नहीं रहे एक्टर इरफ़ान खान। दो साल तक, न्यूरोएंडोक्राइन
कैंसर से संघर्ष करने के बाद जीत हासिल करने वाले इरफ़ान खान,
कोलन इन्फेक्शन से पराजित हो गए। कोकिलाबेन हॉस्पिटल में २८ अप्रैल की शाम
सांस लेने में परेशानी के बाद भर्ती इरफ़ान ने आज २९ अप्रैल को आखिरी सांस
ली।विडम्बना देखिये कि कुछ दिनों पहले उनकी माँ का निधन हो गया था। लेकिन,
लॉकडाउन के कारण इरफ़ान उनके जनाजे में शामिल नहीं हो पाए थे।
खजुरिया के साहबज़ादे
राजस्थान में टोंक के एक गाँव खजुरिया के साहबजादे इरफ़ान अली खान को
क्रिकेट का शौक था। इस शौक ने उन्हें सीके नायडू ट्राफी के लिए चुनवा दिया। लेकिन,
आर्थिक परिस्थिति के कारण वह टीम में शामिल नहीं हो सके। नेशनल स्कूल ऑफ़
ड्रामा से स्कालरशिप मिलने पर वह १९८४ में दिल्ली आ गए। अभिनय के क्षेत्र में आने
पर साहबजादे इरफ़ान अली खान ने अपना नाम छोटा कर इरफ़ान खान रख लिया,
जो बाद में कब इरफ़ान में तब्दील हो गया।
टीवी सीरियल से शुरुआत
इरफ़ान खान के अभिनय करियर की शुरुआत सीरियल श्रीकांत से हुई। श्याम बेनेगल
के सीरियल भारत एक खोज किया। इसी दौरान वह मीरा नायर की फिल्म सलाम बॉम्बे के लिए
चुन लिए गए। इस फिल्म के बाद, इरफ़ान खान
ने कमला की मौत, जजीरे, दृष्टि,एक डॉक्टर
की मौत, पिता द फादर, मुझसे
दोस्ती करोगे, आदि ढेरों फ़िल्में की। लेकिन,
उन्हें पहचान मिली भारतीय मूल के ब्रितानी फिल्मकार आसिफ कपाडिया की फिल्म
द वारियर से। इस फिल्म ने उन्हें बॉलीवुड और हॉलीवुड,
दोनों उद्योगों में मशहूर करवा दिया। मक़बूल और हासिल फिल्मों की खल
भूमिकाओं ने इरफ़ान खान के एक्टर को ज़बरदस्त पहचान दी।हासिल के लिए उन्हें
फिल्मफेयर का बेस्ट विलेन का पुरस्कार भी मिला। महेश भट्ट की लिखी और पूजा भट्ट
निर्मित थ्रिलर फिल्म रोग के वह नायक थे।
पुरस्कारों के इरफ़ान
इरफ़ान खान को हर प्रकार की भूमिकाओं में महारत हासिल थी। वह जहाँ विलेन की
भूमिका के उपयुक्त थे तो ड्रामा फिल्म लाइफ इन अ मेट्रो की संवेदनशीलता को उभार
पाने में भी कामयाब थे। इस फिल्म के लिए उन्हें बेस्ट सपोर्टिंग एक्टर का
फिल्मफेयर पुरस्कार मिला। हासिल के बाद, तिग्मांशु
धुलिया की एथलिट से डाकू बने पान सिंह तोमर की कहानी को इरफ़ान खान ने परदे पर कुछ
इस आसानी से किया कि फिल्म बॉक्स ऑफिस पर तो सफल हुई ही,
इरफ़ान खान को राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों में बेस्ट एक्टर का पुरस्कार भी
दिला गई। एक अन्य रोमांस ड्रामा फिल्म द लंचबॉक्स ने उन्हें बाफ्टा अवार्ड में
नामित करवा दिया। इरफ़ान खान ने हैदर, गुंडे,
पिकू और तलवार के लिए प्रशंसा बटोरी।
२०१४ से करियर को अहम् मोड़
२०१४ के बाद, इरफ़ान खान का करियर अहम् मोड़ पर आ गया। ,उन्होंने
हैदर, पिकू और तलवार जैसी फिल्मों की सफलता में
अपना योगदान किया, वही २०१७ में प्रदर्शित फिल्म हिंदी मीडियम
तो पूरी तरह से इरफ़ान खान के कंधो पर सफल हुई। इस फिल्म की सफलता के बाद,
हिंदी मीडियम की सीक्वल फिल्म अंग्रेजी मीडियम का निर्माण किया जाने लगा
तो इरफ़ान खान का नाम सबसे आगे था। लेकिन, मस्तिष्क की
बीमारी के कारण वह इस फिल्म की शूटिंग शुरू नहीं कर सके। बीमारी से उबरने के बाद,
इरफ़ान ने सिर्फ इस एक फिल्म में काम करना ही स्वीकार किया।
विदेशी फिल्मों के इरफ़ान
इरफ़ान खान ने कई विदेशी फिल्मों में भी अभिनय किया। द वारियर के बाद,
इरफ़ान खान ने बांग्ला भाषा में जर्मन फिल्म शैडोज ऑफ़ टाइम,
माइकल विंटरबॉटम की ड्रामा फिल्म द माइटी हार्ट,
मीरा नायर की फिल्म द नेमसेक, निर्देशक
वेस एंडरसन की अमेरिकी कॉमेडी ड्रामा फिल्म द दार्जीलिंग लिमिटेड,
विक सरीन की फिल्म पार्टीशन, डैनी बॉयल
की क्राइम ड्रामा फिल्म स्लमडॉग मिलियनेयर, अमेरिकन
रोमांटिक ड्रामा फिल्म न्यूयॉर्क आई लव यू, आदि
उल्लेखनीय थी। उन्हें ज़बरदस्त अंतर्राष्ट्रीय पहचान मिली मार्वल कॉमिक्स की सुपर
हीरो फिल्म द अमेजिंग स्पाइडर-मैन में डॉक्टर रजित रथ की भूमिका से। उसी साल आंग
ली की ऑस्कर विजेता फिल्म लाइफ ऑफ़ पई ने उनकी पहचान को पुख्ता कर दिया। जुरैसिक
वर्ल्ड (२०१५) में जुरासिक पार्क के मालिक सिमोन मसरानी की भूमिका में नज़र आये।
२०१६ की हिट लाइव एनीमेशन फिल्म द जंगल बुक में, इरफ़ान ने
बालू को अपनी आवाज़ दी। इसी साल उनकी एक अन्य हॉलीवुड फिल्म इन्फर्नो भी चर्चित
हुई। उन्होंने भारत और बांगलादेश की सहकर फिल्म डूब: नो बीएड ऑफ़ रोजेज में अहम्
भूमिका की। क्रॉसओवर फिल्म द सॉंग ऑफ़ स्कॉर्पियंस और पजल उनकी आखिरी विदेशी
फ़िल्में थी।
निजी ज़िन्दगी
७ जनवरी १९६७ को जन्में इरफ़ान खान ने, नेशनल स्कूल
ऑफ़ ड्रामा में अपनी सहपाठी सुतापा सिकदर के साथ २३ फरवरी १९९५ को विवाह किया। उनके
दो बच्चे बाबिल और अयान हैं। उन्हें २०११ में पद्मश्री से सम्मानित किया गया।
फरवरी २०१८ में उन्हें कैंसर की जानकारी हुई।
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