Monday 14 December 2015

गर्ल पावर का इंटरनेशनल हंगर गेम्स

इंटरनेशनल बॉक्स ऑफिस पर गर्ल्स पावर का नज़ारा है।  जेनिफर लॉरेंस की मुख्य भूमिका वाली फिल्म 'हंगर गेम्स मॉकिंग्जय पार्ट २' लगातार चौथे वीकेंड भी बॉक्स ऑफिस की टॉप पोजीशन पर काबिज़ है। इस वीकेंड रिलीज़ क्रिस हेम्सवर्थ की केंद्रीय भूमिका वाली डायरेक्टर रॉन होवार्ड की फिल्म 'इन द हार्ट ऑफ़ द सी' टॉप पर अपना कब्ज़ा बना पाने में नाकाम रही।  इसके साथ ही जेनिफर लॉरेंस की फिल्म टॉप पोजीशन  पर चौथे हफ्ते भी काबिज़ रही।  क्रिस हेम्सवर्थ की फिल्म ने पहले वीकेंड में ११ मिलियन डॉलर का कलेक्शन किया।  यह किसी नई रिलीज़ और बड़े निर्देशक-एक्टर जोड़ी के लिहाज़ से बेहद खराब था। यह फिल्म १०० मिलियन डॉलर के बजट से बनाई गई है। वहीँ हंगर गेम्स मॉकिंग्जय २ ने ११.३ मिलियन डॉलर का बिज़नेस किया था। अगले हफ्ते स्टार वार्स रिलीज़ होनी है।  हॉलीवुड फिल्मों के दर्शकों को स्टार वार्स फ्रैंचाइज़ी की इस फिल्म का बेसब्री से इंतज़ार है।  शायद इसीलिए वह सिनेमाघरों से दूर रहना चाहता है। ऐसे में अगले वीकेंड 'इन द हार्ट ऑफ़ द सी' का बिज़नेस बुरी तरह से प्रभावित होने जा रहा है। मॉकिंग्जय २ चौथे वीकेंड में भी टॉप पर रह कर इस फ्रैंचाइज़ी की टॉप पर रहने वाली दूसरी फिल्म बन गई है। कैचिंग फायर सीरीज की ऎसी पहली फिल्म थी।   इस साल लगातार बॉक्स ऑफिस की टॉप पर बने रहने का कारनामा फ्यूरियस ७ ने भी कर दिखाया था। मॉकिंग्जय २ अब तक वर्ल्ड वाइड ५६४ मिलियन डॉलर का कलेक्शन कर चुकी है।  हालाँकि, मॉकिंग्जय पार्ट १ इस समय तक ६१०.८ मिलियन डॉलर का कलेक्शन कर चुकी थी।  लेकिन, यहाँ ध्यान रहे कि अभी हंगर गेम्स मॉकिंग्जय पार्ट २ को चीन में रिलीज़ होना है।   

बॉलीवुड त्रिमूर्ति के राज कपूर

पचास साठ के दशक के राजकपूर, दिलीप कुमार और देव आनंद की त्रिमूर्ति अपने आप में निराली थी। अभिनय का अपना जुदा अंदाज़।  राज कपूर भोले भाले सीधे सादे भारतीय युवा का प्रतिनिधित्व करते थे। ऐसा नहीं कि उन्हें देहाती रोल ही फबते थे।  लेकिन वह मशहूर हुए अपनी गंवई वेश भूषा के कारण ही, अब चाहे वह फिल्म श्री ४२० हो या जिस देश में गंगा बहती है या तीसरी कसम या फिर सपनों का सौदागर।  राज कपूर के हाव भाव से अलग थे दिलीप कुमार के हाव भाव।  वह ट्रेजेडी किंग के बतौर मशहूर हुए।  वह अपनी ज्यादातर फिल्मों में असफल प्रेम की खातिर तब तक जान गंवाते रहे, जब तक वह खुद इन भूमिकाओं के कारण डिप्रेशन का शिकार नहीं हो गए।  इन दोनों से जुदा थे देव आनंद।  देव आनंद का संवाद बोलने और हाथ पैर चलाने का अंदाज़ निराला था।  वह ठेठ शहरी हीरो थे।  कह सकते हैं कि वह आज के मेट्रो शहरों को रिप्रेजेंट करते थे।  उनकी भूमिकाएं हलके फुल्के अपराध करने वाले अच्छे दिल के युवा की हुआ करती थी।  इन तीनों की फ़िल्में और अदाएं खूब देखी और पसंद की गई। इन सबका अपना दर्शक वर्ग था। दिलीप कुमार और देव आनंद कट बाल तो तत्कालीन युवाओं के पसंदीदा थे।  इस तिकड़ी की ख़ास बात यह थी कि बाद के कई अभिनेताओं ने जहाँ राजकपूर और दिलीप कुमार की नक़ल पर अभिनय कर स्टारडम की सीढियां चढ़नी शुरू की, वहीँ देव आनंद की मिमिक्री कर काफी लोग आज भी झोली भर रहे हैं.
राज कपूर को काफी नक़ल किया गया।  आज के सुपर स्टार शाहरुख़ खान ने राज कपूर के गंवई को ख़ूब अपनाया।  राजू बन गया जेंटलमैन जैसी फ़िल्में इसकी गवाह हैं।  अनिल कपूर ने एंग्री यंग मैन का चोला ओढ़ने से पहले राज कपूर को ओढ़ा।  इन दोनों अभिनेताओं पर तो शुरुआत में राज कपूर की नक़ल करने वाले अभिनेताओं को ठप्पा लग गया था।  अब यह बात दीगर है कि बाद में इन दोनों ने दिलीप कुमार के कॉपी कैट अमिताभ बच्चन के एंग्री यंग मैन को गले लगा लिया।  तमिल और तेलुगु फिल्मों के एक्टर डायरेक्टर एस जे सूर्या के  तो राजकपूर गुरु थे।  वह राज कपूर को सबसे बड़ा एंटरटेनर मानते थे।  वह चाहते थे कि कभी कोई उनसे कहे कि सूर्या ने राज कपूर जैसा बनने का सबसे अच्छा प्रयास किया।

कौन बनेगी मास्टरशेफ ! कैटरीना कैफ या दीपिका पादुकोण !!

विन डीजल के साथ एक्सएक्सएक्स के बाद दीपिका पादुकोण के खाते में दूसरी हॉलीवुड फिल्म भी जा सकती है। लेकिन, इस फिल्म को पाने के लिए उन्हें बॉलीवुड में अपनी राइवल अभिनेत्री कैटरीना कैफ को पछाड़ना होगा। यह वही कैटरीना कैफ हैं, जिनका उस रणबीर कपूर के साथ गर्मागर्म रोमांस चल रहा है, जो कभी दीपिका पादुकोण के प्रेमी हुआ करते थे। जब भी रणबीर का ज़िक्र होता है तो कैटरीना कैफ और दीपिका पादुकोण के साथ उनका लव ट्रायंगल अपने आप बन जाता है। इस लिए यह हॉलीवुड फिल्म ख़ास हो जाती है। यह फिल्म अंतर्राष्ट्रीय शो ‘मास्टरशेफ’ पर आधारित होगी। इस फिल्म में हॉलीवुड के ऑस्कर पुरस्कार विजेता एक्टर कोलिन फ़र्थ और ऑस्कर पुरस्कारों में नामित अभिनेता बेनेडिक्ट कम्बरबैच एक साथ होंगे। इस फिल्म का टाइटल ‘मास्टरशेफ’ ही रखा गया है। लेकिन, हॉलीवुड के दो बड़े एक्टरों के बावजूद यह फिल्म महिला प्रधान फिल्म है। इसलिए दीपिका पादुकोण और कैटरीना कैफ के लिए यह फिल्म का काफी महत्वपूर्ण हो जाती है। यह फिल्म रोमांटिक कोण के साथ एक महिला शेफ की जीवन यात्रा है। शेफ की तमाम शूटिंग मुंबई और कुछ भाग कुनूर या दार्जीलिंग में शूट होगी। अगले साल, मई या जून से शुरू होकर फिल्म की शूटिंग ५५ दिनों में पूरी हो जायेगी। क्या दीपिका पादुकोण मास्टरशेफ के रूप में दूसरी हॉलीवुड फिल्म पा सकेंगी या कैटरिना कैफ उन्हें पछाड़ का मास्टरशेफ बन जायेंगी ? लेकिन, यह मुकाबला इस लिहाज़ से दिलचस्प नहीं होगा कि मास्टरशेफ दीपिका की दूसरी या कैटरीना कैफ की पहली हॉलीवुड फिल्म होगी . बल्कि, दिलचस्पी इस बात से होगी कि क्या दीपिका पादुकोण कैटरीना से जीत कर, कैटरीना कैफ द्वारा उनके रणबीर कपूर को चुराने का बदला ले सकेंगी। 

राजेंद्र कांडपाल 

Sunday 13 December 2015

देर से पद्म विभूषण दिलीप कुमार !

भारत देश के गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने आज ९३ वर्षीय अभिनेता दिलीप कुमार का उनके घर जा कर पद्मविभूषण से सम्मान किया। दिलीप कुमार को यह सम्मान २०१५ के लिए दिया गया। दिलीप कुमार को, सही तौर पर कहें तो फिल्मों से अलग हुए २४ साल हो गए हैं। सही मायनों में उन्होने कैमरा इससे पहले से ही फेस नहीं किया होगा। उनकी लम्बे समय से बन रही दो फ़िल्में 'कलिंगा' और 'किला' या तो रिलीज़ नहीं हुई या इक्का दुक्का जगहों पर ही हुई। इसका मतलब साफ़ है कि कभी के ट्रेजेडी किंग दिलीप कुमार का फिल्म करियर ख़त्म हो चूका था। ऐसे में उन्हें पद्म विभूषण से सम्मानित करने का मतलब ही क्या हुआ। सबसे अधिक पुरस्कार जीतने वाले भारतीय एक्टर के तौर पर गिनेस बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकार्ड्स में अपना नाम दर्ज करा चुके दिलीप कुमार की ट्रेजेडी यह रही कि प्रत्येक सरकारों ने उन्हें मान्यता देने में कजूसी की। १९८० में मुंबई के शेर्रिफ रह चुके दिलीप कुमार को पद्म भूषण तब मिला, जब १९९१ में उनकी आखिरी फिल्म 'सौदागर' रिलीज़ हुई थी। सौदागर की रिलीज़ के तीन साल बाद उन्हें दादा साहेब फाल्के पुरस्कार मिला। १९९७ में ही पाकिस्तान ने उन्हें निशान ए इम्तियाज़ से नवाज़ा। उसी साल भारत सरकार उन्हें पद्म विभूषण दे देती कुछ और बात होती। लेकिन, ऐसा नहीं हुआ। दिलीप कुमार २०११ से बीमार चल रहे हैं। उनकी हार्ट सर्जरी हो चुकी है। कहाँ नहीं जा सकता कि वह कितना सुन और समझ सकते हैं। ऐसे में दिलीप कुमार का सम्मान देर आयद तो लगता है, दुरुस्त आयद भी है यह उनके प्रशंसक या वह खुद ही बता सकते है।


अजय देवगन बनेंगे डिक्टेटर

अगर सब ठीक रहा तो अजय देवगन एक बार फिर दोहरी भूमिका में नज़र आएंगे।  यह फिल्म तेलुगु फिल्म 'डिक्टेटर' का हिंदी रीमेक होगी।  डिक्टेटर निर्देशक श्रीवास की एक्शन फिल्म है, जिसमे तेलुगु फिल्मों के सितारे नंदमुरी बालाकृष्णन की ९९वी फिल्म है।  बालाकृष्णन तेलुगु फिल्मों के सुपर स्टार और आंध्र प्रदेश के मुख्य मंत्री एन टी रामाराव के बेटे हैं।  डिक्टेटर में बालाकृष्णन एक माफिया डॉन और सुपर मार्किट सुपरवाइजर की दोहरी भूमिका में है।  डिक्टेटर को तमिल और मलयालम में डब कर रिलीज़ किया जायेगा।  डिक्टेटर के निर्माता एरोस इंटरनेशनल को डिक्टेटर की स्क्रिप्ट हिंदी दर्शकों के पसंद के अनुरूप लगी।  इसीलिए, इसे हिंदी में भी बनाने का निर्णय किया गया है। इसके लिए अजय देवगन से बात चल रही है।  डिक्टेटर का हिंदी में रीमेक  फिल्म ही श्रीवास का हिंदी फिल्म डेब्यू होगा । श्रीवास तेलुगु डिक्टेटर की शूटिंग पूरी करने के बाद ही हिंदी डिक्टेटर को शुरू कर सकेंगे।  तेलुगु फिल्म में बालाकृष्णन के साथ नायिका की भूमिका अंजलि और सोनल चौहान कर रही हैं।  लेकिन, अभी यह तय नहीं है कि अजय देवगन के अपोजिट कौन अभिनेत्री काम करेगी! 


फिजिकल रिलेशनशिप से पैदा प्रेम कहानियां

वैभव मिश्रा निर्देशित फिल्म 'लवशुदा'  गिरीश कुमार और नवोदित अभिनेत्री नवनीत कौर ढिल्लों की आधुनिक प्रेम कहानी है।  दोनों लंदन, मॉरीशस और फिर शिमला में मिलते हैं।  एक दूसरे को चाहते हैं, लेकिन मिलने पर कुछ दूसरा ही हो जाता है। इस लव स्टोरी में फिजिकल रिलेशनशिप है और उसके बाद का रोमांस है।  'लेकिन', फिल्म के निर्माता विजय गलानी कहते हैं, "हमने इस युवा जोड़े पर एक बेहद खूबसूरत, मगर नई प्रेम कहानी फिल्माई है।' गिरीश कुमार की यह दूसरी फिल्म है।  इससे पहले वह प्रभुदेवा की फिल्म 'रमैया वस्तावैया' में श्रुति हासन के अपोजिट काम कर चुके हैं।  वैभव मिश्रा और नवनीत कौर ढिल्लों की यह पहली  फिल्म है।  इस लिहाज़ से 'लवशुदा' मे नवनीत का पूजा का किरदार काफी टफ है।  इस फिल्म से नवनीत की अभिनय प्रतिभा की भी परीक्षा होगी।
लिव-इन रिलेशनशिप वाली फिल्मों में अभिनयशीलता ख़ास होती है।  निर्देशक निखिल आडवाणी की इस साल रिलीज़ फिल्म कट्टी बट्टी  भी लिव इन रिलेशनशिप में रह रहे युवा जोड़े की दास्तान थी।  कंगना रनौत और इमरान खान  परदे पर इस जोड़े को कर रहे थे। मैड़ी के साथ लिव-इन रिलेशनशिप में रह रही पायल एक दिन यकायक  गायब हो जाती है।  क्या तेज़ तर्रार पायल बेवफा थी ?  बकौल इमरान खान, जो खुद दो साल तक अपनी पत्नी अवंतिका के साथ लिव इन रिलेशनशिप में रहे, 'लिव इन रिलेशनशिप से एक दूसरे को  अच्छी  तरह से समझ जा सकता है।  मैं इसका समर्थन करता हूँ।' अब यह बात दूसरी है कि इमरान खान की कट्टी बट्टी को दर्शकों की  दोस्ती नहीं मिली।  फिल्म  फ्लॉप हुई। हालाँकि, इस फिल्म में कंगना रनौत का भावाभिनय तारीफ के काबिल था।  
'लवशुदा' को बॉक्स ऑफिस पर कैसा रिस्पांस मिलता है, पता नहीं।  लेकिन, कट्टी बट्टी असफल रही थी।  इसका मतलब यह नहीं निकाला जा सकता कि हिंदुस्तान के जवान दिल लिव-इन रिलेशन के खिलाफ है। क्योंकि अब तो सुप्रीम कोर्ट ने भी इसे मान्यता दे दी है।   लेकिन, इससे पहले भी लिव-इन रिलेशन हिंदी फिल्मों में आ गया था। २००५ में रिलीज़ सिद्धार्थ आनंद की फिल्म 'सलाम नमस्ते' ऑस्ट्रेलिया में लिव-इन रिलेशनशिप में रह रहे जोड़े की कहानी थी, जिसमे लड़की इस सम्बन्ध में रहते हुए ही माँ बनती है।  इस भूमिका को सैफअली खान और प्रीटी जिंटा ने किया था।  यह फिल्म हिट साबित हुई थी।   २००९ में सतीश कौशिक ने फिल्म 'तेरे संग' में कुछ ऎसी ही कहानी को शीना शाहाबादी और रुसलान मुमताज़ की टीन जोड़ी पर फिल्माया था।  शीना और रुसलान एक दूसरे को प्यार करते हैं।  लड़की गर्भवती हो जाती है।  दोनों घर इस सम्बन्ध को नहीं मानते। लड़की का एबॉर्शन कराना तय किया जाता है।  यह सुन कर दोनों घर से भाग जाते हैं और लिव-इन में रहते हुए अपने बच्चे को पैदा करते हैं।
लिव-इन रिलेशनशिप पर बहुत कम फ़िल्में  बनी हैं, तो इसका मतलब यह नहीं कि लिव-इन रिलेशनशिप पर फिल्म स्वीकार नहीं की जा रही।  इन फिल्मों के निशाने पर युवा होता है।  वह ऎसी फ़िल्में देखने से परहेज नहीं करता।  लेकिन, फिल्म को प्रभावशाली ढंग से पेश करना ज़रूरी होता है।  इसके लिए कलाकारों का बेहतरीन अदाकार होना ज़रूरी शर्त होती है।  'तेरे संग' की रुसलान मुमताज़ और शीना शाहाबादी की जोड़ी कमज़ोर अभिनय वाली थी।  इसलिए, फिल्म दर्शकों को प्रभावित नहीं कर सकी।  वहीँ, सलाम नमस्ते मे प्रीटी जिंटा ने दर्शकों को प्रभावित किया था।  विषय की नवीनता भी दर्शकों को रास आई थी।  
नायक नायिका का लिव-इन रिलेशनशिप में रहना आज की बात है।  लेकिन, शादी से पहले नायक-नायिका का शारीरिक सम्बन्ध बना लेना हिंदी फिल्मों की कहानी का विषय बनाता रहा है।  ऐसा ही एक कथानय फिजिकल रिलेशनशिप के कारण नायिका के गर्भवती होने का भी है।  यह विषय बोल्ड ज़रूर है।  लेकिन, बॉलीवुड ने इसे समय समय पर अपनाया भी है।  हालाँकि, इस सदी की शुरुआत में लिव-इन रिलेशनशिप का चलन युवाओं पर पाश्चात्य सभ्यता के प्रभाव और बॉलीवुड को हॉलीवुड फिल्मों से मिली प्रेरणा का परिणाम था।  जहाँ तेरे संग हांगकांग की फिल्म '२ यंग' से प्रेरित थी, वही 'सलाम नमस्ते' हॉलीवुड की क्रिस कोलंबस निर्देशित फिल्म 'नाइन मंथ्स' पर आधारित थी। इस फिल्म में हु ग्रांट और जुलिआने मूर ने सैफ और प्रीटी वाली भूमिकाये की थी। परन्तु, नायिका का नायक पर मुग्ध हो कर खुद को समर्पित कर देना पुरानी बात है।   
जब नायिका खुद को नायक को समर्पित कर देती है तो कहानी का ड्रामा शुरू हो जाता है। इस समर्पण के नतीजे में नायिका माँ बन सकती है।  जहाँ तक नायिका के बिना शादी के माँ बनने की बात है, १९४३ में रिलीज़ निर्देशक ज्ञान मुख़र्जी की फिल्म 'किस्मत' की नायिका कुंवारी गर्भवती बताई गई थी। यश चोपड़ा ने भी कुँवारी माँ पर दो फ़िल्में बनाई थी।  १९५९ में रिलीज़ राजेंद्र कुमार, नंदा और माला सिन्हा अभिनीत फिल्म 'धूल का फूल' में फिजिकल रिलेशनशिप के कारण माला सिन्हा गर्भवती हो जाती है।  लेकिन, राजेंद्र कुमार उससे शादी न कर एक दूसरी लड़की नंदा से शादी कर लेता है।  माला सिन्हा के अवैध बच्चे को एक मुस्लमान पालता है। इस फिल्म का गीत 'तू हिन्दू बनेगा न मुसलमान बनेगा, इंसान की औलाद है इंसान बनेगा'  तब काफी हिट हुआ था। इस फिल्म को नेहरू छाप धर्मनिरपेक्षता से प्रेरित बताया गया था।  लेकिन, अगली बार यश चोपड़ा ने इसी विषय को फिल्म 'धर्मपुत्र' में हिन्दू माँ द्वारा पाले गए मुस्लमान बच्चे में बदल दिया था। मुस्लिम माला सिन्हा का रेहमान से प्रेम सम्बन्ध है।  वह गर्भवती हो जाती है। लेकिन, ऐन शादी के मौके पर रहमान गायब हो जाता है। माला सिन्हा के अवैध बच्चे को एक हिन्दू परिवार पालता है। बड़ा हो कर यह बच्चा मुस्लिम विरोधी हो जाता है। शशि कपूर ने इस  भूमिका को किया था।  यश चोपड़ा ने एक कहानी को धर्मों के सहारे एक बार जहाँ धर्म निरपेक्ष बनाया, वहीँ दूसरी बार इसे हिन्दू अतिरेक में तब्दील कर दिया।  
हिंदी फिल्मों में नायिका के शादी से पहले सेक्स करने का फ़साना दर्शकों को रास आता रहा  है।  राजकपूर निर्देशित फिल्म 'बरसात' में निम्मी का किरदार शहरी बाबू प्रेमनाथ के आकर्षण में अपना कौमार्य खो बैठता है। फिल्म अमर में दिलीप कुमार के गाँव के घर में अपने घर से भागी निम्मी शरण लेती है।  लेकिन, वकील दिलीप कुमार उससे बलात्कार करता है।  जब वह शादी करने के लिए कहती है तो दिलीप कुमार मना कर देता है। फिल्म आराधना एयरफोर्स का एक अधिकारी राजेश खन्ना शर्मीला टैगोर से  प्रेम करता है।  दोनों एक मंदिर में सांकेतिक शादी भी कर लेते हैं। लेकिन, समाज के सामने शादी करने से पहले ही वह युद्ध में मारा जाता है। शर्मीला टैगोर अपने बच्चे को जन्म देती है और एयरफोर्स का अधिकारी बनाती है। क्या कहना की प्रीटी जिंटा भी सैफ अली खान को अपना सब कुछ समर्पित कर देती है।  वह इस समर्पण के स्वरुप होने वाले बच्चे को जन्म देने का निर्णय करती है। इज्ज़त में जयललिता का चरित्र एक ठाकुर से गर्भवती हो जाता है।  जिस ठाकुर के बेटे से वह गर्भवती होती है, उस ठाकुर के एक आदिवासी लड़की से फिजिकल रिलेशन के कारण बच्चा भी होता है।
फिजिकल रिलेशनशिप और कुँवारी माँ की कहानियों में नायिका केंद्र में होती है।  ऎसी फिल्मों में अभिनेत्री के लिए अभिनय की काफी गुंजायश होती है।  निम्मी और माला सिन्हा से लेकर प्रीटी जिंटा और शीना शाहाबादी तक सभी अभिनेत्रियों ने ऎसी भूमिकाएं कर चर्चा खूब पाई।  कमोबेश यह सभी  स्क्रिप्ट और अभिनेत्री की अभिनय प्रतिभा पर निर्भर करती हैं।  इसी कारण से यह फ़िल्में सफल भी होती है।  चूंकि, आजकल लिव-इन रिलेशनशिप का ज़माना है, तो अब नायिका हादसे या समर्पण के कारण गर्भवती नहीं होती।  इस कहानी में पेंच यहाँ होता है कि नायिका बच्चे को जन्म देकर पालना चाहती है।  उसे इसमे समाज की किन बाधाओं का सामना करना पड़ता है, यही फिल्म का यूएसपी होता है।  लेकिन, जहां पुरानी फिल्मों का नायक दागा दे देता है या मर जाता है, आज की लिव इन रिलेशनशिप वाली फिल्मों में नायिका के पार्टनर या किसी पुरुष मित्र का साथ हमेशा  मिलता है।  ज़ाहिर है कि नायिका पहले की तरह अकेली नहीं है। 
लिव-इन रिलेशनशिप क्या ज़रूरी है ?  फिल्मों की बात छोड़िये रियल लाइफ में रणबीर कपूर और कटरीना कैफ जैसे उदाहरण बहुत से हैं। महिमा चौधरी तो शादी से पहले ही अपने पार्टनर के बच्चे की माँ बन गई थी।  पोर्न स्टार सनी लियॉन भी लिव-इन रिलेशन की वकालत करती हैं।  सनी लियॉन खुद जिस समाज में पली बढ़ी हैं,  वहां लिव -इन रिलेशनशिप सामान्य  बात है।  लेकिन, देसी (भारतीय) माहौल में लिव-इन रिलेशनशिप के समर्थन में  उनके तर्क दूसरे  हैं।  वह  कहती हैं, "युवाओं में प्यार की परिभाषा लगातार बदलती रहती है। इसलिए, लिव-इन रिलेशनशिप कोई बड़ी बात नहीं।"

Saturday 12 December 2015

राष्ट्रपति के उपयुक्त नहीं लगे थे रोनाल्ड रीगन

यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ़ अमेरिका के ४० वे राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन, कभी फिल्म अभिनेता हुआ करते थे।  वह १९३७ से हॉलीवुड के स्टूडियो वार्नर ब्रदर्स की फिल्मों में अभिनय के लिए सात साल के कॉन्ट्रैक्ट से बंधे । वह १९३९ तक बेट्टे डेविस और हम्फ्रे बोगर्ट के साथ 'डार्क विक्ट्री' जैसी १९ फिल्मों में अभिनय कर चुके थे।  लेकिन,  उन्हें स्टार बनाया फिल्म किंग रो ने।  लेकिन, इस फिल्म के ठीक बाद उन्हें अनिवार्य सैन्य सेवा के लिए उपलब्ध होना पड़ा।  दूसरे विश्व युद्ध के बाद वह फिर फिल्मों में वापस आये। इस दौर की उनकी उल्लेखनीय फिल्मों में द वौइस् ऑफ़ द टर्टल, जॉन लव्स मैरी, द हेस्टी हार्ट, बेडटाइम फॉर बोन्ज़ो, कैटल क्वीन ऑफ़ मोंताना, टेनेसी'ज पार्टनर, हेलकैट्स ऑफ़ द नेवी, आदि ख़ास हैं।  फिल्म हेलकैट्स ऑफ़ द नेवी में वह अपनी पत्नी नैंसी रीगन के नायक थे।  द किलर्स में उन्होंने एक विलेन की भूमिका की थी।  २० जनवरी १९८१ को अमेरिका के प्रेजिडेंट बने।  लेकिन, आपको यह जान कर आश्चर्य होगा कि बतौर अभिनेता उनमे राष्ट्रपति के योग व्यक्तित्व नहीं पाया गया था।  यह १९६० की बात है।  एक नाटक 'द बेस्ट मैन' खेला जाने वाला था।  गोर विडाल का लिखा यह नाटक राष्ट्रपति चुनाव के इर्दगिर्द बना गया था, जिसमे एक ईमानदार कैंडिडेट और एक बेईमान कैंडिडेट का मुक़ाबला था।  इस नाटक को छह टोनी अवार्ड्स मिले थे।  १९६४ में इस नाटक पर एक फिल्म भी बनाई गई थी।  इस नाटक के प्रोडूसर के सामने जब रोनाल्ड रीगन का नाम गया तो उन्होंने रीगन को  पूरी तरह से नकार दिया कि उनमे प्रेजिडेंट जैसा लुक नहीं है, इसलिए वह दर्शकों को विश्वसनीय नहीं लगेंगे ।  अब यह बात दीगर  कि  नाटक के प्रेजिडेंट के लिए नकारे गए रोनाल्ड रीगन एक बार नहीं दो दो बार अमेरिका के राष्ट्रपति बने।