आजकल हॉलीवुड फिल्म बेवॉच की हिंदुस्तान में ज़बरदस्त चर्चा है। इस फिल्म में प्रियंका चोपड़ा एक बुरे किरदार विक्टोरिया लीड्स को कर रही हैं। दर्शकों में प्रियंका के इस किरदार को देखने की उत्सुकता है। सेठ गॉर्डन की फिल्म बेवॉच, जिस लॉस एंजेल्स काउंटी लाइफगार्ड्स की ज़िन्दगी पर एक्शन ड्रामा सीरीज बेवॉच पर बनी है, उसके हिंदुस्तानी टेलीविज़न देखने वाले बहुत से दर्शक थे। हर सीरीज के शुरू में दर्शकों को उत्सुकता रहती थी लाल स्विमसूट पहने महिला लाइफ गुजर सीजे पार्कर को देखने की। इस किरदार को पामेला एंडरसन कर रही थी। पामेला ने इस सीरीज में १९९२ से १९९७ में पार्कर का किरदार किया था।हॉलीवुड में पामेला एंडरसन अपनी सेक्सी इमेज और बड़े स्तनों के कारण मशहूर थी। टीवी सीरियल के दर्शक भी उनकी इन्हे खासियतों के कारण उनके प्रशंसक थे। ऐसे में, जब बेवॉच पर फिल्म बने और उसमे पामेला एंडरसन की झलक न हो, ऐसा हो ही नहीं सकता। इसलिए, दुनिया के दर्शकों को पामेला एंडरसन बेवॉच में भी स्पेशल कैमिया में दिखाई देंगी। इस फिल्म में टेलीविज़न सीरीज में ड्वेन जॉनसन वाला मिच बुचनान का किरदार करने वाले अभिनेता डेविड हसेलहॉफ भी होंगे। इनके बारे में बताते हुए ड्वेन जॉनसन ने ट्वीट करते हुए कहा, "इन दोनों आइकॉन के बिना फिल्म की कल्पना तक नहीं की जा सकती।" ड्वेन जॉनसन के साथ ज़क एफ्रॉन, अलेक्सांद्रा दादारिओ, केली रोहबाच, जोन बास, आदि की भूमिका वाली फिल्म बेवॉच को हिंदुस्तानी दर्शक २५ मई से सिनेमाघरों में देख सकेंगे।
भारतीय भाषाओँ हिंदी, तेलुगु, तमिल, कन्नड़, मलयालम, पंजाबी, आदि की फिल्मो के बारे में जानकारी आवश्यक क्यों है ? हॉलीवुड की फिल्मों का भी बड़ा प्रभाव है. उस पर डिजिटल माध्यम ने मनोरंजन की दुनिया में क्रांति ला दी है. इसलिए इन सब के बारे में जानना आवश्यक है. फिल्म ही फिल्म इन सब की जानकारी देने का ऐसा ही एक प्रयास है.
Wednesday 17 May 2017
बेवॉच में पामेला एंडरसन भी
Labels:
Hollywood
मैं हिंदी भाषा में लिखता हूँ. मुझे लिखना बहुत पसंद है. विशेष रूप से हिंदी तथा भारतीय भाषाओँ की तथा हॉलीवुड की फिल्मों पर. टेलीविज़न पर, यदि कुछ विशेष हो. कविता कहानी कहना भी पसंद है.
बेवॉच में प्रियंका चोपड़ा का दिलचस्प किरदार
जैसे जैसे लॉस एंजेल्स के लाइफगार्ड्स के जीवन पर फिल्म बेवॉच की रिलीज़ की तारीख नज़दीक आ रही है, प्रियंका चोपड़ा के किरदार को लेकर दिलचस्प खुलासे किये जा रहे हैं। यह तो सभी जानते हैं कि फिल्म में प्रियंका चोपड़ा एक अमीर लेकिन ताकत की भूखी औरत विक्टोरिया लीडस् का किरदार कर रही हैं। यह किरदार बेहद विलासिता से रहने वाली औरत का है। विक्टोरिया समुद्र के रास्ते नशीली दवाओं की तस्करी कर करोडो कमा रही है। लेकिन, उसे रेत पसंद नहीं। वह समुद्र के किनारे भी सैंडल नहीं उतरती। वह विलासितापूर्ण लिबास पहनती है। सूत्रों का कहना है कि एक सीन में विक्टोरिया अपनी जीप से उतरती है तो उससे पहले ही उसके गुर्गे एक स्टूल रख देते है। स्टूल पर चढ़ कर ही वह बात करती है। अपने इसी किरदार के अनुरूप प्रियंका चोपड़ा अपनी फिल्म बेवॉच का प्रमोशन विलासिता से भरे लिबास पहन कर कर रही हैं। उनके लिबास को राल्फ लॉरेन, सैली ला पोइंटे, एट्रो और उल्याना सेरजेंको भव्यतापूर्ण बनाया है।
Labels:
Hollywood
मैं हिंदी भाषा में लिखता हूँ. मुझे लिखना बहुत पसंद है. विशेष रूप से हिंदी तथा भारतीय भाषाओँ की तथा हॉलीवुड की फिल्मों पर. टेलीविज़न पर, यदि कुछ विशेष हो. कविता कहानी कहना भी पसंद है.
Tuesday 16 May 2017
बड़े अभिनेताओं की नायिका बनेगी कैटरीना कैफ !
सलमान खान और करण जौहर एक को-प्रोडक्शन फिल्म बनाने जा रहे हैं। इस अनाम फिल्म के नायक सलमान खान नहीं होंगे, बल्कि फिल्म के हीरो अक्षय कुमार होंगे। इस फिल्म के लिए कैटरीना कैफ को भी साइन किया गया है। दो हीरो वाली इस फिल्म के दूसरे हीरो पंजाबी फिल्मों के सुपर स्टार दिलजीत दोसांझ होंगे। दिलजीत दोसांझ को लिए जाने की खबर ने कैटरीना कैफ को सजग कर दिया। वह लॉबिंग करने लगी कि उन्हें अक्षय कुमार की ही नायिका बनाया जाए। कैटरीना कैफ अब किसी नए अभिनेता के साथ फिल्म करना नहीं चाहती। हालाँकि, देखें तो कैटरीना कैफ ने कभी अली ज़फर और इमरान खान के साथ मेरे ब्रदर की दुल्हन और नील नितिन मुकेश और जॉन अब्राहम के साथ न्यू यॉर्क जैसी हिट फ़िल्में दी हैं। उन्हें नए चेहरों या खुद से कम उम्र के अभिनेताओं के साथ फिल्म करने से परहेज कभी नहीं रहा। उन्हें यह आत्मविश्वास अक्षय कुमार, रणबीर कपूर, सलमान खान, आमिर खान और शाहरुख़ खान के साथ फ़िल्में करके ही मिला। इसीलिए उन्होंने आदित्य रॉय कपूर के साथ फितूर और सिद्धार्थ मल्होत्रा के साथ बार बार देखो जैसी फ़िल्में साइन कर ली थी। लेकिन, यह दोनों ही फ़िल्में बुरी तरह से लुढ़कीं। यह दोनों फ़िल्में एक के बाद एक असफल हुई थी। इससे घबरा कर कैटरीना कैफ ने युवा सितारों के साथ फ़िल्में करने से परहेज करना शुरू कर दिया। इसीलिए वह चाहती हैं कि उनकी जोड़ी दिलजीत के साथ नहीं, बल्कि अक्षय कुमार के साथ बनाई जाए। अक्षय कुमार के साथ फिल्म हमको दीवाना कर गए ने कैटरीना कैफ को स्टार बना दिया था। इस जोड़ी ने नमस्ते लंदन, वेलकम, रेस और सिंह इज किंग जैसी सुपर हिट फ़िल्में दी हैं। इस जोड़ी की पिछली फिल्म तीस मार खान (२०१०) असफल हुई थी। इस फिल्म के बाद, पिछले सात सालों से अक्षय कुमार के साथ कैटरीना कैफ और अक्षय कुमार की जोड़ी नहीं बनी है। कैटरीना कैफ की रणबीर कपूर के साथ फिल्म जग्गा जासूस और सलमान खान के साथ फिल्म टाइगर ज़िंदा है इसी साल रिलीज़ होंगी। कैटरीना कैफ को इन दोनों फिल्मों के सफल होने की पूरी उम्मीद है। इसीलिए कैटरीना चाहती हैं कि निर्माता सलमान खान और करण जौहर की अनुराग सिंह निर्देशित अनाम फिल्म में अक्षय कुमार के साथ जोड़ी बना कर वह सफलता की हैटट्रिक बना ले जाएँ।
मैं हिंदी भाषा में लिखता हूँ. मुझे लिखना बहुत पसंद है. विशेष रूप से हिंदी तथा भारतीय भाषाओँ की तथा हॉलीवुड की फिल्मों पर. टेलीविज़न पर, यदि कुछ विशेष हो. कविता कहानी कहना भी पसंद है.
Monday 15 May 2017
टाइगर जिंदा है का पहला एक्शन शिड्यूल पूरा
अबू धाबी में अली अब्बास ज़फर निर्देशित फिल्म टाइगर जिंदा है का पहला बड़ा एक्शन शिड्यूल पूरा हो गया है। फिल्म के तमाम एक्शन दृश्यों को शूट करने के लिए ब्रेवहार्ट, द मम्मी, द वर्ल्ड इज नोट एनफ, वर्टीकल लिमिट, लारा क्राफ्ट: तुंब रेडर (सीरीज), टर्मिनेटर ३, बैटमैन बेगिंस, एक्स-मेन, रिडेम्पशन, आदि जैसी हॉलीवुड फिल्मों के स्टंट डायरेक्टर टॉम स्ट्रूथर्स को बुलाया गया था। २०१२ में रिलीज़ यशराज फिल्म्स की एक था टाइगर का निर्देशन कबीर खान ने किया था। फिल्म में सलमान खान की नायिका कैटरिना कैफ थी। इस सीक्वल फिल्म में भी सलमान खान और कैटरीना कैफ ही मुख्य भूमिका में हैं। मगर फिल्म के निर्देशन की कमान अली अब्बास ज़फर के हाथों में है। अली अब्बास ज़फ़र यशराज फिल्म्स के लिए मेरे ब्रदर की दुल्हन और सुल्तान जैसी सुपर हिट फिल्मों और गुंडे जैसी सुपर फ्लॉप फिल्म का निर्देशन कर चुके हैं। यशराज फिल्म्स के लिए उन्होंने इन फिल्मों को लिखा भी था। टाइगर ज़िंदा है के राइटर अली ही हैं।
Labels:
खबर है
मैं हिंदी भाषा में लिखता हूँ. मुझे लिखना बहुत पसंद है. विशेष रूप से हिंदी तथा भारतीय भाषाओँ की तथा हॉलीवुड की फिल्मों पर. टेलीविज़न पर, यदि कुछ विशेष हो. कविता कहानी कहना भी पसंद है.
Sunday 14 May 2017
Motion poster of film Simran
Labels:
Poster
मैं हिंदी भाषा में लिखता हूँ. मुझे लिखना बहुत पसंद है. विशेष रूप से हिंदी तथा भारतीय भाषाओँ की तथा हॉलीवुड की फिल्मों पर. टेलीविज़न पर, यदि कुछ विशेष हो. कविता कहानी कहना भी पसंद है.
रिहान्ना के निशाने पर दीपिका पादुकोण
सोशल साइट्स पर और विदेशी मीडिया में, आजकल दीपिका पादुकोण काफी भद्द उड़ रही हैं। दीपिका को इसका बुरा भी लगता है। तब तो ख़ास तौर पर, जब साथ प्रियंका चोपड़ा भी हों। अभी जापानी फैशन डिज़ाइनर री कवाकूबो को समर्पित फैशन शो मेट गाला हुआ था। इस शो में बारबाडोस की पॉप गायिका रिहान्ना जैसी विदेशी हस्तियों के साथ बॉलीवुड की दो देसी गर्ल प्रियंका चोपड़ा और दीपिका पादुकोण भी शामिल हुई थी। प्रियंका चोपड़ा ने बड़े घेर वाला इवनिंग गाउन पहन रखा था। सोशल साइट्स पर प्रियंका चोपड़ा के इस गाउन को ख़ास तवज्जो नहीं मिली । लेकिन, दीपिका पादुकोण का गाउन निशाने पर आ गया। दीपिका का यह गाउन मेट गाला की थीम के अनुरूप नहीं पाया गया। इस पर एक इंस्टाग्राम फॉलोवर ने रिहान्ना और दीपिका पादुकोण के गाउन के फोटो शेयर करते हुए कमेंट किया- मेट गाला की थीम क्या थी और हरेक दिखा क्या रहा था। इशारा साफ़ तौर पर दीपिका के कटे-पिटे स्तन दिखाते गाउन की ओर था। हद तो तब हो गई जब इस कमेंट को रिहान्ना ने भी सहमति दे दी। अब बात मीडिया पर दीपिका की भद्द को लेकर। विदेशी मीडिया हमारी कथित रूप से हॉलीवुड में मशहूर इन बॉलीवुड हस्तियों को पहचानता तक नहीं। दीपिका पादुकोण ने विन डीजल के साथ हॉलीवुड फिल्म ट्रिपल एक्स रिटर्न ऑफ़ जेंडर केज की है जबकि प्रियंका चोपड़ा टीवी सीरीज क्वांटिको से शोहरत बटोरने के बाद इसके दूसरे सीजन में काम कर ही रही हैं, उनकी एक हॉलीवुड फिल्म द रॉक के साथ बेवॉच रिलीज़ होने वाली है। अब होता यह है कि इन दोनों को अच्छी तरह से न पहचानने वाला विदेशी मीडिया दीपिका पादुकोण को प्रियंका चोपड़ा समझ कर सवाल दागने लगता है या नाम से पुकारने लगता है। इसका दीपिका को इतना बुरा लगा कि उन्होंने इसे नस्लीय करार दिया। उन्होंने कहा, "यह विदेशी मीडिया की अज्ञानता नहीं, साफ़ तौर पर नस्लीय सोच है। वह लोग हर भूरी चमड़ी की दो शक्लों को एक ही समझते हैं।" प्रियंका चोपड़ा ने भी माना था कि विदेशी मीडिया दीपिका को देख कर मेरा भ्रम होता है। परन्तु, दीपिका पादुकोण का नस्लीय बताने वाला कमेंट कुछ प्रियंका चोपड़ा से डाह ही लगता है।
Labels:
Deepika Padukone,
हस्तियां
मैं हिंदी भाषा में लिखता हूँ. मुझे लिखना बहुत पसंद है. विशेष रूप से हिंदी तथा भारतीय भाषाओँ की तथा हॉलीवुड की फिल्मों पर. टेलीविज़न पर, यदि कुछ विशेष हो. कविता कहानी कहना भी पसंद है.
जॉन अब्राहम के साथ डायना पेंटी की एक्शन फिल्म
पारसी-क्रिस्चियन परिवार की डायना पेंटी को विदेशी लुक के बावजूद होमी अदजानिया की फिल्म कॉकटेल में हिंदुस्तानी संस्कृति वाली मीरा के किरदार में दर्शकों द्वारा बेहद पसंद किया गया। हालाँकि, इसके बावजूद कि वह कॉकटेल में सैफ अली खान और दीपिका पादुकोण के सामने थी, डायना को कोई बड़ी फिल्म नहीं मिली। इसके बावजूद आनंद एल राज की कॉमेडी फिल्म हैप्पी भाग जाएगी में अपने हैप्पी के किरदार से डायना ने हिंदी दर्शकों में अपने लिए जगह बना ली। अब इस फिल्म का सीक्वल बनाया जा रहा है तो हैप्पी की भूमिका के लिए डायना पेंटी को ही लिया गया है। कैदियों द्वारा चलाये जा रहे बैंड और जेल तोड़ने की कहानी पर फिल्म लखनऊ सेंट्रल में डायना पेंटी ने एक एनजीओ चलाने वाली लड़की का किरदार किया है। इस फिल्म में फरहान अख्तर मुख्य भूमिका में हैं। अब डायना पेंटी एक एक्शन फिल्म में जॉन अब्राहम के साथ धुंआधार एक्शन करती नज़र आएँगी। फिलहाल शांतिवन टाइटल के साथ बनाई जा रही यह फिल्म १९९८ के पोखरण न्युक्लीअर बम टेस्ट पर एक्शन थ्रिलर फिल्म है। इस फिल्म का निर्देशन तेरे बिन लादेन के अभिषेक शर्मा कर रहे हैं। फिल्म की शूटिंग ३० मई से शुरू हो जायेगी। डायना पेंटी कहती हैं, "शांतिवन मेरी पहली एक्शन ड्रामा फिल्म है। मैं हर बार कुछ अलग करने की सोचती हूँ। मुझे ख़ुशी है कि मुझे ऐसे मौके मिलते रहते हैं।" डायना पेंटी की अगली फिल्म लखनऊ सेंट्रल १५ सितम्बर को रिलीज़ हो रही है।
Labels:
खबर है
मैं हिंदी भाषा में लिखता हूँ. मुझे लिखना बहुत पसंद है. विशेष रूप से हिंदी तथा भारतीय भाषाओँ की तथा हॉलीवुड की फिल्मों पर. टेलीविज़न पर, यदि कुछ विशेष हो. कविता कहानी कहना भी पसंद है.
राजकुमार की शादी में दो करोड़ खर्च
ऐसे में जबकि सरकारें दहेज़ रहित और बिना तामझाम की शादी की वकालत कर रही हैं, ऐसे में राजकुमार राव की शादी में 2 करोड़ रुपये खर्च किया जाना कान खड़े कर देता है। लेकिन, राजकुमार राव की यह शादी रियल लाइफ नहीं, बल्कि रील लाइफ है। निर्माता विनोद बच्चन की फिल्म शादी में ज़रूर आना में राजकुमार राव की शादी का आलीशान सेट खड़ा करने में दो करोड़ खर्च हो गए। इस सेट को बनाने में इतने ज़्यादा पैसे इसलिए भी खर्च हो गए कि आर्ट डायरेक्टर अरूप अधिकारी ने सेट डिजायनर शबीउल हसन और टीम के साथ मिलकर तीन दिन में इस सेट को तैयार करवाया था। साथ ही इस सेट को इस प्रकार का होना चाहिए था, जैसा कभी बॉलीवुड की किसी शादी में नहीं देखा गया हो। निर्माता विनोद बच्चन कहते है " चूंकि यह शादी का दृश्य है, इसलिए हम एक भव्य समारोह की तरह इस दृश्य को बहुत ही शानदार दिखाना चाहते थे।" इस फिल्म से फिल्मकार अनुभव सिन्हा की पत्नी रत्ना सिन्हा बतौर निर्देशक डेब्यू कर रही है। इलाहबाद, लखनऊ और कानपूर में फिल्माई गई इस फिल्म में अभिनेता राजकुमार राव और कृति खरबंदा लीड रोल में नजर आएंगे ।
अँधेरे में ग़ुम बच्चों की दुनिया में होगा 'सनराइज' !
अँधेरे में ग़ुम बच्चों की दुनिया में होगा 'सनराइज' !
मुंबई पुलिस की समाज सेवा शाखा का इंस्पेक्टर लक्षमण जोशी रातों को भटकता है मुंबई की अँधेरे में डूबी गन्दी गलियों में घूमता फिरता है, अपनी गायब कर दी गई बेटी अरुणा की तलाश में। एक व्यक्ति की इस कहानी के पीछे वह तथ्य हैं, जो यह बताते हैं कि हिंदुस्तान में हर साल ६० हजार बच्चे इसी प्रकार गुम हो जाते हैं। इनमे से ज़्यादातर मिलते ही नहीं। यह कहानी है डायरेक्टर पार्थ सेन-गुप्ता की फिल्म सनराइज की। यह फिल्म स्त्रियों और बच्चों के प्रति हिंसा का मुद्दा भी उठाती है। इस फिल्म में लक्षमण जोशी का मुख्य किरदार सशक्त अभिनेता आदिल हुसैन ने किया है। फिल्म में, बच्ची के गायब होने के बाद पागल सी हो गई पत्नी लीला का किरदार तनिष्ठा चटर्जी ने किया है। इनके अलावा आशालता वाबगाओंकर, गुलनाज़ अंसारी, चिन्मय कांबली, हृदयनाथ जाधव और एषा अमलानी भी अपने किरदारों से फिल्म को सपोर्ट करते हैं।
बुरे किरदार में चंकी पांडेय
धर्मेंद्र और शत्रुघ्न सिन्हा के साथ फिल्म आग ही आग में नीलम के रोमांटिक जोड़ीदार चंकी पांडेय पर अनिल कपूर और माधुरी दीक्षित की फिल्म तेज़ाब ने सह-अभिनेता का ठप्पा लगा दिया। इस फिल्म के बाद वह गोविंदा के साथ कॉमेडी करते रहे। परदे पर हंसाते थे। दर्शक हँसते भी थे। पर समीक्षक उन्हें उनके चहरे के हावभाव के कारण मंकी पांडेय पुकारते रहे। उन्होंने ज़्यादातर फिल्मों में लाउड कॉमिक करैक्टर ही किये। लेकिन, अब वह कुछ अलग करते नज़र आ रहे हैं। १४ अप्रैल को दर्शकों ने चंकी पांडेय को श्रीजित मुख़र्जी की फ़िल्म बेगम जान में कबीर के किरदार में देखा। अजीबोगरीब तरीके से लिखा गया यह किरदार चंकी पांडेय के लिए चुनौतीपूर्ण था। यह किरदार हिन्दुओं के तरह जनेऊ पहनता है और इसने मुसलमानों की तरह खतना करा रखा है। मौके पर यह इन्हे इस्तेमाल करता है। ज़ाहिर है कि चंकी पांडेय का यह किरदार निगेटिव शेड लिए हुए थे। बेगम जान के कबीर के बाद चंकी पांडेय एक तेलुगु फिल्म में भी खल चरित्र कर रहे हैं। चंकी पांडेय की यह पहली तेलुगु फिल्म है। इसमें वह साउथ के एक बड़े सितारे के साथ काम कर रहे हैं। चंकी पांडेय ने एक एनीमेशन फिल्म हनुमान दा दमदार में के शरारती मगर मज़ाकिया नाज़ुक गाइड के करैक्टर के लिए वौइस् ओवर किया है। देखें, अपने नए खल तेवरों में चंकी पांडेय कितना सफल होते हैं।
धर्मेंद्र और शत्रुघ्न सिन्हा के साथ फिल्म आग ही आग में नीलम के रोमांटिक जोड़ीदार चंकी पांडेय पर अनिल कपूर और माधुरी दीक्षित की फिल्म तेज़ाब ने सह-अभिनेता का ठप्पा लगा दिया। इस फिल्म के बाद वह गोविंदा के साथ कॉमेडी करते रहे। परदे पर हंसाते थे। दर्शक हँसते भी थे। पर समीक्षक उन्हें उनके चहरे के हावभाव के कारण मंकी पांडेय पुकारते रहे। उन्होंने ज़्यादातर फिल्मों में लाउड कॉमिक करैक्टर ही किये। लेकिन, अब वह कुछ अलग करते नज़र आ रहे हैं। १४ अप्रैल को दर्शकों ने चंकी पांडेय को श्रीजित मुख़र्जी की फ़िल्म बेगम जान में कबीर के किरदार में देखा। अजीबोगरीब तरीके से लिखा गया यह किरदार चंकी पांडेय के लिए चुनौतीपूर्ण था। यह किरदार हिन्दुओं के तरह जनेऊ पहनता है और इसने मुसलमानों की तरह खतना करा रखा है। मौके पर यह इन्हे इस्तेमाल करता है। ज़ाहिर है कि चंकी पांडेय का यह किरदार निगेटिव शेड लिए हुए थे। बेगम जान के कबीर के बाद चंकी पांडेय एक तेलुगु फिल्म में भी खल चरित्र कर रहे हैं। चंकी पांडेय की यह पहली तेलुगु फिल्म है। इसमें वह साउथ के एक बड़े सितारे के साथ काम कर रहे हैं। चंकी पांडेय ने एक एनीमेशन फिल्म हनुमान दा दमदार में के शरारती मगर मज़ाकिया नाज़ुक गाइड के करैक्टर के लिए वौइस् ओवर किया है। देखें, अपने नए खल तेवरों में चंकी पांडेय कितना सफल होते हैं।
Labels:
खबर है
मैं हिंदी भाषा में लिखता हूँ. मुझे लिखना बहुत पसंद है. विशेष रूप से हिंदी तथा भारतीय भाषाओँ की तथा हॉलीवुड की फिल्मों पर. टेलीविज़न पर, यदि कुछ विशेष हो. कविता कहानी कहना भी पसंद है.
बड़े अच्छे लगते हैं की पीहू की तीन साल बाद वापसी
चुलबुली, शैतान सी मगर समझदार पीहू वापसी कर रही है। साक्षी तंवर और राम कपूर की मुख्य भूमिका वाले सोनी के शो बड़े अच्छे लगते हैं में इन दोनों की बेटी का नाम पीहू था। इस भूमिका को अमृता मुख़र्जी ने किया था। १० जुलाई २०१४ को यह शो ख़त्म हो गया था। इसके बाद से बड़े अच्छे लगते हैं की पीहू उर्फ़ अमृता मुख़र्जी किसी सीरियल में नज़र नहीं आई। उन्होंने रबिन्द्रनाथ टैगोर की लघु कहानियों पर एक लघु फिल्म काबुलीवाला में मिनी का किरदार ज़रूर किया। अब तीन साल बाद अमृता मुख़र्जी किसी शो में पूरी लम्बाई की भूमिका में आ रही है। लाइफ ओके पर प्रसारित होने जा रहे शो मासूम में अमृता फिल्म के नायक की बहन का का अहम् किरदार कर रही हैं। यह सीरियल एक रिवेंज ड्रामा तेज़ रफ़्तार है। उम्मीद है कि अमृता मुख़र्जी तीन साल बाद भी बड़े अच्छे लगते हैं की पीहू वाला जादू बिखेरेंगी।
अब विनोद मेहरा का बेटा फिल्म 'बाज़ार' में
कल निर्माता निखिल अडवाणी की फिल्म बाज़ार का पोस्टर रिलीज़ हुआ। यह फिल्म मुंबई के स्टॉक एक्सचेंज से जुडी रहस्यपूर्ण कहानियों में से एक पर है। इस फिल्म का निर्देशन निखिल अडवाणी की फिल्म कुछ न कहो, ब्लफमास्टर, झूम बराबर झूम, चांदनी चौक टू चाइना, पटियाला हाउस और दम मारो दम में सहायक निर्देशक गौरव के० चावला ने किया है। गौरव ने टेलीविज़न सीरियल पीओडब्ल्यू बंदी युद्ध के के कुछ एपिसोड्स का निर्देशन भी किया था। यह फिल्म सन्देश देती है कि मुंबई में पैसा भगवान् नहीं, लेकिन भगवान् से कम भी नहीं है। फिल्म में सैफ अली खान एक स्टॉक ब्रोकर की मुख्य भूमिका में है। दिसम्बर में रिलीज़ होने जा रही इस फिल्म से स्वर्गीय अभिनेता विनोद मेहरा की तीसरी बीवी किरण से बेटे रोहन मेहरा का डेब्यू हो रहा है। विनोद मेहरा की मृत्यु के बाद किरण अपने दोनों बच्चों को लेकर केन्या चली गई थी। रोहन की बड़ी बहन सोनिया मेहरा का २००७ में रिलीज़ १९७२ की फिल्म विक्टोरिया नंबर २०३ के रीमेक से फिल्म डेब्यू हो चुका है। अब देखने वाली बात होगी कि क्या रोहन अपने पिता विनोद मेहरा की तरह फिल्म संसार में चमक सकेंगे ?
Labels:
खबर है
मैं हिंदी भाषा में लिखता हूँ. मुझे लिखना बहुत पसंद है. विशेष रूप से हिंदी तथा भारतीय भाषाओँ की तथा हॉलीवुड की फिल्मों पर. टेलीविज़न पर, यदि कुछ विशेष हो. कविता कहानी कहना भी पसंद है.
Saturday 13 May 2017
पैडमैन के साथ पैडमैन !
रील लाइफ पैडमैन के साथ रियल लाइफ पैडमैन। उस समय इस दृश्य के साक्षी बने निर्देशक आर बाल्की की फिल्म पैडमैन के सेट पर मौजूद लोग, जब अक्षय कुमार की फिल्म पेडमैन के सेट पर रियल लाइफ पैडमैन अरुणाचलम मुरुगानान्थम अपने परिवार के साथ पहुंचे। कोयम्बटूर तमिलनाडु के मुरुगुनान्थम ने लो-कॉस्ट सेनेटरी पैड मशीन की ईजाद की थी। इसके लिए २०१४ में टाइम मैगज़ीन ने उन्हें दुनिया के सौ सबसे प्रभावशाली लोगों की सूची में शामिल किया था। भारत सरकार द्वारा उन्हें २०१६ में पद्मश्री से सम्मानित किया गया। इस हस्ती पर ही फिल्मकार आर बाल्की फिल्म पैडमैन का निर्देशन कर रहे हैं। फिल्म में अक्षय कुमार पैडमैन की केंद्रीय भूमिका में हैं। इस फिल्म में अक्षय कुमार की नायिका सोनम कपूर हैं।
Labels:
खबर है
मैं हिंदी भाषा में लिखता हूँ. मुझे लिखना बहुत पसंद है. विशेष रूप से हिंदी तथा भारतीय भाषाओँ की तथा हॉलीवुड की फिल्मों पर. टेलीविज़न पर, यदि कुछ विशेष हो. कविता कहानी कहना भी पसंद है.
केली मैक्डोनाल्ड के साथ इरफ़ान खान की पजल
बिग बीच की फिल्म पजल में बॉलीवुड अभिनेता इरफ़ान खान स्कॉटिश एक्ट्रेस केली मैक्डोनाल्ड के साथ फिल्म पजल में अभिनय करेंगे। मार्क टर्टलटॅब निर्देशित इस फिल्म में डेविड डेन्मन भी अभिनय कर रहे हैं। चालीस के आसपास की उपनगर में रहने वाली एक महिला में पजल हल करने में महारत हासिल है। घर में उसका कोई कहा नहीं मानता। ऐसे में वह अपनी इस खूबी का फायदा कैसे उठाती है, यही इस फिल्म की कहानी है। पजल २०१० में रिलीज़ और बर्लिन इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में गोल्डन बेयर के लिए नामांकित निर्देशक नतालया स्मिर्नऑफ की अर्जेंटीनियन फिल्म रॉम्पेकाबेजस की रीमेक फिल्म है। फिल्म में इरफ़ान खान की भूमिका बताई नहीं गई है। वैसे इरफ़ान खान हॉलीवुड की इन्फर्नो, जुरैसिक वर्ल्ड और लाइफ ऑफ़ पइ जैसी फिल्मों से काफी मशहूर हो चुके हैं। फिल्म में उनकी नायिका केली मैक्डोनाल्ड ने हाल ही में फॉक्स सर्चलाईट की फिल्म गुडबाय क्रिस्टोफर रॉबिन और सोनी की होल्म्स वाट्सन पूरी की है। वह ऐसी प्रतिभाशाली अभिनेत्री हैं, जिनकी चार फ़िल्में एलिज़ाबेथ, गोस्फोर्ड पार्क, फाइंडिंग नेवरलैंड और नो कंट्री फॉर ओल्ड मैन ऑस्कर पुरस्कारों में श्रेष्ठ फिल्म की श्रेणी में नामित हो चुकी हैं। नो कंट्री फॉर ओल्ड मैन ने ऑस्कर भी जीता। इस फिल्म की शूटिंग इस महीने के आखिर में न्यूयॉर्क में शुरू हो जाएगी।
मैं हिंदी भाषा में लिखता हूँ. मुझे लिखना बहुत पसंद है. विशेष रूप से हिंदी तथा भारतीय भाषाओँ की तथा हॉलीवुड की फिल्मों पर. टेलीविज़न पर, यदि कुछ विशेष हो. कविता कहानी कहना भी पसंद है.
म्यामार का सुपर स्टार बॉलीवुड में
लू मिन का परिचय म्यांमार सेंसर बोर्ड के मेंबर के बतौर करना ही काफी नहीं। वह हरफनमौला हैं। वह म्यांमार अकादमी अवार्ड विजेता अंतर्राष्ट्रीय स्टार हैं। वह अपने फिल्म करियर में एक हजार फ़िल्में कर चुके हैं। यह अपने आप में एक कीर्तिमान है। वह फिल्म निर्देशक भी हैं। म्यांमार की फिल्म और टेलीविज़न इंडस्ट्री में अपनी उपस्थिति दर्ज करने के बाद बहुमुखी प्रतिभा वाले अभिनेता, निर्माता और निर्माता लू मिन अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर म्यांमार फिल्म उद्योग का विस्तार करना चाहते है। इस लिए लू
मिन अब बर्मा से बॉलीवुड की तरफ चल दिए हैं। लू मिन, म्यांमार में जॉन अब्राहिम और नाना पाटेकर की सुपर डूपर हिट फिल्म टैक्सी नंबर ९२११ का रीमेक बनाने जा रहे है। टैक्सी नंबर ९२११ एक हिट कॉमेडी, ड्रामा फिल्म है । मिन कहते हैं, "मैं सौभाग्यशाली हूँ कि मुझे इस फिल्म को म्यांमार के लिए बनाने का मौका मिल रहा है। मै चाहता हूँ कि बॉलीवुड और म्यांमार फिल्म इंडस्ट्री के बीच मजबूत सम्बन्ध और ज्यादा मज़बूत हों।" म्यामार में सिनेमाघरों की भारी कमी है। पचास लाख जनसँख्या वाले देश म्यामार में कुल ४२ सिनेमा हॉल हैं। यहाँ लोग ५ टीवी चैनल्स के द्वारा अपना मनोरंजन करते है। इससे म्यामार में पायरेसी का धंधा फलाफूला है। लू मिन के मुंबई पहुँचाने पर जोरदार स्वागत किया गया। वह कहते है- "मैंने दोनों ही देशो में सांस्कृतिक समानताएं देखी है। यहाँ का संगीत और संस्कृति मुझे आकर्षित करते है । मैं हमेशा से भारत आना चाहता था। आज मुझे यह मौका मिला है। मै अपने आप को बहुत खुशकिस्मत समझता हूँ, कि मुझे इतने प्यारे लोगों के बीच आने का सौभाग्य मिला।"
Labels:
सरहद पार
मैं हिंदी भाषा में लिखता हूँ. मुझे लिखना बहुत पसंद है. विशेष रूप से हिंदी तथा भारतीय भाषाओँ की तथा हॉलीवुड की फिल्मों पर. टेलीविज़न पर, यदि कुछ विशेष हो. कविता कहानी कहना भी पसंद है.
अब सिद्धांत कपूर बने दाऊद इब्राहिम
अभी सिद्धांत कपूर के बॉम्बे बम ब्लास्ट के दोषी भगोड़े डॉन दाऊद इब्राहिम के स्वांग वाले चित्र मीडिया पर पसरे पड़े थे। इन चित्रों के साथ यह भी बताया गया था कि सिद्धांत ने रोल के गेटअप में अपने पिता और हिंदी फिल्मों के खलनायक शक्ति कपूर के सनग्लासेस और सूट का उपयोग किया था। बताते चलें कि सिद्धांत कपूर का यह दाऊद अवतार अपूर्व लखिया की गैंगस्टर ड्रामा फिल्म हसीना के लिए हुआ था। इस फिल्म में उनकी बड़ी बहन श्रद्धा कपूर गैंगस्टर दाऊद इब्राहिम की बहन हसीना पार्कर का किरदार कर रही हैं। सिद्धांत उनके रील लाइफ भाई दाऊद इब्राहिम का किरदार कर रहे हैं।
बात यह नहीं है कि सिद्धांत अपने रोल के लिए क्या और कैसा गेटअप इस्तेमाल किया और कैसे किया ? इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि सिद्धांत ने अपने विलेन के किरदार के लिए अपने पूर्व विलेन पिता की वस्तुएं इस्तेमाल की। सिर्फ गेटअप से किरदार पर कोई फर्क नहीं पड़ता है। सवाल यह है कि सिद्धांत कपूर रियल लाइफ करैक्टर, जिससे ज़्यादातर हिंदुस्तानी नफ़रत करते हैं, कितना वास्तविक या रियल कर पाते हैं ? सिद्धांत कपूर के सामने कई रील लाइफ दाऊद इब्राहिम हैं, जिन्हे बॉलीवुड के कई छोटे बड़े अभिनेताओं ने किया। क्या अपनी पहली ही फिल्म से वह अपने वरिष्ठ अभिनेताओं के दाऊद को चुनौती दे पाएंगे ? आइये जानने की कोशिश करते हैं ब्लैक फ्राइडे से लेकर हसीना तक के दाऊद और इस करैक्टर को करने वाले अभिनेताओं के बारे में। यह अभिनेता अपने करैक्टर को कितना प्रभावशाली बना पाए ?
ब्लैक फ्राइडे का दाऊद विजय मौर्या
बॉलीवुड के अपराध फिल्मों के निर्माताओं में से एक अनुराग कश्यप की इस मामले में तारीफ की जाती है कि उन्होंने पहली बार अपनी फिल्म ब्लैक फ्राइडे (२००४) में दाऊद इब्राहिम का उसके नाम से चित्रण किया। इससे पहले कोई भी फिल्म निर्माता इतना साहस नहीं बटोर पाता था कि दाऊद इब्राहिम को बुरे किरदार में चित्रित कर सके। १९९३ के बॉम्बे सीरियल बम ब्लास्ट पर अपनी इस फिल्म में दाऊद इब्राहिम को चिन्हित और इंगित किया था। हालाँकि, यह फिल्म लम्बे समय तक सेंसर के लफड़े में फंसी रही। लेकिन, इसके पीछे दाऊद इब्राहिम का ज़िक्र कारण नहीं था। फिल्म में दाऊद का किरदार अभिनेता और लेखक विजय मौर्या ने किया था। विजय ने अपने करियर की बड़ी शुरुआत रामगोपाल वर्मा की फिल्म सत्या में कल्लू मामा के गैंग के सदस्य के बतौर की थी। वह अब तक २४ फ़िल्में कर चुके हैं। डॉन के किरदार में विजय मौर्या के अभिनय की तारीफ हुई। वह रियल डॉन के काफी करीब लग रहे थे।
बात यह नहीं है कि सिद्धांत अपने रोल के लिए क्या और कैसा गेटअप इस्तेमाल किया और कैसे किया ? इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि सिद्धांत ने अपने विलेन के किरदार के लिए अपने पूर्व विलेन पिता की वस्तुएं इस्तेमाल की। सिर्फ गेटअप से किरदार पर कोई फर्क नहीं पड़ता है। सवाल यह है कि सिद्धांत कपूर रियल लाइफ करैक्टर, जिससे ज़्यादातर हिंदुस्तानी नफ़रत करते हैं, कितना वास्तविक या रियल कर पाते हैं ? सिद्धांत कपूर के सामने कई रील लाइफ दाऊद इब्राहिम हैं, जिन्हे बॉलीवुड के कई छोटे बड़े अभिनेताओं ने किया। क्या अपनी पहली ही फिल्म से वह अपने वरिष्ठ अभिनेताओं के दाऊद को चुनौती दे पाएंगे ? आइये जानने की कोशिश करते हैं ब्लैक फ्राइडे से लेकर हसीना तक के दाऊद और इस करैक्टर को करने वाले अभिनेताओं के बारे में। यह अभिनेता अपने करैक्टर को कितना प्रभावशाली बना पाए ?
ब्लैक फ्राइडे का दाऊद विजय मौर्या
बॉलीवुड के अपराध फिल्मों के निर्माताओं में से एक अनुराग कश्यप की इस मामले में तारीफ की जाती है कि उन्होंने पहली बार अपनी फिल्म ब्लैक फ्राइडे (२००४) में दाऊद इब्राहिम का उसके नाम से चित्रण किया। इससे पहले कोई भी फिल्म निर्माता इतना साहस नहीं बटोर पाता था कि दाऊद इब्राहिम को बुरे किरदार में चित्रित कर सके। १९९३ के बॉम्बे सीरियल बम ब्लास्ट पर अपनी इस फिल्म में दाऊद इब्राहिम को चिन्हित और इंगित किया था। हालाँकि, यह फिल्म लम्बे समय तक सेंसर के लफड़े में फंसी रही। लेकिन, इसके पीछे दाऊद इब्राहिम का ज़िक्र कारण नहीं था। फिल्म में दाऊद का किरदार अभिनेता और लेखक विजय मौर्या ने किया था। विजय ने अपने करियर की बड़ी शुरुआत रामगोपाल वर्मा की फिल्म सत्या में कल्लू मामा के गैंग के सदस्य के बतौर की थी। वह अब तक २४ फ़िल्में कर चुके हैं। डॉन के किरदार में विजय मौर्या के अभिनय की तारीफ हुई। वह रियल डॉन के काफी करीब लग रहे थे।
रामगोपाल वर्मा की कंपनी और डी
रामगोपाल वर्मा की फिल्म कंपनी (२००२) की कहानी विशुद्ध रूप से दाऊद इब्राहिम से प्रेरित थी। लेकिन, वर्मा ने अपने किरदारों के नाम बदल दिए थे। अजय देवगन ने फिल्म में दाऊद के रील लाइफ मलिक का किरदार किया था। इस फिल्म से छोटा राजन के रोल (चंदू) में विवेक ओबेरॉय का बॉलीवुड डेब्यू हुआ था। अजय देवगन ने दाऊद के रील लाइफ किरदार का वास्तविक चित्रण किया था। आठ साल बाद अजय देवगन दाऊद के गुरु हाजी मस्तान का किरदार सुल्तान मिर्ज़ा को फिल्म वन्स अपॉन अ टाइम इन मुंबई में कर रहे थे। निर्माता रामगोपाल वर्मा की क्राइम फिल्म 'डी' का निर्देशन विश्राम सावंत ने किया था। इस फिल्म में डी का मतलब देशु था। यह फिल्म का नायक था। लेकिन, जिस घटनाक्रम से इसका जिक्र हुआ था, वह काफी कुछ दाऊद इब्राहिम से प्रेरित था। रणदीप हुडा की बतौर नायक पहली फिल्म थी। इस किरदार के लिए रणदीप की प्रशंसा हुई।
दाऊद बनने का 'रिस्क' लिया विनोद खन्ना ने
कोई पांच साल के अंतराल के बाद एक्टर विनोद खन्ना फिल्मों में वापसी कर रहे थे। इस वापसी के लिए उनका डॉन का करैक्टर करना काफी रिस्की था। लेकिन विनोद खन्ना ने यह रिस्क उठाया। विश्राम सावंत की फिल्म रिस्क (२००७) में वह दाऊद इब्राहिम का रील लाइफ किरदार खालिद बिन जमाल कर रहे थे। हालाँकि, रिस्क के खालिद के दाऊद इब्राहिम से प्रेरित होने से सभी इंकार कर रहे थे। लेकिन, इस फिल्म की घटनाएं दाऊद द्वारा की गई वारदातों के काफी निकट थी। विनोद खन्ना इस फ्लॉप फिल्म में अपने गैंगस्टर किरदार में काफी फबे थे।
दाऊद बनने का 'रिस्क' लिया विनोद खन्ना ने
कोई पांच साल के अंतराल के बाद एक्टर विनोद खन्ना फिल्मों में वापसी कर रहे थे। इस वापसी के लिए उनका डॉन का करैक्टर करना काफी रिस्की था। लेकिन विनोद खन्ना ने यह रिस्क उठाया। विश्राम सावंत की फिल्म रिस्क (२००७) में वह दाऊद इब्राहिम का रील लाइफ किरदार खालिद बिन जमाल कर रहे थे। हालाँकि, रिस्क के खालिद के दाऊद इब्राहिम से प्रेरित होने से सभी इंकार कर रहे थे। लेकिन, इस फिल्म की घटनाएं दाऊद द्वारा की गई वारदातों के काफी निकट थी। विनोद खन्ना इस फ्लॉप फिल्म में अपने गैंगस्टर किरदार में काफी फबे थे।
शूटआउट एट लोखंडवाला मे दाऊद का जिक्र
अपूर्व लखियाऔर निर्देशित फिल्म शूटआउट एट लोखंडवाला (२००७) १९९१ के मशहूर लोखण्डवाला शूटआउट पर थी। इस शूटआउट में खतरनाक गैंगस्टर माया डोलास पुलिस द्वारा घेर कर मार गिराया गया था। फिल्म में माया डोलास का किरदार विवेक ओबेरॉय ने किया था। इस फिल्म में ब्लैक फ्राइडे के बाद खुल कर दाऊद इब्राहिम का जिक्र किया गया था। दरअसल माया डोलास कभी दाऊद इब्राहिम का गुर्गा था। लेकिन, फिर उसने दाऊद के साथ विद्रोह कर दिया था। इस पर दाऊद ने ही उसे मरवाने की सुपारी मुंबई पुलिस को दी थी।
मिलन लुथरिया के दो दाऊद
मिलन लुथरिया ने एक ही टाइटल वाली दो फिल्मों में दो अलग अलग दाऊद इब्राहिम पेश किये थे। २०१० में रिलीज़ फिल्म वन्स अपॉन अ टाइम इन मुंबई में सत्तर के दशक में बॉम्बे में वर्चस्व के लिए स्मगलरों के टकराव की कहानी का चित्रण किया था। उनकी इस फिल्म में सुल्तान मिर्ज़ा और शोएब खान के चरित्र रियल स्मगलर हाजी मस्तान और दाऊद इब्राहिम के थे। कभी दाऊद इब्राहिम सुल्तान मिर्ज़ा का दांया हाथ हुआ करता था। लेकिन, उसकी खून खराबा करने की आदतों ने उसे सुल्तान से दूर कर दिया। फिल्म में सुल्तान मिर्ज़ा का किरदार अजय देवगन ने और दाऊद इब्राहिम का किरदार इमरान हाश्मी ने किया था। दोनों ही अभिनेता अपने किरदारों में काफी फबे थे। मिलन ने जब दाऊद इब्राहिम की बॉम्बे को दिखाने के लिए सीक्वल फिल्म वन्स अपॉन अ टाइम इन मुंबई दोबारा में कथानक को दाऊद इब्राहिम पर केंद्रित किया तो दाऊद इब्राहिम इमरान हाश्मी नहीं अक्षय कुमार बने थे। इमरान हाश्मी की जगह आये इमरान खान। उन्होंने शोएब के साथी असलम का किरदार किया था। मगर फिल्म का सीक्वल ढीली कथा-पटकथा के कारण दर्शकों को आकर्षित नहीं कर सका।
शूटआउट एट वडाला में दाऊद
संजय गुप्ता ने अपनी फिल्म शूटआउट एट वडाला (२०१३) में मुंबई के हिन्दू गैंगस्टर मान्या सुर्वे के किरदार को महिमामंडित किया था। कहानी के अनुसार मान्या सुर्वे की ताक़त से घबड़ा कर दाऊद इब्राहिम ने पुलिस की मदद से वडाला के कॉलेज में उसका एनकाउंटर करवा दिया था। इस फिल्म में जॉन अब्राहम मान्या सुर्वे बने थे तथा दाऊद इब्राहिम और उसके बड़े भाई साबिर का किरदार सोनू सूद और मनोज बाजपेई ने किया था। यह दोनों ही ज़बरदस्त अभिनेता हैं। इन दोनों ने अपने किरदार बखूबी अंजाम दिए थे। अब यह बात दीगर है कि फिल्म को सेंसर बोर्ड के पचड़े से बचाने के लिए संजय गुप्ता ने इन दोनों किरदारों के नाम दिलावर और ज़ुबैर कर दिए।
जब चॉकलेटी ऋषि कपूर बने दाऊद
निखिल आडवाणी की फिल्म डी-डे (२०१३) भारत के रॉ एजेंट द्वारा दाऊद इब्राहिम का अपहरण कर भारत लाने के काल्पनिक मिशन पर फिल्म थी। फिल्म में दाऊद के रील करैक्टर गोल्डमैन का किरदार बॉलीवुड के चॉकलेटी हीरो ऋषि कपूर ने किया था। ऋषि कपूर ने दाऊद के हावभाव और चालढाल को बेहतरीन तरीके से अपनाया था। फिल्म में उनके अभिनय की प्रशंसा हुई।
दाऊद की फ्लॉप 'डी' कॉमेडी
दाऊद इब्राहिम के करैक्टर को अब तक की एक्शन थ्रिलर फिल्मों से अलग कथानक में पेश करने की कोशिश की निर्देशक विशाल मिश्रा ने। उन्होंने कॉफ़ी विथ डी में एक पत्रकार द्वारा दाऊद इब्राहिम के लाइव इंटरव्यू को कॉमेडी के सहारे दर्शाने की कोशिश की थी। फिल्म में सुनील ग्रोवर ने रील लाइफ अर्नब गोस्वामी का किरदार किया था, जो दाऊद से लाइव इंटरव्यू करना चाहता है। फिल्म में डी यानि दाऊद का किरदार अभिनेता ज़ाकिर हुसैन ने किया था। लेकिन, ढीली ढाली कथानक वाली यह फिल्म फ्लॉप हो गई थी।
उपरोक्त रील लाइफ डी करैक्टरों पर बात करने से यह साफ हो जाता है कि दाऊद का किरदार करने के अपने खतरे हैं। इस करैक्टर से लाउड होने की आज़ादी नहीं ली जा सकती। इसका मज़ाक उड़ाना तो खतरनाक होगा। अजय देवगन और ऋषि कपूर जैसे अभिनेताओं ने इसे काफी संतुलित हो कर किया। नतीजे के तौर पर इनकी फिल्मों को सफलता मिली। देखने वाली बात होगी कि सिद्धांत कपूर रील लाइफ दाऊद बन कर अपनी रील लाइफ में भी बहन हसीना को कितनी मदद कर पाते हैं। क्योंकि, सिद्धांत का सशक्त अभिनय श्रद्धा के हसीना के किरदार को उभारने में मदद करेगा।
अपूर्व लखियाऔर निर्देशित फिल्म शूटआउट एट लोखंडवाला (२००७) १९९१ के मशहूर लोखण्डवाला शूटआउट पर थी। इस शूटआउट में खतरनाक गैंगस्टर माया डोलास पुलिस द्वारा घेर कर मार गिराया गया था। फिल्म में माया डोलास का किरदार विवेक ओबेरॉय ने किया था। इस फिल्म में ब्लैक फ्राइडे के बाद खुल कर दाऊद इब्राहिम का जिक्र किया गया था। दरअसल माया डोलास कभी दाऊद इब्राहिम का गुर्गा था। लेकिन, फिर उसने दाऊद के साथ विद्रोह कर दिया था। इस पर दाऊद ने ही उसे मरवाने की सुपारी मुंबई पुलिस को दी थी।
मिलन लुथरिया के दो दाऊद
मिलन लुथरिया ने एक ही टाइटल वाली दो फिल्मों में दो अलग अलग दाऊद इब्राहिम पेश किये थे। २०१० में रिलीज़ फिल्म वन्स अपॉन अ टाइम इन मुंबई में सत्तर के दशक में बॉम्बे में वर्चस्व के लिए स्मगलरों के टकराव की कहानी का चित्रण किया था। उनकी इस फिल्म में सुल्तान मिर्ज़ा और शोएब खान के चरित्र रियल स्मगलर हाजी मस्तान और दाऊद इब्राहिम के थे। कभी दाऊद इब्राहिम सुल्तान मिर्ज़ा का दांया हाथ हुआ करता था। लेकिन, उसकी खून खराबा करने की आदतों ने उसे सुल्तान से दूर कर दिया। फिल्म में सुल्तान मिर्ज़ा का किरदार अजय देवगन ने और दाऊद इब्राहिम का किरदार इमरान हाश्मी ने किया था। दोनों ही अभिनेता अपने किरदारों में काफी फबे थे। मिलन ने जब दाऊद इब्राहिम की बॉम्बे को दिखाने के लिए सीक्वल फिल्म वन्स अपॉन अ टाइम इन मुंबई दोबारा में कथानक को दाऊद इब्राहिम पर केंद्रित किया तो दाऊद इब्राहिम इमरान हाश्मी नहीं अक्षय कुमार बने थे। इमरान हाश्मी की जगह आये इमरान खान। उन्होंने शोएब के साथी असलम का किरदार किया था। मगर फिल्म का सीक्वल ढीली कथा-पटकथा के कारण दर्शकों को आकर्षित नहीं कर सका।
शूटआउट एट वडाला में दाऊद
संजय गुप्ता ने अपनी फिल्म शूटआउट एट वडाला (२०१३) में मुंबई के हिन्दू गैंगस्टर मान्या सुर्वे के किरदार को महिमामंडित किया था। कहानी के अनुसार मान्या सुर्वे की ताक़त से घबड़ा कर दाऊद इब्राहिम ने पुलिस की मदद से वडाला के कॉलेज में उसका एनकाउंटर करवा दिया था। इस फिल्म में जॉन अब्राहम मान्या सुर्वे बने थे तथा दाऊद इब्राहिम और उसके बड़े भाई साबिर का किरदार सोनू सूद और मनोज बाजपेई ने किया था। यह दोनों ही ज़बरदस्त अभिनेता हैं। इन दोनों ने अपने किरदार बखूबी अंजाम दिए थे। अब यह बात दीगर है कि फिल्म को सेंसर बोर्ड के पचड़े से बचाने के लिए संजय गुप्ता ने इन दोनों किरदारों के नाम दिलावर और ज़ुबैर कर दिए।
जब चॉकलेटी ऋषि कपूर बने दाऊद
निखिल आडवाणी की फिल्म डी-डे (२०१३) भारत के रॉ एजेंट द्वारा दाऊद इब्राहिम का अपहरण कर भारत लाने के काल्पनिक मिशन पर फिल्म थी। फिल्म में दाऊद के रील करैक्टर गोल्डमैन का किरदार बॉलीवुड के चॉकलेटी हीरो ऋषि कपूर ने किया था। ऋषि कपूर ने दाऊद के हावभाव और चालढाल को बेहतरीन तरीके से अपनाया था। फिल्म में उनके अभिनय की प्रशंसा हुई।
दाऊद की फ्लॉप 'डी' कॉमेडी
दाऊद इब्राहिम के करैक्टर को अब तक की एक्शन थ्रिलर फिल्मों से अलग कथानक में पेश करने की कोशिश की निर्देशक विशाल मिश्रा ने। उन्होंने कॉफ़ी विथ डी में एक पत्रकार द्वारा दाऊद इब्राहिम के लाइव इंटरव्यू को कॉमेडी के सहारे दर्शाने की कोशिश की थी। फिल्म में सुनील ग्रोवर ने रील लाइफ अर्नब गोस्वामी का किरदार किया था, जो दाऊद से लाइव इंटरव्यू करना चाहता है। फिल्म में डी यानि दाऊद का किरदार अभिनेता ज़ाकिर हुसैन ने किया था। लेकिन, ढीली ढाली कथानक वाली यह फिल्म फ्लॉप हो गई थी।
उपरोक्त रील लाइफ डी करैक्टरों पर बात करने से यह साफ हो जाता है कि दाऊद का किरदार करने के अपने खतरे हैं। इस करैक्टर से लाउड होने की आज़ादी नहीं ली जा सकती। इसका मज़ाक उड़ाना तो खतरनाक होगा। अजय देवगन और ऋषि कपूर जैसे अभिनेताओं ने इसे काफी संतुलित हो कर किया। नतीजे के तौर पर इनकी फिल्मों को सफलता मिली। देखने वाली बात होगी कि सिद्धांत कपूर रील लाइफ दाऊद बन कर अपनी रील लाइफ में भी बहन हसीना को कितनी मदद कर पाते हैं। क्योंकि, सिद्धांत का सशक्त अभिनय श्रद्धा के हसीना के किरदार को उभारने में मदद करेगा।
Labels:
फिल्म पुराण
मैं हिंदी भाषा में लिखता हूँ. मुझे लिखना बहुत पसंद है. विशेष रूप से हिंदी तथा भारतीय भाषाओँ की तथा हॉलीवुड की फिल्मों पर. टेलीविज़न पर, यदि कुछ विशेष हो. कविता कहानी कहना भी पसंद है.
Wednesday 10 May 2017
अमिताभ बच्चन को तीसरी बार 'सरकार' बना पाएंगे रामगोपाल वर्मा !
यह सवाल सामायिक है। रामगोपाल वर्मा के करियर की ५२ वी फिल्म तथा अमिताभ बच्चन के साथ आठवीं फिल्म १२ मई को रिलीज़ हो रही है। सरकार राज (२००८) के ९ साल बाद रामगोपाल वर्मा एक बार फिर सरकार ३ में अमिताभ बच्चन को सरकार बना कर ला रहे हैं। नौ साल बहुत लम्बा अरसा होता है। ऐसे में रामगोपाल वर्मा का १२ साल पहले सरकार (२००५) में क्रिएट किये गए सरकार के करैक्टर को फिर परदे पर लाना कितना कामयाब होगा ? क्या वर्मा इस फिल्म के ज़रिये बिग बी को बॉक्स ऑफिस की सरकार बना पाएंगे ? वह खुद को कितना कल्पनाशील डायरेक्टर साबित कर पाएंगे ?
यह सब कुछ निर्भर करेगा वर्मा- बच्चन जोड़ी की आपसी केमिस्ट्री पर। जब रामगोपाल वर्मा अन्य अभिनेताओं के अलावा अमिताभ बच्चन के साथ फ़िल्में बनाते हैं तब वह किस हद तक डायरेक्टर होते हैं और कितना एडमायर या प्रशंसक होते हैं ? खुद रामगोपाल वर्मा ने स्वीकार किया है कि अमिताभ बच्चन की फिल्मों ने उन्हें फिल्ममेकर बनने के लिए प्रेरित किया था। रामगोपाल वर्मा ने हिंदी फिल्म निर्माण के क्षेत्र में ७ दिसंबर १९९० को रिलीज़ अपराध फिल्म शिवा से कदम रखा। यह फिल्म उनकी तेलुगु हिट फिल्म शिवा का हिंदी रीमेक थी। इस फिल्म में वह नागार्जुन का परिचय हिंदी दर्शकों से करा रहे थे। फिल्म हिट हुई। इस फिल्म के बाद नागार्जुन तो हिंदी फिल्मों के नायक बहुत सफल नहीं हुए। लेकिन रामगोपाल वर्मा गैंगस्टर फिल्मों के पकड़ रखने वाले निर्देशक बन गए।
रामगोपाल वर्मा ने १५ साल बाद, जब अमिताभ बच्चन के साथ पहली सरकार बनाई तब तक वह हिंदी दर्शकों के बीच हॉरर फिल्म रात और गैंगस्टर फिल्म द्रोही (एक बार फिर हीरो नागार्जुन) से खुद को हरफनमौला डायरेक्टर साबित कर चुके थे। रामगोपाल वर्मा पहले ऐसे डायरेक्टर थे, जिसने उर्मिला मातोंडकर और आमिर खान के साथ फिल्म रंगीला से फिल्मों के कॉस्ट्यूम के क्षेत्र में फैशन डिज़ाइनर की भूमिका को रेखांकित किया था । सुपर हिट रंगीला के बाद दौड़ बुरी तरह पिटी। लेकिन, उनकी निर्देशित गैंगस्टर फिल्म सत्या (१९९८) और थ्रिलर फिल्म कौन (१९९९) मील का पत्थर साबित हुई। मस्त (१९९९) और जंगल (२०००) से वर्मा की निर्देशकीय पकड़ कमज़ोर होती लगी। मगर, फिल्म कंपनी (२००२) और भूत (२००३) से वह एक बार फिर फ़ीनिक्स की तरह उभरे। नाच (२००४) जैसी क्लासिक फिल्म के बाद रामगोपाल वर्मा ने सरकार बनाई थी। इसलिए यह तो नहीं कहा जा सकता था कि रामगोपाल वर्मा को अमिताभ बच्चन के स्टारडम की सख्त ज़रुरत थी। रामगोपाल वर्मा की ज़रुरत अमिताभ बच्चन को इसलिए ज़रूर थी कि उन्हें अपनी उम्र के अनुरूप सशक्त भूमिकाओं की सख्त ज़रुरत थी। सरकार के प्रधान पुरुष के बतौर अमिताभ बच्चन को एक सशक्त भूमिका मिल गई। महाराष्ट्र के हिन्दू संगठन शिवसेना के सुप्रीमो बाल ठाकरे से इस करैक्टर की तुलना ने फिल्म को ज़बरदस्त प्रचार दिया। फिल्म हिट हो गई।
रामगोपाल वर्मा और अमिताभ बच्चन के लिए सरकार हिट होने का मतलब सफल सरकार फ्रैंचाइज़ी बनना ज़रूर था। यह सफलता सरकार सीरीज की फिल्मों के निर्माण लिहाज़ से ख़ास थी । लेकिन, इन दोनों डायरेक्टर- निर्देशक के लिहाज़ से ख़ास था सरकार करैक्टर। यह चरित्र अमिताभ बच्चन के १९७० और १९८० के दशक के एंग्रीयंगमैन के समान था। वह बीच सड़क पर वर्दी उतार कर गुंडों से नहीं भिड़ता था, लेकिन अपने घर के आलीशान कमरे में बैठा अपने गुर्गों की मदद से मज़लूमों की मदद ज़रूर करता था। बहुत कम और धीमी आवाज़ में बोलने वाला यह करैक्टर किसी लिहाज़ से एंग्रीयंगमैन से कम नहीं था।
अमिताभ बच्चन के एंग्रीयंगमैन को ख़त्म हुए एक दशक से ज़्यादा हो रहा है। सरकार को भी पहली बार परदे पर आये १२ साल हो चुके हैं। ऐसे में सरकार राज के आठ साल बाद सरकार ३ बनाने की क्या वजह है ? क्या अपने कमरे में बैठ कर सरकार इतना थ्रिल पैदा कर सकेगा कि दर्शक सिनेमाघरों तक पहुंचे ? सरकार ३ के प्री रिलीज़ प्रमोशन के दौरान रामगोपाल वर्मा से यह सवाल पूछा गया था। यह कहना ज़्यादा सही होगा कि सरकार ३ से दर्शकों का परिचय कराने की पहल रामगोपाल वर्मा ने फेसबुक पर पोस्ट के ज़रिये की थी। इसमें उन्होंने खुद से खुद पूछा था कि सरकार ३ बनाने की क्या ज़रुरत पड़ गई थी ? अपने सवाल के जवाब में रामगोपाल वर्मा ने लिखा था, "मैंने सरकार राज बनाते समय एक गलती की थी। मैंने सरकार के करैक्टर को डाउनप्ले किया था। मैंने शंकर (अभिषेक बच्चन का चरित्र) को ज़्यादा महत्व दिया। मैं यह भूल गया कि सरकार इसलिए सरकार था कि वह सरकार था। मुझे इस गलती के लिए शंकर को सरकार में ढालना चाहिए था, लेकिन मैंने इस करैक्टर को ही मार डाला।" सरकार ३ में तमाम दूसरे करैक्टर हैं। माइकल वाळल्या (जैकी श्रॉफ), गोकुल साटम (रोनित रॉय), गोरख रामपुर (भारत दाभोलकर) और रुक्कू बाई देवी (रोहिणी हट्टंगड़ी) जैसे बहुत से करैक्टर हैं। यह सभी बुरे चरित्र है, जो सुभाष नागरे उर्फ़ सरकार के दुश्मन हैं। इस गिरोह से ज़्यादा खतरनाक है अन्नू करकरे (यामी गौतम) जो सुभाष नागरे से अपने पिता की ह्त्या का बदला लेने के लिए किसी भी हद तक जा सकती है। कोढ़ पे खाज का काम करता है सरकार का पोता शिवजी नागरे उर्फ़ चीकू (अमित साध) जो उद्यंड युवा है और घमंडी भी। सरकार को इन सभी से निबटना है। केवल इसलिए नहीं कि उसे परिवार बचाना है। उसे इन सब की महत्वाकांक्षाओं से दो दो हाथ करने हैं। रामगोपाल वर्मा कहते हैं, "इस प्रक्रिया में सरकार कुछ ज़्यादा कठोर तरीके से पेश आएगा। फिल्म में सरकार जितना देखने में आकर्षक लगेगा, उतना ही बर्बर उसके कारनामे होंगे।"
सरकार राज और सरकार ३ के बीच के अंतराल में रामगोपाल वर्मा और अमिताभ बच्चन रण और डिपार्टमेंट जैसी फिल्मों में नज़र आये थे। निःशब्द, रामगोपाल वर्मा की आग और सरकार राज में अमिताभ बच्चन के चरित्रों के विकास से बुरी तरह से निराश दर्शकों को रण में अमिताभ बच्चन का एक चैनल के मालिक विजय हर्षवर्द्धन मलिक और डिपार्टमेंट में एक गैंगस्टर गायकवाड़ का किरदार काफी उबाऊ और कमज़ोर लगा। इन सभी फिल्मों में अमिताभ बच्चन का अभिनेता रामगोपाल वर्मा के निर्देशक पर भारी था। दरअसल, जब रामगोपाल वर्मा का निर्देशक अमिताभ बच्चन के अभिनेता को नियंत्रित कर लेता है तो सरकार जैसी मील का पत्थर फिल्म बन जाती है। लेकिन, जैसे ही वह अमिताभ बच्चन के अभिनेता का प्रशंसक बनता है, पूरी फिल्म हाथ से निकल जाती है।
सरकार राज में सरकार के करैक्टर के साथ गलती कर चुके रामगोपाल वर्मा सरकार ३ में इस गलती को सुधार रहे हैं। वह सरकार को अपने चारों और फैली बुरी ताकतों से लौह हाथों से निबटने देंगे । लेकिन, क्या ऐसे समय में भी रामगोपाल वर्मा डायरेक्टर बने रहे होंगे ? क्या उन्होंने अमिताभ बच्चन के अभिनेता को नियंत्रित किया होगा ? अगर रामगोपाल वर्मा ने अमिताभ बच्चन को ऎसी निगेटिव भूमिका में लाउड नहीं होने दिया तो समझिये कि रामगोपाल वर्मा ने सरकार राज में की अपनी गलती सुधार ली है। अन्यथा, अपने निर्देशक के 'डिपार्टमेंट' में बुरी तरह घिर चुके रामगोपाल वर्मा सरकार के 'रण' में खेत रहेंगे।
यह सब कुछ निर्भर करेगा वर्मा- बच्चन जोड़ी की आपसी केमिस्ट्री पर। जब रामगोपाल वर्मा अन्य अभिनेताओं के अलावा अमिताभ बच्चन के साथ फ़िल्में बनाते हैं तब वह किस हद तक डायरेक्टर होते हैं और कितना एडमायर या प्रशंसक होते हैं ? खुद रामगोपाल वर्मा ने स्वीकार किया है कि अमिताभ बच्चन की फिल्मों ने उन्हें फिल्ममेकर बनने के लिए प्रेरित किया था। रामगोपाल वर्मा ने हिंदी फिल्म निर्माण के क्षेत्र में ७ दिसंबर १९९० को रिलीज़ अपराध फिल्म शिवा से कदम रखा। यह फिल्म उनकी तेलुगु हिट फिल्म शिवा का हिंदी रीमेक थी। इस फिल्म में वह नागार्जुन का परिचय हिंदी दर्शकों से करा रहे थे। फिल्म हिट हुई। इस फिल्म के बाद नागार्जुन तो हिंदी फिल्मों के नायक बहुत सफल नहीं हुए। लेकिन रामगोपाल वर्मा गैंगस्टर फिल्मों के पकड़ रखने वाले निर्देशक बन गए।
रामगोपाल वर्मा ने १५ साल बाद, जब अमिताभ बच्चन के साथ पहली सरकार बनाई तब तक वह हिंदी दर्शकों के बीच हॉरर फिल्म रात और गैंगस्टर फिल्म द्रोही (एक बार फिर हीरो नागार्जुन) से खुद को हरफनमौला डायरेक्टर साबित कर चुके थे। रामगोपाल वर्मा पहले ऐसे डायरेक्टर थे, जिसने उर्मिला मातोंडकर और आमिर खान के साथ फिल्म रंगीला से फिल्मों के कॉस्ट्यूम के क्षेत्र में फैशन डिज़ाइनर की भूमिका को रेखांकित किया था । सुपर हिट रंगीला के बाद दौड़ बुरी तरह पिटी। लेकिन, उनकी निर्देशित गैंगस्टर फिल्म सत्या (१९९८) और थ्रिलर फिल्म कौन (१९९९) मील का पत्थर साबित हुई। मस्त (१९९९) और जंगल (२०००) से वर्मा की निर्देशकीय पकड़ कमज़ोर होती लगी। मगर, फिल्म कंपनी (२००२) और भूत (२००३) से वह एक बार फिर फ़ीनिक्स की तरह उभरे। नाच (२००४) जैसी क्लासिक फिल्म के बाद रामगोपाल वर्मा ने सरकार बनाई थी। इसलिए यह तो नहीं कहा जा सकता था कि रामगोपाल वर्मा को अमिताभ बच्चन के स्टारडम की सख्त ज़रुरत थी। रामगोपाल वर्मा की ज़रुरत अमिताभ बच्चन को इसलिए ज़रूर थी कि उन्हें अपनी उम्र के अनुरूप सशक्त भूमिकाओं की सख्त ज़रुरत थी। सरकार के प्रधान पुरुष के बतौर अमिताभ बच्चन को एक सशक्त भूमिका मिल गई। महाराष्ट्र के हिन्दू संगठन शिवसेना के सुप्रीमो बाल ठाकरे से इस करैक्टर की तुलना ने फिल्म को ज़बरदस्त प्रचार दिया। फिल्म हिट हो गई।
रामगोपाल वर्मा और अमिताभ बच्चन के लिए सरकार हिट होने का मतलब सफल सरकार फ्रैंचाइज़ी बनना ज़रूर था। यह सफलता सरकार सीरीज की फिल्मों के निर्माण लिहाज़ से ख़ास थी । लेकिन, इन दोनों डायरेक्टर- निर्देशक के लिहाज़ से ख़ास था सरकार करैक्टर। यह चरित्र अमिताभ बच्चन के १९७० और १९८० के दशक के एंग्रीयंगमैन के समान था। वह बीच सड़क पर वर्दी उतार कर गुंडों से नहीं भिड़ता था, लेकिन अपने घर के आलीशान कमरे में बैठा अपने गुर्गों की मदद से मज़लूमों की मदद ज़रूर करता था। बहुत कम और धीमी आवाज़ में बोलने वाला यह करैक्टर किसी लिहाज़ से एंग्रीयंगमैन से कम नहीं था।
अमिताभ बच्चन के एंग्रीयंगमैन को ख़त्म हुए एक दशक से ज़्यादा हो रहा है। सरकार को भी पहली बार परदे पर आये १२ साल हो चुके हैं। ऐसे में सरकार राज के आठ साल बाद सरकार ३ बनाने की क्या वजह है ? क्या अपने कमरे में बैठ कर सरकार इतना थ्रिल पैदा कर सकेगा कि दर्शक सिनेमाघरों तक पहुंचे ? सरकार ३ के प्री रिलीज़ प्रमोशन के दौरान रामगोपाल वर्मा से यह सवाल पूछा गया था। यह कहना ज़्यादा सही होगा कि सरकार ३ से दर्शकों का परिचय कराने की पहल रामगोपाल वर्मा ने फेसबुक पर पोस्ट के ज़रिये की थी। इसमें उन्होंने खुद से खुद पूछा था कि सरकार ३ बनाने की क्या ज़रुरत पड़ गई थी ? अपने सवाल के जवाब में रामगोपाल वर्मा ने लिखा था, "मैंने सरकार राज बनाते समय एक गलती की थी। मैंने सरकार के करैक्टर को डाउनप्ले किया था। मैंने शंकर (अभिषेक बच्चन का चरित्र) को ज़्यादा महत्व दिया। मैं यह भूल गया कि सरकार इसलिए सरकार था कि वह सरकार था। मुझे इस गलती के लिए शंकर को सरकार में ढालना चाहिए था, लेकिन मैंने इस करैक्टर को ही मार डाला।" सरकार ३ में तमाम दूसरे करैक्टर हैं। माइकल वाळल्या (जैकी श्रॉफ), गोकुल साटम (रोनित रॉय), गोरख रामपुर (भारत दाभोलकर) और रुक्कू बाई देवी (रोहिणी हट्टंगड़ी) जैसे बहुत से करैक्टर हैं। यह सभी बुरे चरित्र है, जो सुभाष नागरे उर्फ़ सरकार के दुश्मन हैं। इस गिरोह से ज़्यादा खतरनाक है अन्नू करकरे (यामी गौतम) जो सुभाष नागरे से अपने पिता की ह्त्या का बदला लेने के लिए किसी भी हद तक जा सकती है। कोढ़ पे खाज का काम करता है सरकार का पोता शिवजी नागरे उर्फ़ चीकू (अमित साध) जो उद्यंड युवा है और घमंडी भी। सरकार को इन सभी से निबटना है। केवल इसलिए नहीं कि उसे परिवार बचाना है। उसे इन सब की महत्वाकांक्षाओं से दो दो हाथ करने हैं। रामगोपाल वर्मा कहते हैं, "इस प्रक्रिया में सरकार कुछ ज़्यादा कठोर तरीके से पेश आएगा। फिल्म में सरकार जितना देखने में आकर्षक लगेगा, उतना ही बर्बर उसके कारनामे होंगे।"
सरकार राज और सरकार ३ के बीच के अंतराल में रामगोपाल वर्मा और अमिताभ बच्चन रण और डिपार्टमेंट जैसी फिल्मों में नज़र आये थे। निःशब्द, रामगोपाल वर्मा की आग और सरकार राज में अमिताभ बच्चन के चरित्रों के विकास से बुरी तरह से निराश दर्शकों को रण में अमिताभ बच्चन का एक चैनल के मालिक विजय हर्षवर्द्धन मलिक और डिपार्टमेंट में एक गैंगस्टर गायकवाड़ का किरदार काफी उबाऊ और कमज़ोर लगा। इन सभी फिल्मों में अमिताभ बच्चन का अभिनेता रामगोपाल वर्मा के निर्देशक पर भारी था। दरअसल, जब रामगोपाल वर्मा का निर्देशक अमिताभ बच्चन के अभिनेता को नियंत्रित कर लेता है तो सरकार जैसी मील का पत्थर फिल्म बन जाती है। लेकिन, जैसे ही वह अमिताभ बच्चन के अभिनेता का प्रशंसक बनता है, पूरी फिल्म हाथ से निकल जाती है।
सरकार राज में सरकार के करैक्टर के साथ गलती कर चुके रामगोपाल वर्मा सरकार ३ में इस गलती को सुधार रहे हैं। वह सरकार को अपने चारों और फैली बुरी ताकतों से लौह हाथों से निबटने देंगे । लेकिन, क्या ऐसे समय में भी रामगोपाल वर्मा डायरेक्टर बने रहे होंगे ? क्या उन्होंने अमिताभ बच्चन के अभिनेता को नियंत्रित किया होगा ? अगर रामगोपाल वर्मा ने अमिताभ बच्चन को ऎसी निगेटिव भूमिका में लाउड नहीं होने दिया तो समझिये कि रामगोपाल वर्मा ने सरकार राज में की अपनी गलती सुधार ली है। अन्यथा, अपने निर्देशक के 'डिपार्टमेंट' में बुरी तरह घिर चुके रामगोपाल वर्मा सरकार के 'रण' में खेत रहेंगे।
Labels:
फिल्म पुराण
मैं हिंदी भाषा में लिखता हूँ. मुझे लिखना बहुत पसंद है. विशेष रूप से हिंदी तथा भारतीय भाषाओँ की तथा हॉलीवुड की फिल्मों पर. टेलीविज़न पर, यदि कुछ विशेष हो. कविता कहानी कहना भी पसंद है.
द्वितीय विश्वयुद्ध पर क्रिस्टोफर नोलान की फिल्म
आधुनिक दुनिया में द डार्क नाइट ट्राइलॉजी के डायरेक्टर के बतौर मशहूर क्रिस्टोफर नोलान अपनी जड़ों की तरफ लौटते लगते हैं। फॉलोइंग (१९९८) जैसी अपराध फिल्म से निर्देशन के क्षेत्र में कदम रखने वाले क्रिस्टोफर नोलान ने मेमेंटो (इस फिल्म का रीमेक हिंदी फिल्म गजिनी थी) जैसी साइकोलॉजिकल थ्रिलर और द प्रेस्टीज जैसी रहस्य ड्रामा फिल्म भी बनाई है। ऐसे में जबकि वह इंटरस्टेलर और इन्सेप्शन जैसी फिल्मों से काल्पनिक नायकों नायकों की दुनिया में खोते नज़र आ रहे थे, द्वितीय विश्वयुद्ध पर उनकी फिल्म डंकिर्क उन्हें यथार्थ के धरातल पर विचरते दिखाने वाली फिल्म बन जाती है। यह फिल्म दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान (१९४० में) डंकिर्क के समुद्री किनारे पर फंसे मित्र राष्ट्रों के चार लाख सैनिकों को बाहर निकालने की वास्तविक कहानी है। इस फिल्म में टॉम हार्डी, मार्क रयलांस, केनेथ ब्रना, सिलियन मर्फी, फिओन वाइटहेड, अनेउरिन बर्नार्ड, जेम्स डार्सी, जैक लौडेन, बैरी कोहन, टॉम ग्लीन-करने और हैरी स्टाइल्स द्वितीय विश्वयुद्ध के वास्तविक और काल्पनिक किरदारों में हैं। डंकिर्क २१ जुलाई को पूरी दुनिया में रिलीज़ हो रही है।
Labels:
Hollywood
मैं हिंदी भाषा में लिखता हूँ. मुझे लिखना बहुत पसंद है. विशेष रूप से हिंदी तथा भारतीय भाषाओँ की तथा हॉलीवुड की फिल्मों पर. टेलीविज़न पर, यदि कुछ विशेष हो. कविता कहानी कहना भी पसंद है.
अगले साल रिलीज़ होंगी एक्स-मेन से जुडी तीन फ़िल्में
ट्वेंटिएथ सेंचुरी फॉक्स ने आधिकारिक रूप से पुष्टि कर दी है कि उनके द्वारा तीन एक्स-मेन करैक्टर वाली फ़िल्में रिलीज़ की जाएँगी। पहली फिल्म द न्यू म्यूटेंट्स १३ अप्रैल को रिलीज़ होगी। यह फिल्म प्रशिक्षण ले रहे किशोर म्यूटेंट्स सुपरहीरोज़ के एक समूह की कहानी है। इस फिल्म के म्यूटेंट्स मार्वल सीरीज की तीन अलग अलग कॉमिक बुक से लिए गए हैं। यह म्यूटेंट्स एक दूसरे के विरोधी भी हैं और खुद पर मुसीबत आने पर एक दूसरे की मदद भी करते हैं । इस कॉमिक बुक सीरीज में भरपूर एक्शन और एडवेंचर था। इससे नई फिल्म में दर्शकों को काफी रोमांचकारी एक्शन देखने को मिलेंगे। इस फिल्म से केबल और डेडपूल का परिचय भी होगा। फिल्म का निर्देशन जॉश बून करेंगे। दूसरी फिल्म डेडपूल २ अगले साल ही ०१ जून को रिलीज़ होगी। इस फिल्म वेड विल्सन में कपट प्रयोग के बाद हीलिंग पावर में बढ़ोतरी हो जाती है। वह अपने सूक्ष्म शरीर डेडपल में प्रवेश कर जाता है। डेडपूल इस फिल्म में केबल और डॉमिनो की रहस्यमय म्युटेंट जोड़ी का सामना करेगा। इस फिल्म में दूसरी बार डेविड लीच डेडपूल अभिनेता रयान रेनॉल्ड्स को निर्देशित करेंगे। तीसरी एक्स-मेन करैक्टर फिल्म डार्क फ़ीनिक्स २ नवंबर को रिलीज़ होगी। जीन ग्रे एक ओमेगा म्युटेंट हैं। उसमे ब्रह्मांडीय शक्तियां लगातार बढती जा रही हैं। निर्देशक सिमोन किनबर्ग अपनी इस फिल्म में दिखाएंगे कि प्रोफेसर एक्स और एक्स- मेन किस प्रकार ओमेगा म्यूटैंट की बुरी शक्तियों से निबटते हैं। अगले साल टेलीविज़न पर एफएक्स की सीरीज लीजन और फॉक्स पर द गिफ्टेड शुरू हो रही हैं। इन्हे मिला लिया जाए २० एक्स-मेन का ही हो जाता है।
मैं हिंदी भाषा में लिखता हूँ. मुझे लिखना बहुत पसंद है. विशेष रूप से हिंदी तथा भारतीय भाषाओँ की तथा हॉलीवुड की फिल्मों पर. टेलीविज़न पर, यदि कुछ विशेष हो. कविता कहानी कहना भी पसंद है.
Sunday 7 May 2017
धर्मेन्द्र ने ५१ रुपये में साइन की थी पहली फिल्म
क्या आप जानते हैं कि धर्मेन्द्र ने अपनी पहली फिल्म दिल भी तेरा हम भी तेरे (१९६०) मात्र ५१ रुपये में साइन की थी। इस फिल्म के निर्देशक अर्जुन हिंगोरानी थे। यह अर्जुन हिंगोरानी की बतौर निर्देशक दूसरी फिल्म थी। फिल्म में धर्मेन्द्र की नायिका कुमकुम थी। बाद में, फिल्म आँखें (१९६८) में कुमकुम और धर्मेन्द्र ने बहन और भाई का किरदार किया था। फिल्म दिल भी तेरा हम भी तेरे में बलराज साहनी मुख्य भूमिका में थे। श्वेत-श्याम रंगों में यह फिल्म बुरी तरह से असफल हुई थी। लेकिन अर्जुन हिंगोरानी और धर्मेन्द्र की जोड़ी जम गई। बाद में, इस जोड़ी ने कब क्यों और कहाँ?, कहानी किस्मत की, खेल खिलाडी का, कातिलों के कातिल और कौन करे क़ुरबानी जैसी हिट फ़िल्में की। बतौर निर्माता अर्जुन हिंगोरानी की फिल्म करिश्मा कुदरत का से अर्जुन के बेटे सुनील हिंगोरानी का बतौर निर्देशक डेब्यू हुआ। इस फिल्म में धर्मेन्द्र की नायिका अनीता राज थी। सुनील और अनीता ने बाद में शादी भी कर ली। अर्जुन हिंगोरानी को धर्मेन्द्र के साथ 'थ्री के' सीरीज की फ़िल्में बनाने के कारण काफी शोहरत मिली। लेकिन, जब इस जोड़ी ने 'थ्री के' का साथ छोड़ कर सल्तनत (निर्देशक मुकुल आनंद) बनाई तो फिल्म बुरी तरह से असफल हुई। सल्तनत से मिस इंडिया जूही चावला का डेब्यू हुआ था। फिल्म में पिता धर्मेन्द्र की बेटे सनी के साथ जोड़ी बनी थी।
दिल भी तेरा हम भी तेरे (१९६०) |
Labels:
झिलमिल अतीत
मैं हिंदी भाषा में लिखता हूँ. मुझे लिखना बहुत पसंद है. विशेष रूप से हिंदी तथा भारतीय भाषाओँ की तथा हॉलीवुड की फिल्मों पर. टेलीविज़न पर, यदि कुछ विशेष हो. कविता कहानी कहना भी पसंद है.
मॉर्टल इंजिन्स में गेम ऑफ़ थ्रोन्स, एरो और रूट्स के एक्टर
वाय-ए बुक यानि यंग एडल्ट बुक मॉर्टल इंजिन्स पर निर्माता पीटर जैक्सन की फिल्म में गेम ऑफ़ थ्रोन्स के एक्टर पैट्रिक मलहिड़े, एरो के कॉलिन साल्मोन और रूट्स के रेगे- जीन पेज को भी शामिल कर लिया गया है। लेखक फिलिप रीव की चार उपन्यासों की मॉर्टल इंजिन्स सीरीज की पहली किताब भविष्य के लंदन पर है, जिसमे एक विशालकाय मशीन पर बैठे लोगों को ख़त्म हो रही दुनिया को बचाना है। इस फिल्म में चरित्रों की भरमार है। इसलिए फिल्म में उपरोक्त तीन एक्टरों के अलावा मिसफ़िट्स के रॉबर्ट शीहान के नेतृत्व में हेरा हिलमर, ह्यूगो वीविंग और स्टेफेन लँग को पहले ही शामिल किया जा चूका है। फिल्म की कहानी पारिस्थितिक और तकनीकी रूप से ख़त्म हो चुकी भविष्य की दुनिया में केवल लंदन ही ऐसा शहर है, जो इंजिनों के ज़रिये चलाया जा रहा है और लोग पृथ्वी से दूर छोटे शहरों के संसाधनों पर निर्भर हैं। एक किशोर टॉम नाट्सवर्थी नज़दीकी क्षेत्र आउटलैंड्स की एक युवती के साथ एक ऐसे रहस्य का पता लगा लेता है, जिससे विश्व व्यवस्था में बड़ा बदलाव आ जायेगा। फिल्म का निर्देशन पीटर जैक्सन के चेले क्रिस्चियन रिवर्स कर रहे हैं। एमआरसी और यूनिवर्सल की इस फिल्म की शूटिंग न्यू ज़ीलैण्ड में जारी है।
Labels:
Hollywood
मैं हिंदी भाषा में लिखता हूँ. मुझे लिखना बहुत पसंद है. विशेष रूप से हिंदी तथा भारतीय भाषाओँ की तथा हॉलीवुड की फिल्मों पर. टेलीविज़न पर, यदि कुछ विशेष हो. कविता कहानी कहना भी पसंद है.
कॉस्ट्यूम फिल्मों की चमक-दमक और भव्यता
इस शुक्रवार पूरे हिंदुस्तान में सिनेमाघरों का रूपहला पर्दा बाहुबलीमय हो जायेगा। दक्षिण के महिष्मति साम्राज्य के इस फंतासी महाकाव्य बाहुबली द बेगिनिंग का निर्माण एसएस राजामौली ने तमिल और तेलुगु में किया था। हिंदुस्तान की उस समय की सबसे महँगी (बजट १८० करोड़) फिल्म को हिंदी सहित देश की दूसरी भाषाओं में भी डब कर रिलीज़ किया गया। बाहुबली द बिगिनिंग ने वर्ल्डवाइड ६५० करोड़ का बिज़नेस किया। यह पहली गैर हिंदी भाषी फिल्म थी, जिसने १०० करोड़ से ज़्यादा का बिज़नेस किया। इससे हिंदी बेल्ट में ऐतिहासिक कॉस्ट्यूम ड्रामा फिल्मों की लोकप्रियता का संकेत मिलता था। ऐसे में क्या दावे के साथ कहा जा सकता है कि अब राजसी ऐश्वर्य वाली भव्य फिल्मों का ज़माना आ रहा है ?
पहली मूक और सवाक फिल्मों की राजसी कहानी
वास्तविकता तो यह है कि भारतीय फिल्म इंडस्ट्री की नीव ही कॉस्ट्यूम ड्रामा या राजा रजवाड़ों के कथाानकों पर फिल्मों से पड़ी। पहली भारतीय मूक फिल्म राजा हरिश्चंद्र रामायण और महाभारत में उल्लिखित राजा हरिश्चंद्र के चरित्र पर बनाई गई थी। उस समय आवाज़ न होने के कारण जाने पहचाने धार्मिक-ऐतिहासिक चरित्र ही फिल्मों का विषय हो सकते थे, ताकि दर्शक कहानी आसानी से समझ सकें । हालाँकि, उस दौर में भी कुछ सामाजिक फिल्मे बनाई गई। इसी प्रकार से पहली सवाक फिल्म आलमआरा भी काल्पनिक कुमारपुर राज्य के राजकुमार आदिल और एक जिप्सी गर्ल आलमआरा की मोहब्बत की कहानी थी। चमकदार पोशाकें, भव्य महल और राजदरबार के सेट्स इस फिल्म की खासियत थे। ज़ाहिर है कि राजसी फिल्मों का जलवा था।
मूक हो या सवाक फ़िल्में, इंडस्ट्री के शुरूआती दौर की फिल्मों में भव्यता और चमक दमक के साथ ड्रामा दिखाने के लिए राजसी या शाही फ़िल्में ही मुफीद थी। अब यह बात दीगर है कि ऐसे तमाम चरित्र धार्मिक या पौराणिक थे या ऐतिहासिक या फिर राजशाही को दर्शाने वाले काल्पनिक चरित्र।
एक ख़ास बात यह रही कि नई तकनीक को दर्शकों के बीच लोकप्रिय किया। कहा जा सकता है कि हिंदी फिल्मों में श्वे त-श्याम रंगों के अलावा अन्य रंगों को कॉस्ट्यूम ड्रामा फिल्मों अथवा ऐतिहासिक धार्मिक फिल्मों ने ही लोकप्रिय बनाया।
कॉस्ट्यूम फिल्मों से उभरे परदे पर रंग
कॉस्ट्यूम ड्रामा फिल्मों से हिंदी फिल्मों में क्रांतिकारी बदलाव हुए । हिंदी फिल्मों में रंग १९३३ में रिलीज़ वी० शांताराम निर्देशित फिल्म सैरंध्री से ही आ गए थे। महाकाव्य महाभारत की उपकथा पर आधारित फिल्म सैरंध्री मल्टीकलर में शूट हुई थी। लेकिन, जर्मनी में फिल्म की प्रोसेसिंग के दौरान इसके रंग नष्ट हो गए। इसलिए, यह फिल्म दर्शकों को परदे पर श्वेत- श्याम रंगों में ही देखने को मिली । इसके बाद १९३५ में रिलीज़ आर्देशर ईरानी की फिल्म किसान कन्या पहली कलर फिल्म बनी। इसे सिनेकलर प्रोसेस से रंगीन बनाया गया था। इस फिल्म की किसान और गरीबी की कहानी दर्शकों को रास नहीं आई। फिल्म असफल हो गई। फिर १७ साल बाद रंगों ने दर्शकों का ध्यान खींचा महबूब खान की राजसी रोमांस ड्रामा फिल्म आन (१९५२) से । आन एक काल्पनिक राज्य की बिगड़ैल राजकुमारी (नादिरा) से एक गरीब ग्रामीण युवक (दिलीप कुमार) द्वारा प्रेम करने की कहानी फिल्माई गई थी। इस फिल्म को गेवाकलर में १६ एमएम रील से शूट किया गया था। बाद में ३५ एमएम टैक्नीकलर में फैलाया गया। इस फिल्म को ज़बरदस्त सफलता मिली। इस फिल्म की निर्माण लागत ३५ लाख थी। लेकिन फिल्म ने डेढ़ करोड़ का बिज़नेस किया।
पहली टैक्नीकलर फिल्म झांसी की रानी
सोहराब मोदी की फिल्म झाँसी की रानी पहली हिंदी फिल्म थी, जो ३५ एमएम में टैक्नीकलर रंग में शूट हुई थी। इस फिल्म का छायांकन गॉन विथ द विंड के लिए ऑस्कर विजेता सिनेमेटोग्राफर अर्नेस्ट हैलर ने शूट किया था। फिल्म का संपादन इंग्लैंड से रसेल लॉयड ने किया था। जिस दशक में रंगों से सजी झनक झनक पायल बाजे (१९५५), मदर इंडिया (१९५७) और नवरंग (१९५९) बॉक्स ऑफिस पर सफल हुई, उसी दशक में सोहराब मोदी की महताब की मुख्य भूमिका वाली ऐतिहासिक कॉस्ट्यूम ड्रामा फिल्म झाँसी की रानी बुरी तरह से असफल हुई ।
मील का पत्थर साबित हुआ ऐतिहासिक कॉस्ट्यूम ड्रामा
सोहराब मोदी ने तीन ऐतिहासिक फ़िल्में पुकार (१९३९), झाँसी की रानी (१९५३) और मिर्ज़ा ग़ालिब (१९५४) बनाई थी। यह तीनों फिल्में ऐतिहासिक फिल्मों में मील का पत्थर रखने वाली मानी जाती हैं। पुकार की कहानी जहांगीर के इन्साफ पर थी। नूरजहां के तीर से एक धोबी की हत्या हो जाती है। वह इन्साफ के लिए जहांगीर का घंटा बजाती है। जहांगीर न्याय करता है कि धोबन नूरजहां के पति को मार दे। मिर्ज़ा ग़ालिब में भारत भूषण ने ग़ालिब और सुरैया ने एक नर्तकी का किरदार किया था। इस फिल्म को दूसरा राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिला था। तत्कालीन प्रधान मंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने इस फिल्म को ग़ालिब को जीवंत कर देने वाली फिल्म कहा था। कोई १६ साल बाद निर्माता जीपी सिप्पी ने जहांगीर के इसी इन्साफ को प्रदीप कुमार, मीना कुमारी और सप्रू के साथ बनाया। फिल्म का नाम था आदिल ए जहांगीर यानि जहांगीर का इन्साफ। जीपी सिप्पी ने इस फिल्म के लिए पहली बार निर्देशन की कमान सम्हाली थी। फिल्म हिट हुई। दक्षिण में भी सलीम अनारकली और अकबर की तिकड़ी का जलवा रहा।
कॉस्टयूम ड्रामा फिल्मों के-
वाडिया बंधु
जीबीएच वाडिया के नाम से मशहूर जमशेदजी बोमन होमी वाडिया ने १९३३ में वाडिया मूवीटोन स्टूडियो की स्थापना की। उन्होंने अपने एक्टिव करियर में स्टंट (हंटरवाली, हरिकेन हंसा, मिस फ्रंटियर मेल), फैन्टसी (लाल ए यमन, नूर ए यमन) और माइथोलॉजिकल (श्रीगणेश, लव कुश, सम्पूर्ण रामायण) फिल्मों का निर्माण किया। उनके भाई होमी वाडिया की पहचान एक्शन फैन्टसी कॉस्ट्यूम फिल्मों से बनी। उन्होंने आम जनता की भलाई के लिए अपना राजपाट छोड़ देने वाली राजकुमारी पर फिल्म द प्रिंसेस एंड द हंटर से फिल्म निर्देशन की शुरुआत की। उन्होंने, जंगल प्रिंसेस, शेर-ए- बग़दाद, रामभक्त हनुमान, श्री गणेश महिमा, हनुमान पाताल विजय, अलादीन और जादुई चिराग, अलीबाबा एंड ४० थीव्स, हातिमताई, ज़बक, चार दरवेश, श्री कृष्ण लीला, एडवेंचर ऑफ़ अलादीन जैसी माइथोलॉजिकल फ़न्तासी कॉस्ट्यूम फ़िल्में बनाई।
गुजरात के भट्ट
फिल्मों के शुरूआती दौर में गुजरात के भट्ट महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। पहले भट्ट यानि विजय भट्ट १९२० के दशक में भावनगर से बॉम्बे आये थे। उन्होंने बतौर पटकथा लेखक फिल्मों में कदम रखा। उन्हें हिन्दुओं के ईष्ट भगवान् राम और सीता पर फिल्म रामराज्य (१९४३) ने अमर कर दिया। यह फिल्म बड़ी हिट फिल्म थी ही, यह ऎसी इकलौती फिल्म थी, जिसे महात्मा गांधी ने देखा था। उन्होंने नरसि भगत, भरत मिलाप, विक्रमादित्य, रामबाण, बैजू बावरा, श्री चैतन्य महाप्रभु, बाल रामायण, अंगुलिमाल, आदि माइथोलॉजिकल और ऐतिहासिक कॉस्ट्यूम ड्रामा फिल्मों के लिए याद किया जाता है। पोरबंदर में जन्मे नानाभाई भट्ट ने ज़्यादातर क्राइम एक्शन फ़िल्में बनाई। परन्तु, उनकी माइथोलॉजिकल कॉस्ट्यूम फिल्में मीराबाई, वीर घटोत्कच, जन्माष्टमी, राम जनम, लव कुश, लक्ष्मी नारायण और फ़न्तासी कॉस्ट्यूम फिल्मों सिंदबाद जहाजी, बग़दाद और सन ऑफ़ सिंदबाद जैसी फ़िल्में कॉस्ट्यूम ड्रामा फिल्में यादगार हैं।
हिंदी फिल्मों के प्रिंस थे प्रदीप कुमार
हिंदी फिल्मों में काम करने के लिये बंगाली अभिनेता प्रदीप कुमार प्रदीप कुमार ने अपनी भूमिकाओं के लिए अपनी उर्दू को माजा । उनकी पहली हिंदी फिल्म आनंदमठ (१९५२) थी। भारतीय स्वतंत्र संग्राम के १८ वी शताब्दी के संन्यासी विद्रोह पर इस फिल्म में प्रदीप कुमार ने एक युवा संन्यासी का किरदार किया था। प्रदीप कुमार अच्छी कद काठी, तलवार कट मूछों और राजसी भावभंगिमाओं के कारण हिंदी फिल्मों में राजसी भूमिकाओं के उपयुक्त मान लिए गए। उन्हें यह दर्ज़ा दिलवाया १९५३ में रिलीज़ फिल्म अनारकली ने। इस फिल्म में प्रदीप कुमार ने शहज़ादा सलीम का किरदार किया था। फिल्म बड़ी हिट साबित हुई। प्रदीप कुमार ने बादशाह, राज हठ, दुर्गेश नंदिनी, हीर, यहूदी की लड़की, चित्रलेखा, बहु बेगम, महाभारत और रज़िया सुल्तान में राजसी किरदार किये थे। हालाँकि, उन्होंने काफी सोशल फ़िल्में की। लेकिन वह यादगार हुए अनारकली के जहांगीर और ताजमहल के शाहजहां के किरदार से।
ऐतिहासिक फिल्मों की शाहकार
निर्माता निर्देशक के आसिफ ने केवल दो फिल्मों फूल और मुग़ल ए आज़म का निर्माण-निर्देशन किया। मुग़ल ए आज़म को परदे पर आने में १५ साल लगे। इस फिल्म की परिकल्पना १९४५ में की गई थी। कई कलाकारों से गुजरते हुए, इस फिल्म को पृथ्वीराज कपूर, दिलीप कुमार, मधुबाला, अजित और दुर्गा खोटे के साथ बनाया गया। यह उस समय की सबसे महँगी फिल्म थी, जिसके निर्माण में डेढ़ करोड़ खर्च हुए। इस फिल्म के एक गीत प्यार किया तो डरना क्या की शूटिंग शीश महल में हुई थी। इस के फिल्मांकन में ही १० लाख खर्च हो गए। फिल्म के युद्ध दृश्यों में दो हजार ऊँट, चार हजार घोड़े और आठ हजार सिपाहियों का इस्तेमाल किया गया। झांसी की रानी में रंगों की सफलता को देख कर, के० आसिफ ने फिल्म के २० मिनट के क्लाइमेक्स और दो गीतों को टैक्नीकलर में रीशूट किया। हिंदी, तमिल और इंग्लिश में शूट की गई इस फिल्म को बॉलीवुड की शाहकार फिल्म माना जाता है। हैदराबाद, सूरत, कोल्हापुर, राजस्थान, आदि से बुलाये गए तकनीशियनों से फिल्म के जेवर, वेशभूषा और तीर तलवार का निर्माण करवा गया।
हिंदी फिल्मों में कॉस्ट्यूम ड्रामा पर संजयलीला भंसाली काफी काम कर रहे हैं। उनकी पिछली फिल्म बाजीराव मस्तानी पेशवा बाजीराव की नर्तकी मस्तानी के साथ प्रेम कहानी थी। आजकल वह मेवाड़ रानी पद्मावती पर फिल्म बना रहे हैं। उनके अलावा यूनाइटेड अरब अमीरात के अरबपति व्यवसाई डॉक्टर बी आर शेट्टी भी भारत की अब तक की सबसे महँगी महाकाव्य पर फिल्म 'महाभारत' बनाने जा रहे हैं। इस फिल्म का बजट १००० करोड़ होगा. इस फिल्म में हिंदुस्तान और हॉलीवुड के कलाकार काम करेंगे। पिछले दिनों यह भी खबर थी कि आमिर खान और शाहरुख़ खान की दिलचस्पी भी महाभारत में है। सुशांत सिंह राजपूत और कृति सैनन की फिल्म राब्ता साउथ की कॉस्ट्यूम ड्रामा फिल्म मगधीरा का रीमेक है।
पहली मूक और सवाक फिल्मों की राजसी कहानी
वास्तविकता तो यह है कि भारतीय फिल्म इंडस्ट्री की नीव ही कॉस्ट्यूम ड्रामा या राजा रजवाड़ों के कथाानकों पर फिल्मों से पड़ी। पहली भारतीय मूक फिल्म राजा हरिश्चंद्र रामायण और महाभारत में उल्लिखित राजा हरिश्चंद्र के चरित्र पर बनाई गई थी। उस समय आवाज़ न होने के कारण जाने पहचाने धार्मिक-ऐतिहासिक चरित्र ही फिल्मों का विषय हो सकते थे, ताकि दर्शक कहानी आसानी से समझ सकें । हालाँकि, उस दौर में भी कुछ सामाजिक फिल्मे बनाई गई। इसी प्रकार से पहली सवाक फिल्म आलमआरा भी काल्पनिक कुमारपुर राज्य के राजकुमार आदिल और एक जिप्सी गर्ल आलमआरा की मोहब्बत की कहानी थी। चमकदार पोशाकें, भव्य महल और राजदरबार के सेट्स इस फिल्म की खासियत थे। ज़ाहिर है कि राजसी फिल्मों का जलवा था।
मूक हो या सवाक फ़िल्में, इंडस्ट्री के शुरूआती दौर की फिल्मों में भव्यता और चमक दमक के साथ ड्रामा दिखाने के लिए राजसी या शाही फ़िल्में ही मुफीद थी। अब यह बात दीगर है कि ऐसे तमाम चरित्र धार्मिक या पौराणिक थे या ऐतिहासिक या फिर राजशाही को दर्शाने वाले काल्पनिक चरित्र।
एक ख़ास बात यह रही कि नई तकनीक को दर्शकों के बीच लोकप्रिय किया। कहा जा सकता है कि हिंदी फिल्मों में श्वे त-श्याम रंगों के अलावा अन्य रंगों को कॉस्ट्यूम ड्रामा फिल्मों अथवा ऐतिहासिक धार्मिक फिल्मों ने ही लोकप्रिय बनाया।
कॉस्ट्यूम फिल्मों से उभरे परदे पर रंग
कॉस्ट्यूम ड्रामा फिल्मों से हिंदी फिल्मों में क्रांतिकारी बदलाव हुए । हिंदी फिल्मों में रंग १९३३ में रिलीज़ वी० शांताराम निर्देशित फिल्म सैरंध्री से ही आ गए थे। महाकाव्य महाभारत की उपकथा पर आधारित फिल्म सैरंध्री मल्टीकलर में शूट हुई थी। लेकिन, जर्मनी में फिल्म की प्रोसेसिंग के दौरान इसके रंग नष्ट हो गए। इसलिए, यह फिल्म दर्शकों को परदे पर श्वेत- श्याम रंगों में ही देखने को मिली । इसके बाद १९३५ में रिलीज़ आर्देशर ईरानी की फिल्म किसान कन्या पहली कलर फिल्म बनी। इसे सिनेकलर प्रोसेस से रंगीन बनाया गया था। इस फिल्म की किसान और गरीबी की कहानी दर्शकों को रास नहीं आई। फिल्म असफल हो गई। फिर १७ साल बाद रंगों ने दर्शकों का ध्यान खींचा महबूब खान की राजसी रोमांस ड्रामा फिल्म आन (१९५२) से । आन एक काल्पनिक राज्य की बिगड़ैल राजकुमारी (नादिरा) से एक गरीब ग्रामीण युवक (दिलीप कुमार) द्वारा प्रेम करने की कहानी फिल्माई गई थी। इस फिल्म को गेवाकलर में १६ एमएम रील से शूट किया गया था। बाद में ३५ एमएम टैक्नीकलर में फैलाया गया। इस फिल्म को ज़बरदस्त सफलता मिली। इस फिल्म की निर्माण लागत ३५ लाख थी। लेकिन फिल्म ने डेढ़ करोड़ का बिज़नेस किया।
पहली टैक्नीकलर फिल्म झांसी की रानी
सोहराब मोदी की फिल्म झाँसी की रानी पहली हिंदी फिल्म थी, जो ३५ एमएम में टैक्नीकलर रंग में शूट हुई थी। इस फिल्म का छायांकन गॉन विथ द विंड के लिए ऑस्कर विजेता सिनेमेटोग्राफर अर्नेस्ट हैलर ने शूट किया था। फिल्म का संपादन इंग्लैंड से रसेल लॉयड ने किया था। जिस दशक में रंगों से सजी झनक झनक पायल बाजे (१९५५), मदर इंडिया (१९५७) और नवरंग (१९५९) बॉक्स ऑफिस पर सफल हुई, उसी दशक में सोहराब मोदी की महताब की मुख्य भूमिका वाली ऐतिहासिक कॉस्ट्यूम ड्रामा फिल्म झाँसी की रानी बुरी तरह से असफल हुई ।
मील का पत्थर साबित हुआ ऐतिहासिक कॉस्ट्यूम ड्रामा
सोहराब मोदी ने तीन ऐतिहासिक फ़िल्में पुकार (१९३९), झाँसी की रानी (१९५३) और मिर्ज़ा ग़ालिब (१९५४) बनाई थी। यह तीनों फिल्में ऐतिहासिक फिल्मों में मील का पत्थर रखने वाली मानी जाती हैं। पुकार की कहानी जहांगीर के इन्साफ पर थी। नूरजहां के तीर से एक धोबी की हत्या हो जाती है। वह इन्साफ के लिए जहांगीर का घंटा बजाती है। जहांगीर न्याय करता है कि धोबन नूरजहां के पति को मार दे। मिर्ज़ा ग़ालिब में भारत भूषण ने ग़ालिब और सुरैया ने एक नर्तकी का किरदार किया था। इस फिल्म को दूसरा राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिला था। तत्कालीन प्रधान मंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने इस फिल्म को ग़ालिब को जीवंत कर देने वाली फिल्म कहा था। कोई १६ साल बाद निर्माता जीपी सिप्पी ने जहांगीर के इसी इन्साफ को प्रदीप कुमार, मीना कुमारी और सप्रू के साथ बनाया। फिल्म का नाम था आदिल ए जहांगीर यानि जहांगीर का इन्साफ। जीपी सिप्पी ने इस फिल्म के लिए पहली बार निर्देशन की कमान सम्हाली थी। फिल्म हिट हुई। दक्षिण में भी सलीम अनारकली और अकबर की तिकड़ी का जलवा रहा।
कॉस्टयूम ड्रामा फिल्मों के-
वाडिया बंधु
जीबीएच वाडिया के नाम से मशहूर जमशेदजी बोमन होमी वाडिया ने १९३३ में वाडिया मूवीटोन स्टूडियो की स्थापना की। उन्होंने अपने एक्टिव करियर में स्टंट (हंटरवाली, हरिकेन हंसा, मिस फ्रंटियर मेल), फैन्टसी (लाल ए यमन, नूर ए यमन) और माइथोलॉजिकल (श्रीगणेश, लव कुश, सम्पूर्ण रामायण) फिल्मों का निर्माण किया। उनके भाई होमी वाडिया की पहचान एक्शन फैन्टसी कॉस्ट्यूम फिल्मों से बनी। उन्होंने आम जनता की भलाई के लिए अपना राजपाट छोड़ देने वाली राजकुमारी पर फिल्म द प्रिंसेस एंड द हंटर से फिल्म निर्देशन की शुरुआत की। उन्होंने, जंगल प्रिंसेस, शेर-ए- बग़दाद, रामभक्त हनुमान, श्री गणेश महिमा, हनुमान पाताल विजय, अलादीन और जादुई चिराग, अलीबाबा एंड ४० थीव्स, हातिमताई, ज़बक, चार दरवेश, श्री कृष्ण लीला, एडवेंचर ऑफ़ अलादीन जैसी माइथोलॉजिकल फ़न्तासी कॉस्ट्यूम फ़िल्में बनाई।
गुजरात के भट्ट
फिल्मों के शुरूआती दौर में गुजरात के भट्ट महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। पहले भट्ट यानि विजय भट्ट १९२० के दशक में भावनगर से बॉम्बे आये थे। उन्होंने बतौर पटकथा लेखक फिल्मों में कदम रखा। उन्हें हिन्दुओं के ईष्ट भगवान् राम और सीता पर फिल्म रामराज्य (१९४३) ने अमर कर दिया। यह फिल्म बड़ी हिट फिल्म थी ही, यह ऎसी इकलौती फिल्म थी, जिसे महात्मा गांधी ने देखा था। उन्होंने नरसि भगत, भरत मिलाप, विक्रमादित्य, रामबाण, बैजू बावरा, श्री चैतन्य महाप्रभु, बाल रामायण, अंगुलिमाल, आदि माइथोलॉजिकल और ऐतिहासिक कॉस्ट्यूम ड्रामा फिल्मों के लिए याद किया जाता है। पोरबंदर में जन्मे नानाभाई भट्ट ने ज़्यादातर क्राइम एक्शन फ़िल्में बनाई। परन्तु, उनकी माइथोलॉजिकल कॉस्ट्यूम फिल्में मीराबाई, वीर घटोत्कच, जन्माष्टमी, राम जनम, लव कुश, लक्ष्मी नारायण और फ़न्तासी कॉस्ट्यूम फिल्मों सिंदबाद जहाजी, बग़दाद और सन ऑफ़ सिंदबाद जैसी फ़िल्में कॉस्ट्यूम ड्रामा फिल्में यादगार हैं।
हिंदी फिल्मों के प्रिंस थे प्रदीप कुमार
हिंदी फिल्मों में काम करने के लिये बंगाली अभिनेता प्रदीप कुमार प्रदीप कुमार ने अपनी भूमिकाओं के लिए अपनी उर्दू को माजा । उनकी पहली हिंदी फिल्म आनंदमठ (१९५२) थी। भारतीय स्वतंत्र संग्राम के १८ वी शताब्दी के संन्यासी विद्रोह पर इस फिल्म में प्रदीप कुमार ने एक युवा संन्यासी का किरदार किया था। प्रदीप कुमार अच्छी कद काठी, तलवार कट मूछों और राजसी भावभंगिमाओं के कारण हिंदी फिल्मों में राजसी भूमिकाओं के उपयुक्त मान लिए गए। उन्हें यह दर्ज़ा दिलवाया १९५३ में रिलीज़ फिल्म अनारकली ने। इस फिल्म में प्रदीप कुमार ने शहज़ादा सलीम का किरदार किया था। फिल्म बड़ी हिट साबित हुई। प्रदीप कुमार ने बादशाह, राज हठ, दुर्गेश नंदिनी, हीर, यहूदी की लड़की, चित्रलेखा, बहु बेगम, महाभारत और रज़िया सुल्तान में राजसी किरदार किये थे। हालाँकि, उन्होंने काफी सोशल फ़िल्में की। लेकिन वह यादगार हुए अनारकली के जहांगीर और ताजमहल के शाहजहां के किरदार से।
ऐतिहासिक फिल्मों की शाहकार
निर्माता निर्देशक के आसिफ ने केवल दो फिल्मों फूल और मुग़ल ए आज़म का निर्माण-निर्देशन किया। मुग़ल ए आज़म को परदे पर आने में १५ साल लगे। इस फिल्म की परिकल्पना १९४५ में की गई थी। कई कलाकारों से गुजरते हुए, इस फिल्म को पृथ्वीराज कपूर, दिलीप कुमार, मधुबाला, अजित और दुर्गा खोटे के साथ बनाया गया। यह उस समय की सबसे महँगी फिल्म थी, जिसके निर्माण में डेढ़ करोड़ खर्च हुए। इस फिल्म के एक गीत प्यार किया तो डरना क्या की शूटिंग शीश महल में हुई थी। इस के फिल्मांकन में ही १० लाख खर्च हो गए। फिल्म के युद्ध दृश्यों में दो हजार ऊँट, चार हजार घोड़े और आठ हजार सिपाहियों का इस्तेमाल किया गया। झांसी की रानी में रंगों की सफलता को देख कर, के० आसिफ ने फिल्म के २० मिनट के क्लाइमेक्स और दो गीतों को टैक्नीकलर में रीशूट किया। हिंदी, तमिल और इंग्लिश में शूट की गई इस फिल्म को बॉलीवुड की शाहकार फिल्म माना जाता है। हैदराबाद, सूरत, कोल्हापुर, राजस्थान, आदि से बुलाये गए तकनीशियनों से फिल्म के जेवर, वेशभूषा और तीर तलवार का निर्माण करवा गया।
हिंदी फिल्मों में कॉस्ट्यूम ड्रामा पर संजयलीला भंसाली काफी काम कर रहे हैं। उनकी पिछली फिल्म बाजीराव मस्तानी पेशवा बाजीराव की नर्तकी मस्तानी के साथ प्रेम कहानी थी। आजकल वह मेवाड़ रानी पद्मावती पर फिल्म बना रहे हैं। उनके अलावा यूनाइटेड अरब अमीरात के अरबपति व्यवसाई डॉक्टर बी आर शेट्टी भी भारत की अब तक की सबसे महँगी महाकाव्य पर फिल्म 'महाभारत' बनाने जा रहे हैं। इस फिल्म का बजट १००० करोड़ होगा. इस फिल्म में हिंदुस्तान और हॉलीवुड के कलाकार काम करेंगे। पिछले दिनों यह भी खबर थी कि आमिर खान और शाहरुख़ खान की दिलचस्पी भी महाभारत में है। सुशांत सिंह राजपूत और कृति सैनन की फिल्म राब्ता साउथ की कॉस्ट्यूम ड्रामा फिल्म मगधीरा का रीमेक है।
Labels:
फिल्म पुराण
मैं हिंदी भाषा में लिखता हूँ. मुझे लिखना बहुत पसंद है. विशेष रूप से हिंदी तथा भारतीय भाषाओँ की तथा हॉलीवुड की फिल्मों पर. टेलीविज़न पर, यदि कुछ विशेष हो. कविता कहानी कहना भी पसंद है.
कपिल शर्मा के शो में एडल्ट फिल्मों की अभिनेत्री !
कपिल शर्मा अपने शो को बचाने की हरचंद कोशिश कर रहे हैं। इसी कोशिश में नई कोशिश है मोनिका कैस्टेलिनो। मोनिका कैस्टेलिनो पेशे से एक्ट्रेस है। वह हिंदी टीवी सीरियल प्रतिज्ञा, मणिबेन डॉट कॉम, प्यार की यह कहानी सुनो, तू मेरे अगल बगल है, हर मर्द को दर्द होता है, आदि में काम कर चुकी है। लेकिन, कपिल शर्मा ने मोनिका को इसलिए अपने शो में शामिल नहीं किया है कि वह भी अभिनेत्री है, बल्कि इस वजह से साइन किया है कि वह एक एडल्ट फिल्म एक्ट्रेस हैं। मोनिका अपनी फिल्मों में उत्तेजक कपडे पहनती है और हाव भाव प्रदर्शित करती है। उनकी फिल्मों के नाम भी काफी उत्तेजक होते है। मेन नोट अलाउड वह लेस्बियन एक्ट कर रही थी। काम सुंदरी में वह कामुकता की देवी बनी थी। सूत्र बताते हैं कि कपिल शर्मा ने मोनिका को सुगंध मिश्र के जाने के बाद स्थाई सदस्य के तौर पर अपने शो में शामिल किया है। खबर यह भी है कि मोनिका शो में बेहद ग्लैमरस और बोल्ड अंदाज़ में आयेंगी । क्या द कपिल शर्मा शो को 'बंद होने से बचा पायेगी यह 'काम सुंदरी' !
Labels:
Television
मैं हिंदी भाषा में लिखता हूँ. मुझे लिखना बहुत पसंद है. विशेष रूप से हिंदी तथा भारतीय भाषाओँ की तथा हॉलीवुड की फिल्मों पर. टेलीविज़न पर, यदि कुछ विशेष हो. कविता कहानी कहना भी पसंद है.
Subscribe to:
Posts (Atom)