कमाल अमरोही की फिल्म दायरा कई मायनों में बड़ी ख़ास है. यह फिल्म मीना
कुमारी से शादी के बाद, कमाल अमरोही की मीना कुमारी के साथ बतौर निर्देशक पहली
फिल्म थी. यह फिल्म मास्टरपीस फिल्मों में गिनी जानी चाहिए. क्योंकि, दायरा की
कहानी एक जवान लड़की के एक बूढ़े से शादी पर आधारित थी. मीना कुमारी ने जवान लड़की की
भूमिका की थी. उनके बूढ़े पति कुमार थे. उस जवान लड़की की शारीरिक ज़रूरतों को वह
बूढा पति पूरी नहीं कर पाता. इसलिए वह एक जवान लडके नासिर खान के प्रति आसक्त हो
जाती है. इस फिल्म का ज़िक्र मीना कुमारी की इमेज के लिहाज़ से बेहद ख़ास है. मीना
कुमारी का हिंदी फिल्म डेब्यू विजय भट्ट की एक्शन एडवेंचर फिल्म लेदर फेस (१९३९)
में बाल भूमिका से हुआ था. विजय भट्ट ने ही महज़बीं को मीना कुमारी नाम दिया था.
मीना कुमारी की नानाभाई और विजय भट्ट और होमी वाडिया की धार्मिक फिल्मों तथा अपनी सामजिक
पारिवारिक फिल्मों की वजह से बेहद साफ़ सुथरी इमेज बन गई थी. दायरा में एक दृश्य
में पति से असंतुष्ट मीना कुमारी कामुकता महसूस करती है. इसलिए वह अपने बाथरूम में
घुस कर शावर के नीचे आ जाती है. इस सीन में वह बेहद कामुक हावभाव दे रही थी. इस
दृश्य को लेकर, मीना कुमारी के प्रशंसकों में तीखी प्रतिक्रिया हुई. उनसे ऐसे
दृश्य न करने की गुज़ारिश की गई. इस आलोचना के बाद मीना कुमारी इस प्रकार के दृश्य
करने से तौबा कर ली. इस फिल्म में मीना कुमारी के क्लोज-अप में साढ़े छः मिनट लम्बा
शॉट फिल्माया गया था. यह बॉलीवुड की किसी भी एक्टर का सबसे लम्बा क्लोज-अप माना
जाता है. मीना कुमारी की मृत्यु ३१ मार्च १९७२ को ३८ साल की आयु में हो गई थी.
अगर, आज वह जिंदा होती तो अपना ८८वा जन्मदिन मना रही होती. उन्हें श्रद्धांजलि.
भारतीय भाषाओँ हिंदी, तेलुगु, तमिल, कन्नड़, मलयालम, पंजाबी, आदि की फिल्मो के बारे में जानकारी आवश्यक क्यों है ? हॉलीवुड की फिल्मों का भी बड़ा प्रभाव है. उस पर डिजिटल माध्यम ने मनोरंजन की दुनिया में क्रांति ला दी है. इसलिए इन सब के बारे में जानना आवश्यक है. फिल्म ही फिल्म इन सब की जानकारी देने का ऐसा ही एक प्रयास है.
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Saturday 1 August 2020
Tuesday 28 July 2020
नहीं रहीं गुजरे जमाने की फिल्मों की कुमकुम
गुरुदत्त ने, जब फिल्म आर-पार (१९५४) में एक मज़दूरनी के रूप में कुमकुम को
गीत कभी आर कभी पार लागा तीरे नज़र फिल्माया था, उससे पहले कुमकुम शहनाई, हिप हिप
हुर्रे, आंसू, नूर महल, मिर्ज़ा ग़ालिब, मीनार और गवैया जैसी फिल्मों में संक्षिप्त
भूमिकाये कर चुकी थी. लेकिन, आर-पार के इकलौते गीत ने उन्हें बॉलीवुड की कुल ११५ फिल्मों
में काम करने का मौका दिया. लेकिन, यह कुमकुम की नृत्य प्रतिभा का भी तकाज़ा था कि
वह पहली झलक, मिस्टर एंड मिसेज ५५, हाउस नंबर ४४, सीआइडी, एक ही रास्ता, मदर
इंडिया, आदि जैसी बड़ी फिल्मों में अपने अभिनय और नृत्य प्रतिभा का प्रदर्शन कर
पाने में कामयाब हुई. उनकी नृत्य प्रतिभा का परिचय देने वाले गीतों में मधुबन में
राधिका नाची रे (कोहेनूर), दगा दगा वाई वाई (काली टोपी लाल रुमाल), ख़ास उल्लेखनीय
है. उन्होंने दिलीप कुमार (नया दौर, कोहेनूर), देव आनंद (सीआइडी, बारिश), किशोर कुमार
(मिस्टर एक्स इन बॉम्बे), शम्मी कपूर (उजाला), राजेंद्र कुमार (मदर इंडिया, गीत, घर
संसार), धर्मेन्द्र (दिल भी तेरा हम भी तेरे, आँखें, ललकार) संजीव कुमार (राजा और
रंक), विनोद खन्ना (धमकी) में अभिनय किया. उनकी १९७३ में तीन फ़िल्में धमकी, जलते
बदन और एक कुंवारी एक कुंवारा रिलीज़ हुई. इसके बाद, वह शादी कर अपने पति के साथ सऊदी अरब चली गई. २००४ में उनकी वापसी हुई और उन्होंने एक भोजपुरी मैगजीन भी निकाली. वह
पहली भोजपुरी फिल्म गंगा मैया तोहे पियरी चढैबो में सुजीत कुमार की नायिका थी. एक्टर
गोविंदा उनके भतीजे थे. क्योंकि, गोविंदा की माँ और कुमकुम सौतेली बहने थी. कुमकुम
के पिता ने उनके जन्म से पहले ही इस्लाम स्वीकार कर लिया था. जेबुन्निसा नाम से
जन्मी कुमकुम को श्रद्धांजलि.
Sunday 19 July 2020
पीआर आर आर पाठक का निधन
वाराणसी
से मुंबई पहुँच कर फ़िल्मी दुनिया में छा जाने वाले, फिल्म प्रचार के धुरंधर वरिष्ठ
पीआर राजाराम पाठक, जो आर आर पाठक के नाम से जाने जाते थे, का आज निधन हो गया.
उन्होंने कई बड़ी फिल्मों का प्रचार किया था. आज के तमाम सुपर सितारों को प्रचार के
माध्यम से पूरे देश मे पहुंचाने वाले आर आर पाठक ही थे. वह सत्तर के दशक से फ़िल्मी
दुनिया के प्रचार में जुटे थे. उन्हें, पहली बार प्रचार के क्षेत्र में कुदाने
वाले गोपाल श्रीवास्तव थे. गोपाल किसी काम से बॉम्बे से बाहर जा रहे थे. उन्होंने
अर्जुन हिंगोरानी का परिचय पाठक से करा दिया. हिंगोरानी ने पाठक को कब क्यों और
कहाँ के प्रचार की कमान थमा दी. उन्होंने अजय देवगन की बतौर नायक पहली फिल्म फूल
और पत्थर, आमिर खान की बतौर नायक पहली फिल्म क़यामत से क़यामत तक, हृथिक रोशन की
पहली फिल्म कहो न प्यार है, को अपनी प्रचार क्षमता से फिल्म दर्शकों के दिलोदिमाग
में छा देने वाले पाठक ने शाहरुख़ खान, काजोल और शिल्पा शेट्टी की
फिल्म बाज़ीगर, अक्षय कुमार की फिल्म खिलाडी,
सलमान
खान की फिल्म बागी, सलमान खान, संजय दत्त और माधुरी दीक्षित
की फिल्म साजन, हृथिक रोशन की फिल्म कोई मिल गया और कृष के
प्रचारकर्ता आर आर पाठक ही थे. उन्होंने पचास साल के फिल्म करियर मे कोई ३०० से
अधिक फिल्मों का प्रचार किया.
रोड के रजत मुख़र्जी का देहांत
फरदीन
खान, उर्मिला मातोंडकर, सोनाली कुलकर्णी सुरेश राजपाल
यादव की फिल्म प्यार तूने क्या किया (२००१) के लेखक निर्देशक के रूप में करियर की
शुरुआत करने वाले निर्देशक रजत मुख़र्जी आज सुबह लम्बी बीमारी से संघर्ष में हार कर
इस दुनिया से चल दिए। उन्हें क्या बीमारी
थी, इसका पता तो नहीं चल सका है। उनकी मृत्यु की सूचना देते हुए,
एक्टर
मनोज बाजपेयी ने उनके बीमार होने का हवाला दिया था। रजत मुख़र्जी ने मनोज बाजपेयी,
अन्तर
माली और विवेक ओबेरॉय के साथ फिल्म रोड का निर्देशन किया था। यह उनकी दूसरी फिल्म थी। यह फिल्म बॉक्स ऑफिस
पर सफल हुई थी। रजत मुख़र्जी की तीसरी और
आखिरी फिल्म लव इन नेपाल २००४ में रिलीज़ हुई थी।
इस फिल्म के नायक नायिका गायक सोनू निगम और फ़्लोरा सैनी थे। यह फिल्म बुरी
तरह से असफल हुई थी। इस फिल्म के १० साल
बाद, रजत मुख़र्जी ने इश्क़ किल सीरीज की एक कड़ी का
निर्देशन किया।
Thursday 9 July 2020
एक जन्म-तिथि वाले संजीव कुमार और गुरुदत्त
हिंदी फिल्म उद्योग के प्रतिभाशाली अभिनेताओं में गुरु दत्त और संजीव
कुमार का नाम उल्लेखनीय हैं. अभिनय के लिहाज़ से इन दोनों का कोई जोड़ नहीं. सूक्ष्म
भावाभिनय तो इनके बाए हाथ का खेल था. यह प्रतिभाशाली दुर्भाग्य के नाम पर काफी
समानता रखते थे. दोनों ही अल्पायु थे. शराब में डूबे रहने वाले. शराब ने ही दोनों
की जान ली. संजीव कुमार जहाँ ४७ साल की उम्र में स्वर्गवासी हुए,
गुरुदत्त ने तो सिर्फ ३९ साल की उम्र में जान दे दी. दोनों की जन्म तिथि
समान थी. गुरुदत्त, ९ जुलाई १९२५ को जन्मे थे,
जबकि संजीव कुमार १३ साल बाद १९३८ में. दोनों ने ही एक ऎसी फिल्म में काम
किया, जिसे यह दोनों पूरा नहीं कर पाए. यह फिल्म
थी के आसिफ की लव एंड गॉड (मोहब्बत खुदा है). के आसिफ की फ़िल्में काफी लंबा समय
लेकर बनती थी. आसिफ ने लैला मजनू पर अपनी इस फिल्म मे लैला निम्मी के साथ कैस यानि
मजनू की भूमिका के लिए गुरुदत्त को लिया था. लेकिन, जब तक फिल्म
बनती बनती १० अक्टूबर १९६४ को गुरुदत्त का निधन हो गया. इसके बाद,
फिल्म में मजनू की भूमिका में संजीव कुमार को ले लिया गया. संजीव कुमार ने
काफी हद तक यह फिल्म शूट की. लेकिन ९ मार्च १९७१ को के आसिफ के निधन के बाद फिल्म
डब्बा बंद हो गई. पंद्रह साल बाद, के आसिफ की
विधवा ने इस फिल्म को केसी बोकाडिया की मदद से आधा अधुरा रिलीज़ किया. क्योंकि,
तब तक संजीव कुमार की भी ६ नवम्बर १९८५ को मृत्यु हो चुकी थी।
Tuesday 7 July 2020
बड़े सितारों के साथ बड़ी फ़िल्में बनाने वाले हरीश शाह का निधन !
अशोक कुमार,जॉय मुख़र्जी और शर्मीला टैगोर के साथ दिल और मोहब्बत, राजेश खन्ना और तनूजा के साथ मेरे जीवन साथी, फिरोज खान, परवीन बाबी, प्रेम चोपड़ा और देनी द्न्ग्जोपा के साथ फिल्म काला सोना, नवीन निशचल, राकेश रोशन और बिंदिया गोस्वामी के साथ हॉरर फिल्म होटल, संजीव कुमार, रेखा और प्रेम चोपड़ा के साथ राम तेरे कितने नाम और सनी देओल, तब्बू और अमरीश पूरी के साथ जाल द ट्रैप जैसी फिल्मों के निर्माता ऋषि कपूर, नीतू सिंह और प्राण को फिल्म धन दौलत, धर्मेन्द्र, शत्रुघ्न सिन्हा, किमी काटकर और रति अग्निहोत्री के साथ ज़लज़ला और रेखा, मिथुन चक्रवर्ती और प्रेम चोपड़ा को अब इन्साफ होगा में निर्देशित करने वाले फिल्म निर्माता-निर्देशक हरीश शाह का मंगलवार ७ जून की सुबह निधन हो गया. वह दस सालों से कैंसर से पीड़ित थे. उन्हें श्रद्धांजलि।
नोट- यहाँ दिलचस्प तथ्य ! हरीश शाह गले के कैंसर से पीड़ित थे. इसके बावजूद वह सोशल मीडिया पर सक्रीय थे. वह ट्विटर पर हर दिन ट्वीट करते थे. उनकी आखिरी ट्वीट १७ मई को की थी, जिसमे उन्होंने सुरेश चवानके के ट्वीट को रीट्वीट करते हुए गृह मंत्री से दिल्ली में सेना भेजने की अपील की थी. उन्होंने कैंसर पर एक शॉर्ट फिल्म व्हाई मी का निर्माण किया था, जिसके लिए उन्हें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिला था.
Friday 3 July 2020
नहीं रहीं माधुरी दीक्षित को धक् धक् गर्ल बनाने वाली सरोज खान
बॉलीवुड की मशहूर नृत्य निर्देशिका सरोज खान का ७१ साल की उम्र घातक
हृदयाघात के बाद देहांत हो गया. वह, सांस की
तकलीफ के बाद, २० जून से मुंबई के गुरुनानक हॉस्पिटल में
भर्ती थी. आज ३ जुलाई की सुबह २.३० पर उनका दिल का दौरा पडा था. उनका अंतिम
संस्कार सुबह कर दिया गया. बॉम्बे में २२ नवम्बर १९४८ को जन्मी निर्मला नागपाल ने
दूसरी शादी के बाद, धर्म परिवर्तन और नाम परिवर्तन कर खुद को
सरोज खान बना दिया था. उनका करियर ३ साल की उम्र में अभिनय के साथ शुरू हुआ. वह उस
समय के बड़े नृत्य निर्देशक बी सोहनलाल के नृत्य समूह की एक नृत्यांगना थी. तेरह
साल की सरोज खान का ४८ साल के बी सोहंलाल से विवाह हुआ था. उन्होंने,
कई फिल्मों में सोहनलाल की सहायक के तौर पर काम किया. १९७४ में,
साधना द्वारा निर्देशित फिल्म गीता मेरा नाम से,
सरोज खान की स्वतंत्र नृत्य निर्देशक के तौर परे शुरुआत हुई.
उन्होंने ४०
साल लम्बे अपने करियर में ३०० से ज्यादा फिल्मों में दो हजार करीब गीतों का नृत्य
संयोजन किया था. हालाँकि, सरोज खान ने, गोविंदा की
लव ८६, तन बदन, स्वर्ग से
सुंदर, आदि फिल्मों में कोरियोग्राफी की थी. लेकिन,
उन्हें पहचान मिली श्रीदेवी और माधुरी दीक्षित पर फिल्माए गए गीतों का
नृत्य संयोजन कर. श्रीदेवी की इच्छाधारी नागिन वाली फिल्म नगीना के मैं नागिन तू
सपेरा की कोरियोग्राफी सरोज खान ने ही की थी. इस फिल्म का नागिन गीत इतना लोकप्रिय
हुआ कि कई अभिनेत्रियों ने सरोज खान से अपने नागिन गीत कोरियोग्राफ करवाए. इनमे
रेखा भी थी, जिनकी फिल्म शेषनाग के गीतों का नृत्य
संयोजन सरोज खान ने ही किया था. अनिल कपूर और श्रीदेवी की फिल्म मिस्टर इंडिया के
गीत काटे नहीं कटते दिन ये रात की कोरियोग्राफी बड़ी दिलचस्प थी. अनिल कपूर अदृश्य
रूप में हैं, श्रीदेवी उनको देख नहीं पा रही. लेकिन,
अनिल कपूर जब तक आकर उनकी गर्दन आदि को चूमते हैं. यह गीत काफी कामुक बन
पडा था. इसी फिल्म के हवा हवाई गीत को बड़ी लोकप्रियता मिली. श्रीदेवी को बॉलीवुड
की चाँदनी बना देने वाला फिल्म चांदनी का मेरे हाथों में नौ नौ चूड़ियाँ हैं का
नृत्य संयोजन सरोज खान ने ही किया था. चालबाज़ का न जाने कहाँ से आई है लड़की गीत
कोरियोग्राफी की श्रेष्ठता का उदाहरण है. माधुरी दीक्षित और अनिल कपूर की ही फिल्म
राम-लखन के तेरे लखन ने बड़ा दुःख दीना बड़ी खूबसूरती से फिल्माया गया था. सरोज खान
ने माधुरी दीक्षित के लिए एक दो तीन चार गीत के ज़रिये बॉलीवुड में स्थापित कर
दिया. फिल्म बेटा के दिल धक् धक् करने लगा गीत से तो माधुरी दीक्षित दिलों को धड़का
देने वाली एक्ट्रेस बन गई. माधुरी दीक्षित के तमाम उत्तेजक नृत्य गीत सरोज खान ने
ही संयोजित किये थे. लगान के राधा कैसे न जले गीत की कोरियोग्राफी भी सरोज खान की
थी.
सरोज खान को देवदास के डोला रे
डोला, जब वी मेट के ये इश्क हाय तथा तमिल फिल्म
श्रीनगरम के तमाम गीतों के लिए राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिला था. श्रीदेवी और
माधुरी दीक्षित के अलावा सरोज खान ने शिल्पा शेट्टी (बाज़ीगर),
जूही चावला (डर), रवीना टंडन (मोहरा) और ऐश्वर्या राय (ताल)
के लिए भी कोरियोग्राफी की. कंगना रानौत ने फिल्म मणिकर्णिका द क्वीन ऑफ़ झांसी के
एक ख़ास रोमांटिक गीत की कोरियोग्राफी सरोज खान से ही कराई थी. सरोज खान के नृत्य
संयोजन वाला आखिरी गीत फिल्म कलंक का तबाह हो गए था.
Monday 22 June 2020
स्टीवन स्पीलबर्ग को इनकार करने वाले अमरीश पुरी !
Monday 15 June 2020
पाकिस्तानियों ने कहा- RIP न कहो सुशांत सिंह राजपूत को
काई पो छे, एमएस धोनी द अनटोल्ड स्टोरी,
शुद्ध देसी रोमांस, राबता और केदारनाथ के एक्टर सुशांत सिंह
राजपूत ने कल (१४ जून) अपने बांदा स्थित घर में फ़ासी लगा कर आत्महत्या कर ली. उनकी
मृत्यु पर शोकसंवेदना भारत की पूरी इंडस्ट्री ने अपने अप ने तरीके से दी. वहीँ उनके
प्रति संवेदना व्यक्त करने वालों में पाकिस्तान के एक्टर और क्रिकेटर भी शामिल थे.
एक्टर महिरा खान, हुमायूँ सईद और क्रिकेटर शान मसूद ने सुशांत
की आत्मा की शांति के लिए दुआएं मांगी. इसके साथ ही यह हस्तियाँ पाकिस्तानियों
द्वारा ट्रोल होने लगी. पाकिस्तानियों का कहना था कि जो मोहम्मद साहब का दीन नहीं
मानता, चाहे वह मुस्लिम ही क्यों न हो,
वह स्वर्ग नहीं जाता. उसकी आत्मा को कैसे शांति मिल सकती है. फिर सुशांत
सिंह राजपूत तो हिन्दू था, काफिर था. काफिर को कभी जन्नत में जगह नहीं
मिलती, वह दोजख जाता है. शान को सलाह दी गई,
"कभी दिमाग का इस्तेमाल करो. जो आत्महत्या करते हैं वह जन्नत नहीं घुस सकते,
सुशांत तो हिन्दू था. तब मुझे बताओ उसकी आत्मा किस शांति में रह सकती
है.माहिरा की पोस्ट पर लिखा गया, "सीधे
नरक." एक पाकिस्तानी ने हुमायु सईद को बताया कि बेवकूफ अगर वह गैर मुस्लिम है
तो उसे कभी शान्ति नहीं मिलेगी.
क्या अवसाद के शिकार हो गए सुशांत सिंह राजपूत ?
"सक्सेस के बाद का प्लान सबके पास है, लेकिन अगर गलती से फेल हो गए, तो फेलियर
से कैसे डील करना है,
कोई बात ही नहीं करना चाहता."
"तुम्हारा रिजल्ट डिसाइड नहीं करता है कि तुम लूजर हो कि नहीं, तुम्हारी
कोशिश डिसाइड करती है."
कहते हैं फ़िल्में ज़िन्दगी का हिस्सा होती है. शायद यह एक फलसफा से ज़्यादा
कुछ नहीं है. अगर ऐसा होता तो सुशांत सिंह राजपूत को सिर्फ ३४ साल की उम्र में
आत्महत्या नहीं करनी पड़ती. क्योंकि, ऊपर के दो संवाद हैं, उनकी २०१९
की हिट फिल्म छिछोरे के. इस फिल्म में उनका रील लाइफ बेटा परीक्षा में फेल होने से
निराश हो कर आत्महत्या करने की कोशिश करता है. सुशांत उसे ही समझाते हुए यह संवाद
बोलते हैं. फिल्म में सुशांत सिंह के बोले संवाद रील लाइफ बेटे पर असर डालते हैं.
वह नए सिरे से कोशिश करता है और सफल होता है. लेकिन, सुशांत सिंह राजपूत कैसे इतने निराश हो गए
कि कोशिश ही नहीं की! उन्होंने फेलियर से डील करने के बारे में पहले क्यों नहीं
सोचा.
पांच दिन पहले,
सुशांत सिंह राजपूत की पूर्व सेक्रेटरी दिशा सालियान ने मलाड स्थित एक
बिल्डिंग की १४वी मंजिल से कूद कर जान दे दी थी. दिशा के बाद सुशांत की आत्महत्या
को लेकर चर्चा हो रही है ! इन दोनों के बीच का कोई कनेक्शन ढूँढा जा रहा है. क्या
दिशा के बाद सुशांत द्वारा भी आत्महत्या का कोई सम्बन्ध है ? देखा जाए तो
सुशांत सिंह राजपूत डिप्रेशन यानि अवसाद के शिकार लगते हैं. उन्होंने, ३ जून को
अपनी और अपनी माँ की फोटो अपने इन्स्टाग्राम अकाउंट पर पोस्ट करते हुए लिखा, “धुंधला अतीत
आंसुओं की बूंदों से उड़ता जा रहा है.
अंतहीन स्वप्न मुस्कुराहट की कमान खींच रहे हैं और क्षण भंगुर ज़िन्दगी. दोनों के
बीच निभा रहा हूँ.”
सुशांत सिंह राजपूत की माँ की मृत्य २००२ में हो गई थी, उस समय
सुशांत सिर्फ १६ साल के थे. इसका उन्हें गहरा सदमा लगा था. इसके बावजूद, उन्होंने इस
साल मदर डे के मौके पर धरती माँ का चित्र लगते हुए लिखा था, इस माँ को, अपनी सभी
माओं की तरह,
उसके निस्वार्थ प्रेम के लिए आदर और सम्मान दें. इसमे निराशा का अंश मात्र
भी नहीं था. उन्होंने २४ मई को अपने माँ-पिता की फोटो लगा कर कमेंट किया, “बार बार दिन
ये आये. मेरी ज़िन्दगी से सबसे कीमती जोड़े को शादी की सालगिरह को शुभकामनायें.” तब ऐसा क्या
हुआ कि उन्होंने ११ दिन पहले आशा-निराशा के बीच झूलती पोस्ट डाली.
पटना के राजेंद्र नगर के रहने वाला राजपूत परिवार २००२ के बाद दिल्ली चला
आया. यहीं सुशांत सिंह राजपूत ने अपने फिल्म करियर को बनाने के लिए डांस ग्रुप
ज्वाइन किये,
डंसा अकादमी में प्रशिक्षण लिया. अभिनय के क्षेत्र में उनकी पहचान बनी
टीवी सीरियल पवित्र रिश्ता से. वह एक आदर्श बेटे और पति मानव के रूप में दर्शकों
के पसंदीदा बन गए. इस सीरियल की सफलता के बाद, उन्हें अभिषेक कपूर की फिल्म काई पो छे मिल
गई. यह फिल्म सफल रही. उसके बाद सुशांत सिंह राजपूत ने सफलता के कीर्तिमान स्थापित
किये. शुद्ध देसी रोमांस और पीके के बाद, उन्होंने महेंद्र सिंह धोनी पर बायोपिक
फिल्म एमएस धोनी द अनटोल्ड स्टोरी में उन्होंने धोनी के किरदार को जीवंत कर दिया.
सफलता के इस दौर में उन्हें असफलता का ज़ोरदार झटका लगा फिल्म राबता से. भारी बजट
की इस फिल्म को बॉक्स ऑफिस पर उतनी ही भारी असफलता मिली. इसके साथ ही, सुशांत सिंह
राजपूत का निराशा का दौर शुरू हो जाता है.
फिल्मों में सफलता के बाद, सुशांत सिंह राजपूत, अपनी पवित्र
रिश्ता की सह कलाकार और पहला प्रेम अंकिता लोखंडे से दूर हो गए. अब उनके कई
सच्चे-झूठे प्रेम के किस्से खबरें बनने लगे. राबता की कृति सेनन के साथ उनके
रोमांस के किस्से फैले. केदारनाथ के समय फिल्म की नायिका सारा अली खान से भी उनका
नाम जुड़ा. लेकिन,
सारा ने ज़ल्द ही खुद को कार्तिक आर्यन से जोड़ लिया. उनको उस समय शर्मनाक
दौर से गुजरना पडा,
जब उनकी फिल्म किज्जी एंड मैनी की नायिका संजना संघी ने एक बार सेट पर
तमाशा खड़ा कर दिया और सेट पर अपने माँ-पिता को बुलावा लिया. संजना ने सुशांत पर
आरोप लगाया कि वह कुछ ज्यादा नज़दीक आने की कोशिश कर रहे थे. हालाँकि, सुशांत सफाई
देते रह गए, पर संजना
सेट छोड़ कर ही नहीं गई,
देश छोड़ का विदेश चली गई घूमने. बाद में वह लौटी और फिल्म पूरी की. अब यह
फिल्म दिल बेचारा नाम से अमेज़न प्राइम विडियो पर स्ट्रीम होगी. सुशांत को इस घटना
से काफी लज्जित होना पड़ा.
इस दौर में,
फिल्मों की असफलता भी उनके साथ लगी हुई थी. हालाँकि छिछोरे को सफलता मिली.
लेकिन, सोन चिड़िया
और ड्राइव असफल हुई. उनकी फिल्म चंदा मामा दूर के यकायक बंद कर दी गई. हालाँकि, इसके लिए
उन्होंने काफी मेहनत की थी. इसी प्रकार से रॉ : रोमियो अकबर वाल्टर की शुरुआत उनके
साथ हुई, पर बाद में
जॉन अब्राहम इसके नायक बने. उनकी फिल्म राइफलमैन को भी कानूनी पचड़ों के कारण बंद
कर दिया गया. होमी अदजानिया ने भी सुशांत और परिणीती चोपड़ा के साथ बनाई जाने वाली
फिल्म तकदुम को बंद कर दिया. शेखर कपूर और यशराज फिल्म्स ने भी सुशांत के साथ
फिल्म पानी को बंद कर दिया.
साफ़ तौर पर यह किसी भी कलाकार के लिए निराशा का सबब हो सकता है कि उसकी
ज़्यादातर फ़िल्में ऐलान के बाद बंद हो जाती है. जो फ़िल्में पूरी भी होती है, उनकी एक बार
नहीं कई कई बार बंद हो जाने की खबरें सुर्खियाँ पाती है. अंततः यह फ़िल्में बॉक्स
ऑफिस पर असफल हो जाती है. यह सब कुछ किसी भी इमोशनल व्यक्ति को लॉकडाउन के दौर में
अवसाद से भर सकता है. जबकि आप अपनों से दूर तीन नौकरों के साथ खाली अपार्टमेंट में
ज़िन्दगी गुजर कर रहे हों.
Tuesday 9 June 2020
अपनी नायिका को पहचान दिलाने वाले राज खोसला
राज खोसला, आल इंडिया रेडियो के म्यूजिक डिपार्टमेंट के स्टाफ थे. वह
फिल्मों के गायक थे. देव आनंद को उनमे दूसरी प्रतिभा नज़र आ रही थी. उन्होंने राज
खोसला को अपने साथ लिया और गुरुदत्त का सहायक बना दिया. उनकी, देव आनंद और गीता
बाली के साथ निर्देशित पहली फिल्म मिलाप फ्लॉप हुई. लेकिन, अगली फिल्म सीआइडी ने
उन्हें सफलता दिला दी. इस फिल्म ने वहीदा रहमान को पहला और प्रतिभा दिखाने का
बढ़िया मौका दिया. इसके बाद तो राज खोसला अपनी फिल्मों की नायिकाओं का नया नामकरण
करने वाली फ़िल्में बनाते चले गए. फिल्म वह कौन थी से साधना को मिस्ट्री गर्ल की
उपाधि दी. फिल्म दो बदन ने, अब तक रोमांटिक फिल्मों में ग्लैमर का प्रदर्शन करती आ
रही आशा पारेख को गंभीर भूमिका करने वाले अभिनेत्री के तौर पर स्थापित कर दिया. इस
फिल्म के लिए सिमी को सह अभिनेत्री का फिल्मफेयर पुरस्कार मिला. दो रास्ते ने
मुमताज़ को एक्शन फिल्मों की नायिका से पारिवारिक फिल्मों की मुमताज़ बना दिया. नूतन
को चरित्र भूमिका के बावजूद बेस्ट अभिनेत्री का फिल्मफेयर पुरस्कार दिलाया मैं
तुलसी तेरे आँगन की ने. आज ही के दिन यानि ९ जून १९९१ को गोलोकवासी हुए राज खोसला
ने काला पानी, सोलहवा साल, बम्बई का बाबू, एक मुसाफिर एक हसीना, वोह कौन थी, मेरा
साया, दो बदन, अनीता, चिराग, दो रास्ते, मेरा गाँव मेरा देश, शरीफ बदमाश, कच्चे धागे,
प्रेम कहानी, नहले पे दहला, मैं तुलसी तेरे आँगन की, दोस्ताना और माटी मांगे खून
जैसी भिन्न शैली वाली फिल्मों का निर्माण किया. उनकी अंतिम फिल्म धर्मेन्द्र,
शर्मीला टैगोर, वहीदा रहमान, सनी देओल और अमृता सिंह के साथ सनी थी.
पहले और आखिरी फिल्मफेयर के असद भोपाली
गुलजार उन्हें उन कुछ नामों में से एक मानते हैं, जिहोने हिंदी फिल्मों के
गीतों में अपना योगदान दिया. इस कवि और फिल्म गीतकार ने ऐ मेरे दिले नादान, हम तुम
से जुदा हो के, वह जब याद आये बहुत याद आये, हस्त हुआ नूरानी चेहरा, अजनबी तुम
जाने पहचाने लगते हो, क्या तेरी जुल्फें हैं, सौ बार जनम लेंगे, राज़ ए दिल उनसे
छुपाया न गया, दिल की बाते दिल ही जाने, दिल का सूना साज़ तराना ढूंढ़ा, दोस्त बन के
आये हो, दिल दीवाना बिन सजाना के, आदि अर्थपूर्ण और रोमांस से भरे गीतों की रचना
की. जी हाँ, हम बात कर रहे हैं असद भोपाली की, जिनकी आज पुण्य तिथि है. भोपाल में
१० जुलाई १९२१ को जन्मे, असदुल्लाह खान ने फिल्मों के लिए लिखने के लिए खुद को
शायराना नाम असद भोपाली दिया. उन्हें फिल्मों में गीत लिखने का मौक़ा विभाजन की
त्रासदी के कारण मिला. फिल्म दुनिया के गीतकार आरजू लखनवी दो गीत लिखने के बाद
पाकिस्तान चले गए थे. निर्माता अच्छे गीतकार की तलाश में अपने मित्र, भोपाल के एक
सिनेमा प्रदर्शक के पास पहुंचे तो उन्होंने असद भोपाली का नाम सुझा दिया. इस
प्रकार से २८ साल की उम्र में असद भोपाली फिल्म गीतकार बन गए. उन्होंने ज़ल्द ही
अशोक कुमार की फिल्म अफसाना के गीत लिखे. इसके बाद, उन्होंने कई फिल्मों के गीत
लिखे, लेकिन उनके गीतों को जो पहचान लक्ष्मीकान्त प्यारेलाल की धुनों पर मिली, वह
किसी दूसरे संगीतकार के साथ नहीं मिली. उन्होंने लक्ष्मीकांत प्यारेलाल जोड़ी के
लिए फिल्म पारसमणि के सुपरहिट गीत लिखे. उन्होंने उषा खन्ना के लिए भी कई गीत
लिखे. लेकिन, मज़रूह सुल्तानपूरी, जा निसार अख्तर, साहिर लुधियानवी और राजेंद्र
कृष्ण के सामने वह सुर्ख़ियों में नहीं आ सके. उन्होंने अपने जीवन में ४०० गीत
लिखे. उनको इकलौता फिल्मफेयर अवार्ड सलमान खान की फिल्म मैंने प्यार किया के दिल
दीवाना के लिए मिला था. लेकिन, वह बीमार हो जाने की वजह से इस अवार्ड को नहीं ले
सके थे. ६ जून १९९० को उनका देहांत हो गया.
Thursday 4 June 2020
नहीं रहे ये वादा रहा के अनवर सागर
१९८० और १९९० के दशक की नादिम-श्रवण, जतिन-ललित, राजेश रोशन और अनु मालिक
की कर्णप्रिय धुनों को अर्थपूर्ण शब्द दे
कर लोकप्रिय बनाने वाले गीतकार अनवर सागर नहीं रहे. ७० साल के अनवर सागर आयु-जनित
बीमारियों से ग्रस्त थे. बताते हैं कि उन्हें सांस लेने में तकलीफ हो रही थी. वह
कई हॉस्पिटल में गए. लेकिन, किसी ने भी उन्हें भर्ती करने से इनकार कर दिया. अंततः
वह कोकिलाबेन हॉस्पिटल पहुंचे. लेकिन, वहां भी उन्हें यही जवाब मिला. पर इस जवाब
के साथ अनवर वापस नहीं लौट सके. उनका हॉस्पिटल में ही निधन हो गया. उन्होंने
याराना, सलामी, आ गले लग जा, विजय पथ, मैं खिलाड़ी तू अनाड़ी, कृष्णा, सलामी, कृष्ण
कन्हैया, सपने साजन के, आदमी, दिल का क्या कसूर, बाज़ी, आदि फिल्मों के गीत लिखे.
खिलाड़ी फिल्म का अक्षय कुमार और आयशा जुल्का पर फिल्माया गया ये वादा रहा जैसा
लोकप्रिय गीत अनवर सागर ने ही लिखा था. अनवर इंडियन परफोर्मिंग राईट सोसाइटी
लिमिटेड के सदस्य थे. लेकिन, यह संस्था भी अनवर की बीमारी में उनकी कोई मदद नहीं
कर सकी. उन्हें श्रद्धांजलि.
नहीं रहे चितचोर डायरेक्टर बासु चटर्जी
मशहूर निर्माता, निर्देशक और लेखक बासु चटर्जी का देहांत हो गया. वह ९३
साल के थे. बासु चटर्जी ने फिल्म करियर की शुरुआत बासु भट्टाचार्य के साथ फिल्म
तीसरी कसम और गोविन्द सरैया के साथ फिल्म सरस्वतीचन्द्र से अपने सह निर्देशक करियर
की शुरुआत की थी. फिल्म सारा आकाश (१९६९) से वह स्वतंत्र निर्देशक के तौर पर दर्शकों
के सामने थे. इस फिल्म की पटकथा उन्होंने ही लिखी थी.
पिया का घर, रजनीगंधा,
चितचोर, छोटी सी बात, स्वामी, प्रियतमा, खट्टा मीठा, दिल्लगी, बातों बातों में,
शौक़ीन, चमेली की शादी, आदि फिल्मों के ज़रीये वह आम और ख़ास के निर्देशक बन गए.
लेकिन, बाद में उनकी कमला की मौत, गुड़गुड़ी, प्रतीक्षा, आदि फ़िल्में बॉक्स ऑफिस पर
नाकाम रही. उनकी आखिरी हिंदी फिल्म कुछ खट्टा कुछ मीठा (२००७) थी. हालांकि, इसके
बाद भी वह बांगला भाषा में फ़िल्में बनाते रहे.
१९७० और १९८० के दशक में. बॉक्स
ऑफिस पर बासु चटर्जी, हृषिकेश मुख़र्जी और बासु भट्टाचार्य की फिल्मों का डंका बजा
करता था. दर्शक बेसब्री से इन फिल्मों की प्रतीक्षा किया करते थे. बासु चटर्जी ने
चार फिल्मों बातों बातों में, पसंद अपनी अपनी, लाखों की बात और एक रुका हुआ फैसला
का निर्माण किया था.
दूरदर्शन पर प्रसारित उनका भ्रष्टाचार के खिलाफ सीरियल रजनी
आम आदमी द्वारा काफी पसंद किया गया था. इसमे कोई शक नहीं कि बासु चटर्जी आम आदमी
से जुड़े निर्देशक थे.इसका परिचय उनके राजनीतिक शो काकाजी कहिन, भीम भवानी,
ब्योमकेश बक्षी, आदि को बड़ी सफलता मिली थी.
विडम्बना है कि आम आदमी यानि माध्यम
वर्ग की नब्ज़ पर हाथ रखने वाली फ़िल्में और टीवी शो बनाने वाले बासु चटर्जी को
पद्मश्री की उपाधि नहीं मिली. उनकी फिल्म दुर्गा को राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों में
परिवार कल्याण की श्रेष्ठ फिल्म के पुरस्कार से नवाज़ा गया. उन्हें श्रद्धांजलि.
Monday 1 June 2020
नहीं रहे साजिद के वाजिद खान !
कोरोना महामारी के दौर में उत्तर प्रदेश को एक के
बाद एक दो नुकसान हुए. मायानगरी के १९७० के दशक के गीतकार लखनऊ के योगेश के निधन
के बाद, अब सहारनपुर के वाजिद खान का निधन हो गया.
वाजिद खान ने अपने भाई साजिद के साथ साजिद-वाजिद जोड़ी बना कर बॉलीवुड की फिल्मों
में धूम मचा दी. मशहूर तबला वादक शराफत अली खान की संतान वाजिद का निधन ४२ साल की
छोटी उम्र में हुआ. इस जोड़ी ने अपने फिल्म करियर की शुरुआत सलमान खान,
अरबाज़ खान और कजोल की रोमांस फिल्म प्यार किया तो डरना क्या (१९९८) में हिमेश रेशमिया और जतिन ललित की जोड़ी के साथ
एक गीत तेरी जवानी का संगीत दे कर की. इसके बाद से साजिद-वाजिद जोड़ी ने सलमान खान
की लगभग हर फिल्म में संगीत दिया. दबंग के गीत तेरे मस्त मस्त दो नैन ने दर्शकों
को सोनाक्षी सिन्हा की मस्त आँखों की मस्ती से भर दिया. वाजिद गायक भी खूब थे.
उन्होंने हमका पीनी है, जलवा,
पाण्डेय जी सीटी, सामने है
सवेरा, आदि गीतों में अपनी आवाज़ दी.
वाजिद किडनी और दिल की बीमार से ग्रस्त थे. उन्हें
कोरोना हो गया था. कल रात तबियत बिगड़ने पर उन्हें वेंटीलेटर पर रखा गया था. उनकी
परिवार के प्रति संवेदनाएं. ईश्वर उनकी आत्मा को शांति दे.
Friday 29 May 2020
फिल्म गीतकार योगेश का निधन
हिंदी फिल्मों के गीतकार योगेश का आज निधन हो
गया। लखनऊ उत्तर प्रदेश में १९ मार्च १९४३
को जन्मे योगेश गौड़, काम की तलाश में १६ साल की उम्र में बम्बई आ
गए। उन्हें पहली फिल्म शेख मुख्तार अभिनीत
एक रात में गीत लिखने का मौक़ा मिला। लेकिन
योगेश को बुलंदियों में पहुंचाया हृषिकेश मुख़र्जी की फिल्मों ने। अमिताभ बच्चन और राजेश खन्ना अभिनीत और हृषिकेश
मुख़र्जी निर्देशित फिल्म आनंद के कहीं दूर जब दिन ढल जाए और ज़िन्दगी कैसी है पहेली
हाय ने उन्हें ऊंचे दर्जे का गीतकार बना दिया। उन्होंने,
हृषिकेश मुख़र्जी की मिली के गीत भी लिखे थे। बासु चटर्जी की फिल्म छोटी सी बात ,
बातों बातों में, रजनीगंधा,
मंज़िल, आदि फिल्मों के गीतों को लिखा। योगेश के निधन पर गायिका स्वर कोकिला लता
मंगेशकर ने ट्वीट किया कि मुझे अभी पता चला कि दिल को छूने वाले गीत लिखने वाले
कवी योगेश जी का आज स्वर्गवास हुआ। यह
सुनके मुझे बहुत दुःख हुआ. योगेश जी के लिखे
कई गीत मैंने गाये। योगेश जी बहुत
शांत और मधुर स्वभाव के इंसान थे. मैं उनको विनम्र श्रद्धांजलि अर्पण करती
हूँ.
योगेश जी को श्रद्धांजलि।
Thursday 30 April 2020
एक्शन के युग में रोमांस की अलख जगाने वाले Rishi Kapoor
राजकपूर ने एक जोकर की कहानी पर दो इंटरवल वाली फिल्म मेरा नाम जोकर का
निर्माण किया था। यह फिल्म राजकपूर की महत्वकांक्षी फिल्म थी। लेकिन, राकपूर की
मुख्य भूमिका वाली सितारों से भरी फिल्म मेरा नाम जोकर बॉक्स ऑफिस पर बुरी तरह से
फ्लॉप हुई। राजकपूर हताश तो हुए ही, भारी नुकसान में भी आ गए। उसी दौरान कपूर
खानदान की तीन पीढ़ियों के अभिनय से सजी फिल्म कल आज और कल भी बनाई जा रही थी। यह
फिल्म भी बॉक्स ऑफिस पर कुछ ख़ास नहीं कर सकी। राजकपूर बर्बादी के कगार पर आ गए।
स्टूडियो गिरवी रख कर बनाई फिल्म
स्टूडियो गिरवी रख कर बनाई फिल्म
ऐसे समय में राजकपूर ने कपूर स्टूडियो गिरवी रख कर फिल्म बॉबी का निर्माण
शुरू किया। यह फिल्म टीनएज रोमांस पर थी। राजकपूर की यह खालिस मसाला फिल्म थी। इस
फिल्म में उन्होंने अपने बेटे ऋषि कपूर को एक गुजराती चेहरा डिंपल कपाडिया के साथ
फिल्म का नायक बनाया था। फिल्म में पहली
बार शंकर जयकिशन के बजाय लक्ष्मीकान्त-प्यारेलाल ने संगीत दिया था। इस फिल्म के
लिए उनके परम मित्र प्राण ने सिर्फ एक रुपया पारिश्रमिक के तौर पर लिया था।
राजकपूर निर्देशित फिल्म बॉबी में ड्रामा था, इमोशन था और भरपूर अंग प्रदर्शन भी। डिंपल
कपाडिया ने अपनी रूप राशि का जम कर प्रदर्शन किया था। २८ सितम्बर १९७३ को बॉबी
रिलीज़ हुई। यह फिल्म पूरे भारत में ज़बरदस्त हिट फिल्म साबित हुई। राजकपूर की
किस्मत पलट गई।
बॉलीवुड की पूँजी ऋषि
बॉबी ने कई सितारों को जन्म दिया। लक्ष्मीकान्त- प्यारेलाल ने राजकपूर
कैंप में प्रवेश किया। फिल्म से दो नए गायकों शैलेन्द्र सिंह और नरेन्द्र चंचल को
बॉलीवुड में पहला बड़ा मौक़ा मिला। डिंपल कपाडिया ने अपनी सेक्स अपील का डंका बजा
दिया। यही कारण था कि बॉबी के तत्काल बाद, राजेश खन्ना से शादी कर बॉलीवुड को लात मार
देने वाली डिंपल ने १० साल बाद, जब वापसी की तो बॉलीवुड ने उन्हें हाथों हाथ लिया।
लेकिन, बॉलीवुड की
पूँजी साबित हुए राजकपूर के बड़े बेटे ऋषि कपूर।
४७ साल तक सक्रिय करियर की शुरुआत
बॉबी के बाद,
ऋषि कपूर लगातार ४७ साल तक परदे पर सक्रिय रहे। वह बॉलीवुड के चॉकलेटी
हीरो के रूप में स्थापित हो गए। वह कपूर खानदान के वारिस थे। लेकिन, अपनी
प्रतिभा के बल पर लम्बे समय तक बने रहे। उन्होंने बाहर के बैनरो की फ़िल्में भी खूब
की। ऋषि कपूर की सफलता इस लिहाज़ से ख़ास थी कि १९७० और उसके बाद के दशक की फिल्मों
के लोकप्रिय नायक की इमेज ऋषि कपूर की
स्क्रीन इमेज के खिलाफ थी। बॉबी की रिलीज़ से, लगभग छः महीने पहले ११ मई १९७३ को जंजीर
रिलीज़ हो कर बड़ी हिट साबित हो चुकी थी। अमिताभ बच्चन के एंग्री यंग मैन यानि
क्रुद्ध युवा का डंका बज गया था। हिंदी फिल्मों में एक्शन का दौर शुरू हो चूका था।
ऐसे समय में ऋषि कपूर ने खुद की इमेज को बदलने की कोई कोशिश नहीं की। उन्होने
रोमांटिक फ़िल्में करना जारी रखा। उनकी यह रोमांस फ़िल्में हिट भी हुई और फ्लॉप भी।
पर ऋषि कपूर डिगे नहीं। इसमे उनकी काफी मदद मिली नीतू सिंह से जोड़ी बना कर। इस
जोड़ी के साथ रिलीज़ तमाम फ़िल्में ज़हरीला इंसान, जिंदा दिल, रफू चक्कर, खेल खेल में, कभी कभी, अमर अकबर अन्थोनी, आदि बड़ी हिट
साबित हुई।
बेमिसाल रोमांटिक हीरो
ऋषि कपूर रोमांटिक हीरो के तौर पर किस कदर सफल थे, इसका अंदाजा
इसी बात से लगाया जा सकता है कि जब अमिताभ बच्चन ने अपनी इमेज से विपरीत रोमांटिक
फिल्म कभी कभी की तो उन्हें सहारा देने के लिए नीतू सिंह के साथ ऋषि कपूर फिल्म
में मौजूद थे। इस फिल्म के बाद अमिताभ बच्चन और ऋषि कपूर ने अमर अकबर अन्थोनी, नसीब, कुली और अजूबा
जैसी कई सुपरहिट फ़िल्में एक साथ की। अजूबा के २७ साल बाद, जब फिल्म
१०२ नॉट आउट में अमिताभ बच्चन और ऋषि कपूर साथ आये तो फिल्म को दर्शकों ने खूब
पसंद किया।
ऋषि कपूर ने कभी भी रोमांटिक हीरो बने रहने की कोशिश नहीं की। उन्होंने अपनी
भूमिकाओं की सशक्तता पर ध्यान दिया। अगर किसी सशक्त पटकथा वाली फिल्म उनकी इमेज से
अलग थी तो भी उन्होंने उस फिल्म को किया। एक चादर मैली सी, हथियार, बोल राधा
बोल, दामिनी, आदि कुछ ऐसी
ही फ़िल्में थी। उन्होंने केसू रामसे की थ्रिलर फिल्म खोज में भी अभिनय किया था।
एकता कपूर की हॉरर फिल्म कुछ तो है में उन्हें नकारात्मक भूमिका में देखा गया।
उन्होंने डी-डे में दाऊद इब्राहीम का रील किरदार किया था। उनकी फिल्म अग्निपथ में
लड़कियों को देह व्यापार में झोंकने वाले रऊफ लाला की भूमिका की कड़ी आलोचना हुई थी।
यह आलोचना उनकी अच्छी इमेज का परिणाम थी। ऋषि कपूर ने बड़ी आसानी से रोमांटिक
भूमिकाओं के बजाय चरित्र भूमिकाओं को करना शुरू कर दिया। प्यार में ट्विस्ट, फना, नमस्ते
लन्दन, डेल्ही ६, लव आजकल कुछ
ऐसी ही फ़िल्में थी। वह पटियाला हाउस में अक्षय कुमार के पिता बनने में भी नहीं
हिचके।
सोशल मीडिया पर सक्रिय
ऋषि कपूर एक ऐसे वरिष्ट बॉलीवुड अभिनेता थे, जो सोशल मीडिया पर आखिरी तक सक्रिय रहे।
उनके ट्वीट काफी चुटीले हुआ करते थे। वह कपूर खानदान की परम्परा में खाने और पीने
के शौक़ीन थे। उनका पीने का शौक ट्विटर पर भी नज़र आता था। उन्होंने लॉकडाउन के
दौरान मैखाना खोले रखने की वकालत भी की थी। जिस पर ट्विटर पर काफी चुटकी ली गई।
वैसे वह लॉकडाउन का पालन किये जाने के समर्थक थे। उनके बेटे रणबीर कपूर बॉलीवुड के
स्थापित प्रतिभाशाली एक्टर है। ऋषि कपूर ने फिल्म बेशर्म में अपनी पत्नी नीतू सिंह
के साथ रणबीर कपूर के पिता-माँ की भूमिका की थी। ऋषि कपूर की आखिरी इच्छा थी कि वह
अपने बेटे की शादी देख लेते।
ऋषि कपूर और इरफ़ान खान का संयोग
यहाँ इरफ़ान खान और ऋषि कपूर के जीवन का दिलचस्प संयोग। ऋषि कपूर और इरफ़ान
खान ने निखिल अडवाणी की फिल्म डी-डे (२०१३) में अभिनय किया था। इरफ़ान खान ने रॉ
एजेंट वली खान और ऋषि कपूर ने रील लाइफ दाऊद इब्राहीम की भूमिका की थी। ऋषि कपूर
भी इरफ़ान खान की तरह कैंसर से जूझ कर जीते थे। ऋषि कपूर की माँ कृष्णा कपूर का जब
निधन हुआ, तब ऋषि कपूर
अमेरिका में अपना कैंसर का इलाज़ करा रहे थे। वह अपनी माँ के अंतिम संस्कार में
शामिल नहीं हो सके थे। उन्ही की तरह इरफ़ान खान भी, लॉकडाउन के कारण अपनी माँ के अंतिम संस्कार
में शामिल नहीं हो पाए थे। इरफ़ान खान की तरह ऋषि कपूर भी एक बीमारी से जीतने के
बाद दूसरी बीमारी के शिकार हुए।
Wednesday 29 April 2020
मुझे लगता है, मैंने सरेंडर कर दिया है- Irrfan Khan
नहीं रहे एक्टर इरफ़ान खान। दो साल तक, न्यूरोएंडोक्राइन
कैंसर से संघर्ष करने के बाद जीत हासिल करने वाले इरफ़ान खान,
कोलन इन्फेक्शन से पराजित हो गए। कोकिलाबेन हॉस्पिटल में २८ अप्रैल की शाम
सांस लेने में परेशानी के बाद भर्ती इरफ़ान ने आज २९ अप्रैल को आखिरी सांस
ली।विडम्बना देखिये कि कुछ दिनों पहले उनकी माँ का निधन हो गया था। लेकिन,
लॉकडाउन के कारण इरफ़ान उनके जनाजे में शामिल नहीं हो पाए थे।
खजुरिया के साहबज़ादे
राजस्थान में टोंक के एक गाँव खजुरिया के साहबजादे इरफ़ान अली खान को
क्रिकेट का शौक था। इस शौक ने उन्हें सीके नायडू ट्राफी के लिए चुनवा दिया। लेकिन,
आर्थिक परिस्थिति के कारण वह टीम में शामिल नहीं हो सके। नेशनल स्कूल ऑफ़
ड्रामा से स्कालरशिप मिलने पर वह १९८४ में दिल्ली आ गए। अभिनय के क्षेत्र में आने
पर साहबजादे इरफ़ान अली खान ने अपना नाम छोटा कर इरफ़ान खान रख लिया,
जो बाद में कब इरफ़ान में तब्दील हो गया।
टीवी सीरियल से शुरुआत
इरफ़ान खान के अभिनय करियर की शुरुआत सीरियल श्रीकांत से हुई। श्याम बेनेगल
के सीरियल भारत एक खोज किया। इसी दौरान वह मीरा नायर की फिल्म सलाम बॉम्बे के लिए
चुन लिए गए। इस फिल्म के बाद, इरफ़ान खान
ने कमला की मौत, जजीरे, दृष्टि,एक डॉक्टर
की मौत, पिता द फादर, मुझसे
दोस्ती करोगे, आदि ढेरों फ़िल्में की। लेकिन,
उन्हें पहचान मिली भारतीय मूल के ब्रितानी फिल्मकार आसिफ कपाडिया की फिल्म
द वारियर से। इस फिल्म ने उन्हें बॉलीवुड और हॉलीवुड,
दोनों उद्योगों में मशहूर करवा दिया। मक़बूल और हासिल फिल्मों की खल
भूमिकाओं ने इरफ़ान खान के एक्टर को ज़बरदस्त पहचान दी।हासिल के लिए उन्हें
फिल्मफेयर का बेस्ट विलेन का पुरस्कार भी मिला। महेश भट्ट की लिखी और पूजा भट्ट
निर्मित थ्रिलर फिल्म रोग के वह नायक थे।
पुरस्कारों के इरफ़ान
इरफ़ान खान को हर प्रकार की भूमिकाओं में महारत हासिल थी। वह जहाँ विलेन की
भूमिका के उपयुक्त थे तो ड्रामा फिल्म लाइफ इन अ मेट्रो की संवेदनशीलता को उभार
पाने में भी कामयाब थे। इस फिल्म के लिए उन्हें बेस्ट सपोर्टिंग एक्टर का
फिल्मफेयर पुरस्कार मिला। हासिल के बाद, तिग्मांशु
धुलिया की एथलिट से डाकू बने पान सिंह तोमर की कहानी को इरफ़ान खान ने परदे पर कुछ
इस आसानी से किया कि फिल्म बॉक्स ऑफिस पर तो सफल हुई ही,
इरफ़ान खान को राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों में बेस्ट एक्टर का पुरस्कार भी
दिला गई। एक अन्य रोमांस ड्रामा फिल्म द लंचबॉक्स ने उन्हें बाफ्टा अवार्ड में
नामित करवा दिया। इरफ़ान खान ने हैदर, गुंडे,
पिकू और तलवार के लिए प्रशंसा बटोरी।
२०१४ से करियर को अहम् मोड़
२०१४ के बाद, इरफ़ान खान का करियर अहम् मोड़ पर आ गया। ,उन्होंने
हैदर, पिकू और तलवार जैसी फिल्मों की सफलता में
अपना योगदान किया, वही २०१७ में प्रदर्शित फिल्म हिंदी मीडियम
तो पूरी तरह से इरफ़ान खान के कंधो पर सफल हुई। इस फिल्म की सफलता के बाद,
हिंदी मीडियम की सीक्वल फिल्म अंग्रेजी मीडियम का निर्माण किया जाने लगा
तो इरफ़ान खान का नाम सबसे आगे था। लेकिन, मस्तिष्क की
बीमारी के कारण वह इस फिल्म की शूटिंग शुरू नहीं कर सके। बीमारी से उबरने के बाद,
इरफ़ान ने सिर्फ इस एक फिल्म में काम करना ही स्वीकार किया।
विदेशी फिल्मों के इरफ़ान
इरफ़ान खान ने कई विदेशी फिल्मों में भी अभिनय किया। द वारियर के बाद,
इरफ़ान खान ने बांग्ला भाषा में जर्मन फिल्म शैडोज ऑफ़ टाइम,
माइकल विंटरबॉटम की ड्रामा फिल्म द माइटी हार्ट,
मीरा नायर की फिल्म द नेमसेक, निर्देशक
वेस एंडरसन की अमेरिकी कॉमेडी ड्रामा फिल्म द दार्जीलिंग लिमिटेड,
विक सरीन की फिल्म पार्टीशन, डैनी बॉयल
की क्राइम ड्रामा फिल्म स्लमडॉग मिलियनेयर, अमेरिकन
रोमांटिक ड्रामा फिल्म न्यूयॉर्क आई लव यू, आदि
उल्लेखनीय थी। उन्हें ज़बरदस्त अंतर्राष्ट्रीय पहचान मिली मार्वल कॉमिक्स की सुपर
हीरो फिल्म द अमेजिंग स्पाइडर-मैन में डॉक्टर रजित रथ की भूमिका से। उसी साल आंग
ली की ऑस्कर विजेता फिल्म लाइफ ऑफ़ पई ने उनकी पहचान को पुख्ता कर दिया। जुरैसिक
वर्ल्ड (२०१५) में जुरासिक पार्क के मालिक सिमोन मसरानी की भूमिका में नज़र आये।
२०१६ की हिट लाइव एनीमेशन फिल्म द जंगल बुक में, इरफ़ान ने
बालू को अपनी आवाज़ दी। इसी साल उनकी एक अन्य हॉलीवुड फिल्म इन्फर्नो भी चर्चित
हुई। उन्होंने भारत और बांगलादेश की सहकर फिल्म डूब: नो बीएड ऑफ़ रोजेज में अहम्
भूमिका की। क्रॉसओवर फिल्म द सॉंग ऑफ़ स्कॉर्पियंस और पजल उनकी आखिरी विदेशी
फ़िल्में थी।
निजी ज़िन्दगी
७ जनवरी १९६७ को जन्में इरफ़ान खान ने, नेशनल स्कूल
ऑफ़ ड्रामा में अपनी सहपाठी सुतापा सिकदर के साथ २३ फरवरी १९९५ को विवाह किया। उनके
दो बच्चे बाबिल और अयान हैं। उन्हें २०११ में पद्मश्री से सम्मानित किया गया।
फरवरी २०१८ में उन्हें कैंसर की जानकारी हुई।
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