Wednesday, 25 September 2013

इस शुक्रवार की हीरोइन ऑफ़ द वीक है वीना मलिक !

 
D;k ohuk efyd bl 'kqdzokj dh *ghjksbu vkWQ n ohd* gSa A blfy, ugha fd og ckWyhoqM dh fQYeks dk cM+k uke gS A ikfdLrku ls vk;kfrr ;g vfHkus=h Hkkjr esa Hkh fookfnr :i ls gh pfpZr jgh gS A ysfdu] dsoy fooknksa dk dhpM+ mNky dj fQYesa fgV ugha djk;h tk ldrh A ohuk efyd bls vPNh rjg ls tkurh gSa A blh lky 24 ebZ dks fjyht mudh fQYe ftUnxh 50 50 ckWDl vkWfQl ij vkSa/ks eqag fxjh Fkh A ,sls esa ohuk efyd ghjskbu vkWQ n ohd dSls cu tkrh gSa \ vki ;ksa dg ldrs gSa fd va/kksa esa dkuh jkuh A ohuk efyd ij ;g dgkor dSls vk;n gkrh gS] vkbZ;s bldk [kqyklk djrs gSa A
bl 'kqdzokj ohuk efyd dh eq[; Hkwfedk okyh fQYe lqij ekWMy fjyht gks jgh gS A bl fQYe ds lkFk ikap vU; fQYesa ekth] izsx] okWfuZax 3Mh] fnYyh xSx vkSj jDr& ,d fj’rk Hkh fjyht gks jgh gSa A lqij ekWMy funsZ’kd uohu c=k dh fQYe gS A fQYe esa ohuk efyd ds ghjks fcx ckWl eas muls xekZxeZ jksekal djus okys veh"kk iVsy ds HkkbZ vf’er iVsy gSa A tSdh JkWQ rFkk g"kZ Nk;k vU; Hkwfedkvks esa gSa A funsZ’kd t;nhi pksiM+k dh ,D’ku fFkzyj fQYe ekth esa v’kksd HkkfV;k] ekuo dkSf’kd] eksgEen th’kku v;~;wc] eksuk oklq] iwtk fc"V] lkUoh 'kekZ] lqehr fu>kou] euh"k pkS/kjh] iadt f=ikBh] eqds’k _f"k] tkfdj gqlSu] nsosUnj pkS/kjh vkSj eksfgr pkSgku ds uke mYys[kuh; gSa A M~zkek fQYe izsx funsZ’kd vk’kh"k 'kqDyk dh fQYe gS A pUnu jkW; lkU;ky] bysuk dtku] dqekj e;ad] yqfl;u tsy] lksfu;k fcUnzk vkSj oSHko lqeu eq[; Hkwfedkvksa esa gSa A xqjehr flag dh fFkyj fQYe okWfuaZx 3Mh esa Hkh ftfru xqykVh] larks"k cjeksyk] lqfer lwjh] lqtkuk jkWfM~Xt] eatjh QM+uhl] o:.k 'kekZ vkSj e/kqfjek rqyh tSls u;s psgjs gh T;knk gSa A vk’kkh"k R;kxh dh dzkbe fQYe fnYyh xSax esa n’kZu tjhokyk] uhuk dqyd.khZ] ;’kiky 'kekZ] vehj nyoh vkSj vljkuh eq[; Hkwfedk esa gSa A vkfn bZjkuh vkSj f’kok fjUnu dh fQYe jDr ,d fj’rk fFkzyj fQYe gS] ftlesa 'osrk Hkkj}kt] 'khuk 'kkgkcknh] xqy’ku xzksoj] Qjhnk tyky] 'kfDr diwj vkSj vtqZu egktu dh eq[; Hkwfedk esa gSa A ;g lHkh fQYesa dekscs’k u;s funsZ’kdksa dh fQYesa gSa] tks ckWyhoqM n’kZdksa ds lkeus igyh ;k nwljh ckj viuh funsZ’kdh; {kerk dk izn’kZu djsaxs A [kkl ckr ;g gS fd lqij ekWMy ds vykok ;g lHkh fQYeksa esa fcYdqy u;s psgjksa ds lkFk gSa A [kkl rkSj buds uk;d ukf;dk fcYdqy u;s gSa A n’kZdksa ds fy, okWfuZax 3Mh esa tkus  igpkus psgjs ds crkSj eatjh QM+uhl gh utj vk;saxh] ftUgsa n’kZdksa us vHkh xzSaM eLrh esa ns[kk gS A ekth esa eqds’k _f"k vkSj tkfdj gqlSu tSls pfj= vfHkusrkvksa dk psgjk gh n’kZdksa ds fy, tkuk igpkuk gksxk A Vhoh lhfj;y dh vfHkus=h ds :i esa eksuk oklq Hkh tkuh igpkuh gSa A izsx ds uk;d pUnu jkW; lkU;ky dks n’kZd dehus esa 'kkfgn diwj ds nksLr ds :i esa igpkurs gSa A mUgsa Qkyrw vkSj Vsy eh vks [kqnk ls Hkh igpku feyh gS A bysuk dtku dks nks gQ~rk igys tkWuMs esa ns[kk tk pqdk gS A jDr ,d fj’rk esa 'osrk Hkkj}kt vkSj 'khuk 'kkgkcknh ekSlh Hkrhth dh Hkwfedk esa gS A XySejl psgjksa ds fygkt ls bu pkjksa fQYeksa esa ohuk efyd dh fQYe lqij ekWMy gh ekth] izsx vkSj okWfuZax ij Hkkjh utj vkrh gS A ;ksa] okWfuZax ls fuekZrk ds rkSj ij vuqHko flUgk] ijkx la?koh vkSj lquhy , yqYyk dk cM+k uke tqM+k gS vkSj ;g 3Mh fQYe Hkh gS A
 
n’kZd cM+s cSuj ;k funsZ’kd ds vk/kkj ij cgqr de fQYesa ns[krk gS A mls yxko gksrk gS vfHkusrk ;k vfHkus=h ls A vius ilUnhnk dykdkj dh fQYe ds fy, og flusek?kjks esa ykbu yxk ysrk  gS A dykdkjksa ds fygkt ls fQYesa pkgs ekth gks ;k izsx ;k okWfuZax ;k fQj jDr ,d fj’rk vkSj fnYyh xSax dekscs’k u;s vfHkusrk vfHkusf=;ksa vkSj pfj= vfHkusrkvksa okyh fQYes gSa A bu psgjksa dks [kqn ls T;knk fQYe ls vkdf"kZr gks dj flusek?kj rd vkus okys n’kZdksa ds fjLikal ij fuHkZj jguk gksxkA vius iksLVjksa ls bu fQYeksa dks n’kZd feyus okys ugha A okWfuZax dh 3Mh rduhd n’kZdksa dks vkdf"kZr dj ldrh gS A ;g fQYe lkr nksLrksa dh dgkuh gS] tks yEcs le; ckn fQj ,d lkFk gksrs gSa A ;g lkrksa ,d ukSdk esa cSB dj leqnz dh [kwclwjrh dk utkjk ns[kus fudy iM+rs gSa A ysfdu] chp leqnz eas lkrksa dh tku [krjs esa iM+ tkrh gS A vc gksuk ;g gS fd tks HkkX;oku gS] mls lcls igys ej tkuk gS] D;ksafd cps gq, yksxks dks rks thou ds [krjukd vkSj Hk;kud vuqHkoksa ls xqtjuk gS A tkfgj gS fd Hkkjr dh igyh vaMjokVj 3Mh fQYe okWfuZax n’kZdks es ajksekap iSnk dj ldrh gS A bl fQYe esa leqnz vkSj leqnzh tho tarqvksa ds Hk;kud n`’; gS] tks flgjkus okys gSa A

ysfdu] ;qok psgjksa ds XySej ds fygkt ls ohuk efyd dk XySej lc ij Hkkjh gS A vax izn’kZu dks ysdj fookn gks ;k mRrstd c;kuks ds dkj.k] ohuk efyd ges’kk fooknksa ds ?ksjs esa jgrh jgh gSa A bl dkj.k ls n’kZdksa dh utj mudh fQYeksa ij yxh jgrh gSa A ohuk efyd vius uke ds cy ij n’kZdkas dks lqij ekWMy okys flusek?kjksa esa [khp yk ldrh gS A tSlk fd uke ls lkQ gS] lqij ekWMy ij ;g fQYe Vw ihl fcduh] de ls de diM+ks esa mRrstd eqnzkvksa vkSj gko Hkkoksa dk izn’kZu djus okys [kwclwjr psgjksa ls Hkjh gS A ohuk efyd ds Vw ihl fcduh esa mRrstd ikst v[kckjksa vkSj eSxthUl ds jaxhu i`"Bksa dks xekZ pqds gSa A fQYe ds izksekst Hkh bldh rLnhd dj jgs gSa A cph [kqph dlj vpZuk onusjdj] fo’kk[kk xqIrk vkSj luk vkscsjk; iwjh djsaxh A ;g vfHkusf=;ka vius lqrs gq, cnu dks n’kZdksa ds lkeus iwjs elkys ds lkFk is’k dj jgh gSa A tkfgj gS fd ohuk ds usr`Ro esa XySej dh ;g efYydk,a reke fQYeksa dh ekfyd lkfcr gksaxh A ns[ksa] ohuk efyd ,aM daiuh ds bl nkos dks ckWDl vkWfQl fdruk Lohdkjrk gS !

Tuesday, 24 September 2013

’रक्त’ में मेरे किरदार के कई शेड्स हैं- शीना शाहाबादी

सतीश कौशिक ‍की फिल्म ‘तेरे संग’ से शीना शाहाबादी ने अपना बॉलीवुड करियर शुरू किया था। इसके बाद वे ‘फास्ट फॉरवर्ड’ में नजर आईं। अब वे अदि ईरानी और शिवा द्वारा निर्देशित ‘रक्त’ तथा कपिल शर्मा और ‍सृष्टि आर्या की फिल्मों में भी नजर आएंगी। शीना ने अपनी पहली ही फिल्म में अपरंपरागत और बोल्ड किस्म का रोल निभाया था। वे 15 वर्ष की ऐसी लड़की बनी थी, जिसका 17 वर्ष के लड़के से संबंध बनते हैं और वह गर्भवती हो जाती है। इस फिल्म के जरिये टीन प्रेग्नेंसी का मुद्दा उठाया गया था। शीना की मां साधना सिंह भी अभिनेत्री हैं जो ‘नदिया के पार’ के लिए आज भी याद की जाती हैं। अपनी मां से प्रेरणा लेकर ही शीना भी फिल्मों में आई हैं। पेश है शीना से बातचीत :
‘रक्त’ में आपके किरदार के बारे में बताइए। यह ‘तेरे संग’ से कितना अलग है?
’रक्त’ में मेरे किरदार के कई शेड्स हैं। यह एक ऐसी लड़की का रोल है जिसे आंटी पाल-पोसकर बढ़ा करती है और उसे वो हर चीज मिलती है जो वह मांगती है। इससे उस लड़की और उसकी मां के बीच अजीब सा रिश्ता बन जाता है। वह लड़की नहीं चाहती कि कोई उसकी मां के नजदीक आए। इसके लिए वह किसी को मार भी सकती है। 
मां की बात निकलती है तो आपकी मां एक अभिनेत्री हैं। आपके पिता भोजपुरी के प्रसिद्ध निर्माता हैं। क्या यही वजह है कि फिल्म और अभिनय की दुनिया के प्रति आप आकर्षित हुईं?
मैं इससे इंकार नहीं करूंगी। मैं जब पांच वर्ष की बच्ची थी, तभी मैंने सोच लिया था कि मुझे अभिनेत्री बनना है। 16 वर्ष की उम्र में मैं अपने आपको निखारने में लग गई थी। शुरुआत में मेरे माता-पिता मेरे निर्णय से आश्चर्यचकित हुए, लेकिन फिल्मों के प्रति मेरी दीवानगी की बात समझने में उन्हें देर नहीं लगी। मेरी मां ने मुझे पूरा सहयोग दिया, जबकि डैड ने ‘ओके-ओके’ रिएक्शन दिया। उन्होंने कहा ‘ठीक है, कर लो, जैसा तुम्हें ठीक लगे’। शुक्र है कि किसी ने मेरे निर्णय का विरोध नहीं किया। मैंने एक्टिंग कोर्स में प्रवेश लिया ताकि अभिनय की बारीकियां सीख सकूं। 
एक्टिंग क्लास से क्या सीखा?
सीखने की इस प्रक्रिया में मैंने अपने आपको जाना। मैं अपने प्लस पाइंट्स से परिचित हुई। मुझे लगा कि भावना प्रधान और रोमांस को अच्छे तरीके से अभिव्यक्त कर सकती हूं। मुझे याद है कि एक्टिंग क्लास के दौरान मैं एक सीन कर रही थी, तभी मुझे मेरे सर ने रोक दिया और तुरंत मेरी मां को बुलाया। मैं नर्वस हो गई कि पता नहीं क्या बात हो गई। मेरी मां के पहुंचते ही उन्होंने मुझे दोबारा वो सीन करने के लिए कहा। मैंने फिर से वही सीन किया और समझ में नहीं आ रहा था कि यह सब क्या हो रहा है। जैसे ही सीन खत्म हुआ मेरे सर ने घोषणा कर दी कि मैं अब कैमरे का सामना करने के लिए तैयार हूं। उन्होंने मेरी मां से पूछा कि क्या उनका (सर का) निर्णय सही है। वह सीन मेरी मां के लिए लाइव शो रील की तरह था और मेरी मां के चेहरे ने सारी बात बयां कर दी। उनका सहमति देना मैं जिंदगी भर नहीं भूल पाऊंगी।  
क्या शूटिंग के दौरान भी आपने अपने अभिनय को संवारने में मदद ली?
हां, मेरी मां का मुझे हमेशा सहयोग मिला। यदि मुझे किसी दृश्य को करने में दिक्कत महसूस होती तो वे बताती कि मैं किस तरीके से बेहतर कर सकती हूं। यदि कोई दृश्य मैं बेहतरीन तरीके से करती तो वे मेरी ज्यादा तारीफ न करते हुए सिर्फ इतना कहती कि मैंने अच्छा किया है और मुझे अब अगले दृश्य पर ध्यान देना चाहिए। मैं उनकी शाबाशी और आलोचना से खुश होती थी क्योंकि मेरे सामने एक ऐसा शख्स था जो ईमानदार और स्पष्ट था। हां, आलोचनाएं बुरी जरूर लगती थी। उदाहरण के लिए ‘तेरे संग’ की शूटिंग के दौरान किसी ने मेरे वजन को लेकर टिप्पणी कर दी। मुझे इसका बुरा लगा लेकिन मेरी मां ने कहा कि आलोचनाओं को मुझे चुनौती के रूप में लेना चाहिए। उन्होंने कहा ‘चलो, अब उसने ऐसा कहा है तो पतला होकर दिखाओ।‘ मैंने वर्कआउट किया और वापस अपने शेप में आ गई। 
अपनी पहली फिल्म में ही प्रेग्नेंट लड़की का किरदार निभाना आसान बात नहीं है। और अब एक साइको किलर? क्या यह सब आसान रहा?
यदि आप मेरे किरदार के बारे में बात कर रहे हों तो मुझे इनको निभाने में ज्यादा मेहनत नहीं करना पड़ी। यह लड़की हंसमुख है। सदा हंसती रहती है। ये किरदार मेरे जैसा ही है। मैं आज की लड़की बनी हूं और हर लड़की मेरे किरदार से अपने आपको जोड़ सकती है। हमने स्क्रिप्ट रीडिंग सेशन किया और एक्टिंग की वर्कशॉप भी की। मेरी मां कहती है कि आज के कलाकार भाग्यशाली हैं क्योंकि उनके जमाने में एक्टिंग वर्कशॉप जैसा कोई विचार नहीं था। प्रेग्नेंट लड़की का किरदार निभाना थोड़ा मुश्किल था क्योंकि मैं उस इमोशन से नहीं गुजरी हूं।
तो आपने किसकी मदद ली?
इस बारे में मैंने अपनी मां से कई प्रश्न पूछे। मैंने नीना गुप्ता की भी मदद ली जो फिल्म में मेरी मां की भूमिका में थीं। जब मुझे प्रेग्नेंट लड़की का किरदार ‍निभाना था तब मैं रियल लाइफ में भी अपने आपको तनाव और परेशान रखती थी। आखिरकार मुझे दर्शकों को यकीन दिलाना था कि मैं दर्द और मुसीबत से गुजर रही हूं। 

Monday, 23 September 2013

फटा पोस्टर निकला चूहा !

                          File:Phata Poster Nikhla Hero Theatrical Poster (2013).jpg
                   शाहिद कपूर अच्छे अभिनेता हैं. डांसिंग में भी वह लाजवाब हैं।  इसका पता उनकी फिल्म फटा  पोस्टर  निकला हीरो को देख  कर चलता है। फ़िल्म में पोस्टर फाड़ कर उनकी एंट्री पर दर्शकों के शोर का सैलाब हिलोरें लेने लगता है.  वह जब डांस करते हैं, तब सिनेमाघर में बैठा दर्शक झूमने लगता है। अपने अभिनय से वह दर्शकों को प्रभावित करते हैं. लेकिन, घिसी- पुरानी कहानी और लंगडी स्क्रिप्ट उन्हें लम्बी रेस का घोड़ा साबित नहीं  होने देती। वह बीच दौड़ में लुढ़क जाते हैं.
                     फटा पोस्टर की कहानी पुरानी है- साठ के दशक की फिल्मों जैसी माँ बेटा और ईमानदारी का पाठ. आजकल के युवाओं को ऎसी उपेशात्मक कहानी रास नहीं आती. वह तो लम्पट, चोर, धोखेबाज, नशेबाज और लौंडिया को बिस्तर पर धर पटकने वाले हीरो को पसंद करते हैं। अभी ग्रैंड मस्ती, शुद्ध देसी रोमांस और आशिकी२  इसका प्रमाण है. कहानी से मात खायी यह फिल्म लेखन के मामले में भी मात खा जाती है। अगर राजकुमार संतोषी फिल्म को लिखने में किसी दूसरे लेखक  का सहारा लेते तो बेहतर फिल्म दे पाते। मध्यांतर से पहले शाहिद कपूर की कॉमिक timings  और डांस से दर्शकों को बांधे रखने वाली फिल्म, मध्यांतर के बाद बिलकुल  बिखर जाती है।  खुद शाहिद कपूर भी असहाय से नज़र आते हैं. फ़िल्म की जान टीनू वर्मा और कनाल कन्नन के एक्शन हैं।  शाहिद कपूर को यह एक्शन फबते भी खूब हैं. जहाँ तक प्रीतम चक्रवर्ती की धुनों का सवाल है, केवल मीका का गाया एक  गीत तू मेरे अगल बगल ही बढ़िया बना है. इरशाद कामिल और अमिताभ भट्टाचार्य के संवाद काम चलाऊ ही कहे जा सकते हैं.
                      फिल्म मे इलियाना डी'सौजा, पद्मिनी कोल्हापुरे, दर्शन  जरीवाला,जाकिर हुसैन, सौरभ शुक्ल, मुकेश तिवारी और संजय मिश्रा जैसे सक्षम कलाकारों की भरमार है. लेकिन, सबसे ज्यादा प्रभावित करते हैं भ्रष्ट पुलिस वाले के रूप में जाकिर हुसैन। संजय मिश्र का काम भी अच्छा है।  दुःख होता है इलियाना को देख कर. वह फ़िल्म की नायिका हैं, लेकिन उनका रोल ही सबसे ज्यादा कमज़ोर लिखा गया है। 
                      कहा जा सकता है कि अजब प्रेम की गज़ब कहानी के राजकुमार संतोषी की यह बेहद कमज़ोर  फिल्म है, इतनी कि सलमान खान का कैमिया और नर्गिस फाखरी का आइटम भी फटे पोस्टर से निकलते हीरो हीरो को जीरो बनने से रोक नहीं सका. बढ़िया हीरो शाहिद कपूर की इस फिल्म को फटा पोस्टर निकला चूहा कहना  ज़्यादा ठीक होगा।
 

Thursday, 19 September 2013

क्या फटेगा पोस्टर निकलेगा हीरो !


iwjs ,d lky rhu eghus ckn iksLVj rks ugha QVsxk] ij QVk iksLVj fudyk ghjks dh jhyksa dk MCck t:j [kqysxk A blesa ls fudysaxs fQYe QVk iksLVj fudyk ghjks ds ghjks fo’okl uk;d ds :i esa vfHkusrk 'kkfgn diwj A 'kkfgn diwj rsjh esjh dgkuh] ekSle vkSj feysxs feysaxs tSlh vlQy fQYeks ds ckn ,d ckj fQj [kqn dks ghjks lkfcr djus dh tn~nkstgn esa gksaxs A mudks ghjks cukus dh tqxr esa cjQh dh bfy;kuk fMdwzt rks gksaxh gh] funsZ’kd jktdqekj larks"kh Hkh gksaxs A rfey vkSj rsyqxq fQYeks dh e’kgwj vfHkus=h bfy;kuk fMdwzt dh ;g nwljh fgUnh fQYe gS A mUgsa cjQh ds fy, igyh fQYe dk fQYeQs;j ,okMZ Hkh feyk Fkk rFkk og lg vfHkus=h ds :i esa ukekadu Hkh A jktdqekj larks"kh us vUnkt viuk viuk ds 15 lky ckn vtc izse dh xtc dgkuh ls nksckjk dkWesMh fQYeksa ds fuekZ.k esa dne j[kk A fQYe us ckWDl vkWfQl ij tcnZLr lQyrk ik;h A 25 djksM+ dh fQYe us 96-63 djksM+ dek;s A vtc izse dh xtc dgkuh ds vfHkusrk j.kchj diwj ckWyhoqM ds ghjks cu x;s A blhfy,] 'kkfgn diwj Hkh bl vkl esa gSa fd tc jktdqekj larks"kh dh fQYe dk iksLVj QVsxk rks mlesa ls ghjks gh fudysxk A D;ksafd] vtc izse dh xtc dgkuh ds ckn j.kchj diwj lQyrk dh lhf<+;ka nj lhf<+;ka p<+rs pys x;s gSa A vkt og lcls fo’oluh; ;qok ghjks ekus tkrs gSa A

jktdqekj larks"kh dh fQYe ls 'kkfgn diwj dk vkl yxkuk LoHkkfod gS A larks"kh dh dkWfed Vkbfeax xtc dh gS A vtc izse dh xtc dgkuh esa larks"kh us lkfcr dj fn;k Fkk fd ,d lh/kh lknh izse dgkuh dks dSls n’kZdksa ds fnyksa esa lh/kk izos’k fnyk;k tk ldrk gS A QVk iksLVj fudyk ghjks fo’okl jko dh dgkuh gS] tks ckWyhoqM fQYeks dk ghjks cuuk pkgrk gS A og vtc izse dh xtc dgkuh ds iksLVj ns[krs gq, [kqn dks iksLVj QkM+ dj fudyrk gqvk ns[krk gS A eryc ;g fd og j.kchj diwj dh txg dSVjhuk dk ghjks cuus dk [okc ns[krk gS A fj;y ykbQ esa fo’okl jko ds vfHkusrk 'kkfgn diwj ghjks gSa] ysfdu muds [kkrs esa lQyrk ls T;knk vlQyrk,a ntZ gS A mudh lksyks fQYesa cqjh rjg ls fiVh gSa A blds ckotwn fQYe fuekZrk mUgsa ghjks cuk dj fQYesa cukrs gSa rks blfy, fd mudh ,fDVax esa ne gS A QVk iksLVj fudyk ghjsk dh Vhe cf<+;k gS A 'kkfgn diwj dks bfy;kuk tSlh vfHkus=h dk liksVZ fey jgk gS A jktdqekj larks"kh 'kkfgn dks LikaVsfu;l vkSj dkWfed Vkbfeax le>us okyk vfHkusrk ekurs gSa A rHkh rks mUgksaus j.kchj ds ctk; 'kkfgn dks viuh fQYe dk ghjks cuk;k A vc 'kkfgn dks viuk ;g ne[ke QVk iksLVj fudyk ghjks ds iksLVj QkM+us esa fn[kkuk gS rkfd og ghjks cu dj fudysa A D;k ,slk lEHko gksxk \

vke rkSj ij n’kZd dkWesMh fQYesa ilUn djrk gS A QVk iksLVj fudyk ghjks dh dkWesMh Hkh mls ilUn vk;sxh A exj] ,d cM+h eqf’dy QVk iksLVj--- ds lkFk gS A fiNys 'kqdzokj fjyht funsZ’kd bUnzdqekj dh lsDl dkWesMh fQYe viuh v’yhyrk ds dkj.k n’kZdksa dks jkl vk jgh gS A ;g fQYe 2013 esa igys fnu lcls vf/kd dekbZ djus okyh fQYeks es apkSFks LFkku ij ntZ gks x;h gS A QVk iksLVj dh dkWesMh n’kZdksa dks galk;sxh] ysfdu og xSzaM eLrh dks NksM+ dj QVk iksLVj ds ghjks ij fdruk fo’okl djrs gSa] bl ij dkQh dqN fuHkZj djsxk fd n’kZd xzSaM eLrh dh v’yhy ,y,lMh ds u’ks ls fdruh tYnh eqDr gks tkrs gSa A vxj ,slk u gqvk rks QVk iksLVj fudyk ghjks ds ghjks dks cM+h dok;n djuh gksxh A D;ksafd] 'kkfgn diwj dh vkxs dh jkg Hkh vklku ugha gksxh A mUgsa bjQku [kku dh fo’o ds fQYe esyksa esa iqjLd`r fQYe n yapckWDl ls pqukSrh fey gh jgh gksxh A vxyk gQ~rk Hkh ikap de ctV dh lLisal fFkzyj fQYeksa dk gksxk A lLisal fFkzyj ,D’ku fQYe ekth] pUnu jkW; lkU;ky vkSj bysuk dtku dh euksoSKkfud fFkzyj izsx] fFkzyj jDr ,d fj’rk] ohuk efyd dh tcnZLr vax izn’kZu ls Hkjiwj M~zkek fQYe lqij ekWMy vkSj fuekZrk vuqHko flUgk dh igyh vaMjokVj FkzhMh fQYe okWfuZx fjyht gks jgh gS A ;g fQYesa QVk iksLVj ds tkWuj ls fcYdqy fHkUu gS A ysfdu] n’kZd bl tkWuj dks Hkh cgqr ilUn djrk gS] vxj ;g lsDl vkSj fFkzy dh pkluh ls luh gks A

nks gQ~rs ckn jktdqekj larks"kh vkSj 'kkfgn diwj dks pqukSrh nsaxs j.kchj diwj vkSj mudh fQYe cs’kje A j.kchj diwj dks larks"kh us gh vkt dk j.kchj diwj cuus dh tehu nh Fkh A j.kchj diwj Hkh 'kkfgn dh rjg dkWesMh ds mLrkn gS A cs’kje mudh M~zkek] ,D’ku vkSj jksekal fQYe gS A bl fQYe dks ncax ds vuqHko flag d’;i us funsZf’kr fd;k gS A vuqHko dks cs’kje ds tfj;s [kqn dks ncax lkfcr djuk gS A vuqHko okyh pqukSrh j.kchj diwj ds lkeus Hkh gksxh A D;ksafd] mUgksaus fQYe esa ,d MkW;ykWx [kqn gh cksyk gS fd pqycqy uke j[k ysus ls dksbZ ncax ugha cu tkrk A D;ksafd] blh rtZ ij cksyk tk ldrk gS fd ncax fQYe ds funsZ’kd dk lkFk ikdj dksbZ ncax ghjks ugha cu ldrk A fQYe ds izksekst tksjnkj yx jgs gSa A j.kchj diwj iwjh rjg ls vuqHko ds jax es jaxs gq, gSa A vuqHko us j.kchj diwj dks dqN bl rjg ls is’k fd;k gS fd mu ij lyeku [kku bQSDV utj ugha vkrk A fQYe fcYdqy iSlk olwy utj vkrh gS A ;kuh QVk iksLVj fudyk ghjks dh vkxs dh jkg fcYdqy cUn A  

'kkfgn diwj dh fQYe ds cM+s cM+s iksLVj yx pqds gSa A 'kkfgn diwj tkurs gSa fd bu iksLVjksa ds fpidus dk eryc D;k gksrk gS A dHkh mUgksaus Hkh viuh fQYe b’d fo’d ds iksLVj eqEcbZ ds yks[kaMokyk dh nhokyks es fpidk;s gSa A og tkurs gSa fd ,d vfHkusrk viuh fQYe ds iksLVjks esa [kqn dks ns[k dj ftruk fFkzy eglwl djrk gS] mruk gh n’kZd vius ghjks dh fQYe ds iksLVj dks ns[k dj fFkzy eglwl djrk gS A og lksprk gS fd 'kqdzokj dks] tc og fVdV [kjhn dj lqcg dk 'kks ns[ksxk rc iksLVj QkM+ dj mldk ghjks lkeus vk;sxk A D;k vkt Hkh lqcg ds 'kks esa iksLVj QVsxk vkSj ghjks fudysxk \

Sunday, 15 September 2013

दैट डे आफ्टर एवेरीडे

अनुराग कश्यप के निर्देशन में बनी संध्या मृदुल और राधिका आप्टे अभिनीत यह लघु फिल्म शीघ्र ही ऑनलाइन रिलीज़ होने जा रही है.
 
 


'राम' पर भारी पड़ेगी संजय की 'लीला' !

                       फिल्म प्रेमियों की निगाहें  १५ नवम्बर को  'रामलीला' पर लगी होंगी।  हालाँकि, तब तक दशहरा ख़त्म हुए एक महीना बीत चुका होगा. लेकिन, संजय लीला भंसाली की फिल्म की प्रतीक्षा तो हर दर्शक को होती है. फिल्म रामलीला भंसाली का  शेक्सपियर के नाटक रोमियो एंड जूलिएट का गुजराती संस्करण है. इस फिल्म में अभिनेत्री दीपिका पादुकोण  ने एक गुजराती जूलिएट लीला का रोल किया है. उनके रोमियो राम रणवीर कपूर बने है।  इस रोमांटिक ड्रामा फिल्म पर सभी निगाहें अलग अलग कारणों से लगी होंगी। ब्लैक के बाद संजयलीला भंसाली कोई हिट फिल्म नहीं दे सके हैं. बड़े बजट और स्टार कास्ट के बावजूद भंसाली निर्देशित पिछली दो फ़िल्में सांवरिया और गुज़ारिश बुरी तरह से फ्लॉप हुई है. संजयलीला भंसाली के लिए राम लीला का सफल होना जीवन मरण के सामान है. इसके लिए वह कोई कसर नहीं छोड़ रहे. वह हर शॉट पर मेहनत कर रहे हैं. सेट को शानदार बनाने की पूरी कोशिश में है. पहले फिल्म की लीला के लिया संजय ने करीना कपूर का चुनाव किया था। करीना भी संजय की लीला बनने के लिए बेताब थी.  इसी दौरान करीना कपूर की सैफ अली खान के साथ संभावित शादी की पुख्ता खबरें आने लगीं। संजयलीला भंसाली फिल्म के लिए किसी कुंवारी अभिनेत्री को लेना चाहते थे. करीना ने उन्हें भरोसा दिलाया भी था कि वह शादी के बावजूद फिल्म पूरी होने तक माँ नहीं बनेंगी। लेकिन, संजय ने करीना को बाहर का रास्ता दिखा कर दीपिका पादुकोण को ले लिया।  यहाँ बिल्ली के भाग्य से छींका फुट गया. दीपिका पादुकोण की इस साल प्रदर्शित तीनों फ़िल्में रेस २, यह जवानी है दीवानी और चेन्नै एक्सप्रेस बॉक्स ऑफिस पर एक सौ करोड़ कमाने वाली फ़िल्में बन गयी. दीपिका की फिल्मों की बॉक्स ऑफिस पर ऎसी सफलता संजयलीला भंसाली की फिल्म के लिहाज़ से फायदेमंद है. फिल्म के हीरो रणवीर सिंह लीला के राम बन कर सौ करोड़ की तीन फिल्मों की नायिका के हीरो बन जायेंगे। लेकिन, राम लीला दीपिका पादुकोण की अग्निपरीक्षा से कम नहीं होगी। संजयलीला भंसाली की फिल्मों में नायिका का महत्व हीरो से अधिक होता है. कहा जा सकता है कि उनकी फिल्मे नायिका पर केन्द्रित होती है. इसलिए राम लीला का पूरा भार, रणवीर सिंह के बावजूद दीपिका के कन्धों पर होगा। रणवीर अभी तक खुद  को बॉक्स ऑफिस का विश्वसनीय अभिनेता नहीं बना पाए हैं. इसी साल प्रदर्शित फिल्म लुटेरा इसकी पुष्टि करती है।  ऐसे कमज़ोर अभिनेता के साथ दीपिका को काफी कुछ हीरो वाली ज़िम्मेदारी निभानी होगी. इसके अलावा बॉक्स ऑफिस का दबाव भी होगा। वह तीन तीन हिट और सुपरहिट फ़िल्में दे चुकी हैं. तब क्यों नहीं कोई यह सोचे कि दीपिका इस साल चौथी १०० करोडिया फिल्म भी देगी। 
                     बहरहाल, राम लीला का फर्स्ट लुक आँखों को ठंडक पहुंचाने वाला है. दीपिका पादुकोण सुर्ख घाघरे में काफी आकर्षक लग रही हैं. वैसे भी उनकी लम्बी टाँगे घाघरे को नयनाभिराम बनाती हैं. रणवीर सिंह एक गुजराती वारियर रोमियो की वेशभूषा में शानदार लग रहे हैं।  फिल्म के सेट भी महंगे और भव्य हैं. इनसे यह तो कहा ही जा सकता  है कि भंसाली एक क्लासिक फिल्म पेश करेंगे। अब यह क्लासिक फिल्म बॉक्स ऑफिस पर बाजी मार ले जाए तो क्या कहने।
  


 

Saturday, 14 September 2013

रूह फ़ना कर देने वाली हॉरर स्टोरी !

                         

                         आम तौर पर भयावनी फिल्मों में खून सने, जले हुए और विकृत चहरे दर्शकों को डराने के काम आते हैं. रामगोपाल वर्मा ने भूत फिल्म से साउंड के ज़रिये दर्शकों को डराने का सफल प्रयास किया था. निर्माता- निर्देशक  विक्रम भट्ट  मायने में अलग हैं. उनकी फिल्मों में डरावने चेहरों का महत्व  नहीं होता। वह ऐसा माहौल तैयार करते हैं कि दर्शक सहमा सा रहता है. उनकी नयी फिल्म हॉरर स्टोरी बॉलीवुड फिल्मों की श्रंखला की सबसे बढ़िया और सही  मायनों में हॉरर फिल्म है.
                          सात दोस्तों की इस फिल्म की कहानी इतनी सी है कि वह सातों एक भुतिया होटल के एक haunted  कमरे में रात बिताने जाते हैं. वहां पहुंचाते ही सातों उस होटल में क़ैद हो जाते है. उसके बाद शुरू होता है एक के बाद एक उनका क़त्ल. यह क़त्ल करती है एक भटकती आत्मा।
                          फिल्म की कहानी में ऐसा कुछ नहीं है, जो नया हो. इसका नयापन है स्क्रिप्ट और स्क्रीनप्ले। सात दोस्तों के होटल के अन्दर जाने के बाद एक एक सीन दहला देने वाला है. सब कुछ कल्पना से परे भयावना होता है. फिल्म के पत्र होटल के अन्दर जैसे जैसे आगे बढ़ाते हैं, दर्शकों के दिलों की धड़कने तेज़ होती जाती हैं. सिहरन सर से पैर तक महसूस होती है. आप पसीने से भी नहा जाते हैं. हॉरर फिल्मों को खासियत होती है दर्शकों का भय. अगर दर्शक डर महसूस करता है तो परदे का हॉरर सच साबित हो जाता है. हॉरर स्टोरी को देखता दर्शक सीन शुरू होने से पहले ही चीखने चिल्लाने लगता है. यह अपने महसूस किये जा रहे डर की अभिव्यक्ति  है. फिल्म के लेखक विक्रम भट्ट और मोहन आज़ाद अपने इस प्रयास में खासे सफल कहे जा सकते हैं. उन्होंने हर सीक्वेंस इस प्रकार से लिखा है कि एक दृश्य के ख़त्म होते ही दर्शक दूसरे दृश्य के भय से उलझ जाता है. निर्देशक आयुष रैना ने विक्रम भट्ट के स्क्रीनप्ले को अपनी कल्पनाशीलता के ज़रिये बहुत खूब उतारा है. फिल्म में नए चहरे लिए गए हैं. टीवी स्टार करण कुंद्रा नील, रविश देसाई मंगेश, हस्सन जैदी सम्राट, निशांत मलकानी अचिंत, नंदिनी वैद सोनिया, अपर्णा बाजपाई मैगी और राधिका मेनन ने नीना के अपने किरदार के साथ पूरा न्याय किया है. यह नए चहरे भय की अभिव्यक्ति अपने चेहरों से बखूबी कर ले जाते हैं,यही कारण है कि दर्शक डेढ़ घंटे तक एक पल भी चैन महसूस नहीं करता है.फिल्म का बैकग्राउंड म्यूजिक भय पैदा करने में कामयाब रहा है. एडिटिंग ने फिल्म को चुस्त बनाये रखा है.  हॉरर फिल्मों के शौक़ीन दर्शकों के लिए यह 'ज़रूर देखें' फिल्म है.

 

ग्रैंड मस्ती : बूब्स, एस और.……!

             
             जब निशाने पर औरत के अंग और उसके साथ सेक्स करने की कभी ख़त्म न होने वाली इच्छा हो तो वह ग्रैंड मस्ती है।  कम से कम, ग्रैंड मस्ती के निर्देशक इन्द्र कुमार और उनके तीन हीरो विवेक ओबेरॉय, रितेश देशमुख और आफताब शिवदासानी यही सोचते हैं.
             ग्रैंड मस्ती कहानी है ( अगर इसे आप कहानी कह सकें तो ) तीन किरदारों अमर, मीत मेहता और प्रेम चावला की. इन भूमिकाओं को हिंदी फिल्मों के लगभग असफल अभिनेताओं रितेश देशमुख, विवेक ओबेरॉय और आफ़ताब शिवदासानी ने किया है. यह तीनों सेक्स के भूखे है. हरदम अपनी अपनी पत्नियों को बिस्तर पर ले जाने की जुगत में रहते हैं. एक दिन उन्हें अपने कॉलेज SLUT, जिसे वह स्लत कहते हैं बुलावा आता है. यह तीनो अपना सारा कामकाज छोड़ कर कॉलेज की लड़कियों के साथ मौज मस्ती यानि सेक्स करने की इच्छा से जाते हैं. वहां क्या होता है यह अंत तक अश्लील हाव भाव और संवादों की दास्ताँ है. यह सब किया गया है सेक्स कॉमेडी के नाम पर.
              रितेश देशमुख का करियर सोलो हीरो फिल्म लायक नहीं रहा. विवेक ओबेरॉय अब खलनायक बनने की राह पर हैं. अफताब शिवदासानी तो अब नज़र ही नहीं आते. फिल्म में अभिनेत्रियों की भरमार है. सोनाली कुलकर्णी मराठी अभिनेत्री हैं. कायनात अरोरा और वह हिंदी फिल्मों में अपना भाग्य आजमा रही हैं. करिश्मा तन्ना टीवी के लिए याद की जाती है. कायनात अरोरा ने मार्लो की भूमिका में, मरयम ज़कारिया ने रोज और ब्रुन अब्दुल्लाह ने मैरी के रोल में केवल अपने अंगों को उभारने और उत्तेजक ढंग से पेश करने को ही एक्टिंग समझा है. सुरेश मेनन अब अश्लील मुद्राओं में द्वीअर्थी संवाद बोलने के महारथी बन गए हैं. जब फिल्म में इतने 'प्रतिभावान' और 'सेक्सी' लोग जुटे हों तो ग्रैंड मस्ती अश्लील होगी ही. फिल्म हर प्रकार की अश्लीलता का प्रदर्शन करती है.
                मिलाप जावेरी ने अपने संवादों और चरित्र चित्रण के जरिये औरत को सेक्स ऑब्जेक्ट के तौर पर पेश किया है, जो तीन नायकों की कामुक इच्छाओं को पूरा करने के लिए हर समय तैयार रहती हैं. फिल्म में इस प्रकार की कल्पनाशीलता है, ताकि औरत का उत्तेजक और कामुक स्वरुप उभरे। तीनो हीरो कामुक मुद्राओं में नज़र आते हैं. फिल्म के तमाम पुरुष किरदारों के जननांग असली या नकली तौर पर चैतन्य रहते हैं. फिल्म का अंत अनीस बज्मी की नक़ल में और प्रदीप रावत के किरदार के जननांगों के उठाने के साथ ख़त्म होती है.
                यह एक बेहद निराशाजनक, घटिया और कमोबेश पोर्नो टाइप की फिल्म है. रही  के पसंद आने कि  तो पूरी फिल्म के दौरान हर सीन और संवाद में आवारा  सीटियाँ,तालियाँ और चीख चिल्लाहट उभरती रही. इससे यह साबित होता है कि पोर्नो फिल्मों के शौक़ीन दर्शकों के लिए सेंसर बोर्ड ने अच्छा मसाला परोस दिया है. 

Thursday, 12 September 2013

जॉनडे के साथ हॉरर स्टोरी और ग्रांड मस्ती


yhft, lkgc] xSzaM eLrh dk 'kqdzokj vk x;k A vfHkusrk foosd vkscsjk; dqN T;knk fcankl gks x;s gSa A og tkuuk pkgrs gS fd vkSjr eaxylw= iguus ds ckn dkelw= D;ksa Hkwy tkrh gS A fjrs’k ns’keq[k czwuk vCnqYyk dks ns[k dj og ns[kks esjh dgrs gSa rks foosd dgrs gS] dgka gS esjh rks fjrs’k dgrs gSa fd 'kDy ns[k og esjh gh rks gS] bl ij yM+dh dks Nkrh ls Vkaxks rd ns[k jgs foosd dk tokc gksrk gS] vjs rw Åij ns[k jgk gS A fjrs’k ns’keq[k dh pM~<h ij dqRrk geyk cksy nsrk gS A fQYe dh ,d ghjksbu dk;ukr vkjksM+k dk uke ekyksZ gS A fjrs’k mls ekj yks cqykrs gSa A fQYe ds foosd vkscsjk;] fjrs’k ns’keq[k vkSj vkQrkc f’konklkuh dh fcj;kfu;ka dk;ukr vkjksM+k] czwuk vCnqYyk vkSj ej;e tdkfj;k cykRdkj ds Hk; ls nwj vius v)ZuXu o{kksa dk izn’kZu [kq’kh [kq’kh dj jgh gSa A lkQ rkSj ij bUnzdqekj f}vFkhZ lEokn] csgwns gkoHkko vkSj v’yhyrk ds tfj;s ckWDl vkWfQl ij ,d vkSj fgV eLrh nsuk pkgrs gSa A mudh 2004 dh eLrh us mUgsa vkSj v’kksd Bkdfj;k dks rhl djksM+ dek dj fn;s Fks A

dkWesMh fQYesa cukus okys fQYedkjksa dh dkWesMh dk viuk QkewZyk gS A dkWesMh ds fljekSj MsfoM /kou dh fQYeks esa Hkn~ns vkSj f}vFkhZ lEokn feyrs gSa A ysfdu] muesa lsDl dh NkSad ugha gksrh A mudh dgkfu;ksa ds ghjks vke rkSj ij fcxM+Sy 'kgtkns gksrs gSa A vuhl cTeh dh dkWesMh esa ifjokj 'kkfey gksrk gS A mudh fQYeks esa v’yhyrk nwj ls gh rkSck djrh gS A cM+s flrkjs vkSj ,D’ku bls u;k ,axy nsrs gSa A jktdqekj larks"kh dh dkWesMh fQYesa ges’kk lkQ lqFkjh gksrh gSa A fiz;n’kZu dh dkWesMh fQYeksa dh vyxa lqxU/k gS vkSj LFkkbZ dykdkj Hkh A og Hkn~nsiu dks rkdrs rd ugha A lkftn [kku dh yxHkx lHkh fQYes f}vFkhZ lEoknksa vkSj v’yhy gkoHkko dh vFkhZ ij lokj gksrh gS A fny] csVk] jktk] b’d] eu] vkf’kd vkSj fj’rs tSlh ikfjokfjd vkSj jksekal fQYesa cukus okys bUnzdqekj us igyh ckj eLrh fQYe ls gh n’kZdksa dks v’yhyrk ijkslh A ,drk diwj ds dkj.k I;kjs eksgu dh v’yhyrk nqxquh gks x;h A /keky vkSj Mcy /keky Hkh f}vFkhZ lEokn] lsDl vihy vkSj Hkn~ns gkoHkko okyh Fkh A vc bUnzdqekj lsDl ;k ,MYV dkWesMh ds tfj;s n’kZdksa dks vihy djus vk;s gSa A D;k og vius bl iz;kl esa lQy gksaxs \

loky ;g ugha fd D;k bUnzdqekj dh dkWesMh fQYe xzSaM eLrh fgV gksxh ;k ugha \ D;ksafd] fgUnh n’kZd dkWesMh fQYesa ilUn djrk gS A v{k; dqekj vkSj lyeku [kku dh ,D’ku dkWesMh fQYesa n’kZdksa dks jkl vkrh gS A ij bUnzdqekj dh xSazM eLrh lsDl dkWesMh ;k ,MYV dkWesMh gS A dkWesMh dh ;g 'kSyh Hkkjrh; n’kZdksa ds fy, cgqr iqjkuh ugha gS A ijEijk vkSj :f<+;ksa ls ca/kk fgUnh n’kZd ifjokj ds lkFk ,slh fQYesa ns[kus esa [kqn dks vlgt eglwl djrk gS A fiNys lky gh] 2005 dh lqij fgV lsDl dkWesMh fQYe D;k dwy gSa ge dk lhDosy D;k lqij dwy gSa ge Q~yki gks pqdk gS A bl fQYe esa f}vFkhZ lEoknksa vkSj v’yhy gkoHkkoksa dh Hkjekj Fkh A fQYe ds reke lhDosal vkSj lEokn f?klsfiVs Fks A blfy,] D;k lqij dwy gSa ge ckWDl vkWfQl ij dqN [kkl ugha dj ldh Fkh A f}vFkhZ lEoknksa ds dkj.k fiz;n’kZu dh dkWesMh deky /keky ekykeky rks cqjh rjg ls Q~yki gks x;h A fdLer yo iSlk fnYyh ;kuh ds,yihMh dh fdLer fnYyh ds ckWDl vkWfQl rd esa ugha [kqy ldh A lkQ rkSj ij n’kZdksa dks f}vFkhZ lEokn vkSj v’yhyrk jkl ugha vkrh A xzSaM eLrh ds lkFk Hkh ;g nksuks tqM+s gq, gSa A fQYe ds izskekst esa bls lkQ eglwl fd;k tk ldrk gS A   

bUnzdqekj dh xzSaM eLrh ckWDl vkWfQl ij nks rjQ ls f?kjh gqbZ gS A blds ,d rjQ gkWjj gS] nwljh rjQ fFkzyj A ;g nksuksa 'kSfy;ka fgUnh n’kZdksa dks dkQh ilUn vkrh gSa A gkWjj fQYeksa ds ekfgj fodze HkV~V vius psys vk;q"k jSuk dks funsZ’kd cuk dj gkWjj LVksjh ls n’kZdksa dks Mjkus vk;s gSa A og Vhoh ,DVj dj.k dqwUnzk ds vykok fu’kkar eydkuh] jfo’k nslkbZ] glu tSnh] 'khry flag] vi.kkZ cktisbZ] jkf/kdk esuu vkSj ufUnuh oSn dks ysdj lkr nksLrksa ds ,d gksVy ds Hkwfr;k dejs esa jkr xqtkjus dh Mjkouh nkLrku is’k dj jgs gSa A fodze dk nkok gS fd ;g fQYe igyh jhy ls gh vkidks Mjk;sxh A n’kZd muds bl nkos ij Hkjkslk Hkh djrs gSa A D;ksafd] fodze HkV~V us 1920] 'kkfir] gkWaVsM] jkt 3Mh vkSj 1920% bZfoy fjVUlZ tSlh fQYeksa ls n’kZdksa dks cgqr Mjk;k gS A og fQYe ds izeks’ku ds nkSjku i=dkjksa ds lkr lkr ds tRFks dks Mjk Hkh pqds gSa A xzSaM eLrh dks [krjk tkWuMs ls Hkh gS A ;g fFkzyj fQYe gS A jgL; ds /kqa/kyds es f?kjh ,d 'kjkch yM+dh dh nkLrku A bl euksoSKkfud fFkzyj fQYe Hkh dgk tk jgk gS A bl fQYe dh 'kjkch yM+dh bysuk dtku gS A ij fQYe ulh:n~nhu 'kkg vkSj edjan ns’kikaMs tSls l{ke vfHkusrkvksa vkSj j.knhi gqM~Mk dh ekpks vihy ds dkj.k n’kZdksa dks flusek?kjksa rd yk ldrh gS A bl fQYe ds funsZ’kd vfg’kksj lkykseu igyh ckj fdlh iwjh yEckbZ dh fQYe dk funsZ’ku dj jgs gSa A gkWjj LVksjh Hkh vk;q"k jSuk dh igyh ,d iwjh funsZ’kdh; fQYe gS A

vkt ckWDl vkWfQl ij lsDl vihy dk vtc eqdkcyk Hkh gksxk A D;k bysuk dtku viuh lsDl vihy vkSj vfHku; dh dkWdVsy ls n’kZdksa dks tkWuMs dk eqjhn cuk ik;saxh \ D;k ufUnuh oSn] jkf/kdk esuu vkSj 'khry flag dh lsDl vihy gkWjj LVksjh dks gkWV LVksjh cuk ik;saxh \ bUnzdqekj rks ;g mEehn dj jgs gksaxs fd mudh czwuk vCnqYyk] dk;ukr vkjksjk vkSj ej;e tdkfj;k dh fcj;kuh ds lkFk dfj’ek rUuk] eatjh QM+uhl vkSj lksukyh dh ?kj dh nky jksVh rM+dk NkSadk yxk dj Lokfn"V cu dj n’kZdksa dh eLrh dks xzSaM eLrh esa rCnhy dj ik;sxh A gksxk D;k \ pfy, vkt pyrs gSa tkWuMs ds lkFk gkWjj LVksjh lqurs gq, xzSaM eLrh djus !

Wednesday, 11 September 2013

कृष ३ में भी रघुपति राघव

 दीपावली वीकेंड में रिलीज़ होने जा रही राकेश रोशन की फिल्म कृष ३ का प्रमोशन मीडिया में, ख़ास तौर पर, सोशल मीडिया में ज़बरदस्त तरीके से किया जा रहा है. इस फिल्म के नए टीज़र रघुपति राघव में अभिनेता हृथिक रोशन अपनी अद्भुत नृत्य प्रतिभा का प्रदर्शन करते नज़र आते हैं. बेशक, इसमे उनका साथ अभिनेत्री प्रियंका चोपड़ा तथा अन्य डांसर बखूबी दे रहे हैं. इस १५ सेकंड के टीज़र को यू-tube और ट्विटर पर ३.६० लाख लोगों द्वारा देखा जा चूका है. इस फिल्म का संगीत निर्देशक राकेश रोशन के भाई राजेश रोशन ने तैयार किया है. अपने संगीत की खासियत को बताते हुए राजेश रोशन कहते हैं, ''मेरा संगीत शराब की तरह है...जितनी पुरानी, उतना ज्यादा नशा. लोग मेरी पुरानी धुनों का आजतक मज़ा लेते हैं.'' यह फिल्म २००३ में रिलीज़ हृथिक रोशन की पहली विज्ञानं फंतासी फिल्म कोई मिल गया की तीसरी कड़ी है।  इस फिल्म का सीक्वल कृष २००६ में रिलीज़ हुआ था. कोई मिल गया में हृथिक की नायिका प्रिटी जिंटा थीं. कृष ३ में हृथिक की नायिका कृष की प्रियंका चोपड़ा ही हैं. इस फिल्म में हृथिक रोशन कृष के रूप में अपनी सुपर पॉवर का प्रदर्शन करते नज़र आयेंगे। पहले के दो भागों की तरह कृष ३ का पार्श्व संगीत सलीम सुलेमान की जोड़ी द्वारा ही तैयार किया गया है.  

Saturday, 7 September 2013

अपूर्व लाखिया की ज़ंजीर में बंधे रामचरन

काम न आया संजय दत्त से हाथ मिलाना 
                    हर निर्देशक आनंद एल राज नहीं होता कि किसी धनुष को हिंदी दर्शकों का राँझना बना सके. अपूर्व लाखिया ऐसे निर्देशक नहीं। उन्होंने रामचरन को हिंदी  दर्शकों से introduce कराने के लिए चालीस साल पहले की फिल्म का रीमेक बनाया। उन्होंने एक पल नहीं सोचा कि सत्तर के दशक की कहानी आज के दर्शकों को क्यों कर पसंद आयेगी ! कहानी में फेरबदल  किया तो केवल यह कि विलेन  तेल माफिया था. बाकी कहानी पूरी की पूरी १९७३ की ज़ंजीर वाली घिसीपिटी थी. इस कहानी पर वह बढ़िया स्क्रीनप्ले बनवा कर नयापन ला सकते थे. मगर, स्क्रीनप्ले राइटर सुरेश नायर पुरानी ज़ंजीर से आगे नहीं सोच सके. अलबत्ता, माही गिल के किरदार से अश्लीलता भरने की कोशिश ज़रूर की गयी. देखा जाए तो अपूर्व लाखिया अमिताभ बच्चन से इतना प्रभावित थे कि उन्होंने पहले ही यह मान लिया कि अमिताभ बच्चन के किरदार को दूसरा कोई नहीं कर सकता है. इसलिए, उन्होंने अपना सबसे बेहतर चुनाव रामचरन को लिया तो लेकिन, उनके साथ कोई मेहनत नहीं की. ऐसा लगा जैसे साउथ के इस सुपरस्टार को कुछ भी करते रहने की छूट दे दी गयी थी. अपूर्व ने रामचरन को इंस्पेक्टर विजय खन्ना के किरदार में ढालने की कोई कोशिश नहीं की. रामचरन के हावभाव और चाल ढाल पुलिस वाले बिलकुल नहीं लगे. हालाँकि, उन्होंने खुद के सक्षम एक्टर होने का प्रमाण दिया. अपूर्व ने संजय दत्त को महत्त्व देते हुए रामचरन के किरदार को कर दिया. एक पल को यह नहीं सोचा कि हिंदी दर्शक हीरो को हीरो बनाते देखना चाहता है. संजय दत्त को महत्त्व देने में अपूर्व यह नहीं याद रख सके कि अगर संजय में दम होता तो वह अपनी फिल्म पोलिसगिरी को हिट करा ले गए होते। माला के किरदार में प्रियंका चोपड़ा ने दम भरने की कोशिश ज़रूर कि उनका आइटम पिंकी झटके दार भी था. मगर बेदम लेखन ने प्रियंका को भी बेदम कर दिया. आयल माफिया बना तेजा का चरित्र प्रकाश राज कर रहे थे. लेकिन, समझ नहीं आया कि उन्हें कॉमिक टच देने की क्या ज़रुरत पद गयी थी. साउथ की फिल्मों में रामचरण के अपोजिट विलेन खूंखार होता है और इसे प्ले करने वाला अभिनेता लाउड एक्टिंग करता है. निश्चित रूप से माही गिल ने अश्लीलता का दामन थाम, लेकिन वह सेक्सी नहीं लग सकीं। संजय दत्त जब आते हैं, अपनी पंच लाइनों से तालियाँ बटोर डालते हैं.
                फिल्म में निर्देशक अपूर्व लाखिया, स्क्रीनप्ले राइटर सुरेश नायर ने अपना काम अच्छी तरह से अंजाम नहीं दिया. उनकी इस गलती का खामियाजा ज़ंजीर २.० भोगेगी ही, बेचारे रामचरन के माथे पर असफलता का दाग भी लग गया है. फिल्म संगीत के लिहाज से भी कमज़ोर है. एडिटर चिन २ सिंह फिल्म एडिटिंग में चिंटू ही साबित होते हैं.
                यह फिल्म सिंगल स्क्रीन ऑडियंस के लिए थी. यह ऑडियंस फिल्म देखने भी गया. लेकिन बाहर निकला निराश हो कर. ऐसे निराश दर्शक की प्रतिक्रिया काफी खतरनाक होती है. इसलिए कोई शक नहीं अगर बॉक्स ऑफिस पर ज़ंजीर ज़ल्दी टूट जाये. अफ़सोस रामचरन तेजा।

देसी रोमांस का बैंड बजाती फिल्म शुद्ध देसी रोमांस

परिणीती के कमीज़ के बटन खोलते सुशांत 
                  मनीष शर्मा बैंड बाजा बरात और लेडीज वर्सेज रिक्की बहल के बाद शुद्ध देसी रोमांस लेकर आते हैं, तो उनके प्रशंसक दर्शकों को उम्मीद बधती है कि उन्हें एक अच्छी मनोरंजक फिल्म देखने को मिलेगी. लेकिन, मनीष शर्मा अपनी पहले की फिल्मों की सफलता से इतने आत्म मुग्ध हो गए कि उन्होंने अपनी पहले की दोनों फिल्मों का कुछ न कुछ डाल लिया. बैंड बाजा बरात में मैरिज प्लानर की कहानी थी तो शुद्ध देसी रोमांस में शादी की बरात में अच्छे कपडे पहन कर अंग्रेज़ी बोलने वाले किरदार है. फिल्म के दौरान जब रघु शादी के मंडप पर लड़की छोड़ कर भाग जाता है और परिणीती पर डोरे डालने लगता है तो लेडीज वर्सेज रिक्की बहल की याद ताजा हो जाती है. हाँ, तो फिल्म की बात हो रही थी. अब होता यह है कि शादी की बरात में नाचने वाले ऐसे ही एक किरदार रघुराम की शादी की बरात जा रही है. उसमे शामिल होने के लिए अल्ट्रा मॉडर्न गायत्री आती है. ऐन शादी के वक़्त रघु को पेशाब लगती है और वह टॉयलेट से भाग खड़ा होता है. अगले ही सीन में रघु से गायत्री मिलती है. दोनों चालू पीस हैं.  गायत्री तीन चार लड़कों के साथ पहले भी सो चुकी है. वह और रघु भी एक साथ सोते है. दोनों शादी की दहलीज़ तक पहुंचते हैं कि इस बार गायत्री को पेशाब लगती है और वह टॉयलेट से फरार हो जाती है. अब रघुराम को मिलती है तारा। इस बार रघु उसकी और आकर्षित होता है. एक शादी में गायत्री भी मिल जाती है. दो लड़कियों की जद्दो जहद में फंसे रघु की फिल्म का अंत भी बाथरूम में होता है.
                      फिल्म  में कहानी नदारद है. मनीष शर्मा ने एक लड़का, दो लड़की, एक बाथरूम, एक बारात, धकाधक चुम्बन चाटन और सेक्स दृश्यों के सहारे दो घंटे से ज्यादा की फिल्म बना डाली है. यह सब सिचुएशन  और संवादों के सहारे इतनी बार दिखाया जाता है कि फिल्म का अंत इसी पर ख़त्म होता देख कर दर्शक  निराशा से भर उठता है. यशराज फिल्म्स से इतनी अधकचरी फिल्म की अपेक्षा नहीं की जाती। निर्माता आदित्य चोपड़ा को यह समझना होगा कि संवाद के सहारे बनी कोई फिल्म बिना दूल्हे की बारात जैसी होती है. एडिटर नम्रता राव अगर अपनी कैंची चलाती तो फिर पहले पेशाब प्रसंग के अलावा रिपीट हुए कोई दृश्य नहीं बचते. मनु आनंद का छायांकन जयपुर के खूबसूरत दृश्यों को दर्शकों के सामने लाता है. सचिन जिगर का संगीत यादगार नहीं कहा जा सकता. केवल एक दो धुनें ही ठीक बनी हैं. अभिनय की बात की जाए तो सुशांत को उनकी भोली शक्ल और पवित्र रिश्ता वाली इमेज के कारण लिया जाता है. सुशांत अपनी हर फिल्म में पवित्र रिश्ता के मानव को दोहराते हैं. परिणीती चोपड़ा भी सीमित प्रतिभा की अभिनेत्री है। इसलिए वह गायत्री के चरित्र को आराम से कर ले जाती हैं. वाणी कपूर को बहुत मौके नहीं मिले। पर वह अपने ग्लैमर से आकर्षित करती हैं. सबसे बढ़िया और स्वाभाविक काम उन बाथरूमों का रहा है, जो नेचुरल नज़र आते हैं.
                        शुद्ध देसी रोमांस छोटे शहरों और कस्बों के युवाओं की मानसिकता को ध्यान में रख कर बनायी गयी है. निर्देशक मनीष शर्मा जानते हैं कि  यह दर्शक घटिया और भद्दे शब्दों वाले संवादों पर तालियाँ और सीटियाँ बजाता है. उसे लौंडिया का लपक कर चुम्बन चमेटने  वाला हीरो रास आता है. जब हीरो हेरोइन को बिस्तर दे मारता है तो यह युवा कुर्सियां तोड़ने को तैयार हो जाता है. फिल्म में यही कुछ इफरात में है.
                         अगर  आप छोटे कस्बे वाली मानसिकता वाले दर्शक है और केवल संवादों के सहारे फिल्म देख सकते हैं तो यह फिल्म आपके ही लिए बनी है. 
                    




 

Thursday, 5 September 2013

राजा के लिए छोड़ा राजकुमार ने बॉक्स ऑफिस


प्रभुदेवा निर्देशित फिल्म रेम्बो राजकुमार की रिलीज़  टाल  दी गयी है. पहले २९ नवम्बर को रिलीज़ होने जा रही यह फिल्म अब ६ दिसम्बर को रिलीज़ होगी. इस फिल्म की रिलीज़ २९ नवम्बर को बुलेट राजा की रिलीज़ से टकराने के कारण टालना पड़ा।  बुलेट राजा का निर्देशन तिग्मांशु धुलिया ने किया है. शाहिद कपूर  की फिल्म की रिलीज़ इसलिए नहीं टाली गयी कि सैफ अली खान की फिल्म से नहीं टकराना चाहती थी. बल्कि, इस लिए टाली गयी क्योंकि यह दोनों फिल्मे निर्माता कंपनी इरोस की थी. इन दोनों में फिल्मों की हीरोइन सोनाक्षी सिन्हा हैं. कोई भी निर्माण संस्था और एक्ट्रेस नहीं चाहेगी कि उसकी दो फ़िल्में एक ही दिन रिलीज़ हो कर एक दूसरे को नुकसान पहुंचाए। 'राजकुमार' ने 'राजा' के लिए मैदान छोड़ दिया है तो देखें बॉक्स ऑफिस की गद्दी पर कौन काबिज होता है.
                                           

क्या दक्षिण से मिलने जा रहा है बॉलीवुड को सुपर स्टार !

चालीस साल पहले रिलीज़ प्रकाश मेहरा की सुपर हिट फिल्म ज़ंजीर ने अमिताभ  बच्चन को सुपर स्टार बना दिया था. उस समय अमिताभ बच्चन ३१ साल के थे.  बताते हैं कि उस समय तक अमिताभ बच्चन १३ सुपर फ्लॉप फ़िल्में दे चुके थे. उनके बॉम्बे से लुटिया पुटिया बटोर लेने की नौबत आ गयी थी. ज़ंजीर से उन्होंने हिंदी दर्शकों को अपने आकर्षण में कुछ इस तरह बाँधा कि उतार चढ़ावों के बावजूद उनकी दूकान चल रही है. अब चालीस साल बाद अपूर्व लाखिया की ज़ंजीर फिल्म की रीमेक फिल्म ज़ंजीर २.० रिलीज़ हो रही है. यह फिल्म उन्होंने चालीस साल पहले की ज़ंजीर के निर्देशक प्रकाश मेहरा के बच्चों से अनुमति लेकर इस फिल्म का रीमेक किया है. कहते हैं कि इतिहास खुद को दोहराता है. इस लिहाज़ से ज़ंजीर २.० के हीरो रामचरन तेज बॉलीवुड के सुपर स्टार बनने जा रहे हैं. अमिताभ बच्चन १९७३ की ज़ंजीर के समय ३१ साल के थे. जबकि, रामचरन इस समय २८ साल के हैं. उन्होंने तेलुगु फिल्मों में २००७ से अपना फिल्म
करियर शुरू किया था. वह अब तक चिरुथा, मगधीरा, ऑरेंज, रचा और नायक जैसी हिट सुपर हिट फ़िल्में दे चुके हैं. वह बॉलीवुड की एक सुपर हिट फिल्म से अपने हिंदी फिल्म करियर की शुरुआत कर रहे हैं.  बॉलीवुड की सबसे सफल  अभिनेत्रियों में से एक प्रतिभाशाली अभिनेत्री प्रियंका चोपड़ा फिल्म में उनकी नायिका हैं. एक एक्शन फिल्म से रामचरन ज़बरदस्त शुरुआत सकते हैं. फिल्म में वह अपनी अभिनय प्रतिभा का प्रदर्शन कर हिंदी दर्शकों को अपना कायल बना सकते हैं।  उन्हें याद होगा कि अभी उनके तमिल काउंटरपार्ट धनुष ने रान्झाना में केवल अपनी अभिनय प्रतिभा के ज़रिये हिंदी दर्शकों को अपना प्रशंसक बनाया।

                       होगा क्या यह तो बॉक्स ऑफिस पर दर्शकों द्वारा तय किया जाएगा।  फिलहाल तो यह सोचा ही जा सकता  है कि दक्षिण आ रहा है एक सुपर स्टार !
 

हिंदी फिल्मों में 'गुरु' महिमा



हिंदी फिल्मों में गुरु नाम  वाले केवल एक अभिनेता हुए गुरुदत्त. ९ जुलाई १९२५ को बेंगलुरु में जन्मे गुरुदत्त का नाम वसंत कुमार शिवशंकर पादुकोण था. उन्होंने बाजी, जाल, मिस्टर एंड मिसेज ५५, प्यासा और कागज़ के फूल जैसी फिल्मों का निर्देशन किया. वह एक संवेदनशील अभिनेता थे. १० अक्टूबर १९६४ को उन्होंने आत्महत्या कर ली.
२००७ में रिलीज़ मणिरत्नम की फिल्म गुरु ने  अभिषेक बच्चन और ऐश्वर्य रॉय की अब तक ढाई अक्षर प्रेम के और उमराव जान जैसी फ्लॉप फिल्मों की जोड़ी को हिट बना दिया। अब यह बात दीगर है कि धीरू भाई अम्बानी के जीवन पर गुरु के  ऐश-अभिषेक जोड़ी की फिल्म रावण फ्लॉप हो गयी. दिलचस्प तथ्य यह है कि रावण का निर्देशन गुरु मणि रत्नम ने ही किया था.
१९८९ में श्रीदेवी की उमेश महरा निर्देशित फिल्म गुरु रिलीज़ हुई थी। इस फिल्म में उनके जोड़ीदार मिथुन चक्रवर्ती थे. इस फिल्म को  बॉक्स ऑफिस पर सफलता मिली थी. इसी फिल्म के दौरान मिथुन चक्रवर्ती और श्रीदेवी की शादी की अफवाह उडी और फोटो प्रकाशित हुए.
दक्षिण के सुपर स्टार धनुष हिंदी फिल्म रान्झाना की सफलता के बाद दक्षिण के अभिनेताओं के हिंदी गुरु बन गए हैं. वह आज कल तमिल फिल्मों के मशहूर अभिनेता भारत को हिंदी उच्चारण सिखा रहे हैं. भारत फिल्म जैकपोट से बॉलीवुड में डेब्यू करेंगे।
अभिनेता सलमान खान आज कल ब्राजील की मॉडल ब्रूना अब्दुल्ला के गुरु बने हुए हैं. वह मेंटल फिल्म में सना खान और डेज़ी शाह के हीरो हैं, लेकिन उनका पूरा ध्यान फिल्म में एक छोटा रोल कर रही ब्रूना अब्दुल्ला को हिंदी सिखाने में लगा हुआ है. ब्रूना ने अब तक कैश, आई हेट लव स्टोरीज़. देसी ब्वॉयज़, हिम्मतवाला और एक तमिल फिल्म बिल्ला-2 में अभिनय किया है.
भगवान दादा को  बॉलीवुड का डांस गुरु  कहा जा सकता है. चालीस और पचास के दशक में उनके नाचने के ख़ास अंदाज़ ने धूम मचा दी थी. दर्शक उनका डांस देखने के लिए ही फिल्म देखने जाते थे. अमिताभ बच्चन को लम्बी टांगों के कारण डांस करने में परेशानी होती थी. इसलिए उन्होंने भगवान् दादा वाला अंदाज़ अपनाया। अमिताभ भगवान् दादा को अपना डांसिंग गुरु कहते थे. बाद में किसी न किसी फिल्म में मिथुन चक्रवर्ती, ऋषि कपूर और गोविन्द ने भी भगवान् दादा स्टाइल में डांस किया।
सुना है कि अनिल शर्मा देओलों धर्मेन्द्र, सनी देओल और बॉबी देओल को लेकर एक फिल्म मास्टर बनाने हैं.
 

Tuesday, 3 September 2013

गैंग्स ऑफ़ घोस्ट के खास गाने के शूट लिए नए लोकेशन की तलाश


 गैंग्स  ऑफ़ घोस्ट की यूनिट को फिल्म के एक ख़ास गीत के लिए मुंबई में ख़ास लोकेशन की तलाश है. पहले इस गीत की शूटिंग मुंबई की कुख्यात शक्ति मिल्स में होनी थी. बरसों से वीरान पड़ी इस मिल में पिछले दिनों एक मागज़ीने की महिला फोटोग्राफर के साथ जघन्य बलात्कार से बॉलीवुड भी आहत हुआ है. इसीलिए, निर्देशक सतीश कौशिक ने यह निर्णय लिया कि हम इस घटना का विरोध करते हुए अपनी फिल्म की शूटिंग लक्ष्मी मिल में नहीं करेंगे। अब गैंग्स  ऑफ़ घोस्ट के गैंग को तलाश है उपयुक्त लोकेशन की. क्या किसी की निगाह में शक्ति मिल्स  मिल्स जैसी वीरान मिल है?
 लेकिन ध्यान रहे कि वह जगह बलात्कारियों और अपराधियों की चारागाह नहीं होनी चहिये. गैंग्स ऑफ़ घोस्ट से प्रियंका चोपड़ा और परिणीती चोपड़ा की कजिन मीरा चोपड़ा का डेब्यू होने जा रहा है.
 

Monday, 2 September 2013

रजनीकांत की फिल्म कोचदैइयान का ट्रेलर गणेश चतुर्थी के दिन रिलीज़ होगा


                          
इंडियन सुपरस्टार रजनीकांत की फिल्म कोचदैइयान  का ट्रेलर ९ सितम्बर को गणेश  चतुर्थी के दिन रिलीज़ होगा. रोबोट के बाद रिलीज़ होने वाली रजनीकांत की यह फिल्म है. इस ३डी फिल्म का निर्देशन रजनीकांत की बेटी सोन्दर्य ने किया है. फिल्म के ट्रेलर की रिलीज़ के बारे में सोन्दर्य ने अपने ट्विटर अकाउंट में लिखा, ''(आइ ऍम) एक्साइटेड टु announce  'कोचदैयान' टीज़र विल रिलीज़ दिस सितम्बर ९.'' यह भारत की पहली मोशन कैप्चर टेक्नोलॉजी फिल्म है. इस टेक्नोलॉजी पर हॉलीवुड की अवतार और टिन टिन  जैसी फ़िल्में बनायी गयी

डबिंग करते हुए रजनीकांत 
हैं. मूल रूप से तमिल में बनायी गयी इस फिल्म को हिंदी के अलावा तेलुगु और मलयालम में डब कर रिलीज़ किया जायेगा। इस फिल्म में रजनीकांत की दोहरी भूमिका है. तथा दक्षिण के शरद कुमार, शोबना, आदि पिनिसेत्टी और नासर जैसे मशहूर कलाकारों के अलावा हिंदी फिल्मों की सबसे सफल अभिनेत्री दीपिका पदुकोन और अभिनेता जेकी श्रॉफ महत्वपूर्ण भूमिकाओं में नज़र आयेंगे। इस फिल्म को  जापानी, इतालियन और स्पेनिश भाषाओँ में डब कर वर्ल्डवाइड रिलीज़ किया जयेगा. फिल्म के बजट के बारे में बताया जा रहा है कि इस फिल्म के निर्माण में १०० करोड़ से अधिक का खर्च हो चूका है.

 

Friday, 30 August 2013

प्रकाश झा का कमज़ोर 'सत्याग्रह'


प्रकाश झा की आज रिलीज़ हुई फिल्म सत्याग्रह की पूरी कहानी  मशहूर सामाजसेवी  अन्ना हजारे के दिल्ली में छेड़े गए आमरण अनशन और सत्याग्रह की चरित्र by चरित्र नक़ल है. प्रकाश झा और  उनकी लेखक टीम का कोई ओरिजिनल है तो वह यह कि अन्ना से प्रेरित करैक्टर दद्दू जी फिल्म के क्लाइमेक्स में पुलिस की फायरिंग का शिकार हो जाता है.  फिल्म को लिखा जितना मामूली गया है, उतना ही मामूली काम अजय देवगन, अमिताभ बच्चन, अर्जुन रामपाल, करीना कपूर, अमृता राव, विपिन शर्मा, आदि से लिया गया है, यहाँ तक कि  मनोज बाजपाई भी अपनी पिछली फिल्मों आरक्षण और राजनीती के करैक्टर को बुरी तरह से दोहराते हैं. प्रकाश झा को एक स्टार दिया जाना चाहिए कि उन्होंने इतने बड़े सितारों की ऐसी की तैसी कर दी. बेचारी अमृता राव को न तो ढंग का रोल मिला, न ढंग के कपडे ही. अजय देवगन अब काफी थक चुके लगते हैं. भगवान् का शुक्र है कि अभी वह चुके नहीं हैं. अच्छा होगा कि  वह दोस्ती निभाने के बजाय रोल देखना शुरू कर दें. करीना कपूर ने खूबसूरत शक्ल के साथ बुरा काम अंजाम दिया है. ऐसा लग रहा है कि अमिताभ बच्चन ज़ल्द ही मिल्लेनियम फ्लॉप स्टार बनाने जा रहे हैं.   
आरक्षण फियास्को के बाद से प्रकाश झा अब अपनी फिल्मों के किसी जीवित या मृत,  वास्तविक या काल्पनिक घटना से रेसेम्ब्लेंस से साफ़ इनकार करते है, वह सत्याग्रह को अन्ना हजारे के आन्दोलन से प्रेरित मानने से इनकार करते हैं, लेकिन फिल्म का हर फ्रेम अन्ना के आन्दोलन की याद दिलाता है. पर इसके बावजूद उनका यह रील लाइफ आन्दोलन बिलकुल भी प्रभावित नहीं कर पाता. प्रकाश झा ने अन्ना के आन्दोलन को बीजेपी के समर्थन का आरोप भी फिल्म में लगाया है. विपिन शर्मा का गौरी शंकर का किरदार बीजेपी अध्यक्ष राजनाथ सिंह की याद ताज़ा करता है. प्रकाश झा ने जनता की नब्ज़ पकड़ने वाला विषय लिया ज़रूर था. लेकिन, वह खुद आन्दोलन की नब्ज़ नहीं समझ पाए. उनकी फिल्म का आन्दोलन बेहद सतही और निर्जीव लगता है. यह आन्दोलन जनता का नहीं इंडिविजुअल ख्वाहिशों वाला बन जाता है. सब कुछ इतना आसान दिखाया गया है कि एक आन्दोलन की भावना बिल्ड नहीं होने पाती. प्रकाश झा की फिल्म अन्ना के आन्दोलन का समर्थन भी नहीं करती और उसकी पोल खोलने की हिम्मत भी नहीं जुटा पाती। अगर प्रकाश झा अजय देवगन के किरदार के जरिये पूंजीपतियों के अन्ना के आन्दोलन को समर्थन की पोल खोलते और अन्ना के समर्थकों की व्यक्तिगत ख्वाहिशों की पोल खोल पाते तो एक अच्छा काम कर पाते। लेकिन, वह शायद अन्ना के आन्दोलन से इतने भयभीत हैं कि उसकी पोल खोलने वाली कहानी गढ़ने की हिम्मत तक नहीं जुटा पाते। कहा जा सकता है कि सत्याग्रह प्रकाश झा की सबसे कमज़ोर फिल्मों में से एक है.
अब बात आती है फिल्म देखने और इसे स्टार देने की. यह फिल्म प्रकाश झा की अन्ना के जन आन्दोलन पर बेहद कमज़ोर फिल्म है. आप देखना चाहे तो देखे ताकि यह जान सकें कि अन्ना के आन्दोलन के प्रति फिल्मकारों का रवैया क्या है. रही बात स्टार की तो मैं स्टार देता नहीं. क्योंकि, मुझे स्टार देने लायक फिल्म देखना आता नहीं। मैं जो लिखता हूँ आम दर्शक के नजरिये से. इस नज़रिए से मैं प्रकाश झा को एक स्टार देना चाहूँगा की उन्होंने बड़ी आसानी से इतने बड़े सितारों को मटियामेट कर दिया।  

Monday, 26 August 2013

मद्रास कैफ़े जा रहे हैं दर्शक

                                                       मद्रास कैफ़े, चेन्नई एक्सप्रेस और वन्स अपॉन अ टाइम इन मुंबई दुबारा का वीकेंड बॉक्स ऑफिस कलेक्शन देखिये, ज़मीन  आसमान का फर्क नज़र आएगा।  दो हज़ार स्क्रीन में रिलीज़ जॉन अब्राहम  की फिल्म मद्रास कैफ़े ने पहले दिन स्लो स्टार्ट करते हुए २५ से ३५ प्रतिशत की ऑक्यूपेंसी के सात ५.१७ करोड़ का बिज़नस किया. शुक्रवार की शाम से ही मद्रास कैफ़े ने pickup करना शुरू किया. इस प्रकार से फिल्म ने शनिवार को ७ करोड़ कमाए। सन्डे को फिल्म ने जम्प लिया. बिज़नस हुआ ८.५० करोड़ का. इस प्रकार से मद्रास कैफ़े का वीकेंड कलेक्शन २०.६७ करोड़ का हुआ. इस प्रकार से जॉन अब्राहम ने अपनी पिछली सोलो फिल्म फ़ोर्स के वीकेंड रिकॉर्ड में सुधार कर लिया. फ़ोर्स ने वीकेंड में ५.०५, ४.७५ और ६.२० करोड़ का बिज़नस करते हुए कुल १६ करोड़ का वीकेंड कलेक्शन किया था.
                             चेन्नई एक्सप्रेस का कलेक्शन देखिये. शुक्रवार को इस फिल्म ने मद्रास कैफ़े के कलेक्शन का डेढ़ गुना यानि ३३.१२ करोड़ का कलेक्शन किया। इसके बाद फिल्म का कलेक्शन गिरना शुरू हुआ और अगले दो दिनों में फिल्म ने २८.०५ और ३२.५० का कलेक्शन किया, जो पहले दिन के कलेक्शन से कम था. ऐसा इस लिए हुआ कि चेन्नई एक्सप्रेस बेसिर पैर की स्टार अट्रैक्शन पर आधारित फिल्म थी.  जबकि,मद्रास कैफ़े में कंटेंट था. फिल्म मकर की  ईमानदारी थी. जबकि, चेन्नई एक्सप्रेस हॉलिडे क्राउड को भुनाने के लिए प्रदर्शित की गयी थी. ऐसी फिल्मों का दर्शक फिल्म के कंटेंट से नहीं, फिल्म के अग्रेस्सिव पब्लिसिटी का शिकार हो कर फिल्म देखने आता है. मद्रास के चेन्नई संस्करण की यही त्रासदी है.  

Saturday, 24 August 2013

एक बार ज़रूर जाइये 'मद्रास कैफ़े'

                   
                     निर्माता जॉन अब्राहम की इस शुक्रवार रिलीज़ फिल्म मद्रास कैफ़े बॉक्स ऑफिस पर खान अभिनेताओं वाली फिल्मों जैसा धमाल नहीं मचाएगी. यह फिल्म सौ करोड़ क्लब में आने की सोच भी नहीं सकती. लेकिन, इतना तय है कि मद्रास कैफ़े जॉन अब्राहम और शुजित सिरकार की जोड़ी एक ईमानदार कोशिश है. विक्की डोनर से उन्होंने लीक से हट कर फिल्मों का जो सिलसिला शुरू  था, उसकी दूसरी कड़ी है मद्रास कैफ़े।
                      मद्रास कैफ़े का हीरो जॉन अब्राहम हैं. लेकिन उन्होंने कहीं भी अपने करैक्टर को लार्जर देन लाइफ बना कर दर्शकों की तालियाँ बटोरने की झूठी कोशिश नहीं की. मद्रास कैफ़े की कहानी ८० के  दशक और शुरूआती ९० के दशक तक फैले श्रीलंका के सिविल वॉर पर है. फिल्म में रियल करैक्टर के नाम बदल दिए गए हैं. श्रीलंका की सेना और तमिल ईलम के विद्रोहियों के संघर्ष, भारतीय सेना का पीस कीपिंग फ़ोर्स के रूप में सिविल वॉर में हस्तक्षेप और असफलता जैसी प्रोमिनेन्ट घटनाओं को फिल्म में शामिल किया गया है. फिल्म ख़त्म होती है राजीव गांधी की हत्या के साथ.
                      जॉन अब्राहम ने विक्की डोनर के शुजित सिरकार को एक बार फिर अपनी फिल्म का डायरेक्टर बनाया है.  फिल्म को शोमनाथ डे और शुदेंदु भट्टाचार्य ने लिखा है. इन दोनों ने बहुत चुस्ती से अपना काम किया है. शुजित ने हर फ्रेम को बिना अतिरेक में गए स्वाभाविक ढंग से फिल्माया है. फिल्म में श्रीलंका में संघर्ष के दृश्य हैं, लेकिन कहीं भी documentry का एहसास नहीं होता. फिल्म देखते समय ऐसा लगता है जैसे हम रियल श्रीलंका में घूम रहे हैं. फिल्म कहीं भी हिंसक नहीं लगती. तभी तो इस फिल्म को यु /ए  प्रमाण पत्र दिया गया है. मद्रास कैफ़े का रॉ एजेंट विक्रम सिंह आम आदमी से थोडा हट कर ही है. पर उसे सुपरमैन नहीं कहा जा सकता. वह लिट्टे के लोगों द्वारा पकड़ा जाता है. उसके डिपार्टमेंट के लोग उसे धोखा देते है. लेकिन, वह इन सबसे रेम्बो के अंदाज़ में नहीं निबटता। एक जिम्मेदार अधिकारी जैसा व्यवहार करेगा, वैसा ही व्यवहार विक्रम सिंह करता है. यही फिल्म की खासियत है.
                      मद्रास कैफ़े की सबसे बड़ी खासियत है इसके सामान्य और स्वाभाविक चरित्र। यहाँ तक कि प्रभाकरन और उसके साथियों का चित्रण भी स्वाभाविक हुआ है. श्रीलंका से लेकर दिल्ली तक तमाम करैक्टर अपने स्वाभाविक अंदाज़ में हैं, यहाँ तक कि राजीव गांधी का चरित्र भी. फिल्म के हीरो जॉन अब्राहम है. वह बहुत अच्छे एक्टर नहीं। लेकिन अपना काम ईमानदारी से करते हैं. उन्हें एक एजेंट के रोल में अपने शरीर पर थोड़ी चुस्ती लानी चाहिए थी. चलने फिरने के अंदाज़ को बदलना चाहिए था. शुजित सिरकार को इस और ध्यान देना चाहिए था।  लेकिन शायद उनके लिए करैक्टर के बजाय कथ्य ज्यादा महत्त्व रखते थे. रॉकस्टार के बाद नर्गिस फाखरी एक विदेशी अखबार की पत्रकार जाया के रोल में हैं. उन्होंने अपना काम ठीक ठाक कर दिया है. यह रोल टेलर मेड जैसा था. जॉन अब्राहम की पत्नी के रोल में राशी खन्ना का काम बढ़िया है. अजय रत्नम एना भास्करन की भूमिका में स्वाभाविक हैं. श्री के रोल में कन्नन भास्करन स्वाभाविक हैं.श्रीलंका में रॉ के लिए काम कर रहे बल की भूमिका में प्रकाश बेलावादी के लिए यह तो नहीं कहा जा सकता कि उनके रूप में हिंदी फिल्मों को एक विलेन मिल गया. लेकिन उनमे संभावनाएं हैं.  कैबिनेट सेक्रेटरी की भूमिका में पियूष पाण्डेय ठीक लगे हैं. सिद्धार्थ बासु रॉ चीफ के रूप में जमे नहीं।                      
                       इस फिल्म के लिए शांतनु मोइत्रा का संगीत, चंद्रशेखर प्रजापति का संपादन, कमलजीत नेगी का कैमरा वर्क ,मनोहर वर्मा के स्टंट वीरा कपूर की डिजाइनिंग और मेकअप डिपार्टमेंट की टीम का काम एसेट की तरह है. यह लोग फिल्म को रिच और दर्शनीय बनाते हैं. मद्रास कैफ़े को बेहतरीन टीम वर्क का नमूना कहा जाना चाहिए।
                       अभी मई में जॉन अब्राहम की फिल्म शूटआउट at वडाला रिलीज़ हुई थी. मान्य सुर्वे बने जॉन अब्राहम की ज़बरदस्त बॉडी और ओवर एक्टिंग पर खूब तालियाँ बजी थीं. मगर इस फिल्म में ऐसा कुछ नहीं है. मौका निकाल कर सलमान खान की तरह बॉडी दिखाने के बजाय जॉन ने अपने अभिनय के जरिये अपना काम ईमानदारी से किया है. यकीन जानिये सिनेमाहाल में बैठा दर्शक जॉन अब्राहम के कारनामों पर तालियाँ नहीं बजाता। लेकिन, जब फिल्म ख़त्म होती है तो वह कुछ सोचता सा उठता है. वह मद्रास कैफ़े में कहीं खोया हुआ होता है. यही फिल्म की सफलता है.
                       जॉन अब्राहम ने अपना काम ईमानदारी से कर दिया है. अब बारी दर्शकों की है. वह मद्रास कैफ़े में एक बार ज़रूर। यहाँ मिलने वाली श्रीलंका की कॉफ़ी आपको निहाल कर देगी. तो क्या जा रहे हैं आप दर्शक बन कर आज ही.