Sunday 12 April 2020

दूरदर्शन पर क्यों धार्मिक पौराणिक सीरियलों के दर्शन ?


राष्ट्रीय चैनलों पर १९८० का दशक उतर आया लगता है। दूरदर्शन पर राम कथा और महाभारत का धर्म युद्ध देखने को मिल रहा है। पूरा वातावरण जैसे धार्मिक और नैतिकतापूर्ण हो चला है। क्योंकि, दूरदर्शन की देखा-देखी कुछ दूसरे प्रमुख चैनलों ने राम-रावण युद्ध, महाभारत का महा संग्राम और कृष्ण लीला को परदे पर दोहराना शुरू कर दिया है। इसके साथ ही, विरोध के सुर भी उगने शुरू हो गए हैं। सरकार पर अंध विश्वास बढाने और हिन्दू तुष्टिकरण के आरोप भी लग रहे हैं।  सोशल मीडिया पर विरोध और समर्थन में टिप्पणियों का आदान प्रदान हो रहा है। ऐसा लगता है, जैसे कोरोना की चौपड़ पर राजनीतिक महाभारत की बिसात बिछा दी गई है।

क्या नैतिकता है ?
ऐसे में यह सवाल पूछा जाना स्वभाविक है कि क्या सरकारी चैनल दूरदर्शन का अपने पुराने शोज को फिर से दिखाना उपयुक्त है? क्या इन सीरियलों को प्रसारित करने के राजनीतिक उद्देश्य हैं या राजनीति के उद्देश्य से इन सीरियलों का विरोध किया जा रहा है? सरकार को क्या ज़रुरत पड़ गई दूरदर्शन के पुराने सीरियलों को प्रसारित करने की, वह भी रॉयल्टी चुका कर! दरअसल, देश में कोरोना वायरस के फैलाव को रोकने के लिए सोशल डिस्टैन्सिंग के ख्याल से, २४ मार्च को, प्रधान मंत्री द्वारा तीन हफ्ते के लॉकडाउन का ऐलान किया गया। इसके बाद २८ मार्च से दूरदर्शन से, इसके पूर्व प्रसारित कुछ सीरियलों का पुनर्प्रसारण शुरू हो गया। २८ मार्च से दूरदर्शन राष्ट्रीय से रामायण और दूरदर्शन भारती से महाभारत का प्रसारण शुरू हो गया। इन सीरियलों को मोबाइल ऍप्स के ज़रिये भी देखा जा सकता है।

हिन्दू धार्मिक और पौराणिक कथानक
दूरदर्शन के राष्ट्रीय और भारती चैनल से रामायण और महाभारत के प्रसारण का विरोध इस बिना पर किया जा रहा है कि यह हिन्दू धर्म ग्रंथों के चरित्र है। इनका प्रसारण एक वर्ग के, यानि हिन्दुओं को खुश करने के लिए किया गया है। ऐसा करके दूरदर्शन काफी बड़ी आबादी को हिन्दू धार्मिक और पौराणिक सीरियल देखने को मज़बूर कर रहा है। एक नज़र में यह आरोप सही भी लगते हैं। क्योंकि, रामानंद सागर के २५ जनवरी १९८७ से ३१ जुलाई १९८८ तक प्रसारित श्रृंखला रामायण का कथानक हिन्दुओं के आराध्यदेव राम के जीवन पर आधारित है। इस सीरियल में राम, लक्षमण और सीता की भूमिका करने वाले एक्टरों अरुण गोविल, सुनील लहरी और दीपिका चिखलिया को, आज भी लोग उसी रूप मे देखते हैं। इन एक्टरों पर इनकी इमेज कुछ इस तरह से चिपक गई थी कि यह कलाकार दूसरे प्रकार के चरित्र करने के योग्य नहीं पाए गए। इसी प्रकार से, २ अक्टूबर १९८८ से २४ जून १९९० तक प्रसारित बीआर चोपड़ा और रवि चोपड़ा निर्देशित महाभारत का कथानक महाभारत के धर्मयुद्ध पर आधारित सीरियल था। इस सीरियल में पांच पांडव, कौरव, भीष्म, दुर्योधन, धृतराष्ट्र, भीष्म और कृष्ण की भूमिका कर, इन चरित्रों के अभिनेता अभिनेत्रियों ने इतनी अधिक सफलता हासिल कर ली थी कि सीता (दीपिका चिखलिया), रावण (अरविन्द त्रिवेदी), कृष्ण (नितीश भरद्वाज) और द्रौपदी (रूपा गांगुली) संसद और विधान सभाओं में तक जा बैठे। ज़ाहिर है कि यह राजनीतिक सफलता, इन कलाकारों की धार्मिक पौराणिक चरित्र करने की सफलता ही थी।

क्या जन भावनाओं का नियंत्रण !
इससे तो ऐसा लगता है कि सरकार ने अपने नियंत्रित चैनल से रामायण और महाभारत का प्रसारण कर, जन=भावनाओं को  अपने पक्ष में नियंत्रित करने की कोशिश की है। क्योंकि, इस प्रकार से आमजन का ध्यान कोरोना की महामारी और दूसरी समस्याओं की ओर सक्रियता से नहीं जाएगा।  लेकिन, यह आरोप उस समय मिथ्या साबित हो जाते हैं, जब यह सामने आता है कि आम जन प्रधान मंत्री के आह्वाहन पर एक दिन के जनता कर्फ्यू का बिना किसी दबाव के पालन करता है।  अपने घरों की बत्तियां नौ मिनट के लिए बुझा कर, दीपक रोशन करता है। जिस प्रधान मंत्री के आह्वाहन पर इतनी शक्ति हो कि लोग अपने घरों में ख़ुशी ख़ुशी बंद हो जाए और २१ दिनों का लॉकडाउन भी बिना किसी विरोध के स्वीकार करें तो उसे अपनी जनता को नियंत्रित करने के लिए धार्मिक या पौराणिक सीरियलों प्रसारित करने की क्या ज़रुरत है ?

सोशल डिस्टैन्सिंग में कारगर
अलबत्ता, यह तर्क ज़्यादा मज़बूत लगता है कि अपने घरों में तीन हफ़्तों के लिए बंद रहने वालों के मनोरंजन, उन्हें एकाकीपन से दूर रखने, मानसिक तनाव को कम करने तथा सोशल डिस्टैन्सिंग को कारगर बनाने के लिए यह प्रसारण कारगर हो सकता है। क्योंकि, धार्मिक पौराणिक सीरियलों में उपदेश, नैतिकता, शिक्षा और आदर्श का समवेश होता है। ऐसे शो,बीमारी के अवसाद के दौर में, दर्शकों को सार्थक सन्देश दे सकते हैं। ऐसा होता लग भी रहा है। क्योंकि, रामायण और महाभारत में, इनके चरित्रों के कृत्यों पर सोशल मीडिया पर बहस का दौर चल निकला है। रामायण और महाभारत, जब टेलीविज़न से प्रसारित होते थे, तब पूरे देशमें सड़के वीरान हो जाय करती थी। उस दौर में, दुकाने और व्यापारिक प्रतिष्ठान इन सीरियलों के प्रसारण के बाद ही खोले जाते थे। ऐसी प्रतिष्ठा रखने वाले सीरियलों को प्रसारित करने से सोशल डिस्टेंसिंग को कारगर बनाया जा सकता था। जो सही साबित भी हुआ है।

सार्वभौमिक शिक्षा
ज़ाहिर है कि रामायण और महाभारत हिन्दू धर्म के चरित्रों की गाथाएं है। लेकिन, इनकी शिक्षा यूनिवर्सल है। आज की पीढ़ी को इसे जानना बेहद ज़रूरी है। क्या किसी राष्ट्र के युवाओं का चरित्र निर्माण, आज की ज़रुरत नहीं है। चरित्रहीन युवा, कभी भी राष्ट्र की प्रगति नहीं कर सकता। इन सीरियलों को जिस प्रकार से ३० साल या इससे काम के दर्शकों द्वारा ज़्यादा देखा जा रहा है, इस बात की पुष्टि हो भी जाती है। हिन्दू धर्म से जुड़ी मान्यताओं से अछूता युवा वर्ग, इन मान्यताओं और उपदेशों से परिचित होता जा रहा है।  यह सीरियल लोगों में छुआछूत के खिलाफ, महिला सुरक्षा, बड़ों का आदर, राज धर्म आदि भावनाओं का प्रसार करते लगते हैं।  क्योंकि, इन सब पर युवा पीढ़ी अपने विचार रखने भी लगी है।

सिर्फ धार्मिक पौराणिक सीरियल नहीं
मगर, दूरदर्शन पर हिन्दू धार्मिक और पराणिक कथानकों विस्तार करने का आरोप लगाना  उपयुक्त नहीं होगा। क्योंकि, दूसरे चैनल भी धार्मिक पौराणिक शो का पुनर्प्रसारण कर रहे हैं। स्टार प्लस से महाभारत और राधाकृष्ण का पुनः प्रसारण हो रहा है। कुछ दूसरे चैनल भी अपने पुराने धार्मिक पौराणिक शो लेकर आने जा रहे हैं। फिर भी, दूरदर्शन पर धार्मिक और पौराणिक धारावाहिकों के प्रसारण का आरोप लगाना उपयुक्त नहीं।  क्योंकि, दूरदर्शन के भिन्न चैनलों से डिटेक्टिव ब्योमकेश बक्शी, शाहरुख़ खान का शो सर्कस, कॉमेडी तू तू मैं मैं, डॉक्टर चंद्रप्रकाश द्विवेदी का शो चाणक्य और उपनिषद् गंगा, मुकेश खन्ना का फंतासी शो शक्तिमान, सामाजिक ड्रामा कृष्णकली, आदि का प्रसारण भी शुरू हो चुका है।  इन शोज पर हिन्दू धार्मिक और पौराणिक होने का आरोप नहीं लगाया जा सकता।

ज़रूरी था पुनः प्रसारण  
दरअसल, कोरोना वायरस के कारण टेलीविज़न सीरियलों की शूटिंग पूरी तरह से रुक चुकी है। तमाम चैनल टाइम स्लॉट भरने के लिए अपने पुराने लोकप्रिय सीरियलों पर ही भरोसा कर रहे हैं। इसलिए, दूरदर्शन ने भी अपने पुराने और सबसे लोकप्रिय सीरियलों का प्रसारण उपयुक्त समझा । इन तमाम सीरियलों के साथ दर्शकों का नास्टैल्जिया भी जुड़ा हुआ है। पहले रविवार को कीर्तिमान ५ करोड़ से ज्यादा लोगों ने रामायण और महाभारत के एपिसोड देखे। इस शो को देखने वाले दर्शकों का औसत ४.२६ करोड़ दर्शक पाया गया है, जो अपने आप में आश्चर्यजनक है। इससे स्पष्ट है कि रामायण और महाभारत की लोकप्रियता का सरकार ने सोशल डिस्टेंसिंग के दृष्टिकोण से बढ़िया और सार्थक उपयोग किया। इन शो को मिला ४.२६ करोड़ का दर्शक औसत इस की सफलता की कहानी है।

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