आज पुराने जमाने की अभिनेत्री नंदा की पुण्य तिथि है. आम बच्चों की तरह नंदा भी कैमरे का सामना नहीं करना चाहती थी. पर उनके फिल्म निर्माता पिता उन्हें अपनी फिल्म मंदिर में लेना चाहते थे. माँ के समझाने पर वह इसके लिए राजी हो गई. सात साल की नंदा ने फिल्म में एक लडके की भूमिका की थी. इसे उनके दूसरे भाई कर सकते थे. परन्तु पिता मास्टर विनायक को नंदा पर ही भरोसा था. अब यह बात दूसरी है कि मंदिर के पूरा होने से पहले ही मास्टर विनायक का आकस्मिक निधन हो गया. इस फिल्म को दिनकर पाटिल ने पूरा किया. इस प्रकार से लडके की भूमिका से फिल्मों में प्रवेश पाने वाली नंदा ने भिन्न तरह की भूमिकाओं से हिंदी फिल्म दर्शकों में अपनी जगह बनाई. उन्हें श्रद्धांजलि.आज पुराने जमाने की अभिनेत्री नंदा की पुण्य तिथि है. आम बच्चों की तरह नंदा भी कैमरे का सामना नहीं करना चाहती थी. पर उनके फिल्म निर्माता पिता उन्हें अपनी फिल्म मंदिर में लेना चाहते थे. माँ के समझाने पर वह इसके लिए राजी हो गई. सात साल की नंदा ने फिल्म में एक लडके की भूमिका की थी. इसे उनके दूसरे भाई कर सकते थे. परन्तु पिता मास्टर विनायक को नंदा पर ही भरोसा था. अब यह बात दूसरी है कि मंदिर के पूरा होने से पहले ही मास्टर विनायक का आकस्मिक निधन हो गया. इस फिल्म को दिनकर पाटिल ने पूरा किया. इस प्रकार से लडके की भूमिका से फिल्मों में प्रवेश पाने वाली नंदा ने भिन्न तरह की भूमिकाओं से हिंदी फिल्म दर्शकों में अपनी जगह बनाई.
दिलचस्प तथ्य यह भी है कि बालिग़ नन्दा ने पहली फिल्म तूफ़ान और दिया में बहन की भूमिका की थी. वह सतीश व्यास की बहन बनी थी. राजेंद्र कुमार उनके नायक थे. नंदा की १९९५ में रिलीज़ एक फिल्म का नाम दिया और तूफ़ान था.
उन्हें श्रद्धांजलि.
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