बॉक्स ऑफिस पर वीकेंड में 21 करोड़ की कमाई कर डाली। इसके मुकाबले फुकरे ने 9 करोड़ से कुछ ज़्यादा कमाए तो अंकुर अरोरा 1 करोड़ से आगे नहीं बढ़ पाये।

हॉलीवुड की विज्ञान फैंटसी भारतीय दर्शकों को खूब रास आ रही है। मैन ऑफ स्टील अपने स्पेशल एफफ़ेक्ट्स के कारण दर्शकों को रास आयी। जबकि, दूसरी ओर फुकरे की चार दोस्तों की कहानी में नयेपन की कोई गुंजायश नहीं थी। वही बासी घटनाक्रम और चुट्कुलेनुमा संवाद दर्शकों को लुभा नहीं सके। भाई रितेश और फरहान काठ की हांडी बार बार नहीं चढ़ती। अंकुर अरोरा मर्डर केस बेशक एक ईमानदार कोशिश थी, पर दर्शक फिल्म देखने मनोरंजन के लिए जाता है। वह जीवन से जुड़ी प्रेरणादायक घटनाओं को देखना चाहता है, पर इतने सपाट ढंग से नहीं। लेकिन, सबसे बड़ी बात यही है कि मैन ऑफ स्टील की अपील हिन्दी फिल्मों पर भरी पड़ी।
                                                                

Sunday 16 June 2013

वर्ल्ड वार ज़ेड- चलते फिरते मुरदों से युद्ध


आज रिलीज हो रही हॉलीवुड के मशहूर अभिनेता ब्रैड पिट की फिल्म वर्ल्ड वर ज़ेड की कहानी यूनाइटेड नेशन्स के लिए काम करने वाले Gerry लेन की कहानी है, जो विश्व की सरकारों, मानवता और सेना को खत्म करती जा रही जोम्बी के आतंक से छुटकारा दिलाने के लिए विश्व की यात्रा कर रहा है। वह अपने इस प्रयास में कैसे सफल होता है, यह वर्ल्ड वार ज़ेड की रोचक कहानी है। यह हॉलीवुड की जोम्बी फिल्मों की श्रखला में एक फिल्म है।

फिल्म का निर्देशन क्वांटम ऑफ सोलके, मोंस्टर्स बॉल, फिंडिंग नेवेर्लंद और द काइट रनर जैसी फिल्मों का निर्देशन कर चुके मार्क फॉस्टर ने किया है। फिल्म को Mathew Michael carnahan ने ड्रेव गोड्डार्ड और डमों लिंदेलोफ के साथ मिल कर लिखा है। फिल्म मैक्स ब्रुक्स की पुस्तक वर्ल्ड वार ज़ेड पर आधारित है। एक घंटा 56 मिनट लंबी इस फिल्म की निर्माण लागत 200 मिल्यन डॉलर की है। फिल्म 2डी, रियलडी 3डी और आइमैक्स 3डी जैसी उत्क्रष्ट तकनीक का इस्तेमाल कर बनाई गयी है।

ब्रैड पिट की इस फिल्म को पहली बार, वर्ल्डवाइड रिलीज से पहले इंटरनेट पर देखा जा सकेगा। विडियो  ऑन डिमांड  कंपनी Netflix के इंटरनेट के जरिये फिल्म रिलीज के क्षेत्र में उतर आने के कारण यह संभव हो रहा है।  नेट्फ़्लिक्स ने उत्कृष्ट तकनीक का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है। इस कंपनी ने मेगा टिकिट प्रणाली लागू की है। इस योजना को पैरामाउंट पिक्चर्स ने शुरू किया है। इस योजना के अंतर्गत इच्छुक दर्शकों को 50 डॉलर का टिकिट खरीदना होगा। उन्हे फिल्म देखने के लिए  3डी ग्लाससेस और पॉपकॉर्न का पाकेट तथा पोस्टर दिया जाएगा। जब इस फिल्म को ब्लू रे में जारी किया जाएगा, तब फिल्म की एक डिजिटल कॉपी भी दी जाएगी। हॉलीवुड की फिल्मों के दर्शकों को नयी फिल्म देखने के लिए 15 डॉलर का टिकिट खरीदना पड़ता है। घर से सिनेमाघर और सिनेमाघर से घर तक जाने और थिएटर में स्नैक्स आदि लेने का खर्च अलग होता है।

हालांकि, नेट्फ़्लिक्स की यह योजना काफी महंगी प्रतीत होती है। फिर भी इस योजना से दर्शकों को सिनेमाघर  तक जाने और महंगे टिकिट खरीद कर फिल्म देखने की ज़हमत नहीं उठानी पड़ेगी। अगर यह योजना सफल हुई तो संभव है कि अन्य फिल्म निर्माण कंपनियां इस योजना के साथ आयें। भारत में तो कमल हासन द्वारा विश्वरूपम को फिल्म की थिएटर रिलीज से दो दिन पहले रिलीज करने की योजना बनाई तो वितरकों के विरोध के कारण अपने कदम पीछे खींचने पड़े थे। 

Friday 14 June 2013

फुकरे फुकरे ही होते हैं !


इधर बॉलीवुड को दोस्तों पर फिल्में बनाने का शौक चर्राया है। कई पो चे, चश्मे बद्दूर, स्टूडेंट ऑफ द इयर  जैसी  फिल्मों की सफलता ने इस ट्रेंड को  बढ़ावा ही दिया है। इसी का नतीजा है मृगदीप सिंह लांबा निर्देशित, निर्माता रितेश सिधवानी और फरहान अख्तर की फिल्म फुकरे।
फुकरे अन्य दोस्ती फिल्मों के मुकाबले अलग इस लिहाज से है कि यह फिल्म दो या तीन दोस्तों की नहीं, बल्कि चार चार दोस्तों की दोस्ती की कहानी है। फिल्म में चार दोस्तों और उनकी दो महबूबाओं के किरदार के अलावा एक महिला डॉन भोली पंजबान के किरदार को खास महत्व दिया गया। बाकी, हर लिहाज से फिल्म घिसी पिटी ही है। फुकरे यानि चार निठल्ले बेकार दोस्तों की कहानी है। दो दोस्त लॉटरी के जरिये पैसा कमाते हैं। एक दोस्त सपना देख कर नंबर बताता है। दोनों इसी नंबर के लॉटरी टिकिट खरीदते हैं और इनाम जीतते हैं। तीसरा ग्रेजुएट बनाने के लिए पेपर ओपेन करने की फिराक में रहता है। चौथा गायक बनाना चाहता है, पर मौका मिलने पर माइक के सामने गा नहीं पाता। यह चारों इत्तेफाकन मिलते हैं और ढेरों कमाने के लिए भोली पंजाबन के जाल में फंस जाते हैं।
कहानी के लिहाज से फिल्म बिल्कुल रद्दी है। विपुल विग एक अच्छी कहानी लिखने में असफल रहे हैं। विपुल ने ही मृगदीप के साथ फिल्म की पटकथा लिखी है। पर यह कल्पनाहीनता का शिकार है। लगभग सभी सीन बासी हैं। कहीं भी लेखक निर्देशक की कल्पनाशीलता नहीं झलकती। दोस्तों की फिल्म में महिला डॉन का किरदार  कोई अच्छी कल्पना नहीं। फिल्म रुकती थमती चलती रहती है। केवल क्लाइमैक्स में ही थोड़ी rafter पकड़ती है।
फिल्म के चार दोस्त पुलकित सम्राट, मनजोत सिंह, अली फज़ल  और वरुण शर्मा बने हैं। यह चारों कुछ खास करते नज़र नहीं आते। बेहद बासी अभिनय है इन चारों का। मेल कैरक्टर में इन चारों से अच्छा अभिनय पंडित के रोल में पंकज त्रिपाठी करते हैं। फ़ीमेल कैरक्टर में विशाखा सिंह और प्रिया आनंद ने अपनी भूमिकाओं के साथ न्याय किया है। इस फिल्म में सबसे महत्वपूर्ण कैरक्टर भोली पंजाबन का है। इस भूमिका को रिचा चड्ढा ने किया है। रिचा चड्ढा को गंग्स ऑफ वासेपुर के दो भागों से सुर्खियां मिली। लेकिन, इस फिल्म में भोली पंजाबन की भूमिका में वह ख्दु को डुबोने को उतारू नज़र आती हैं। वह डॉन हैं। अच्छी बात है। अभिनेत्रियों को ऐसे रोल करने का पूरा अधिकार है। पर वह सेक्सी क्यों नज़र आ रही थीं। जहां फिल्म की दूसरी नायिकाएँ सामान्य लड़कियों की तरह नज़र आ रही थीं, रिचा चड्ढा अपने उघड़े बदन और अनावश्यक रसीलापन दिखा कर खुद को उम्र में कम बताने का प्रयास कर रही थीं। वह बहुत निराश करती हैं।
इस फिल्म में ऐसा कुछ नहीं है, जो उल्लेखनीय हो। दर्शक फिल्म के पंचों के कारण हँसता है। पर पूरी तरह से संतुष्ट नहीं होता। वैसे फिल्म के दर्शक फिल्म में ऊबते नहीं। यही मृगदीप सिंह लांबा की सफलता है। लेकिन, फरहान अख्तर और रितेश सिधवानी से ऐसी रद्दी कहानी पर फिल्म की उम्मीद नहीं थी। 

स्पेशल एफ़ेक्ट्स से बना सुपरमैन !


हॉलीवुड को भारत में अपने सुपरमैन से बहुत उम्मीदें रहती हैं। आइरन मैन 3 ने पिछले महीने ही सफलता के रेकॉर्ड तोड़े थे। इसीलिए मैन ऑफ स्टील यानि सुपरमैन से भी काफी उम्मीदें थीं। लेकिन, क्या सुपरमैन सिरीज़ की रिबूट फिल्म मैन ऑफ स्टील Hollywood की उम्मीद पर खरी उतरेगी?
सुपरमैन सिरीज़ की छठी फिल्म मैन ऑफ स्टील में काफी कुछ नया था। यह फिल्म सुपरमैन का सेकुएल नहीं  रिबूट है।  यानि इस  फिल्म में सुपरमैन के मैन ऑफ स्टील बनने और पत्रकार बनने की दास्तान है। सुपरमैन  कौन था, कहाँ से आया, उसे परा शक्तियां कहाँ और कैसे मिली? इस फिल्म की यही कहानी है। इसीलिए फिल्म में एक्शन काम है। चमत्कार हैं, पर स्पेशल इफैक्ट और कम्प्युटर ग्राफिक्स के। फिल्म के डाइरेक्टर भी नए हैं और हीरो भी नया है। सुपरमैन रिटर्न्स की बुरी असफलता के बाद Brandon रॉथ का सिरीज़ से पत्ता कट गया। वह केवल एक ही बार सुपरमैन बन पाये। जैक स्निदर निर्देशक की कुर्सी पर आ बैठे। reboot में इस नयी जोड़ी की कड़ी परीक्षा थी। पर यह जोड़ी फ़र्स्ट क्लास मार्क्स से पास नहीं हो पायी। फिल्म यह तो बताती है कि मैन  ऑफ स्टील की कहानी सुपरमैन के मैन ऑफ स्टील बनने की है। मगर पटकथा लेखक और कहानीकार डेविड एस गोयर तथा Christopher Nolan यह साबित कर पाने में असफल रहे हैं। मानव के बीच में रहने वाले इस लोहे के आदमी को सचमुच लोहा साबित होना चाहिए था। लेकिन जैक स्निडर ने हेनरी केविल के बजाय अपनी तकनीकी टीम पर ज़्यादा भारोषा किया। नतीजतन फिल्म तकनीकी उत्कृष्टता का शिकार हो गयी। इस फिल्म का जब तक क्लाइमैक्स आता है, दर्शक ठंडा हो चुका होता है। यह फिल्म मानवता के प्रति कोई संदेश नहीं देती। जबकि इसके पहले की कड़िया अमेरिका ही नहीं विश्व को बचाने का संदेशा देती थीं।
सुपरमैन के किरदार में हेनरी केविल बहुत प्रभावित नहीं करते। उन पर भारी पड़ते हैं फिल्म के विलेन Michael शेन्नॉन। तकनीकी दृष्टि से फिल्म उत्कृष्ट श्रेणी की है। लेकिन, इनमे कोई नयापन नहीं। इन्हे देखते समय गोड्ज़िला जैसी फिल्मों की याद आ जाती है। ग्लाडियाटोर से मशहूर रसेल क्रोव ने सुपरमैन के पिता की भूमिका की है। वह प्रभावशाली हैं।
 मैन ऑफ स्टील की इंडियन बॉक्स ऑफिस पर शुरुआत अच्छी रही है। इस फिल्म ने 75 प्रतिशत तक की ओपेनिंग ली है। जैसी इस ब्लॉग में मैन ऑफ स्टील के बारे में लिखते समय कहा गया था, फुकरे और अंकुर अरोरा मर्डर केस कहीं बहुत पीछे छूट गए हैं। लेकिन, मैन ऑफ स्टील वीकेंड के बाद इंडियन आडियन्स पर अपनी कितनी पकड़ दिखा पाती है, यही महत्वपूर्ण होगा।
 
 

Thursday 13 June 2013

मैन ऑफ स्टील के सामने कैसे टिकेंगे अंकुर और फुकरे !

 इस सुपर स्टार का जन्म 81 साल पहले कॉमिक्स बूक में हुआ था। 35 साल पहले इस का रील लाइफ जन्म हुआ। आज यह दुनिया भर का पसंदीदा कैरक्टर बन चुका है। सुपरमैन !जी हाँ, दुनिया भर के दर्शक इस सुपर हीरो को इसी नाम से जानते हैं। कॉमिक्स से निकल कर यह किरदार रेडियो और टीवी से होता हुआ बड़े पर्दे पर छा गया है। 1978 में, जब इस कैरक्टर पर फिल्म सुपरमैन रिलीज हुई थी तब किसी को उम्मीद नहीं थी कि यह इतनी सफल होएगी। इसीलिए Robert Benton की कहानी पर Richard डोनोर निर्देशित इस फिल्म को महज 817 प्रिंट्स में रिलीज किया गया। 55 मिल्यन डॉलर में बनी इस फिल्म ने 300 मिल्यन डॉलर कमा डाले। तब से यह कैरक्टर Hollywood के दूसरे सुपर पावर रखने वाले स्पाइडरमन, आइरन मेन, आदि के साथ दुनिया को अपनी ताकत का भरोसा दिलाने में जुटा हुआ है।
अब तक, सुपरमैन सिरीज़ की 5 फिल्में रिलीस हो चुकी हैं।  14 जून को रिलीस हो रही सुपरमैन सिरीज़ की छठी फिल्म मैन ऑफ स्टील, दरअसल सुपरमैन सिरीज़ का रेबूट है।  सुपरमैन सिरीज़  की पाँचवी फिल्म सुपरमैन रिटर्न्स बॉक्स ऑफिस पर वर्ल्ड वाइड कुछ खास नहीं कर सकी। 270 मिल्यन डॉलर में बनी सुपरमैन रिटर्न्स ने केवल 391 मिल्यन डॉलर ही कमाए। नतीजे के तौर पर फिल्म के निर्देशक ब्रायन सिंगर को बर्खास्त कर दिया गया। Brandon रॉथ दूसरी बार सुपरमैन नहीं बन सके।
सुपरमैन सिरीज़ की इस छठी कड़ी में सुपरमैन का रोल द काउंट ऑफ मोंटे  क्रिस्टे और रेड राइडिंग हूड़ के अभिनेता हेनरी केविल कर रहे हैं। फिल्म का निर्देशन साइन्स फिक्सन  और एक्शन फिल्मों के महारथी जैक स्निडर कर रहे हैं।

इधर कुछ सालों से, हॉलीवुड के सुपर हीरो Bollywood के सुपर हीरो को बुरी तरह से चुनौती दे रहे हैं। सुपरमैन यानि मैन ऑफ स्टील का दबदबा इस शुक्रवार बॉक्स ऑफिस पर होना स्वाभाविक है। क्योंकि, मैन ऑफ स्टील के सामने बॉलीवुड की दो छोटी चुनौतियां ही हैं। सुहेल तातारी की केके मेनन, टिस्का चोपरा, पाओली डैम और विशाखा सिंह जैसी सामान्य स्टार कास्ट वाली छोटे बजेट की फिल्म अंकुर अरोरा मर्डर केस के अलावा  बड़े निर्माता फरहान अख्तर और रेतेश सिधवानी की मृगदीप सिंह लांबा की मामूली बजेट में बनी फिल्म फुकरे रिलीस हो रही है। चार दोस्तों की कहानी वाली इस दोस्ती फिल्म में वरुण शर्मा, पुलकित सम्राट, मनोज सिंह, अली फज़ल, रिचा चड्डा, विशाखा सिंह और प्रिया आनंद जैसे नए चेहरे है। ज़ाहिर है कि यह फिल्में मैन ऑफ

स्टील  के सामने कहीं नहीं टिकतीं। इसलिए एक प्रकार से हॉलीवुड की फिल्म के लिए बॉलीवुड ने मैदान छोड़ रखा है। बॉलीवुड की छोटे बजेट वाली फिल्में माउथ पब्लिसिटी पर थोड़ा अच्छा बिज़नस  कर सकती हैं। लेकिन जिस प्रकार से अगले हफ्तों में बड़ी फिल्में लाइन में हैं उससे लगता नहीं कि फुकरे या अंकुर अरोरा मर्डर केस कुछ खास कर पाएँगी। वैसे इस हफ्ते की एक महत्वपूर्ण बात यह है कि मैन ऑफ स्टील को भी भारतीय दर्शकों को लुभाने के लिए ज़ोर मारना पड़ेगा। क्योंकि, सुपरमैन रिटर्न्स भारत में भी कुछ खास नहीं कर पायी थी।